सोमवार, 31 मार्च 2025

आखिर हम नहीं मना पाए अजमेर का स्थापना दिवस

हालांकि यह आज तक तय नहीं है कि अजमेर का स्थापना दिवस कब है, मगर मोटे तौर पर यह मान लिया गया है कि विक्रम संवत 1170 यानी सन् 1112 में चैत्र प्रतिपदा के दिन अजमेर की स्थापना हुई थी। चलो कोई बात नहीं, हमें ठीक से पता नहीं लग पाया कि अजमेर की स्थापना कब हुई, मगर हमने जिस तिथि को मान लिया है, उसे भी तो ठीक से नहीं मना रहे। हां, नवरात्र स्थापना, चैत्र प्रतिपदा, नवसंवत्सर के साथ औपचारिक रूप से अजमेर का स्थापना दिवस भी मना लिया, लेकिन उसे भव्य रूप से मनाने का ख्याल ही नहीं किया। चंद बुद्धिजीवियों ने जरूर इसे मना कर औपचारिकता निभाई है, मगर सवाल उठता है कि जैसे सिंधी समाज साल में एक बार चेटी चंड पर विषाल षोभायात्रा निकालता है, महावीर जयंती पर जैन समाज की ओर से विषाल जुलूस निकाला जाता है, हिंदूवादी संगठन राम नवमी को भव्य तरीके से मनाते है, अन्य समाज भी अपने अपने इश्ट देवताओं की जयंती धूमधाम से मनाते हैं, कावड यात्राएं निकालते हैं, क्या उसी तरह का भव्य आयोजन अजमेर के स्थापना दिवस पर नहीं किया जा सकता? असल में स्थापना दिवस मनाने की जिम्मेदारी किसी संस्था या संगठन पर आयद नहीं की जा सकती, और न ही किसी के बस की बात है, मगर अजमेर जिला प्रषासन व नगर निगम तो अपने संसाधनों से बडा आयोजन कर ही सकते हैं। जब हम दषहरा मना सकते हैं, गरबा का आयोजन कर सकते हैं, फागुन महोत्सव मना सकते हैं, बादषाह की सवारी निकाल सकते हैं, आनासागर जेटी पर आतिषबाजी कर सकते हैं, तो अजमेर स्थापना दिवस के लिए फंड क्यों नहीं जुटा सकते? यह तभी संभव हो सकता है, जब कि सिविल सोसायटी प्रषासन पर इसके लिए दबाव बनाए। यूं सिविल सोसायटी में अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं, मगर एक भी इस स्थिति में नहीं है, जो दमदार तरीके से स्थापना दिवस मनाने का दबाव बना सकंे। और सबसे बडी बात कि उसके लिए जो विल चाहिए, वह अभी जागृत नहीं हो पाई है।


https://www.youtube.com/watch?v=J498QWNN8Z0&t=13s

रविवार, 30 मार्च 2025

मिजाज ए अजमेर

एक व्यक्ति मरने के बाद ऊपर गया। यमराज ने उसे सजा देने के लिए पहले उसे एक ठण्डे मकान में रखा जहां तापमान 4 डिग्री था। फिर भी वह आदमी हंसता हुआ बाहर आया और बोला कि एक पंखा और होता तो मजे आ जाते। अब यमराज ने उसे एक गर्म मकान में रखा, जहां का तापमान 45 डिग्री  था और उसमें एक पंखा भी लगा दिया ...फिर भी वह आदमी हंसता हुआ बाहर आया और बोला बिना पंखे के भी सही था। यमराज को गुस्सा आया और उस पर बारिश, ओले व तूफान आदि सब प्रयोग किये, लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ तो फिर यमराज ने उसको एक गड्ढे और पानी से भरी डिग्गी में भेजा और बोला इसको पार करके आ...वो आदमी हंसता हुआ दूसरी तरफ से बाहर आकर बोला अपने शहर की याद आ गयी। वो बोला मैं अपने षहर की गलियों अक्सर ऐसे पार करता हूं। यमराज ने परेशान होकर चित्रगुप्त से कहा कि इसका रिकॉर्ड चैक करो.....चित्रगुप्त ने रिकॉर्ड देखकर कहा महाराज ये आदमी अजमेर का रहने वाला है। ये सब यातनाएं झेल कर अपने आप को हर तरह से डॅवलप कर चुका है।

ये 45 डिग्री के तापमान में भी गरमा गरम कचौरी खाता है। ठण्ड में भी मटके की कुल्फियां खाता है और गड्ढे और पानी से भरी सड़कों की आदत हो चुकी है इसे। ये इसका कुछ नही बिगाड़ सकती.. उसके बावजूद ये टैक्स भरता है। सहनशील ’अजमेर’ वासियो को पुनः समर्पित है। 

यह आलेख कभी अजमेर में जनस्वास्थ अभियांत्रिकी विभाग में अधिषाशी इंजीनियर रहे इंजीनियर शिव शंकर गोयल ने भेजा है। वे सुपरिचित व्यंग्य लेखक हैं और वर्तमान में दिल्ली में रहते हैं। अजमेर से उनका गहरा लगाव है।

https://ajmernama.com/chaupal/429295/

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

जिंदादिल शख्सियत थे वरिष्ठ वकील टेहल बुलानी

वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व लोक अभियोजक श्री टेहल बुलानी का गत दिवस निधन हो गया। वे विलक्षण व्यक्तित्व के मालिक थे। कानून की बारीकी के जानकार। उन्होंने वकालत के पेशे को डूब कर किया। उन्हें राजनीतिक सूझबूझ भी गहरी थी। शहर की नस नाडी पर उनकी पकड थी। जिस केन्द्र से शहर संचालित होता है, वहां पर मौजूदगी थी उनकी। शहर की गति का तानाबाना बुनने वालों में उनकी हिस्सेदारी थी। यदि यह कहा जाए कि वे अजमेर के चंद शीर्षस्थ जागरूक लोगों में शुमार थे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कुछ राजनीतिक नेता उनसे मार्गदर्शन लिया करते थे। भूतपूर्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के करीबी थे। वे स्वभाव से अलमस्त थे। खुशमिजाज। बहिर्मुखी व्यक्तित्व थे। अकेले इसी जिंदादिली व यारबाजी ने उन्हें उम्र के आखिरी पडाव तक जिंदा बनाए रखा। मगर अफसोस इस बात का होता है कि जैसे ही कोई शख्स उम्र दराज होने के कारण सार्वजनिक जीवन से दूर हो कर एकाकी जीवन जीने को मजबूर होता है, लोग उसे भुला देते हैं। पुराने लोगों को जरूर ख्याल होता है, मगर नई पीढी को कोई भान नहीं होता कि अमुक शख्स का कभी अजमेर की बहबूदी से वास्ता रहा है। ऐसे अनेक शख्स गुमनानी की जिंदगी जी रहे हैं अजमेर में। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल स्वर्गीय श्री बुलानी को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


गुरुवार, 27 मार्च 2025

कब है अजमेर का स्थापना दिवस?

सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल अजमेर नगरी का स्थापना दिवस कब है, इसका पता आज तक नहीं चल पाया है। मोटे तौर पर यही माना जाता है कि 2011 में चैत्र प्रतिपदा के दिन अजमेर की स्थापना हुई थी। और इसी कारण कभी 23 मार्च को तो कभी 27 मार्च को स्थापना दिवस मनाने की औपचारिकता निभा दी गई। साथ ही अफसोसनाक बात ये है कि ऐतिहासिक अजमेर का स्थापना दिवस कभी बडे पैमाने पर नहीं मनाया गया है।

आपको बता दें कि एक बार जब 23 मार्च को स्थापना दिवस सांकेतिक रूप से मनाया गया था, तब संग्रहालय के भूतपूर्व अधीक्षक मरहूम जनाब सैयद आजम हुसैन ने माना था कि 23 मार्च को मनाया जा रहा अजमेर का स्थापना दिवस एक शुरुआत मात्र है। अजमेर की स्थापना के बारे में अगर कहीं लिखित प्रमाण मिलेंगे तो उन पर अमल करते हुए इस तिथि में फेरबदल कर दिया जाएगा। पर्यटन विकास समिति के मनोनीत सदस्य महेन्द्र विक्रम सिंह व इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटेक) के अजमेर चौप्टर के स्थापना दिवस मनाने के आग्रह के पीछे उनका ही हाथ था। संग्रहालय के अधीक्षक होने के नाते उनके पास जरूर अधिकृत जानकारियां हो सकती थीं, वरना महेन्द्र विक्रम सिंह व इंटेक को क्या पता? यदि यह कहा जाए की इस पूरे प्रकरण के मूल में आजम हुसैन ही हैं और अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत का श्रेय उन्हीं खाते में जाता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस लिहाज से वे बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अजमेर का स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत तो करवाई, भले ही अभी तिथि के पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं हैं। चूंकि हिंदू मान्यता के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को नव संवत्सर को आरंभ किया जाता है, इस कारण इस वर्ष नव संवत्सर की प्रतिपदा को समारोह मनाने की परंपरा आरंभ की गई।

