गुरुवार, 19 जून 2025

कांग्रेस से क्यों विमुख होते जा रहे हैं सिंधी नेता?

यह आम धारणा है कि अजमेर में अधिसंख्य सिंधी मतदाता भाजपा मानसिकता के हैं, लेकिन एक जमाने में भूतपूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के प्रभाव से काफी संख्या में सिंधी कांग्रेस से जुडे हुए थे। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने हालांकि स्वर्गीय श्री नानकराम जगतराय को टिकट दिया और वे जीते भी, मगर उसके बाद हुए चुनाव में टिकट काट दिया गया, नतीजतन वे बागी हो गए। परिणामस्वरूप श्री नरेन शहाणी भगत मात्र ढाई हजार वोटों से हार गए। भाजपा के श्री वासुदेव देवनानी का अजमेर में पदार्पण हुआ और उसके बाद लगातार चार बार जीते। वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं। हालांकि बाद में भगत को नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाया गया था, मगर कांग्रेस राज में कथित षडयंत्र के चलते वे भ्रष्टाचार के मामले में फंस गए। उन्होंने बाकायदा साजिश का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड दी। बस इसी के साथ सिंधी समुदाय में कांग्रेस विचारधारा के नेता व कार्यकर्ता हतोत्साहित होते गए। बावजूद इसके कुछ नेताओं ने हिम्मत नहीं हारी। श्री नरेश राधानी ने टिकट हासिल करने के लिए एडी चोटी का जोर लगा दिया, मगर उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई। उस जमाने के सारे दावेदारों में वे इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्हें टिकट हासिल करने की पतली गलियों का अच्छी तरह से पता था और उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी। मगर कांग्रेस को चूंकि सिंधी को टिकट देना ही नहीं था, इस कारण उनकी कवायद किनारे तक पहुंचने के बाद भी कामयाब नहीं हो पाई। वे समझ गए और पूर्णकालिक पत्रकारिता आरंभ कर दी। फिर आए दीपक हासानी। प्रोजेक्शन तो था कि टिकट उनकी फायनल है, मगर उनके साथ भी अंततः धोखा हो गया। हालांकि उन्होंने दूसरी बार भी कोशिश की, मगर सफलता हासिल नहीं हो पाई। पिछले कुछ दिन से निष्क्रिय से हैं। पिछले पांच बार से टिकट के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ लाल थदानी ने पिछले चुनाव में तो ढंग से दावेदारी ही नहीं की। उनकी गिनती सिंधी समाज में सर्वाधिक सक्रिय नेताओं में होती रही है। आज कल हिंदूवादी मानसिकता के कार्यक्रमों में शिरकत कर रहे हैं। यानि कि कांग्रेस से लगभग किनारा कर लिया है। वस्तुतः कांग्रेस राज में उन्हें सस्पेंशन का दर्द भोगना पडा। अब बात करते हैं, स्वामी अनादि सरस्वती की। बडे हाई प्रोफाइल तरीके से कांग्रेस में लाया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनको कांग्रेस ज्वाइन करवाई। उनको टिकट मिलने का तनिक विरोध होते ही उन्हें साइड में बैठा दिया गया। बाद में खैर खबर ही नहीं ली। उनका कोई उपयोग नहीं किया गया। अब वे हिंदूवादी संगठनों के कार्यक्रमों में भाग ले रही हैं। कुल जमा ऐसा समझ में आता है कि कांग्रेस की नीति व रवैये के कारण सिंधी नेता विमुख होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं भूतपूर्व केबिनेट मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के जमाने के कई कांग्रेस समर्थकों की औलादें नेतृत्व के अभाव में भाजपा में जा चुकी हैं। अब यह तथ्य सुस्थापित हो चुका है कि सिंधियों की नाराजगी के कारण कांग्रेस अजमेर की दोनों सीटों पर पिछले चार चुनावों से लगातार हार रही है। सुना है अब सिंधी मतदाताओं को लुभाने के लिए तीन विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। एक शहर कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया जाए। दूसरा अगर मेयर के चुनाव डायरेक्ट हों तो किसी सिंधी को प्रत्याशी बना दिया जाए। तीसरा परिसीमन के बाद संभावित तीसरी सीट का टिकट सिंधी को दिया जाए।


रविवार, 15 जून 2025

छोटा सा गांव टहला बना शक्तिकेन्द्र

 मातृभूमि की अनूठी पूजा की औंकार सिंह लखावत ने

अजमेर के निकटवर्ती नागौर जिले का छोटा सा टहला गांव। गत दिनों चहल-पहल के आगोश में था। प्रदेश भर के छोटे-बडे नेताओं की आवाजाही से आबाद। एक जागृत शक्ति केन्द्र का आभास। मौका था राजस्थान धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत की धर्म पत्नी के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने का। दिनभर श्रद्धालुओं का तांता। आवभगत में कोई कमी नहीं। हर एक को आते ही पानी की बोतल। तुरंत बाद चाय की प्याली। भीषण गर्मी से निजात दिलाने के लिए दो बडे कूलर। लखावत बैठक के एक कोने में मुड्डे पर बैठे हुए दिखाई देते हैं। शांत, अविचल। धीर-गंभीर चहरे के भीतर से झांकता जीवनसाथी के विछोह का दर्द। हर खास को अपने पास सोफे पर बिठाते हैं। सुनते सबकी हैं, खुद चंद शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। पूरे बाहर दिन सुबह से लेकर शाम तक लगातार बैठना कितना कठिन है, यह वे ही समझ सकते हैं। कौतुहल होता है कि वे चाहते तो शोक बैठक अपनी कर्मस्थली अजमेर में भी रख सकते थे, जहां कहीं अधिक गुना लोग संवेदना व्यक्त करने आते, मगर उन्होंने इसके लिए चुना अपनी मातृभूमि को। कदाचित धर्मपत्नी की मृत्युपूर्व इच्छानुसार या पारिवारिक परंपरा के निर्वहन की खातिर। और उससे भी अधिक जन्म देने वाली भूमि की पूजा की खातिर। भाव भंगिमा में मातृभूमि के प्रति समर्पण की संतुष्टि साफ झलकती है। कुछ इस तरह जताया आभारः-

https://www.facebook.com/photo?fbid=10012922488797444&set=a.893845674038550

शुक्रवार, 6 जून 2025

लंबी राजनीतिक यात्रा के बाद बी पी सारस्वत को मिला यथोचित सम्मान

अजमेर जिले में लंबी राजनीतिक यात्रा में अनेक उतार-चढाव वाले पडावों से गुजरने के बाद अंततः प्रो. भगवती प्रसाद सारस्वत को यथोचित सम्मान मिल गया। उन्हें कोटा विश्वविद्यालय का कुलगुरू बनाया गया है। वे महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के पूर्व कॉमर्स विभागाध्यक्ष व पूर्व डीन रहे हैं। हालांकि उनकी मनोकामना विधायक अथवा सांसद बनने की रही, मगर जिले के जातिगत समीकरणों की मजबूरी के चलते बहुत कवायद के बाद भी ऐसा हो नहीं पाया। इस दरम्यान पार्टी को जिलेभर में मजबूत करने का दायित्व निभाया, मगर प्रदेश भाजपा के अंदरूनी पेचोखम इतने उलझे रहे कि पात्रता के बाद भी उन्हें कभी टिकट नहीं मिल पाया। अब जा कर उनकी शैक्षिक योग्यताओं का प्रतिफलन कुलगुरू के रूप में घटित हुआ है।

जब उन्हें देहात जिला भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई तो यह माना जाने लगा कि उनकी किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है। तीन विधानसभा चुनावों में वे ब्यावर सीट के दावेदार रहे, उसके बाद अजमेर उत्तर अथवा केकड़ी से प्रबल दावेदार थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला। देहात जिले की छहों सीटों पर पार्टी की जीत ने यह साबित हो गया कि सांगठनिक लिहाज से उनकी कार्यशैली अद्भुद है। जिले में पूरी निष्पक्षता के साथ शानदार सदस्यता अभियान चलाने का श्रेय भी उनके ही खाते में दर्ज है। वे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी लोगों में माने जाते हैं।  

वस्तुतः वे मूल्य आधारित विचारधारा के पोषक हैं और मूल्यों की रक्षा के कारण ही उठापटक की राजनीति में अप्रासंगिक से नजर आते हैं। नैतिक मूल्यों की रक्षा की खातिर ही उन्होंने भाजपा के शिक्षा प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष पद को त्याग दिया, हालांकि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे हैं। पिछली अशोक गहलोत सरकार के दौरान विहिप नेता प्रवीण भाई तोगडिया के त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम के दौरान उनको सहयोग करने वालों में प्रमुख होने के कारण उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ था।

विद्यार्थी काल से ही वे संघ और विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। वे सन् 1981 से 86 तक परिषद के विभाग प्रमुख रहे। वे सन् 1992 से 95 तक संघ के ब्यावर नगर कार्यवाह रहे। वे सन् 1997 से 2004 तक विश्व हिंदू परिषद के प्रांत मंत्री रहे हैं। वे सन् 1986 से 97 तक राजस्थान यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अनेक पदों पर और 2001 से 2003 तक अजमेर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी चौदह पुस्तकें और बीस पेपर्स प्रकाशित हो चुके हैं। उनके मार्गदर्शन में विद्यार्थियों ने पीएचडी की है। वे चीन, सिंगापुर, श्रीलंका व पाकिस्तान आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं।

उनका जन्म जिले के छोटे से गांव ब्रिक्चियावास में सन् 1960 में हुआ। उच्च शिक्षा पाने के बाद वे ब्यावर स्थित राजकीय सनातन धर्म महाविद्यालय में लेक्चरर बने। लंबे समय तक नौकरी करने के बाद महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बनाए गए। पदोन्नति के बाद प्रोफेसर बने। बाद में वे कॉमर्स विभाग के विभागाध्यक्ष और डीन बनाए गए। ग्यारह साल तक पीटीईटी (प्री. बी.एड़ परीक्षा) के कोर्डिनेटर बने। यह विश्वविद्यालय तब पीटीईटी की नोडल एजेंसी रहा। एक बार राज्य सरकार की ओर से रजिस्ट्रार पद नहीं भरा गया तो उनको तत्कालीन कुलपति ने रजिस्ट्रार का दायित्व सौंपा, जिसका निर्वहन करते हुए उन्होंने अनेक उपब्धियां हासिल कीं।

शुक्रवार, 30 मई 2025

बहुत जीवट वाले थे पत्रकार श्री निर्मल मिश्रा

अजयमेरु प्रेस क्लब के पूर्व महासचिव और वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री निर्मल मिश्रा बहुत जीवट वाले पत्रकार थे। पिछले कुछ साल से अस्वस्थ थे, मगर तब भी कुछ नया करने को लालायित थे। कुछ दिन पहले ही उनका फोन आया। आधे घंटे बात की। कहा कि कुछ ऐसा करना चाहते हैं, कि लोग मान जाएं कि हम भी किसी से कम नहीं। फाइनेंसर भी उपलब्ध है। न्यूज चैनल आरंभ करना चाहते हैं। सहयोग की अपेक्षा थी उनको कि उसका स्वरूप केसा हो? कदाचित अस्वस्थता के कारण उनका संकल्प पूरा न हो पाया। गत दिवस उनका देहावसान हो गया।

उन्होंने पत्रकारिता की यात्रा 1984 में दैनिक आधुनिक राजस्थान से आरंभ की। तब मैं इंचार्ज था। वे बहुत महत्वाकांक्षी थे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से अजमेर आ कर उन्होंने अपने आपको स्थापित करने के लिए बहुत मेहनत की। आरंभिक दिनों में उनका कहना था कि वे बहुत उंचाई को छूना चाहते हैं। मुझे चुनौती देते थे कि आप तो यहीं रह जाओगे, मैं नेशनल लेवल तक जा कर चैन लूंगा। उन्होंने दैनिक न्याय, दैनिक नवज्योति व राजस्थान पत्रिका में भी काम किया। आखिर में दैनिक भास्कर से जुडे रहे। खोजपूर्ण पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने खास पहचान बनाई। कम लोगों को ही पता होगा कि अजमेर के बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियां व छायाचित्र सबसे पहले उनके हाथ लगे थे। उन्हें प्रकाशित करने में कुछ बाधाएं थीं। बाद में दूसरे पत्रकारों के हाथ लगे। ब्लैकमेल कांड पर कार्यवाही के लिए सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाने वाले समूह में उनकी अहम भूमिका थी। क्राइम रिपोर्टिंग पर उनकी विशेष पकड थी। राजनीति व प्रशासन के क्षेत्र में भी खूब हाथ आजमाये। उन्होंने दैनिक नवज्योति में अजमेर विशेष पेज के लिए वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी के निर्देशन में अनेक खोजपूर्ण व दिलचस्प न्यूज आइटम दिए। दैनिक भास्कर में भी कई महत्वपूर्ण स्टोरीज कीं। वे राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ में भी सक्रिय रहे। पार्टटाइम पत्रकारिता करने वाले कर्मचारी नेता स्वर्गीय श्री सत्येश्वर प्रसाद शर्मा उन्हें पुत्रवत मानते थे। उनकी अच्छी खासी मित्र मंडली थी। राजनीतिक नेताओं भी गहरे ताल्लुकात थे। पत्रकार मित्र मंडली में सबसे छोटे होने के कारण सबके प्रिय थे और उनके छोटे-मोटे हठ को पूरा करने में खुशी महसूस करते थे। करीबी दोस्तों को सहसा यकीन ही नहीं हो रहा कि वे हमारे बीच नहीं रहे। कुल जमा अजमेर के पत्रकार जगत ने बहुत प्यारा, यारबाज व दिलेर पत्रकार खो दिया है। उनके जैसे यारबाज शख्स कम ही हैं, खासकर पत्रकार जगत में। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनके निधन पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है। ईश्वर उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें। साथ ही उनके परिवार को इस वज्रपात को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

गुरुवार, 29 मई 2025

अग्रणी समाजसेवी थे श्री सुनील भुटानी

अजमेर में सिंधी समाज के सर्वाधिक सक्रिय व अग्रणी समाजसेवी थे स्वर्गीय श्री सुनील वीरूमल भुटानी। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उन्होंने 1992 में समाजसेवा के लिए सिंधु समिति का गठन किया था। उस जमाने के चंद एनर्जेटिक युवकों में उनकी गिनती हुआ करती थी। उनके साथ एक मजबूत टीम सक्रिय थी। गजब की संगठन क्षमता थी उनमें। उन्हीं के अन्य साथियों ने बाद में अन्य सामाजिक संस्थाओं का गठन किया। वे सिंधियत के लिए समर्पित रहे। उनकी परिकल्पना अजमेर के समूचे सिंधी समाज को जोडने वाले सिंधियत मेले के रूप में साकार हुई। हालांकि पिछले कुछ सालों से स्वास्थ्यगत और व्यावयायिक कारणों से वे अधिक सक्रिय नहीं रह पाए, मगर अनेक आयोजनों में उनका मार्गदर्शन लिया जाता रहा। उनमें कमाल की पॉजिटिव एनर्जी थी और अस्वस्थता को उन्होंने कभी हावी नहीं होने दिया। वे सिंधी कौंसिल ऑफ इंडिया के राजस्थान चैप्टर के सुप्रीम काउंसलर भी थे। इसके अतिरिक्त आदर्श विद्या समिति व एचकेएच विद्या समिति के संयुक्त सचिव रहे। पुष्कर झूलेलाल घाट विकास समिति से भी जुडे रहे। उनकी दिलचस्पी राजनीति में भी रही। वे भूतपूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के करीबी थे। अजमेर नगर परिषद के चुनाव में अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष श्री नरेन शहाणी के बहुत अनुनय व आग्रह पर कांग्रेस के एक मात्र सिंधी प्रत्याशी बनाए गए, मगर भाजपा मानसिकता के सिंधियों ने उनका साथ नहीं दिया। कांग्रेस के इस प्रयोग से यह लगभग स्पष्ट हो गया कि भाजपा से जुडे सिंधी कांग्रेस के सिंधी प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया करते।

वे सुपरिचित कर कानून सलाहकार थे। उनका जन्म 5 फरवरी 1962 को हुआ। उनके पूर्वज सिंध के सेवण में रहते थे। उन्होंने 1985 में एम कॉम की डिग्री जीसीए से हासिल की और अपने मामा जाने-माने समाजसेवी श्री मोतीलाल ठाकुर के साथ टैक्स प्रैक्टिस आरंभ की। 2002 से उन्होंने अपना ऑफिस आरंभ किया। उनके पास अच्छा क्लाइंटेज था। प्रमुख व्यवसायी उनसे सलाह लिया करते थे। उनके चार भाई व चार बहिनें हैं। उनका विवाह 24 मार्च 1996 को हुआ। उनके एक पुत्र व एक पुत्री है। ज्ञातव्य है कि उनके जीजाजी श्री जगदीश वच्छानी समाज के एक स्तम्भ हैं। स्वामी श्री हिरदाराम जी के आशीर्वाद से प्रशासन पर गहरी पकड और एनआरआई से घनिष्ठ संबंधों के चलते समाजसेवा के अनेक प्रकल्प संचालित कर रहे हैं। स्वर्गीय श्री भुटानी के निधन से समाज को जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति असंभव है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


शुक्रवार, 23 मई 2025

जियारत व पूजा भी कोई खबर है?

किसी भी व्यक्ति का दरगाह जियारत करना अथवा तीर्थराज पुश्कर की पूजा अर्चना करना उसका पूर्णतः वैयक्तिक कृत्य है। यह उसकी व्यक्तिगत आस्था का मामला है, जिससे आम जनता का कोई सरोकार नहीं होता। बावजूद इसके लंबे अरसे से वीवीआईपी, वीआईपी, नेता-अभिनेता आदि जियारत करता है अथवा पुश्कर सरोवर की पूजा करता है तो उसकी विस्तृत खबर छपती है। क्या उस खबर की कोई उपयोगिता है?

उसमें किसने जियारत करवाई, किसने तवरूख भेंट किया, किसने पूजा करवाई, कौन कौन मौजूद थे, आदि का जिक्र होता है। सवाल उठता है कि आम पाठक की क्या इसको जानने में रूचि होती है। वह हैडिंग पढ कर उसे छोड देता है या पूरी खबर पढता है। हां, अगर जियारत व पूजा के दौरान वह कोई बयान देता है तो वह जरूर खबर है, मगर केवल जियारत व पूजा खबर कैसे हो सकती है। होता अमूमन ये है कि जब भी कोई दरगाह षरीफ में आता है या तीर्थराज पुश्कर की पूजा करता है तो मीडिया उसे घेर लेती है और संबंधित व ताजा मामलों में उसका बयान लेती है, जो कि खबर बन जाती है। मुझे ख्याल आता है कि दैनिक भास्कर अजमेर के तत्कालीन स्थानीय संपादक श्री जगदीष षर्मा ने एक व्यवस्था बनाई थी कि जियारत व पूजा की कोई खबर नहीं जाएगी। यदि जाएगी भी तो दो तीन लाइन में, जानकारी मात्र के लिए। ताकि यह पता रहे कि अमुक विषिश्ट व्यक्ति यहां आया था। खबर तभी बनाई जाए जब वह कुछ बयान दे। उसमें भी जियारत व पूजा की जानकारी दो तीन लाइन में होनी चाहिए। यह व्यवस्था काफी दिन चली। 

अब बात करते हैं कि जियारत व पूजा की खबर बनाने की परंपरा कैसे षुरू हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में अखबार वालों ने विषिश्ट व्यक्ति के दरगाह व पुश्कर आने पर जियारत व पूजा करवाने वालों से खबर ली। बाद में इसका उलट हो गया। खबर अखबार के दफ्तर में भी आने लगी। यह ठीक वैसा ही है कि अमुक वकील ने अमुक मामले में अमुक को जमानत दिलवाई या बरी करवाया, और उसकी खबर बन जाए। अब तो जियारत व पूजा करने वाले स्वयं भी खबर लगवाने में रूचि लेते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=vvHkmnZ2HJ0


शनिवार, 17 मई 2025

आजादी के बाद अजमेर नगर पालिका से निगम के मुखिया

1947-48ः श्री हेमचंद सोगानी

1948-49ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1949-51ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1951ः श्री विशम्बरनाथ भार्गव

1951-52ः श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा

1952ः श्री जे. के. भगत

1953 व 54 में प्रशासकों ने व्यवस्था संभाली

1954-55ः श्री दुर्गादत्त उपाध्याय

1955-57ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग

1957-58ः श्री ज्वालाप्रसाद शर्मा

1959-60ः श्री देवदत्त शर्मा

1960-61ः श्री माणकचंद सोगानी

1961 से 69 तक प्रशासकों ने व्यवस्थाएं संभाली

1970ः श्री एम.के. नाथूसिंह तंवर

1971ः श्री माणकचंद सोगानी

1973ः डॉ. एम. एल. बाघ

1973 से 90 तक प्रशासकों ने काम संभाला

1990-95ः श्री रतनलाल यादव

1995-2000 श्री वीरकुमार

24.1.2000-9.4.2000: श्रीमती विद्या कमलाकर जोशी (कार्यवाहक)

10.4.2000-28.8.2000: श्री सुरेन्द्र सिंह शेखावत

28.8.2000-22.12.2003ः श्रीमती अनिता भदेल

22.12.2003-31.12.2005ः श्रीमती सरोज देवी जाटव

2005-10ः            श्री धर्मेन्द्र गहलोत

सन् 2008 में भाजपा शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पहल पर नगर परिषद को नगर निगम का दर्जा दे दिया गया। इसकी घोषणा उन्होंने अजमेर में ही की। वे यहां राज्य स्तरीय गणतंत्र समारोह में शिरकत करने आई थीं। इस लिहाज से श्री धर्मेन्द्र गहलोत को पहला मेयर बनने का गौरव हासिल हुआ। हालांकि जनसंख्या संबंधी औपचारिकता बाद में कुछ गांव मिला कर की गई।

अगस्त 2010 में करीब बीस साल भाजपा का कब्जा रहने के बाद पहली बार कांग्रेस के नए चेहरे वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व पार्षद स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र श्री कमल बाकोलिया अजमेर नगर निगम के पहले निर्वाचित मेयर बने। उन्होंने भाजपा के डॉ. प्रियशील हाड़ा को पराजित किया।

2015 में नई व्यवस्था के तहत मेयर का चुनाव पार्षदों में से किया गया और एक बार फिर धर्मेन्द्र गहलोत मेयर बने

2020 में भाजपा की श्रीमती ब्रजलता हाडा मेयर चुनी गई

गुरुवार, 15 मई 2025

आज भी जिंदा हैं सबा खान

सुर्खी पढ़ कर आपका चौंकना लाजिमी है। मगर मेरी कलम की कोख से यह सुर्खी इसलिए पैदा हुई, क्योंकि मेरी नजर में वे आज भी जिंदा हैं। चार साल बीत गए। एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं थीं। मगर वे आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं। फेसबुक अटा पडा है, उनको याद किया जा रहा है। उनका जिक्र करते हुए उनके नाम के साथ मरहूम इसलिए नहीं जोडूंगा, चूंकि उनके भीतर जो जज्बा था, वो शहर में गिनती के जिंदा लोगों के जेहन में धड़क रहा है। वह कभी नहीं मरा करता। सबा ने जो पहचान बनाई, वह उनके अलविदा होने के बाद भी जिंदा है। मेरी नजर में वे मर्द औरत थीं। बिंदास। उनके कांधे पर चस्पा उन तमगों का जिक्र करना बेमानी सा है, जिसके बारे में हर किसी को पता है कि वे राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रदेश महासचिव थीं, अजमेर शहर जिला महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में अग्रणी संस्था प्रिंस सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष और जवाहर फाउंडेशन की मजबूत स्तंभ थीं। हां, इतना जरूर कहना पड़ेगा कि वे एक जिंदादिल इंसान, हरदिल अजीज और खुश मिजाज थीं। हर किसी से बड़े खुलूस के साथ मिला करती थीं, मानों बरसों जी जान-पहचान हो। असल में वे भरपूर सेहतमंद थीं। गर कोरोना के शिकंजे में नहीं आतीं तो खूब जीतीं। क्या यह सरासर नाइंसाफी नहीं है कि कोरोना ने कम उम्र में ही जबरन उनकी सांसें रोक दीं? बिना यह सोचे कि ऐसे इंसानों की अजमेर को कितनी दरकार है?

फोटो कांग्रेस नेता सौरभ यादव ने अपनी फेसबुक वाल पर साझा की है। कदाचित सबा खान की यह आखिरी फोटो है।

अब जरा, उनकी शख्सियत के बारे में। उनमें गजब की फुर्ती थी, चुस्ती थी। यानि बिजली जैसी चपलता। तभी तो उनकी साथिनें पूछा करती थीं कि कौन सी चक्की का आटा खाती हो। कांग्रेस में तकरीबन दस साल शहर महिला अध्यक्ष रहीं। इस दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो कि वे कहीं नजर न आई हों। राजनीति से इतर भी वे आम अवाम के हर काम के लिए जुटी दिखाई देती थीं। उनके पास शहर का जो भी मसला आता था, जो भी फरियादी आता था, वे तत्काल आला अफसरान के चेंबर में बेधड़क घुस कर पैरवी करती थीं। सियासत उनकी रोजमर्रा की जिंदगी बन गई थी। कांग्रेस और भाजपा, दोनों में इस किस्म के नेता कम ही हैं। अफसोस, एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं। और इसी के साथ अपार संभावनाओं का अंत हो गया। शहर वासियों केलिए भी, परिवार वालों के लिए भी।

अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुकाम अता फरमाए। गमजदा परिवार वालों को सब्र जमील अता फरमाए। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


मंगलवार, 13 मई 2025

प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है सुधाबाय में

हर मंगला चौथ पर भरता है मेला

तीर्थराज पुष्कर के ही निकट सुधाबाय में हर मंगला चौथ अर्थात मंगलवार व चतुर्थी तिथी का संगम होने पर मेला भरता है। यहां श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं। अनेक वे लोग, जो आर्थिक अथवा अन्य कारणों से अपने पितरों के पिंड भरने गया नहीं जा पाते, वे यहां यह अनुष्ठान करवाते हैं। बताया जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध इसी कुंड में किया था। मान्यता है कि यहां कुंड में स्नान से प्रेत-बाधा से मुक्ति मिलती है। इस कारण कथित ऊपरी हवा से पीड़ित लोगों को उनके परिजन यहां लाते हैं और कुंड में डुबकी लगवा कर राहत पाते हैं।

जानकारों का कहना है कि पुष्कर से करीब 4 किलोमीटर दूर व बूढा पुश्कर के पास स्थित सुधाबाय कुंड में शुक्ल पक्ष चतुर्थी मंगलवार के त्रि-संयोग के अवसर पर गया माता स्वयं विराजमान रहती है। इस मौके पर नारायण बली की पूजा भी यहां पर करवाई जाती है। आसानी से देखा जा सकता है कि महिला पुरुषों में कुंड में स्नान करने के साथ ही अदृश्य आत्माएं स्वयं अपनी भाषा बोलती है। अपना नाम पता बोलती है तथा उसका शरीर से निकल जाने की सौगंध लेती हैं। स्नान करने के बाद कुछ समय में ही प्राणी हंसता हुआ स्नान करता है तथा कुंड से बाहर आता है। 

पद्मपुराण के पृष्ठ संख्या 104 में लिखा है कि मर्यादा पर्वत यज्ञ पर्वत के बीच सतयुग के तीन कुंड बताए गए हैं, जिन्हें ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर ओर कनिष्ठ पुष्कर के नाम से जाना जाता है। मध्य पुष्कर के समीप अवियोगा नामक एक चोकोर बावड़ी है, जिसके मध्य मे जल से युक्त एक कुआं है, जिसे सौभाग्य कूप कहते हैं। यहां पिंड दान करने से भटकती आत्माओं को मुक्ति मिलती है। 


https://www.youtube.com/watch?v=Q1g4_2z08PU

रविवार, 11 मई 2025

समाजसेवी श्री ओमप्रकाश हीरानंदानी नहीं रहे

भोलेश्वर मन्दिर सेवा ट्रस्ट, जनता कॉलोनी, वैशाली नगर, अजमेर के ट्रस्टी मुखी साहब श्री ओमप्रकाश हीरानंदानी का 11 मई को हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक निधन हो गया है। उनकी शवयात्रा सोमवार 12 मई, 2005 को प्रातः 9.30 बजे उनके निवास स्थान जनता कालोनी, वैशाली नगर से छतरी योजना मुक्तिधाम तक निकाली जाएगी। वे समाज की सभी गतिविधियों में बढ-चढ कर हिस्सा लेते थे। वे श्री अमरापुर सेवा घर (वृद्धाश्रम) की देखरेख कर रहे श्री शंकर बदलानी के साथ सेवा में भागीदारी निभाते थे। पिछले दिनों पूज्य झूलेलाल जयंती समारोह समिति की ओर से आयोजित चेटीचंड पखवाडे में उन्होंने पूरी सक्रियता के साथ सहभागिता निभाई। साथ ही स्वामी श्री हिरदारामजी की प्रेरणा व आशीर्वाद से ताराचंद हुंदलदास खानचंदानी सेवा संस्था (श्री अमरापुर सेवा घर), सिंधी समाज महासमिति व सांई बाबा मंदिर, अजमेर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्री झूलेलाल सामूहिक कन्यादान समारोह में भी उनकी सक्रियता सदैव याद की जाएगी। वे हाल ही स्वामी कॉम्पलैक्स में नवीनीकृत रसोई रेस्टोरेंट में सार्वजनिक रूप से पूर्ण स्वस्थ दिखाई दिए थे। उनके अकस्मात निधन से पूरा सिंधी समाज स्तब्ध है। हर कोई हतप्रभ है कि कोई कम उम्र में ही अचानक कैसे इस दुनिया से विदाई ले सकता है? अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 

बेमिसाल सहजता की प्रतिमूर्ति थे स्वर्गीय श्री रासासिंह रावत

चार साल पहले अजमेर ने एक ऐसी षख्सियत को खो दिया था, जो अपने विषिश्ट व्यक्तित्व के कारण लोकप्रिय थे। वे थे भाजपा भाजपा नेता व भूतपूर्व सांसद स्वर्गीय प्रो रासासिंह रावत। वे पांच बार अजमेर के लोकसभा सदस्य थे। वे सहज सुलभता और अपनी विशेष भाषण शैली और धाराप्रवाह उद्बोधन के कारण अजमेर वासियों के चहते थे। उनका जन्म सन् 1 अक्टूबर 1940 को श्री भूरसिंह रावत के घर हुआ। उन्होंने बी.ए. व एल.एल.बी. और हिंदी व संस्कृत में एम.ए. की शिक्षा अर्जित की और अध्यापन कार्य से अपनी आजीविका शुरू की। उन्हें 25 साल तक अध्यापन का अनुभव था। उल्लेखनीय सेवाओं के कारण उन्हें शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर 1989 को राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया। अध्यापन कार्य के दौरान स्काउटिंग में विषेश सेवाएं देने के कारण उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा गया। सामाजिक संगठन आर्य समाज अजमेर से उनका गहरा नाता रहा और पूर्व में इसके अध्यक्ष रहे व बाद में संरक्षक रहे। समाजसेवा से उनका कितना गहरा रिश्ता है, इसका अनुमान उनके दयानंद बाल सदन के प्रधान, भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के प्रधान व राजस्थान रावत राजपूत महासभा के पूर्व प्रधान व हाल तक संरक्षक का दायित्व निभाने से हो जाता है। वे सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में विशेष रुचि रखते थे। भाजपा की नई चुनावी रणनीति के चलते उन्हें राजसमंद से लड़ाया गया, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली। बाद में उन्हें अजमेर शहर भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। 

भाजपा में जाने से पहले रासासिंह रावत ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर भीम विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे विरजानंद स्कूल के प्रधानाचार्य रहे। बाद में उन्हें डीएवी स्कूल का प्राचार्य बना दिया गया, फिर वे आर्य समाज के प्रधान भी बने। आर्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान भी रहा है।

सांसद के रूप में उन्होंने सभी पांचों कार्यकालों में उन्होंने लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाई। अजमेर से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा, जो उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया। यह अलग बात है कि दिल्ली में बहुत ज्यादा प्रभावी नेता के रूप में भूमिका न निभा पाने के कारण वे अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। एक बार उनके मंत्री बनने की स्थितियां निर्मित भी हुईं, लेकिन चूंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सोलह सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने के कारण वे दल आनुपातिक रूप में मंत्री हासिल करने में कामयाब हो गए और प्रो. रावत को एक सांसद के रूप में ही संतोष करना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वह सहज उपलब्ध हुआ करते थे। बेहद सरल स्वाभाव और विनम्रता उनके चारित्रिक आभूषण थे। 10 मई 2021 को उनका देहावसान हो गया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


शनिवार, 3 मई 2025

आनासागर में लिंक ब्रिज होना चाहिए

अजमेर में यातायात की समस्या के स्थाई समाधान के लिए लंबी जद्दोहद और कई पेच ओ खम के बाद एलिवेटेड रोड आरंभ हो गया है। हालांकि इसमे अब भी खामियां हैं, मगर षहर में यातायात का दबाव कुछ कम करने में सफलता हासिल हुई है। आप यह जान कर चकित होंगे कि तकरीबन तेरह साल पहले प्रकाषित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में स्वामी न्यूज के एमडी कंवल प्रकाष किषनानी ने वक्त के साथ कदमताल जरूरी षीर्शक के साथ दिए गए आलेख में एलिवेटेड रोड की जरूरत पर जोर देते हुए एक काल्पनिक चित्र दिया था। यह आष्चर्यजनक संयोग है कि वर्तमान एलिवेटेड रोड का वास्तविक चित्र भी उसी से मेल खाता है। यह कल्पनाषीलता की अनूठी मिसाल है। प्रसंगवष बता दें कि श्री किषनानी ने इसी पुस्तक में विजन अजमेर खंड के मुख्य पेज पर आनासागर के एक छोर से दूसरे छोर तक लिंक ब्रिज का काल्पनिक चित्र दिया था। आज जब रिंग रोड की चर्चा हो रही है, प्रषासन को चाहिए कि वह लिंक ब्रिज बनाने पर भी विचार करे, जिससे न केवल यातायात सुगम होगा, अपितु आनासागर और खूबसूरत हो जाएगा।


https://www.youtube.com/watch?v=ZYZtVrpKDgs


गुरुवार, 1 मई 2025

अजमेर को ऊनाळो भलो

दोस्तो, नमस्कार। इन दिनों भीशण गर्मी पड रही है। सामान्य जनजीवन अस्तव्यस्त है। लोग परेषान हैं। अगर कोई आपसे कहे कि अजमेर की गर्मी तो भली है, तो आप झुंझला सकते हैं कि कैसी बात कर रहे हैं। हमारा हाल खराब है और आप इसे अच्छा बता रहे हैं। असल में किसी जमाने में गर्मी के मामले में अजमेर अन्य स्थानों से बेहतर था। इसी कारण राजस्थानी कहावत बनी कि सियाळो खाटू भलो, ऊनाळो अजमेर, नागौर नित रो भलो, सावण बीकानेर। अर्थात सर्दी खाटू की अच्छी है तो गर्मी अजमेर की और नागौर प्रतिदिन अच्छा और बीकानेर का सावन। वस्तुतः किसी जमाने में अरावली पर्वत श्रृंखला के नाग पहाड पर घने जंगल हुआ करते थे। मौसम बहुत सुहावना होता था। इसी सुरम्यता के कारण सत्ताधीषों ने इसे अपना केन्द्र बनाया। प्राचीन काल से लेकर मुगल काल व बाद में ब्रितानी हुकूमत के दौरान अजमेर सत्ता का केन्द्र रहा। पानी की कमी नहीं होती तो कदाचित आजादी के बाद यह राजधानी बनता। खैर, बाद में वृक्षों की निरंतर कटाई के कारण नाग पहाड पर हरियाली कम होती चली गई। इसे पुनः हराभरा करने के लिए भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री षिवचरण माथुर ने बारिष के मौसम में नाग पहाड पर हैलीकॉप्टर से बीजों का बिखराव किया था। मगर फॉलोअप न होने कारण कोई फायदा नहीं हुआ। इसी प्रकार पुश्कर घाटी में बरसाती पानी के ठहराव व हरियाली के लिए जापान के सहयोग से एक प्रोजेक्ट पर काम हुआ। अनेक उपाय किए गए, मगर ठीक से रखरखाव न किए जाने के कारण सारा पैसा पानी के साथ बह गया। बावजूद इसके गर्मी के लिहाज से अजमेर को आज भी अन्य स्थानों की तुलना में बेहतर माना जाता है। तापमान भले ही समान रहे, मगर आम तौर पर अजमेर में गर्मी सहन करने लायक पडती है। बीच में कुछेक दिन जरूर तापमान बढ जाता है। 

https://youtu.be/dzuGnBYux8M


मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

बिंदास कर्मचारी नेता थे श्री संतोष कुमार भावनानी

किसी जमाने में अजमेर नगर परिषद, जो कि अब नगर निगम है, में श्री संतोष कुमार भावनानी बहुत दमदार व बिंदास कर्मचारी नेता थे। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उनका जन्म 2 नवंबर 1946 को सिंध-पाकिस्तान में श्री लाडिक दास भावनानी के घर हुआ। उन्होंने 1963 में आदर्श स्कूल से हायर सेकंडरी की परीक्षा पास की और नगर परिषद, अजमेर में लिपिक के पद पर नियुक्त हुए। तकरीबन 41 साल की सरकारी सेवाओं के बाद फरवरी 2002 में सेवानिवृत्त हुए। वे अजमेर जिला नगर पालिका फेडरेशन के संरक्षक व सेवानिवृत्त कर्मचारी फेडरेशन, अजमेर नगर निगम के अध्यक्ष थे। वे कर्मचारियों के हितों के लिए सतत संघर्षशील रहे और अनेक कार्य करवाए। कई सफल आंदोलन किए। अधिकारी भी उनकी संगठन क्षमता का लोहा मानते थे। 

समाजसेवा में भी उनकी गहरी दिलचस्पी थी। वे देहली गेट स्थित पूज्य लाल साहब मंदिर सेवा ट्रस्ट (झूलेलाल धाम) के उपाध्यक्ष थे। इसके अतिरिक्त अजमेर सिंधी पंचायत, सिंधु संगम, सिंधी संगम समिति से भी जुडे रहे। उन्होंने पंचायत की ओर से आयोजित प्रतिभावान विद्यार्थी सम्मान समारोह व इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका के लिए खूब काम किया। पिछले काफी समय से अस्वस्थ थे, इस कारण घर पर ही रहते थे। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

कोई वस्तु रखी है और पड़ी है, में फर्क है

दैनिक न्याय पत्रकारिता की प्राथमिक पाठशाला थी। गुरुकुल जैसी। यूनिवर्सिटी भी थी, मगर उनके लिए, जिन्होंने उसे गहरे से आत्मसात किया। बाद में वे बड़े से बड़े अखबार में भी मात नहीं खाए। प्राथमिक पाठशाला इस अर्थ में कि जिसने भी वहां काम किया, उसे पत्रकारिता के साथ-साथ मौलिक रूप से शुद्ध हिंदी भी सीखने को मिली। इसके प्रकाशक व संपादक स्वर्गीय बाबा श्री विश्वदेव शर्मा शुद्ध हिंदी के प्रति अत्यंत सजग थे। रोजाना सुबह अखबार की एक-एक लाइन पढ़ा करते थे। वर्तनी की छोटी से छोटी गलती पर गोला मार्क कर देते। यहां तक कि बिंदी व कोमा की गलती भी नहीं छोड़ते थे। प्रूफ रीडिंग पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया करते थे। दो प्रूफ निकालने की तो हर अखबार में परंपरा थी, मगर वे तीसरा प्रूफ भी पढ़वाया करते थे, ताकि एक भी गलती न जाए। मुझे अच्छी तरह से याद है कि उनके एक पुत्र श्री सनत शर्मा तीसरा प्रूफ पढ़ा करते थे। वर्तनी व व्याकरण की त्रुटियों को लेकर इतने सख्त थे कि एक बिंदी की गलती पर भी प्रूफ रीडर की तनख्वाह में से पच्चीस पैसे काट लेते थे। शब्दों के ठीक-ठीक अर्थ की भी उनको गहरी समझ थी। उन्हें यह बर्दाश्त ही नहीं होता था कि कोई कर्मचारी गलत शब्द का इस्तेमाल करे। अपनी टेबल पर सदैव हिंदी शब्द कोष व अंग्रेजी-हिंदी डिक्शनरी रखा करते थे। किसी शब्द को लेकर कोई भी शंका हो तो शब्द कोष देख कर कन्फर्म करने को कहते थे। 

एक बार की बात है। उन्होंने एक क्लर्क को पूछा कि अमुक फाइल कहां पर है? क्लर्क ने जवाब दिया- अलमारी में  पड़ी है। बाबा ने दुबारा पूछा- अमुक फाइल कहां है? वही जवाब मिला- अलमारी में पड़ी है। इस पर उनको गुस्सा आ गया। तीसरी बार सख्ती से पूछा- अमुक फाइल कहां पर है? क्लर्क को समझ में नहीं आया कि तीसरी बार फिर वही सवाल क्यों किया जा रहा है। उसने जैसे ही कहा कि अलमारी में पड़ी है तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने क्लर्क को झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया। बोले कि ये मत कहो कि पड़ी है, ये कहो कि रखी है। पड़ी का मतलब तो ये होता है कि लावारिस पड़ी है, जबकि रखी का मतलब होता है कि सुरक्षित और ठिकाने पर रखी है। आम तौर पर हम पड़ी और रखी शब्दों में हम फर्क नहीं समझते, मगर गौर से देखें तो वाकई बहुत अंतर है। मामूली अंतर है, मगर बड़ा भारी अंतर है। तात्पर्य यही कि बाबा शुद्ध हिंदी के प्रति अत्यधिक कटिबद्ध थे। यही वजह थी कि दैनिक न्याय में जिन्होंने पकारिता सीखी, वे पारंगत हो गए। बाद में जब किसी बड़े अखबार में गए तो पत्रकारिता की स्कूलिंग उन्हें बहुत काम आई। अच्छे-अच्छे पत्रकारों को टक्कर देने की काबिलियत रही उनमे। दैनिक न्याय जैसी पाठशालाएं अब कहां?

