गुरुवार, 14 नवंबर 2024

ब्रह्माजी का एक ही मंदिर क्यों?

सनातन धर्म में तीन मुख्य देवता माने गए हैं, ब्रह्मा, विष्णु और महेश, जिन्हें त्रिदेव कहा जाता है। ब्रह्मा जी जगत के रचनाकार, विष्णु पालनकर्ता और महेश अर्थात शंकर संहारक माने जाते हैं। कौतुहलपूर्ण तथ्य ये है कि जहां विष्णु और महेश सहित सभी देवी-देवताओं के अनगिनत मंदिर हैं, जबकि ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर है, जो कि तीर्थराज पुष्कर में स्थित है। ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर होने की वजह ये है कि उन्हें उनकी पत्नी सावित्री ने श्राप दिया था।

पद्म पुराण के अनुसार धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने बहुत उत्पात मचा रखा था। ऋशि मुनियों व आम जन पर उसके बढ़ते अत्याचारों से क्रोधित हो ब्रह्मा जी ने उसका वध कर दिया था। वध करते समय उनके हाथों से कमल का फूल छिटक कर तीन जगहों पर गिरा। इन तीन जगहों पर तीन झीलें बन गई। 

इन्हें ज्येष्ठ पुष्कर अथवा ब्रह्म पुष्कर, मध्य पुष्कर अथवा विष्णु पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर अथवा रुद्र पुष्कर जिसे बूढ़ा पुष्कर भी कहते हैं। बूढ़ा पुष्कर जयपुर बाईपास पर पुष्कर कस्बे से लगभग 4 किलोमीटर दूर कानस ग्राम में स्थित हैं। ज्येष्ठ पुष्कर ही मौजूदा पुष्कर सरोवर है। मध्य पुष्कर विलुप्त हो चुका है। मुख्य विषय पर आते हैं। ब्रह्मा जी ने संसार की भलाई के लिए पुश्कर में एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्मा जी नियत समय पर यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंच गए लेकिन उनकी पत्नी देवी सावित्री समय पर नहीं पहुंच सकीं। चूंकि यज्ञ के विधान के अनुसार साथ में पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन देवी सावित्री जी के नहीं पहुंचने की वजह से ब्रह्मा जी ने गुर्जर समुदाय की स्थानीय एक कन्या गायत्री से विवाह करके इस यज्ञ को आरंभ किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा की बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी कभी भी पूजा नहीं होगी। देवी सावित्री के इस भयानक रूप को देखकर सभी देवता डर गए। सभी ने देवी सावित्री अपना श्राप वापस लेने की विनती की। लेकिन उन्होंने किसी का आग्रह नहीं माना। बाद में जब गुस्सा ठंडा होने पर देवी सावित्री श्राप में तनिक शिथिलता करते हुए कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही आपकी पूजा होगी। यहां के अतिरिक्त कोई भी आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा। चूंकि भगवान विष्णु ने भी गायत्री से विवाह करवाने में ब्रह्मा जी की मदद की थी। इसलिए देवी सावित्री ने विष्णु जी को भी श्राप दिया कि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। यही वजह थी कि भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पडा और 14 साल के वनवास के दौरान सीता जी से अलग रहना पड़ा।

ब्रह्मा जी के मंदिर का निर्माण कब हुआ व किसने किया इसके बारे में बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन बताते हैं कि करीब एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक राजा को स्वप्न आया कि पुष्कर में एक जीर्ण मंदिर है, जिसके उद्धार की जरूरत है। उस राजा ने मंदिर के पुराने ढांचे को ठीक करवाया।

पुष्कर में देवी सावित्री का भी मंदिर है जो ब्रह्मा जी के मंदिर के पीछे पहाड़ी पर स्थित है बताते हैं कि देवी सावित्री रूठ कर इसी पहाडी पर जा कर विराजमान हो गई थीं। मंदिर तक पहुंचने का मार्ग बहुत दुर्गम है और सैकड़ों सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें