शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

इस बार होगी निर्दलियों की पौ-बारह

आगामी नगर निगम चुनाव का ताना बाना बुना जा रहा है। चुनाव लडने के इच्छुक नेता वार्डों के परिसीमन व आरक्षण की घोशणा का इंतजार कर रहे हैं। फिलवक्त संभावित स्थिति के मद्देनजर जमीन पर सक्रिय बने हुए हैं। इस बार का चुनाव अपेक्षाकृत अधिक रोचक होने की संभावना है। दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस व भाजपा में अंतर्विरोध के चलते सारे समीकरण गड्डमड होते दिखाई दे रहे हैं। खींचतान मची हुई है। सबसे पहले तो टिकट वितरण को लेकर तलवारें खिंचेंगी। दोनों विधानसभा क्षेत्रों में धडेबाजी उभर कर आएगी। बेषक दोनों दलों के हाईकमान सुलह करते हुए टिकट वितरण की कोषिष करेंगे, मगर इतना पक्का है कि जिनको टिकट नहीं मिलेगा, वे या तो निर्दलीय मैदान में उतरेंगे, या फिर भीतरघात करेंगे। राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस बार निर्दलियों की पौ बारह होगी। ऐसे में बोर्ड किस दल का बनेगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। जहां तक मुद्दों का सवाल है, एलिवेटेड रोड के निर्माण में हुई अनियमितता व भारी बरसात के कारण जगह जगह हुए जल भराव जनमानस को उद्वेलित किए हुए है। समझा जाता है कि चुनाव आने तक आम मतदाता के मनसपटल से ये मुद्दे विस्मृत नहीं होंगे। कांग्रेस इन्हीं का सिरा पकड कर वैतरणी पार करने की कोषिष करेगी, वहीं भाजपा केन्द्र व राज्य में अपनी सरकार का लाभ लेना चाहेगी। मोदी फैक्टर भी काम करेगा। ऐसे में भिडंत तगडी होगी। निर्भर इस पर करेगा कि कौन कितना एकजुट हो कर चुनाव लडता है। कयास है कि इस बार एक बार फिर मेयर का चुनाव डायरेक्ट होगा, इस पर भी दावेदारों की नजर बनी हुई है।

चुनाव हारा हूं, भरोसा नहीं

दोस्तो, नमस्कार। किषनगढ के पूर्व निर्दलीय विधायक सुरेष टाक पिछले चुनाव भले ही हार गए हों, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। असल में उनकी हिम्मत के पीछे हैं वे विकास कार्य जो उन्होंने विधानसभा चुनाव फिर जीतने की उम्मीद में करवाए थे। पूर्व मुख्यमंत्री अषोक गहलोत को समर्थन देकर उन्होंने सरकार का भरपूर लाभ लिया भी। लोग उनके जन समर्पण को भूले नहीं हैं। आषा थी कि जनता विकास कार्यों का याद रख कर चुनावी वैतरणी पार लगा देगी, मगर इस बार हुए चुनाव में जमीन पर जातीय व अन्य समीकरण बदल गए। नतीजतन वे हार गए। प्रसंगवष बता दें कि सचिन पायलट ने भी अजमेर में इसलिए विकास कार्य करवाए थे कि अगली बार जमीन और मजबूत होगी, मगर अकेले मोदी लहर ने सब कुछ धो दिया था। यानि जीत के लिए अकेले विकास कार्य पर्याप्त नहीं होते, तत्कालीन और फैक्टर भी असर डालते हैं। बहरहाल, वैसे भी किसी निर्दलीय का दुबारा चुना जाना कठिन ही होता है। निर्दलीय प्रत्याषी अमूमन काठ की हांडी की तरह होता है। हांडी एक बार में तो काम में आ भी सकती है, मगर अपवाद को छोड दे ंतो वह एक बार ही चढती है। खैर, हारने के बाद भी टाक जमीन पर पकड बनाए हुए हैं। उनका बडा समर्थक वर्ग है। अगले विधानसभा चुनाव बहुत दूर हैं, मगर नगर निगम चुनाव में अपना दखल जरूर रखेंगे। हाल ही उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर फोटो के साथ एक पोस्ट साझा की है- 

चुनाव हारा हूं,

भरोसा नहीं।

यही भरोसा मेरी 

असली जीत है।

शनिवार, 26 जुलाई 2025

क्या धनखड कांग्रेस में शामिल होंगे?

रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में इस्तीफा देने के बाद जगदीप धनखड क्या करेंगे? क्या वे नाराजगी में भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे? या हताश हो कर चुप बैठ जाएंगे? और लाल कृष्ण आडवानी की तरह निर्वासित जीवन जीयेंगे? या फिर नई राजनीतिक यात्रा के लिए कांग्रेस अथवा किसी और दल में शामिल होंगे? ये सवाल इन दिनों राजनीतिक गलियारे में खूब चर्चा में हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि उन पर इतना दबाव बनाया जाएगा कि चुप रहने में ही अपनी भलाई समझेंगे। दूसरी ओर कुछ का मानना है कि धनखड का जैसा स्वभाव है, वे ज्यादा दिन तक चुप रह नहीं पाएंगे। न चाहते हुए भी जाट व किसानों के दबाव में उनके हितों के लिए चल रहे संघर्ष में शामिल होंगे। पद पर रहते हुए भी उन्होंने किसानों की आवाज उठाई थी, जो उनकी विदाई का एक कारण माना जाता है।

जहां तक उनके कांग्रेस में शामिल होने का कयास है, तो उसके पीछे यह दलील दी जा रही है कि मूलतः वे कांग्रेस पृष्ठभूमि से हैं। एक बार किशनगढ से कांग्रेस के विधायक रहे तो एक बार अजमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड चुके हैं। दूसरा यह कि राज्यसभा में उन्होंने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की इस्तीफे के बाद धनखड के पक्ष में दी गई प्रतिक्रिया को भी रेखांकित किया जा रहा है। विपक्ष के नेताओं से मीटिंग्स को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से मुकालात के भी अर्थ निकाले जा रहे हैं।

हालांकि फिलहाल उनके भावी कदम के बारे में हो रहे कयास प्रीमैच्योर ही कहे जाएंगे, मगर इतना तय माना जा रहा है कि वे देर से ही सही, मगर मुखर जरूर होंगे।

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

कीर्ति पाठक एक बार फिर नए अवतार में?

दोस्तो, नमस्कार। ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी की प्रखर नेत्री श्रीमती कीर्ति पाठक एक फिर अजमेर में सक्रिय होने की तैयारी में है। अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजी श्रीमती कीर्ति पाठक ने अब तक आम आदमी पार्टी को खडा करने की अथक कोशिश की, मगर धरातल पर हुई राजनीतिक चालों और उपर से अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण उन्हें सफलता हासिल नहीं हो पाई। पिछले दिनों उन्हें जब सुनहरी कॉलोनी में वहां की कांग्रेस पार्षद श्रीमती चंचल बारवाल के पति निर्मल बारवाल से जुझते देखा गया तो यह साफ संकेत मिल गया कि वे एक बार फिर से मैदान में आ डटी हैं। वे सोशल मीडिया प्लेट फार्म पर अजमेर की ज्वलंत समस्याओं को लेकर टिप्पणियां करने लगी हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर निकट भविष्य में होने वाले नगर निगम चुनाव के मद्देनजर हाल ही उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट साझा की है, जो इस बात का साफ संकेत है कि वे कोई ताना बाना बुन रही हैं। उनकी ताजा पोस्ट देखिएः-

अब समय आ गया है कि राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से इतर अजमेर के लिए संगठित रूप से लड़ा जाए। जन प्रतिनिधियों और जन सेवकों को जवाबदेह ठहराया जाए, विकास न होने पर प्रश्न पूछे जायें और अकर्मण्यता का हिसाब मांगा जाए। हमें बीस साल का हिसाब लेना ही होगा और वो भी बिना इन की चालों में फंसे। वो आप को लपेटने का प्रयत्न करेंगे, आप की राजनीतिक प्रतिबद्धता पर प्रश्न खड़े करेंगे, आप को नाहक ही घेरेंगे ताकि जवाबदेही न ठहराई जाए, पर हमें अजमेर के लिए अडिग रहना होगा। हमें अजमेर की जल निकासी पर, अतिक्रमण से अवरुद्ध आनासागर के जलनिकास पर प्रश्न खड़े करने होंगे।

हमें समयबद्ध कार्य न होने पर इन से प्रश्न करने होंगे। हमें इन के ढीले ढाले रवैये पर उंगली उठानी होगी। हमें इन को कटघरे में खड़ा करना ही होगा। कब तक अजमेरवासी इस दोयम दर्जे का जीवन जीने को बाध्य होगा। यदि आप अजमेरवासी अब निडर हो प्रश्न करने की हिम्मत रखते हैं, तो आइए हम सब संगठित रूप से एक गैर राजनैतिक मंच से जुड़ें और अजमेर के लिए प्रश्न करें। उन्होंने सिविल सोसायटी अजमेर के नाम से सर्वे का एक फार्म भी साझा किया है।उनकी इस पोस्ट ये सवाल उठता है कि क्या वे आम आदमी पार्टी से इतर मंच खडा करने जा रही हैं? चूंकि उनकी पहचान आम आदमी पार्टी से है, इस कारण सुनहरी कॉलोनी में आम आदमी पार्टी हाय हाय के नारे लगे।

गुरुवार, 17 जुलाई 2025

डीपीआर के पूर्व सहायक निदेशक श्री मुकुल मिश्रा का निधन

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में सहायक निदेशक पद से सेवानिवृत्त अजमेर निवासी श्री मुकुल मिश्रा का गांधीनगर में एक कार द्वारा टक्कर मारने से दर्दनाक निधन हो गया। उन्होंने सहायक जन संपर्क अधिकारी व जन संपर्क अधिकारी के रूप में अजमेर में कई सालों तक सेवाएं दीं। वे अत्यंत सहज व सरल व्यक्तित्व के धनी थे। मधुर मुस्कान के साथ मिलनसारिता के कारण अजमेर जिले के पत्रकार उन्हें बहुत सम्मान देते थे। वे शांत स्वभाव के थे। शायद ही उन्हें कभी किसी ने गुस्से में देखा हो। उनकी हैंड राइटिंग बहुत सुंदर थी। दरगाह व पुष्कर मेलों में उन्होंने डूब कर रिपोर्टिंग की। उन्होंने अजमेर के बारे में अनेक फीचर लिखे। वे सहायक निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

रविवार, 6 जुलाई 2025

शैलेन्द्र अग्रवाल को इतनी क्रेडिट क्यो?

हाल ही एक पोस्ट आपसे साझा की थी। जिसमें बताया गया था कि मोहित मल्होत्रा ने याद ताजा कर दी शैलेन्द्र अग्रवाल की। इस पर कुछ मित्रों ने प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि आपने अग्रवाल को इतनी बडी क्रेडिट कैसे दे दी? उनकी राजनीतिक यात्रा के अन्य पहलु भी हैं। उनका जिक्र क्यों नहीं किया? उनका सवाल ठीक है। तस्वीर का दूसरा पहलु उजागर करने का आग्रह है। इस पर मैने कहा कि यह न्यूज आइटम कोई शैलेन्द्र अग्रवाल को क्रेडिट देने के लिए नहीं बनाया गया था। वह तो केवल इस पर फोकस्ड था कि एक जमाने में अग्रवाल ने नेतृत्व में सेवादल मुख्य कांग्रेस संगठन से भी अधिक सक्रिय था। वह एक सच्चाई है, जिसे कोई नहीं नकार सकता। अगर उससे अग्रवाल को क्रेडिट मिलती है तो क्या किया जा सकता है। बाद में अग्रवाल ने क्या किया, यह उस न्यूज आइटम का विशय ही नहीं था। और अगर उनकी पूरी राजनीतिक यात्रा का शब्द चित्र बनाया गया तो, उनसे भी बडे नेताओं का जिक्र पहले करना पडेगा। ऐसे नेताओं की राजनीतिक यात्रा के उतार चढाव की जानकारी पब्लिक डोमेन में पहले से है। नाम लिखने की जरूरत नहीं है। और सबसे बडी बात यह कि भाजपा में भी त्रुटि करने वालों को फिर से अंगीकार किया गया है। इन संगठनों को पता है कि कौन नेता उपयोगी है। वफादारी से कहीं अधिक महत्ता है उपयोगिता की। यह संगठनों का अपना अधिकार क्षेत्र है कि वे किस नेता को कितना तवज्जो दें।


शनिवार, 5 जुलाई 2025

रामसेतु को लेकर सोशल मीडिया को राम राम

दोस्तो, नमस्कार। सोषल मीडिया में बहुत कमियां हैं। खासकर फर्जी व फेक सूचनाओं पर आपत्ति की जाती है। मर्यादा की कोई सीमा नहीं है। वह आरोप वाजिब है। मगर यह कितना प्रभावषाली है, इसका सबूत हाल ही राम सेतु की एक भुजा के बरसात में क्षतिग्रस्त होने पर मिला। जैसे ही यह जानकारी मिली कि एक भुजा की सडक पर गड्ढा हो गया है, जमीन थोडी धंस गई है, सारे न्यूज चैनल के संवाददाता व यूट्यूबर्स सक्रिय हो गए। मौके पर पहुंच कर बहुत बारीकी से पडताल कर जनता को मसले से रूबरू कराया। सोषल मीडिया के सारे प्लेटफार्म्स पर यह खबर वायरल होने लगी। आम जन की प्रतिक्रिया भी खुल कर सामने आई। जनमत भी त्वरित रूप से हिलोरें लेने लगा। राजनीति भी गरमाने लगी। हल्ला मचने पर जिला प्रषासन भी हरकत में आया। उसने त्वरित कार्यवाही करते हुए यातायात रोक कर क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत करवाई। ऐसा नहीं कि जिन दिनों सोषल मीडिया नहीं था, तब कार्यवाही नहीं होती थी। होती थी, मगर इतनी त्वरित नहीं। अव्वल तो जनता को दूसरे दिन अखबार पढ कर पता लगता था। दूसरा, जनमत का पता ही नहीं लगता था। प्रषासन पर इतना दबाव नहीं पडता था, जितना आज रामसेतु को लेकर हुआ। जनता की समस्याओं को लेकर सोषल मीडिया की जागरूकता वाकई सराहनीय है। साधुवाद। राम राम।

https://youtu.be/E-eTXDBfLb4

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

यानि अंग्रेज हमसे ज्यादा ईमानदार थे

हाल ही राम सेतु की एक भुजा पर सडक पर तेज बारिश के कारण गड्ढा हो गया तो सोशल मीडिया पर कडी प्रतिक्रिया सामने आई। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप आरंभ हो गए। कांग्रेसी भाजपा को तो भाजपाई कांग्रेस को दोष दे रहे हैं। कोई राजनीतिक व्यवस्था को कोस रहा है तो कोई प्रशासनिक स्तर हुई लापरवाही पर तंज कस रहा है। बेशक घोटाले में राजनीतिक हिस्सेदारी होती है, मगर उसके रास्ते अफसरशाही ही निकालती है। और जैसे ही राजनीतिक खींचतान होती है, प्रशासनिक तंत्र सुकून में आ जाता है। कि आपस में झगडने से हम पर से ध्यान हट जाएगा। बस यहीं चूक हो जाती है। एक प्रतिक्रिया यह भी आई कि हमने जो ब्रिज बनाया, वह मात्र दो साल में क्षतिग्रस्त हो गया, जबकि अंग्रेजों के जमाने में एक सौ साल से भी ज्यादा पहले बने मार्टिंडल ब्रिज का कुछ नहीं बिगडा। इस प्रतिक्रिया के गहरे अर्थ हैं। इस टिप्पणी से यह सवाल उठता है कि क्या अंग्रेज हमारे से अधिक ईमानदार थे? बेशक ब्रितानी हुकूमत ने स्वाधीनता आंदोलन को कुचलने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को अनेक यातनाएं दीं, जो पीडादायक है, मगर ब्रिटिश सिस्टम में घोटाले नहीं होते थे। उस जमाने के अनेक निर्माण आज भी वजूद में हैं। सच तो यह है कि दरगाह और पुष्कर को छोड़ कर अगर अजमेर कुछ है तो उसमें अंग्रेज अफसरों का योगदान है। सीपीडब्ल्यूडी, सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एज्युकेशन, कलेक्ट्रेट बिल्डिंग, सेन्ट्रल जेल, पुलिस लाइन, टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, लोको-केरिज कारखाने, डिविजन रेलवे कार्यालय बिल्डिंग, मार्टिन्डल ब्रिज, सर्किट हाउस, अजमेर रेलवे स्टेशन, क्लॉक टावर, गवर्नमेन्ट हाई स्कूल, सोफिया कॉलेज व स्कूल, मेयो कॉलेज बिल्डिंग, लोको ग्राउण्ड, केरिज ग्राउण्ड, मिशन गर्ल्स स्कूल, अजमेर मिलिट्री स्कूल, नसीराबाद छावनी, सिविल लाइंस, तारघर, आर.एम.एस., गांधी भवन, नगर निगम भवन, जी.पी.ओ., विक्टोरिया हॉस्पिटल, मदार सेनीटोरियम, फॉयसागर, भावंता से अजमेर की वाटर सप्लाई, पावर हाउस की स्थापना, रेलवे हॉस्पिटल, दोनों रेलवे बिसिट आदि का निर्माण ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों के विजन का ही परिणाम था, जिससे अजमेर के विकास की बुनियाद पड़ी। वे निर्माण आज भी मजबूती के साथ खडे हैं। आज भी आप पुरानी पीढी के लोगों को यह कहते हुए सुनते होंगे कि मौजूदा राज से तो अंग्रेजों का राज अच्छा था। कुल जमा जैसे ही हमें आजादी मिली, स्वतंत्रता मिली, हमें बेईमानी करने की, घोटाले करने की छूट मिल गई। नतीजा सामने है।

क्या राजनीति इतनी गंदी हो गई है?

राजनीति का चेहरा कितना विद्रूप हो गया है कि सच बोलने वाला सियासत में हिस्सा लेना ही नहीं चाहता। चेहरा क्या, संपूर्ण राजनीति ही ऐसा दलदल हो गई है कि कोई सज्जन व्यक्ति उसमें फंसना नहीं चाहता। राजनीति में सच्चाई कम, आडंबर ज्यादा है। यानि राजनीति झूठ की बुनियाद पर टिकी है। इसका इशारा किया है केकडी बार ऐसोसिएशन के अध्यक्ष लोकप्रिय एडवोकेट मनोज आहुजा ने। उन्होंने अपनी फेसबुक वाल पर इसका तफसील से खुलासा किया है। उनकी पोस्ट हूबहू प्रस्तुत हैः-

नमस्कार मित्रों, कल कहीं सांत्वना देने पहुंचने पर उपस्थित मित्रों व अन्य ग्रामीणों ने कहा कि मैं भिनाय का विधायक बनने के लिए प्रयासरत हूं। इस पर मैंने उन्हें कहा कि मेरा राजनीति में कोई इंट्रेस्ट नहीं है, न ही मैं अपने आपको इसके लिए फिट मानता हूं, लेकिन वो माने नहीं। 

दोस्तों, मेरा नेचर भगवान ने ऐसा बनाया है कि मैं गलत बात और गलत इंसान को स्वीकार ही नहीं कर पाता हूं, इसलिये मैं अपने आपको राजनीतिक फील्ड के योग्य मानता ही नहीं हूं। वहां आप अगर गलत को गलत कह दो तो बवाल हो जाए। वहां जीतने का पैरामीटर ही गलत और गलत लोग होते हैं। अभी हाल ही में मुझे मेरे साथियों ने बार अध्यक्ष का चुनाव लड़वाया। मैंने उन्हें वेरी फर्स्ट डे ही बोल दिया था कि 13 लोगों के पास मैं नहीं जाऊंगा, नहीं गया लास्ट तक... क्योंकि मुझे राजनीति करना आता ही नहीं है। चेहरे पर झूठी मुस्कान और नफरत के समय मुस्कान लाना न तो आया और न ही लाना चाहता हूं। इसलिये मित्रों मैं आप सभी को बता दूं कि मैं न तो किसी राजनीतिक दल का सदस्य हूं, न ही भविष्य में मैं विधायक का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हूं। मेरा नेचर है लोगों के सुःख दुःख में शामिल होने का, वो सदैव रहेगा। मुझे वकालात और पत्रकारिता में मजा आता है मैं वो जीवन पर्यन्त करूंगा ही और रिलेशन निभाना,सुःख दुःख में शामिल होना मेरा नेचर है, जिसे मैं इसलिये चैंज नहीं कर सकता कि चार लोग ये और वो सोच रहे हैं।

श्री आहूजा अपनी जगह ठीक प्रतीत होते हैं, मगर सवाल यह उठता है कि सच बोलने वाले या सज्जन राजनीति में नहीं आएंगे तो राजनीति का क्या हाल होगा? तब तो राजनीति में शुचिता की उम्मीद करना बेकार है। बेशक श्री आहूजा अपनी ओर से राजनीति में नहीं आना चाहते, मगर कल यह भी तो हो सकता है कि बार चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी कुछ लोग उन्हें चुनाव लडवा दें। रहा सवाल लोगों की धारणा का तो, वह भी ठीक है, क्योंकि जो भी सोसायटी में सक्रिय होता है तो यही माना जाता है कि चुनाव की तैयारी कर रहा है। वे न केवल सफलता पूर्वक वकालत कर रहे हैं और जरूरतमंद की मदद को तत्पर रहते हैं, अपितु सामाजिक सरोकार के लिए भी सतत सक्रिय रहते हैं। वे जिले के चंद जागरूक व ऊर्जा न लोगों में गिने जाते हैं। ऐसे में अगर कोई ऐसा सोचता है कि वे चुनाव लड सकते हैं, तो वह अपनी जगह ठीक है।

बहरहाल, जब श्री आहूजा से सवाल किया गया कि आपने भिनाय का जिक्र क्यों किया है, जबकि वह तो मसूदा विधानसभा क्षेत्र में है, तो उन्होंने बताया कि ऐसा अनुमान है कि परिसीमन के बाद भिनाय फिर से विधानसभा क्षेत्र हो जाएगा। ऐसा सोच कर ही मित्र अनुमान लगा रहे हैं कि वे वहां से चुनाव लडने का मानस बना रहे हैं।


मंगलवार, 1 जुलाई 2025

अजमेर की बेटी रुमानी कपूर ने फहराया अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर परचम

अजमेर की बेटी और वर्तमान में अमेरिका के सिएटल में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत रूमानी कपूर ने पिछले दिनों दुबई (यूएई) में हुई मिसेज इंडिया वर्ल्डवाइड यूएसए नॉर्थ-2025 प्रतियोगिता का खिताब अपने नाम किया। इसके साथ ही उन्हें मिसेज ब्यूटीफुल हेयर 2025 का प्रतिष्ठित सम्मान भी प्राप्त हुआ। प्रतियोगिता 15 से 20 जून के बीच आयोजित हुई। रुमानी ने टैलेंट राउंड में राजस्थानी लोकनृत्य कालबेलिया को बेहद अनोखे अंदाज में प्रस्तुत किया। उन्होंने लोहे की कीलों पर नृत्य कर महिलाओं की शक्ति, संतुलन और सहनशीलता का प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया। रूमानी ने अपनी प्रतिभा, सांस्कृतिक विरासत और आकर्षक व्यक्तित्व से सभी का दिल जीत लिया। उनकी रैंप वॉक को बॉलीवुड के प्रसिद्ध ट्रेनर्स मिसेज कविता खरायत और मिस्टर सनी कांबले ने तराशा, जबकि रनवे को मशहूर कोरियोग्राफर लुबना आदम ने निर्देशित किया। उनके सभी आउटफिट्स डिजाइनर अंजलि सहानी द्वारा विशेष रूप से डिजाइन किए गए थे।

रुमानी एक अनुभवी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जिन्होंने अमेरिका में हेल्थकेयर और डिजिटल तकनीक क्षेत्रों में नेतृत्व करते हुए कई सफल प्रोजेक्ट्स पूरे किए हैं। इसके साथ ही वह दूसरा दषक एलजीओ के साथ ग्रामीण भारत में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देती हैं और अमेरिका में को-म्यूजिक प्रो व एसएसएआईएस के साथ समावेशी कला व स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए काम करती हैं। वे कई अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट कार्यक्रमों की मास्टर ऑफ सेरेमनी रह चुकी हैं और एनजीओ के लिए सोशल मीडिया व इवेंट मैनेजमेंट भी संभालती हैं। रुमानी कपूर नारी सशक्तिकरण की प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं, जो अपने पारंपरिक मूल्यों को विश्व मंच पर आत्मविश्वास और सौंदर्य के साथ प्रस्तुत कर रही हैं।

उनका परिवार साधारण एवं शिक्षा से जुड़ा इंसानियत के प्रति सजग परिवार है। रुमानी केतकी सिन्हा और प्रिंस सलीम की बिटिया हैं। जिन्होंने सेंट मैरी कान्वेंट स्कूल अजमेर में शिक्षा प्राप्त की। स्कूल के दिनों से वह अकादमिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में आगे रही है। उन्होंने ऐमेटी युनिवर्सिटी जयपुर से टोप रेंक बीटेक किया। वहीं से अजीम प्रेमजी की विप्रो कम्पनी में जाब हासिल की। उसके बाद जयपुर निवासी राहुल कपूर से अजमेर में शादी हुई। 2019में सीमेन्स कम्पनी जोइन कर सीएटल शहर (अमेरिका) में सीनियर सोफ्टवेयर डेवलपमेंट इंजिनियर के रूप में पति पत्नी कार्यरत हैं। वे अपनी सफलता के लिए मिसेज कविता खरायत, श्री सनी काम्बले, लुबना आदम और अंजलि साहनी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हैं।


सोमवार, 30 जून 2025

धनेश्वर मन्दिर सेवा ट्रस्ट के माध्यम से सेवाकार्य

अजमेर। जनता कॉलोनी, वैशाली नगर स्थित धनेश्वर मन्दिर में सेवा ट्रस्ट का गठन कर सेवा कार्य आरंभ किए जाएंगे। यह जानकारी मंदिर के सेवक दौलत राम खेमानी ने देते हुए बताया कि मंदिर की संस्थापिका संत सुश्री मोहिनी देवी खेमानी जी का जन्म 21 मई 1946 को सिन्ध में मटियारी गांव जिला हैदराबाद में हुआ था। आपके पिता का विवाह श्रीमती खेमी देवी से हुआ था। आपके दो भाई थे। आप सिन्ध से सीधा अजमेर आयीं, मगर पिता का व्यापार ठीक से नहीं चलने के कारण उनके साथ कोटा और फिर आगरा गयीं। 1950 में परिवार सहित वापस अजमेर आकर निवास करने लगीं। आपने केवल कक्षा चार तक शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही आप प्रभु भक्ति में लीन रहीं। 1954 में आपने राघवेंद्र सरकार के अनुयायी दादी धन्नी फकीर, एटा (यू.पी.) का सत्संग सुना और उनके साथ लगातार सम्पर्क में रहीं। 1962 में आप एटा जाकर गुरू से नाम दान लेकर आयीं और उनके आदेश से सत्संग करने लगीं। गुरू के साथ भारत भ्रमण भी किया। 1979 में आपने जनता कॉलोनी, वैशाली में मन्दिर बना कर सत्संग आरम्भ किया। गुरू के सिंधी तिथि दशम अंग्रेजी दिनांक 20 अक्टूबर 2004 को एटा में देह त्याग के बाद आपने भारत भ्रमण लगभग बन्द कर दिया है। अब आप वर्ष में दो बार एटा जाकर दर्शन लाभ लेती थीं तथा शेष समय अजमेर रहती थीं। और यहीं प्रभु अनुराग में अजमेर दरबार मे ही सर्व संगत के साथ हरि भजन कर जीवन व्यतीत किया। 


मन्दिर से आने वाले दान एवं शिष्टाचार भेंट में आये धन से गरीब बच्चों की शिक्षा, वृद्धा सेवा में अन्न-वस्त्र में ही खर्च कर दीदी नाम से पहचान से जानी जाती रही। उनके देवलोक गमन सिंधी तिथि 23 दिसंबर 2018 के बाद अब मन्दिर की सेवा भाभी हर्षिता एवं मन्दिर सेवादारियों द्वारा  अन्न- वस्त्र सेवा, सामाजिक सेवा एवं बच्चों की शिक्षा  सेवा का कार्य किया जाता है। अब सेविका हर्षिता जी एवं अन्य सेवादारियों द्वारा धनेश्वर मन्दिर सेवा ट्रस्ट का गठन कर मन्दिर के सेवा कार्य गर्मी में जगह वाटर कूलर, पक्षियों के अन्न-जल पात्र बांटना, गौ मां के चारा-पानी की शुरुआत करने का विचार बन रहा है।

शुक्रवार, 27 जून 2025

अजमेर में भी फिल्मसिटी विकसित हो सकती है

एनडीटीवी न्यूज चैनल के अजमेर ब्यूरो चीफ रहे जनाब मोईन कादरी ने अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक में एक आलेख में लिखा था कि अजमेर में भी फिल्म सिटी विकसित हो सकती है। आइये, समझते हैं कि उनकी परिकल्पना क्या थीः-

तीर्थराज पुष्कर व दरगाह ख्वाजा साहब के बदौलत अजमेर में धार्मिक पर्यटन की भरपूर संभावनाएं हैं, लेकिन यदि थोड़ा सा ध्यान दिया जाए तो यहां फिल्म सिटी भी विकसित हो सकती है। असल में अजमेर में ऐसे अनेक स्थान हैं, जो फिल्मों के लिए बेहद उपयुक्त हैं। धार्मिक दृष्टि से जहां दरगाह, पुष्कर, साईं बाबा का मंदिर, सोनी जी की नसियां महत्वपूर्ण हैं, वहीं प्राकृतिक दृष्टि से आनासागर झील, फायसागर झील, अजयसर की पहाडिय़ां, नाग पहाड़, पुष्कर के आसपास का क्षेत्र, पीतांबर की गाल, बीसलपुर, बीर और ऐतिहासिक स्थलों की दृष्टि से तारागढ़, अकबर का किला, मेयो कॉलेज, रूपनगढ़ किला जैसे खूबसूरत व आदर्श स्थान उपलब्ध हैं। अजमेर की भौगोलिक स्थिति ने फिल्मी जगत को आकर्षित किया है। पिया मिलन री आस, दिल्ली 6, नमस्ते लंदन, कच्ची सड़क, इंसाफ कौन करेगा, मैं सोलह बरस का, जुर्म और सजा, बंटवारा, मेरे गरीब नवाज, दुनिया मेरी जेब में, परंपरा आदि फिल्मों की शूटिंग अजमेर व आसपास के इलाकों में हुई है। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना व धर्मेन्द्र की फिल्म बंटवारा में तो पुष्कर के मेले को ही दर्शाया गया है। चाइनीज फिल्म होली स्मोक की हीरोइन चौरी पर कुछ दृश्य पुष्कर के गऊ घाट पर फिल्माए जा चुके हैं। इसी प्रकार रब्बी शेरगिल ने सूफी कवि बुल्ले शाह की रचना बुल्ला की जाणां मैं कौन पर बनाए म्यूजिक वीडियो में दरगाह व पुष्कर को शामिल किया है। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी का एक विज्ञापन यहीं बनाया जा चुका है। हिंदी रॉक बैंड यूफोरिया ने अपने एलबम पुष्कर के सनसेट प्वाइंट व बाजारों में शूट किया। फिल्म कन्हैया  की शूटिंग टोरेंटो पैलेस में हुई। चंद वर्ष पहले नमस्ते लंदन के गीत मैं जहां रहूं् के कुछ हिस्से दरगाह में शूट किए जाते वक्त हीरोइन कैटरीना कैफ के स्कर्ट पहन कर दरगाह जियारत करने पर बड़ा हल्ला हुआ था। 

यह भी रोचक तथ्य है कि जाने-माने फिल्म अभिनेता व रंगकर्मी नसीरुद्दीन शाह ने स्कूल शिक्षा अजमेर में ही सेंट एंसलम्स में हासिल की। करीब डेढ़ साल पहले उन्होंने पत्नी व बेटे के सहयोग से तीन नाटकों का मंचन किया था। दुनियाभर में प्रसिद्ध महान संगीतकार ए. आर. रहमान का अजमेर से विशेष लगाव है और उन्होंने यहां कुंदननगर में एक बंगला भी बना रखा है। अजमेर के कुछ कलाकारों ने फिल्मों में काम किया है। पचास-साठ के दशक में अजमेर के श्री उल्हास ने अनेक फिल्मों में हास्य कलाकार ने काम किया। फिल्म निर्माता श्री प्रेमनाथ असावा की राजस्थानी फिल्म पिया मिलन री आस में अजमेर की उर्मिला आर्य उर्फ अनुश्री ने काम किया। सह निर्माता श्री राजेन्द्र माथुर की राजस्थानी फिल्म बंधन वचना रो में भी उन्होंने काम किया। इस फिल्म में हीरो की भूमिका अजमेर के जेलर रहे स्वर्गीय श्री भारतभूषण भट्ट ने अदा की। सोफिया कॉलेज की छात्रा शिल्पी सैनी ने भी काम किया।  राज्यसभा सदस्य डा. प्रभा ठाकुर के बेटे राहुल ठाकुर कई फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं। यहीं के राजीव पॉल छोटे पर्दे के लिए काम कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्री अभय कुमार बीजावत के बेटे मनोज बीजावत भी फिल्मी दुनिया में सक्रिय हैं। स्थानीय कलाकार भाजपा नेता बाबूभाई घोसी ने फिल्म आज का अर्जुन, द हीरो अभिमन्यु, करण-अर्जुन और टीवी सीरियल अकबर द ग्रेट व द ग्रेट मराठा में काम किया। 

छोटे पर्दे पर लाइव शो लॉफ्टर चौलेंज में अजमेर के प्रसिद्ध हास्य कवि रासबिहारी गौड़ खूब धूम मचा चुके हैं। गिटारिस्ट सतीष षर्मा अनेक फिल्मी गीतों में गिटार बजा चुके हैं और उनका बडा नाम है। कई वीडियो षूट कर चुके हैं। हाल ही पुश्कर में उन्होंने एक वीडियो षूट किया। अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार व प्रसिद्ध गजलकार सुरेन्द्र चतुर्वेदी ने कुछ फिल्मों की पटकथा व गजलें लिखी हैं। वरिष्ठ पत्रकार महावीर सिंह चौहान, अशोक शर्मा, श्याम माथुर, अमित टंडन व गोविंद मनवानी एक अरसे से बेहतरीन फिल्म व टीवी समीक्षाएं लिखते रहे हैं। वरिष्ठतम प्रूफरीडर रहे आर. डी. प्रेम ने फिल्मों के लिए गीत लिखे। फिल्म वितरक रहे नारायण माथुर के जरिए अनेक फिल्मी एक्टर-एक्ट्रेस व डायरेक्टर्स ने दरगाह जियारत की है। खादिम कुतुबुद्दीन सखी अनेक कलाकारों को जियारत करवा चुके हैं। 

कुल जमा बात ये है कि फिल्म जगत से अजमेर के अनेक महानुभाव जुडे हुए हैं। 


https://www.youtube.com/watch?v=0wftd-j_rUQ&t=62s


बुधवार, 25 जून 2025

पलाडा के जन्मदिन पर उमडा जनसैलाब

खो-खो संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं समाजसेवी भंवर सिंह पलाडा का जन्मदिवस धूमधाम से मनाया गया। और नेताओं के भी जन्मदिन मनाए जाते हैं, मगर संभवतः पलाडा एक मात्र ऐसे जननेता हैं, जिनका जन्मदिन मनाने के लिए जन सैलाब उमड पडा। हालत यह हो गई कि जनाना अस्पताल रोड, जहां उनके फार्म हाउस पर समारोह मनाया गया, वहां कई बार रोड जाम हो गया। बधाई देने वालों का सिलसिला सुबह से आरंभ हुआ, जो देर शाम तक जारी रहा। पलाड़ा के जन्मदिवस को लेकर समर्थकों में काफी उत्साह दिखा। जन्मदिवस को ऐतिहासिक बनाने के लिये समर्थकों द्वारा एक सप्ताह पूर्व ही तैयारी शुरू कर दी गई थी। आलम यह था कि एक सप्ताह पहले ही अजमेर जिले सहित प्रदेश के कई विधानसभा क्षेत्र एवं कस्बे जन्मदिवस की बधाई फ्लेक्स एवं बैनर से अटने लगे थे। पलाडा के जन्मदिन पर प्रिंट और इलैक्ट्रानिक मीडिया सहित शहर की सडकों पर पलाडा का रंग देखने को मिला। पलाडा को चाहने वालों ने फेसबुक को उनकी तस्वीरों से पाट दिया। खास बात यह रही कि सभी राजनीतिक दलों के नेताओं व सभी जाति धर्म के लोगो ने उन्हें शुभकामनाएं दीं। जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों सहित सामाजिक संगठनों के लोगो ने जन्मदिन समारोह में शिरकत की। राजनीतिक दृष्टि रखने वाले इस विशाल आयोजन को आगामी विधानसभा चुनाव से जोड कर देख रहे हैं। ज्ञातव्य है कि परिसीमन के बाद आगामी चुनाव में अजमेर में तीन सीटें होनी हैं। एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रहेगी और दूसरी सीट पर भाजपा जाहिर तौर पर वासुदेव देवनानी या किसी और सिंधी को टिकट देगी। तीसरी सामान्य सीट पर पलाडा की मजबूत दावेदारी हो सकती है। हालांकि उन्होंने स्वयं ने इस प्रकार की मंशा जाहिर नहीं की है, मगर इसके राजनीतिक निहितार्थ तो यही निकलते हैं कि पलाडा एक सशक्त दावेदार के रूप में उभर सकते हैं। 

गुरुवार, 19 जून 2025

कांग्रेस से क्यों विमुख होते जा रहे हैं सिंधी नेता?

यह आम धारणा है कि अजमेर में अधिसंख्य सिंधी मतदाता भाजपा मानसिकता के हैं, लेकिन एक जमाने में भूतपूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के प्रभाव से काफी संख्या में सिंधी कांग्रेस से जुडे हुए थे। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने हालांकि स्वर्गीय श्री नानकराम जगतराय को टिकट दिया और वे जीते भी, मगर उसके बाद हुए चुनाव में टिकट काट दिया गया, नतीजतन वे बागी हो गए। परिणामस्वरूप श्री नरेन शहाणी भगत मात्र ढाई हजार वोटों से हार गए। भाजपा के श्री वासुदेव देवनानी का अजमेर में पदार्पण हुआ और उसके बाद लगातार चार बार जीते। वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं। हालांकि बाद में भगत को नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाया गया था, मगर कांग्रेस राज में कथित षडयंत्र के चलते वे भ्रष्टाचार के मामले में फंस गए। उन्होंने बाकायदा साजिश का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड दी। बस इसी के साथ सिंधी समुदाय में कांग्रेस विचारधारा के नेता व कार्यकर्ता हतोत्साहित होते गए। बावजूद इसके कुछ नेताओं ने हिम्मत नहीं हारी। श्री नरेश राधानी ने टिकट हासिल करने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया, मगर उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई। उस जमाने के सारे दावेदारों में वे इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्हें टिकट हासिल करने की पतली गलियों का अच्छी तरह से पता था और उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी। मगर कांग्रेस को चूंकि सिंधी को टिकट देना ही नहीं था, इस कारण उनकी कवायद किनारे तक पहुंचने के बाद भी कामयाब नहीं हो पाई। वे समझ गए और पूर्णकालिक पत्रकारिता आरंभ कर दी। फिर आए दीपक हासानी। प्रोजेक्शन तो था कि टिकट उनकी फायनल है, मगर उनके साथ भी अंततः धोखा हो गया। हालांकि उन्होंने दूसरी बार भी कोशिश की, मगर सफलता हासिल नहीं हो पाई। पिछले कुछ दिन से निष्क्रिय से हैं। पिछले पांच बार से टिकट के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ लाल थदानी ने पिछले चुनाव में तो ढंग से दावेदारी ही नहीं की। उनकी गिनती सिंधी समाज में सर्वाधिक सक्रिय नेताओं में होती रही है। आज कल हिंदूवादी मानसिकता के कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। यानि कि कांग्रेस से लगभग किनारा कर लिया है। वस्तुतः कांग्रेस राज में उन्हें सस्पेंशन का दर्द भोगना पडा। अब बात करते हैं, स्वामी अनादि सरस्वती की। बडे हाई प्रोफाइल तरीके से कांग्रेस में लाया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनको कांग्रेस ज्वाइन करवाई। उनको टिकट मिलने का तनिक विरोध होते ही उन्हें साइड में बैठा दिया गया। बाद में खैर खबर ही नहीं ली। उनका कोई उपयोग नहीं किया गया। अब वे हिंदूवादी संगठनों के कार्यक्रमों में भाग ले रही हैं। कुल जमा ऐसा समझ में आता है कि कांग्रेस की नीति व रवैये के कारण सिंधी नेता विमुख होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं भूतपूर्व केबिनेट मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के जमाने के कई कांग्रेस समर्थकों की औलादें नेतृत्व के अभाव में भाजपा में जा चुकी हैं। अब यह तथ्य सुस्थापित हो चुका है कि सिंधियों की नाराजगी के कारण कांग्रेस अजमेर की दोनों सीटों पर पिछले चार चुनावों से लगातार हार रही है। सुना है अब सिंधी मतदाताओं को लुभाने के लिए तीन विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। एक शहर कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया जाए। दूसरा अगर मेयर के चुनाव डायरेक्ट हों तो किसी सिंधी को प्रत्याशी बना दिया जाए। तीसरा परिसीमन के बाद संभावित तीसरी सीट का टिकट सिंधी को दिया जाए।


रविवार, 15 जून 2025

छोटा सा गांव टहला बना शक्तिकेन्द्र

 मातृभूमि की अनूठी पूजा की औंकार सिंह लखावत ने

अजमेर के निकटवर्ती नागौर जिले का छोटा सा टहला गांव। गत दिनों चहल-पहल के आगोश में था। प्रदेश भर के छोटे-बडे नेताओं की आवाजाही से आबाद। एक जागृत शक्ति केन्द्र का आभास। मौका था राजस्थान धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत की धर्म पत्नी के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने का। दिनभर श्रद्धालुओं का तांता। आवभगत में कोई कमी नहीं। हर एक को आते ही पानी की बोतल। तुरंत बाद चाय की प्याली। भीषण गर्मी से निजात दिलाने के लिए दो बडे कूलर। लखावत बैठक के एक कोने में मुड्डे पर बैठे हुए दिखाई देते हैं। शांत, अविचल। धीर-गंभीर चहरे के भीतर से झांकता जीवनसाथी के विछोह का दर्द। हर खास को अपने पास सोफे पर बिठाते हैं। सुनते सबकी हैं, खुद चंद शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। पूरे बाहर दिन सुबह से लेकर शाम तक लगातार बैठना कितना कठिन है, यह वे ही समझ सकते हैं। कौतुहल होता है कि वे चाहते तो शोक बैठक अपनी कर्मस्थली अजमेर में भी रख सकते थे, जहां कहीं अधिक गुना लोग संवेदना व्यक्त करने आते, मगर उन्होंने इसके लिए चुना अपनी मातृभूमि को। कदाचित धर्मपत्नी की मृत्युपूर्व इच्छानुसार या पारिवारिक परंपरा के निर्वहन की खातिर। और उससे भी अधिक जन्म देने वाली भूमि की पूजा की खातिर। भाव भंगिमा में मातृभूमि के प्रति समर्पण की संतुष्टि साफ झलकती है। कुछ इस तरह जताया आभारः-

https://www.facebook.com/photo?fbid=10012922488797444&set=a.893845674038550

शुक्रवार, 6 जून 2025

लंबी राजनीतिक यात्रा के बाद बी पी सारस्वत को मिला यथोचित सम्मान

अजमेर जिले में लंबी राजनीतिक यात्रा में अनेक उतार-चढाव वाले पडावों से गुजरने के बाद अंततः प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत को यथोचित सम्मान मिल गया। उन्हें कोटा विश्वविद्यालय का कुलगुरू बनाया गया है। वे महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के पूर्व कॉमर्स विभागाध्यक्ष व पूर्व डीन रहे हैं। हालांकि उनकी मनोकामना विधायक अथवा सांसद बनने की रही, मगर जिले के जातिगत समीकरणों की मजबूरी के चलते बहुत कवायद के बाद भी ऐसा हो नहीं पाया। इस दरम्यान पार्टी को जिलेभर में मजबूत करने का दायित्व निभाया, मगर प्रदेश भाजपा के अंदरूनी पेचोखम इतने उलझे रहे कि पात्रता के बाद भी उन्हें कभी टिकट नहीं मिल पाया। अब जा कर उनकी शैक्षिक योग्यताओं का प्रतिफलन कुलगुरू के रूप में घटित हुआ है।

जब उन्हें देहात जिला भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई तो यह माना जाने लगा कि उनकी किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है। तीन विधानसभा चुनावों में वे ब्यावर सीट के दावेदार रहे, उसके बाद अजमेर उत्तर अथवा केकड़ी से प्रबल दावेदार थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला। देहात जिले की छहों सीटों पर पार्टी की जीत ने यह साबित हो गया कि सांगठनिक लिहाज से उनकी कार्यशैली अद्भुद है। जिले में पूरी निष्पक्षता के साथ शानदार सदस्यता अभियान चलाने का श्रेय भी उनके ही खाते में दर्ज है। वे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी लोगों में माने जाते हैं।  

वस्तुतः वे मूल्य आधारित विचारधारा के पोषक हैं और मूल्यों की रक्षा के कारण ही उठापटक की राजनीति में अप्रासंगिक से नजर आते हैं। नैतिक मूल्यों की रक्षा की खातिर ही उन्होंने भाजपा के शिक्षा प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष पद को त्याग दिया, हालांकि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे हैं। पिछली अशोक गहलोत सरकार के दौरान विहिप नेता प्रवीण भाई तोगडिया के त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम के दौरान उनको सहयोग करने वालों में प्रमुख होने के कारण उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ था।

विद्यार्थी काल से ही वे संघ और विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। वे सन् 1981 से 86 तक परिषद के विभाग प्रमुख रहे। वे सन् 1992 से 95 तक संघ के ब्यावर नगर कार्यवाह रहे। वे सन् 1997 से 2004 तक विश्व हिंदू परिषद के प्रांत मंत्री रहे हैं। वे सन् 1986 से 97 तक राजस्थान यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अनेक पदों पर और 2001 से 2003 तक अजमेर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी चौदह पुस्तकें और बीस पेपर्स प्रकाशित हो चुके हैं। उनके मार्गदर्शन में विद्यार्थियों ने पीएचडी की है। वे चीन, सिंगापुर, श्रीलंका व पाकिस्तान आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं।

उनका जन्म जिले के छोटे से गांव ब्रिक्चियावास में सन् 1960 में हुआ। उच्च शिक्षा पाने के बाद वे ब्यावर स्थित राजकीय सनातन धर्म महाविद्यालय में लेक्चरर बने। लंबे समय तक नौकरी करने के बाद महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बनाए गए। पदोन्नति के बाद प्रोफेसर बने। बाद में वे कॉमर्स विभाग के विभागाध्यक्ष और डीन बनाए गए। ग्यारह साल तक पीटीईटी (प्री. बी.एड़ परीक्षा) के कोर्डिनेटर बने। यह विश्वविद्यालय तब पीटीईटी की नोडल एजेंसी रहा। एक बार राज्य सरकार की ओर से रजिस्ट्रार पद नहीं भरा गया तो उनको तत्कालीन कुलपति ने रजिस्ट्रार का दायित्व सौंपा, जिसका निर्वहन करते हुए उन्होंने अनेक उपब्धियां हासिल कीं।

शुक्रवार, 30 मई 2025

बहुत जीवट वाले थे पत्रकार श्री निर्मल मिश्रा

अजयमेरु प्रेस क्लब के पूर्व महासचिव और वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री निर्मल मिश्रा बहुत जीवट वाले पत्रकार थे। पिछले कुछ साल से अस्वस्थ थे, मगर तब भी कुछ नया करने को लालायित थे। कुछ दिन पहले ही उनका फोन आया। आधे घंटे बात की। कहा कि कुछ ऐसा करना चाहते हैं, कि लोग मान जाएं कि हम भी किसी से कम नहीं। फाइनेंसर भी उपलब्ध है। न्यूज चैनल आरंभ करना चाहते हैं। सहयोग की अपेक्षा थी उनको कि उसका स्वरूप केसा हो? कदाचित अस्वस्थता के कारण उनका संकल्प पूरा न हो पाया। गत दिवस उनका देहावसान हो गया।

उन्होंने पत्रकारिता की यात्रा 1984 में दैनिक आधुनिक राजस्थान से आरंभ की। तब मैं इंचार्ज था। वे बहुत महत्वाकांक्षी थे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से अजमेर आ कर उन्होंने अपने आपको स्थापित करने के लिए बहुत मेहनत की। आरंभिक दिनों में उनका कहना था कि वे बहुत उंचाई को छूना चाहते हैं। मुझे चुनौती देते थे कि आप तो यहीं रह जाओगे, मैं नेशनल लेवल तक जा कर चैन लूंगा। उन्होंने दैनिक न्याय, दैनिक नवज्योति व राजस्थान पत्रिका में भी काम किया। आखिर में दैनिक भास्कर से जुडे रहे। खोजपूर्ण पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने खास पहचान बनाई। कम लोगों को ही पता होगा कि अजमेर के बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियां व छायाचित्र सबसे पहले उनके हाथ लगे थे। उन्हें प्रकाशित करने में कुछ बाधाएं थीं। बाद में दूसरे पत्रकारों के हाथ लगे। ब्लैकमेल कांड पर कार्यवाही के लिए सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाने वाले समूह में उनकी अहम भूमिका थी। क्राइम रिपोर्टिंग पर उनकी विशेष पकड थी। राजनीति व प्रशासन के क्षेत्र में भी खूब हाथ आजमाये। उन्होंने दैनिक नवज्योति में अजमेर विशेष पेज के लिए वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी के निर्देशन में अनेक खोजपूर्ण व दिलचस्प न्यूज आइटम दिए। दैनिक भास्कर में भी कई महत्वपूर्ण स्टोरीज कीं। वे राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ में भी सक्रिय रहे। पार्टटाइम पत्रकारिता करने वाले कर्मचारी नेता स्वर्गीय श्री सत्येश्वर प्रसाद शर्मा उन्हें पुत्रवत मानते थे। उनकी अच्छी खासी मित्र मंडली थी। राजनीतिक नेताओं भी गहरे ताल्लुकात थे। पत्रकार मित्र मंडली में सबसे छोटे होने के कारण सबके प्रिय थे और उनके छोटे-मोटे हठ को पूरा करने में खुशी महसूस करते थे। करीबी दोस्तों को सहसा यकीन ही नहीं हो रहा कि वे हमारे बीच नहीं रहे। कुल जमा अजमेर के पत्रकार जगत ने बहुत प्यारा, यारबाज व दिलेर पत्रकार खो दिया है। उनके जैसे यारबाज शख्स कम ही हैं, खासकर पत्रकार जगत में। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनके निधन पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है। ईश्वर उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें। साथ ही उनके परिवार को इस वज्रपात को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

गुरुवार, 29 मई 2025

अग्रणी समाजसेवी थे श्री सुनील भुटानी

अजमेर में सिंधी समाज के सर्वाधिक सक्रिय व अग्रणी समाजसेवी थे स्वर्गीय श्री सुनील वीरूमल भुटानी। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उन्होंने 1992 में समाजसेवा के लिए सिंधु समिति का गठन किया था। उस जमाने के चंद एनर्जेटिक युवकों में उनकी गिनती हुआ करती थी। उनके साथ एक मजबूत टीम सक्रिय थी। गजब की संगठन क्षमता थी उनमें। उन्हीं के अन्य साथियों ने बाद में अन्य सामाजिक संस्थाओं का गठन किया। वे सिंधियत के लिए समर्पित रहे। उनकी परिकल्पना अजमेर के समूचे सिंधी समाज को जोडने वाले सिंधियत मेले के रूप में साकार हुई। हालांकि पिछले कुछ सालों से स्वास्थ्यगत और व्यावयायिक कारणों से वे अधिक सक्रिय नहीं रह पाए, मगर अनेक आयोजनों में उनका मार्गदर्शन लिया जाता रहा। उनमें कमाल की पॉजिटिव एनर्जी थी और अस्वस्थता को उन्होंने कभी हावी नहीं होने दिया। वे सिंधी कौंसिल ऑफ इंडिया के राजस्थान चैप्टर के सुप्रीम काउंसलर भी थे। इसके अतिरिक्त आदर्श विद्या समिति व एचकेएच विद्या समिति के संयुक्त सचिव रहे। पुष्कर झूलेलाल घाट विकास समिति से भी जुडे रहे। उनकी दिलचस्पी राजनीति में भी रही। वे भूतपूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के करीबी थे। अजमेर नगर परिषद के चुनाव में अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष श्री नरेन शहाणी के बहुत अनुनय व आग्रह पर कांग्रेस के एक मात्र सिंधी प्रत्याशी बनाए गए, मगर भाजपा मानसिकता के सिंधियों ने उनका साथ नहीं दिया। कांग्रेस के इस प्रयोग से यह लगभग स्पष्ट हो गया कि भाजपा से जुडे सिंधी कांग्रेस के सिंधी प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया करते।

वे सुपरिचित कर कानून सलाहकार थे। उनका जन्म 5 फरवरी 1962 को हुआ। उनके पूर्वज सिंध के सेवण में रहते थे। उन्होंने 1985 में एम कॉम की डिग्री जीसीए से हासिल की और अपने मामा जाने-माने समाजसेवी श्री मोतीलाल ठाकुर के साथ टैक्स प्रैक्टिस आरंभ की। 2002 से उन्होंने अपना ऑफिस आरंभ किया। उनके पास अच्छा क्लाइंटेज था। प्रमुख व्यवसायी उनसे सलाह लिया करते थे। उनके चार भाई व चार बहिनें हैं। उनका विवाह 24 मार्च 1996 को हुआ। उनके एक पुत्र व एक पुत्री है। ज्ञातव्य है कि उनके जीजाजी श्री जगदीश वच्छानी समाज के एक स्तम्भ हैं। स्वामी श्री हिरदाराम जी के आशीर्वाद से प्रशासन पर गहरी पकड और एनआरआई से घनिष्ठ संबंधों के चलते समाजसेवा के अनेक प्रकल्प संचालित कर रहे हैं। स्वर्गीय श्री भुटानी के निधन से समाज को जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति असंभव है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


शुक्रवार, 23 मई 2025

जियारत व पूजा भी कोई खबर है?

किसी भी व्यक्ति का दरगाह जियारत करना अथवा तीर्थराज पुश्कर की पूजा अर्चना करना उसका पूर्णतः वैयक्तिक कृत्य है। यह उसकी व्यक्तिगत आस्था का मामला है, जिससे आम जनता का कोई सरोकार नहीं होता। बावजूद इसके लंबे अरसे से वीवीआईपी, वीआईपी, नेता-अभिनेता आदि जियारत करता है अथवा पुश्कर सरोवर की पूजा करता है तो उसकी विस्तृत खबर छपती है। क्या उस खबर की कोई उपयोगिता है?

उसमें किसने जियारत करवाई, किसने तवरूख भेंट किया, किसने पूजा करवाई, कौन कौन मौजूद थे, आदि का जिक्र होता है। सवाल उठता है कि आम पाठक की क्या इसको जानने में रूचि होती है। वह हैडिंग पढ कर उसे छोड देता है या पूरी खबर पढता है। हां, अगर जियारत व पूजा के दौरान वह कोई बयान देता है तो वह जरूर खबर है, मगर केवल जियारत व पूजा खबर कैसे हो सकती है। होता अमूमन ये है कि जब भी कोई दरगाह षरीफ में आता है या तीर्थराज पुश्कर की पूजा करता है तो मीडिया उसे घेर लेती है और संबंधित व ताजा मामलों में उसका बयान लेती है, जो कि खबर बन जाती है। मुझे ख्याल आता है कि दैनिक भास्कर अजमेर के तत्कालीन स्थानीय संपादक श्री जगदीष षर्मा ने एक व्यवस्था बनाई थी कि जियारत व पूजा की कोई खबर नहीं जाएगी। यदि जाएगी भी तो दो तीन लाइन में, जानकारी मात्र के लिए। ताकि यह पता रहे कि अमुक विषिश्ट व्यक्ति यहां आया था। खबर तभी बनाई जाए जब वह कुछ बयान दे। उसमें भी जियारत व पूजा की जानकारी दो तीन लाइन में होनी चाहिए। यह व्यवस्था काफी दिन चली। 

अब बात करते हैं कि जियारत व पूजा की खबर बनाने की परंपरा कैसे षुरू हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में अखबार वालों ने विषिश्ट व्यक्ति के दरगाह व पुश्कर आने पर जियारत व पूजा करवाने वालों से खबर ली। बाद में इसका उलट हो गया। खबर अखबार के दफ्तर में भी आने लगी। यह ठीक वैसा ही है कि अमुक वकील ने अमुक मामले में अमुक को जमानत दिलवाई या बरी करवाया, और उसकी खबर बन जाए। अब तो जियारत व पूजा करने वाले स्वयं भी खबर लगवाने में रूचि लेते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=vvHkmnZ2HJ0


शनिवार, 17 मई 2025

आजादी के बाद अजमेर नगर पालिका से निगम के मुखिया

1947-48ः श्री हेमचंद सोगानी

1948-49ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1949-51ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1951ः श्री विशम्बरनाथ भार्गव

1951-52ः श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा

1952ः श्री जे. के. भगत

1953 व 54 में प्रशासकों ने व्यवस्था संभाली

1954-55ः श्री दुर्गादत्त उपाध्याय

1955-57ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1957-58ः श्री ज्वालाप्रसाद शर्मा

1959-60ः श्री देवदत्त शर्मा

1960-61ः श्री माणकचंद सोगानी

1961 से 69 तक प्रशासकों ने व्यवस्थाएं संभाली

1970ः श्री एम.के. नाथूसिंह तंवर

1971ः श्री माणकचंद सोगानी

1973ः डॉ. एम. एल. बाघ

1973 से 90 तक प्रशासकों ने काम संभाला

1990-95ः श्री रतनलाल यादव

1995-2000 श्री वीरकुमार

24.1.2000-9.4.2000: श्रीमती विद्या कमलाकर जोशी (कार्यवाहक)

10.4.2000-28.8.2000: श्री सुरेन्द्र सिंह शेखावत

28.8.2000-22.12.2003ः श्रीमती अनिता भदेल

22.12.2003-31.12.2005ः श्रीमती सरोज देवी जाटव

2005-10ः            श्री धर्मेन्द्र गहलोत

सन् 2008 में भाजपा शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पहल पर नगर परिषद को नगर निगम का दर्जा दे दिया गया। इसकी घोषणा उन्होंने अजमेर में ही की। वे यहां राज्य स्तरीय गणतंत्र समारोह में शिरकत करने आई थीं। इस लिहाज से श्री धर्मेन्द्र गहलोत को पहला मेयर बनने का गौरव हासिल हुआ। हालांकि जनसंख्या संबंधी औपचारिकता बाद में कुछ गांव मिला कर की गई।

अगस्त 2010 में करीब बीस साल भाजपा का कब्जा रहने के बाद पहली बार कांग्रेस के नए चेहरे वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व पार्षद स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र श्री कमल बाकोलिया अजमेर नगर निगम के पहले निर्वाचित मेयर बने। उन्होंने भाजपा के डॉ. प्रियशील हाड़ा को पराजित किया।

2015 में नई व्यवस्था के तहत मेयर का चुनाव पार्षदों में से किया गया और एक बार फिर धर्मेन्द्र गहलोत मेयर बने

2020 में भाजपा की श्रीमती ब्रजलता हाडा मेयर चुनी गई

गुरुवार, 15 मई 2025

आज भी जिंदा हैं सबा खान

सुर्खी पढ़ कर आपका चौंकना लाजिमी है। मगर मेरी कलम की कोख से यह सुर्खी इसलिए पैदा हुई, क्योंकि मेरी नजर में वे आज भी जिंदा हैं। चार साल बीत गए। एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं थीं। मगर वे आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं। फेसबुक अटा पडा है, उनको याद किया जा रहा है। उनका जिक्र करते हुए उनके नाम के साथ मरहूम इसलिए नहीं जोडूंगा, चूंकि उनके भीतर जो जज्बा था, वो शहर में गिनती के जिंदा लोगों के जेहन में धड़क रहा है। वह कभी नहीं मरा करता। सबा ने जो पहचान बनाई, वह उनके अलविदा होने के बाद भी जिंदा है। मेरी नजर में वे मर्द औरत थीं। बिंदास। उनके कांधे पर चस्पा उन तमगों का जिक्र करना बेमानी सा है, जिसके बारे में हर किसी को पता है कि वे राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रदेश महासचिव थीं, अजमेर शहर जिला महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में अग्रणी संस्था प्रिंस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष और जवाहर फाउंडेशन की मजबूत स्तंभ थीं। हां, इतना जरूर कहना पड़ेगा कि वे एक जिंदादिल इंसान, हरदिल अजीज और खुश मिजाज थीं। हर किसी से बड़े खुलूस के साथ मिला करती थीं, मानों बरसों जी जान-पहचान हो। असल में वे भरपूर सेहतमंद थीं। गर कोरोना के शिकंजे में नहीं आतीं तो खूब जीतीं। क्या यह सरासर नाइंसाफी नहीं है कि कोरोना ने कम उम्र में ही जबरन उनकी सांसें रोक दीं? बिना यह सोचे कि ऐसे इंसानों की अजमेर को कितनी दरकार है?

फोटो कांग्रेस नेता सौरभ यादव ने अपनी फेसबुक वाल पर साझा की है। कदाचित सबा खान की यह आखिरी फोटो है।

अब जरा, उनकी शख्सियत के बारे में। उनमें गजब की फुर्ती थी, चुस्ती थी। यानि बिजली जैसी चपलता। तभी तो उनकी साथिनें पूछा करती थीं कि कौन सी चक्की का आटा खाती हो। कांग्रेस में तकरीबन दस साल शहर महिला अध्यक्ष रहीं। इस दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो कि वे कहीं नजर न आई हों। राजनीति से इतर भी वे आम अवाम के हर काम के लिए जुटी दिखाई देती थीं। उनके पास शहर का जो भी मसला आता था, जो भी फरियादी आता था, वे तत्काल आला अफसरान के चेंबर में बेधड़क घुस कर पैरवी करती थीं। सियासत उनकी रोजमर्रा की जिंदगी बन गई थी। कांग्रेस और भाजपा, दोनों में इस किस्म के नेता कम ही हैं। अफसोस, एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं। और इसी के साथ अपार संभावनाओं का अंत हो गया। शहर वासियों केलिए भी, परिवार वालों के लिए भी।

अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुकाम अता फरमाए। गमजदा परिवार वालों को सब्र जमील अता फरमाए। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


मंगलवार, 13 मई 2025

प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है सुधाबाय में

हर मंगला चौथ पर भरता है मेला

तीर्थराज पुष्कर के ही निकट सुधाबाय में हर मंगला चौथ अर्थात मंगलवार व चतुर्थी तिथी का संगम होने पर मेला भरता है। यहां श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं। अनेक वे लोग, जो आर्थिक अथवा अन्य कारणों से अपने पितरों के पिंड भरने गया नहीं जा पाते, वे यहां यह अनुष्ठान करवाते हैं। बताया जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध इसी कुंड में किया था। मान्यता है कि यहां कुंड में स्नान से प्रेत-बाधा से मुक्ति मिलती है। इस कारण कथित ऊपरी हवा से पीड़ित लोगों को उनके परिजन यहां लाते हैं और कुंड में डुबकी लगवा कर राहत पाते हैं।

जानकारों का कहना है कि पुष्कर से करीब 4 किलोमीटर दूर व बूढा पुश्कर के पास स्थित सुधाबाय कुंड में शुक्ल पक्ष चतुर्थी मंगलवार के त्रि-संयोग के अवसर पर गया माता स्वयं विराजमान रहती है। इस मौके पर नारायण बली की पूजा भी यहां पर करवाई जाती है। आसानी से देखा जा सकता है कि महिला पुरुषों में कुंड में स्नान करने के साथ ही अदृश्य आत्माएं स्वयं अपनी भाषा बोलती है। अपना नाम पता बोलती है तथा उसका शरीर से निकल जाने की सौगंध लेती हैं। स्नान करने के बाद कुछ समय में ही प्राणी हंसता हुआ स्नान करता है तथा कुंड से बाहर आता है। 

पद्मपुराण के पृष्ठ संख्या 104 में लिखा है कि मर्यादा पर्वत यज्ञ पर्वत के बीच सतयुग के तीन कुंड बताए गए हैं, जिन्हें ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर ओर कनिष्ठ पुष्कर के नाम से जाना जाता है। मध्य पुष्कर के समीप अवियोगा नामक एक चोकोर बावड़ी है, जिसके मध्य मे जल से युक्त एक कुआं है, जिसे सौभाग्य कूप कहते हैं। यहां पिंड दान करने से भटकती आत्माओं को मुक्ति मिलती है। 


https://www.youtube.com/watch?v=Q1g4_2z08PU

रविवार, 11 मई 2025

समाजसेवी श्री ओमप्रकाश हीरानंदानी नहीं रहे

भोलेश्वर मन्दिर सेवा ट्रस्ट, जनता कॉलोनी, वैशाली नगर, अजमेर के ट्रस्टी मुखी साहब श्री ओमप्रकाश हीरानंदानी का 11 मई को हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक निधन हो गया है। उनकी शवयात्रा सोमवार 12 मई, 2005 को प्रातः 9.30 बजे उनके निवास स्थान जनता कालोनी, वैशाली नगर से छतरी योजना मुक्तिधाम तक निकाली जाएगी। वे समाज की सभी गतिविधियों में बढ-चढ कर हिस्सा लेते थे। वे श्री अमरापुर सेवा घर (वृद्धाश्रम) की देखरेख कर रहे श्री शंकर बदलानी के साथ सेवा में भागीदारी निभाते थे। पिछले दिनों पूज्य झूलेलाल जयंती समारोह समिति की ओर से आयोजित चेटीचंड पखवाडे में उन्होंने पूरी सक्रियता के साथ सहभागिता निभाई। साथ ही स्वामी श्री हिरदारामजी की प्रेरणा व आशीर्वाद से ताराचंद हुंदलदास खानचंदानी सेवा संस्था (श्री अमरापुर सेवा घर), सिंधी समाज महासमिति व सांई बाबा मंदिर, अजमेर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्री झूलेलाल सामूहिक कन्यादान समारोह में भी उनकी सक्रियता सदैव याद की जाएगी। वे हाल ही स्वामी कॉम्पलैक्स में नवीनीकृत रसोई रेस्टोरेंट में सार्वजनिक रूप से पूर्ण स्वस्थ दिखाई दिए थे। उनके अकस्मात निधन से पूरा सिंधी समाज स्तब्ध है। हर कोई हतप्रभ है कि कोई कम उम्र में ही अचानक कैसे इस दुनिया से विदाई ले सकता है? अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 

बेमिसाल सहजता की प्रतिमूर्ति थे स्वर्गीय श्री रासासिंह रावत

चार साल पहले अजमेर ने एक ऐसी षख्सियत को खो दिया था, जो अपने विषिश्ट व्यक्तित्व के कारण लोकप्रिय थे। वे थे भाजपा भाजपा नेता व भूतपूर्व सांसद स्वर्गीय प्रो रासासिंह रावत। वे पांच बार अजमेर के लोकसभा सदस्य थे। वे सहज सुलभता और अपनी विशेष भाषण शैली और धाराप्रवाह उद्बोधन के कारण अजमेर वासियों के चहते थे। उनका जन्म सन् 1 अक्टूबर 1940 को श्री भूरसिंह रावत के घर हुआ। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. और हिंदी व संस्कृत में एम.ए. की शिक्षा अर्जित की और अध्यापन कार्य से अपनी आजीविका शुरू की। उन्हें 25 साल तक अध्यापन का अनुभव था। उल्लेखनीय सेवाओं के कारण उन्हें शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर 1989 को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया। अध्यापन कार्य के दौरान स्काउटिंग में विषेश सेवाएं देने के कारण उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा गया। सामाजिक संगठन आर्य समाज अजमेर से उनका गहरा नाता रहा और पूर्व में इसके अध्यक्ष रहे व बाद में संरक्षक रहे। समाजसेवा से उनका कितना गहरा रिश्ता है, इसका अनुमान उनके दयानंद बाल सदन के प्रधान, भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के प्रधान व राजस्थान रावत राजपूत महासभा के पूर्व प्रधान व हाल तक संरक्षक का दायित्व निभाने से हो जाता है। वे सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में विशेष रुचि रखते थे। भाजपा की नई चुनावी रणनीति के चलते उन्हें राजसमंद से लड़ाया गया, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। बाद में उन्हें अजमेर शहर भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। 

भाजपा में जाने से पहले रासासिंह रावत ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर भीम विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे विरजानंद स्कूल के प्रधानाचार्य रहे। बाद में उन्हें डीएवी स्कूल का प्राचार्य बना दिया गया, फिर वे आर्य समाज के प्रधान भी बने। आर्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान भी रहा है।

सांसद के रूप में उन्होंने सभी पांचों कार्यकालों में उन्होंने लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाई। अजमेर से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा, जो उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया। यह अलग बात है कि दिल्ली में बहुत ज्यादा प्रभावी नेता के रूप में भूमिका न निभा पाने के कारण वे अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। एक बार उनके मंत्री बनने की स्थितियां निर्मित भी हुईं, लेकिन चूंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सोलह सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने के कारण वे दल आनुपातिक रूप में मंत्री हासिल करने में कामयाब हो गए और प्रो. रावत को एक सांसद के रूप में ही संतोष करना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वह सहज उपलब्ध हुआ करते थे। बेहद सरल स्वाभाव और विनम्रता उनके चारित्रिक आभूषण थे। 10 मई 2021 को उनका देहावसान हो गया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


शनिवार, 3 मई 2025

आनासागर में लिंक ब्रिज होना चाहिए

अजमेर में यातायात की समस्या के स्थाई समाधान के लिए लंबी जद्दोहद और कई पेच ओ खम के बाद एलिवेटेड रोड आरंभ हो गया है। हालांकि इसमे अब भी खामियां हैं, मगर षहर में यातायात का दबाव कुछ कम करने में सफलता हासिल हुई है। आप यह जान कर चकित होंगे कि तकरीबन तेरह साल पहले प्रकाषित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में स्वामी न्यूज के एमडी कंवल प्रकाष किषनानी ने वक्त के साथ कदमताल जरूरी षीर्शक के साथ दिए गए आलेख में एलिवेटेड रोड की जरूरत पर जोर देते हुए एक काल्पनिक चित्र दिया था। यह आष्चर्यजनक संयोग है कि वर्तमान एलिवेटेड रोड का वास्तविक चित्र भी उसी से मेल खाता है। यह कल्पनाषीलता की अनूठी मिसाल है। प्रसंगवष बता दें कि श्री किषनानी ने इसी पुस्तक में विजन अजमेर खंड के मुख्य पेज पर आनासागर के एक छोर से दूसरे छोर तक लिंक ब्रिज का काल्पनिक चित्र दिया था। आज जब रिंग रोड की चर्चा हो रही है, प्रषासन को चाहिए कि वह लिंक ब्रिज बनाने पर भी विचार करे, जिससे न केवल यातायात सुगम होगा, अपितु आनासागर और खूबसूरत हो जाएगा।


https://www.youtube.com/watch?v=ZYZtVrpKDgs


गुरुवार, 1 मई 2025

अजमेर को ऊनाळो भलो

दोस्तो, नमस्कार। इन दिनों भीशण गर्मी पड रही है। सामान्य जनजीवन अस्तव्यस्त है। लोग परेषान हैं। अगर कोई आपसे कहे कि अजमेर की गर्मी तो भली है, तो आप झुंझला सकते हैं कि कैसी बात कर रहे हैं। हमारा हाल खराब है और आप इसे अच्छा बता रहे हैं। असल में किसी जमाने में गर्मी के मामले में अजमेर अन्य स्थानों से बेहतर था। इसी कारण राजस्थानी कहावत बनी कि सियाळो खाटू भलो, ऊनाळो अजमेर, नागौर नित रो भलो, सावण बीकानेर। अर्थात सर्दी खाटू की अच्छी है तो गर्मी अजमेर की और नागौर प्रतिदिन अच्छा और बीकानेर का सावन। वस्तुतः किसी जमाने में अरावली पर्वत श्रृंखला के नाग पहाड पर घने जंगल हुआ करते थे। मौसम बहुत सुहावना होता था। इसी सुरम्यता के कारण सत्ताधीषों ने इसे अपना केन्द्र बनाया। प्राचीन काल से लेकर मुगल काल व बाद में ब्रितानी हुकूमत के दौरान अजमेर सत्ता का केन्द्र रहा। पानी की कमी नहीं होती तो कदाचित आजादी के बाद यह राजधानी बनता। खैर, बाद में वृक्षों की निरंतर कटाई के कारण नाग पहाड पर हरियाली कम होती चली गई। इसे पुनः हराभरा करने के लिए भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री षिवचरण माथुर ने बारिष के मौसम में नाग पहाड पर हैलीकॉप्टर से बीजों का बिखराव किया था। मगर फॉलोअप न होने कारण कोई फायदा नहीं हुआ। इसी प्रकार पुश्कर घाटी में बरसाती पानी के ठहराव व हरियाली के लिए जापान के सहयोग से एक प्रोजेक्ट पर काम हुआ। अनेक उपाय किए गए, मगर ठीक से रखरखाव न किए जाने के कारण सारा पैसा पानी के साथ बह गया। बावजूद इसके गर्मी के लिहाज से अजमेर को आज भी अन्य स्थानों की तुलना में बेहतर माना जाता है। तापमान भले ही समान रहे, मगर आम तौर पर अजमेर में गर्मी सहन करने लायक पडती है। बीच में कुछेक दिन जरूर तापमान बढ जाता है। 

https://youtu.be/dzuGnBYux8M


मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

बिंदास कर्मचारी नेता थे श्री संतोष कुमार भावनानी

किसी जमाने में अजमेर नगर परिषद, जो कि अब नगर निगम है, में श्री संतोष कुमार भावनानी बहुत दमदार व बिंदास कर्मचारी नेता थे। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उनका जन्म 2 नवंबर 1946 को सिंध-पाकिस्तान में श्री लाडिक दास भावनानी के घर हुआ। उन्होंने 1963 में आदर्श स्कूल से हायर सेकंडरी की परीक्षा पास की और नगर परिषद, अजमेर में लिपिक के पद पर नियुक्त हुए। तकरीबन 41 साल की सरकारी सेवाओं के बाद फरवरी 2002 में सेवानिवृत्त हुए। वे अजमेर जिला नगर पालिका फेडरेशन के संरक्षक व सेवानिवृत्त कर्मचारी फेडरेशन, अजमेर नगर निगम के अध्यक्ष थे। वे कर्मचारियों के हितों के लिए सतत संघर्षशील रहे और अनेक कार्य करवाए। कई सफल आंदोलन किए। अधिकारी भी उनकी संगठन क्षमता का लोहा मानते थे। 

समाजसेवा में भी उनकी गहरी दिलचस्पी थी। वे देहली गेट स्थित पूज्य लाल साहब मंदिर सेवा ट्रस्ट (झूलेलाल धाम) के उपाध्यक्ष थे। इसके अतिरिक्त अजमेर सिंधी पंचायत, सिंधु संगम, सिंधी संगम समिति से भी जुडे रहे। उन्होंने पंचायत की ओर से आयोजित प्रतिभावान विद्यार्थी सम्मान समारोह व इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका के लिए खूब काम किया। पिछले काफी समय से अस्वस्थ थे, इस कारण घर पर ही रहते थे। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

कोई वस्तु रखी है और पड़ी है, में फर्क है

दैनिक न्याय पत्रकारिता की प्राथमिक पाठशाला थी। गुरुकुल जैसी। यूनिवर्सिटी भी थी, मगर उनके लिए, जिन्होंने उसे गहरे से आत्मसात किया। बाद में वे बड़े से बड़े अखबार में भी मात नहीं खाए। प्राथमिक पाठशाला इस अर्थ में कि जिसने भी वहां काम किया, उसे पत्रकारिता के साथ-साथ मौलिक रूप से शुद्ध हिंदी भी सीखने को मिली। इसके प्रकाशक व संपादक स्वर्गीय बाबा श्री विश्वदेव शर्मा शुद्ध हिंदी के प्रति अत्यंत सजग थे। रोजाना सुबह अखबार की एक-एक लाइन पढ़ा करते थे। वर्तनी की छोटी से छोटी गलती पर गोला मार्क कर देते। यहां तक कि बिंदी व कोमा की गलती भी नहीं छोड़ते थे। प्रूफ रीडिंग पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया करते थे। दो प्रूफ निकालने की तो हर अखबार में परंपरा थी, मगर वे तीसरा प्रूफ भी पढ़वाया करते थे, ताकि एक भी गलती न जाए। मुझे अच्छी तरह से याद है कि उनके एक पुत्र श्री सनत शर्मा तीसरा प्रूफ पढ़ा करते थे। वर्तनी व व्याकरण की त्रुटियों को लेकर इतने सख्त थे कि एक बिंदी की गलती पर भी प्रूफ रीडर की तनख्वाह में से पच्चीस पैसे काट लेते थे। शब्दों के ठीक-ठीक अर्थ की भी उनको गहरी समझ थी। उन्हें यह बर्दाश्त ही नहीं होता था कि कोई कर्मचारी गलत शब्द का इस्तेमाल करे। अपनी टेबल पर सदैव हिंदी शब्द कोष व अंग्रेजी-हिंदी डिक्शनरी रखा करते थे। किसी शब्द को लेकर कोई भी शंका हो तो शब्द कोष देख कर कन्फर्म करने को कहते थे। 

एक बार की बात है। उन्होंने एक क्लर्क को पूछा कि अमुक फाइल कहां पर है? क्लर्क ने जवाब दिया- अलमारी में  पड़ी है। बाबा ने दुबारा पूछा- अमुक फाइल कहां है? वही जवाब मिला- अलमारी में पड़ी है। इस पर उनको गुस्सा आ गया। तीसरी बार सख्ती से पूछा- अमुक फाइल कहां पर है? क्लर्क को समझ में नहीं आया कि तीसरी बार फिर वही सवाल क्यों किया जा रहा है। उसने जैसे ही कहा कि अलमारी में पड़ी है तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने क्लर्क को झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया। बोले कि ये मत कहो कि पड़ी है, ये कहो कि रखी है। पड़ी का मतलब तो ये होता है कि लावारिस पड़ी है, जबकि रखी का मतलब होता है कि सुरक्षित और ठिकाने पर रखी है। आम तौर पर हम पड़ी और रखी शब्दों में हम फर्क नहीं समझते, मगर गौर से देखें तो वाकई बहुत अंतर है। मामूली अंतर है, मगर बड़ा भारी अंतर है। तात्पर्य यही कि बाबा शुद्ध हिंदी के प्रति अत्यधिक कटिबद्ध थे। यही वजह थी कि दैनिक न्याय में जिन्होंने पकारिता सीखी, वे पारंगत हो गए। बाद में जब किसी बड़े अखबार में गए तो पत्रकारिता की स्कूलिंग उन्हें बहुत काम आई। अच्छे-अच्छे पत्रकारों को टक्कर देने की काबिलियत रही उनमे। दैनिक न्याय जैसी पाठशालाएं अब कहां?

केवल पत्रकारिता ही नहीं, अपितु अनुशासन भी गजब का था दैनिक न्याय में। एक ऑलपिन तक यदि फर्श पर गिर जाए तो जिम्मेदार कर्मचारी के वेतन में से पैसे काट लिया करते थे। अनुशासन के ऐसे माहौल का ही परिणाम था कि सभी कर्मचारी अनुशासित रहने के आदी हो गए थे। उन दिनों टेलीफोन हर घर में नहीं हुआ करता था। पर हर कॉल के पैसे लगा करते थे। व्यवस्था ये थी कि अगर किसी आगंतुक को कॉल करना होता था तो उससे एक रुपया लिया जाता था। बाबा के एक पुत्र वृहस्पति शर्मा उन दिनों जयपुर कार्यालय में थे। कभी कभार अजमेर आया करते थे, इस कारण कई कर्मचारी उन्हें नहीं जानते थे। एक बार वे आए और उन्हें फोन करने की जरूरत पड़ी तो वे सीधे गए टेलीफोन के पास और एक कॉल कर लिया। जैसे ही जाने लगे तो वहां मौजूद सहायक संपादक संजय भट ने उनके एक रुपया मांग लिया। वे तो भौंचक्क ही रह गए। अपने ही संस्थान में कोई कर्मचारी अगर एक फोन कॉल के पैसे मांग ले तो बुरा लगेगा ही। मगर संजय भट अड़ गए। वृहस्पति शर्मा ने अपना परिचय दिया कि वे बाबा के पुत्र हैं। इस पर संजय भट बोले कि मैं आपको नहीं जानता। आप बाबा के सुपुत्र हैं, मगर यहां तो यही नियम है कि कोई भी कॉल करेगा तो उसे एक रुपया देना ही होगा। आखिरकार वृहस्पति शर्मा को एक रुपया निकाल कर देना ही पड़ा, मगर वे इस अनुशासन को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और संजय भट को शाबाशी दी।

https://youtu.be/SmwG40g3V_Q


गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

करोड़ों लोगों की वंशावली बंद है बहियों में

तीर्थ यात्रा की दृष्टि से पुष्कर का विशेष महत्व है। चारों धामों की यात्रा के बाद भी तीर्थ यात्रा तभी पूरी मानी जाती है, जब पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाई जाए। हरिद्वार की भांति यहां भी श्रद्धालु अपने परिजन की मुक्ति की कामना के लिए अस्थि विसर्जन करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी आने तीर्थ यात्रियों का इतिहास यहां के तीर्थ पुरोहितों ने बहियों में संग्रहित कर रखा है। 

यह इतिहास लिखने की परंपरा कब शुरू हुई, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों के पास मौजूद रिकार्ड से अनुमान लगाया जा सकता है कि इतिहास को लिपिबद्ध करने का क्रम एक हजार साल से भी पहले शुरू हुआ होगा। कई पुरोहितों के पास ग्यारह सौ साल पहले के भोज-पत्र व ताम्र-पत्र मौजूद हैं, जिन पर राजा-महाराजाओं के हुक्मनामे अंकित हैं। तीर्थ पुरोहितों की निजी संपत्ति होने के कारण पुरातत्व विभाग इनको संरक्षित रखने को कोई कदम नहीं उठा पाया है। तीर्थ पुरोहितों के पास भी इन्हें सुरक्षित रखने के पर्याप्त साधन नहीं हैं।


https://www.youtube.com/watch?v=qbUwaH9sYO4&t=36s


बुधवार, 23 अप्रैल 2025

यायावर पत्रकार श्री महावीर सिंह चौहान नहीं रहे

वरिष्ठ पत्रकार श्री महावीर सिंह चौहान। एक विलक्षण व्यक्तित्व। यायावरी मिजाज। पत्रकारिता में भिन्न पहचान बनाई उन्होंने। हाल ही उनका देहावसान हो गया। बतौर पत्रकार तकरीबन चालीस साल के काल खंड में शीर्ष पर रहे इस शख्स की विदाई के साथ एक ऐसा सितारा अस्त हो गया, जिसे वर्षों तक याद किया जाएगा। वे लंबे समय तक दैनिक नवज्योति से जुडे रहे। विशेष रूप से फिल्म पत्रकारिता में उनका कोई सानी नहीं। उनकी फिल्म समीक्षा की बडी विश्वसनीयता थी। इस सिलसिले में उन्होंने मुंबई के अनेक दौरे किए। इसके अतिरिक्त वे अजमेर के संभवतः एक मात्र पत्रकार थे, जिसने दूरस्थ गांव-ढाणियों के दौरे कर देहाती परिवेश की रिपोर्टिंग की। दिलचस्प बात है कि उन्होंने मोटर साइकिल पर लंबी यात्राएं कीं। यह उनके यायावरी मिजाज का द्योतक है। और इसी वजह से उनकी रिपोर्ताज शैली बहुत लुभाती थी। एक बार उन्होंने राजस्थान विधानसभा के सभी दो सौ नवनिर्वाचित विधायकों के साक्षात्कार लिए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने राजस्थान का चप्पा-चप्पा छान मार कर कैसे रिपोर्टिंग की होगी। उन्होंने दैनिक भास्कर को भी अपनी सेवाएं दीं। कुछ समय ब्यावर भी रहे। एक जमाने में उन्होंने विश्व प्रसिद्ध दरगाह शरीफ की रिपोर्टिंग में महारत हासिल कर ली थी। दरगाह के मामलात व रसूमात पर अनेक दिलचस्प स्टोरीज की। इतना ही नहीं वे बेहतरीन प्रेस फोटोग्राफर थे। इसी की बिना पर उन्होंने श्रमजीवी पत्रकार संघ के जरिए बर्लिन की यात्रा की। उनके पास ऐतिहासिक फोटो का जो संकलन रहा, कदाचित किसी और प्रेस फोटोग्राफर के पास रहा हो। उन्होंने मोगरा के नाम से एक साप्ताहिक समचार पत्र भी प्रकाशन किया। हंसमुख मिजाज की इस शख्सियत की फेन फॉलोइंग भी खूब रही है। तारागढ के जाने-माने बुद्धिजीवी जनाब सैयद रब नवाज जाफरी ने वाट्स ऐप पर लिखा है कि जनाब महावीर सिंह चौहान साहब (मिनी मनोज कुमार) के इंतेकाल की खबर पढ़ कर बहुत अफसोस हुआ। मैं उन से जब भी मिलता था तो उनको मनोज साहब कह कर ही बात शुरू करता था। वाकई उनकी शक्ल फिल्म अभिनेता मनोज कुमार से मिलती जुलती थी।

उल्लेखनीय बात ये है कि उनका पूरा परिवार पत्रकारिता को समर्पित रहा है। उनके पुत्र श्री मनीष सिंह चौहान दैनिक भास्कर में डिप्टी चीफ रिपोर्टर हैं व श्री मुकेश चौहान दैनिक नवज्योति में कार्यरत हैं।

अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

सोमवार, 21 अप्रैल 2025

जब तीर्थराज पुष्कर सरोवर का पानी बन गया घी

बताते हैं कि जब मुद्रा चलन में नहीं आई थी, तब वस्तु विनिमय किया जाता था। लोग एक दूसरे की जरूरत की वस्तुओं का आदान-प्रदान किया करते थे। प्रकृति भी इसी व्यवस्था पर काम करती है। वस्तु के बदले वस्तु मिलती है। कहते हैं न कि जो बोओगे, वही काटोगे। यानि कि प्रकृति में इस हाथ दे, उस हाथ ले वाला सिद्धांत काम करता है। दान की महिमा का आधार भी यही है। यज्ञों में समिधा की आहुति से वातावरण में तो सकात्मकता आती ही है, साथ ही अग्नि को समर्पित वस्तु से कई गुना प्राप्ति का भी उल्लेख है शास्त्रों में। 

प्रकृति के इस गूढ़ रहस्य का प्रमाण एक बार अजमेर में भी प्रकट हो चुका है। नई पीढ़ी को तो नहीं, मगर मौजूदा चालीस से अस्सी वर्ष की पीढ़ी के अनेक लोगों को जानकारी है कि पुष्कर में एक बंगाली बाबा हुआ करते थे। कहा जाता है कि वे पश्चिम बंगाल में प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे और संन्यास धारण करके तीर्थराज पुष्कर आ गए। वे कई बार अजमेर में मदार गेट पर आया करते थे और बोरे भर कर आम व अन्य फल गायों को खिलाया करते थे। वे कहते थे कि फलों पर केवल हमारा ही अधिकार नहीं है, गाय भी उसकी हकदार है।

बताया जाता है कि बंगाली बाबा के शिष्यों ने कोई पैंतालीस-पचास साल पहले पुष्कर में एक भंडारा आयोजित किया था। रात में देशी घी खत्म हो गया। यह जानकारी शिष्यों ने बाबा को दी और कहा कि रात में नया बाजार से दुकान खुलवा कर देशी घी लाना कठिन है। तब पुष्कर घाटी व पुष्कर रोड सुनसान व भयावह हुआ करते थे। बाबा ने कहा कि पुष्कर सरोवर से चार पीपे पानी के भर लाओ और कढ़ाह में डाल दो। शिष्यों ने ऐसा ही किया तो देखा कि वह पानी देशी घी में तब्दील हो गया। सब ने मजे से भंडारा खाया। दूसरे दिन बाबा के आदेश पर शिष्यों ने चार पीपे देशी घी के खरीद कर पुष्कर सरोवर में डाले। इसके मायने ये कि बाबा ने जो चार पीपे पानी के घी के रूप में उधार लिए थे, वे वापस घी के ही रूप में अर्पित करवा दिए। पानी कैसे घी बन गया, इसे तर्क से तो सिद्ध नहीं किया जा सकता, मगर प्रकृति का सारा व्यवहार लेन-देन का है, यह तो समझ में आता है। इसी किस्म का किस्सा कबीर का भी है, जब उन्होंने अपने बेटे कमाल के हाथों पड़ौस की झोंपड़ी से गेहूं की चोरी करवाई थी। उसकी चर्चा फिर कभी।


https://www.youtube.com/watch?v=TkNA6Qt_j-Q


अजमेर हिंदी बोलने वाला इकलौता शहर

यह बहुत दिलचस्प तथ्य है कि राजस्थान में इकलौता शहर अजमेर ऐसा है, जहां की आम बोली हिंदी है। अन्य सभी शहरों, यथा जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर इत्यादि में हालांकि हिंदी भी चलन में है, मगर आम बोलचाल की भाषा थोड़ा-थोड़ा अंतर लिए हुए राजस्थानी ही बोली जाती है। 

आम आदमी की बोली हिंदी का मतलब है कि अजमेर में आम आदमी अर्थात ठेले वाला, मोची, कूली, सब्जी बेचने वाला, चाय वाला, पान वाला, सभी आमतौर पर हिंदी में ही बात करते हैं। सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी ही बोली जाती है। इसके विपरीत जयपुर के सचिवालय जैसी जगह में भी काईं छे वाली शैली की राजस्थानी बोली जाती है। जोधपुर की राजस्थानी का स्वाद भिन्न है तो नागौर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा, भीलवाड़ा आदि का अलग-अलग। कहीं मारवाड़ी तो कहीं मेवाड़ी और कहीं हाड़ौती तो कहीं गुजराती का स्वाद लिए हुए बागड़ी।

ऐसा नहीं है कि अजमेर में राजस्थानी नहीं बोली जाती। बोली जाती है, मगर शहर के अंदरूनी हिस्सों, जैसे नया बजार, कड़क्का चौक, नला बाजार की गलियां इत्यादि। शहर के जुड़े ग्रामीण इलाकों में राजस्थानी बोली जाती है। अच्छा, हिंदी-हिंदी में भी फर्क है। अलवर गेट इलाके के कोली बहुल मोहल्लों में हिंदी कुछ और किस्म की है तो दरगाह व मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की हिंदी कुछ और तरह की। सीमावर्ती गांवों को छोड़ दें तो अधिसंख्य मुस्लिम तनिक उर्दू युक्त हिंदी बोलते हैं।

अजमेर की आम बोली हिंदी होने का कारण है। वस्तुतरू यह शहर विविध संस्कृतियों का संगम है। कभी इसकी अपनी विशेष संस्कृति रही होगी, मगर अब यह मिली-जुली संस्कृतियों वाला शहर है। रेलवे की इसमें विशेष भूमिका है। यहां बाहर से आ कर बसे सिंधी, जैन, सिख, ईसाई, पारसी आदि समुदायों के लोगों के बीच संवाद के लिए आरंभ से हिंदी का ही उपयोग किया जाता रहा है। इन समुदायों के अधिसंख्य लोग या तो राजस्थानी समझते नहीं, अगर समझ भी जाते हैं तो बोल नहीं पाते। हिंदी से अजमेर का गहरे जुड़ाव का ही परिणाम है कि जब देश में साक्षरता अभियान चल रहा था तो अजमेर पूरे उत्तर भारत में संपूर्ण साक्षर जिला घोषित हुआ था।


https://www.youtube.com/watch?v=3sScLZXwFsA&t=30s

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

कहां चली गई अजमेर की भूत बावड़ी !

1960 के दशक तक अजमेर में अनेक बावड़ियां चर्चित थीं - भांग बावड़ी, चांद बावड़ी, कुम्हार बावड़ी, कातन बाय, भाटा बाय, आम्बा बाय, आम वाला तालाब, कमला बावड़ी और भूत बावड़ी। अंग्रेजों के शासनकाल में कर्नल डिक्सन ने अजमेर में बीस से भी अधिक बावड़ियां खुदवाई थीं। जल स्रोतों के रूप में यहां चांदी का कुआं सबसे पुराना है। इसके साथ दूधिया कुआं और तुलसा जी की बेरी ने कई सालों तक अजमेर की प्यास बुझाई है।

तो बात है भूत बावड़ी की। यह दौलत बाग में थी। कुम्हार बावड़ी की तरह इसे भी शहर का विस्तार खा गया। यह बावड़ी बगीचे में प्रवेश द्वार के दाहिनी तरफ थी; तीन मंजिल की थी। हमने दो मंजिल के तिबारे देखे हैं। पहली मंजिल पानी में डूबी रहती थी और बरसात के समय दूसरी मंजिल तक पानी भर जाता था। गरमी के समय इन तिबारों मे लोग बैठे रहते थे। ऐसी किंवदंती फैली हुई थी कि रात के वक्त यहां एक भूत रहता था। भूतिया हलवाई जैसे किस्से इस बावड़ी के बारे मे भी प्रचलित थे। हमने लाखन कोठरी निवासी रामचंद जी, छोटे लाल जी आदि से ऐसे किस्से सुने हैं।
यहाँ लोग नहाते थे लेकिन इसका पानी नहीं पीते थे। बाद में यहां चिड़ियाघर शुरू किया गया। तब बावड़ी को बूर दिया; यहां सपाट मैदान हो गया। उन दिनों बगीचे में प्रवेश द्वार के बाईं तरफ कचरा डाला जाता था; कचरे के ढेर लग जाते थे। थोड़े समय बाद चिड़ियाघर हटा दिया और यहां जलदाय विभाग का एक कार्यालय खोला गया। उधर कुम्हार बावड़ी पर लकड़ी की टाल बन गयी; फिर आईस फैक्ट्री खुल गयी।
खाईलैंड की खाई भी देखते-देखते पाट दी गई। किसी वक्त यहां रोडवेज बस स्टैंड था। प्राइवेट बस स्टैंड मैजिस्टिक पर प्लाजा सिनेमा के बीच में था।

रविवार, 13 अप्रैल 2025

कभी फिल्मी पोस्टर लगा करते थे यहां

अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार जनाब मुजफ्फर अली ने फिल्मी पोस्टर्स पर एक बहुत दिलचस्प स्टोरी लिखी है। इसे सुन कर आपको बहुत अच्छा लगेगा। पेश है वह स्टोरी 

कभी कभी बचपन में देखी- सुनी जगह या बातें हमेशा के लिए ज़ेहन में बैठ जाती हैं और फिर वक्त बदलने पर भी उस जगह का पुराना स्वरुप दिमाग में रहता है। ऐसी ही कुछ जगह अजमेर में बचपन से किशोर अवस्था तक आते आते देखी, वो थी अजमेर के सिनेमाघरों के फिल्मी पोस्टरों के चिपकने की जगह। अजमेर में छह सिनेमाघर हुआ करते थे और सभी सिनेमाघरों के पोस्टरों के लिए जगह तय थी कि किस जगह पर लगने वाला पोस्टर कौन से सिनेमाघर में चलने वाली फिल्म का है। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार पर कभी अजंता सिनेमा हॉल में लगी या लगने वाली फिल्मों के बड़े पोस्टर लगा करते थे। सत्तर के दशक की बात है। उन दिनों दो तरह के पोस्टर दीवारों पर लगा करते थे। एक विद्युत पोल पर लगने वाले क्यिोस्क साईज में और दूसरे बड़े चौड़े होर्डिंग साइज़ में। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार बड़ी और लंबी थी इसलिए वहां बड़े साइज के पोस्टर ही लगा करते थे। फिर देखने में आया कि फिल्मी पोस्टर के साइज में सीमेंट का प्लास्टर कर जगह मुकर्रर कर दी गई। उस प्लास्टर की मोटी परत पर पोस्टर चिपकाए जाने लगे। 

बड़े साइज के पोस्टर मदार गेट पर फल बेचने वालों की दुकानों के पीछे, कबाडी बाजार की दीवार पर मृदंग सिनेमा में लगी या लगने वाली फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। पड़ाव में पुराने कपड़े बेचने वालों के पीछे की दीवार पर एक कोने में अंजता फिर मैजिस्टिक, प्रभात, श्री और दूसरे कोने में मृदंग सिनेमा के बड़े पोस्टर लाइन से लगा करते थे। फव्वारा चौराहे पर भी अंजता और प्रभात सिनेमा की फिल्मों के पोस्टर लोहे के फ्रेम बना कर उस पर चिपकाया करते थे। सोनी जी की नसियां के सामने प्रभात की ओर जाने वाले रास्ते के कोने में प्रभात सिनेमा के बड़े पोस्टर लोहे के फ्रेम में लगते थे जो आगरा गेट से आने वालों को दूर से दिख जाते थे। आगरा गेट चौराहे पर चर्च की दीवार के सहारे भी लोहे के फ्रेम सडक़ पर लगे थे, जिन पर प्रभात और अंजता के फिल्मी पोस्टर लगते थे। मदार गेट पर फूल बेचने वालों के पीछे की कस्तूरबा अस्पताल की दीवार पर सिर्फ मैजिस्टिक सिनेमा में लगी फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। उसरी गेट के बाहर की दीवार पर प्रभात और मृदंग सिनेमा के पोस्टर लगते थे। तब शहरी आबादी का अधिक विस्तार नहीं था, और फिल्मी पोस्टर शहर के अंदरूनी इलाकों में ही लगते थे।


https://www.youtube.com/watch?v=hDE7cv8pqMo


लोकगीत व मुहावरों में अजमेर

यह सामग्री अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक से ली गई है, जिसमें अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य का विस्तार से वर्णन मौजूद है।

राजस्थान के लोकगीत व मुहावरों में अजमेर का उल्लेख कई जगह आता है। यथा प्रसिद्ध लोक कथा ढोला-मरवण की पंक्तियां देखिए, जिनमें आनासागर, पुष्कर व बीसला तालाब की जिक्र हुआ है-

ढोला कंवर जी आनासागर

पछ कयिजे बीसल्यो

पीठ पर पोखर जी हिलोला खाय

बेगातो आईजो धण का साहिबां।

इसी प्रकार राजस्थान की मौसम संबंधी एक लोकोक्ति में भी अजमेर का उल्लेख प्रसिद्ध है, जिसमें बताया गया है कि गर्मी का मौसम अजमेर में बिताने लायक है। कदाचित मुगल शासकों और ब्रिटिश हुक्मरानों को अजमेर मौसम मुफीद होने के कारण भी अजमेर उनकी गतिविधियों का केन्द्र रहा-

सियालो खाटू भलो, उन्नाळो अजमेर

नागाणो नित को भलो सावण बीकानेर

अजमेर सांप्रदायिक सौहार्द्र की एक अनूठी बात देखिए कि धर्मांतरण से मुस्लिम बने अनेक वर्गों के एक गीत में पुरातन सांगीतिक संस्कार मौजूद है-

ठंडा रहजो म्हारा पीर दरगा में

नित का चढ़ाऊं थारे सीरणी

देसूं थाने जोड़ा सूं जात

ठंडा रहीजो म्हारा पीर दरगा में

झोली भराऊं कोडिय़ां

घणी घणी करूं खैराद

ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में

साथ जिमाऊं औलिया

कोई पांच पचीस फकीर

ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में। 

इन पंक्तियों में साथ जिमाऊं, ठंडा रहिजो आदि शब्द पारंपरिक राजस्थानी संस्कृति की याद दिलाते हैं। ख्वाजा साहब और मदार साहब की मान्यता कितनी रही है, इसका साक्षात प्रमाण है राजस्थानी भाषा के ही एक लोक गीत में उनका उल्लेख-

मदारजी के लेचल ओ बलमा

ख्वाजाजी के ले चल ओ बलमा

सासू तो नणदल पूछण लागी

कठा सूं ल्याई ललवा ने

मदार जी के ले चल ओ बलमा

दरगा में जोड़ा की जारत बोली

बठा सूं ल्याई ललवा ने।

यहां के इतिहास में अजयपाल जोगी का अप्रतिम स्थान है। अनेक इतिहासकार मानते हैं कि अजमेर के प्रथम शासक अजयराज ही अजयपाल जोगी थे। उनके प्रति लोगों में कितनी आस्था रही है, यह इस लोकोक्ति से जाहिर हो जाती है-

अजयपाल जोगी, काया राख निरोगी।


https://www.youtube.com/watch?v=3zpOxLo2uEE

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025

राजनीति इंसानियत भी छीन लेती है?

राजनीति में न दोस्ती और न ही दुश्मनी स्थाई होती है। ऐसा कहा जाता है। है भी। यानि कि राजनीतिक संबंध अस्थाई होते हैं। असल में वह नफे-नुकसान का मामला है। उनमें सामान्य मानवीय व्यवहार व सदाशयता का कोई मूल्य नहीं होता। चलो जैसा भी है, ठीक है। मगर क्या राजनीतिक व्यक्ति निरपेक्ष रूप से भी मानवीय व्यवहार भूल जाता है, इसका अंदाजा मुझे नहीं था। इसका साक्षात्कार हाल ही मेरे एक मित्र ने कराया, जो कि राजनीति में हैं, युवक कांग्रेस के जाने-माने नेता रहे हैं और उनसे मेरे संबंध राजनीति की वजह से नहीं, बल्कि निजी रहे। मैं उनका बहुत बहुत आभारी हूं कि उन्होंने मुझे इस अनुभव से गुजारा। उनके नाम का जिक्र इसलिए नहीं करूंगा, क्योंकि यह अनुभव लिखने का प्रयोजन उनको टारगेट करना नहीं, बल्कि महज अपना अनुभव साझा करना है। वे भले ही अपनी मर्यादा से च्युत हो गए, मगर मुझे अपनी मर्यादा में ही रहना है।

बात थोडी सी पुरानी है। हुआ यूं कि मैं यूआईटी के पूर्व अध्यक्ष श्री धर्मेश जैन के गांधी भवन के सामने रेलवे केम्पस में उद्घाटित रेस्टोरेंट में शुभारंभ समारोह में मौजूद था। मैं अपने एक और मित्र, जो कि भाजपा में हैं, के साथ खड़ा था। मैंने देखा कि युवक कांग्रेस के नेता रहे मित्र ने समारोह स्थल में एंट्री ली है। मैने अपने भाजपाई मित्र को बताया कि देखो, वो जो शख्स हैं, मेरे अभिन्न मित्र हैं। उनसे मेरे गहरे ताल्लुक हैं। इसकी जानकारी कांग्रेस के सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी है। मैं इंतजार कर रहा था कि वे निकट आएं तो उनसे मुलाकात हो। जैसे ही वे मेरे सामने आए तो उन्होंने जो हरकत की तो मैं सन्न रह गया। उनकी नजरें मेरी नजरों से टकराईं। नजरों की मात्र एक पल मुलाकात के बाद उन्होंने हठात अपनी नजरें हटा लीं और आगे बढ़ गए। वह पल मेरे जेहन में तीर की तरह घुस गया। मैं समझ ही नहीं पाया कि ये क्या, क्यों व कैसे हो गया? मेेरे भाजपाई मित्र के चेहरे ने भी सवालिया निशान की आकृति ले ली। मैं निरुत्तर था। निरुत्तर क्या, बहुत आहत था। कुछ क्षण के लिए मेरी जुबान पत्थर की सी हो गई। अपने आप को संभाला। जुबान से सिर्फ यही निकला- कमाल है, उसने मुझे पहचानने से ही इंकार कर दिया। इतना खास मित्र। कभी कोई विवाद नहीं हुआ, फिर भी ये व्यवहार? आखिर ये क्या है? मेरे भाजपाई मित्र ने समझाया कि हो सकता है कि जब आपकी घनिष्ठ मित्रता रही हो, तब आप उसके के लिए बहुत उपयोगी रहे होंगे। आज उसके लिए आपकी उपयोगिता नहीं होगी। तब आप भास्कर में रहे होंगे, अब नहीं हैं। आम तौर पर सभी राजनीतिक लोग ऐसे ही होते हैं। मतलब की दोस्ती रखते हैं। आपको गलतफहमी हो गई कि वह सच्ची दोस्ती थी। फिर भी, केवल राजनीतिक संबंध हों तो भले ही वे ऐसा व्यवहार करें तो समझ में आता है, मगर वह अगर घनिष्ठ मित्र रहा है तो उसका ऐसा व्यवहार वाकई सोचनीय है। इसे अपने दिल पर न लीजिए। यही दुनिया है। उनके इस कथन में साथ मेरी बुद्धि पर पड़ा भ्रम का पर्दा हट गया।  

बहरहाल, वह पल मुझे आज भी याद आने पर बहुत तकलीफ देता है। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं। उलटा मैं उनका शुक्रगुजार हूं। कितना बेशकीमती अनुभव उन्होंने मुझे दिया है। भगवान उनका भला करे। 

कुछ इसी किस्म की घटनाएं पहले भी हुई हैं, अलग अंदाज में। उनका जिक्र फिर कभी। मगर ये घटनाएं पहले से विरक्त मन को दुनिया से और अधिक विमुख किए देती हैं।


https://www.youtube.com/watch?v=w1jaSpp54o8