गुरुवार, 19 जून 2025
कांग्रेस से क्यों विमुख होते जा रहे हैं सिंधी नेता?
रविवार, 15 जून 2025
छोटा सा गांव टहला बना शक्तिकेन्द्र
मातृभूमि की अनूठी पूजा की औंकार सिंह लखावत ने
अजमेर के निकटवर्ती नागौर जिले का छोटा सा टहला गांव। गत दिनों चहल-पहल के आगोश में था। प्रदेश भर के छोटे-बडे नेताओं की आवाजाही से आबाद। एक जागृत शक्ति केन्द्र का आभास। मौका था राजस्थान धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत की धर्म पत्नी के निधन पर शोक संवेदना व्यक्त करने का। दिनभर श्रद्धालुओं का तांता। आवभगत में कोई कमी नहीं। हर एक को आते ही पानी की बोतल। तुरंत बाद चाय की प्याली। भीषण गर्मी से निजात दिलाने के लिए दो बडे कूलर। लखावत बैठक के एक कोने में मुड्डे पर बैठे हुए दिखाई देते हैं। शांत, अविचल। धीर-गंभीर चहरे के भीतर से झांकता जीवनसाथी के विछोह का दर्द। हर खास को अपने पास सोफे पर बिठाते हैं। सुनते सबकी हैं, खुद चंद शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। पूरे बाहर दिन सुबह से लेकर शाम तक लगातार बैठना कितना कठिन है, यह वे ही समझ सकते हैं। कौतुहल होता है कि वे चाहते तो शोक बैठक अपनी कर्मस्थली अजमेर में भी रख सकते थे, जहां कहीं अधिक गुना लोग संवेदना व्यक्त करने आते, मगर उन्होंने इसके लिए चुना अपनी मातृभूमि को। कदाचित धर्मपत्नी की मृत्युपूर्व इच्छानुसार या पारिवारिक परंपरा के निर्वहन की खातिर। और उससे भी अधिक जन्म देने वाली भूमि की पूजा की खातिर। भाव भंगिमा में मातृभूमि के प्रति समर्पण की संतुष्टि साफ झलकती है। कुछ इस तरह जताया आभारः-https://www.facebook.com/photo?fbid=10012922488797444&set=a.893845674038550
शुक्रवार, 6 जून 2025
लंबी राजनीतिक यात्रा के बाद बी पी सारस्वत को मिला यथोचित सम्मान
जब उन्हें देहात जिला भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई तो यह माना जाने लगा कि उनकी किस्मत में केवल सेवा ही लिखी है। तीन विधानसभा चुनावों में वे ब्यावर सीट के दावेदार रहे, उसके बाद अजमेर उत्तर अथवा केकड़ी से प्रबल दावेदार थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला। देहात जिले की छहों सीटों पर पार्टी की जीत ने यह साबित हो गया कि सांगठनिक लिहाज से उनकी कार्यशैली अद्भुद है। जिले में पूरी निष्पक्षता के साथ शानदार सदस्यता अभियान चलाने का श्रेय भी उनके ही खाते में दर्ज है। वे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी लोगों में माने जाते हैं।
वस्तुतः वे मूल्य आधारित विचारधारा के पोषक हैं और मूल्यों की रक्षा के कारण ही उठापटक की राजनीति में अप्रासंगिक से नजर आते हैं। नैतिक मूल्यों की रक्षा की खातिर ही उन्होंने भाजपा के शिक्षा प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष पद को त्याग दिया, हालांकि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय रहे हैं। पिछली अशोक गहलोत सरकार के दौरान विहिप नेता प्रवीण भाई तोगडिया के त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम के दौरान उनको सहयोग करने वालों में प्रमुख होने के कारण उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज हुआ था।
विद्यार्थी काल से ही वे संघ और विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। वे सन् 1981 से 86 तक परिषद के विभाग प्रमुख रहे। वे सन् 1992 से 95 तक संघ के ब्यावर नगर कार्यवाह रहे। वे सन् 1997 से 2004 तक विश्व हिंदू परिषद के प्रांत मंत्री रहे हैं। वे सन् 1986 से 97 तक राजस्थान यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अनेक पदों पर और 2001 से 2003 तक अजमेर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी चौदह पुस्तकें और बीस पेपर्स प्रकाशित हो चुके हैं। उनके मार्गदर्शन में विद्यार्थियों ने पीएचडी की है। वे चीन, सिंगापुर, श्रीलंका व पाकिस्तान आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं।
उनका जन्म जिले के छोटे से गांव ब्रिक्चियावास में सन् 1960 में हुआ। उच्च शिक्षा पाने के बाद वे ब्यावर स्थित राजकीय सनातन धर्म महाविद्यालय में लेक्चरर बने। लंबे समय तक नौकरी करने के बाद महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बनाए गए। पदोन्नति के बाद प्रोफेसर बने। बाद में वे कॉमर्स विभाग के विभागाध्यक्ष और डीन बनाए गए। ग्यारह साल तक पीटीईटी (प्री. बी.एड़ परीक्षा) के कोर्डिनेटर बने। यह विश्वविद्यालय तब पीटीईटी की नोडल एजेंसी रहा। एक बार राज्य सरकार की ओर से रजिस्ट्रार पद नहीं भरा गया तो उनको तत्कालीन कुलपति ने रजिस्ट्रार का दायित्व सौंपा, जिसका निर्वहन करते हुए उन्होंने अनेक उपब्धियां हासिल कीं।
शुक्रवार, 30 मई 2025
बहुत जीवट वाले थे पत्रकार श्री निर्मल मिश्रा
उन्होंने पत्रकारिता की यात्रा 1984 में दैनिक आधुनिक राजस्थान से आरंभ की। तब मैं इंचार्ज था। वे बहुत महत्वाकांक्षी थे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से अजमेर आ कर उन्होंने अपने आपको स्थापित करने के लिए बहुत मेहनत की। आरंभिक दिनों में उनका कहना था कि वे बहुत उंचाई को छूना चाहते हैं। मुझे चुनौती देते थे कि आप तो यहीं रह जाओगे, मैं नेशनल लेवल तक जा कर चैन लूंगा। उन्होंने दैनिक न्याय, दैनिक नवज्योति व राजस्थान पत्रिका में भी काम किया। आखिर में दैनिक भास्कर से जुडे रहे। खोजपूर्ण पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने खास पहचान बनाई। कम लोगों को ही पता होगा कि अजमेर के बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियां व छायाचित्र सबसे पहले उनके हाथ लगे थे। उन्हें प्रकाशित करने में कुछ बाधाएं थीं। बाद में दूसरे पत्रकारों के हाथ लगे। ब्लैकमेल कांड पर कार्यवाही के लिए सरकार व प्रशासन पर दबाव बनाने वाले समूह में उनकी अहम भूमिका थी। क्राइम रिपोर्टिंग पर उनकी विशेष पकड थी। राजनीति व प्रशासन के क्षेत्र में भी खूब हाथ आजमाये। उन्होंने दैनिक नवज्योति में अजमेर विशेष पेज के लिए वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेन्द्र चतुर्वेदी के निर्देशन में अनेक खोजपूर्ण व दिलचस्प न्यूज आइटम दिए। दैनिक भास्कर में भी कई महत्वपूर्ण स्टोरीज कीं। वे राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ में भी सक्रिय रहे। पार्टटाइम पत्रकारिता करने वाले कर्मचारी नेता स्वर्गीय श्री सत्येश्वर प्रसाद शर्मा उन्हें पुत्रवत मानते थे। उनकी अच्छी खासी मित्र मंडली थी। राजनीतिक नेताओं भी गहरे ताल्लुकात थे। पत्रकार मित्र मंडली में सबसे छोटे होने के कारण सबके प्रिय थे और उनके छोटे-मोटे हठ को पूरा करने में खुशी महसूस करते थे। करीबी दोस्तों को सहसा यकीन ही नहीं हो रहा कि वे हमारे बीच नहीं रहे। कुल जमा अजमेर के पत्रकार जगत ने बहुत प्यारा, यारबाज व दिलेर पत्रकार खो दिया है। उनके जैसे यारबाज शख्स कम ही हैं, खासकर पत्रकार जगत में। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनके निधन पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है। ईश्वर उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें। साथ ही उनके परिवार को इस वज्रपात को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।
गुरुवार, 29 मई 2025
अग्रणी समाजसेवी थे श्री सुनील भुटानी
वे सुपरिचित कर कानून सलाहकार थे। उनका जन्म 5 फरवरी 1962 को हुआ। उनके पूर्वज सिंध के सेवण में रहते थे। उन्होंने 1985 में एम कॉम की डिग्री जीसीए से हासिल की और अपने मामा जाने-माने समाजसेवी श्री मोतीलाल ठाकुर के साथ टैक्स प्रैक्टिस आरंभ की। 2002 से उन्होंने अपना ऑफिस आरंभ किया। उनके पास अच्छा क्लाइंटेज था। प्रमुख व्यवसायी उनसे सलाह लिया करते थे। उनके चार भाई व चार बहिनें हैं। उनका विवाह 24 मार्च 1996 को हुआ। उनके एक पुत्र व एक पुत्री है। ज्ञातव्य है कि उनके जीजाजी श्री जगदीश वच्छानी समाज के एक स्तम्भ हैं। स्वामी श्री हिरदाराम जी के आशीर्वाद से प्रशासन पर गहरी पकड और एनआरआई से घनिष्ठ संबंधों के चलते समाजसेवा के अनेक प्रकल्प संचालित कर रहे हैं। स्वर्गीय श्री भुटानी के निधन से समाज को जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति असंभव है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
शुक्रवार, 23 मई 2025
जियारत व पूजा भी कोई खबर है?