केवल पत्रकारिता ही नहीं, अपितु अनुशासन भी गजब का था दैनिक न्याय में। एक ऑलपिन तक यदि फर्श पर गिर जाए तो जिम्मेदार कर्मचारी के वेतन में से पैसे काट लिया करते थे। अनुशासन के ऐसे माहौल का ही परिणाम था कि सभी कर्मचारी अनुशासित रहने के आदी हो गए थे। उन दिनों टेलीफोन हर घर में नहीं हुआ करता था। पर हर कॉल के पैसे लगा करते थे। व्यवस्था ये थी कि अगर किसी आगंतुक को कॉल करना होता था तो उससे एक रुपया लिया जाता था। बाबा के एक पुत्र वृहस्पति शर्मा उन दिनों जयपुर कार्यालय में थे। कभी कभार अजमेर आया करते थे, इस कारण कई कर्मचारी उन्हें नहीं जानते थे। एक बार वे आए और उन्हें फोन करने की जरूरत पड़ी तो वे सीधे गए टेलीफोन के पास और एक कॉल कर लिया। जैसे ही जाने लगे तो वहां मौजूद सहायक संपादक संजय भट ने उनके एक रुपया मांग लिया। वे तो भौंचक्क ही रह गए। अपने ही संस्थान में कोई कर्मचारी अगर एक फोन कॉल के पैसे मांग ले तो बुरा लगेगा ही। मगर संजय भट अड़ गए। वृहस्पति शर्मा ने अपना परिचय दिया कि वे बाबा के पुत्र हैं। इस पर संजय भट बोले कि मैं आपको नहीं जानता। आप बाबा के सुपुत्र हैं, मगर यहां तो यही नियम है कि कोई भी कॉल करेगा तो उसे एक रुपया देना ही होगा। आखिरकार वृहस्पति शर्मा को एक रुपया निकाल कर देना ही पड़ा, मगर वे इस अनुशासन को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और संजय भट को शाबाशी दी।

https://youtu.be/SmwG40g3V_Q


गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

करोड़ों लोगों की वंशावली बंद है बहियों में

तीर्थ यात्रा की दृष्टि से पुष्कर का विशेष महत्व है। चारों धामों की यात्रा के बाद भी तीर्थ यात्रा तभी पूरी मानी जाती है, जब पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाई जाए। हरिद्वार की भांति यहां भी श्रद्धालु अपने परिजन की मुक्ति की कामना के लिए अस्थि विसर्जन करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी आने तीर्थ यात्रियों का इतिहास यहां के तीर्थ पुरोहितों ने बहियों में संग्रहित कर रखा है। 

यह इतिहास लिखने की परंपरा कब शुरू हुई, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों के पास मौजूद रिकार्ड से अनुमान लगाया जा सकता है कि इतिहास को लिपिबद्ध करने का क्रम एक हजार साल से भी पहले शुरू हुआ होगा। कई पुरोहितों के पास ग्यारह सौ साल पहले के भोज-पत्र व ताम्र-पत्र मौजूद हैं, जिन पर राजा-महाराजाओं के हुक्मनामे अंकित हैं। तीर्थ पुरोहितों की निजी संपत्ति होने के कारण पुरातत्व विभाग इनको संरक्षित रखने को कोई कदम नहीं उठा पाया है। तीर्थ पुरोहितों के पास भी इन्हें सुरक्षित रखने के पर्याप्त साधन नहीं हैं।


https://www.youtube.com/watch?v=qbUwaH9sYO4&t=36s


बुधवार, 23 अप्रैल 2025

यायावर पत्रकार श्री महावीर सिंह चौहान नहीं रहे

वरिष्ठ पत्रकार श्री महावीर सिंह चौहान। एक विलक्षण व्यक्तित्व। यायावरी मिजाज। पत्रकारिता में भिन्न पहचान बनाई उन्होंने। हाल ही उनका देहावसान हो गया। बतौर पत्रकार तकरीबन चालीस साल के काल खंड में शीर्ष पर रहे इस शख्स की विदाई के साथ एक ऐसा सितारा अस्त हो गया, जिसे वर्षों तक याद किया जाएगा। वे लंबे समय तक दैनिक नवज्योति से जुडे रहे। विशेष रूप से फिल्म पत्रकारिता में उनका कोई सानी नहीं। उनकी फिल्म समीक्षा की बडी विश्वसनीयता थी। इस सिलसिले में उन्होंने मुंबई के अनेक दौरे किए। इसके अतिरिक्त वे अजमेर के संभवतः एक मात्र पत्रकार थे, जिसने दूरस्थ गांव-ढाणियों के दौरे कर देहाती परिवेश की रिपोर्टिंग की। दिलचस्प बात है कि उन्होंने मोटर साइकिल पर लंबी यात्राएं कीं। यह उनके यायावरी मिजाज का द्योतक है। और इसी वजह से उनकी रिपोर्ताज शैली बहुत लुभाती थी। एक बार उन्होंने राजस्थान विधानसभा के सभी दो सौ नवनिर्वाचित विधायकों के साक्षात्कार लिए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने राजस्थान का चप्पा-चप्पा छान मार कर कैसे रिपोर्टिंग की होगी। उन्होंने दैनिक भास्कर को भी अपनी सेवाएं दीं। कुछ समय ब्यावर भी रहे। एक जमाने में उन्होंने विश्व प्रसिद्ध दरगाह शरीफ की रिपोर्टिंग में महारत हासिल कर ली थी। दरगाह के मामलात व रसूमात पर अनेक दिलचस्प स्टोरीज की। इतना ही नहीं वे बेहतरीन प्रेस फोटोग्राफर थे। इसी की बिना पर उन्होंने श्रमजीवी पत्रकार संघ के जरिए बर्लिन की यात्रा की। उनके पास ऐतिहासिक फोटो का जो संकलन रहा, कदाचित किसी और प्रेस फोटोग्राफर के पास रहा हो। उन्होंने मोगरा के नाम से एक साप्ताहिक समचार पत्र भी प्रकाशन किया। हंसमुख मिजाज की इस शख्सियत की फेन फॉलोइंग भी खूब रही है। तारागढ के जाने-माने बुद्धिजीवी जनाब सैयद रब नवाज जाफरी ने वाट्स ऐप पर लिखा है कि जनाब महावीर सिंह चौहान साहब (मिनी मनोज कुमार) के इंतेकाल की खबर पढ़ कर बहुत अफसोस हुआ। मैं उन से जब भी मिलता था तो उनको मनोज साहब कह कर ही बात शुरू करता था। वाकई उनकी शक्ल फिल्म अभिनेता मनोज कुमार से मिलती जुलती थी।

उल्लेखनीय बात ये है कि उनका पूरा परिवार पत्रकारिता को समर्पित रहा है। उनके पुत्र श्री मनीष सिंह चौहान दैनिक भास्कर में डिप्टी चीफ रिपोर्टर हैं व श्री मुकेश चौहान दैनिक नवज्योति में कार्यरत हैं।

अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

सोमवार, 21 अप्रैल 2025

जब तीर्थराज पुष्कर सरोवर का पानी बन गया घी

बताते हैं कि जब मुद्रा चलन में नहीं आई थी, तब वस्तु विनिमय किया जाता था। लोग एक दूसरे की जरूरत की वस्तुओं का आदान-प्रदान किया करते थे। प्रकृति भी इसी व्यवस्था पर काम करती है। वस्तु के बदले वस्तु मिलती है। कहते हैं न कि जो बोओगे, वही काटोगे। यानि कि प्रकृति में इस हाथ दे, उस हाथ ले वाला सिद्धांत काम करता है। दान की महिमा का आधार भी यही है। यज्ञों में समिधा की आहुति से वातावरण में तो सकात्मकता आती ही है, साथ ही अग्नि को समर्पित वस्तु से कई गुना प्राप्ति का भी उल्लेख है शास्त्रों में। 

प्रकृति के इस गूढ़ रहस्य का प्रमाण एक बार अजमेर में भी प्रकट हो चुका है। नई पीढ़ी को तो नहीं, मगर मौजूदा चालीस से अस्सी वर्ष की पीढ़ी के अनेक लोगों को जानकारी है कि पुष्कर में एक बंगाली बाबा हुआ करते थे। कहा जाता है कि वे पश्चिम बंगाल में प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे और संन्यास धारण करके तीर्थराज पुष्कर आ गए। वे कई बार अजमेर में मदार गेट पर आया करते थे और बोरे भर कर आम व अन्य फल गायों को खिलाया करते थे। वे कहते थे कि फलों पर केवल हमारा ही अधिकार नहीं है, गाय भी उसकी हकदार है।

बताया जाता है कि बंगाली बाबा के शिष्यों ने कोई पैंतालीस-पचास साल पहले पुष्कर में एक भंडारा आयोजित किया था। रात में देशी घी खत्म हो गया। यह जानकारी शिष्यों ने बाबा को दी और कहा कि रात में नया बाजार से दुकान खुलवा कर देशी घी लाना कठिन है। तब पुष्कर घाटी व पुष्कर रोड सुनसान व भयावह हुआ करते थे। बाबा ने कहा कि पुष्कर सरोवर से चार पीपे पानी के भर लाओ और कढ़ाह में डाल दो। शिष्यों ने ऐसा ही किया तो देखा कि वह पानी देशी घी में तब्दील हो गया। सब ने मजे से भंडारा खाया। दूसरे दिन बाबा के आदेश पर शिष्यों ने चार पीपे देशी घी के खरीद कर पुष्कर सरोवर में डाले। इसके मायने ये कि बाबा ने जो चार पीपे पानी के घी के रूप में उधार लिए थे, वे वापस घी के ही रूप में अर्पित करवा दिए। पानी कैसे घी बन गया, इसे तर्क से तो सिद्ध नहीं किया जा सकता, मगर प्रकृति का सारा व्यवहार लेन-देन का है, यह तो समझ में आता है। इसी किस्म का किस्सा कबीर का भी है, जब उन्होंने अपने बेटे कमाल के हाथों पड़ौस की झोंपड़ी से गेहूं की चोरी करवाई थी। उसकी चर्चा फिर कभी।


https://www.youtube.com/watch?v=TkNA6Qt_j-Q


अजमेर हिंदी बोलने वाला इकलौता शहर

यह बहुत दिलचस्प तथ्य है कि राजस्थान में इकलौता शहर अजमेर ऐसा है, जहां की आम बोली हिंदी है। अन्य सभी शहरों, यथा जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर इत्यादि में हालांकि हिंदी भी चलन में है, मगर आम बोलचाल की भाषा थोड़ा-थोड़ा अंतर लिए हुए राजस्थानी ही बोली जाती है। 

आम आदमी की बोली हिंदी का मतलब है कि अजमेर में आम आदमी अर्थात ठेले वाला, मोची, कूली, सब्जी बेचने वाला, चाय वाला, पान वाला, सभी आमतौर पर हिंदी में ही बात करते हैं। सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी ही बोली जाती है। इसके विपरीत जयपुर के सचिवालय जैसी जगह में भी काईं छे वाली शैली की राजस्थानी बोली जाती है। जोधपुर की राजस्थानी का स्वाद भिन्न है तो नागौर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा, भीलवाड़ा आदि का अलग-अलग। कहीं मारवाड़ी तो कहीं मेवाड़ी और कहीं हाड़ौती तो कहीं गुजराती का स्वाद लिए हुए बागड़ी।

ऐसा नहीं है कि अजमेर में राजस्थानी नहीं बोली जाती। बोली जाती है, मगर शहर के अंदरूनी हिस्सों, जैसे नया बजार, कड़क्का चौक, नला बाजार की गलियां इत्यादि। शहर के जुड़े ग्रामीण इलाकों में राजस्थानी बोली जाती है। अच्छा, हिंदी-हिंदी में भी फर्क है। अलवर गेट इलाके के कोली बहुल मोहल्लों में हिंदी कुछ और किस्म की है तो दरगाह व मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की हिंदी कुछ और तरह की। सीमावर्ती गांवों को छोड़ दें तो अधिसंख्य मुस्लिम तनिक उर्दू युक्त हिंदी बोलते हैं।

अजमेर की आम बोली हिंदी होने का कारण है। वस्तुतरू यह शहर विविध संस्कृतियों का संगम है। कभी इसकी अपनी विशेष संस्कृति रही होगी, मगर अब यह मिली-जुली संस्कृतियों वाला शहर है। रेलवे की इसमें विशेष भूमिका है। यहां बाहर से आ कर बसे सिंधी, जैन, सिख, ईसाई, पारसी आदि समुदायों के लोगों के बीच संवाद के लिए आरंभ से हिंदी का ही उपयोग किया जाता रहा है। इन समुदायों के अधिसंख्य लोग या तो राजस्थानी समझते नहीं, अगर समझ भी जाते हैं तो बोल नहीं पाते। हिंदी से अजमेर का गहरे जुड़ाव का ही परिणाम है कि जब देश में साक्षरता अभियान चल रहा था तो अजमेर पूरे उत्तर भारत में संपूर्ण साक्षर जिला घोषित हुआ था।


https://www.youtube.com/watch?v=3sScLZXwFsA&t=30s

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

कहां चली गई अजमेर की भूत बावड़ी !

