शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

पार्षद बन कर पछताए थे स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी

नगर निगम चुनाव को लेकर कितनी मारामारी मचती है, सब जानते हैं। हर छोटा-मोटा नेता चाहता है कि उसे पार्टी टिकट दे दे। उसके लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाता है। येन-केन-प्रकारेण टिकट चाहिए ही। आखिर क्यों? क्या सेवा का भाव उछाल मार रहा होता है? या वर्चस्व की चाह गहरी हो जाती है? या फिर कमाई का जरिया बनने का आकर्षण है? जो कुछ भी हो, मगर आप पाते हैं कि अदद पार्षद बनना भी बडा लक्ष्य हो जाता है। और पार्षद बनने के बाद जो आनंद मिलता है, उसकी कल्पना आम आदमी नहीं कर सकता। ऐसे में अगर कोई पार्षद बन कर खुश न हो, यहां तक कि पछताए तो आप क्या कहेंगे? कहे कि कहां आ कर फंस गया, तो आप क्या सोचेंगे? यही न कि यह आदमी मौजूदा आर्थिक आपाधापी के युग में मिसफिट है। जी हां, मैं एक ऐसे भूतपूर्व, और एक अर्थ में अभूतपूर्व पार्षद को जानता हूं, जानता क्या, बाकायदा मिला हूुं, जिन्होंने एक बार कहा कि पार्षद बन कर बहुत पछता रहा हूं। जनता की सेवा तो ठीक, मगर नगर परिषद की दुनिया में दम घुटता बहुत है। अंदर जो मंजर है, उसमें जीना मुश्किल है। झूठ, फरेब, स्वार्थ, मक्कारी, चालाकी, मुझ से तो नहीं होगी। वार्ड वासियों की सेवा का तो अच्छा अवसर है, वह ठीक है, मगर कमीशन का शिष्टाचार मेरे लिए तो संभव नहीं है। वे मिसफिट पार्षद थे, स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी। नया बाजार के जाने-माने व्यवसायी थे। संपन्न, समर्थ, मगर अत्यंत धार्मिक। सादा जीवन। सहज सुलभ। जाने-माने सिंधी गायक कलाकार थे। बालसखा स्वर्गीय श्री मिर्चूमल सोनी के साथ उनकी जोडी प्रसिद्ध थी। आकाशवाणी पर इस जोडी ने कई कार्यक्रम दिए। वेदांत के गहन जानकार। वैशाली नगर के शिव मंदिर में प्रतिदिन प्रातः प्रवचन दिया करते थे। अध्यात्म के जगत में इतना कदीमी मुकाम हासिल कर लिया था कि वेदांत केसरी ब्रह्मलोकवासी स्वामी श्री मनोहरानंद सागर जी महाराज ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनने का प्रस्ताव रखा, मगर उन्होंने अपनी पारीवारिक जिम्मेदारी को अधिक अहमियत दी। तब स्वर्गीय स्वामी श्री अद्वैतानंद सागर जी ने गद्दी संभाली थी। असल में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए आरएसएस ने उनको भाजपा के टिकट पर निगम का चुनाव लडवाया था, हालांकि उनकी खुद की कोई दिलचस्पी नहीं थी। कहां धार्मिक व्यक्तित्व और कहां पार्षद की भूमिका। कोई मेल नहीं। मगर यह सोच कर कि पार्षद बनने पर सेवा का बेहतर अवसर मिलेगा। वे जीत गए। निस्वार्थ भाव से सेवा भी खूब की। वार्ड में दिन-रात सक्रिय रहे। मगर निगम परिसर में जाना उनको अच्छा नहीं लगता था। वहां के माहौल को देख कर। एक बार साधारण सभा में बहुत हंगामा, गरमागरमी, आरोप-प्रत्यारोप, छीना-झपटी देख कर बोले पार्षद बन कर पछता रहा हूं। बात तकरीबन पच्चीस साल पुरानी है। तब से लेकर अब तक गंगा का पानी बहुत बह चुका। कल्पना की जा सकती है कि आज कैसे हालात होंगे। प्रसंगवश बताना उचित होगा कि बाद में उनकी पुत्र वधु श्रीमती रीना सोनी धर्मपत्नी श्री मनोहर सोनी भी पार्षद बनी थीं।

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