उसमें किसने जियारत करवाई, किसने तवरूख भेंट किया, किसने पूजा करवाई, कौन कौन मौजूद थे, आदि का जिक्र होता है। सवाल उठता है कि आम पाठक की क्या इसको जानने में रूचि होती है। वह हैडिंग पढ कर उसे छोड देता है या पूरी खबर पढता है। हां, अगर जियारत व पूजा के दौरान वह कोई बयान देता है तो वह जरूर खबर है, मगर केवल जियारत व पूजा खबर कैसे हो सकती है। होता अमूमन ये है कि जब भी कोई दरगाह षरीफ में आता है या तीर्थराज पुश्कर की पूजा करता है तो मीडिया उसे घेर लेती है और संबंधित व ताजा मामलों में उसका बयान लेती है, जो कि खबर बन जाती है। मुझे ख्याल आता है कि दैनिक भास्कर अजमेर के तत्कालीन स्थानीय संपादक श्री जगदीष षर्मा ने एक व्यवस्था बनाई थी कि जियारत व पूजा की कोई खबर नहीं जाएगी। यदि जाएगी भी तो दो तीन लाइन में, जानकारी मात्र के लिए। ताकि यह पता रहे कि अमुक विषिश्ट व्यक्ति यहां आया था। खबर तभी बनाई जाए जब वह कुछ बयान दे। उसमें भी जियारत व पूजा की जानकारी दो तीन लाइन में होनी चाहिए। यह व्यवस्था काफी दिन चली।
अब बात करते हैं कि जियारत व पूजा की खबर बनाने की परंपरा कैसे षुरू हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में अखबार वालों ने विषिश्ट व्यक्ति के दरगाह व पुश्कर आने पर जियारत व पूजा करवाने वालों से खबर ली। बाद में इसका उलट हो गया। खबर अखबार के दफ्तर में भी आने लगी। यह ठीक वैसा ही है कि अमुक वकील ने अमुक मामले में अमुक को जमानत दिलवाई या बरी करवाया, और उसकी खबर बन जाए। अब तो जियारत व पूजा करने वाले स्वयं भी खबर लगवाने में रूचि लेते हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=vvHkmnZ2HJ0
शनिवार, 17 मई 2025
आजादी के बाद अजमेर नगर पालिका से निगम के मुखिया
1948-49ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग
1949-51ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग
1951ः श्री विशम्बरनाथ भार्गव
1951-52ः श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा
1952ः श्री जे. के. भगत
1953 व 54 में प्रशासकों ने व्यवस्था संभाली
1954-55ः श्री दुर्गादत्त उपाध्याय
1955-57ः श्री कृष्णगोपाल गर्ग
1957-58ः श्री ज्वालाप्रसाद शर्मा
1959-60ः श्री देवदत्त शर्मा
1960-61ः श्री माणकचंद सोगानी
1961 से 69 तक प्रशासकों ने व्यवस्थाएं संभाली
1970ः श्री एम.के. नाथूसिंह तंवर
1971ः श्री माणकचंद सोगानी
1973ः डॉ. एम. एल. बाघ
1973 से 90 तक प्रशासकों ने काम संभाला
1990-95ः श्री रतनलाल यादव
1995-2000 श्री वीरकुमार
24.1.2000-9.4.2000: श्रीमती विद्या कमलाकर जोशी (कार्यवाहक)
10.4.2000-28.8.2000: श्री सुरेन्द्र सिंह शेखावत
28.8.2000-22.12.2003ः श्रीमती अनिता भदेल
22.12.2003-31.12.2005ः श्रीमती सरोज देवी जाटव
2005-10ः श्री धर्मेन्द्र गहलोत
सन् 2008 में भाजपा शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पहल पर नगर परिषद को नगर निगम का दर्जा दे दिया गया। इसकी घोषणा उन्होंने अजमेर में ही की। वे यहां राज्य स्तरीय गणतंत्र समारोह में शिरकत करने आई थीं। इस लिहाज से श्री धर्मेन्द्र गहलोत को पहला मेयर बनने का गौरव हासिल हुआ। हालांकि जनसंख्या संबंधी औपचारिकता बाद में कुछ गांव मिला कर की गई।
अगस्त 2010 में करीब बीस साल भाजपा का कब्जा रहने के बाद पहली बार कांग्रेस के नए चेहरे वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व पार्षद स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र श्री कमल बाकोलिया अजमेर नगर निगम के पहले निर्वाचित मेयर बने। उन्होंने भाजपा के डॉ. प्रियशील हाड़ा को पराजित किया।
2015 में नई व्यवस्था के तहत मेयर का चुनाव पार्षदों में से किया गया और एक बार फिर धर्मेन्द्र गहलोत मेयर बने
2020 में भाजपा की श्रीमती ब्रजलता हाडा मेयर चुनी गई
गुरुवार, 15 मई 2025
आज भी जिंदा हैं सबा खान
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फोटो कांग्रेस नेता सौरभ यादव ने अपनी फेसबुक वाल पर साझा की है। कदाचित सबा खान की यह आखिरी फोटो है। |
अब जरा, उनकी शख्सियत के बारे में। उनमें गजब की फुर्ती थी, चुस्ती थी। यानि बिजली जैसी चपलता। तभी तो उनकी साथिनें पूछा करती थीं कि कौन सी चक्की का आटा खाती हो। कांग्रेस में तकरीबन दस साल शहर महिला अध्यक्ष रहीं। इस दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन रहा हो कि वे कहीं नजर न आई हों। राजनीति से इतर भी वे आम अवाम के हर काम के लिए जुटी दिखाई देती थीं। उनके पास शहर का जो भी मसला आता था, जो भी फरियादी आता था, वे तत्काल आला अफसरान के चेंबर में बेधड़क घुस कर पैरवी करती थीं। सियासत उनकी रोजमर्रा की जिंदगी बन गई थी। कांग्रेस और भाजपा, दोनों में इस किस्म के नेता कम ही हैं। अफसोस, एक मर्द औरत कोरोना से जंग हार गईं। और इसी के साथ अपार संभावनाओं का अंत हो गया। शहर वासियों केलिए भी, परिवार वालों के लिए भी।
अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदोस में आला मुकाम अता फरमाए। गमजदा परिवार वालों को सब्र जमील अता फरमाए। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
मंगलवार, 13 मई 2025
प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है सुधाबाय में
हर मंगला चौथ पर भरता है मेला