1960 के दशक तक अजमेर में अनेक बावड़ियां चर्चित थीं - भांग बावड़ी, चांद बावड़ी, कुम्हार बावड़ी, कातन बाय, भाटा बाय, आम्बा बाय, आम वाला तालाब, कमला बावड़ी और भूत बावड़ी। अंग्रेजों के शासनकाल में कर्नल डिक्सन ने अजमेर में बीस से भी अधिक बावड़ियां खुदवाई थीं। जल स्रोतों के रूप में यहां चांदी का कुआं सबसे पुराना है। इसके साथ दूधिया कुआं और तुलसा जी की बेरी ने कई सालों तक अजमेर की प्यास बुझाई है।

तो बात है भूत बावड़ी की। यह दौलत बाग में थी। कुम्हार बावड़ी की तरह इसे भी शहर का विस्तार खा गया। यह बावड़ी बगीचे में प्रवेश द्वार के दाहिनी तरफ थी; तीन मंजिल की थी। हमने दो मंजिल के तिबारे देखे हैं। पहली मंजिल पानी में डूबी रहती थी और बरसात के समय दूसरी मंजिल तक पानी भर जाता था। गरमी के समय इन तिबारों मे लोग बैठे रहते थे। ऐसी किंवदंती फैली हुई थी कि रात के वक्त यहां एक भूत रहता था। भूतिया हलवाई जैसे किस्से इस बावड़ी के बारे मे भी प्रचलित थे। हमने लाखन कोठरी निवासी रामचंद जी, छोटे लाल जी आदि से ऐसे किस्से सुने हैं।
यहाँ लोग नहाते थे लेकिन इसका पानी नहीं पीते थे। बाद में यहां चिड़ियाघर शुरू किया गया। तब बावड़ी को बूर दिया; यहां सपाट मैदान हो गया। उन दिनों बगीचे में प्रवेश द्वार के बाईं तरफ कचरा डाला जाता था; कचरे के ढेर लग जाते थे। थोड़े समय बाद चिड़ियाघर हटा दिया और यहां जलदाय विभाग का एक कार्यालय खोला गया। उधर कुम्हार बावड़ी पर लकड़ी की टाल बन गयी; फिर आईस फैक्ट्री खुल गयी।
खाईलैंड की खाई भी देखते-देखते पाट दी गई। किसी वक्त यहां रोडवेज बस स्टैंड था। प्राइवेट बस स्टैंड मैजिस्टिक पर प्लाजा सिनेमा के बीच में था।

रविवार, 13 अप्रैल 2025

कभी फिल्मी पोस्टर लगा करते थे यहां

अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार जनाब मुजफ्फर अली ने फिल्मी पोस्टर्स पर एक बहुत दिलचस्प स्टोरी लिखी है। इसे सुन कर आपको बहुत अच्छा लगेगा। पेश है वह स्टोरी 

कभी कभी बचपन में देखी- सुनी जगह या बातें हमेशा के लिए ज़ेहन में बैठ जाती हैं और फिर वक्त बदलने पर भी उस जगह का पुराना स्वरुप दिमाग में रहता है। ऐसी ही कुछ जगह अजमेर में बचपन से किशोर अवस्था तक आते आते देखी, वो थी अजमेर के सिनेमाघरों के फिल्मी पोस्टरों के चिपकने की जगह। अजमेर में छह सिनेमाघर हुआ करते थे और सभी सिनेमाघरों के पोस्टरों के लिए जगह तय थी कि किस जगह पर लगने वाला पोस्टर कौन से सिनेमाघर में चलने वाली फिल्म का है। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार पर कभी अजंता सिनेमा हॉल में लगी या लगने वाली फिल्मों के बड़े पोस्टर लगा करते थे। सत्तर के दशक की बात है। उन दिनों दो तरह के पोस्टर दीवारों पर लगा करते थे। एक विद्युत पोल पर लगने वाले क्यिोस्क साईज में और दूसरे बड़े चौड़े होर्डिंग साइज़ में। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार बड़ी और लंबी थी इसलिए वहां बड़े साइज के पोस्टर ही लगा करते थे। फिर देखने में आया कि फिल्मी पोस्टर के साइज में सीमेंट का प्लास्टर कर जगह मुकर्रर कर दी गई। उस प्लास्टर की मोटी परत पर पोस्टर चिपकाए जाने लगे। 

बड़े साइज के पोस्टर मदार गेट पर फल बेचने वालों की दुकानों के पीछे, कबाडी बाजार की दीवार पर मृदंग सिनेमा में लगी या लगने वाली फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। पड़ाव में पुराने कपड़े बेचने वालों के पीछे की दीवार पर एक कोने में अंजता फिर मैजिस्टिक, प्रभात, श्री और दूसरे कोने में मृदंग सिनेमा के बड़े पोस्टर लाइन से लगा करते थे। फव्वारा चौराहे पर भी अंजता और प्रभात सिनेमा की फिल्मों के पोस्टर लोहे के फ्रेम बना कर उस पर चिपकाया करते थे। सोनी जी की नसियां के सामने प्रभात की ओर जाने वाले रास्ते के कोने में प्रभात सिनेमा के बड़े पोस्टर लोहे के फ्रेम में लगते थे जो आगरा गेट से आने वालों को दूर से दिख जाते थे। आगरा गेट चौराहे पर चर्च की दीवार के सहारे भी लोहे के फ्रेम सडक़ पर लगे थे, जिन पर प्रभात और अंजता के फिल्मी पोस्टर लगते थे। मदार गेट पर फूल बेचने वालों के पीछे की कस्तूरबा अस्पताल की दीवार पर सिर्फ मैजिस्टिक सिनेमा में लगी फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। उसरी गेट के बाहर की दीवार पर प्रभात और मृदंग सिनेमा के पोस्टर लगते थे। तब शहरी आबादी का अधिक विस्तार नहीं था, और फिल्मी पोस्टर शहर के अंदरूनी इलाकों में ही लगते थे।


https://www.youtube.com/watch?v=hDE7cv8pqMo


लोकगीत व मुहावरों में अजमेर

यह सामग्री अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक से ली गई है, जिसमें अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य का विस्तार से वर्णन मौजूद है।

राजस्थान के लोकगीत व मुहावरों में अजमेर का उल्लेख कई जगह आता है। यथा प्रसिद्ध लोक कथा ढोला-मरवण की पंक्तियां देखिए, जिनमें आनासागर, पुष्कर व बीसला तालाब की जिक्र हुआ है-

ढोला कंवर जी आनासागर

पछ कयिजे बीसल्यो

पीठ पर पोखर जी हिलोला खाय

बेगातो आईजो धण का साहिबां।

इसी प्रकार राजस्थान की मौसम संबंधी एक लोकोक्ति में भी अजमेर का उल्लेख प्रसिद्ध है, जिसमें बताया गया है कि गर्मी का मौसम अजमेर में बिताने लायक है। कदाचित मुगल शासकों और ब्रिटिश हुक्मरानों को अजमेर मौसम मुफीद होने के कारण भी अजमेर उनकी गतिविधियों का केन्द्र रहा-

सियालो खाटू भलो, उन्नाळो अजमेर

नागाणो नित को भलो सावण बीकानेर

अजमेर सांप्रदायिक सौहार्द्र की एक अनूठी बात देखिए कि धर्मांतरण से मुस्लिम बने अनेक वर्गों के एक गीत में पुरातन सांगीतिक संस्कार मौजूद है-

ठंडा रहजो म्हारा पीर दरगा में

नित का चढ़ाऊं थारे सीरणी

देसूं थाने जोड़ा सूं जात

ठंडा रहीजो म्हारा पीर दरगा में

झोली भराऊं कोडिय़ां

घणी घणी करूं खैराद

ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में

साथ जिमाऊं औलिया

कोई पांच पचीस फकीर

ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में। 

इन पंक्तियों में साथ जिमाऊं, ठंडा रहिजो आदि शब्द पारंपरिक राजस्थानी संस्कृति की याद दिलाते हैं। ख्वाजा साहब और मदार साहब की मान्यता कितनी रही है, इसका साक्षात प्रमाण है राजस्थानी भाषा के ही एक लोक गीत में उनका उल्लेख-

मदारजी के लेचल ओ बलमा

ख्वाजाजी के ले चल ओ बलमा

सासू तो नणदल पूछण लागी

कठा सूं ल्याई ललवा ने

मदार जी के ले चल ओ बलमा

दरगा में जोड़ा की जारत बोली

बठा सूं ल्याई ललवा ने।

यहां के इतिहास में अजयपाल जोगी का अप्रतिम स्थान है। अनेक इतिहासकार मानते हैं कि अजमेर के प्रथम शासक अजयराज ही अजयपाल जोगी थे। उनके प्रति लोगों में कितनी आस्था रही है, यह इस लोकोक्ति से जाहिर हो जाती है-

अजयपाल जोगी, काया राख निरोगी।


https://www.youtube.com/watch?v=3zpOxLo2uEE

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025

राजनीति इंसानियत भी छीन लेती है?

राजनीति में न दोस्ती और न ही दुश्मनी स्थाई होती है। ऐसा कहा जाता है। है भी। यानि कि राजनीतिक संबंध अस्थाई होते हैं। असल में वह नफे-नुकसान का मामला है। उनमें सामान्य मानवीय व्यवहार व सदाशयता का कोई मूल्य नहीं होता। चलो जैसा भी है, ठीक है। मगर क्या राजनीतिक व्यक्ति निरपेक्ष रूप से भी मानवीय व्यवहार भूल जाता है, इसका अंदाजा मुझे नहीं था। इसका साक्षात्कार हाल ही मेरे एक मित्र ने कराया, जो कि राजनीति में हैं, युवक कांग्रेस के जाने-माने नेता रहे हैं और उनसे मेरे संबंध राजनीति की वजह से नहीं, बल्कि निजी रहे। मैं उनका बहुत बहुत आभारी हूं कि उन्होंने मुझे इस अनुभव से गुजारा। उनके नाम का जिक्र इसलिए नहीं करूंगा, क्योंकि यह अनुभव लिखने का प्रयोजन उनको टारगेट करना नहीं, बल्कि महज अपना अनुभव साझा करना है। वे भले ही अपनी मर्यादा से च्युत हो गए, मगर मुझे अपनी मर्यादा में ही रहना है।

बात थोडी सी पुरानी है। हुआ यूं कि मैं यूआईटी के पूर्व अध्यक्ष श्री धर्मेश जैन के गांधी भवन के सामने रेलवे केम्पस में उद्घाटित रेस्टोरेंट में शुभारंभ समारोह में मौजूद था। मैं अपने एक और मित्र, जो कि भाजपा में हैं, के साथ खड़ा था। मैंने देखा कि युवक कांग्रेस के नेता रहे मित्र ने समारोह स्थल में एंट्री ली है। मैने अपने भाजपाई मित्र को बताया कि देखो, वो जो शख्स हैं, मेरे अभिन्न मित्र हैं। उनसे मेरे गहरे ताल्लुक हैं। इसकी जानकारी कांग्रेस के सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी है। मैं इंतजार कर रहा था कि वे निकट आएं तो उनसे मुलाकात हो। जैसे ही वे मेरे सामने आए तो उन्होंने जो हरकत की तो मैं सन्न रह गया। उनकी नजरें मेरी नजरों से टकराईं। नजरों की मात्र एक पल मुलाकात के बाद उन्होंने हठात अपनी नजरें हटा लीं और आगे बढ़ गए। वह पल मेरे जेहन में तीर की तरह घुस गया। मैं समझ ही नहीं पाया कि ये क्या, क्यों व कैसे हो गया? मेेरे भाजपाई मित्र के चेहरे ने भी सवालिया निशान की आकृति ले ली। मैं निरुत्तर था। निरुत्तर क्या, बहुत आहत था। कुछ क्षण के लिए मेरी जुबान पत्थर की सी हो गई। अपने आप को संभाला। जुबान से सिर्फ यही निकला- कमाल है, उसने मुझे पहचानने से ही इंकार कर दिया। इतना खास मित्र। कभी कोई विवाद नहीं हुआ, फिर भी ये व्यवहार? आखिर ये क्या है? मेरे भाजपाई मित्र ने समझाया कि हो सकता है कि जब आपकी घनिष्ठ मित्रता रही हो, तब आप उसके के लिए बहुत उपयोगी रहे होंगे। आज उसके लिए आपकी उपयोगिता नहीं होगी। तब आप भास्कर में रहे होंगे, अब नहीं हैं। आम तौर पर सभी राजनीतिक लोग ऐसे ही होते हैं। मतलब की दोस्ती रखते हैं। आपको गलतफहमी हो गई कि वह सच्ची दोस्ती थी। फिर भी, केवल राजनीतिक संबंध हों तो भले ही वे ऐसा व्यवहार करें तो समझ में आता है, मगर वह अगर घनिष्ठ मित्र रहा है तो उसका ऐसा व्यवहार वाकई सोचनीय है। इसे अपने दिल पर न लीजिए। यही दुनिया है। उनके इस कथन में साथ मेरी बुद्धि पर पड़ा भ्रम का पर्दा हट गया।  

बहरहाल, वह पल मुझे आज भी याद आने पर बहुत तकलीफ देता है। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं। उलटा मैं उनका शुक्रगुजार हूं। कितना बेशकीमती अनुभव उन्होंने मुझे दिया है। भगवान उनका भला करे। 

कुछ इसी किस्म की घटनाएं पहले भी हुई हैं, अलग अंदाज में। उनका जिक्र फिर कभी। मगर ये घटनाएं पहले से विरक्त मन को दुनिया से और अधिक विमुख किए देती हैं।


https://www.youtube.com/watch?v=w1jaSpp54o8


सोमवार, 7 अप्रैल 2025

सादगी की मिसाल थे पूर्व पार्षद श्री भागचंद दौलतानी

पूर्व निर्दलीय पार्षद श्री भागचंद दौलतानी का हाल ही देहावसान हो गया। वे सादगी की मिसाल थे। सदैव हंसमुख व मिलनसारिता के कारण लोकप्रिय थे। जनसेवा का जज्बा उनमें युवा अवस्था से था। खासकर गरीबों की सेवा करने में उनको आनंद आता था। हालांकि उनकी राजनीति में कोई गहरी दिलचस्पी नहीं थी, मगर जनता की मांग पर उन्होंने 1990 के नगर परिषद चुनाव में भाग लिया व विजयी रहे। पार्षद रहने के दौरान उन्होंने खूब जनसेवा की। उसके बाद भी जनहित से जुडे मुद्दे पर अग्रणी रहते थे। गांधीवादी विचारधारा के अनुगामी थे और सादा जीवन उच्च विचार में यकीन रखते थे। समाज की अनेक संस्थाओं से जुडे रहे और करीब 81 वर्ष की आयु में भी स्वस्थ और सक्रिय रहे। समाज की हर गतिविधि में शिरकत करते थे। हाल ही चेटीचंड उत्सव में भी शामिल हुए। उनके जैसे जननेता विरले ही होते हैं। उनके निधन से अजमेर जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति असंभव है। उनका जन्म 1 अक्टूबर 1944 को हुआ। नौवीं कक्षा 1964 में जवाहर स्कूल से पास की। फरवरी 1967 में उनकी शादी हुई। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड गए हैं।

एआई से अनुग्रह करने पर उसने उनको श्रद्धांजलि स्वरूप एक कविता प्रस्तुत की है:-
सादगी की मिसाल थे, सहजता की पहचान,
हर दिल में बसते थे, थे सबके सम्मान।
शब्दों में मिठास, व्यवहार में गहराई,
नेतृत्व में सेवा की थी अनोखी छाया।

न पद का अभिमान था, न स्वार्थ की चाह,
जन-जन के हित में ही रहती थी उनकी राह।
पूर्व पार्षद होकर भी थे सबसे पहले इंसान,
श्री भागचंद दौलतानी थे सेवा का प्रतीक महान।

उनकी मुस्कान में था अपनापन झलकता,
हर समस्या में वह समाधान बनकर टहलता।
नहीं रहे आज हमारे बीच, पर यादों में हैं अटल,
उनके सिद्धांतों की ज्योति रहेगी सदा निष्कलंक।


अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

कौतुहल पैदा करती है कोस मीनार

आपने अजमेर जयपुर मार्ग सडक के किनारे मीनारें देखी होंगी। उन्हें कोस मीनार कहा जाता है। कोस मीनार ईंट या पत्थर से बनी बेलनाकार संरचनाएं होती हैं। यह मुगलकालीन भारत की एक ऐतिहासिक संरचना है, जिसे मुख्य रूप से सड़कों के किनारे दूरी मापने के लिए बनाया गया था। ये मीनारें अकबर के शासनकाल 1556-1605 में बनाई गई थीं और बाद में जहांगीर और शाहजहां ने भी इस परंपरा को जारी रखा। ज्ञातव्य है कि अजमेर मुगल साम्राज्य के समय एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और धार्मिक केंद्र था और यहां से होकर मुगल राजमार्ग से गुजरते थे। इसलिए अजमेर और इसके आसपास भी कोस मीनारें स्थापित की गई थीं, जो उस समय के यात्रा मार्गों पर दूरी दर्शाने का साधन थीं। इनकी दूरी एक कोस यानि लगभग 3 किलोमीटर या 2 मील होती थी। इनकी ऊंचाई करीब 30-40 फीट होती है। इन्हें सड़क के किनारे हर एक कोस पर खड़ा किया जाता था। 


ये मीनारें यात्रियों, संदेशवाहकों और सैनिकों के लिए दिशा और दूरी बताने का कार्य करती थीं। अजमेर से निकलने वाले पुराने दिल्ली-अजमेर-माउण्ट आबू मार्ग या अजमेर-आगरा मार्ग पर कोस मीनारें देखी जा सकती हैं। कुछ मीनारें अब भी राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे या गांवों के पास स्थित हैं, हालांकि कई अब नष्ट हो चुकी हैं या नजरअंदाज कर दी गई हैं। इन्हें संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। कोस मीनार व उसके पास लगे नोटिस बोर्ड की फोटो जलदाय विभाग के रिटायर्ड एडीशनल चीफ इंजीनियर व जाने-माने बुद्धिजीवी श्री अनिल जैन ने अपने फेसबुक अकाउंट पर साझा की है।

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

शिक्षा जगत की जानी-मानी हस्ती श्रीमती स्नेहलता शर्मा नहीं रहीं

अजमेर के शिक्षा जगत में श्रीमती स्नेहलता शर्मा धर्मपत्नी स्वर्गीय श्री सुरेन्द्र जी शर्मा एक जाना-पहचाना नाम है। हाल ही उनका देहावसान हो गया। वे राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की सचिव रहीं और शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर रहते हुए अतिरिक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुईं। उसके पश्चात संस्कार सीनियर सेकंडरी पब्लिक स्कूल का संचालन किया। उनका जन्म 26 अक्टूबर 1938 को श्री प्रहलाद किशन शर्मा के घर हुआ। उन्होंने एम.एससी., बी.एड. तक शिक्षा अर्जित की और माध्यमिक शिक्षा में लेक्चरर के रूप में केरियर का आरंभ किया। इसके बाद सीनियर सेकंडरी स्कूल की प्रिंसीपल, शिक्षा विभाग की उप सचिव, जिला शिक्षा अधिकारी, उप निदेशक, शिक्षा बोर्ड सचिव व शिक्षा विभाग में अतिरिक्त निदेशक पद पर रहीं। उन्हें राज्य स्तर पर 1985 में श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में सम्मानित किया गया। उन्होंने शिक्षा बोर्ड के लिए अनेक पुस्तकें भी लिखीं। इतना ही नहीं, समाजसेवा में भी उनकी गहरी रुचि रही। वे लायंस क्लब आस्था की सदस्य और कला-अंकुर संस्था की अध्यक्ष रहीं। उनके निधन से शिक्षा जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड गई हैं। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

भगवान को भगवान ने बुला लिया अपने पास

अजमेर में जेएलएन मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के कार्डियोलॉजी यूनिट के एचओडी वरिष्ठ आचार्य डॉ. राकेश महला प्राणदाता थे। हजारों रोगियों के प्राण बचाए उन्होंने। कैसी विडंबना है कि जिस रोग से निजात दिलाने में वे पारंगत थे, उसी रोग ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। वे कार्डियक और रीनल डिजीजेज से जूझ रहे थे। उपचार के दौरान गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया। उनका निधन हृदयविदारक है, जिसकी पूर्ति नितांत असंभव है। जिन्होंने उनके माध्यम से जीवन बचा लिया, वे उन्हें भगवान सदृश मानते हैं। वे अत्यंत सहज व विनम्र थे। विशेष रूप से गरीबों के लिए मसीहा थे। एंजियोग्राफी व एंजियोप्लाटी के सिद्धहस्त। उनकी विशेषज्ञता का पूरे राजस्थान में कोई सानी नहीं। एसएमएस अस्पताल, जयपुर में 93 बैच के डॉ. महला के अजमेर आने के बाद यहां हार्ट के मरीजों को बहुत राहत मिल रही थी। इससे पहले हर मरीज को जयपुर रेफर कर दिया जाता था। उन्होंने दो बार बैलून माइट्रल वैल्वोट्रॉमी के ऑपरेशन करके रिकॉर्ड बनाया। खान-पान में लापरवाही और कोराना इफैक्ट के चलते हृदय रोगियों की संख्या लगातार बढती ही जा रही है। ऐसे में उनकी अभी बहुत अधिक जरूरत थी। मगर, अफसोस, पूरे जगत को प्राण देने वाले ने उनको हमसे हठात छीन लिया। प्रमाणित हो गया कि जैसे अच्छे इंसान हमे प्रिय हैं, वैसे ही भगवान को भी अच्छे लोग अतिप्रिय हैं। अपने पास बुला लेते हैं। डॉ. विद्याधर महला के सुपुत्र डॉ. राकेष महला की धर्मपत्नी डॉ. आरती महला गायनोकोलॉजिस्ट हैं। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल डॉ. राकेश महला के निधन पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

मरहूम सूफी संत भी करते हैं दरगाह जियारत?

दोस्तो, नमस्कार। तकरीबन बीस पहले की बात है। एक सज्जन उर्स के दौरान यूपी से अजमेर में दरगाह जियारत को आए थे। वे यहां कुछ माह ठहरे। मेरी उनसे कई बार मुलाकात हुई। षहर जिला कांग्रेस के प्रवक्ता मुजफ्फर भारती और मरहूम जनाब जुल्फिकार चिष्ती के साथ। वे विद्वान थे। कई विधाओं के जानकार। बहुत संजीदा। निहायत सज्जन। उनके चेहरे से नूर टपकता था। मुझे उनका नाम अब याद नहीं। उनसे अनेक आध्यात्मिक विशयों पर चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि उर्स के दौरान दुनिया भर के मरहूम सूफी संत ख्वाजा साहब की दरगाह की जियारत करने को आते हैं। वे यहां अकीदत के साथ हाजिरी देते हैं। जैसे मजार षरीफ के चारों ओर जायरीन का हुजूम होता है, वैसे ही मरहूम सूफी संतों का भी जमावडा होता है। जाहिर तौर पर वे अदृष्य होते हैं। आम आदमी को उन्हें देखना संभव नहीं होता। मगर आत्म ज्ञानियों को वे नजर आते हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें भी उनके दर्षन होते हैं। स्वाभाविक रूप से इस रहस्यपूर्ण तथ्य को मानना वैज्ञानिक दृश्टि से ठीक नहीं है। मगर जितने यकीन के साथ उन्होंने यह जानकारी दी तो लगा कि षायद वे सही कह रहे होंगे। उन्होंने बताया कि ख्वाजा साहब को सुल्तानुल हिंद इसीलिए कहा जाता है कि वे भारत भर के सूफी संतों के सरताज हैं। उनकी अलग ही दुनिया है, जिसके वे बादषाह हैं। कदाचित आप इस पर यकीन नहीं करें। मुझे मिली जानकारी को आपसे साझा करने मात्र की मंषा है।

https://youtu.be/Wx_tC7ItgZM

सोमवार, 31 मार्च 2025

आखिर हम नहीं मना पाए अजमेर का स्थापना दिवस

हालांकि यह आज तक तय नहीं है कि अजमेर का स्थापना दिवस कब है, मगर मोटे तौर पर यह मान लिया गया है कि विक्रम संवत 1170 यानी सन् 1112 में चैत्र प्रतिपदा के दिन अजमेर की स्थापना हुई थी। चलो कोई बात नहीं, हमें ठीक से पता नहीं लग पाया कि अजमेर की स्थापना कब हुई, मगर हमने जिस तिथि को मान लिया है, उसे भी तो ठीक से नहीं मना रहे। हां, नवरात्र स्थापना, चैत्र प्रतिपदा, नवसंवत्सर के साथ औपचारिक रूप से अजमेर का स्थापना दिवस भी मना लिया, लेकिन उसे भव्य रूप से मनाने का ख्याल ही नहीं किया। चंद बुद्धिजीवियों ने जरूर इसे मना कर औपचारिकता निभाई है, मगर सवाल उठता है कि जैसे सिंधी समाज साल में एक बार चेटी चंड पर विषाल षोभायात्रा निकालता है, महावीर जयंती पर जैन समाज की ओर से विषाल जुलूस निकाला जाता है, हिंदूवादी संगठन राम नवमी को भव्य तरीके से मनाते है, अन्य समाज भी अपने अपने इश्ट देवताओं की जयंती धूमधाम से मनाते हैं, कावड यात्राएं निकालते हैं, क्या उसी तरह का भव्य आयोजन अजमेर के स्थापना दिवस पर नहीं किया जा सकता? असल में स्थापना दिवस मनाने की जिम्मेदारी किसी संस्था या संगठन पर आयद नहीं की जा सकती, और न ही किसी के बस की बात है, मगर अजमेर जिला प्रषासन व नगर निगम तो अपने संसाधनों से बडा आयोजन कर ही सकते हैं। जब हम दषहरा मना सकते हैं, गरबा का आयोजन कर सकते हैं, फागुन महोत्सव मना सकते हैं, बादषाह की सवारी निकाल सकते हैं, आनासागर जेटी पर आतिषबाजी कर सकते हैं, तो अजमेर स्थापना दिवस के लिए फंड क्यों नहीं जुटा सकते? यह तभी संभव हो सकता है, जब कि सिविल सोसायटी प्रषासन पर इसके लिए दबाव बनाए। यूं सिविल सोसायटी में अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं, मगर एक भी इस स्थिति में नहीं है, जो दमदार तरीके से स्थापना दिवस मनाने का दबाव बना सकंे। और सबसे बडी बात कि उसके लिए जो विल चाहिए, वह अभी जागृत नहीं हो पाई है।


https://www.youtube.com/watch?v=J498QWNN8Z0&t=13s

रविवार, 30 मार्च 2025

मिजाज ए अजमेर

एक व्यक्ति मरने के बाद ऊपर गया। यमराज ने उसे सजा देने के लिए पहले उसे एक ठण्डे मकान में रखा जहां तापमान 4 डिग्री था। फिर भी वह आदमी हंसता हुआ बाहर आया और बोला कि एक पंखा और होता तो मजे आ जाते। अब यमराज ने उसे एक गर्म मकान में रखा, जहां का तापमान 45 डिग्री  था और उसमें एक पंखा भी लगा दिया ...फिर भी वह आदमी हंसता हुआ बाहर आया और बोला बिना पंखे के भी सही था। यमराज को गुस्सा आया और उस पर बारिश, ओले व तूफान आदि सब प्रयोग किये, लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ तो फिर यमराज ने उसको एक गड्ढे और पानी से भरी डिग्गी में भेजा और बोला इसको पार करके आ...वो आदमी हंसता हुआ दूसरी तरफ से बाहर आकर बोला अपने शहर की याद आ गयी। वो बोला मैं अपने षहर की गलियों अक्सर ऐसे पार करता हूं। यमराज ने परेशान होकर चित्रगुप्त से कहा कि इसका रिकॉर्ड चैक करो.....चित्रगुप्त ने रिकॉर्ड देखकर कहा महाराज ये आदमी अजमेर का रहने वाला है। ये सब यातनाएं झेल कर अपने आप को हर तरह से डॅवलप कर चुका है।

