मंगलवार, 12 नवंबर 2024

तीन नंबर से अजमेर का बहुत पुराना नाता

शुरू से ही तीन के आंकड़े का अजमेर से काफी पुराना रिश्ता-नाता रहा है। यह तथ्य जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सेवानिवृत्त अधिशाषी अभियंता व व्यंग्य लेखक ई. शिव शंकर गोयल की खोजबीन से सामने आया है। उनका कहना है कि पृथ्वीराज चौहान के नाना महाराजा अजयपाल द्वारा बसाई गई और भोगौलिक रूप से राजस्थान की हृदयस्थली अजमेर, ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन, तीनों ही दृष्टियों से बहुत ही अहम है। मुगलों के समय से ही यहां तीन के अंक का बड़ा महत्व रहा है। उस समय यहां तीन प्रसिद्ध स्थान थे, 1. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, 2. ढ़ाई दिन का झौंपड़ा और 3. अकबर का किला। यही वह ऐतिहासिक स्थान है, जहां ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर टॉमस रो ने मुगल सम्राट जहांगीर को अपने प्रमाण-पत्र सौंप कर हिन्दुस्तान में व्यापार करने की इजाजत मांगी थी।

अजमेर की भौगोलिक बसावट तिकोनी है, जो तीन तरफ पहाड़ों 1. नाग पहाड़, 2. मदार पहाड़ और 3. तारागढ से घिरा हुआ है। यहां तीन ही झीलें हैं- 1. आनासागर, 2. फॉयसागर और पुष्कर। जहांगीर-शाहजहां के समय ही यहां आनासागर के किनारे बारहदरी एवं खामखां के तीन दरवाजों का निर्माण हुआ। यह तीन दरवाजे ख्वामख्वाह ही बनाये गये हैं या किसी खामेखां नामक मुगल सरदार के नाम पर बने हैं, यह खोज का विषय है, परन्तु दरवाजे तीन ही हैं, कोई भी देख सकता है। जिले के ब्यावर के पास ही खरवा नामक जगह है। वहां के ठाकुर गोपाल सिंहजी प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। उन्ही के राज में मोरसिंह नामक डाकू हुआ, जिनके लिए प्रसिद्ध था कि वह भी सिर्फ तीन कौमों 1. बनिया, 2.सुनार और 3.कलाल को ही लूटता था।

अजमेर को इस बात का गौरव है कि ब्रिटिश समय में यहां तीन प्रसिद्ध क्रांतिकारी 1.स्वामी कुमारानन्द 2. बिजौलिया किसान आन्दोलन के नेता विजयसिंह पथिक एवं 3.अर्जुनलाल सेठी हुए, जिन्होंने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर दिया था।

यूं तो हिंदी पत्रकारिता के लिए अजमेर राजस्थान का अग्रणी स्थान है, लेकिन शुरू में मुख्य रूप से तीन साप्ताहिक थे, 1. पं. विश्वदेव शर्मा का न्याय 2. कैलाश वर्णवाल का राष्ट्रवाणी और गोपाल भैया का भभक। बाद में न्याय दैनिक हो गया और साप्ताहिक में घीसूलाल जी का आजाद जुड़ गया। उस समय यहां हिन्दी के तीन ही प्रमुख दैनिक पढे जाते थे, 1. कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरीजी का दैनिक नवज्योति 2. न्याय और 3. हजारीलाल शर्मा, जयपुर का राष्ट्दूत।

आजादी के बाद पहले राजपुताना एवं फिर राजस्थान के निर्माण के समय अजमेर को सी स्टेट यानि तीसरी श्रेणी का राज्य बनाया गया, जिसके प्रथम कमिश्नर ए.डी. पंडित थे। प्रथम आम चुनाव, 1952 के समय यहां तीन प्रमुख राजनीतिक दल 1. कांग्रेस, 2. हिन्दू महासभा और 3. साम्यवादी थे। चुनाव के बाद इस राज्य के प्रथम कांग्रेसी मंत्रीमंडल में तीन ही मंत्री थे, 1. मुख्यमंत्री श्री हरीभाऊ उपाध्याय 2. गृहमंत्री श्री बालकृष्ण कौल एवं 3. शिक्षा मंत्री बृजमोहन लाल शर्मा। उस समय इस राज्य में तीन ही मुख्य शहर थे, 1. अजमेर 2. ब्यावर एवं 3. किशनगढ। नसीराबाद तो छावनी, बिजयनगर कस्बा और पुष्कर धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता था। नवम्बर 1956 में राजस्थान में विलय के समय ऐतिहासिक, धार्मिक एवं राजनीतिक तीनों का महत्व था, लेकिन फिर भी इसे राजस्थान की राजधानी नहीं बनाया गया और मजे की बात देखिये कि उस समय भी इसे तीन संस्थान 1.रेवन्यू बोर्ड, 2.राजस्थान लोक सेवा आयोग एवं 3. शिक्षा बोर्ड देकर बहला दिया गया। यहां से तीन तरफ रेलवे लाइनें जाती थीं, जो पहले बीबी एंड सीआई एवं बाद में पश्चिम रेलवे के अंर्तगत होती थी। यहां रेलवे के तीन बड़े कारखाने 1. लोको 2. कैरिज तथा 3. सिगनल्स हुआ करते थे। दिलचस्प बात यह है कि उस समय यहां से तीन ओर ही मुख्य मुख्य सडकें जाती थी, 1.जयपुर-दिल्ली, 2.ब्यावर-अहमदाबाद और 3.नसीराबाद-रतलाम-इंदौर। उस समय अजमेर में तीन मुख्य कॉलेज थे, 1. मेयो कॉलेज 2. गर्वनमेंट कॉलेज और 3. डीएवी कॉलेज। शहर में मुख्य रूप से तीन व्यापारिक स्थल थे, 1. नया बाजार 2. मदारगेट और 3. केसरगंज। नगर में तीन जगह से पानी आता था, 1. गनाहेड़ा 2. फॉयसागर और 3. भांवता। मजे की बात देखिये कि शहर में तीन ही सिनेमा हॉल थे, 1. न्यू मैजिस्टिक 2. प्लाजा और 3. प्रभात और तीन ही नाटक-थियेटर इत्यादि के स्थल थे, 1. रेलवे बिसिट 2. रेलवे का ही कैरिज स्पोर्ट्स क्लब और 3. डिग्गी बाजार में रामायण मंडल। अजमेर शहर धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां हिन्दुओं, मुसलमानों एवं जैनियों के पूजनीय स्थल तो हैं ही इसके अतिरिक्त पारसियों, सिक्खों एवं ईसाइयों के पूजा स्थल भी हैं। हिन्दुओं के देवी- देवताओं के पहाडियों पर तीन प्रमुख मन्दिर 1. चामुन्डा माता, 2. बजरंगगढ एवं 3. बाबूगढ हैं। उस जमाने में यहां तीन ही चिकित्सालय, 1. विक्टोरिया अस्पताल, 2. कस्तूरबा अस्पताल और 3. लौंगिया अस्पताल थे। तीन ही सब्जी मंडियां, 1. ईदगाह 2. रामगंज और 3. आगरागेट थीं। अजमेर शहर का दिलचस्प इतिहास सबसे पहले हमें उर्दू में लिखित मीर मुश्ताक अली की डायरी, जिसे फुलेरा के मनसब ने हिन्दी में अनुवाद किया और जिसका कुछ अंश राजस्थान पत्रिका ने छापा था, में मिलता है। लेकिन अजमेर पर ही एक ऐतिहासिक पुस्तक कर्नल टॉड ने लिखी, दूसरी श्री हरविलास शारदा ने और अब तीसरी पुस्तक ‘अजमेर एट ए ग्लांस’ नाम से अजमेर के ही तीन व्यक्तियों, प्रसिद्ध पत्रकार श्री गिरधर तेजवानी एवं अन्य दो विद्वानों डा. सुरेश गर्ग एवं कंवल प्रकाश के संयुक्त प्रयास से प्रकाशित हुई। 