तीर्थराज पुष्कर के ही निकट सुधाबाय में हर मंगला चौथ अर्थात मंगलवार व चतुर्थी तिथी का संगम होने पर मेला भरता है। यहां श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करते हैं। अनेक वे लोग, जो आर्थिक अथवा अन्य कारणों से अपने पितरों के पिंड भरने गया नहीं जा पाते, वे यहां यह अनुष्ठान करवाते हैं। बताया जाता है कि भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध इसी कुंड में किया था। मान्यता है कि यहां कुंड में स्नान से प्रेत-बाधा से मुक्ति मिलती है। इस कारण कथित ऊपरी हवा से पीड़ित लोगों को उनके परिजन यहां लाते हैं और कुंड में डुबकी लगवा कर राहत पाते हैं।जानकारों का कहना है कि पुष्कर से करीब 4 किलोमीटर दूर व बूढा पुश्कर के पास स्थित सुधाबाय कुंड में शुक्ल पक्ष चतुर्थी मंगलवार के त्रि-संयोग के अवसर पर गया माता स्वयं विराजमान रहती है। इस मौके पर नारायण बली की पूजा भी यहां पर करवाई जाती है। आसानी से देखा जा सकता है कि महिला पुरुषों में कुंड में स्नान करने के साथ ही अदृश्य आत्माएं स्वयं अपनी भाषा बोलती है। अपना नाम पता बोलती है तथा उसका शरीर से निकल जाने की सौगंध लेती हैं। स्नान करने के बाद कुछ समय में ही प्राणी हंसता हुआ स्नान करता है तथा कुंड से बाहर आता है।
पद्मपुराण के पृष्ठ संख्या 104 में लिखा है कि मर्यादा पर्वत यज्ञ पर्वत के बीच सतयुग के तीन कुंड बताए गए हैं, जिन्हें ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर ओर कनिष्ठ पुष्कर के नाम से जाना जाता है। मध्य पुष्कर के समीप अवियोगा नामक एक चोकोर बावड़ी है, जिसके मध्य मे जल से युक्त एक कुआं है, जिसे सौभाग्य कूप कहते हैं। यहां पिंड दान करने से भटकती आत्माओं को मुक्ति मिलती है।
https://www.youtube.com/watch?v=Q1g4_2z08PU
रविवार, 11 मई 2025
समाजसेवी श्री ओमप्रकाश हीरानंदानी नहीं रहे
बेमिसाल सहजता की प्रतिमूर्ति थे स्वर्गीय श्री रासासिंह रावत
भाजपा में जाने से पहले रासासिंह रावत ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर भीम विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए। बाद में भाजपा में शामिल हो गए। वे विरजानंद स्कूल के प्रधानाचार्य रहे। बाद में उन्हें डीएवी स्कूल का प्राचार्य बना दिया गया, फिर वे आर्य समाज के प्रधान भी बने। आर्य स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान भी रहा है।
सांसद के रूप में उन्होंने सभी पांचों कार्यकालों में उन्होंने लोकसभा में अपनी शत-प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करवाई। अजमेर से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा मुद्दा रहा होगा, जो उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया। यह अलग बात है कि दिल्ली में बहुत ज्यादा प्रभावी नेता के रूप में भूमिका न निभा पाने के कारण वे अजमेर के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। एक बार उनके मंत्री बनने की स्थितियां निर्मित भी हुईं, लेकिन चूंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी के सोलह सहयोगी दलों के साथ मिल कर सरकार बनाने के कारण वे दल आनुपातिक रूप में मंत्री हासिल करने में कामयाब हो गए और प्रो. रावत को एक सांसद के रूप में ही संतोष करना पड़ा। उनकी सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि वह सहज उपलब्ध हुआ करते थे। बेहद सरल स्वाभाव और विनम्रता उनके चारित्रिक आभूषण थे। 10 मई 2021 को उनका देहावसान हो गया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
शनिवार, 3 मई 2025
आनासागर में लिंक ब्रिज होना चाहिए
https://www.youtube.com/watch?v=ZYZtVrpKDgs
गुरुवार, 1 मई 2025
अजमेर को ऊनाळो भलो
https://youtu.be/dzuGnBYux8M
मंगलवार, 29 अप्रैल 2025
बिंदास कर्मचारी नेता थे श्री संतोष कुमार भावनानी
समाजसेवा में भी उनकी गहरी दिलचस्पी थी। वे देहली गेट स्थित पूज्य लाल साहब मंदिर सेवा ट्रस्ट (झूलेलाल धाम) के उपाध्यक्ष थे। इसके अतिरिक्त अजमेर सिंधी पंचायत, सिंधु संगम, सिंधी संगम समिति से भी जुडे रहे। उन्होंने पंचायत की ओर से आयोजित प्रतिभावान विद्यार्थी सम्मान समारोह व इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका के लिए खूब काम किया। पिछले काफी समय से अस्वस्थ थे, इस कारण घर पर ही रहते थे। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025
कोई वस्तु रखी है और पड़ी है, में फर्क है
एक बार की बात है। उन्होंने एक क्लर्क को पूछा कि अमुक फाइल कहां पर है? क्लर्क ने जवाब दिया- अलमारी में पड़ी है। बाबा ने दुबारा पूछा- अमुक फाइल कहां है? वही जवाब मिला- अलमारी में पड़ी है। इस पर उनको गुस्सा आ गया। तीसरी बार सख्ती से पूछा- अमुक फाइल कहां पर है? क्लर्क को समझ में नहीं आया कि तीसरी बार फिर वही सवाल क्यों किया जा रहा है। उसने जैसे ही कहा कि अलमारी में पड़ी है तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने क्लर्क को झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया। बोले कि ये मत कहो कि पड़ी है, ये कहो कि रखी है। पड़ी का मतलब तो ये होता है कि लावारिस पड़ी है, जबकि रखी का मतलब होता है कि सुरक्षित और ठिकाने पर रखी है। आम तौर पर हम पड़ी और रखी शब्दों में हम फर्क नहीं समझते, मगर गौर से देखें तो वाकई बहुत अंतर है। मामूली अंतर है, मगर बड़ा भारी अंतर है। तात्पर्य यही कि बाबा शुद्ध हिंदी के प्रति अत्यधिक कटिबद्ध थे। यही वजह थी कि दैनिक न्याय में जिन्होंने पकारिता सीखी, वे पारंगत हो गए। बाद में जब किसी बड़े अखबार में गए तो पत्रकारिता की स्कूलिंग उन्हें बहुत काम आई। अच्छे-अच्छे पत्रकारों को टक्कर देने की काबिलियत रही उनमे। दैनिक न्याय जैसी पाठशालाएं अब कहां?