ये 45 डिग्री के तापमान में भी गरमा गरम कचौरी खाता है। ठण्ड में भी मटके की कुल्फियां खाता है और गड्ढे और पानी से भरी सड़कों की आदत हो चुकी है इसे। ये इसका कुछ नही बिगाड़ सकती.. उसके बावजूद ये टैक्स भरता है। सहनशील ’अजमेर’ वासियो को पुनः समर्पित है। 

यह आलेख कभी अजमेर में जनस्वास्थ अभियांत्रिकी विभाग में अधिषाशी इंजीनियर रहे इंजीनियर शिव शंकर गोयल ने भेजा है। वे सुपरिचित व्यंग्य लेखक हैं और वर्तमान में दिल्ली में रहते हैं। अजमेर से उनका गहरा लगाव है।

https://ajmernama.com/chaupal/429295/

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

जिंदादिल शख्सियत थे वरिष्ठ वकील टेहल बुलानी

वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व लोक अभियोजक श्री टेहल बुलानी का गत दिवस निधन हो गया। वे विलक्षण व्यक्तित्व के मालिक थे। कानून की बारीकी के जानकार। उन्होंने वकालत के पेशे को डूब कर किया। उन्हें राजनीतिक सूझबूझ भी गहरी थी। शहर की नस नाडी पर उनकी पकड थी। जिस केन्द्र से शहर संचालित होता है, वहां पर मौजूदगी थी उनकी। शहर की गति का तानाबाना बुनने वालों में उनकी हिस्सेदारी थी। यदि यह कहा जाए कि वे अजमेर के चंद शीर्षस्थ जागरूक लोगों में शुमार थे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कुछ राजनीतिक नेता उनसे मार्गदर्शन लिया करते थे। भूतपूर्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के करीबी थे। वे स्वभाव से अलमस्त थे। खुशमिजाज। बहिर्मुखी व्यक्तित्व थे। अकेले इसी जिंदादिली व यारबाजी ने उन्हें उम्र के आखिरी पडाव तक जिंदा बनाए रखा। मगर अफसोस इस बात का होता है कि जैसे ही कोई शख्स उम्र दराज होने के कारण सार्वजनिक जीवन से दूर हो कर एकाकी जीवन जीने को मजबूर होता है, लोग उसे भुला देते हैं। पुराने लोगों को जरूर ख्याल होता है, मगर नई पीढी को कोई भान नहीं होता कि अमुक शख्स का कभी अजमेर की बहबूदी से वास्ता रहा है। ऐसे अनेक शख्स गुमनानी की जिंदगी जी रहे हैं अजमेर में। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल स्वर्गीय श्री बुलानी को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


गुरुवार, 27 मार्च 2025

कब है अजमेर का स्थापना दिवस?

सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल अजमेर नगरी का स्थापना दिवस कब है, इसका पता आज तक नहीं चल पाया है। मोटे तौर पर यही माना जाता है कि 2011 में चैत्र प्रतिपदा के दिन अजमेर की स्थापना हुई थी। और इसी कारण कभी 23 मार्च को तो कभी 27 मार्च को स्थापना दिवस मनाने की औपचारिकता निभा दी गई। साथ ही अफसोसनाक बात ये है कि ऐतिहासिक अजमेर का स्थापना दिवस कभी बडे पैमाने पर नहीं मनाया गया है।

आपको बता दें कि एक बार जब 23 मार्च को स्थापना दिवस सांकेतिक रूप से मनाया गया था, तब संग्रहालय के भूतपूर्व अधीक्षक मरहूम जनाब सैयद आजम हुसैन ने माना था कि 23 मार्च को मनाया जा रहा अजमेर का स्थापना दिवस एक शुरुआत मात्र है। अजमेर की स्थापना के बारे में अगर कहीं लिखित प्रमाण मिलेंगे तो उन पर अमल करते हुए इस तिथि में फेरबदल कर दिया जाएगा। पर्यटन विकास समिति के मनोनीत सदस्य महेन्द्र विक्रम सिंह व इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटेक) के अजमेर चौप्टर के स्थापना दिवस मनाने के आग्रह के पीछे उनका ही हाथ था। संग्रहालय के अधीक्षक होने के नाते उनके पास जरूर अधिकृत जानकारियां हो सकती थीं, वरना महेन्द्र विक्रम सिंह व इंटेक को क्या पता? यदि यह कहा जाए की इस पूरे प्रकरण के मूल में आजम हुसैन ही हैं और अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत का श्रेय उन्हीं खाते में जाता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस लिहाज से वे बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत तो करवाई, भले ही अभी तिथि के पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं हैं। चूंकि हिंदू मान्यता के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को नव संवत्सर को आरंभ किया जाता है, इस कारण इस वर्ष नव संवत्सर की प्रतिपदा को समारोह मनाने की परंपरा आरंभ की गई।

वैसे अब तक एक भी स्थापित इतिहासकार ने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। स्थापना दिवस मनाने के अजमेर नगर परिशद के पूर्व उप सभापति सोमरत्न आर्य व भूतपूर्व मंत्री स्वर्गीय श्री ललित भाटी ने भी खूब माथापच्ची की थी, मगर उन्हें स्थापना दिवस का कहीं प्रमाण नहीं मिला। अजमेर के अन्य सभी मौजूदा इतिहासकार भी प्रमाण के अभाव में यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना कब हुई। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। मौजूदा इतिहासकार शिव शर्मा का भी यही मानना रहा है कि स्थापना दिवस के बारे में कहीं कुछ भी अंकित नहीं है। उन्होंने अपनी पुस्तक में अजमेर की ऐतिहासिक तिथियां दी हैं, जिसमें लिखा है कि 640 ई. में अजयराज चौहान (प्रथम) ने अजयमेरू पर सैनिक चौकी स्थापित की एवं दुर्ग का निर्माण शुरू कराया, मगर स्थापना दिवस के बारे में कुछ नहीं कहा है। इसी प्रकार अजमेर के भूत, वर्तमान व भविष्य पर लिखित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है।

राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित सरस्वती पुत्र पूर्व राज्यसभा सदस्य औंकार सिंह लखावत ने तो बेशक नगर सुधार न्यास के अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक बनवाते समय स्थापना दिवस खोजने की कोशिश की होगी। लखावत जी को पता लग जाता तो वे चूकने वाले भी नहीं थे। इनमें से कोई भी आधिकारिक रूप से यह कहने की स्थिति नहीं रहा कि यह स्थापना दिवस है।

सवाल उठता कि क्या इस मामले में तत्कालीन जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को अंधेरे में रख कर उनसे अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर लिया गया? क्या उन्हें यह जानकारी दी गई कि पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, मगर फिलहाल शुरुआत तो की जाए, बाद में प्रमाण मिलने पर फेरबदल कर लिया जाएगा? क्या प्रस्ताव इस रूप में पेश किया जाता तो जिला कलेक्टर उसे सिरे से ही खारिज कर देतीं? लगता है कहीं न कहीं गडबड़ है। बेहतर तो ये होता कि जिला कलेक्टर इससे पहले बाकायदा अजमेर के इतिहासकारों की बैठक आधिकारिक तौर पर बुलातीं और उसमें तय किया जाता, तब कम से कम इतिहासकारों का सम्मान भी रह जाता और विवाद भी नहीं होता। यही वजह है कि स्थापना दिवस घोषित होने के बाद इतिहासकार इस तिथि को मानने को तैयार नहीं थे।

-तेजवाणी गिरधर

7742067000


बुधवार, 26 मार्च 2025

अजमेर में रहस्यमय गुफा सीसाखान

अजमेर में एक ऐसी रहस्यमय गुफा है, जिसके बारे में कोई प्रमाणिक तथ्य ऐतिहासिक पुस्तकों में मौजूद नहीं हैं, मगर कई दिलचस्प किंवदंतियां प्रचलन में है। इस ऐतिहासिक गुफा की सच्चाई जानने के लिए आजादी के बाद भी कोई अधिकृत प्रयास नहीं किए गए, इस कारण गुफा के रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है। इस गुफा का नाम है सीसा खान। यह नाम सुपरिचित है, मगर आज एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं, जिसने गुफा के भीतर जा कर देखा हो कि आखिर माजरा क्या है?

डिग्गी बाजार चौक और ठठेरा चौक के बीच रेगर मोहल्ले के द्वार में घुसने के बाद आगे चल कर एक गुफा है। नाम से अनुमान लगाया जाता है कि किसी जमाने में यहां सीसे की खान रही होगी। बताते हैं कि यह गुफा का रहस्य जानने के लिए आज तक जो भी अंदर गया, वह लौट नहीं पाया। असल में गुफा में आगे जाना व भीतर जा कर देखना संभव ही नहीं, क्योंकि अंदर बहुत अधिक नमी है। यहां तक कि टॉर्च, मोमबत्ती या मशाल बुझ जाती है। घुप्प अंधेरे के अतिरिक्त भीतर कई तरह के जहरीले जीव-जंतु हैं, इस कारण कोई भी हिम्मत नहीं जुटा पाता। 

बताते हैं कि इस गुफा का एक सिरा तारागढ़ से जुड़ा है और दूसरा शहर से बाहर कहीं जंगल में। कुछ कहते हैं कि इस प्रकार की सुरंगों की एक श्रृंखला थी, जो आगरा व दिल्ली तक गुप्त रूप से जाने के काम आती थी। कदाचित इनका उपयोग आक्रमण के समय बच कर निकलने के लिए किया जाता हो। ये भी मान्यता है कि इस सीसा खान गुफा का उपयोग सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय इष्ट देवी चामुंडा माता के मंदिर में जाने के लिए किया करते थे। स्वामी न्यूज चैनल पर यह स्टोरी देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए


https://www.youtube.com/watch?v=ZnOvWrl2eqg


https://www.facebook.com/swaminewsajmer/videos/621276961824301/


रविवार, 23 मार्च 2025

डॉ. कुलदीप शर्मा बन गए रातों रात हीरो

इसमें कोई दोराय नहीं कि शहर के प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट डॉ. कुलदीप शर्मा को नोटिस दिए बिना उनके मकान पर बुलडोजर चलाया और उनके साथ होमगार्ड के जवानों ने जो बदसलूकी की, वह अत्यंत निंदनीय है। व्यापक निंदा हुई भी। गुस्सा भी फूटा। प्रशासन को झुकना पडा और त्वरित कार्यवाही हुई। लेकिन इस का परिणाम यह हुआ कि डॉ. कुलदीप शर्मा रातों रात हीरो बन गए। पिछली बार विधानसभा चुनाव में जब उन्होंने दावेदारी की थी तो केवल राजनीति में खास दिलचस्पी रखने वाले ही उनसे परिचित हो पाए थे, लेकिन ताजा घटना के चलते अजमेर का बच्चा-बच्चा उनको जान गया है। कदाचित पिछले चुनाव में बतौर निर्दलीय लड चुके ज्ञान सारस्वत से भी अधिक। ज्ञान जी भी बहुत प्रसिद्ध हुए थे, आम आदमी उनसे परिचित हो गया था, मगर डॉ. कुलदीप शर्मा को बच्चा-बच्चा जान गया है। हां, यह बात जरूर है कि ज्ञान जी की प्रसिद्धि में लोकप्रियता का पुट अधिक है और शर्मा की प्रसिद्धि में सहानुभूति का।

राजनीति भी कैसी उलटबांसी है। जो अपमानित होता है, वह लोकप्रिय हो जाता है। स्वयं डॉ. कुलदीप शर्मा को भी अपने अपमानित होने का बहुत मलाल है। उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि इस घटना को वे कभी नहीं भूल पाएंगे। मगर उन्हें क्या पता कि इस वारदात ने उन्हें रातों रात हीरो बना दिया है। पूरे शहर ने जिस तरह उनके प्रति संवेदना व्यक्त की, सहानुभूति जताई, उससे वे यकायक सुपरिचित हो गए हैं। मीडिया की सक्रियता और ब्राह्मण समाज व डॉक्टर्स के समर्थन के चलते कार्यवाही भी हुई, जिससे वे ताकतवर हो कर उभरे हैं। अगली बार दावेदारी करने में उन्हें बहुत आसानी हो जाएगी। यह बात दीगर है कि वे तब इसमें दिलचस्पी ही न लें।

रहा सवाल मामले के पटाक्षेप का तो वह अनेक सवाल छोड गया है। लोग असमंजस में हैं कि यदि जेईएन की कार्यवाही सही थी तो उन्हें निलंबित क्यों किया गया? राजपूत समाज ने इस पर सवाल खडा कर दिया है। उनका तर्क हैं कि उन्होंने अपने उच्चाधिकारी के आदेश पर अमल किया तो कार्यवाही उन पर कैसे हो गई? निर्माण ध्वस्त होने से हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा, इसका कहीं खुलासा नहीं है? लोगों ने डॉक्टर साहब को संभ्रांत नागरिक बता कर होमगार्ड्स के तरीके पर सवाल खडे किए, तो क्या आम आदमी के साथ ऐसा हो तो उसे कहीं हम जायज तो नहीं ठहरा रहे हैं? डॉक्टर साहब व जेईएन के पक्ष में समाजों का लामबंद होना क्या यह साबित नहीं करता कि हमारा पूरा सिस्टम जातिवाद पर टिका है?