वैसे अब तक एक भी स्थापित इतिहासकार ने इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। स्थापना दिवस मनाने के अजमेर नगर परिशद के पूर्व उप सभापति सोमरत्न आर्य व भूतपूर्व मंत्री स्वर्गीय श्री ललित भाटी ने भी खूब माथापच्ची की थी, मगर उन्हें स्थापना दिवस का कहीं प्रमाण नहीं मिला। अजमेर के अन्य सभी मौजूदा इतिहासकार भी प्रमाण के अभाव में यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि अजमेर की स्थापना कब हुई। अजमेर के इतिहास के बारे में कर्नल टाड की सर्वाधिक मान्य और हरविलास शारदा की सर्वाधिक विश्वसनीय पुस्तक में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। मौजूदा इतिहासकार शिव शर्मा का भी यही मानना रहा है कि स्थापना दिवस के बारे में कहीं कुछ भी अंकित नहीं है। उन्होंने अपनी पुस्तक में अजमेर की ऐतिहासिक तिथियां दी हैं, जिसमें लिखा है कि 640 ई. में अजयराज चौहान (प्रथम) ने अजयमेरू पर सैनिक चौकी स्थापित की एवं दुर्ग का निर्माण शुरू कराया, मगर स्थापना दिवस के बारे में कुछ नहीं कहा है। इसी प्रकार अजमेर के भूत, वर्तमान व भविष्य पर लिखित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस में भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है।

राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित सरस्वती पुत्र पूर्व राज्यसभा सदस्य औंकार सिंह लखावत ने तो बेशक नगर सुधार न्यास के अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सम्राट पृथ्वीराज चौहान स्मारक बनवाते समय स्थापना दिवस खोजने की कोशिश की होगी। लखावत जी को पता लग जाता तो वे चूकने वाले भी नहीं थे। इनमें से कोई भी आधिकारिक रूप से यह कहने की स्थिति नहीं रहा कि यह स्थापना दिवस है।

सवाल उठता कि क्या इस मामले में तत्कालीन जिला कलैक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को अंधेरे में रख कर उनसे अजमेर का स्थापना दिवस घोषित कर लिया गया? क्या उन्हें यह जानकारी दी गई कि पुख्ता प्रमाण तो नहीं हैं, मगर फिलहाल शुरुआत तो की जाए, बाद में प्रमाण मिलने पर फेरबदल कर लिया जाएगा? क्या प्रस्ताव इस रूप में पेश किया जाता तो जिला कलेक्टर उसे सिरे से ही खारिज कर देतीं? लगता है कहीं न कहीं गडबड़ है। बेहतर तो ये होता कि जिला कलेक्टर इससे पहले बाकायदा अजमेर के इतिहासकारों की बैठक आधिकारिक तौर पर बुलातीं और उसमें तय किया जाता, तब कम से कम इतिहासकारों का सम्मान भी रह जाता और विवाद भी नहीं होता। यही वजह है कि स्थापना दिवस घोषित होने के बाद इतिहासकार इस तिथि को मानने को तैयार नहीं थे।

-तेजवाणी गिरधर

7742067000


बुधवार, 26 मार्च 2025

अजमेर में रहस्यमय गुफा सीसाखान

अजमेर में एक ऐसी रहस्यमय गुफा है, जिसके बारे में कोई प्रमाणिक तथ्य ऐतिहासिक पुस्तकों में मौजूद नहीं हैं, मगर कई दिलचस्प किंवदंतियां प्रचलन में है। इस ऐतिहासिक गुफा की सच्चाई जानने के लिए आजादी के बाद भी कोई अधिकृत प्रयास नहीं किए गए, इस कारण गुफा के रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है। इस गुफा का नाम है सीसा खान। यह नाम सुपरिचित है, मगर आज एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं, जिसने गुफा के भीतर जा कर देखा हो कि आखिर माजरा क्या है?

डिग्गी बाजार चौक और ठठेरा चौक के बीच रेगर मोहल्ले के द्वार में घुसने के बाद आगे चल कर एक गुफा है। नाम से अनुमान लगाया जाता है कि किसी जमाने में यहां सीसे की खान रही होगी। बताते हैं कि यह गुफा का रहस्य जानने के लिए आज तक जो भी अंदर गया, वह लौट नहीं पाया। असल में गुफा में आगे जाना व भीतर जा कर देखना संभव ही नहीं, क्योंकि अंदर बहुत अधिक नमी है। यहां तक कि टॉर्च, मोमबत्ती या मशाल बुझ जाती है। घुप्प अंधेरे के अतिरिक्त भीतर कई तरह के जहरीले जीव-जंतु हैं, इस कारण कोई भी हिम्मत नहीं जुटा पाता। 

बताते हैं कि इस गुफा का एक सिरा तारागढ़ से जुड़ा है और दूसरा शहर से बाहर कहीं जंगल में। कुछ कहते हैं कि इस प्रकार की सुरंगों की एक श्रृंखला थी, जो आगरा व दिल्ली तक गुप्त रूप से जाने के काम आती थी। कदाचित इनका उपयोग आक्रमण के समय बच कर निकलने के लिए किया जाता हो। ये भी मान्यता है कि इस सीसा खान गुफा का उपयोग सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय इष्ट देवी चामुंडा माता के मंदिर में जाने के लिए किया करते थे। स्वामी न्यूज चैनल पर यह स्टोरी देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए


https://www.youtube.com/watch?v=ZnOvWrl2eqg


https://www.facebook.com/swaminewsajmer/videos/621276961824301/


रविवार, 23 मार्च 2025

डॉ. कुलदीप शर्मा बन गए रातों रात हीरो

इसमें कोई दोराय नहीं कि शहर के प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट डॉ. कुलदीप शर्मा को नोटिस दिए बिना उनके मकान पर बुलडोजर चलाया और उनके साथ होमगार्ड के जवानों ने जो बदसलूकी की, वह अत्यंत निंदनीय है। व्यापक निंदा हुई भी। गुस्सा भी फूटा। प्रशासन को झुकना पडा और त्वरित कार्यवाही हुई। लेकिन इस का परिणाम यह हुआ कि डॉ. कुलदीप शर्मा रातों रात हीरो बन गए। पिछली बार विधानसभा चुनाव में जब उन्होंने दावेदारी की थी तो केवल राजनीति में खास दिलचस्पी रखने वाले ही उनसे परिचित हो पाए थे, लेकिन ताजा घटना के चलते अजमेर का बच्चा-बच्चा उनको जान गया है। कदाचित पिछले चुनाव में बतौर निर्दलीय लड चुके ज्ञान सारस्वत से भी अधिक। ज्ञान जी भी बहुत प्रसिद्ध हुए थे, आम आदमी उनसे परिचित हो गया था, मगर डॉ. कुलदीप शर्मा को बच्चा-बच्चा जान गया है। हां, यह बात जरूर है कि ज्ञान जी की प्रसिद्धि में लोकप्रियता का पुट अधिक है और शर्मा की प्रसिद्धि में सहानुभूति का।

राजनीति भी कैसी उलटबांसी है। जो अपमानित होता है, वह लोकप्रिय हो जाता है। स्वयं डॉ. कुलदीप शर्मा को भी अपने अपमानित होने का बहुत मलाल है। उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि इस घटना को वे कभी नहीं भूल पाएंगे। मगर उन्हें क्या पता कि इस वारदात ने उन्हें रातों रात हीरो बना दिया है। पूरे शहर ने जिस तरह उनके प्रति संवेदना व्यक्त की, सहानुभूति जताई, उससे वे यकायक सुपरिचित हो गए हैं। मीडिया की सक्रियता और ब्राह्मण समाज व डॉक्टर्स के समर्थन के चलते कार्यवाही भी हुई, जिससे वे ताकतवर हो कर उभरे हैं। अगली बार दावेदारी करने में उन्हें बहुत आसानी हो जाएगी। यह बात दीगर है कि वे तब इसमें दिलचस्पी ही न लें।

रहा सवाल मामले के पटाक्षेप का तो वह अनेक सवाल छोड गया है। लोग असमंजस में हैं कि यदि जेईएन की कार्यवाही सही थी तो उन्हें निलंबित क्यों किया गया? राजपूत समाज ने इस पर सवाल खडा कर दिया है। उनका तर्क हैं कि उन्होंने अपने उच्चाधिकारी के आदेश पर अमल किया तो कार्यवाही उन पर कैसे हो गई? निर्माण ध्वस्त होने से हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा, इसका कहीं खुलासा नहीं है? लोगों ने डॉक्टर साहब को संभ्रांत नागरिक बता कर होमगार्ड्स के तरीके पर सवाल खडे किए, तो क्या आम आदमी के साथ ऐसा हो तो उसे कहीं हम जायज तो नहीं ठहरा रहे हैं? डॉक्टर साहब व जेईएन के पक्ष में समाजों का लामबंद होना क्या यह साबित नहीं करता कि हमारा पूरा सिस्टम जातिवाद पर टिका है?