केवल पत्रकारिता ही नहीं, अपितु अनुशासन भी गजब का था दैनिक न्याय में। एक ऑलपिन तक यदि फर्श पर गिर जाए तो जिम्मेदार कर्मचारी के वेतन में से पैसे काट लिया करते थे। अनुशासन के ऐसे माहौल का ही परिणाम था कि सभी कर्मचारी अनुशासित रहने के आदी हो गए थे। उन दिनों टेलीफोन हर घर में नहीं हुआ करता था। पर हर कॉल के पैसे लगा करते थे। व्यवस्था ये थी कि अगर किसी आगंतुक को कॉल करना होता था तो उससे एक रुपया लिया जाता था। बाबा के एक पुत्र वृहस्पति शर्मा उन दिनों जयपुर कार्यालय में थे। कभी कभार अजमेर आया करते थे, इस कारण कई कर्मचारी उन्हें नहीं जानते थे। एक बार वे आए और उन्हें फोन करने की जरूरत पड़ी तो वे सीधे गए टेलीफोन के पास और एक कॉल कर लिया। जैसे ही जाने लगे तो वहां मौजूद सहायक संपादक संजय भट ने उनके एक रुपया मांग लिया। वे तो भौंचक्क ही रह गए। अपने ही संस्थान में कोई कर्मचारी अगर एक फोन कॉल के पैसे मांग ले तो बुरा लगेगा ही। मगर संजय भट अड़ गए। वृहस्पति शर्मा ने अपना परिचय दिया कि वे बाबा के पुत्र हैं। इस पर संजय भट बोले कि मैं आपको नहीं जानता। आप बाबा के सुपुत्र हैं, मगर यहां तो यही नियम है कि कोई भी कॉल करेगा तो उसे एक रुपया देना ही होगा। आखिरकार वृहस्पति शर्मा को एक रुपया निकाल कर देना ही पड़ा, मगर वे इस अनुशासन को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और संजय भट को शाबाशी दी।
https://youtu.be/SmwG40g3V_Q
गुरुवार, 24 अप्रैल 2025
करोड़ों लोगों की वंशावली बंद है बहियों में
यह इतिहास लिखने की परंपरा कब शुरू हुई, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों के पास मौजूद रिकार्ड से अनुमान लगाया जा सकता है कि इतिहास को लिपिबद्ध करने का क्रम एक हजार साल से भी पहले शुरू हुआ होगा। कई पुरोहितों के पास ग्यारह सौ साल पहले के भोज-पत्र व ताम्र-पत्र मौजूद हैं, जिन पर राजा-महाराजाओं के हुक्मनामे अंकित हैं। तीर्थ पुरोहितों की निजी संपत्ति होने के कारण पुरातत्व विभाग इनको संरक्षित रखने को कोई कदम नहीं उठा पाया है। तीर्थ पुरोहितों के पास भी इन्हें सुरक्षित रखने के पर्याप्त साधन नहीं हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=qbUwaH9sYO4&t=36s
बुधवार, 23 अप्रैल 2025
यायावर पत्रकार श्री महावीर सिंह चौहान नहीं रहे
उल्लेखनीय बात ये है कि उनका पूरा परिवार पत्रकारिता को समर्पित रहा है। उनके पुत्र श्री मनीष सिंह चौहान दैनिक भास्कर में डिप्टी चीफ रिपोर्टर हैं व श्री मुकेश चौहान दैनिक नवज्योति में कार्यरत हैं।
अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
सोमवार, 21 अप्रैल 2025
जब तीर्थराज पुष्कर सरोवर का पानी बन गया घी
प्रकृति के इस गूढ़ रहस्य का प्रमाण एक बार अजमेर में भी प्रकट हो चुका है। नई पीढ़ी को तो नहीं, मगर मौजूदा चालीस से अस्सी वर्ष की पीढ़ी के अनेक लोगों को जानकारी है कि पुष्कर में एक बंगाली बाबा हुआ करते थे। कहा जाता है कि वे पश्चिम बंगाल में प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे और संन्यास धारण करके तीर्थराज पुष्कर आ गए। वे कई बार अजमेर में मदार गेट पर आया करते थे और बोरे भर कर आम व अन्य फल गायों को खिलाया करते थे। वे कहते थे कि फलों पर केवल हमारा ही अधिकार नहीं है, गाय भी उसकी हकदार है।
बताया जाता है कि बंगाली बाबा के शिष्यों ने कोई पैंतालीस-पचास साल पहले पुष्कर में एक भंडारा आयोजित किया था। रात में देशी घी खत्म हो गया। यह जानकारी शिष्यों ने बाबा को दी और कहा कि रात में नया बाजार से दुकान खुलवा कर देशी घी लाना कठिन है। तब पुष्कर घाटी व पुष्कर रोड सुनसान व भयावह हुआ करते थे। बाबा ने कहा कि पुष्कर सरोवर से चार पीपे पानी के भर लाओ और कढ़ाह में डाल दो। शिष्यों ने ऐसा ही किया तो देखा कि वह पानी देशी घी में तब्दील हो गया। सब ने मजे से भंडारा खाया। दूसरे दिन बाबा के आदेश पर शिष्यों ने चार पीपे देशी घी के खरीद कर पुष्कर सरोवर में डाले। इसके मायने ये कि बाबा ने जो चार पीपे पानी के घी के रूप में उधार लिए थे, वे वापस घी के ही रूप में अर्पित करवा दिए। पानी कैसे घी बन गया, इसे तर्क से तो सिद्ध नहीं किया जा सकता, मगर प्रकृति का सारा व्यवहार लेन-देन का है, यह तो समझ में आता है। इसी किस्म का किस्सा कबीर का भी है, जब उन्होंने अपने बेटे कमाल के हाथों पड़ौस की झोंपड़ी से गेहूं की चोरी करवाई थी। उसकी चर्चा फिर कभी।
https://www.youtube.com/watch?v=TkNA6Qt_j-Q
अजमेर हिंदी बोलने वाला इकलौता शहर
आम आदमी की बोली हिंदी का मतलब है कि अजमेर में आम आदमी अर्थात ठेले वाला, मोची, कूली, सब्जी बेचने वाला, चाय वाला, पान वाला, सभी आमतौर पर हिंदी में ही बात करते हैं। सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी ही बोली जाती है। इसके विपरीत जयपुर के सचिवालय जैसी जगह में भी काईं छे वाली शैली की राजस्थानी बोली जाती है। जोधपुर की राजस्थानी का स्वाद भिन्न है तो नागौर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा, भीलवाड़ा आदि का अलग-अलग। कहीं मारवाड़ी तो कहीं मेवाड़ी और कहीं हाड़ौती तो कहीं गुजराती का स्वाद लिए हुए बागड़ी।
ऐसा नहीं है कि अजमेर में राजस्थानी नहीं बोली जाती। बोली जाती है, मगर शहर के अंदरूनी हिस्सों, जैसे नया बजार, कड़क्का चौक, नला बाजार की गलियां इत्यादि। शहर के जुड़े ग्रामीण इलाकों में राजस्थानी बोली जाती है। अच्छा, हिंदी-हिंदी में भी फर्क है। अलवर गेट इलाके के कोली बहुल मोहल्लों में हिंदी कुछ और किस्म की है तो दरगाह व मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की हिंदी कुछ और तरह की। सीमावर्ती गांवों को छोड़ दें तो अधिसंख्य मुस्लिम तनिक उर्दू युक्त हिंदी बोलते हैं।
अजमेर की आम बोली हिंदी होने का कारण है। वस्तुतरू यह शहर विविध संस्कृतियों का संगम है। कभी इसकी अपनी विशेष संस्कृति रही होगी, मगर अब यह मिली-जुली संस्कृतियों वाला शहर है। रेलवे की इसमें विशेष भूमिका है। यहां बाहर से आ कर बसे सिंधी, जैन, सिख, ईसाई, पारसी आदि समुदायों के लोगों के बीच संवाद के लिए आरंभ से हिंदी का ही उपयोग किया जाता रहा है। इन समुदायों के अधिसंख्य लोग या तो राजस्थानी समझते नहीं, अगर समझ भी जाते हैं तो बोल नहीं पाते। हिंदी से अजमेर का गहरे जुड़ाव का ही परिणाम है कि जब देश में साक्षरता अभियान चल रहा था तो अजमेर पूरे उत्तर भारत में संपूर्ण साक्षर जिला घोषित हुआ था।
https://www.youtube.com/watch?v=3sScLZXwFsA&t=30s
गुरुवार, 17 अप्रैल 2025
कहां चली गई अजमेर की भूत बावड़ी !
