रविवार, 27 अक्तूबर 2024

अजमेर उत्तर में कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार थे जस्टिस इंद्रसेन इसरानी

राजनीति की समझ रखने वालों में से कम लोगों को ही जानकारी होगी कि राजस्थान विशेष पिछडा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रहे जस्टिस स्वर्गीय श्री इंद्रसेन इसरानी अजमेर उत्तर में कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार थे।

भूतपूर्व राजस्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के निधन के कारण हुए विधानसभा उप चुनाव में मैदान खाली देख कर उनका मन इस सीट के लिए ललचाया था। इसके लिए उन्होंने अपने करीबी दैनिक हिंदू के संपादक हरीश वरियानी के माध्यम से अजमेर की कुछ सिंधी कॉलोनियों में बैठकें कर जमीन तलाशी थी। उनका स्वागत भी हुआ। यहां तक कि उन्होंने तब स्वर्गीय नानकराम जगतराय से भी मुलाकात की थी। चूंकि तब तक नानकराम को यह कल्पना भी नहीं थी कि उन्हें टिकट मिलेगा, इस कारण उन्होंने अपना समर्थन देने का आश्वासन भी दिया था। 

उनसे एक गलती हो गई। अजमेर प्रवास के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके मुंह से कुछ ऐसा बयान निकल गया, जिसका अर्थ ये निकलता था कि सिंधी तो भाजपा के गुलाम हैं, उस पर बवाल हो गया। भाजपा से जुड़े सिंधी संगठनों ने उनके इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। इस पर माहौल बिगड़ता देख कर उन्होंने दावेदारी का मानस ही त्याग दिया। उस दिन के बाद कम से कम इस सिलसिले में तो वे अजमेर नहीं आए। ज्ञातव्य है कि उस उपचुनाव में नानकराम को टिकट मिला और वे जीते भी।

बाद में 2013 के चुनाव में एक बार फिर उनका नाम चर्चा में आया था। अजमेर में ब्लॉक व शहर स्तर पर तैयार पैनलों में उनका नाम नहीं था, फिर भी जयपुर व दिल्ली में उनके नाम की चर्चा थी। असल में राजस्थान में वरिष्ठतम सिंधी नेता माने जाते थे और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी थे। सिंधी समाज के बारे में कोई भी राजनीतिक निर्णय करने से पहले गहलोत उनसे चर्चा जरूर करते थे। इसी कारण उनका नाम सामने आया। इसके अतिरिक्त चूंकि पूर्व न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत का टिकट कटा हुआ माना जा रहा था, इस कारण अनेक सिंधी दावेदारों के बीच उनके नाम को गंभीरता से लिया गया। जैसे ही उनके नाम की चर्चा हुई तो विरोध भी षुरू हो गया।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव व अजमेर प्रभारी सलीम भाटी की ओर से की गई रायशुमारी के दौरान तो बाकायदा उनका नाम लेकर कांग्रेस नेता राजेन्द्र नरचल ने विरोध दर्ज करवा दिया और कहा कि जब अजमेर में पर्याप्त नेता हैं तो फिर क्यों बाहरी पर गौर किया जा रहा है। वे यहीं तक नहीं रुके। आगे बोले कि वे इसरानी का पुरजोर विरोध करेंगे, चाहे उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया जाए। इसरानी के नाम पर अन्य दावेदारों को कितनी चिंता थी, इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है। जब एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली गया और वहां भी जस्टिस इसरानी के नाम की चर्चा हुई तो उसने उनका विरोध कर दिया।

खैर, आखिर में एक बात और। वे राजस्थान में सिंधी समाज के कांग्रेसियों के पितामह थे। उनके निधन से हुई क्षति की पूर्ति आज तक नहीं हो पाई है।

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