शनिवार, 15 मार्च 2025

बुरा न मानो होली है

दोस्तो, इस बार होली के मौके पर स्वामी न्यूज चैनल पर बुरा न मानो होली है कार्यक्रम के अंतर्गत अजमेर के सुपरिचित चेहरों को टाइटल दिए गए। कम समय में तैयार इस कार्यक्रम में स्वाभाविक रूप से चूक होने का अंदेशा था। हुआ भी वही। अनेक साथियों को टाइटल दिए गए, मगर प्रकाशित होने वाली सूचि में शुमार नहीं हो पाए। हम हृदय की गहराई से खेद व्यक्त करते हैं। असल में हर साल आयोजित किया जाने वाला फाल्गुन महोत्सव इस बार भी आयोजित नहीं किया जा सका। कतिपय कारणों से। ऐसे में स्वामी न्यूज चैनल पर वैसा ही कार्यक्रम स्टूडियो में आयोजित करने का विचार था। उसकी रूपरेखा बनी भी। मगर अपेक्षित सहयोग न मिलने पाने के कारण जल्दबाजी में कुछ अंश ही बनाए जा सके। समय कम था। पिछले कुछ सालों में दिए गए टाइटल्स की सूचियां कंपाइल करनी थी। काम बहुत कठिन था। जो बंधु टाइटल बनाया करते हैं, वे समझ सकते हैं कि यह कितना मुश्किल होता है। चार-पांच बार संशोधन किया जाता है, तब जा कर सूचि मुकम्मल हो पाती है। इस बार समायाभाव की वजह से ऐसा संभव हो नहीं पाया, नतीजतन अनेक साथियों के टाइटल तो बन गए, मगर मुख्य सूचि में शामिल करने से रह गए। जैसे ही सूचि प्रकाशित हुई, शिकायतें आनी ही थी। वे वाजिब भी थीं। यह शिकायत कर्ताओं का स्नेह और अधिकार है कि उन्होंने उलाहना दिया। हम उलाहनों को शिरोधार्य करते हैं। यकीन मानिये, किसी का भी नाम सायास नहीं हटाया गया। हटा सकते भी नहीं थे। आखिर सोसायटी में चर्चित चेहरे हैं। बहरहाल, होली बीत गई है। अब उन अप्रकाशित टाइटल्स को प्रकाशित करना बेमानी है। एक बार तो ख्याल आया कि उनको कम्पाइल कर दूसरी सूचि जारी की जाए, मगर वह उचित प्रतीत नहीं हुआ। हमारे मन में आपके प्रति पूरा सम्मान है। मेहरबानी करके इस मानवीय चूक को नजरअंदाज कर क्षमा कर दीजिए। प्लीज, प्लीज, बुरा न मानिये, होली है।

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

बुरा न मानो होली है

लाल फीता


लोकबंधु, जिला कलेक्टर- मौनी बाबा
वंदिता राणा, पुलिस अधीक्षक- आयरन लेडी
गजेन्द्र सिंह- आम आदमी
ज्योति ककवानी- काम से काम
सुरेश सिंधी- राजनीति का चस्का
भानु प्रताप गुर्जर- जय बाबा देवनानी की
संतोष प्रजापति- संतोषी सदा सुखी

शतरंज के खिलाडी
सचिन पायलट- उडान की उम्मीद
भागीरथ चौधरी- लंबी छलांग
भूपेंद्र यादव- अबूझ पहेली
वासुदेव देवनानी- मुकद्दर का सिकंदर
सुरेश रावत- पुष्कर किंग
रघु शर्मा- परशुराम
ओंकार सिंह लखावत- धरोहर का पट्टा
धर्मेंद्र सिंह राठौड़- गुरिल्ला
सुशील कंवर पलाड़ा- सौभाग्यवति
रिजू झुंझुनवाला- पलटीमार
अनीता भदेल- कल्पित मुख्यमंत्री
रामस्वरूप लांबा- मस्तमौला
रामनारायण गूजर- इमारत कभी बुलंद थी
डॉ प्रभा ठाकुर- हाशिये पर
सुरेश टाक- काठ की हांडी
शंकर सिंह रावत- पर्ची नहीं खुली
राकेश पारीक- पायलट जिंदाबाद
महेंद्र गुर्जर- मेरा क्या होगा?
ब्रजलता हाडा- ना काहू से बैर
धर्मेंद्र गहलोत- हार नहीं मानूंगा
वंदना नोगिया- भाग्य के भरोसे
भंवर सिंह पलाड़ा- बेताज बादशाह
प्रो. बी. पी सारस्वत- शनि दोष
शिव शंकर हेडा- गोडावण
रामचंद्र चौधरी- अभी तो मैं जवान हूं
जसराज जयपाल- जगत डैडी
श्रीकिशन सोनगरा- वो भी क्या दिन थे
हेमंत भाटी- हार्ड लक
राजकुमार जयपाल- खुद के दम पर
नाथूराम सिनोदिया- देहाती अंदाज
पुखराज पहाडिया - ढाई घर की चाल
श्रीमति सरिता गैना - वक्त का इंतजार
श्रीमति वंदना नोगिया - फिर लहर आएगी
किशन गुर्जर - अगली बार का इंतजार
ओम प्रकाश भडाना - बाजी मार ली
कमल पाठक - जमींदार
राजेश टंडन- वन मेन आर्मी
डॉ प्रियशील हाडा- नई भूमिका को तैयार
विजय जैन- पेंडुलम
भूपेंद्र राठौङ- टाइम पास
अरविंद यादव- किस्मत के धनी
धर्मेश जैन- प्यास अभी बाकी है
नीरज जैन- फटे में टांग
संपत सांखला- कछुआ चाल
महेंद्र सिंह रलावता- हम किसी से कम नहीं
देवीशंकर भूतड़ा- ब्यावर नरेश
कमल बाकोलिया- एंटिक
नसीम अख्तर- अमीबा
विकास चौधरी - कभी तो लहर आएगी
सुरेन्द्र सिहं शेखावत- हमको भी जाती है क्रेडिट
डॉ. श्रीगोपाल बाहेती- मात्र एक चूक
हरीश झामनानी-जाहि विधि रोखे राम
हाजी कयूम खान- उम्मीद बाकी है
सत्य किशोर सक्सेना- इमारत कभी बुलंद थी
हरी सिंह गुर्जर- सेचुरेटेड
नरेन शाहनी भगत- घूरे के दिन भी फिरते हैं
संग्राम सिंह गुर्जर- साहब का लाडला
राजू गुप्ता.- धीरे धीरे रे मना
ब्रम्हदेव कुमावत- वो भी क्या दिन थे
शक्ति प्रताप सिंह पीपरोली - अंगद
बाबूलाल सिघांरिया- वक्त का इंतजार
सतीश बंसल- सदाबहार
कंवल प्रकाश किशनानी- चस्का कायम है
गजवीर सिंह चुंडावत- छींका टूटने का इंतजार
स्वामी अनादि सरस्वती- बुरी फंसी राजनीति में आ कर
भारती श्रीवास्तव- बिंदास
अमोलक सिंह छाबड़ा- बुलंद आवाज
प्रताप यादव- बेटी में भविष्य की तलाश
नरेंद्र सत्यावना- अफलातून
कैलाश झालीवाल- किनारे पर नाव
द्रोपदी कोली- मत चूके चौहान
श्रवण टोनी- धरती पकड
चन्द्रशेखर बालोटिया काकू- पेट में दाढी
सुनील केन- खिलाडी
शैलेन्द्र अग्रवाल- राडौड बाबा जिंदाबाद
गजेन्द्र सिंह रलावता- दाई माई
रमेश सोनी- जय बाबा देवनानी
देवेन्द्र सिंह शेखावत- लंबी रेस का घोडा
नौरत गुर्जर- अंगूर खट्टे हैं
विकास सोनगरा- विरासत के भरोसे
ज्ञान सारस्वत- मांद में शेर
महेश ओझा- चाइना वाल
डॉ सुरेश गर्ग- आठ सोलह का पाना
सर्वेश पारीक- जोडी जिंदाबाद
बिपिन बेसिल- पट्टा लिखा लाया हूं
श्याम प्रजापति - जैन की छाया

