शनिवार, 21 सितंबर 2024

शख्सियत श्री वेद माथुर

अजमेर में पंजाब नेशनल बैंक के सीनियर मैनेजर के पद रहते हुए बड़े पैमाने पर हाउसिंग लोन दे कर नई कॉलोनियों के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले श्री वेद माथुर का जन्म 7 मार्च 1955 को स्वर्गीय श्री सी. पी. माथुर के घर हुआ। उन्होंने बी.एससी. व एलएलबी की डिग्रियां हासिल कीं और पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा भी किया। पत्रकारिता में उनकी रुचि शुरू से रही। वे दैनिक न्याय में व्यंग्य स्तंभ चकरम लिख कर भाषा शैली पर अपनी पकड़ का लोहा मनवा चुके हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर में भी कई लेख लिखे हैं। उन्होंने आईबीए, मुबई की फैलोशिप के तहत पूरे देश में घूम कर बैंकों में ग्राहक सेवा पर गहन शोध किया है। बैंकिंग सेवा में उल्लेखनीय उपलब्धियों के चलते वे उत्तरोत्तर प्रगति करते रहे और अहमदाबाद में बैंक के मंडल प्रमुख (उप महाप्रबंधक) के पद पर रहे। उन्होंने मेजर नेशनलाइज्ड डेस्क के जनरल मैनेजर पद को सुशेभित किया। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने बैकिंग व्यवस्था की पोल खोलती पुस्तक बैक ऑफ पोलमपुर लिखी, जो बहुत चर्चित हुई। लेखन का सिलसिला निरंतर जारी रखे हुए हैं। यूट्यूब चैनल्स पर होने वाले पैनल डिस्कशन्स में शामिल होते हैं। उनके सुपुत्र श्री आकाश माथुर सुपरिचित गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट हैं।


गुरुवार, 19 सितंबर 2024

और भी हैं अनोखे चरित्र

पिछले दिनों भूले बिसरे अजमेरी कॉलम के अंतर्गत चूरण वाले बाबा का जिक्र किया था, जो जय गुरूदेव का बारंबार उच्चारण करते हुए भांति भांति के चूरण बेचा करते थे। आजकल न जाने कहां है? इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कुछ मित्रों ने ऐसे अन्य केरेक्टर्स के बारे में भी जानकारी साझा की है।

चूरण वाले बाबा के बारे और जानकारी देते हुए एक सज्जन ने बताया कि हम उन बाबा को जय गुरुदेव बाबा के नाम से जानते थे। बाबा तीन पहिए की साइकिल पर चूर्ण की बारनियां लगा कर चूरन की गोलियां बेेचते थे। ज्यादातर मार्टिंडल ब्रिज व केसरगंज इलाके में ही नजर आते थे। उनका घर हमारे पड़ोस में नोनकरण का हत्था, नगरा पर अब भी स्थित है, जिसमें उनकी लड़की एवं उनका नवासा रहता है।

एक आदमी ऐसा भी था, जो चाक या कोयले से बिजली के खंबों या दीवारों पर बरसात शब्द लिखा करता था। अंग्रेजी में रेन लिखा करता था। ऐसा करने वाला वह कौन था, इसका कभी पता नहीं लगा। चूंकि बरसात शब्द में लाइन नहीं होती थी, इस कारण समझा गया कि कदाचित वह गुजराती रहा होगा। ज्ञातव्य है कि गुजराती भाषा में शब्दों के ऊपर लाइन नहीं होती है। हर जगह बरसात लिखने वाला कहां चला गया? इस शीर्षक से मेरा ब्लॉग प्रकाशित होते ही कई प्रतिक्रियाएं आई। मेरे मित्र श्री रमेश टिलवानी व श्री गोविंद मनवानी ने बताया कि उस शख्स का नाम श्री झामनदास है। वे अंग्रेजी में एमए हैं और पहले मीरा स्कूल में व बाद में उसका सारा स्टाफ आदर्श विद्यालय में शिफ्ट हो जाने पर वहां पर दसवीं-ग्यारहवीं के छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाया करते थे। वे बहुत इंटेलीजेंट थे, मगर बाद में किसी कारणवश मेंटली डिस्टर्ब हो गए। जहां तक बरसात शब्द की टाइपोग्राफी का सवाल है, वह गुजराती भाषा की तरह होने के पीछे कारण ये रहा होगा कि वे मूलतः अहमदाबाद से अजमेर आए थे। शुरू में वे लाखन कोटड़ी में रहा करते थे। अब वैशाली नगर में रहते हैं। अब भी यदा-कदा किताब हाथ में लिए हुए दिखाई दे जाते हैं।

