जरा पीछे मुड कर देखें तो आपको ख्याल में आ जाएगा कि जिन दिनों सेवन वंडर्स का निर्माण आरंभ किया गया था, तब कई जागरूक लोगों ने ऐतराज जताया था कि आनासागर के किनारों का पाट कर इसका निर्माण करना गलत है। मीडिया ने भी अपनी भूमिका बखूबी निभाई। बाकायदा फोटोज छापे, किनारे को मिट्टी से पाटते हुए। मगर जिम्मेदारों ने आंखें मूंद रखी थीं। आनासागर का जल भराव क्षेत्र कम होने पर खूब चिंता जताई गई, जिसका नतीजा बाद में पूरे अजमेर ने भुगता, मगर संबंधित अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। किसी भी अधिकारी ने इन सवालों के जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। अचरज होता है कि नियम विरूद्ध हो रहे निर्माण को संज्ञान में लाए जाने को अफसरों ने नजरअंदाज क्यों कर किया? क्या किसी का दबाव था या निजी हित साधे जा रहे थे?
यह बेहद अफसोसनाक है कि कथित रूप से स्मार्ट किए जा रहे अजमेर का चेहरा चमकाने की बजाय, उस पर कालिख पोती जा रही है। अफसोस इस बात पर भी कि कुछ विघ्नसंतोशी सामाजिक कार्यकर्ता पूर्व पार्शद अषोक मलिक पर तोहमत लगा रहे हैं कि एक तो अजमेर में वैसे ही विकास हो नहीं पाता, और जब होता है तो उन जैसे लोग उसे तुडवाने में लगे हुए हैं।
आज जब अजमेर की आत्मा आर्तनाद कर रही है कि तब क्या सरकार इस पर गौर करेगी? या फिर इसके लिए भी किसी सोशल एक्टिविस्ट को कोर्ट में गुहार लगानी पडेगी? राजनीति से जुडे लोगों को तो एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने से ही फुरसत नहीं है। उनसे अपेक्षा करना बेमानी है। अब देखते हैं कि क्या दोषी अफसरों के गले नापे जाते हैं या नहीं। सिस्टम की जैसी रवायत है, उसे देखते हुए तो यही लगता है कि लोगों की आवाजें नक्कारखाने में तूती की तरह दब जाएंगी। ऐसा लगता है कि फिर अधिकारियों को बचाने का कोई न कोई रास्ता निकाल लिया जाएगा।