मंगलवार, 12 नवंबर 2024

अजमेर में होम्योपैथी के भीष्म पितामह डॉ. सतीश वर्मा नहीं रहे

होम्योपैथी जगत के एक प्रमुख स्तंभ डॉ. सतीश वर्मा अब हमारे बीच नहीं हैं। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उनकी उम्र 91 वर्ष थी। अलवर गेट स्थित सेवा मंदिर हॉस्पिटल मल्टीस्पेशलिटी एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक डॉ. वर्मा का होम्यापैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति जनमानस में विश्वास कायम करने में अविस्मरीय योगदान है। उनकी सेवाओं से लाखों बीमार लाभान्वित हुए हैं। होम्योपैथी की गहन जानकारी के लिहाज से डॉ. होम व डॉ. भगत को भी उनके समकक्ष माना जाता है, लेकिन डॉ. वर्मा ने होम्योपैथी का जो प्रचार-प्रसार किया, वह एक बडी उपलब्धि के रूप में गिना जाता है। 

होम्योपैथी में उनकी विशेषज्ञता का एक प्रसंग मेरे ख्याल में आता है। प्रदेश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल लोढा के पिताश्री लीवर की बीमारी से ग्रस्त थे। एलोपैथी से खूब इलाज करवाया, मगर एक अवस्था ऐसी आई कि दवाई ने काम करना बंद कर दिया। उन्होंने प्रसिद्ध आयुर्वेदविद् चंद्रकांत चतुर्वेदी से मश्विरा किया। उन्होंने बताया कि लीवर के लिए एक रामबाण औषधि पुनर्नवा की जड है, मगर दिक्कत यह है कि उसकी गोली लेने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि उसे पचा कर रक्त में भेजने में लीवर असमर्थ है। अगर पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर मिल जाए या बनाया जा सके तो वह कामयाब हो सकती है, क्योंकि वह तो जीभ पर रखने मात्र से काम करेगी। लेकिन मार्केट में पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर उपलब्ध नहीं है। इस पर उन्हें ख्याल आया कि डॉ. सतीश वर्मा से संपर्क किया जाए। जब उनसे मिले तो उन्होंने कहा कि है तो कठिन व श्रमसाध्य, मगर ऐसा करना संभव है। वे मदर टिंचर बनाने के लिए राजी हो गए। मैं भी साथ था। बाद में क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है, मगर इससे यह स्पष्ट हो गया कि किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का मदर टिंचर बनाया जा सकता है। और आयुर्वेद व होम्यापैथी के सहयोग से अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है। 

डॉ. वर्मा का निधन अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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