1960 के दशक तक अजमेर में अनेक बावड़ियां चर्चित थीं - भांग बावड़ी, चांद बावड़ी, कुम्हार बावड़ी, कातन बाय, भाटा बाय, आम्बा बाय, आम वाला तालाब, कमला बावड़ी और भूत बावड़ी। अंग्रेजों के शासनकाल में कर्नल डिक्सन ने अजमेर में बीस से भी अधिक बावड़ियां खुदवाई थीं। जल स्रोतों के रूप में यहां चांदी का कुआं सबसे पुराना है। इसके साथ दूधिया कुआं और तुलसा जी की बेरी ने कई सालों तक अजमेर की प्यास बुझाई है।
रविवार, 13 अप्रैल 2025
कभी फिल्मी पोस्टर लगा करते थे यहां
कभी कभी बचपन में देखी- सुनी जगह या बातें हमेशा के लिए ज़ेहन में बैठ जाती हैं और फिर वक्त बदलने पर भी उस जगह का पुराना स्वरुप दिमाग में रहता है। ऐसी ही कुछ जगह अजमेर में बचपन से किशोर अवस्था तक आते आते देखी, वो थी अजमेर के सिनेमाघरों के फिल्मी पोस्टरों के चिपकने की जगह। अजमेर में छह सिनेमाघर हुआ करते थे और सभी सिनेमाघरों के पोस्टरों के लिए जगह तय थी कि किस जगह पर लगने वाला पोस्टर कौन से सिनेमाघर में चलने वाली फिल्म का है। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार पर कभी अजंता सिनेमा हॉल में लगी या लगने वाली फिल्मों के बड़े पोस्टर लगा करते थे। सत्तर के दशक की बात है। उन दिनों दो तरह के पोस्टर दीवारों पर लगा करते थे। एक विद्युत पोल पर लगने वाले क्यिोस्क साईज में और दूसरे बड़े चौड़े होर्डिंग साइज़ में। मोइनिया इस्लामिया स्कूल की दीवार बड़ी और लंबी थी इसलिए वहां बड़े साइज के पोस्टर ही लगा करते थे। फिर देखने में आया कि फिल्मी पोस्टर के साइज में सीमेंट का प्लास्टर कर जगह मुकर्रर कर दी गई। उस प्लास्टर की मोटी परत पर पोस्टर चिपकाए जाने लगे।
बड़े साइज के पोस्टर मदार गेट पर फल बेचने वालों की दुकानों के पीछे, कबाडी बाजार की दीवार पर मृदंग सिनेमा में लगी या लगने वाली फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। पड़ाव में पुराने कपड़े बेचने वालों के पीछे की दीवार पर एक कोने में अंजता फिर मैजिस्टिक, प्रभात, श्री और दूसरे कोने में मृदंग सिनेमा के बड़े पोस्टर लाइन से लगा करते थे। फव्वारा चौराहे पर भी अंजता और प्रभात सिनेमा की फिल्मों के पोस्टर लोहे के फ्रेम बना कर उस पर चिपकाया करते थे। सोनी जी की नसियां के सामने प्रभात की ओर जाने वाले रास्ते के कोने में प्रभात सिनेमा के बड़े पोस्टर लोहे के फ्रेम में लगते थे जो आगरा गेट से आने वालों को दूर से दिख जाते थे। आगरा गेट चौराहे पर चर्च की दीवार के सहारे भी लोहे के फ्रेम सडक़ पर लगे थे, जिन पर प्रभात और अंजता के फिल्मी पोस्टर लगते थे। मदार गेट पर फूल बेचने वालों के पीछे की कस्तूरबा अस्पताल की दीवार पर सिर्फ मैजिस्टिक सिनेमा में लगी फिल्मों के पोस्टर लगा करते थे। उसरी गेट के बाहर की दीवार पर प्रभात और मृदंग सिनेमा के पोस्टर लगते थे। तब शहरी आबादी का अधिक विस्तार नहीं था, और फिल्मी पोस्टर शहर के अंदरूनी इलाकों में ही लगते थे।
https://www.youtube.com/watch?v=hDE7cv8pqMo
लोकगीत व मुहावरों में अजमेर
राजस्थान के लोकगीत व मुहावरों में अजमेर का उल्लेख कई जगह आता है। यथा प्रसिद्ध लोक कथा ढोला-मरवण की पंक्तियां देखिए, जिनमें आनासागर, पुष्कर व बीसला तालाब की जिक्र हुआ है-
ढोला कंवर जी आनासागर
पछ कयिजे बीसल्यो
पीठ पर पोखर जी हिलोला खाय
बेगातो आईजो धण का साहिबां।
इसी प्रकार राजस्थान की मौसम संबंधी एक लोकोक्ति में भी अजमेर का उल्लेख प्रसिद्ध है, जिसमें बताया गया है कि गर्मी का मौसम अजमेर में बिताने लायक है। कदाचित मुगल शासकों और ब्रिटिश हुक्मरानों को अजमेर मौसम मुफीद होने के कारण भी अजमेर उनकी गतिविधियों का केन्द्र रहा-
सियालो खाटू भलो, उन्नाळो अजमेर
नागाणो नित को भलो सावण बीकानेर
अजमेर सांप्रदायिक सौहार्द्र की एक अनूठी बात देखिए कि धर्मांतरण से मुस्लिम बने अनेक वर्गों के एक गीत में पुरातन सांगीतिक संस्कार मौजूद है-
ठंडा रहजो म्हारा पीर दरगा में
नित का चढ़ाऊं थारे सीरणी
देसूं थाने जोड़ा सूं जात
ठंडा रहीजो म्हारा पीर दरगा में
झोली भराऊं कोडिय़ां
घणी घणी करूं खैराद
ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में
साथ जिमाऊं औलिया
कोई पांच पचीस फकीर
ठंडा रहिजो म्हारा पीर दरगा में।
इन पंक्तियों में साथ जिमाऊं, ठंडा रहिजो आदि शब्द पारंपरिक राजस्थानी संस्कृति की याद दिलाते हैं। ख्वाजा साहब और मदार साहब की मान्यता कितनी रही है, इसका साक्षात प्रमाण है राजस्थानी भाषा के ही एक लोक गीत में उनका उल्लेख-
मदारजी के लेचल ओ बलमा
ख्वाजाजी के ले चल ओ बलमा
सासू तो नणदल पूछण लागी
कठा सूं ल्याई ललवा ने
मदार जी के ले चल ओ बलमा
दरगा में जोड़ा की जारत बोली
बठा सूं ल्याई ललवा ने।
यहां के इतिहास में अजयपाल जोगी का अप्रतिम स्थान है। अनेक इतिहासकार मानते हैं कि अजमेर के प्रथम शासक अजयराज ही अजयपाल जोगी थे। उनके प्रति लोगों में कितनी आस्था रही है, यह इस लोकोक्ति से जाहिर हो जाती है-
अजयपाल जोगी, काया राख निरोगी।
https://www.youtube.com/watch?v=3zpOxLo2uEE
शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025
राजनीति इंसानियत भी छीन लेती है?
