पुष्कर घाटी में सुरंग का पहला सपना तो लखावत ने देखा था
एक बार यह फिर से खुलासा हो गया है कि पुष्कर घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। ज्ञातव्य है कि राजस्थान सरकार के संसदीय सचिव और पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत ने इसकी कवायद शुरू की और इसके लिए बाकायदा बजट भी उपलब्ध करवा दिया था। उन्हें इसकी जल्दी भी थी कि यह काम पूरा हो जाए, मगर 15 लाख रुपये खर्च होने के बाद जांच में यह तथ्य सामने आया है कि घाटी का पत्थर बेहद कच्चा है, इसलिए इसको तुड़वा कर नीचे इतनी लंबी सुरंग नहीं बनाई जा सकती।
असल में घाटी में सुरंग बनाने का सपना सबसे पहले तत्कालीन नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत ने देखा था। राज्यसभा सदस्य रहते उन्होंने इसके लिए भरपूर कोशिश की। तब भी यही तथ्य सामने आया था कि घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। उसी के बाद अजमेर को पुष्कर से रेल मार्ग से जोडऩे का काम हुआ।
सवाल ये उठता है कि घाटी में सुरंग बनाना संभव न होने की रिपोर्ट प्रशासन के पास थी, फिर भी संसदीय सचिव सुरेश रावत के प्रस्ताव को कैसे मान लिया गया? ऐसा प्रतीत होता है कि या तो मौजूदा अधिकारियों को उस पहले वाली रिपोर्ट की जानकारी नहीं थी या फिर वे रावत के दबाव में जानबूझ कर चुप रहे। कदाचित इसके बारे में लखावत को भी जानकारी रही ही होगी, मगर वे क्यों कर चुप रहे, समझ में नहीं आता। मगर इसका परिणाम ये हुआ कि फिर से हुई कवायद के पंद्रह लाख रुपए बर्बाद हो गए। यह बेहद अफसोसनाक बात है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
एक बार यह फिर से खुलासा हो गया है कि पुष्कर घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। ज्ञातव्य है कि राजस्थान सरकार के संसदीय सचिव और पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत ने इसकी कवायद शुरू की और इसके लिए बाकायदा बजट भी उपलब्ध करवा दिया था। उन्हें इसकी जल्दी भी थी कि यह काम पूरा हो जाए, मगर 15 लाख रुपये खर्च होने के बाद जांच में यह तथ्य सामने आया है कि घाटी का पत्थर बेहद कच्चा है, इसलिए इसको तुड़वा कर नीचे इतनी लंबी सुरंग नहीं बनाई जा सकती।
असल में घाटी में सुरंग बनाने का सपना सबसे पहले तत्कालीन नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत ने देखा था। राज्यसभा सदस्य रहते उन्होंने इसके लिए भरपूर कोशिश की। तब भी यही तथ्य सामने आया था कि घाटी में सुरंग बनाना संभव नहीं है। उसी के बाद अजमेर को पुष्कर से रेल मार्ग से जोडऩे का काम हुआ।
सवाल ये उठता है कि घाटी में सुरंग बनाना संभव न होने की रिपोर्ट प्रशासन के पास थी, फिर भी संसदीय सचिव सुरेश रावत के प्रस्ताव को कैसे मान लिया गया? ऐसा प्रतीत होता है कि या तो मौजूदा अधिकारियों को उस पहले वाली रिपोर्ट की जानकारी नहीं थी या फिर वे रावत के दबाव में जानबूझ कर चुप रहे। कदाचित इसके बारे में लखावत को भी जानकारी रही ही होगी, मगर वे क्यों कर चुप रहे, समझ में नहीं आता। मगर इसका परिणाम ये हुआ कि फिर से हुई कवायद के पंद्रह लाख रुपए बर्बाद हो गए। यह बेहद अफसोसनाक बात है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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