इससे स्पष्ट है कि राजस्थान की राजधानी का मामला हो, कमजोर राजनीतिक नेतृत्व का मसला हो या रेलवे का इतना महत्वपूर्ण कार्यस्थल होने के बावजूद उसको पीछे ढकेल दिया गया हो, यहां जनता का कोई वर्ग तीन तेरह नहीं करता और जैसा मिला, जितना मिला है, सन्तुष्ट रहता है।

अजमेर में होम्योपैथी के भीष्म पितामह डॉ. सतीश वर्मा नहीं रहे

होम्योपैथी जगत के एक प्रमुख स्तंभ डॉ. सतीश वर्मा अब हमारे बीच नहीं हैं। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उनकी उम्र 91 वर्ष थी। अलवर गेट स्थित सेवा मंदिर हॉस्पिटल मल्टीस्पेशलिटी एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक डॉ. वर्मा का होम्यापैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति जनमानस में विश्वास कायम करने में अविस्मरीय योगदान है। उनकी सेवाओं से लाखों बीमार लाभान्वित हुए हैं। होम्योपैथी की गहन जानकारी के लिहाज से डॉ. होम व डॉ. भगत को भी उनके समकक्ष माना जाता है, लेकिन डॉ. वर्मा ने होम्योपैथी का जो प्रचार-प्रसार किया, वह एक बडी उपलब्धि के रूप में गिना जाता है। 

होम्योपैथी में उनकी विशेषज्ञता का एक प्रसंग मेरे ख्याल में आता है। प्रदेश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल लोढा के पिताश्री लीवर की बीमारी से ग्रस्त थे। एलोपैथी से खूब इलाज करवाया, मगर एक अवस्था ऐसी आई कि दवाई ने काम करना बंद कर दिया। उन्होंने प्रसिद्ध आयुर्वेदविद् चंद्रकांत चतुर्वेदी से मश्विरा किया। उन्होंने बताया कि लीवर के लिए एक रामबाण औषधि पुनर्नवा की जड है, मगर दिक्कत यह है कि उसकी गोली लेने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि उसे पचा कर रक्त में भेजने में लीवर असमर्थ है। अगर पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर मिल जाए या बनाया जा सके तो वह कामयाब हो सकती है, क्योंकि वह तो जीभ पर रखने मात्र से काम करेगी। लेकिन मार्केट में पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर उपलब्ध नहीं है। इस पर उन्हें ख्याल आया कि डॉ. सतीश वर्मा से संपर्क किया जाए। जब उनसे मिले तो उन्होंने कहा कि है तो कठिन व श्रमसाध्य, मगर ऐसा करना संभव है। वे मदर टिंचर बनाने के लिए राजी हो गए। मैं भी साथ था। बाद में क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है, मगर इससे यह स्पष्ट हो गया कि किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का मदर टिंचर बनाया जा सकता है। और आयुर्वेद व होम्यापैथी के सहयोग से अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है। 

डॉ. वर्मा का निधन अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

सोमवार, 11 नवंबर 2024

एडीए बोर्ड का गठन न होने से अटका विकास

राज्य में नई सरकार के गठन को एक साल होने को है, मगर अब तक अजमेर विकास प्राधिकरण के बोर्ड का गठन नहीं किया गया है। चाहे इसके लिए सत्तारूढ़ भाजपा की भीतरी राजनीति जिम्मेदार हो या फिर सरकार का कोई असमंजस, मगर यह अजमेर शहर पर तो भारी ही पड़ रहा है। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में मनोनयन से भाजपाई अब तक वंचित हैं और उनमें असंतोष बढ़ रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि शहर के विकास में अहम भूमिका अदा कर सकने वाली इस विशेष संस्था की निष्क्रियता से शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि भाजपा के दावेदारों की अपेक्षा पूरी हो, बल्कि जरूरी ये है कि अजमेर वासियों की अपेक्षाएं पूरी हों।

यह सर्वविदित ही है कि पहले यूआईटी हो या अब एडीए, शहर के विकास के नए आयाम स्थानीय राजनीतिक व्यक्ति के अध्यक्ष के रहने पर स्थापित हुए हैं। जब भी प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान रही है, विकास की गति धीमी रही है। इसके अनेक उदाहरण हैं। उसकी वजह ये है कि जिला कलेक्टर या संभागीय आयुक्त के पास अध्यक्ष का भी चार्ज होने के कारण वे सीधे तौर पर कामकाज पर ध्यान नहीं दे पाते। वैसे भी उनकी कोई रुचि नहीं होती। वे तो महज औपचारिक रूप से नौकरी को अंजाम देते हैं। उनके पास अपना मूल दायित्व ही इतना महत्वपूर्ण होता है कि वे टाइम ही नहीं निकाल पाते। निचले स्तर के अधिकारी ही सारा कामकाज देखते हैं। इसके विपरीत राजनीतिक व्यक्ति के पास अध्यक्ष का कार्यभार होने पर विकास के रास्ते सहज निकल आते हैं। एक तो उसको स्थानीय जरूरतों का ठीक से ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त जनता के बीच रहने के कारण यहां की समस्याओं से भी भलीभांति परिचित होता है। वह किसी भी विकास के कार्य को बेहतर अंजाम दे पाता है। प्रशासनिक अधिकारी व जनता के प्रतिनिधि का आम जन के प्रति रवैये में कितना अंतर होता है, यह सहज ही समझा जा सकता है। राजनीतिक व्यक्ति इस वजह से भी विकास में रुचि लेता है, क्योंकि एक तो उसकी स्थानीय कामों में दिलचस्पी होती है, दूसरा उसकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। उनका प्रयास ये रहता है कि ऐसे काम करके जाएं ताकि लोग उन्हें वर्षों तक याद रखें और उनकी राजनीतिक कैरियर भी और उज्ज्वल हो। आपको ख्याल होगा कि राजनीतिक व्यक्तियों के अध्यक्ष रहने पर विकसित कॉलोनियां और बने पृथ्वीराज स्मारक, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक, लवकुश उद्यान, झलकारी बाई स्मारक, वैकल्पिक ऋषि घाटी मार्ग, अशोक उद्यान, गौरव पथ, महाराणा प्रताप स्मारक, सांझा छत इत्यादि आज भी सराहे जाते हैं। कुल मिला कर बेहतर यही है कि प्राधिकरण का अध्यक्ष कोई राजनीतिक व्यक्ति ही हो।