बात थोडी सी पुरानी है। हुआ यूं कि मैं यूआईटी के पूर्व अध्यक्ष श्री धर्मेश जैन के गांधी भवन के सामने रेलवे केम्पस में उद्घाटित रेस्टोरेंट में शुभारंभ समारोह में मौजूद था। मैं अपने एक और मित्र, जो कि भाजपा में हैं, के साथ खड़ा था। मैंने देखा कि युवक कांग्रेस के नेता रहे मित्र ने समारोह स्थल में एंट्री ली है। मैने अपने भाजपाई मित्र को बताया कि देखो, वो जो शख्स हैं, मेरे अभिन्न मित्र हैं। उनसे मेरे गहरे ताल्लुक हैं। इसकी जानकारी कांग्रेस के सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी है। मैं इंतजार कर रहा था कि वे निकट आएं तो उनसे मुलाकात हो। जैसे ही वे मेरे सामने आए तो उन्होंने जो हरकत की तो मैं सन्न रह गया। उनकी नजरें मेरी नजरों से टकराईं। नजरों की मात्र एक पल मुलाकात के बाद उन्होंने हठात अपनी नजरें हटा लीं और आगे बढ़ गए। वह पल मेरे जेहन में तीर की तरह घुस गया। मैं समझ ही नहीं पाया कि ये क्या, क्यों व कैसे हो गया? मेेरे भाजपाई मित्र के चेहरे ने भी सवालिया निशान की आकृति ले ली। मैं निरुत्तर था। निरुत्तर क्या, बहुत आहत था। कुछ क्षण के लिए मेरी जुबान पत्थर की सी हो गई। अपने आप को संभाला। जुबान से सिर्फ यही निकला- कमाल है, उसने मुझे पहचानने से ही इंकार कर दिया। इतना खास मित्र। कभी कोई विवाद नहीं हुआ, फिर भी ये व्यवहार? आखिर ये क्या है? मेरे भाजपाई मित्र ने समझाया कि हो सकता है कि जब आपकी घनिष्ठ मित्रता रही हो, तब आप उसके के लिए बहुत उपयोगी रहे होंगे। आज उसके लिए आपकी उपयोगिता नहीं होगी। तब आप भास्कर में रहे होंगे, अब नहीं हैं। आम तौर पर सभी राजनीतिक लोग ऐसे ही होते हैं। मतलब की दोस्ती रखते हैं। आपको गलतफहमी हो गई कि वह सच्ची दोस्ती थी। फिर भी, केवल राजनीतिक संबंध हों तो भले ही वे ऐसा व्यवहार करें तो समझ में आता है, मगर वह अगर घनिष्ठ मित्र रहा है तो उसका ऐसा व्यवहार वाकई सोचनीय है। इसे अपने दिल पर न लीजिए। यही दुनिया है। उनके इस कथन में साथ मेरी बुद्धि पर पड़ा भ्रम का पर्दा हट गया।
बहरहाल, वह पल मुझे आज भी याद आने पर बहुत तकलीफ देता है। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं। उलटा मैं उनका शुक्रगुजार हूं। कितना बेशकीमती अनुभव उन्होंने मुझे दिया है। भगवान उनका भला करे।
कुछ इसी किस्म की घटनाएं पहले भी हुई हैं, अलग अंदाज में। उनका जिक्र फिर कभी। मगर ये घटनाएं पहले से विरक्त मन को दुनिया से और अधिक विमुख किए देती हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=w1jaSpp54o8
सोमवार, 7 अप्रैल 2025
सादगी की मिसाल थे पूर्व पार्षद श्री भागचंद दौलतानी
एआई से अनुग्रह करने पर उसने उनको श्रद्धांजलि स्वरूप एक कविता प्रस्तुत की है:-
सादगी की मिसाल थे, सहजता की पहचान,
हर दिल में बसते थे, थे सबके सम्मान।
शब्दों में मिठास, व्यवहार में गहराई,
नेतृत्व में सेवा की थी अनोखी छाया।
न पद का अभिमान था, न स्वार्थ की चाह,
जन-जन के हित में ही रहती थी उनकी राह।
पूर्व पार्षद होकर भी थे सबसे पहले इंसान,
श्री भागचंद दौलतानी थे सेवा का प्रतीक महान।
उनकी मुस्कान में था अपनापन झलकता,
हर समस्या में वह समाधान बनकर टहलता।
नहीं रहे आज हमारे बीच, पर यादों में हैं अटल,
उनके सिद्धांतों की ज्योति रहेगी सदा निष्कलंक।
अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025
कौतुहल पैदा करती है कोस मीनार
ये मीनारें यात्रियों, संदेशवाहकों और सैनिकों के लिए दिशा और दूरी बताने का कार्य करती थीं। अजमेर से निकलने वाले पुराने दिल्ली-अजमेर-माउण्ट आबू मार्ग या अजमेर-आगरा मार्ग पर कोस मीनारें देखी जा सकती हैं। कुछ मीनारें अब भी राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे या गांवों के पास स्थित हैं, हालांकि कई अब नष्ट हो चुकी हैं या नजरअंदाज कर दी गई हैं। इन्हें संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। कोस मीनार व उसके पास लगे नोटिस बोर्ड की फोटो जलदाय विभाग के रिटायर्ड एडीशनल चीफ इंजीनियर व जाने-माने बुद्धिजीवी श्री अनिल जैन ने अपने फेसबुक अकाउंट पर साझा की है।
बुधवार, 2 अप्रैल 2025
शिक्षा जगत की जानी-मानी हस्ती श्रीमती स्नेहलता शर्मा नहीं रहीं
मंगलवार, 1 अप्रैल 2025
भगवान को भगवान ने बुला लिया अपने पास
मरहूम सूफी संत भी करते हैं दरगाह जियारत?
सोमवार, 31 मार्च 2025
आखिर हम नहीं मना पाए अजमेर का स्थापना दिवस
https://www.youtube.com/watch?v=J498QWNN8Z0&t=13s
रविवार, 30 मार्च 2025
मिजाज ए अजमेर
ये 45 डिग्री के तापमान में भी गरमा गरम कचौरी खाता है। ठण्ड में भी मटके की कुल्फियां खाता है और गड्ढे और पानी से भरी सड़कों की आदत हो चुकी है इसे। ये इसका कुछ नही बिगाड़ सकती.. उसके बावजूद ये टैक्स भरता है। सहनशील ’अजमेर’ वासियो को पुनः समर्पित है।
यह आलेख कभी अजमेर में जनस्वास्थ अभियांत्रिकी विभाग में अधिषाशी इंजीनियर रहे इंजीनियर शिव शंकर गोयल ने भेजा है। वे सुपरिचित व्यंग्य लेखक हैं और वर्तमान में दिल्ली में रहते हैं। अजमेर से उनका गहरा लगाव है।
https://ajmernama.com/chaupal/429295/
शुक्रवार, 28 मार्च 2025
जिंदादिल शख्सियत थे वरिष्ठ वकील टेहल बुलानी
गुरुवार, 27 मार्च 2025
कब है अजमेर का स्थापना दिवस?
आपको बता दें कि एक बार जब 23 मार्च को स्थापना दिवस सांकेतिक रूप से मनाया गया था, तब संग्रहालय के भूतपूर्व अधीक्षक मरहूम जनाब सैयद आजम हुसैन ने माना था कि 23 मार्च को मनाया जा रहा अजमेर का स्थापना दिवस एक शुरुआत मात्र है। अजमेर की स्थापना के बारे में अगर कहीं लिखित प्रमाण मिलेंगे तो उन पर अमल करते हुए इस तिथि में फेरबदल कर दिया जाएगा। पर्यटन विकास समिति के मनोनीत सदस्य महेन्द्र विक्रम सिंह व इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटेक) के अजमेर चौप्टर के स्थापना दिवस मनाने के आग्रह के पीछे उनका ही हाथ था। संग्रहालय के अधीक्षक होने के नाते उनके पास जरूर अधिकृत जानकारियां हो सकती थीं, वरना महेन्द्र विक्रम सिंह व इंटेक को क्या पता? यदि यह कहा जाए की इस पूरे प्रकरण के मूल में आजम हुसैन ही हैं और अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत का श्रेय उन्हीं खाते में जाता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस लिहाज से वे बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत तो करवाई, भले ही अभी तिथि के पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं हैं। चूंकि हिंदू मान्यता के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को नव संवत्सर को आरंभ किया जाता है, इस कारण इस वर्ष नव संवत्सर की प्रतिपदा को समारोह मनाने की परंपरा आरंभ की गई।
वैसे अब तक एक भी स्थापित इतिहासकार ने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। स्थापना दिवस मनाने के अजमेर नगर परिशद के पूर्व उप सभापति सोमरत्न आर्य व भूतपूर्व मंत्री स्वर्गीय श्री ललित भाटी ने भी खूब माथापच्ची की थी, मगर उन्हें स्थापना दिवस का कहीं प्रमाण नहीं मिला। अजमेर के अन्य सभी मौजूदा इतिहासकार भी प्रमाण के अभाव में यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना कब हुई। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। मौजूदा इतिहासकार शिव शर्मा का भी यही मानना रहा है कि स्थापना दिवस के बारे में कहीं कुछ भी अंकित नहीं है। उन्होंने अपनी पुस्तक में अजमेर की ऐतिहासिक तिथियां दी हैं, जिसमें लिखा है कि 640 ई. में अजयराज चौहान (प्रथम) ने अजयमेरू पर सैनिक चौकी स्थापित की एवं दुर्ग का निर्माण शुरू कराया, मगर स्थापना दिवस के बारे में कुछ नहीं कहा है। इसी प्रकार अजमेर के भूत, वर्तमान व भविष्य पर लिखित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है।
राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित सरस्वती पुत्र पूर्व राज्यसभा सदस्य औंकार सिंह लखावत ने तो बेशक नगर सुधार न्यास के अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक बनवाते समय स्थापना दिवस खोजने की कोशिश की होगी। लखावत जी को पता लग जाता तो वे चूकने वाले भी नहीं थे। इनमें से कोई भी आधिकारिक रूप से यह कहने की स्थिति नहीं रहा कि यह स्थापना दिवस है।
सवाल उठता कि क्या इस मामले में तत्कालीन जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को अंधेरे में रख कर उनसे अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर लिया गया? क्या उन्हें यह जानकारी दी गई कि पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, मगर फिलहाल शुरुआत तो की जाए, बाद में प्रमाण मिलने पर फेरबदल कर लिया जाएगा? क्या प्रस्ताव इस रूप में पेश किया जाता तो जिला कलेक्टर उसे सिरे से ही खारिज कर देतीं? लगता है कहीं न कहीं गडबड़ है। बेहतर तो ये होता कि जिला कलेक्टर इससे पहले बाकायदा अजमेर के इतिहासकारों की बैठक आधिकारिक तौर पर बुलातीं और उसमें तय किया जाता, तब कम से कम इतिहासकारों का सम्मान भी रह जाता और विवाद भी नहीं होता। यही वजह है कि स्थापना दिवस घोषित होने के बाद इतिहासकार इस तिथि को मानने को तैयार नहीं थे।
-तेजवाणी गिरधर
7742067000
बुधवार, 26 मार्च 2025
अजमेर में रहस्यमय गुफा सीसाखान
डिग्गी बाजार चौक और ठठेरा चौक के बीच रेगर मोहल्ले के द्वार में घुसने के बाद आगे चल कर एक गुफा है। नाम से अनुमान लगाया जाता है कि किसी जमाने में यहां सीसे की खान रही होगी। बताते हैं कि यह गुफा का रहस्य जानने के लिए आज तक जो भी अंदर गया, वह लौट नहीं पाया। असल में गुफा में आगे जाना व भीतर जा कर देखना संभव ही नहीं, क्योंकि अंदर बहुत अधिक नमी है। यहां तक कि टॉर्च, मोमबत्ती या मशाल बुझ जाती है। घुप्प अंधेरे के अतिरिक्त भीतर कई तरह के जहरीले जीव-जंतु हैं, इस कारण कोई भी हिम्मत नहीं जुटा पाता।
बताते हैं कि इस गुफा का एक सिरा तारागढ़ से जुड़ा है और दूसरा शहर से बाहर कहीं जंगल में। कुछ कहते हैं कि इस प्रकार की सुरंगों की एक श्रृंखला थी, जो आगरा व दिल्ली तक गुप्त रूप से जाने के काम आती थी। कदाचित इनका उपयोग आक्रमण के समय बच कर निकलने के लिए किया जाता हो। ये भी मान्यता है कि इस सीसा खान गुफा का उपयोग सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय इष्ट देवी चामुंडा माता के मंदिर में जाने के लिए किया करते थे। स्वामी न्यूज चैनल पर यह स्टोरी देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए
https://www.youtube.com/watch?v=ZnOvWrl2eqg
https://www.facebook.com/swaminewsajmer/videos/621276961824301/
रविवार, 23 मार्च 2025
डॉ. कुलदीप शर्मा बन गए रातों रात हीरो
राजनीति भी कैसी उलटबांसी है। जो अपमानित होता है, वह लोकप्रिय हो जाता है। स्वयं डॉ. कुलदीप शर्मा को भी अपने अपमानित होने का बहुत मलाल है। उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि इस घटना को वे कभी नहीं भूल पाएंगे। मगर उन्हें क्या पता कि इस वारदात ने उन्हें रातों रात हीरो बना दिया है। पूरे शहर ने जिस तरह उनके प्रति संवेदना व्यक्त की, सहानुभूति जताई, उससे वे यकायक सुपरिचित हो गए हैं। मीडिया की सक्रियता और ब्राह्मण समाज व डॉक्टर्स के समर्थन के चलते कार्यवाही भी हुई, जिससे वे ताकतवर हो कर उभरे हैं। अगली बार दावेदारी करने में उन्हें बहुत आसानी हो जाएगी। यह बात दीगर है कि वे तब इसमें दिलचस्पी ही न लें।
रहा सवाल मामले के पटाक्षेप का तो वह अनेक सवाल छोड गया है। लोग असमंजस में हैं कि यदि जेईएन की कार्यवाही सही थी तो उन्हें निलंबित क्यों किया गया? राजपूत समाज ने इस पर सवाल खडा कर दिया है। उनका तर्क हैं कि उन्होंने अपने उच्चाधिकारी के आदेश पर अमल किया तो कार्यवाही उन पर कैसे हो गई? निर्माण ध्वस्त होने से हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा, इसका कहीं खुलासा नहीं है? लोगों ने डॉक्टर साहब को संभ्रांत नागरिक बता कर होमगार्ड्स के तरीके पर सवाल खडे किए, तो क्या आम आदमी के साथ ऐसा हो तो उसे कहीं हम जायज तो नहीं ठहरा रहे हैं? डॉक्टर साहब व जेईएन के पक्ष में समाजों का लामबंद होना क्या यह साबित नहीं करता कि हमारा पूरा सिस्टम जातिवाद पर टिका है?
शनिवार, 15 मार्च 2025
बुरा न मानो होली है
शुक्रवार, 14 मार्च 2025
बुरा न मानो होली है
लाल फीता
लोकबंधु, जिला कलेक्टर- मौनी बाबा
वंदिता राणा, पुलिस अधीक्षक- आयरन लेडी
गजेन्द्र सिंह- आम आदमी
ज्योति ककवानी- काम से काम
सुरेश सिंधी- राजनीति का चस्का
भानु प्रताप गुर्जर- जय बाबा देवनानी की
संतोष प्रजापति- संतोषी सदा सुखी
शतरंज के खिलाडी
सचिन पायलट- उडान की उम्मीद
भागीरथ चौधरी- लंबी छलांग
भूपेंद्र यादव- अबूझ पहेली
वासुदेव देवनानी- मुकद्दर का सिकंदर
सुरेश रावत- पुष्कर किंग
रघु शर्मा- परशुराम
ओंकार सिंह लखावत- धरोहर का पट्टा
धर्मेंद्र सिंह राठौड़- गुरिल्ला
सुशील कंवर पलाड़ा- सौभाग्यवति
रिजू झुंझुनवाला- पलटीमार
अनीता भदेल- कल्पित मुख्यमंत्री
रामस्वरूप लांबा- मस्तमौला
रामनारायण गूजर- इमारत कभी बुलंद थी
डॉ प्रभा ठाकुर- हाशिये पर
सुरेश टाक- काठ की हांडी
शंकर सिंह रावत- पर्ची नहीं खुली
राकेश पारीक- पायलट जिंदाबाद
महेंद्र गुर्जर- मेरा क्या होगा?
ब्रजलता हाडा- ना काहू से बैर
धर्मेंद्र गहलोत- हार नहीं मानूंगा
वंदना नोगिया- भाग्य के भरोसे
भंवर सिंह पलाड़ा- बेताज बादशाह
प्रो. बी. पी सारस्वत- शनि दोष
शिव शंकर हेडा- गोडावण
रामचंद्र चौधरी- अभी तो मैं जवान हूं
जसराज जयपाल- जगत डैडी
श्रीकिशन सोनगरा- वो भी क्या दिन थे
हेमंत भाटी- हार्ड लक
राजकुमार जयपाल- खुद के दम पर
नाथूराम सिनोदिया- देहाती अंदाज
पुखराज पहाडिया - ढाई घर की चाल
श्रीमति सरिता गैना - वक्त का इंतजार
श्रीमति वंदना नोगिया - फिर लहर आएगी
किशन गुर्जर - अगली बार का इंतजार
ओम प्रकाश भडाना - बाजी मार ली
कमल पाठक - जमींदार
राजेश टंडन- वन मेन आर्मी
डॉ प्रियशील हाडा- नई भूमिका को तैयार
विजय जैन- पेंडुलम
भूपेंद्र राठौङ- टाइम पास
अरविंद यादव- किस्मत के धनी
धर्मेश जैन- प्यास अभी बाकी है
नीरज जैन- फटे में टांग
संपत सांखला- कछुआ चाल
महेंद्र सिंह रलावता- हम किसी से कम नहीं
देवीशंकर भूतड़ा- ब्यावर नरेश
कमल बाकोलिया- एंटिक
नसीम अख्तर- अमीबा
विकास चौधरी - कभी तो लहर आएगी
सुरेन्द्र सिहं शेखावत- हमको भी जाती है क्रेडिट
डॉ. श्रीगोपाल बाहेती- मात्र एक चूक
हरीश झामनानी-जाहि विधि रोखे राम
हाजी कयूम खान- उम्मीद बाकी है
सत्य किशोर सक्सेना- इमारत कभी बुलंद थी
हरी सिंह गुर्जर- सेचुरेटेड
नरेन शाहनी भगत- घूरे के दिन भी फिरते हैं
संग्राम सिंह गुर्जर- साहब का लाडला
राजू गुप्ता.- धीरे धीरे रे मना
ब्रम्हदेव कुमावत- वो भी क्या दिन थे
शक्ति प्रताप सिंह पीपरोली - अंगद
बाबूलाल सिघांरिया- वक्त का इंतजार
सतीश बंसल- सदाबहार
कंवल प्रकाश किशनानी- चस्का कायम है
गजवीर सिंह चुंडावत- छींका टूटने का इंतजार
स्वामी अनादि सरस्वती- बुरी फंसी राजनीति में आ कर
भारती श्रीवास्तव- बिंदास
अमोलक सिंह छाबड़ा- बुलंद आवाज
प्रताप यादव- बेटी में भविष्य की तलाश
नरेंद्र सत्यावना- अफलातून
कैलाश झालीवाल- किनारे पर नाव
द्रोपदी कोली- मत चूके चौहान
श्रवण टोनी- धरती पकड
चन्द्रशेखर बालोटिया काकू- पेट में दाढी
सुनील केन- खिलाडी
शैलेन्द्र अग्रवाल- राडौड बाबा जिंदाबाद
गजेन्द्र सिंह रलावता- दाई माई
रमेश सोनी- जय बाबा देवनानी
देवेन्द्र सिंह शेखावत- लंबी रेस का घोडा
नौरत गुर्जर- अंगूर खट्टे हैं
विकास सोनगरा- विरासत के भरोसे
ज्ञान सारस्वत- मांद में शेर
महेश ओझा- चाइना वाल
डॉ सुरेश गर्ग- आठ सोलह का पाना
सर्वेश पारीक- जोडी जिंदाबाद
बिपिन बेसिल- पट्टा लिखा लाया हूं
श्याम प्रजापति - जैन की छाया
दुकानदार
सुनील दत्त जैन - मन की मन में
सीताराम गोयल- उंचे सपने
मनोज मित्तल- कसक बाकी है
राधेश्याम चोयल- लंबी छलांग
अशोक रावत- भावी दावेदार
जगदीश वच्छानी- कभी तूती बोलती थी
कोसिनोक जैन - मैनेजर
धनराज चौधरी- साजिश का शिकार
अतुल दुबे - लंबी लकीर
जे पी दाधीच- टापू किंग
रासबिहारी गौड़- पद्मश्री की आस
उमरदान लखावत- तटस्थ
सूर्य प्रकाश गांधी- वकील कम पत्रकार ज्यादा
अतुल दुबे- तीन लोक से मथुरा न्यारी
लाखन सिंह- ड्रामा ही जिंदगी
दिलीप पारीक- आवाज का जादूगर
मधु खंडेलवाल- लेखिका क्वीन
दिशा किशनानी- लेडी लीडर
गोपाल बंजारा- ठीयेबाज
कृष्ण गोपाल पाराशर- घुंघरू
विष्णु अवतार भार्गव- छुपा रुस्तम
विवेक पाराशर- वकील कम राजनीतिज्ञ ज्यादा
संदीप धाबाई- पाला बदल लिया
प्रशांत यादव- उछल कूद
कलमतोड
डी .बी चौधरी- भीष्म पितामह
नरेंद्र चौहान- ना काहू से दोस्ती
डॉ रमेश अग्रवाल - लौ कायम है
आनंद ठाकुर- अजमेर रास आ गया
गिरधर तेजवानी- साधू बाबा
राजेन्द्र गुंजल चाणक्य
ओम माथुर- झुकना मंजूर नहीं
सुरेंद्र चतुर्वेदी- डब्ल्यू डब्ल्यू एफ
एस पी मित्तल- ब्लॉगिंग आदत या मजबूरी
सुरेश कासलीवाल- इनाम दर इनाम
राजेंद्र शर्मा- अल्लाह की गाय
प्रताप सनकत- गायक कलाकार
प्रेम आनंदकर- देवनानी जी की जय
संजय माथुर- साहब का कृपापात्र
अशोक शर्मा- हिटलर
नरेंद्र भारद्वाज- घाव करें गंभीर
विनीत लोहिया- खेल राजनीति से दूर
राजेंद्र याग्निक- वास्तविक पंडित
प्यारे मोहन त्रिपाठी- पीआर मास्टर
गोपाल सिंह लबाना- धीरे धीरे रे मना
त्रिलोक जैन- वजूद की खातिर
आरिफ कुरैशी- खादिम
युगलेश शर्मा- मेहनत पर भरोसा
क्षितिज गौड - क्षितिज दूर है
दिलीप शर्मा- भोला भंडारी
सुरेश लालवानी- मस्त मौला
विक्रम चौधरी- जिंदगी ऐसे जियो
धर्मेन्द्र प्रजापति- पुलिस की नब्ज
मनीष चौहान- काम से काम
पवन अटारिया- उठाउ चूल्हा
इन्द्रशेखर भटनागर - वॉट्सएप न्यूज
दिलीप मोरवाल- जेएलएन ही जिंदगी
योगेश सारस्वत- हर जगह फिट
अतुल सिंह बाग- सबसे अलग
बलजीत सिंह- नींव की ईंट
निर्मल मिश्रा- जवानी कायम है
संतोष खाचरियावास- संतोषी जीव
बृजेश शर्मा- पानी रास आ गया
रक्तिम तिवारी- राजपूत
गिरीश दाधीच- ज्योतिषी
रजनीश रोहिल्ला- जड अभी जिंदा है
सी पी जोशी- मुकाम पा लिया
रजनीश शर्मा- बस नौकरी
पी के श्रीवास्तव- हमारे भी किस्से थे
मनोज दाधीच- जादूगर
नरेश राघानी- ऊंची दुकान
जाकिर हुसैन- ख्वाहिश कुछ और है
विजय मौर्य- गहरी चाल
अनिल माहेश्वरी- जुगाडू
गजेंद्र बोहरा- अफलातून
अभिजीत दवे- एक घर बसाउंगा
मनवीर सिंह चुंडावत- लंबी छलांग
आनंद शर्मा - गुरूओं का गुरू
प्रियांक शर्मा- जो हम से टकराएगा
नवाब हिदायत उल्ला- सेटिंग मास्टर
बालकिशन शर्मा- देखन में छोटे लगें
डॉ राशिका महर्षि- स्टील लेडी
अनुराग जैन- लंबी कहानी
कौशल जैन- हम नहीं ठहरेंगे
आशु कौशिक- हंगामा है क्यूं बरपा
दीपक शर्मा- एकला चालो रे
मुकेश परिहार- पेट में दाढी
जय मखीजा- आपका दोस्त
चंद्रशेखर शर्मा - दूर का दर्शन
संजय गर्ग- सबसे फास्ट
अशोक सिंह भाटी- मूंछ पर ताव
शुभम जैन- बडा दुकानदार
दुर्गेश डाबरा- हुकम का गुलाम
रूपेंद्र शर्मा- तोकू कोई और नहीं
नजीर कादरी- छपासियों का इलाज
मोहन ठाडा- हम किसी से कम नहीं
राजकुमार वर्मा- पुराना चावल
आरजू प्रजापत- फेमस ऐंकर
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