कोई सात साल पहले एक बार नरेश बागानी ने मुझे बताया था कि वे अजमेर को कोई अनूठी सौगात देना चाहते हैं। वे इस दिशा में लगे रहे। अजमेर विकास प्राधिकरण व अजमेर नगर निगम के चक्कर लगाते थे, मगर कभी कानूनी पेचीदगियों और कभी आचार संहिता के कारण मामला लंबित बना रहा। जून, 2019 में वे मिले तो जानकारी दी कि अभी तक स्वीकृति नहीं मिली है। कुछ कीजिए। इस पर मैं और पत्रकार व महिला समाजसेवी डॉ राशिका महर्षि उन्हें अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष सुरेश कासलीवाल के पास ले गये और स्मार्ट सिटी होने जा रहे अजमेर में इस सैल्फी पॉइंट की जरूरत पर चर्चा की। कासलीवाल को प्रस्ताव पसंद आया और उन्होंने जिला कलेक्टर विश्वमोहन शर्मा से बात की। शर्मा को भी बात जंची और उन्होंने प्रस्ताव बना कर भेजने को कहा। बागानी ने अपनी संस्था सिंधी सोशल ग्रुप अजमेराइट्स के बैनर पर आवेदन किया, जिसे शर्मा ने जरूरी औपचाकिताओं के बाद मंजूरी दी, जिसमें प्राधिकरण के आयुक्त जैन का भी सहयोग रहा। औपचारिकताओं को पूरा करवाने में थोडी मषक्कत हुई। मैने भी कासलीवाल, बागानी व राशिका के साथ दो-तीन बार प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ मौके का दौरा किया। सभी के सुझावों का समाहित करते हुए सैल्फी पॉइंट की तैयारियां अंतिम चरण में थी कि बागानी की मुलाकात समाजसेवी हरीश गिदवानी से हुई और उन्होंने अपनी ओर से भी आर्थिक सहयोग का प्रस्ताव रखा। बागानी तुरंत राजी हो गए। दोनों ने दिन रात एक कर यह सौगात तैयार करवाई, जो अब आनासागर चौपाटी पर शोभा बढ़ा रही है।
बागानी ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने इस प्रकार का सैल्फी पॉइंट अमेरिका में देखा था। वहीं से उन्हें प्रेरणा मिली। उसके बाद दुबई, मुंबई व मद्रास में भी ऐसे सेल्फी पॉइंट देखे। अब अपना सपना पूरा होने पर वे बेहद खुश हैं। बेशक यह निर्जीव पत्थर से बना है, मगर लोकार्पण के दौरान उमड़ी भीड़ ने इसे सजीव बना दिया। अब यह चौपाटी पर आने वाले दर्शनार्थियों के आकर्षण का केन्द्र है।
बहरहाल, यह सीखने को मिला कि कोई काम कितना भी अच्छा क्यों न हो, कानूनी पेच व अफसरशाही के भंवर से उसे गुजरना ही होता है। और अगर ठीक अप्रोच न हो तो उसका पूरा होना कठिन होता है।
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