मसला केवल विकास का ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का भी है। अफसरशाही  हावी है और उस पर भ्रष्टाचार के आरोप खुले आम लग रहे हैं। पिछले दिनों अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने तो जनसुनवाई के दौरान नगरीय विकास व स्वायत्त शासन मंत्री हरलाल सिंह खर्रा के सामने एक उपायुक्त पर भ्रष्टाचार का खुला आरोप लगाया, जिसके चलते उनको अन्य स्थान पर लगाना पडा।

बताते हैं कि नियुक्ति की कवायद अंदरखाने तो हो रही है, मगर वह धरातल पर विधानसभा उपचुनाव के बाद ही उतर पाएगी। बहरहाल, इसका परिणाम ये है कि वह सब ठप्प पड़ा है, जिसकी प्राधिकरण से उम्मीद की जाती है।


शनिवार, 9 नवंबर 2024

आजादी से पहले अजमेर नगर पालिका के अध्यक्ष

1866-68: मेजर डेविडसन

1868-73: केप्टन एच. एम. रिप्टन

1876र: मिस्टर जेम्स व्हाइट

1883: मिस्टर जे. आर. फिटजाल्ट

1883-84: मिस्टर जे. ई. किट्स

1884: कैप्टन डब्ल्यू.एच.सी. विल्ल

1884-91: रेविड डॉ. जे. हजबैंड

1891: लेफ्टिनेंट कर्नल न्यूमैन

1891-94:मिस्टर एफ.एल. राइड

1894: मिस्टर एच. क्लोस्टन

1895-1900: रेविड डॉ. जे. हजबैंड

1900-02: लेफ्टिनेंट कर्नल विलियम लॉंच

1903-07: मिस्टर सी. डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1907-08: मिस्टर डब्ल्यू. टी. वेन सोमगन

1908-09: मेजर आर. आई. हेमिटन

1909: कैप्टन टी.एच.आर.एन. प्रिचर्ड

1909: मिस्टर डब्ल्यू.सी. ह्युस्टन

1909: मिस्टर एस.बी. पीटरसन

1909-11: मिस्टर सी.डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1911: मिस्टर बी.जे. गेलेंसी

1911-13: सी.डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1913-1918: मिस्टर आर.जी. रॉबसन

1919-20: मिस्टर एस.एफ.मदीन

1920-23: मिस्टर जी.के. खांडेलकर

1926-31: मिस्टर एस.एफ. मदीन

1931-32: लेफ्टिनेंट कर्नल जी. हेवसन

1932-33: सर हेमचंद सोगानी

1933-34: मिस्टर एच.डब्ल्यू. फीथ

1934: सर हेमचंद सोगानी

1934: मिस्टर जी.एल. बेथम

1934: कैप्टन आई.अगरालब्रेथ

1934: मेजर डेला फोर्ग्यु

1934: मिस्टर सी.एच. गिदानी

1934-35: कैप्टन एल.ए.जी. फिनी

1935-39: मिस्टर टी. बेर्ट

1939-40: मिस्टर एम.के. कोल

1942-46: राजबहादुर सर सेठ भागचंद सोनी

1946-47: मिस्टर जीतमल लूनिया

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

ऐसा था स्वतंत्र राज्य अजमेर: भाग दो

सन् 1946 से 1952 तक अजमेर राज्य के संचालन के लिए चीफ कमिश्नर को राय देने के लिए सलाहकार परिषद् बनी हुई थी। इस में सर्वश्री बालकृष्ण कौल, किशनलाल लामरोर व मिर्जा अब्दुल कादिर बेग, जिला बोर्ड व अजमेर राज्य की नगरपालिकाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि, संसद सदस्य मुकुट बिहारी लाल भार्गव, कृष्ण गोपाल गर्ग, मास्टर वजीर सिंह और पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि के रूप में सूर्यमल मौर्य मनोनीत किया गया था। 

भारत विभाजन के बाद कादिर बेग पाकिस्तान चले गए व उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को नियुक्त किया गया। चीफ कमिश्नर के रूप में श्री शंकर प्रसाद, सी. बी. नागरकर, के. एल. मेहता, ए. डी. पंडित व एम. के. कृपलानी रहे। सन् 1952 में प्रथम आम चुनाव के साथ ही यहां लोकप्रिय शासन की स्थापना हुई। 

अजमेर विधानसभा को धारा सभा के नाम से जाना जाता था। इसके तीस सदस्यों में से इक्कीस कांग्रेस, पांच जनसंघ (दो पुरुषार्थी पंचायत) और चार निर्दलीय सदस्य थे। मुख्यमंत्री के रूप में श्री हरिभाऊ उपाध्याय चुने गए। गृह एवं वित्त मंत्री श्री बालकृष्ण कौल, राजस्व व शिक्षा मंत्री ब्यावर निवासी श्री बृजमोहन लाल शर्मा थे। मंत्रीमंडल ने 24 मार्च, 1952 को शपथ ली। विधानसभा का उद्घाटन 22 मई, 1952 को केन्द्रीय गृह मंत्री डॉ. कैलाश नाथ नायडू ने किया। विधानसभा के पहले अध्यक्ष श्री भागीरथ सिंह व उपाध्यक्ष श्री रमेशचंद भार्गव चुने गए। बाद में श्री भार्गव को अध्यक्ष बनाया गया और उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को उपाध्यक्ष बनाया गया। विरोधी दल के नेता डॉ. अम्बालाल थे। विधानसभा प्रशासन संचालित करने के लिए 19 कानून बनाए। सरकार के कामकाज में मदद के लिए  विकास कमेटी, विकास सलाहकार बोर्ड, औद्योगिक सलाहकार बोर्ड, आर्थिक जांच बोर्ड, हथकरघा सलाहकार बोर्ड, खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड, पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीयकरण सलाहकार बोर्ड, पिछड़ी जाति कल्याण बोर्ड, बेकारी कमेटी, खान सलाहकार कमेटी, विक्टोरिया अस्पताल कमेटी, स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास कमेटी और नव सुरक्षित वन जांच कमेटी का गठन किया गया, जिनमें सरकारी व गैर सरकारी व्यक्तियों को शामिल किया गया। 

राजस्थान में विलय से पहले अजमेर राज्य से लोकसभा के लिए व राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुने जाने की व्यवस्था थी। लोकसभा के लिए अजमेर व नसीराबाद क्षेत्र से श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा और केकड़ी व ब्यावर क्षेत्र से श्री मुकुट बिहारी लाल भार्गव और राज्यसभा के लिए श्री अब्दुल शकूर चुने गए। सन् 1953 में अजमेर राज्य से राज्यसभा के लिए कोई सदस्य नहीं था, जबकि 1954 में श्री करुम्बया चुने गए। अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही मंत्रीमंडल व सभी समितियों का अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्व व शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन लाल शर्मा को राजस्थान मंत्रीमंडल में लिया गया।

यहां उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया। अजमेर एट ए ग्लांस से साभार।

तीर्थराज पुष्कर की पवित्रता कैसे कायम रहेगी?

विश्व प्रसिद्ध तीर्थराज पुष्कर के रखरखाव और विकास पर यद्यपि सरकार अपनी ओर से पूरा ध्यान दे रही है, बावजूद इसके यहां अनेकानेक समस्याएं सालों से कब्जा जमाए बैठी हैं, जिसके कारण यहां दूर-दराज से आने वाले तीर्थ यात्रियों को तो दिक्कत होती ही है, इसकी छवि भी खराब होती है। विशेष रूप से इसकी पवित्रता का खंडित होना सर्वाधिक चिंता का विषय है।

यह सही है कि पर्यटन महकमे की ओर किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के कारण यहां विदेशी पर्यटक भी खूब आकर्षित हुए हैं और सरकार की आमदनी बढ़ी है, मगर विदेशी पर्यटकों की वजह से यहां की पवित्रता पर भी संकट आया है। असल में पुष्कर की पवित्रता उसके देहाती स्वरूप में है, मगर यहां आ कर विदेशी पर्यटकों ने हमारी संस्कृति पर आक्रमण किया है। होना तो यह चाहिए कि विदेशी पर्यटकों को यहां आने से पहले अपने पहनावे पर ध्यान देने के निर्देश जारी किए जाने चाहिए। जैसे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में जाने से पहले सिर ढ़कने और जूते उतारने के नियम हैं, वैसे ही पुष्कर में भ्रमण के भी अपने कायदे होने चाहिए। यद्यपि इसके लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया सकता, मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि पर्यटकों को सख्त हिदायत हो कि वे अर्द्ध नग्न अवस्था में पुष्कर की गलियों या घाटों पर नहीं घूम सकते। होटल के अंदर कमरे में वे भले ही चाहे जैसे रहें, मगर सार्वजनिक रूप से अंग प्रदर्शन नहीं करने देना चाहिए। इसके विपरीत हालत ये है कि अंग प्रदर्शन तो दूर विदेशी युगल सार्वजनिक स्थानों पर आलिंगन और चुंबन करने से नहीं चूकते, जो कि हमारी संस्कृति के सर्वथा विपरीत है। कई बार तो वे ऐसी मुद्रा में होते हैं कि देखने वाले को ही शर्म आ जाए। यह ठीक है कि उनके देश में वे जैसे भी रहते हों, उसमें हमें कोई ऐतराज नहीं, मगर जब वे हमारे देश में आते हैं तो कम से कम यहां मर्यादाओं का तो ख्याल रखें। विशेष रूप तीर्थ स्थल पर तो गरिमा में रह ही सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के बेहूदा कपड़ों में घूमने से यहां आने वाले देशी तीर्थ यात्रियों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ता है। वे जिस मकसद से तीर्थ यात्रा को आए हैं और जो आध्यात्मिक भावना उनके मन में है, वह खंडित होती है। जिस स्थान पर आ कर मनुष्य को अपनी काम-वासना का परित्याग करना चाहिए, यदि उसी स्थान पर विदेशी पर्यटकों की हरकतें देख कर तीर्थ यात्री का मन विचलित होता है तो यह बेहद आपत्तिजनक और शर्मनाक है। विदेशी पर्यटकों की हालत तो ये है कि वे जानबूझ कर अर्द्ध नग्न अवस्था में निकलते हैं, ताकि स्थानीय लोग उनकी ओर आकर्षित हों। जब स्थानीय लोग उन्हें घूर-घूर कर देखते हैं, तो उन्हें बड़ा रस आता है। जाहिर तौर पर जब दर्शक को ऐसे अश्लील दृश्य आसानी से सुलभ हो तो वे भला क्यों मौका गंवाना चाहेंगे? स्थिति तब और विकट हो जाती है जब कोई तीर्थ यात्री अपने परिवार के साथ आता है। आंख मूंद लेने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं रह जाता।

यह भी एक कड़वा सत्य है कि विदेशी पर्यटकों की वजह से ही पुष्कर मादक पदार्थों की मंडी बन गया है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। इस इलाके एड्स के मामले भी इसी वजह से सामने आते रहे हैं।

यह सही है कि तीर्थ पुरोहितों ने पुष्कर की पवित्रता को लेकर अनेक बार आंदोलन किए हैं, मगर कामयाबी अब तक हासिल नहीं हो पाई है। तीर्थ पुरोहित पुष्कर में प्रभावी भूमिका में हैं। वे चाहें तो सरकार पर दबाव बना कर यहां का माहौल सुधार सकते हैं। यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुकूल होगा, अपितु तीर्थराज के प्रति लोगों की अगाध आस्था का संरक्षण करने के लिए भी जरूरी है।

