आम आदमी की बोली हिंदी का मतलब है कि अजमेर में आम आदमी अर्थात ठेले वाला, मोची, कूली, सब्जी बेचने वाला, चाय वाला, पान वाला, सभी आमतौर पर हिंदी में ही बात करते हैं। सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी ही बोली जाती है। इसके विपरीत जयपुर के सचिवालय जैसी जगह में भी काईं छे वाली शैली की राजस्थानी बोली जाती है। जोधपुर की राजस्थानी का स्वाद भिन्न है तो नागौर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा, भीलवाड़ा आदि का अलग-अलग। कहीं मारवाड़ी तो कहीं मेवाड़ी और कहीं हाड़ौती तो कहीं गुजराती का स्वाद लिए हुए बागड़ी।
ऐसा नहीं है कि अजमेर में राजस्थानी नहीं बोली जाती। बोली जाती है, मगर शहर के अंदरूनी हिस्सों, जैसे नया बजार, कड़क्का चौक, नला बाजार की गलियां इत्यादि। शहर के जुड़े ग्रामीण इलाकों में राजस्थानी बोली जाती है। अच्छा, हिंदी-हिंदी में भी फर्क है। अलवर गेट इलाके के कोली बहुल मोहल्लों में हिंदी कुछ और किस्म की है तो दरगाह व मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की हिंदी कुछ और तरह की। सीमावर्ती गांवों को छोड़ दें तो अधिसंख्य मुस्लिम तनिक उर्दू युक्त हिंदी बोलते हैं।
अजमेर की आम बोली हिंदी होने का कारण है। वस्तुतरू यह शहर विविध संस्कृतियों का संगम है। कभी इसकी अपनी विशेष संस्कृति रही होगी, मगर अब यह मिली-जुली संस्कृतियों वाला शहर है। रेलवे की इसमें विशेष भूमिका है। यहां बाहर से आ कर बसे सिंधी, जैन, सिख, ईसाई, पारसी आदि समुदायों के लोगों के बीच संवाद के लिए आरंभ से हिंदी का ही उपयोग किया जाता रहा है। इन समुदायों के अधिसंख्य लोग या तो राजस्थानी समझते नहीं, अगर समझ भी जाते हैं तो बोल नहीं पाते। हिंदी से अजमेर का गहरे जुड़ाव का ही परिणाम है कि जब देश में साक्षरता अभियान चल रहा था तो अजमेर पूरे उत्तर भारत में संपूर्ण साक्षर जिला घोषित हुआ था।
https://www.youtube.com/watch?v=3sScLZXwFsA&t=30s
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