गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

अब दरगाह जियारत को कौन साथ ले जाएगा, मेरे दोस्त?

मरहूम जनाब मनवर खान कायमखानी उर्फ मनजी

सहसा यकीन ही नहीं होता कि जनाब मनवर खान कायमखानी उर्फ मनजी इस फानी दुनिया को अलविदा कर गए। उससे भी ज्यादा अफसोस इस खबर पर कि ऐसे बिंदास इंसान ने इतना जल्द यूं रुखसती कैसे ले ली? उन जैसा जिंदादिल इंसान ऐसा कर कैसे सकता है? दोस्तो को हौसले की रोशनी देने वाला अपनी रोशनी इस तरह कैसे समेट सकता है? जिसकी शख्सियत पूरी तरह से खिले हुए फूल सी थी, वह यकायक कैसे मुरझा सकती है? हर वक्त शिद्दत से कुछ नया करने का जज्बा रखने वाले उस शख्स का तजकिरा करने में लफ्ज साथ देने को तैयार नहीं हैं। वे यारों के यार थे। वह उनकी फितरत थी। क्या मजाल कि उनकी दुकान से गुजरने वाला कोई दोस्त उनकी चाय पिये बिना चला जाए?

मुझे वे दिन याद आते हैं, जब रीजनल कॉलेज चौराहे पर आज जैसी चहल-कदमी नहीं थी, मगर जब भी कोई वीआईपी उधर से गुजरता तो उसके इस्तकबाल करने को उनकी टीम इस चौराहे को आबाद कर देती थी। यहीं से उनकी पहचान बनी। तब कोई पूछे कि मनवर खान कौन, तो यही जवाब आता कि वही रीजनल कॉलेज चौराहे वाले। वे युवक कांग्रेस के दमदार नेता थे। वे विधानसभा चुनाव 2023 में अजमेर संभाग के प्रोटोकॉल इंचार्ज थे। उन्होंने सन् 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में दनिलइम्दा इलाके में बतौर एआईसीसी ऑब्जर्वर की जिम्मेदारी निभाते हुए तकरीबन दो महीने तक दौरे किए। वे पूर्व विधायक डॉ श्रीगोपाल बाहेती के बहुत करीबी थे। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खासा जानकार थे। इसी की बदोलत अजमेर नगर निगम के मनोनीत पार्षद बने। बतौर पार्षद कोटडा इलाके के खूब खिदमत की। सभी मजहबों के प्रति गहरी अकीदत रखते थे। बहुत सियासी समझ रखते थे। कई बार गुफ्तगू में मजहबी भेदभाव पर अफसोस जताते थे, मुल्क की बहबूदी की बातें किया करते थे। कोटडा इलाके में हिंदुओं के सभी त्यौहारों में खुल कर हिस्सा लेते थे। मेन रोड से शिव मंदिर को हटा कर थोडा अंदर की तरफ शिफ्ट करवाने की जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई। 

आईटी की खूब जानकारी रखते थे। ईमित्र का बखूबी संचालन किया। सोशल मीडिया पर छाये रहते थे। क्या कोई इस बात पर यकीन करेगा कि हाल ही 5 अक्टूबर को उन्होंने फेसबुक पर कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान के फोटो साझा किए थे। फेसबुक पर उनके छह हजार सात सौ फॉलोअर रहे। 

उनका इंतकाल मेरे लिए बहुत बडा निजी नुकसान है। बहुत मोहब्बत करते थे, बहुत इज्जत बख्शा करते थे। वे मुझे हर जुम्मेरात अलसुबह पांच बजे दरगाह जियारत के लिए साथ लेकर जाते थे। 

अफसोस कि ऐसा इंसान, जिसमें अभी बहुत कुछ करने का जज्बा था, हौसला था, वह कैसे बीमारी से मुकाबला करते करते हौसला खो बैठा। उनकी हस्ती का तजकिरा करते हुए लगता है कि बहुत कुछ छूट रहा है। खुदा उन्हें अपनी जन्नत में आला मकाम अता फरमाए। मैं उन को अश्कबार खिराज-ए-अकीदत पेश करता हूं।

 

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