पार्षद बन कर पछताए थे स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी

नगर निगम चुनाव को लेकर कितनी मारामारी मचती है, सब जानते हैं। हर छोटा-मोटा नेता चाहता है कि उसे पार्टी टिकट दे दे। उसके लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाता है। येन-केन-प्रकारेण टिकट चाहिए ही। आखिर क्यों? क्या सेवा का भाव उछाल मार रहा होता है? या वर्चस्व की चाह गहरी हो जाती है? या फिर कमाई का जरिया बनने का आकर्षण है? जो कुछ भी हो, मगर आप पाते हैं कि अदद पार्षद बनना भी बडा लक्ष्य हो जाता है। और पार्षद बनने के बाद जो आनंद मिलता है, उसकी कल्पना आम आदमी नहीं कर सकता। ऐसे में अगर कोई पार्षद बन कर खुश न हो, यहां तक कि पछताए तो आप क्या कहेंगे? कहे कि कहां आ कर फंस गया, तो आप क्या सोचेंगे? यही न कि यह आदमी मौजूदा आर्थिक आपाधापी के युग में मिसफिट है। जी हां, मैं एक ऐसे भूतपूर्व, और एक अर्थ में अभूतपूर्व पार्षद को जानता हूं, जानता क्या, बाकायदा मिला हूुं, जिन्होंने एक बार कहा कि पार्षद बन कर बहुत पछता रहा हूं। जनता की सेवा तो ठीक, मगर नगर परिषद की दुनिया में दम घुटता बहुत है। अंदर जो मंजर है, उसमें जीना मुश्किल है। झूठ, फरेब, स्वार्थ, मक्कारी, चालाकी, मुझ से तो नहीं होगी। वार्ड वासियों की सेवा का तो अच्छा अवसर है, वह ठीक है, मगर कमीशन का शिष्टाचार मेरे लिए तो संभव नहीं है। वे मिसफिट पार्षद थे, स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी। नया बाजार के जाने-माने व्यवसायी थे। संपन्न, समर्थ, मगर अत्यंत धार्मिक। सादा जीवन। सहज सुलभ। जाने-माने सिंधी गायक कलाकार थे। बालसखा स्वर्गीय श्री मिर्चूमल सोनी के साथ उनकी जोडी प्रसिद्ध थी। आकाशवाणी पर इस जोडी ने कई कार्यक्रम दिए। वेदांत के गहन जानकार। वैशाली नगर के शिव मंदिर में प्रतिदिन प्रातः प्रवचन दिया करते थे। अध्यात्म के जगत में इतना कदीमी मुकाम हासिल कर लिया था कि वेदांत केसरी ब्रह्मलोकवासी स्वामी श्री मनोहरानंद सागर जी महाराज ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनने का प्रस्ताव रखा, मगर उन्होंने अपनी पारीवारिक जिम्मेदारी को अधिक अहमियत दी। तब स्वर्गीय स्वामी श्री अद्वैतानंद सागर जी ने गद्दी संभाली थी। असल में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए आरएसएस ने उनको भाजपा के टिकट पर निगम का चुनाव लडवाया था, हालांकि उनकी खुद की कोई दिलचस्पी नहीं थी। कहां धार्मिक व्यक्तित्व और कहां पार्षद की भूमिका। कोई मेल नहीं। मगर यह सोच कर कि पार्षद बनने पर सेवा का बेहतर अवसर मिलेगा। वे जीत गए। निस्वार्थ भाव से सेवा भी खूब की। वार्ड में दिन-रात सक्रिय रहे। मगर निगम परिसर में जाना उनको अच्छा नहीं लगता था। वहां के माहौल को देख कर। एक बार साधारण सभा में बहुत हंगामा, गरमागरमी, आरोप-प्रत्यारोप, छीना-झपटी देख कर बोले पार्षद बन कर पछता रहा हूं। बात तकरीबन पच्चीस साल पुरानी है। तब से लेकर अब तक गंगा का पानी बहुत बह चुका। कल्पना की जा सकती है कि आज कैसे हालात होंगे। प्रसंगवश बताना उचित होगा कि बाद में उनकी पुत्र वधु श्रीमती रीना सोनी धर्मपत्नी श्री मनोहर सोनी भी पार्षद बनी थीं।

बुधवार, 6 नवंबर 2024

ऐसा था स्वतंत्र राज्य अजमेर: भाग एक

राजस्थान प्रदेश में विलय से पहले अजमेर एक स्वतंत्र राज्य था। केन्द्र सरकार की ओर से इसे सी स्टेट के रूप में मान्यता मिली हुई थी। सन् 1946 से 1952 तक अजमेर राज्य के संचालन के लिए चीफ कमिश्नर को राय देने के लिए सलाहकार परिषद् बनी हुई थी। सन् 1952 में प्रथम आम चुनाव के साथ ही यहां लोकप्रिय शासन की स्थापना हुई।

अजमेर राज्य 2 हजार 417 वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ था और सन् 1951 में इसकी जनसंख्या 6 लाख 93 हजार 372 थी। केकड़ी को छोड़ कर राज्य का दो तिहाई हिस्सा जागीरदारों व इस्तमुरारदारों (ठिकानेदार) के पास था, जबकि केकड़ी का पूरा इलाका इस्तमुरारदारों के कब्जे में था। सरकारी कब्जे वाली खालसा जमीन नाम मात्र को थी। पूर्व में ये ठिकाने जागीरों के रूप में थी और इन्हें सैनिक सेवाओं के उपलक्ष्य में दिया गया था। इन ठिकानों के कुल 277 गांवों में से 198 गावों से फौज खर्च वसूल किया जाता था। ब्रिटिशकाल से पहले सामन्तशाही के दौरान यहां सत्तर बड़े इस्तमुरारदार और चार छोटे इस्तमुरारदार थे। ये ठिकाने विभिन्न समुदायों में बंटे हुए थे। कुल 64 ठिकाने राठौड़ समुदाय के, 4 चीता समुदायों और 1-1 सिसोदिया व गौड़ के पास थे। इनको भी राजपूत रियासतों के जागीरदारों के बराबर विशेष अधिकार हासिल थे। सन् 1872 में ठिकानेदारों को सनद दी गई और 1877 में अजमेर भू राजस्व भूमि विनियम के तहत इनका नियमन किया गया।

इस्तमुरारदारों को तीन श्रेणी की ताजीरें प्रदान की हुई थीं। जब कभी किसी ठिकाने के इस श्रेणी के निर्धारण संबंधी विवाद होते थे तो चीफ कमिश्रर की रिपोर्ट के आधार पर वायसराय उसका समाधान निकालते थे। ब्रिटिश काल में जब कभी कोई इस्तमुरारदार दरबार में भाग लेता था तो चीफ कमिश्नर की ओर से उसका सम्मान किया जाता था। हालांकि इस्तमुरारदार राजाओं की श्रेणी में नहीं आते थे, लेकिन इन्हें विशेष अधिकार हासिल थे।  

अजमेर राज्य में कुल नौ परगने शाहपुरा, खरवा, पीसांगन, मसूदा, सावर, गोविंदगढ़, भिनाय, देवगढ़ व केकड़ी थे। केकड़ी जूनिया का अंग था। जूनिया, भिनाय, सावर, मसूदा व पीसांगन के इस्तमुरारदार मुगल शासकों के मंसबदार थे। भिनाय की सर्वाधिक प्रतिष्ठा थी तथा इसके इस्तमुरारदार राजा जोधा वंश के थे। प्रतिष्ठा की दृष्टि से दूसरे परगने सावर के इस्तमुरारदार ठाकुर सिसोदिया वशीं शक्तावत राजपूत थे। इसी क्रम में तीसरे जूनिया के इस्तमुरारदार राठौड़ वंशी थे। पीसांगन के जोधावत वंशी राठौड़ राजपूत व मसूदा के मेड़तिया वंशी राठौड़ थे। अजमेर राज्य में जागीरदारी व माफीदार व्यवस्था भी थी। धार्मिक व परमार्थ के कार्यों के लिए दी गई जमीन को जागीर कहा जाता था। इसी प्रकार माफी की जमीन भौम के रूप में दी जाती थी। भौम चार तरह के होते थे। पहले वे जिनकी संपत्ति वंश परम्परा के तहत थी और राज्य की ओर से स्वामित्व दिया जाता था। दूसरे वे जिनकी संपत्ति अपराध के कारण दंड स्वरूप राज्य जब्त कर लेता था, तीसरे वे जिनकी संपत्ति जब्त करने के अतिरिक्त राजस्व के अधिकार छीन लिए जाते थे और चौथे वे जिन पर दंड स्वरूप जुर्माना किया जाता था। इस्तमुरारदार ब्रिटिश शासन को भू राजस्व की तय राशि वार्षिक लगान के रूप में देते थे। जागीरदार अपने इलाके का भू राजस्व सरकार को नहीं देते थे। आजादी के बाद शनैरू शनैरू जागीरदारी व्यवस्था समाप्त की जाती रही। 1 अगस्त, 1955 को अजमेर एबोलिएशन ऑफ इंटरमीडियरी एक्ट के तहत इस्तमुरारदार खत्म किये गये। इसी प्रकार दस अक्टूबर, 1955 में जागीरदार व छोटे ठिकानेदारों को खत्म किया गया। इसके बाद 1958 में भौम व माफीदारी की व्यवस्था को भी खत्म कर दिया गया। राज्य के पुनर्गठन के संबंध में 1 नवंबर, 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम प्रभाव में आया और अजमेर एकीकृत हुआ और राजस्थान में शामिल कर लिया गया। 1 दिसम्बर, 1956 को जयपुर जिले का हिस्सा किशनगढ़ अजमेर में शामिल कर दिया गया। किशनगढ़ में उस वक्त चार तहसीलें किशनगढ़, रूपनगढ़, अरांई व सरवाड़ थी। 15 जून, 1958 से राजस्थान का भूमि राजस्व अधिनियम 1950, खातेदारी अधिनियम 1955 अजमेर पर लागू कर दिए गए। 1959-60 में तहसीलों का पुनर्गठन किया गया और अरांई व रूपनगढ़ तहसील समाप्त कर जिले में पांच तहसीलें अजमेर, किशनगढ़, ब्यावर, केकड़ी व सरवाड़ बना दी गई। केकड़ी तहसील का हिस्सा देवली अलग कर टोंक जिले में मिला दिया गया। अजमेर एट ए ग्लांस से साभार। क्रमशः

मंगलवार, 5 नवंबर 2024

ओ बीजेपी कुण है?

क्या यह संभव है कि कोई पार्षद निवार्चित हो जाए और उसे यह पता न हो कि वह किस पार्टी के चुनाव चिन्ह पर विजयी हुआ है? जी हां, ऐसा एक वाकया हुआ है तत्कालीन अजमेर नगर परिषद के चुनाव में। परिणाम वाले दिन भाजपा का विजय जुलूस निकल रहा था। जाहिर तौर पर बीजेपी जिंदाबाद के नारे लग रहे थे। जुलूस में शामिल वैशाली नगर माकडवाली इलाके के एक पार्षद नारे सुन कर असमंजस में थे। वे अपने साथियों से पूछने लगे कि ओ बीजेपी कुण है। उनके साथी आश्चर्यमिश्रित हास्य से सराबोर हो गए। उन्होंने जब पार्षद महोदय को समझाया की आप जिस पार्टी से जीते हैं, उसका नाम है बीजेपी, तब जा कर उनका असंजस दूर हो पाया। असल में उनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी और न ही चुनाव लडने का मानस। उन्हें तो जातीय समीकरण के तहत भाजपा ने मैदान में उतारा गया था। उन्हें ख्याल ही नही था कि वे किस पार्टी की ओर से चुनाव लड रहे हैं। उन्हें इतना भर पता था कि चुनाव लड रहे हैं। है न दिलचस्प वाकया।

मेरी फितरत में जीहुज़ूर ना था, वरना साहब मेरा कुछ कसूर ना था

अजमेर के पत्रकार साथियों के कृतिव एवं व्यक्तित्व के बारे एक सीरीज लिखी तो मेरे पत्रकार साथी श्री अमित टंडन ने आग्रह किया कि अपने बारे में भी तो कुछ लिखिए। भला मैं अपने बारे में कैसे लिख सकता था? इस पर उन्होंने कहा कि वे यह जिम्मेदारी निभाना चाहते हैं। उनके आग्रह को मैं टाल नहीं सका। उन्होंने जो कुछ लिखा, हूबहू पेश हैः-

अजमेर में पत्रकारिता के स्वर्णिम युग का आकलन यूं तो पुराने पत्रकार उस दौर के फ़्लैश बैक में जाकर करते हैं, जब बड़े अखबार के नाम पर दैनिक नवज्योति एक मात्र अखबार था, जो अजमेर से प्रकाशित होकर पूरे राज्य में वितरित होता था। मगर तब छोटे अखबारों, अर्थात राष्ट्रदूत, न्याय, रोज़मेल या आधुनिक राजस्थान जैसे मझोले (या शायद लघु) अखबार भी उतना ही दम रखते थे, जितनी ताकत राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के अखबारों की मानी जाती थी। 

इस वजह से तब अजमेर में हर छोटे बड़े अखबार के पत्रकार का अपना एक कद और पहचान होती थी।

आप और हम जिस अजमेरनामा डॉट कॉम न्यूज पोर्टल पर अजमेर के पत्रकार व साहित्यकारों की सीरीज़ में जिन-जिन महानुभावों की जीवनी और कृतित्व के बारे में पढ़ रहे हैं, वो तो यकीनन अपनी छाप और पहचान के साथ एक इतिहास लिख रहे हैं। मगर, इस न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से आपको ये तमाम जानकारियां देने वाले इस पोर्टल के मुख्य संपादक श्री गिरधर तेजवानी स्वयं अजमेर की पत्रकारिता की तीसरी पीढ़ी के दिग्गज कलमकारों में से एक हैं। 

तीसरी पीढ़ी के इसलिए, क्योंकि प्रथम पीढ़ी में नवज्योति के संस्थापक कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी और उनके समकालीन पत्रकार रहे, दूसरी पीढ़ी में श्री नरेन्द्र चौहान व श्याम जी आदि रहे। श्री तेजवानी की पीढी ने तीसरे नंबर पर वो मशाल सम्भाली, और उस हिसाब से मैं चौथी पीढ़ी में शुमार हो गया। 

रिपोर्टिंग, संपादन लेखन आदि तो श्री तेजवानी का एक महत्वपूर्ण और अनेक उपलब्धि वाला क्षेत्र है ही, मगर श्री तेजवानी की सबसे बड़ी खासियत जो निजी तौर पर मुझे लगी, वो थी राजनीतिक टिपणियां और विश्लेषण। 

