बुधवार, 11 सितंबर 2024

डॉ प्रभा ठाकुर का जागा अजमेर प्रेम

यह धारणा ठीक प्रतीत होती है कि अजमेर अब पूर्व सांसद डॉ प्रभा ठाकुर की कर्मस्थली नहीं रही, मगर उनका अजमेर प्रेम अब भी जिंदा है। हाल की जल त्रासदी ने उनके मन को भी द्रवित कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री व जिला कलेक्टर को पत्र लिख कर राहत के सभी उपाय करने का आग्रह किया है। यह सुखद है कि उन्हें अजमेर की चिंता है। वे चुनाव सहित कई महत्वपूर्ण मौकों उपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करवाती हैं। लंबे समय तक उनकी अनुपस्थिति में कांग्रेस नेता ललित जडवाल उनका प्रतिनिधित्व करते रहे। अभी यह भूमिका ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष शैलेन्द्र अग्रवाल ने निभाई है। वरना अजमेर का अनुभव है कि कई जनप्रतिनिधि जीतने-हारने के बाद पलट कर नहीं लौटे। ज्ञातव्य है कि अजेय से प्रतीत होने वाले पांच बार के लोकसभा सदस्य स्वर्गीय रासासिंह रावत को एक बार हराने का श्रेय उनके खाते में दर्ज है। वे महिला कांग्रेस की अखिल भारतीय अध्यक्ष रही हैं। जानी मानी कवयित्री हैं।


धर्मेश जैन हैं बहुत मानसिक पीडा में

अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन इन दिनों बहुत मानसिक पीडा में हैं। उन्हें दुख है कि जब आनासागर की दुर्दशा की इबारत लिखी जा रही थी, वे मुट्ठी तान कर लगातार आवाज बुलंद कर रहे थे, मगर न तो शासन-प्रशासन ने सुनवाई की और न ही पार्टी के नेताओं ने उनका साथ दिया। वे बार बार चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि अधिकारी मनमानी कर रहे हैं, वे तो चले जाएंगे, मगर उसका खामियाजा अजमेर की जनता को भोगना पडेगा। हुआ भी वही। अगर स्मार्ट सिटी की सीबीआई जांच की जाए तो यह साफ हो जाएगा कि अधिकारियों की मनमानी के चलते ही मौजूदा जल त्रासदी मुंह बाये खडी है। उनका दावा है कि जल त्रासदी से निपटने के लिए तत्काल उपाय के साथ दीर्घकालीन योजना का ब्लू प्रिंट उनके दिमाग में है। मगर उसको धरातल पर तभी उतारा जा सकेगा, जबकि उस पर गौर किया जाएगा। इस सिलसिले में वे जिला कलेक्टर से मुलाकात करेंगे। 


फिर वही घोडे और वही मैदान

अजमेर के पानी की जो तासीर है, उसे देखते हुए नगर की नब्ज पर हाथ रख कर धडकन पढने वालों को आप यह कहते सुन रहे होंगे कि थोडे दिन की बात है, बरसात जब थम जाएगी, सडकों से पानी हट जाएगा, फिर आएगा जगह जगह फैली गंदगी व मलबे को हटाने का दौर, उसके बाद आरंभ होगा पेचवर्क। हमारी स्मृति इतनी कमजोर है कि भयानक जल त्रासदी को भूल जाएंगे। फिर वही घोडे और वही मैदान। स्थाई समाधान की दिशा में कुछ होगा या पता नहीं, कुछ पता नहीं, मगर बाढ से बिलकुल करीब से गुजरने वाले क्षण ठीक वैसे ही भूल जाएंगे, जैसे 1975 की बाढ और बिपरजॉय का जलजला। एक अर्थ में यह ठीक है ठोकर खा कर जमीन पर गिर पडी जिंदगी फिर दौडने लगेगी। मगर ठोकर खा कर भी ठाकर नहीं बने तो ठोकर भी लानत देगी कि अजीब लोगों का बसेरा है इस अजमेर शहर में, सब कुछ सहन करते हैं, मगर चूं तक नहीं करते। इस बार शासन-प्रशासन के साथ अपनी लापरवाही की वजह से उत्पन्न हुई विकराल समस्या को लेकर जितना हो-हल्ला हो रहा है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दफा हम अपनी कुंडली पर ठोकर मार दिखाएंगे।


प्रिंट से आगे निकल गया सोशल मीडिया

सोशल मीडिया जितना तेज रफ्तार है, प्रिंट को पिछडना ही था। आप देखिए, भाजपा नेता के पुत्र की कारसतानी भी सोशल मीडिया ने उजागर की, जिसके सहारे प्रिंट में खबर छपी और सोशल मीडिया ने ही घटना के पीछे की कहानी उजागर की। प्रिंट ने खबर बनाते हुए तह तक जाने की जहमत नहीं उठाई। यह पता नहीं लगाया कि मौके पर आखिर हुआ क्या था? राजकाज में बाधा के पीछे का सच जानने की कोशिश क्यों नहीं की? सच का दूसरे दिन सामने आना तनिक संशय उत्पन्न करता है। अगर यह सही है कि पुलिस कर्मी ने असंवेदनशीलता दिखाई तो उसके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें