सोनिया और करिश्मा प्रदर्शनी की बदोलत लोकप्रिय मार्केटिंग गुरू पैंतालीस साल के स्वर्गीय श्री वासुदेव वाधवानी ने मात्र पच्चीस साल ही उम्र में ही दिखा दिया था कि उनमें मार्केटिंग का बेजोड़ गुर है। उस जमाने में न तो लोग मार्केटिंग के बारे में समझते थे और न ही मीडिया मार्केटिंग के संबंध में। शहर का सबसे बड़ा अखबार दैनिक नवज्योति हुआ करता था। दूसरे स्थान पर दैनिक न्याय व राजस्थान पत्रिका की गिनती होती थी। विज्ञापन के लिहाज से इन अखबारों में मात्र एक-एक व्यक्ति रखा हुआ होता था। वही शहरभर के चुनिंदा तीन-चार सौ विज्ञापनदाताओं से विशेष अवसरों पर विज्ञापन लिया करते थे। विज्ञापन की दुनिया क्या होती है और विज्ञापन के क्या लाभ होते हैं, इसके बारे में व्यवसाइयों को कोई खास जानकारी नहीं होती थी। जहां तक प्रॉडक्ट्स की मार्केटिंग का सवाल है, गिनती की कंपनियों के एसआर जरूर हुआ करते थे, मगर योजनाबद्ध तरीके से मार्केटिंग कैसे की जाती है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं थी। स्वर्गीय श्री वाधवानी पहले शख्स थे, जिन्होंने इंडियन मार्केटिंग की स्थापना की और शहर के व्यपारियों को पहली बार दिखाया कि अपने प्रोडक्ट का मार्केटिंग सर्वे कैसे किया जाता है और उसके क्या लाभ हैं? उन्होंने न केवल सर्वे की परंपरा को आरंभ किया अपितु हॉर्डिंग्स, फ्लैक्स व बैनर के जरिए विज्ञापन करने से भी साक्षात्कार कराया। कदाचित कुछ इक्का दुक्का और युवक भी इस क्षेत्र में आए होंगे, मगर स्वर्गीय वाधवानी उन सबमें अव्वल थे और जल्द ही उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार कर लिया। साथ ही मीडिया मार्केटिंग से भी शहर वासियों को रूबरू करवाया। दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका तो बहुत बाद में आए, उससे पहले ही उन्होंने मीडिया मार्केटिंग की शुरुआत कर दी। मुझे अच्छी तरह ख्याल है कि दैनिक भास्कर ने अजमेर आने पर सबसे पहले उनसे ही विज्ञापनों की मार्केटिंग करवाई। बाद में तो भास्कर व पत्रिका ने बाकायदा मार्केटिंग हैड व उनके नीचे स्टाफ रखना आरंभ किया और शहर में तरीके से मार्केटिंग होने लगी। मगर निजी क्षेत्र में मीडिया मार्केटिंग के वे सदैव बेताज बादशाह रहे।
सरे राह ग्रुप के विज्ञापन प्रभारी व अजमेर मल्टी मीडिया के प्रोपराइटर स्वर्गीय वाधवानी दैनिक भास्कर अजमेर से अधिकृत विज्ञापन एजेंसी संचालक के रूप में भी जुड़े हुए थे। उन्होंने अनेक युवक-युवतियों को मार्केटिंग सिखाई और रोजगार भी उपलब्ध करवाया।
आमजन में उनकी पहचान सोनिया व करिश्मा प्रदर्शनी से हुई, जिसकी परंपरा शुरू करने का श्रेय भी उनके ही खाते में जाता है। एक ही छत के नीचे जरूरत का हर सामान, वह भी सस्ते में कैसे मिलता है, इससे साक्षात्कार करवाने की उपलब्धि उनके ही खाते में जाती है। एक अर्थ में उन्होंने शहर के व्यवसाइयों को यह सिखाया कि प्रदर्शनी के जरिए अपना माल कैसे बेहतर ढंग से बेचा जा सकता है।
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