6 अप्रैल, 1997 को अजमेर में दैनिक भास्कर का पदार्पण हुआ और हम सब एक-एक करके उसमें जुड़ते चले गए और वहीं मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई और साथ काम करने का अवसर मिला। आज उस बात को 28 साल हो गए। 

अमित टंडन

इस 28 साला सफर में मैंने निजी तौर पर एक धीर गंभीर समाचार विश्लेषक और राजनीतिक विचारक के रूप में श्री तेजवानी के ज्ञान की कई ऊंचाइयां देखीं। कोई भी चुनाव हो, स्थानीय निकाय से लेकर विधानसभा, लोकसभा या फिर किसी भी सहकारी समिति, जिला परिषद या छात्र संघ के चुनाव में उनके कयास, उनके आकलन, उनकी विशेष टिप्पणियां आज भी नज़ीर हैं।

डेस्क पर एक प्रभारी के रूप में उनके अधीन क्योंकि मैंने काम किया, तो समाचार की कसावट, सम्पादन की बारीकियां, शब्दों का चयन और हेडलाइंस लगाने का हुनर देख कर बहुत कुछ सीखा।

मुझे याद आता है कि जब भास्कर में संपादकीय साथियों को ऑनलाइन करके पेपरलेस पत्रकार बनाने की मुहिम चल रही थी, तब कंप्यूटर सिखाने की जिम्मदारी मुझ पर ही थी, और श्री तेजवानी ने उस दो माह के कोर्स के बाद ली गई परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये थे। ये सीखने की उनकी ललक और इच्छाशक्ति का उदाहरण है, जिसका मैं प्रत्यक्ष गवाह रहा। क्योंकि सतत सीखते रहने की उनकी प्रवृत्ति उनका सकरात्मक पहलु थी। 

आज भी वे पत्रकारिता की सेवा कर रहे हैं। आज भी पत्रकारिता को एक पेशे या महज़ काम न समझ कर एक मिशन और एक क्रांति मानते हैं और उसी जोश से लिखते हैं जैसा मैंने उन्हें 28 साल पहले देखा था। 

मगर, एक बात जरूर कहना चाहूंगा, कि ईमानदार कलम अक्सर असल मुकाम पाने से पहले तोड़ दी जाती है। हालांकि इस कलम को तोडऩे के भी प्रयास हुए, मगर इस कलम की नोक इतनी तीखी और मजबूत है कि न ये टूटी औऱ न रुकी। आज भी शब्दों के बाण इस कलम से असत्य, अनाचार और अत्याचार पर वार कर रहे हैं, आज भी लेखनी जवान है। मगर अफसोस है तो इस बात का कि श्री गिरधर तेजवानी को किसी उच्च पद का जो हक़ किसी बड़े मीडिया हाउस में मिलना चाहिए था, वो न मिला। शायद पेशेवर पत्रकारिता के दौर में जवान हुई श्री तेजवानी की कलम की कद्र बड़े अखबारों ने नहीं जानी। खरी खरी और सच कह देने की उनकी आदत और मेरी आदत एक सी है। 

मुझे याद आता है हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार व आला गज़लगो भ्राता श्री सुरेंद्र चतुर्वेदी ने एक बार मुझसे ये कहा था- अमित तुम और तेजवानी कड़वे लोग हो। अर्थात तुम लोग सच को सच कह कर खरी खरी सुना देते हो और अपने सेठ, बॉस या कंपनी को कहीं न कहीं नाराज़ कर देते हो, और आज के ज़माने में सच्चाई को तरक्की नहीं मिलती। श्री चतुर्वेदी हमारी इस साफगोई से खुश भी थे और गर्वित भी, मगर हमारी तरक्की के अवरोधों से दुखी भी थे। 

मगर, एक शेर याद आता है जो तेजवानी जी पर एकदम सटीक है-

मेरी फितरत में जीहुज़ूर ना था

वरना साहब मेरा कुछ कसूर ना था 

शख्सियत: स्वाधीनता सेनानी स्वर्गीया श्रीमती क्रांतिदेवी शर्मा

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा की धर्मपत्नी स्वर्गीया श्रीमती क्रांतिदेवी ने आजादी के आंदोलन में पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर भाग लिया। स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल झा के घर जन्मी श्रीमती क्रांतिदेवी ने एम.ए. हिंदी तक शिक्षा अर्जित की है और लेखन कार्य करती थीं। वे आजादी के आंदोलन के दौरान जन प्रबल प्रचार समिति की अध्यक्ष रहीं। वे प्रदेश कांग्रेस की उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संघ महिला विंग की अध्यक्ष थीं। श्री ज्वाला प्रसाद के निधन के बाद आजाद भारत में वे समाजसेवा के लिए सतत कार्य करती रहीं। उनकी पुण्य स्मृति में गोष्ठियां किया करती थीं। उनकी सुपुत्री श्रीमती नीलिमा शर्मा भिनाय से कांग्रेस विधायक रहीं। कांग्रेस के दिल्ली दरबार में उनकी गहरी पकड थी।

शनिवार, 2 नवंबर 2024

अजमेर में कांग्रेस के स्तम्भ एडवोकेट जसराज जयपाल

अजमेर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे एडवोकेट जसराज जयपाल अपने आप में एक संस्था हैं। आजादी के बाद अजमेर की राजनीति में उनके परिवार का खासा वर्चस्व बना हुआ है। उनका जन्म 13 मई 1930 को ब्यावर इलाके के छोटे से गांव झाक में हुआ। उनके पिता स्वर्गीय श्री केशवराम ब्यावर स्थित कपड़ा मिल में मुकद्दम के पद कार्यरत रहे और ब्यावर नगर पालिका के छह बार पार्षद बने। श्री जयपाल ने बी. कॉम., एम. ए. व एल.एल.बी. की डिग्रियां राजकीय महाविद्यालय, अजमेर में पढ़ते हुए हासिल कीं। वकालत ही उनका पेशा है, मगर राजनीति में भी पूरा दखल रखते हैं। वे सन् 1967 से 1972 तक अजमेर जिले की भिनाय सीट से विधायक रहे और मंत्री भी बने। उन्होंने अनुसूचित जातीय जनजातीय समाज की अनेक संस्थाओं में सक्रिय भूमिका निभाई है। उन्होंने सहकारिता के क्षेत्र में विशेष कार्य किया और अनेक पुस्तकें भी लिखीं। अजमेर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के संचालक मंडल के सदस्य व राजस्थान उपभोक्ता समिति के अध्यक्ष पद के रूप में राज्य सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की, जिसे सरकार ने यथावत स्वीकार कर लिया। उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीया श्रीमती भगवती देवी 1972 व 1980 के चुनाव में भिनाय विधानसभा सीट से विजयी हुई थीं। उनके सुपुत्र डॉ राजकुमार जयपाल 1985 में अजमेर पूर्व सीट से विधायक चुने गए थे। वे अजमेर क्लब के अध्यक्ष हैं।