शनिवार, 15 मार्च 2025

बुरा न मानो होली है

दोस्तो, इस बार होली के मौके पर स्वामी न्यूज चैनल पर बुरा न मानो होली है कार्यक्रम के अंतर्गत अजमेर के सुपरिचित चेहरों को टाइटल दिए गए। कम समय में तैयार इस कार्यक्रम में स्वाभाविक रूप से चूक होने का अंदेशा था। हुआ भी वही। अनेक साथियों को टाइटल दिए गए, मगर प्रकाशित होने वाली सूचि में शुमार नहीं हो पाए। हम हृदय की गहराई से खेद व्यक्त करते हैं। असल में हर साल आयोजित किया जाने वाला फाल्गुन महोत्सव इस बार भी आयोजित नहीं किया जा सका। कतिपय कारणों से। ऐसे में स्वामी न्यूज चैनल पर वैसा ही कार्यक्रम स्टूडियो में आयोजित करने का विचार था। उसकी रूपरेखा बनी भी। मगर अपेक्षित सहयोग न मिलने पाने के कारण जल्दबाजी में कुछ अंश ही बनाए जा सके। समय कम था। पिछले कुछ सालों में दिए गए टाइटल्स की सूचियां कंपाइल करनी थी। काम बहुत कठिन था। जो बंधु टाइटल बनाया करते हैं, वे समझ सकते हैं कि यह कितना मुश्किल होता है। चार-पांच बार संशोधन किया जाता है, तब जा कर सूचि मुकम्मल हो पाती है। इस बार समायाभाव की वजह से ऐसा संभव हो नहीं पाया, नतीजतन अनेक साथियों के टाइटल तो बन गए, मगर मुख्य सूचि में शामिल करने से रह गए। जैसे ही सूचि प्रकाशित हुई, शिकायतें आनी ही थी। वे वाजिब भी थीं। यह शिकायत कर्ताओं का स्नेह और अधिकार है कि उन्होंने उलाहना दिया। हम उलाहनों को शिरोधार्य करते हैं। यकीन मानिये, किसी का भी नाम सायास नहीं हटाया गया। हटा सकते भी नहीं थे। आखिर सोसायटी में चर्चित चेहरे हैं। बहरहाल, होली बीत गई है। अब उन अप्रकाशित टाइटल्स को प्रकाशित करना बेमानी है। एक बार तो ख्याल आया कि उनको कम्पाइल कर दूसरी सूचि जारी की जाए, मगर वह उचित प्रतीत नहीं हुआ। हमारे मन में आपके प्रति पूरा सम्मान है। मेहरबानी करके इस मानवीय चूक को नजरअंदाज कर क्षमा कर दीजिए। प्लीज, प्लीज, बुरा न मानिये, होली है।

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

बुरा न मानो होली है

लाल फीता


लोकबंधु, जिला कलेक्टर- मौनी बाबा
वंदिता राणा, पुलिस अधीक्षक- आयरन लेडी
गजेन्द्र सिंह- आम आदमी
ज्योति ककवानी- काम से काम
सुरेश सिंधी- राजनीति का चस्का
भानु प्रताप गुर्जर- जय बाबा देवनानी की
संतोष प्रजापति- संतोषी सदा सुखी

शतरंज के खिलाडी
सचिन पायलट- उडान की उम्मीद
भागीरथ चौधरी- लंबी छलांग
भूपेंद्र यादव- अबूझ पहेली
वासुदेव देवनानी- मुकद्दर का सिकंदर
सुरेश रावत- पुष्कर किंग
रघु शर्मा- परशुराम
ओंकार सिंह लखावत- धरोहर का पट्टा
धर्मेंद्र सिंह राठौड़- गुरिल्ला
सुशील कंवर पलाड़ा- सौभाग्यवति
रिजू झुंझुनवाला- पलटीमार
अनीता भदेल- कल्पित मुख्यमंत्री
रामस्वरूप लांबा- मस्तमौला
रामनारायण गूजर- इमारत कभी बुलंद थी
डॉ प्रभा ठाकुर- हाशिये पर
सुरेश टाक- काठ की हांडी
शंकर सिंह रावत- पर्ची नहीं खुली
राकेश पारीक- पायलट जिंदाबाद
महेंद्र गुर्जर- मेरा क्या होगा?
ब्रजलता हाडा- ना काहू से बैर
धर्मेंद्र गहलोत- हार नहीं मानूंगा
वंदना नोगिया- भाग्य के भरोसे
भंवर सिंह पलाड़ा- बेताज बादशाह
प्रो. बी. पी सारस्वत- शनि दोष
शिव शंकर हेडा- गोडावण
रामचंद्र चौधरी- अभी तो मैं जवान हूं
जसराज जयपाल- जगत डैडी
श्रीकिशन सोनगरा- वो भी क्या दिन थे
हेमंत भाटी- हार्ड लक
राजकुमार जयपाल- खुद के दम पर
नाथूराम सिनोदिया- देहाती अंदाज
पुखराज पहाडिया - ढाई घर की चाल
श्रीमति सरिता गैना - वक्त का इंतजार
श्रीमति वंदना नोगिया - फिर लहर आएगी
किशन गुर्जर - अगली बार का इंतजार
ओम प्रकाश भडाना - बाजी मार ली
कमल पाठक - जमींदार
राजेश टंडन- वन मेन आर्मी
डॉ प्रियशील हाडा- नई भूमिका को तैयार
विजय जैन- पेंडुलम
भूपेंद्र राठौङ- टाइम पास
अरविंद यादव- किस्मत के धनी
धर्मेश जैन- प्यास अभी बाकी है
नीरज जैन- फटे में टांग
संपत सांखला- कछुआ चाल
महेंद्र सिंह रलावता- हम किसी से कम नहीं
देवीशंकर भूतड़ा- ब्यावर नरेश
कमल बाकोलिया- एंटिक
नसीम अख्तर- अमीबा
विकास चौधरी - कभी तो लहर आएगी
सुरेन्द्र सिहं शेखावत- हमको भी जाती है क्रेडिट
डॉ. श्रीगोपाल बाहेती- मात्र एक चूक
हरीश झामनानी-जाहि विधि रोखे राम
हाजी कयूम खान- उम्मीद बाकी है
सत्य किशोर सक्सेना- इमारत कभी बुलंद थी
हरी सिंह गुर्जर- सेचुरेटेड
नरेन शाहनी भगत- घूरे के दिन भी फिरते हैं
संग्राम सिंह गुर्जर- साहब का लाडला
राजू गुप्ता.- धीरे धीरे रे मना
ब्रम्हदेव कुमावत- वो भी क्या दिन थे
शक्ति प्रताप सिंह पीपरोली - अंगद
बाबूलाल सिघांरिया- वक्त का इंतजार
सतीश बंसल- सदाबहार
कंवल प्रकाश किशनानी- चस्का कायम है
गजवीर सिंह चुंडावत- छींका टूटने का इंतजार
स्वामी अनादि सरस्वती- बुरी फंसी राजनीति में आ कर
भारती श्रीवास्तव- बिंदास
अमोलक सिंह छाबड़ा- बुलंद आवाज
प्रताप यादव- बेटी में भविष्य की तलाश
नरेंद्र सत्यावना- अफलातून
कैलाश झालीवाल- किनारे पर नाव
द्रोपदी कोली- मत चूके चौहान
श्रवण टोनी- धरती पकड
चन्द्रशेखर बालोटिया काकू- पेट में दाढी
सुनील केन- खिलाडी
शैलेन्द्र अग्रवाल- राडौड बाबा जिंदाबाद
गजेन्द्र सिंह रलावता- दाई माई
रमेश सोनी- जय बाबा देवनानी
देवेन्द्र सिंह शेखावत- लंबी रेस का घोडा
नौरत गुर्जर- अंगूर खट्टे हैं
विकास सोनगरा- विरासत के भरोसे
ज्ञान सारस्वत- मांद में शेर
महेश ओझा- चाइना वाल
डॉ सुरेश गर्ग- आठ सोलह का पाना
सर्वेश पारीक- जोडी जिंदाबाद
बिपिन बेसिल- पट्टा लिखा लाया हूं
श्याम प्रजापति - जैन की छाया

दुकानदार

सुनील दत्त जैन - मन की मन में
सीताराम गोयल- उंचे सपने
मनोज मित्तल- कसक बाकी है
राधेश्याम चोयल- लंबी छलांग
अशोक रावत- भावी दावेदार
जगदीश वच्छानी- कभी तूती बोलती थी
कोसिनोक जैन - मैनेजर
धनराज चौधरी- साजिश का शिकार
अतुल दुबे - लंबी लकीर
जे पी दाधीच- टापू किंग
रासबिहारी गौड़- पद्मश्री की आस
उमरदान लखावत- तटस्थ
सूर्य प्रकाश गांधी- वकील कम पत्रकार ज्यादा
अतुल दुबे- तीन लोक से मथुरा न्यारी
लाखन सिंह- ड्रामा ही जिंदगी
दिलीप पारीक- आवाज का जादूगर
मधु खंडेलवाल- लेखिका क्वीन
दिशा किशनानी- लेडी लीडर
गोपाल बंजारा- ठीयेबाज
कृष्ण गोपाल पाराशर- घुंघरू
विष्णु अवतार भार्गव- छुपा रुस्तम
विवेक पाराशर- वकील कम राजनीतिज्ञ ज्यादा
संदीप धाबाई- पाला बदल लिया
प्रशांत यादव- उछल कूद

कलमतोड

डी .बी चौधरी- भीष्म पितामह
नरेंद्र चौहान- ना काहू से दोस्ती
डॉ रमेश अग्रवाल - लौ कायम है
आनंद ठाकुर- अजमेर रास आ गया
गिरधर तेजवानी- साधू बाबा
राजेन्द्र गुंजल चाणक्य
ओम माथुर- झुकना मंजूर नहीं
सुरेंद्र चतुर्वेदी- डब्ल्यू डब्ल्यू एफ
एस पी मित्तल- ब्लॉगिंग आदत या मजबूरी
सुरेश कासलीवाल- इनाम दर इनाम
राजेंद्र शर्मा- अल्लाह की गाय
प्रताप सनकत- गायक कलाकार
प्रेम आनंदकर- देवनानी जी की जय
संजय माथुर- साहब का कृपापात्र
अशोक शर्मा- हिटलर
नरेंद्र भारद्वाज- घाव करें गंभीर
विनीत लोहिया- खेल राजनीति से दूर
राजेंद्र याग्निक- वास्तविक पंडित
प्यारे मोहन त्रिपाठी- पीआर मास्टर
गोपाल सिंह लबाना- धीरे धीरे रे मना
त्रिलोक जैन- वजूद की खातिर
आरिफ कुरैशी- खादिम
युगलेश शर्मा- मेहनत पर भरोसा
क्षितिज गौड - क्षितिज दूर है
दिलीप शर्मा- भोला भंडारी
सुरेश लालवानी- मस्त मौला
विक्रम चौधरी- जिंदगी ऐसे जियो
धर्मेन्द्र प्रजापति- पुलिस की नब्ज
मनीष चौहान- काम से काम
पवन अटारिया- उठाउ चूल्हा
इन्द्रशेखर भटनागर - वॉट्सएप न्यूज
दिलीप मोरवाल- जेएलएन ही जिंदगी
योगेश सारस्वत- हर जगह फिट
अतुल सिंह बाग- सबसे अलग
बलजीत सिंह- नींव की ईंट
निर्मल मिश्रा- जवानी कायम है
संतोष खाचरियावास- संतोषी जीव
बृजेश शर्मा- पानी रास आ गया
रक्तिम तिवारी- राजपूत
गिरीश दाधीच- ज्योतिषी
रजनीश रोहिल्ला- जड अभी जिंदा है
सी पी जोशी- मुकाम पा लिया
रजनीश शर्मा- बस नौकरी
पी के श्रीवास्तव- हमारे भी किस्से थे
मनोज दाधीच- जादूगर
नरेश राघानी- ऊंची दुकान
जाकिर हुसैन- ख्वाहिश कुछ और है
विजय मौर्य- गहरी चाल
अनिल माहेश्वरी- जुगाडू
गजेंद्र बोहरा- अफलातून
अभिजीत दवे- एक घर बसाउंगा
मनवीर सिंह चुंडावत- लंबी छलांग
आनंद शर्मा - गुरूओं का गुरू
प्रियांक शर्मा- जो हम से टकराएगा
नवाब हिदायत उल्ला- सेटिंग मास्टर
बालकिशन शर्मा- देखन में छोटे लगें
डॉ राशिका महर्षि- स्टील लेडी
अनुराग जैन- लंबी कहानी
कौशल जैन- हम नहीं ठहरेंगे
आशु कौशिक- हंगामा है क्यूं बरपा
दीपक शर्मा- एकला चालो रे
मुकेश परिहार- पेट में दाढी
जय मखीजा- आपका दोस्त
चंद्रशेखर शर्मा - दूर का दर्शन
संजय गर्ग- सबसे फास्ट
अशोक सिंह भाटी- मूंछ पर ताव
शुभम जैन- बडा दुकानदार
दुर्गेश डाबरा- हुकम का गुलाम
रूपेंद्र शर्मा- तोकू कोई और नहीं
नजीर कादरी- छपासियों का इलाज
मोहन ठाडा- हम किसी से कम नहीं
राजकुमार वर्मा- पुराना चावल
आरजू प्रजापत- फेमस ऐंकर


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