दुकानदार

सुनील दत्त जैन - मन की मन में
सीताराम गोयल- उंचे सपने
मनोज मित्तल- कसक बाकी है
राधेश्याम चोयल- लंबी छलांग
अशोक रावत- भावी दावेदार
जगदीश वच्छानी- कभी तूती बोलती थी
कोसिनोक जैन - मैनेजर
धनराज चौधरी- साजिश का शिकार
अतुल दुबे - लंबी लकीर
जे पी दाधीच- टापू किंग
रासबिहारी गौड़- पद्मश्री की आस
उमरदान लखावत- तटस्थ
सूर्य प्रकाश गांधी- वकील कम पत्रकार ज्यादा
अतुल दुबे- तीन लोक से मथुरा न्यारी
लाखन सिंह- ड्रामा ही जिंदगी
दिलीप पारीक- आवाज का जादूगर
मधु खंडेलवाल- लेखिका क्वीन
दिशा किशनानी- लेडी लीडर
गोपाल बंजारा- ठीयेबाज
कृष्ण गोपाल पाराशर- घुंघरू
विष्णु अवतार भार्गव- छुपा रुस्तम
विवेक पाराशर- वकील कम राजनीतिज्ञ ज्यादा
संदीप धाबाई- पाला बदल लिया
प्रशांत यादव- उछल कूद

कलमतोड

डी .बी चौधरी- भीष्म पितामह
नरेंद्र चौहान- ना काहू से दोस्ती
डॉ रमेश अग्रवाल - लौ कायम है
आनंद ठाकुर- अजमेर रास आ गया
गिरधर तेजवानी- साधू बाबा
राजेन्द्र गुंजल चाणक्य
ओम माथुर- झुकना मंजूर नहीं
सुरेंद्र चतुर्वेदी- डब्ल्यू डब्ल्यू एफ
एस पी मित्तल- ब्लॉगिंग आदत या मजबूरी
सुरेश कासलीवाल- इनाम दर इनाम
राजेंद्र शर्मा- अल्लाह की गाय
प्रताप सनकत- गायक कलाकार
प्रेम आनंदकर- देवनानी जी की जय
संजय माथुर- साहब का कृपापात्र
अशोक शर्मा- हिटलर
नरेंद्र भारद्वाज- घाव करें गंभीर
विनीत लोहिया- खेल राजनीति से दूर
राजेंद्र याग्निक- वास्तविक पंडित
प्यारे मोहन त्रिपाठी- पीआर मास्टर
गोपाल सिंह लबाना- धीरे धीरे रे मना
त्रिलोक जैन- वजूद की खातिर
आरिफ कुरैशी- खादिम
युगलेश शर्मा- मेहनत पर भरोसा
क्षितिज गौड - क्षितिज दूर है
दिलीप शर्मा- भोला भंडारी
सुरेश लालवानी- मस्त मौला
विक्रम चौधरी- जिंदगी ऐसे जियो
धर्मेन्द्र प्रजापति- पुलिस की नब्ज
मनीष चौहान- काम से काम
पवन अटारिया- उठाउ चूल्हा
इन्द्रशेखर भटनागर - वॉट्सएप न्यूज
दिलीप मोरवाल- जेएलएन ही जिंदगी
योगेश सारस्वत- हर जगह फिट
अतुल सिंह बाग- सबसे अलग
बलजीत सिंह- नींव की ईंट
निर्मल मिश्रा- जवानी कायम है
संतोष खाचरियावास- संतोषी जीव
बृजेश शर्मा- पानी रास आ गया
रक्तिम तिवारी- राजपूत
गिरीश दाधीच- ज्योतिषी
रजनीश रोहिल्ला- जड अभी जिंदा है
सी पी जोशी- मुकाम पा लिया
रजनीश शर्मा- बस नौकरी
पी के श्रीवास्तव- हमारे भी किस्से थे
मनोज दाधीच- जादूगर
नरेश राघानी- ऊंची दुकान
जाकिर हुसैन- ख्वाहिश कुछ और है
विजय मौर्य- गहरी चाल
अनिल माहेश्वरी- जुगाडू
गजेंद्र बोहरा- अफलातून
अभिजीत दवे- एक घर बसाउंगा
मनवीर सिंह चुंडावत- लंबी छलांग
आनंद शर्मा - गुरूओं का गुरू
प्रियांक शर्मा- जो हम से टकराएगा
नवाब हिदायत उल्ला- सेटिंग मास्टर
बालकिशन शर्मा- देखन में छोटे लगें
डॉ राशिका महर्षि- स्टील लेडी
अनुराग जैन- लंबी कहानी
कौशल जैन- हम नहीं ठहरेंगे
आशु कौशिक- हंगामा है क्यूं बरपा
दीपक शर्मा- एकला चालो रे
मुकेश परिहार- पेट में दाढी
जय मखीजा- आपका दोस्त
चंद्रशेखर शर्मा - दूर का दर्शन
संजय गर्ग- सबसे फास्ट
अशोक सिंह भाटी- मूंछ पर ताव
शुभम जैन- बडा दुकानदार
दुर्गेश डाबरा- हुकम का गुलाम
रूपेंद्र शर्मा- तोकू कोई और नहीं
नजीर कादरी- छपासियों का इलाज
मोहन ठाडा- हम किसी से कम नहीं
राजकुमार वर्मा- पुराना चावल
आरजू प्रजापत- फेमस ऐंकर


https://ajmernama.com/chaupal/428505/

स्मार्ट अजमेर बैंड कंपनी

अजमेर ब्रॉस बैंड कंपनियों के लिए प्रसिद्ध है। इन दिनों स्मार्ट अजमेर बैंड कंपनी एक्टिव है। खूब हल्ला मचा रखा है। सेवन वंडर्स के निधन पर मातमी धुन बजा रही है। किसी को मातमी धुन सुनाई देती है तो किसी का जश्न सा आभार करवा रही है। कोई ढोल बजा रहा है तो कोई पींपाडी, कोई नक्कार से हाहाकार मचा रहा है तो कोई तूती से काम चला रहा है। कंपिटीशन छिडा हुआ है। हर कोई दूसरे से आगे निकलना चाहता है। पुष्कर की कपडा फाड होली जैसी प्रतिस्पर्द्धा है। परस्पर विरोधी तर्क इतने उलझे हैं कि पता ही नहीं चल रहा कि सच क्या है और झूठ क्या? आंकडों के मायाजाल ने आम अजमेरी को कन्फ्यूज करके रख दिया है। लानत अफसरों पर भेज रहे हैं और भिडे हुए आपस में हैं। अरे भाई, जब सेवन वडर्स के लिए अफसरशाही को दोषी ही मानते हो, कि उन्होंने आपकी एक नहीं चलने दी तो आपस में काहे को एक दूसरे को भेंटी मार रहे हो। इससे क्या हासिल हो जाएगा? यह देख अफसर मन ही मन खुश हैं। वे यही तो चाहते हैं। तभी तो कहते हैं कि दो बंदरों की लडाई में बिल्ली माल खाती रहती है। यही अजमेर की फितरत है। अजमेर का इतिहास है। हम कभी नहीं सुधरेंगे।

सवाल ये है कि अजमेर इस काले अध्याय का असली जिम्मेदार कौन है? केवल अफसरों को गाली देना कितना जायज है? अफसर तो लालफीताशाही के आदी हैं, मगर क्या आपकी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं बनती थी? क्या केवल मुट्ठी तान लेना ही काफी था? कोरी बयानों में वीरता नाकाफी थी। क्या कभी मतभेद भुला कर कोई आंदोलन किया? या याचक की तरह मांग मात्र करके इतिश्री कर ली। तभी तो कहते हैं कि हक मांगने से नहीं, छीनने से मिलता है। अगर आपकी आवाज नहीं सुनी गई तो यह आपके जननायक होने पर संदेह पैदा करता है। गर सच में चाहते हो कि दोषियों को सजा होनी चाहिए तो पौरुष जगाना होगा। रहा सवाल मूकदर्शक अजमेरी लालों का, तो उसे समझ ही नहीं आता कि कब सियापा किया जाए और कब जश्न मनाया जाए। बेचारे मीडिया ने अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, मगर उसकी तासीर पहले सी नहीं रही। शासन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। एक कान से सुनता है, दूसरे कान से निकाल देता है।

सात अजूबे

 संपत सांखला होंगे एडीए अध्यक्ष


कानाफूसी है कि अजमेर नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर संपत सांखला को अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जा रहा है। बताया जाता है कि एकाधिक दावेदारों के बीच जबरदस्त खींचतान मची हुई है। सांखला प्रत्यक्षतः इस दौड में नजर नहीं आते। मगर बताते हैं कि उनकी ताजपोशी का ब्ल्यू प्रिंट तैयार किया गया है। समझा जा सकता है कि चौसर बिछाने वाला मास्टर माइंड कौन होगा, जो शह और मात का खेल बखूबी जानता है। जाहिर तौर पर इसके लिए एक नया सियासी तानाबाना बुना जा रहा है, जिसके अजमेर की राजनीति में दूरगामी परिणाम आ सकते हैं। बताया जाता है कि रमेश सोनी को दुबारा शहर जिला भाजपा अध्यक्ष बनाया ही इसलिए गया कि एडीए की सीट खाली रखी जाए, वरना उनके मुकाबले कोई और सशक्त दावेदार था ही नहीं।


हेमंत भाटी का शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनना पक्का

लंबे समय से रिक्त अजमेर शहर जिला अध्यक्ष पद, जिसे कि निवर्तमान के तौर पर विजय जैन ढो रहे हैं, जल्द ही भर दिया जाएगा। अनौपचारिक रूप से पद की जिम्मेदारी संभालते संभालते जैन थक गए हैं, मगर इस पद के प्रति उनका लगाव इतना गहरा हो गया है कि अब इसे छोडना नहीं चाहते। सोने का पिंजरा अमूमन उडने की चाह ही खत्म कर देता है। अलग अलग गुटों के दावेदार भी मशक्कत कर रहे हैं। नतीजतन फैसला होने में दिक्कत आ रही है। चूंकि वीटो सचिन पायलट के हाथ में है, इस कारण सभी उनका मुंह ताक रहे हैं। बताया जाता है कि उन्होंने हेमंत भाटी को होल्ड पर रखा हुआ है। मौका पडते ही वे यह पत्ता चल देंगे। 


धर्मेन्द्र सिंह राठौड की काट भंवरसिंह पलाडा

अजमेर में अभी दो विधानसभा सीटें हैं, मगर समझा जाता है कि परिसीमन के बाद तीन सीटें हो जाएंगी। तब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अजमेर दक्षिण व अघोषित रूप से सिंधियों के लिए आरक्षित अजमेर उत्तर के अतिरिक्त तीसरी सीट अनारक्षित रह जाएगी। आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड की नजर उसी सीट पर है। इसीलिए अभी से हांफने वाली रफ्तार से दौड रहे हैं। योजनाबद्ध तरीके से जाजम बिछा रहे हैं। यूं तो भाजपा के पास एकाधिक दावेदार मौजूद हैं, मगर पार्टी में अंदरखाने चर्चा है कि राठौड का मुकाबला भंवर सिंह पलाडा ही कर पाएंगे। साम, दाम, दंड, भेद, हर लिहाज से।


पुखराज पहाडिया की नजर ब्यावर जिला परिषद पर

अजमेर के जिला प्रमुख रह चुके पुखराज पहाडिया यूं तो एडीए अध्यक्ष बनना चाहते हैं, मगर इस सीट को लेकर बडे झगडे हैं। दौड में नंबर वन हैं, मगर राजनीति में नंबर वन को ही टंगडी लगती है। यह बात अनुभवी पहाडिया भलीभांति जानते हैं। इसीलिए अपनी जेब में सेकंड प्लान रखे हुए हैं। फिलवक्त कहीं जाहिर नहीं होने दे रहे कि उनकी रुचि ब्यावर में है, मगर भीतर ही भीतर ताना बाना बुन रहे हैं। उन्हें पंचायती राज व्यवस्था की गहरी जानकारी है। पिछली बार पार्टी हाईकमान की मर्जी के खिलाफ वार्ड मेंबरों को अपने कब्जे में लेकर पूरे दमखम से जिला प्रमुख बने। फिर अविश्वास प्रस्ताव आया तो इस चतुर राजनीतिज्ञ ने अपने रणनीतिक कौशल को प्रदर्षन कर दिखाया। अगर ब्यावर जिला प्रमुख बनने की ठान ली तो उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा।


धर्मेश जैन होंगे मार्गदर्शक मंडल में

अजमेर यूआईटी के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन की पार्टी की लंबे समय से सेवाओं को देखते हुए भाजपा मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया जा रहा है। पार्टी चाहती है कि उनके गहन अनुभव का लाभ लिया जाए। हालांकि वे अब भी चाहते हैं कि पिछले कार्यकाल में अधूरे रहे कामों को पूरा कर अजमेर को आदर्श शहर बनाएं, मगर गंगा का पानी बहुत बह गया है। जमीन पर हालात बदल गए हैं। मगर जयपुर से लेकर दिल्ली तक उनकी पकड अब भी बरकरार है। सीधे नरेन्द्र मोदी तक पहुंच है। पार्टी के बडे नेता भी चाहते हैं कि उनकी योग्यता का लाभ उठाया जाए। इसीलिए उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल किए जाने पर विचार किया जा रहा है। वस्तुतः उनके जितना सीनियर कोई नेता नहीं है। इसलिए अब भीष्म पितामह की ही भूमिका की उपयुक्त प्रतीत होती है। वैसे बनती कोशिश वे स्वयं नहीं तो पुत्र अमित जैन को एडजस्ट करवा कर ही मानेंगे।

बुरा न मानो होली है


गुरुवार, 13 मार्च 2025

बुरा न मानो होली है

संपत सांखला होंगे एडीए अध्यक्ष


कानाफूसी है कि अजमेर नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर संपत सांखला को अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया जा रहा है। बताया जाता है कि एकाधिक दावेदारों के बीच जबरदस्त खींचतान मची हुई है। सांखला प्रत्यक्षतः इस दौड में नजर नहीं आते। मगर बताते हैं कि उनकी ताजपोशी का ब्ल्यू प्रिंट तैयार किया गया है। समझा जा सकता है कि चौसर बिछाने वाला मास्टर माइंड कौन होगा, जो शह और मात का खेल बखूबी जानता है। जाहिर तौर पर इसके लिए एक नया सियासी तानाबाना बुना जा रहा है, जिसके अजमेर की राजनीति में दूरगामी परिणाम आ सकते हैं। बताया जाता है कि रमेश सोनी को दुबारा शहर जिला भाजपा अध्यक्ष बनाया ही इसलिए गया कि एडीए की सीट खाली रखी जाए, वरना उनके मुकाबले कोई और सशक्त दावेदार था ही नहीं।


हेमंत भाटी का शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनना पक्का

लंबे समय से रिक्त अजमेर शहर जिला अध्यक्ष पद, जिसे कि निवर्तमान के तौर पर विजय जैन ढो रहे हैं, जल्द ही भर दिया जाएगा। अनौपचारिक रूप से पद की जिम्मेदारी संभालते संभालते जैन थक गए हैं, मगर इस पद के प्रति उनका लगाव इतना गहरा हो गया है कि अब इसे छोडना नहीं चाहते। सोने का पिंजरा अमूमन उडने की चाह ही खत्म कर देता है। अलग अलग गुटों के दावेदार भी मशक्कत कर रहे हैं। नतीजतन फैसला होने में दिक्कत आ रही है। चूंकि वीटो सचिन पायलट के हाथ में है, इस कारण सभी उनका मुंह ताक रहे हैं। बताया जाता है कि उन्होंने हेमंत भाटी को होल्ड पर रखा हुआ है। मौका पडते ही वे यह पत्ता चल देंगे। 


धर्मेन्द्र सिंह राठौड की काट भंवरसिंह पलाडा

अजमेर में अभी दो विधानसभा सीटें हैं, मगर समझा जाता है कि परिसीमन के बाद तीन सीटें हो जाएंगी। तब अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अजमेर दक्षिण व अघोषित रूप से सिंधियों के लिए आरक्षित अजमेर उत्तर के अतिरिक्त तीसरी सीट अनारक्षित रह जाएगी। आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड की नजर उसी सीट पर है। इसीलिए अभी से हांफने वाली रफ्तार से दौड रहे हैं। योजनाबद्ध तरीके से जाजम बिछा रहे हैं। यूं तो भाजपा के पास एकाधिक दावेदार मौजूद हैं, मगर पार्टी में अंदरखाने चर्चा है कि राठौड का मुकाबला भंवर सिंह पलाडा ही कर पाएंगे। साम, दाम, दंड, भेद, हर लिहाज से।


पुखराज पहाडिया की नजर ब्यावर जिला परिषद पर

अजमेर के जिला प्रमुख रह चुके पुखराज पहाडिया यूं तो एडीए अध्यक्ष बनना चाहते हैं, मगर इस सीट को लेकर बडे झगडे हैं। दौड में नंबर वन हैं, मगर राजनीति में नंबर वन को ही टंगडी लगती है। यह बात अनुभवी पहाडिया भलीभांति जानते हैं। इसीलिए अपनी जेब में सेकंड प्लान रखे हुए हैं। फिलवक्त कहीं जाहिर नहीं होने दे रहे कि उनकी रुचि ब्यावर में है, मगर भीतर ही भीतर ताना बाना बुन रहे हैं। उन्हें पंचायती राज व्यवस्था की गहरी जानकारी है। पिछली बार पार्टी हाईकमान की मर्जी के खिलाफ वार्ड मेंबरों को अपने कब्जे में लेकर पूरे दमखम से जिला प्रमुख बने। फिर अविश्वास प्रस्ताव आया तो इस चतुर राजनीतिज्ञ ने अपने रणनीतिक कौशल को प्रदर्षन कर दिखाया। अगर ब्यावर जिला प्रमुख बनने की ठान ली तो उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा।


धर्मेश जैन होंगे मार्गदर्शक मंडल में

अजमेर यूआईटी के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन की पार्टी की लंबे समय से सेवाओं को देखते हुए भाजपा मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया जा रहा है। पार्टी चाहती है कि उनके गहन अनुभव का लाभ लिया जाए। हालांकि वे अब भी चाहते हैं कि पिछले कार्यकाल में अधूरे रहे कामों को पूरा कर अजमेर को आदर्श शहर बनाएं, मगर गंगा का पानी बहुत बह गया है। जमीन पर हालात बदल गए हैं। मगर जयपुर से लेकर दिल्ली तक उनकी पकड अब भी बरकरार है। सीधे नरेन्द्र मोदी तक पहुंच है। पार्टी के बडे नेता भी चाहते हैं कि उनकी योग्यता का लाभ उठाया जाए। इसीलिए उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल किए जाने पर विचार किया जा रहा है। वस्तुतः उनके जितना सीनियर कोई नेता नहीं है। इसलिए अब भीष्म पितामह की ही भूमिका की उपयुक्त प्रतीत होती है। वैसे बनती कोशिश वे स्वयं नहीं तो पुत्र अमित जैन को एडजस्ट करवा कर ही मानेंगे।

बुरा न मानो होली है

स्मार्ट अजमेर बैंड कंपनी

दोस्तो, नमस्कार। होली की हार्दिक षुभकामनाएं। अजमेर ब्रॉस बैंड कंपनियों के लिए प्रसिद्ध है। इन दिनों स्मार्ट अजमेर बैंड कंपनी एक्टिव है। खूब हल्ला मचा रखा है। सेवन वंडर्स के निधन पर मातमी धुन बजा रही है। किसी को गमगीन धुन सुनाई देती है तो किसी को जष्न सा आभार करवा रही है। कोई ढोल बजा रहा है तो कोई पींपाडी, कोई नक्कार से हाहाकार मचा रहा है तो कोई तूती से काम चला रहा है। कंपीटीषन छिडा हुआ है। हर कोई दूसरे से आगे निकलना चाहता है। पुश्कर की कपडा फाड होली जैसी प्रतिस्पर्द्धा है। परस्पर विरोधी तर्क इतने उलझे हैं कि पता ही नहीं चल रहा कि सच क्या है और झूठ क्या? आंकडों के मायाजाल ने आम अजमेरी को कन्फ्यूज करके रख दिया है। लानत अफसरों पर भेज रहे हैं और भिडे हुए आपस में हैं। अरे भाई, जब सेवन वडर्स के लिए अफसरषाही को दोशी ही मानते हो, कि उन्होंने आपकी एक नहीं चलने दी तो आपस में काहे को एक दूसरे को भेंटी मार रहे हो। इससे क्या हासिल हो जाएगा? यह देख अफसर मन ही मन खुष हैं। वे यही तो चाहते हैं। तभी तो कहते हैं कि दो बंदरों की लडाई में बिल्ली माल खाती रहती है। यही अजमेर की फितरत है। अजमेर का इतिहास है। हम कभी नहीं सुधरेंगे।

सवाल ये है कि अजमेर के इस काले अध्याय का असली जिम्मेदार कौन है? केवल अफसरों को गाली देना कितना जायज है? अफसर तो लालफीताषाही के आदी हैं, मगर क्या आपकी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं बनती थी? क्या केवल मुट्ठी तान लेना ही काफी था? कोरी बयानों में वीरता नाकाफी थी। क्या कभी मतभेद भुला कर कोई आंदोलन किया? या याचक की तरह मांग मात्र करके इतिश्री कर ली। तभी तो कहते हैं कि हक मांगने से नहीं, छीनने से मिलता है। अगर आपकी आवाज नहीं सुनी गई तो यह आपके जननायक होने पर संदेह पैदा करता है। गर सच में चाहते हो कि दोशियों को सजा होनी चाहिए तो पौरूश जगाना होगा। रहा सवाल मूकदर्षक अजमेरी लालों का, तो उसे समझ ही नहीं आता कि कब सियापा किया जाए और कब जष्न मनाया जाए। बेचारे मीडिया ने तो अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, मगर उसकी तासीर पहले सी नहीं रही। षासन-प्रषासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। एक कान से सुनता है, दूसरे कान से निकाल देता है। 


मंगलवार, 11 मार्च 2025

जब विमोचन समारोह बन गया अजमेर पर चिंतन का यज्ञ

अजमेर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि अदद एक पुस्तक का विमोचन समारोह अजमेर की बहबूदी पर चिंतन का यज्ञ बन गया, जिसमें अपनी आहूति देने को भिन्न राजनीतिक विचारधारों के दिग्गज प्रतिनिधि एक मंच पर आ गए। यह न केवल राजनीतिकों, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों व गणमान्य नागरिकों एक संगम बना, अपितु इसमें अजमेर के विकास के लिए समवेत स्वरों में प्रतिबद्धता भी जाहिर की गई।

वीडियो तकरीबन 14 साल पुराना है, मगर रोचक है। देखने केलिए यह लिंक क्लिक कीजिएः-

https://youtu.be/zeiBMI2b39g 

तकरीबन 11 साल पहले दिसंबर माह की 17 तारीख का वाकया आपसे साझा करने का मन हो गया। बुधवार, 17 दिसंबर 2010 की

सुबह क्षितिज पर उभरी सूर्य रश्मियों की ऊष्मा से मिली गर्मजोशी का यह मंजर बना था अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक के विमोचन समारोह में। पहली बार एक ही मंच पर अजमेर में कांग्रेस के दिग्गज केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट व भाजपा के भीष्म पितापह पूर्व सांसद औंकारसिंह लखावत को मधुर कानाफूसी करते देख सहसा किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि विरोधी राजनीतिक विचारधारा के दो दिग्गज अजमेर के विकास की खातिर अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताएं त्याग कर एक हो सकते हैं। मंच पर मौजूद प्रखर वक्ता पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व धारा प्रवाह बोलने में माहिर पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत संकेत दे रहे थे कि उनमें भले ही वैचारिक भिन्नता है, मगर अजमेर के लिए उनमें कोई मनभेद नहीं है।

जिह्वा पर सरस्वती को विराजमान रखने वाले लखावत ने जिस खूबसूरती से अजयमेरु नगरी के गौरव व महत्ता का बखान किया, उससे समारोह में मौजूद सभी श्रोता गद्गद् हो गए। उन्होंने खुद उत्तर देते सवाल उठाए कि अगर अजमेर खास नहीं होता तो क्यों सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा इसी पावन धरती पर आदि यज्ञ करते? इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए दुनिया में मक्का के बाद सर्वाधिक श्रद्धा के केन्द्र ख्वाजा गरीब नवाज ने सुदूर ईरान देश से हिंदुस्तान में आ कर सूफी मत का प्रचार-प्रसार करने के लिए पाक सरजमीं अजमेर को ही क्यों चुना? उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अजमेर की विकास यात्रा का भागीदारी बनने में कोई भी राजनीतिक विचारधारा बाधक नहीं बन सकती। लखावत के बौद्धिक और भावपूर्ण उद्बोधन से मुख्य अतिथि पायलट भी अभिभूत हो गए और उनके मुख से निकला कि कोई भी शहर इस कारण खूबसूरत नहीं होता कि वहां ऊंची-ऊंची इमारतें हैं या सारी भौतिक सुविधाएं हैं, अपितु वह सुंदर बनता है वहां रहने वाले लोगों के भाईचारे और स्नेह से। पायलट ने केन्द्रीय मंत्री के नाते अजमेर को उसका पुराना गौरव दिलाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। मुख्य वक्ता की भूमिका निभा रहे भाटी ने उन सभी बिंदुओं पर प्रकाश डाला, जिन पर ध्यान दे कर अजमेर को और अधिक गौरव दिलाया जा सकता है।

समारोह में मौजूद सभी गणमान्य नागरिक इस बात से बेहद प्रसन्न थे कि अजमेर और केवल अजमेर के लिए चिंतन का यह आगाज विकास यात्रा के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

सचिन पायलट की सदाशयता समारोह में यकायक तब झलकी, जब उन्होंने सामने श्रोताओं की पहली पंक्ति में बैठे पूर्व भाजपा सांसद प्रो. रासासिंह रावत को मंच पर आदर सहित आमंत्रित कर अपने पास बैठा लिया। वे पूरे समारोह के दौरान उनसे अजमेर के विकास के बारे में लंबी गुफ्तगू करते रहे। साफ झलक रहा था कि नई पीढ़ी का सांसद पांच बार सांसद रहे पुरानी पीढ़ी के प्रो. रावत को अपेक्षित सम्मान देने के लोक व्यवहार को भलीभांति जानता है। उन्होंने साबित कर दिया कि वरिष्ठता के आगे राजनीतिक प्रतिबद्धता गौण हो जाती है। पायलट के ऐसे सहज व्यवहार को देख कर पानी की कमी के कारण पिछड़े अजमेर के वासियों की आंख में पानी तैरता दिखाई दिया।

लब्बोलुआब, वह दिन सांप्रदायिक सौहार्द्र की धरा अजमेर में पल-बढ़ रहे लोगों के बीच अजमेर की खातिर सारे मतभेद भुला कर एकाकार होने का श्रीगणेश कर गया।

दुर्भाग्य से हमारे बीच अब प्रो रावत व श्री भाटी नहीं हैं। आज जब अजमेर स्मार्ट सिटी बनने की दिषा में कदम रख चुका है, उम्मीद की जानी चाहिए विकास के सवाल पर हमारे राजनेताओं में कोई मतैक्य नहीं होगा। 


रविवार, 9 मार्च 2025

राजीव दत्ता के अभिनंदन के निहितार्थ

राजस्थान कुश्ती संघ के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर अजमेर में खेल एवं व्यापार संघों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला के विशेषाधिकारी राजीव दत्ता का जोरदार अभिनंदन किया। शहर भर में बडे बडे हॉडिंग्स लगाए गए। उन्हें देख कर सभी अचंभित थे। आखिर अजमेर से उनका क्या कनैक्शन हो सकता है? अभिनंदन की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल द्वारा भी स्वागत किया गया। अभिनंदन समारोह में अजमेर जिला केमिस्ट एसोसिएशन की खास भूमिका रही। यह ठीक है कि दत्ता के अजमेर से राजनीतिक एजेंडे की कल्पना बेमानी और वाहियात लगती है, मगर इतना तय है कि उनका अजमेर आगमन कुछ न कुछ निष्पत्ति लाएगा ही। इस अर्थ प्रधान युग में कोई यूं ही तो किसी का इतना बडा अभिनंदन नहीं किया करता।


सुनिल पारवानी अजमेर में क्यों भेजे गये हैं?

गत 3 मार्च को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव डॉ सुनिल पारवानी के फेसबुक अकाउंट पर शाया एक पोस्ट से यह जानकारी सामने आई कि उन्हें अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का कोऑर्डिनेटर बनाया गया है। चूंकि अब तक इस नियुक्ति का आधिकारिक साक्ष्य कहीं नजर नहीं आया है, इस कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं में कौतुहल है। बेशक, उस पोस्ट पर अनेकों ने उन्हें बधाई दी है, मगर सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं आने की वजह से कुछ असमंजस होता है। लेकिन खुद उनके अकाउंट पर दी गई जानकारी पर अविश्वास करने का कोई कारण भी नहीं है। बहरहाल, उपलब्ध जानकारी को आधार मान कर यह वीडियो बनाया है.-

दोस्तो, नमस्कार। राजस्थान प्रदेष कांग्रेस कमेटी के महासचिव डॉ सुनिल पारवानी को संगठन में अहम जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का कोऑर्डिनेटर बनाया गया है। इसके खास मायने समझे जा रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि इस सिंधी बहुल सीट पर पिछले चार चुनावों में गैर सिंधी को टिकट दिए जाने के कारण सिंधी समुदाय में नाराजगी है। अधिसंख्य सिंधी मतदाता लामबंद हो कर भाजपा के पक्ष में चले जाते हैं और कांग्रेस हार जाती है। समझा जाता है कि पारवानी को सिंधी मतदाताओं को साधने के लिए यह अहम जिम्मेदारी दी गई है। आपको ख्याल में होगा कि इससे पहले भी उन्हें अजमेर का सह प्रभारी बनाया गया तो यही समझा गया कि उन्हें चुनाव से दो साल पहले इसी कारण यहां भेजा गया है, ताकि चुनाव के लिए जमीन तैयार कर सकें। कुछ लोग तो उन्हें अजमेर उत्तर का प्रबल दावेदार मानते थे। उन्होंने जब सिंधी समाज की कुछ बैठकें लीं तो यही माना गया कि वे चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि वे बैठकें स्थानीय सिंधी नेताओं ने पारवानी से नजदीकी जाहिर करने और अपना जनाधार दिखाने के लिए की थीं। अगर यह माना जाए कि उन्हें भावी विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए अभी से तैनात किया गया है तो कोई अतिषयोक्ति नहीं होगी। उसकी वजह यह है कि कांग्रेस के पास फिलवक्त दमदार स्थानीय दावेदार नहीं है। पारवानी पहले भी अजमेर में काम कर चुके हैं और साधन संपन्न भी हैं। वे पूर्व प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के करीबी माने जाते हैं। उनका कद तब और बढ गया, जब उन्हें विधानसभा चुनाव से चंद दिन पहले राजस्थान सिंधी अकादमी को अध्यक्ष बनाया गया।

प्रसंगवष बता दें कि वे जयपुर की सिंधी बहुल सांगानेर सीट के भी दावेदार माने जाते हैं। पारवानी एस पी एल के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी पहल पर एस पी एल की ओपनिंग सेरेमनी जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम पर हुई थी। जाहिर तौर जमीन पर पकड़ और लोकप्रियता के लिए इतने बडे आयोजन में भूमिका निभाई।

https://youtu-be/LzB9lr4gqh0

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

क्या ख्वाम-ख्वाह ही बने हैं अजमेर में खामेखां के तीन दरवाजे?

अजमेर में जलदाय महकमे के पूर्व अधीक्षण अभियंता, जो कि इन दिनों दिल्ली में रहते हैं, का अजमेर से खास स्नेह है। वे सुपरिचित हास्य-व्यंग्य लेखक हैं। हाल ही उन्होंने एक व्यंग्य लेख सोशल मीडिया पर जारी किया है। लेख बहुत दिलचस्प है, लिहाजा आप से साझा किए देते है।

अजमेर, सूफी संत ख्वाजा मोइनुध्दीन चिश्ती की दरगाह, तीर्थगुरू पुष्कर और जैनधर्म संबंधी सोनीजी की नसियां से ही मशहूर नहीं है. इसकी प्रसिध्दि का एक बडा कारण आनासागर की पाल, बारहदरी पर बने खामेखां के तीन दरवाजें भी है. इन्हें खामेखां नामक किसी मुगल सरदार ने बनवाया या यह ख्वाम-ख्वाह (फिजूल) ही बने हुए है ? यह बात प्रसिध्द इतिहासकारों कर्नल टाड, गौरी शंकर हीरा चंद ओझा आदि की चर्चा का विषय तो रहा ही है लेकिन बदली परिस्थितियों में इसे सीबीआई की जांच का विषय भी बनाया जा सकता है. लोगों का ध्यान बंटाने के लिए जब रसगुल्ला बंगाल का है या उडीसा का, पर बहस हो सकती है तो खामेखां के तीन दरवाजों पर बहस वाजिब ही है. 

बताते है कि जब पृथ्वीराज के नाना महाराजा अजयपाल ने अजमेर को बसाया था, पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली के साथ साथ इसे अपनी राजधानी बनाया था, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने इसे अपना मुकाम बनाया और अकबर जब औलाद की कामना में, सजदा करने यहां आया तब, इन दरवाजों का कही कोई हवाला नहीं है. चाहे तो आप आइने-अकबरी पढ लें या जहांगीर-नामा. यह भी हो सकता है कि जहांगीर-शाहजंहा के समय जब बारहदरी, चश्मेशाही, पीताम्बर की गाल इत्यादि बने तब इसका निर्माण हुआ हो. कुछ तो यहां तक कहते है कि इन दरवाजों की वजह से अजमेर,  सदा रजवाडों से मुक्त रेजिडेन्सी रहा है (यहां प्रशासक, कमिश्नर होता था). 

मदार गेट स्थित नगर परिषद के टाउन हाल में कभी प्रसिध्द क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा की तस्वीर टंगी होती थी जो यह दर्शाता है कि अजमेर का स्वतंत्रता आंदोलन में कितना महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इतना ही नही स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री, लौह पुरूष, सरदार पटेल ने इसे राजपुताने से अलग सी स्टेट के रूप में रखा. 1 नवम्बर 1956 को इसका विलय राजस्थान में हो गया. 

कुछ क्षेत्रों में चर्चा यह भी है कि यह दरवाजें तीन ही क्यों है, ज्यादा भी तो हो सकते थे ? क्या मुगलकाल में भी यह नारा बुलन्द था “दो या तीन बस !” इस हिसाब से तो यह अच्छा हुआ कि यह दरवाजें तब बन गए वरना बाद में तो यह नारा लगने लगा था “.....दो ही अच्छे” मतलब यह कि एक जाने का और एक आने का दरवाजा.  

कुछ जानकारों का अनुमान है कि अजमेर में तीन दरवाजें होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि यहां सदा से ही तीन का बडा महत्व रहा है.

https://www.youtube.com/watch?v=ORDPKhcqY5w


बुधवार, 5 मार्च 2025

अजमेर शहर को बडे रंगमंच की दरकार

अजमेर में हालांकि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जवाहर रंगमंच है, जिसकी सिटिंग केपिसिटी तकरीबन आठ साढे आठ सौ है, मगर वह ताजा जरूरतों के मुताबिक बहुत छोटा है। षहर को 1500 से 2000 सीटों वाले रंगमंच की सख्त दरकार है। असल में अरसे पहले जब वरिश्ठ वकील राजेष टंडन ने रंगमंच की मांग उठाई थी, उसके भी दस साल बाद वह पूरी हुई। जब जवाहर रंगमंच बन कर पूरा हुआ तो महसूस किया गया कि यह अपेक्षा से छोटा है, मगर फिर भी जैसे तैसे कार्यक्रम होने लगे। मगर छोटी-मोटी संस्थाओं के लिए वह सपना है। केवल संपन्न संस्थाएं ही उसमें कार्यक्रम का पा रही हैं। आजकल तो वह भी बंद है। उसका रिनोवेषन हो रहा है। इस कारण आठ सौ-हजार दर्षकों का कार्यक्रम करने वाली संस्थाएं परेषान हैं। उन्हें मजबूरी में कम दर्षक संख्या वाले स्थलों का विकल्प के रूप में चुनना पड रहा है। पिछले साल आचार संहिता के कारण जवाहर रंगमंच संस्थाओं के लिए उपलब्ध नहीं था, इस कारण उन्हें मेडिकल कॉलेज के हॉल में कार्यक्रम करना पडा। वह भी बहुत महंगा है। सीटें भी रंगमंच से कम हैं। इस बार फिर वही स्थिति है। माध्यमिक षिक्षा बोर्ड स्थित राजीव सभागार भी महंगा है। उसमें सीटें और भी कम हैं। हालांकि जीसीए का सभागार सीटों के लिहाज से ठीक-ठाक है, मगर साधन सुविधाएं कम हैं। सतगुरू ग्रुप का हॉल आधुनिक है, मगर षहर से इतनी दूर है कि कोई भी संस्था वहां कार्यक्रम करने का सोच भी नहीं सकती। सूचना केन्द्र में ओपन थियेटर में सिटिंग केपेसिटी कम है। पहले जरूर केपेसिटी ठीक-ठाक थी, मगर नया बनने के बाद केपेसिटी कम हो गई है। कुल जमा हालत ये है कि अच्छा व बडा कार्यक्रम करने के लिए अजमेर में जगह ही नहीं है। जो हैं, वे सामान्य संस्थाओं के बजट से बाहर। ऐसे में इस षहर को ऐसे बडे रंगमंच की सख्त जरूरत है, जिसमें सांस्कृतिक संस्थाएं रियायती दर पर कार्यक्रम कर सकें। उसके अभाव में अजमेर में सांस्कृतिक गतिविधियां कम होती जा रही हैं। अफसोसनाक है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर करोडों-अरबों के काम तो हुए, मगर बडा रंगमंच बनाने की न तो किसी राजनेता ने सोची न ही अफसरों ने। 

सोमवार, 3 मार्च 2025

नागौर के मूंडवा में भरता था अंतरराष्ट्रीय गधा मेला

पिछले दिनों ये डंकी रूट क्या है, शीर्षक से एक न्यूज आइटम दिया तो दूसरा दशक के डायरेक्टर सुपरिचित बुद्धिजीवी जनाब प्रिंस सलीम ने प्रसंगवश नई जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि राजस्थान के नागौर जिले के मूंडवा नामक गांव में 18 वीं शताब्दी से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर का गधा मेला आयोजित किया जाता रहा था। यह मेला गधों की खरीद-फरोख्त के लिए जाना जाता था और यहां दूर-दूर से व्यापारी और किसान आते थे। इस मेले में अलग-अलग नस्लों के गधे लाए जाते थे, और उनकी विशेषताओं के आधार पर उनकी कीमत तय की जाती थी। यह विभिन्न प्रकार की मार्केटिंग सुप्रबंधन के जरिए तत्कालीन व्यापारिक आवश्यकता की पूर्ति करता था। मध्य एशिया सेन्ट्रल एशिया आदि से हुंडी व्यापार का उदाहरण इस मेले के रिकार्डों में दिखाई देगा। हालांकि, समय के साथ इस मेले का महत्व कम होता गया और अब यह उतनी धूमधाम से नहीं लगता। अब नागौर का मुख्य पशु मेला, जो फरवरी में लगता है, ऊंटों, घोड़ों और मवेशियों के व्यापार के लिए अधिक प्रसिद्ध हो गया है। इस मेले में पशुओं के साथ-साथ लोक संगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।

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रविवार, 2 मार्च 2025

जिलाधीश नहीं, जिला कलेक्टर कहिये

आपको जानकारी होगी कि जिले के प्रशासनिक मुखिया को जिला कलेक्टर कहा जाता है। पहले इसका नाम जिलाधीश हुआ करता था। हालांकि जिनको इसकी जानकारी नहीं है, वे अब भी जिलाधीश शब्द का उपयोग किया करते हैं।

असल में जिलाधीश शब्द पारंपरिक भारतीय प्रशासनिक प्रणाली से जुड़ा हुआ है और इसका अर्थ होता है जिले का न्यायाधीश। यह ब्रिटिश शासन से पहले के समय में उपयोग किया जाता था, जब जिले का प्रमुख अधिकारी मुख्य रूप से न्यायिक कार्यों को देखता था। ब्रिटिश शासन के दौरान जिला प्रशासन का ढांचा बदला और जिले के सर्वोच्च अधिकारी को कलेक्टर कहा जाने लगा। कलेक्टर शब्द अंग्रेजी के कलेक्टर ऑफ रेवेन्यू से आया, जिसका अर्थ था राजस्व संग्रह करने वाला अधिकारी। ब्रिटिश काल में इस पद को न्यायिक से अधिक प्रशासनिक और राजस्व-संबंधी कार्यों का भार सौंपा गया। इसके बाद न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया और न्यायिक जिम्मेदारियां न्यायालयों को सौंप दी गईं।

आजादी के बाद भी ब्रिटिशकालीन प्रशासनिक व्यवस्था बनी रही। जिला कलेक्टर को विकास योजनाओं, कानून व्यवस्था, आपदा प्रबंधन और प्रशासनिक कार्यों कर जिम्मेदारी दी गई, जिससे यह केवल न्यायिक अधिकारी न रह कर एक बहुआयामी प्रशासनिक अधिकारी बन गया। इसलिए जिलाधीश शब्द की जगह जिला कलेक्टर या जिलाधिकारी शब्द का उपयोग किया जाता है। 

जिला कलेक्टर एक प्रशासनिक पद है, जो किसी जिले के सर्वोच्च अधिकारी को दर्शाता है। इसे जिलाधिकारी भी कहा जाता है। जिला कलेक्टर राज्य सरकार का प्रतिनिधि होता है और जिले में शासन से जुड़ी विभिन्न जिम्मेदारियों को संभालता है।

जिला कलेक्टर राजस्व प्रशासन, भूमि रिकॉर्ड, कर संग्रहण, भूमि अधिग्रहण आदि, पुलिस और प्रशासन के सहयोग से जिले में शांति बनाए रखना, लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनावों का आयोजन, बाढ़, सूखा, भूकंप जैसी आपदाओं में राहत और पुनर्वास कार्य, सरकारी योजनाओं और नीतियों का क्रियान्वयन और जिले के अन्य सरकारी विभागों का समन्वय और निगरानी आदि कार्य करता है।

जिलाधीश की जगह जिला कलेक्टर शब्द का इस्तेमाल इसलिए भी किया जाता है कि जिलाधीश शब्द से अधिनायकवाद की बू आती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जिला कलेक्टर शब्द को उपयुक्त माना गया है।

तेजवाणी गिरधर 7742067000