हाल ही अजमेर जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रभान सिंह राठौड़ ने श्री जसराज जयपाल का उनके 95 वें जन्म दिन के अवसर पर नागरिक अभिनंदन किया। इस अवसर पर गुलाब सिंह राजावत, लोक अभियोजक विवेक पाराशर, अरविंद मीणा, अभय वर्मा, इंदर चंद मण्डूसिया, महेंद्र मेड़ता, राकेश मेहरा, महेश काला, पूर्व विधायक डॉ राजकुमार जयपाल, अशोक दायमा, कर्मचारी नेता रतन कोमल सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

अजमेर ने खो दिया समाजसेवी श्री श्यामसुंदर छापरवाल को

अजमेर ने हाल ही प्रमुख समाजसेवी श्री श्यामसुंदर छापरवाल को खो दिया। वे न केवल प्रतिष्ठित व्यवसायी थे, अपितु आध्यात्मिक नगर अजमेर में आयोजित विशाल धार्मिक आयोजनों में उनकी अहम भूमिका रही। श्रद्धेय श्री डोंगरे जी महाराज, कथा वाचक श्री मुरारी बापू, श्री रामसुखदास जी महाराज जैसे बडे संतों के प्रवचनों व कथाओं में उन्होंने बढ-चढ कर भाग लिया। ज्ञातव्य है कि ऐसे आयोजनों में धर्मप्राण समाजसेवियों स्वर्गीय श्री मणिलाल गर्ग, शंकर लाल बंसल, कालीचरण खंडेलवाल, रामेश्वर लाल फतेहपुरिया, सीताराम मंत्री आदि का भी अविस्मरणीय योगदान रहा है। श्री छापरवाल के भ्राता सर्वश्री भीमकरण, सत्यनारायण व गोपाल कृष्ण भी व्यवसाय के अतिरिक्त धार्मिक कार्यक्रमों में साथ देते थे। ऐसे कार्यक्रमों का मीडिया प्रबंधन जाने-माने पत्रकार स्वर्गीय श्री आर डी कुवेरा किया करते थे। श्री छापरवाल अर्थ संपन्न होने के बावजूद सादा जीवन जीते थे। उनका स्वर्गवास अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है। अजमेरनामा उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

हरदिल अजीज शख्सियत: डॉ. सुरेश गर्ग

डॉ. सुरेश गर्ग का नाम परिचय का मोहताज नहीं। शहर का शायद ही कोई ऐसा जागरूक व्यक्ति होगा, जो उनको न जानता हो, या जिसने इस हरदिल अजीज शख्सियत का नाम न सुना हो। असल में इसकी एक मात्र वजह ये है कि एक तो वे आम जनता से जुड़ी नगर पालिका सेवा में रहे, दूसरा ये कि उन्होंने केवल नौकरी ही नहीं की, बल्कि सदैव अजमेर से जुड़े हर राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दे से हर वक्त जुड़े रहे। सेवानिवृत्ति के बाद तो वे पूरी तरह अजमेर के लिए समर्पित हो गए हैं और अजमेर के हित से जुड़े हर मुद्दे पर अपना किरदार निभाने की कोशिश कर रहे हैं। वे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की गहन जानकारी की वजह से भी लोकप्रिय हैं। सेवाभाव की वजह से लागत मूल्य पर ही आयुर्वेद की दवाई दे देते हैं। यदि कोई निर्धन आ जाए तो उसे मुफ्त में ही दवा दे कर स्वयं को भाग्यवान समझते हैं। इस कार्य में उनकी पत्नी श्रीमती इन्द्र प्रभा गर्ग भी हाथ बंटाती हैं।

स्वर्गीय श्री किशन स्वरूप जी गर्ग के घर 13 फरवरी 1948 को जन्मे डॉ. गर्ग ने एमए व एलएलबी तक अध्ययन किया है और बायोकेमिस्ट व आयुर्वेद रत्न की शिक्षा भी अर्जित की है। उन्होंने 14 साल तक जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में सेवाएं दीं और उसके बाद 28 साल तक राजस्थान नगरपालिका सेवा में रहे और 16 साल पहलेअधिशाषी अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में आप आयुर्वेद व होम्योपैथी की प्राइवेट पै्रक्टिस कर रहे हैं। सरकारी सेवा के दौरान कर्मचारी संगठनों की गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। सहकारी क्षेत्र में भागीदारी निभाते हुए दी अजमेर जलदाय कर्मचारी बचत व साख सहकारी समिति के निदेशक रहे। समाजसेवा के क्षेत्र में भी आपकी सक्रियता रही और 1970 से 78 तक स्वयंसेवी संस्था इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वूमन आर्गेनाइजेशन में निदेशक रहे। सेवारत अग्रवाल कल्याण परिषद के आजीवन संरक्षक, अग्रवंशज संस्थान के निदेशक, अग्रवाल वैवाहिक परिचय एवं सामूहिक सम्मेलन में उपाध्यक्ष व संयोजक और अग्रबंधु निर्देशिका के संपादक रहे। उन्होंने संत श्री मोरारी बापू की नौ दिवसीय कथा के आयोजन के संयोजन का जिम्मा निभाया। उन्होंने नगर पालिका कानून की पांच पुस्तकें, व्यंग्य व स्वास्थ्य पर पुस्तकें लिखीं। उन्होंने स्थानीय निकाय के बढ़ते कदम पत्रिका का संपादन किया है और अनेक स्मारिकाओं का प्रकाशन करवाया है। वर्तमान में आंखन देखी पाक्षिक व रिमझिम साप्ताहिक में संपादन का कार्य कर रहे हैं। रिमझिम प्रकाशन ने अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य पर रचित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस का प्रकाशन  किया है। स्वाभाविक रूप से पुस्तक के प्रकाशन में उनकी अहम भूमिका रही है। वे सन् 2001 से 2005 तक अजयमेरू प्रेस क्लब में  निदेशक रह चुके हैं। सन् 1970 से 1980 तक सामाजिक संस्था में प्रगतिशील युवक संघ में महामंत्री रहे व वर्तमान में उसके अध्यक्ष हैं। राजनीतिक से आपका शुरू से जुड़ाव रहा। लोकसभा व विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी प्रत्याशियों के खुल कर काम करने की वजह से भाजपा शासनकालों में अजमेर से स्थानांतरित हो कर बाहर रहना पड़ा। केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री श्री सचिन पायलट से नजदीकी की बदौलत शहर कांग्रेस के उपाध्यक्ष के पद पर आसीन हैं। उनकी पत्नी श्रीमती इन्द्र प्रभा गर्ग सन् 1982 से 90 तक शहर महिला कांग्रेस की महामंत्री रही हैं।