इसी प्रकार एक आदमी कचहरी रोड पर दिखाई देता था, वह रिक्शा चलाया करता था, बहुत सारे कपड़े पहनता था और हर वक्त कुछ बुदबुदाता रहता था। इसी प्रकार कोयले की टाल पर काम करने वाला एक आदमी तीन पहिये की गाडी के साथ गंज से वैशाली नगर मार्ग पर नजर आता था, वह अपनी कमाई से ब्रेड खरीद कर कुत्तों को खिलाया करता था। 

पुराने प्राइवेट बस स्टैंड पर एक सिंधी बुजुर्ग गोली बिस्किट बेचा करता था और बसों के गन्तव्य के लिए रवाना होते वक्त खडा हो कर जोर जोर से पुकारा करता था कि बस अमुक स्थान के लिए रवाना होने वाली है। उसे बस वाले पांच दस रूपये दे दिया करते थे।

इसी प्रकार रेलवे स्टेशन के सामने फुटपाथ पर दो बुजुर्ग बहिनें बैठी रहती थीं। सालों तक उन्हें वहां देखा गया।

दरगाह इलाके में बडी बडी मूछों वाला हट्टा कट्टा एक आदमी दरबान की वेषभूशा में सजा धजा नजर आता था। वह किसी वीआईपी के आने पर जरूर दिखाई देता था।


रविवार, 15 सितंबर 2024

सांई बाबा मंदिर में हुआ था ऐतिहासिक विवाह

सांई बाबा मंदिर में तकरीबन दस साल पहले एक ऐसा ऐतिहासिक व अनूठा विवाह हुआ था, जिसकी स्मृति इतिहास में सुर्ख हर्फों में दर्ज हो गई। आपने एक फिल्मी गाना सुना होगा-मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सिर पर लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी। ये गीत इस बात का अहसास कराता है कि हिंदुस्तानी भले ही दुनिया की कैसी भी रंगीनी में रंग जाए, मगर उसका दिल हिंदुस्तानी ही होता है। दुनिया से कदम से कदम मिला कर चलने के लिए हिंदुस्तानी चाहे कहीं भी जा कर बस जाए, मगर अपनी माटी की खुशबू हरदम उसके दिल में महकती रहती है। कुछ ऐसा ही अहसास कराया सुरेश के. लाल ने।

तकरीबन दस साल पहले जब जीवन का अहम संस्कार कन्या दान करने का मौका आया तो उन्होंने इसके लिए अपनी प्यारी जन्मभूमि अजमेर को ही चुना और अपनी बेटी नमिता की शादी जापान के उद्योगपति मिशु से सांई बाबा मंदिर परिसर में ही की। इस भव्य व ऐतिहासिक समारोह के साक्षी बने जिले के कई राजनेता, प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी, कारोबारी सहित अजमेर के कई गणमान्य लोग, जिनका कहना है कि ऐसी भव्य, अनूठी और विलक्षण शादी अजमेर के इतिहास में न देखी, न सुनी। न खर्च के लिहाज से, न खूबसूरती के पहलु से और न ही थीम डिजाइन के एंगल से।

तकरीबन तीन सौ जापानियों की बारात को जयपुर से एयर कंडीशंड बसों में विवाह स्थल पर लाया गया। विशेष बात ये रही कि सभी बाराती राजस्थानी वेशभूषा में थे। कैसा विलक्षण सांस्कृतिक संयोग है, युवती सिंधी, युवक जापानी, बाराती राजस्थानी लुक में और विवाह स्थल मंदिर परिसर। इतना ही नहीं, इस भव्य विवाह ने पर्यावरण रक्षा का अनूठा संदेश भी दिया। साईं बाबा मंदिर से डेढ़ किलोमीटर पहले से सजावट की गई सजावट की थीम ग्रीनरी रखी गई थी। ऐसी सजावट शहर में पहले कभी नहीं हुई। सजावट में लगे आकर्षक झूमर जयपुर और दिल्ली से मंगाए गए थे। बारातियों के स्वागत के लिए चार हाथियों को लाया गया था। कहते हैं न कि शादी कितनी भी भव्य सजावट के साथ की गई हो, मगर उसमें शिरकत करने वालों को असल मजा तभी आता है, जबकि उन्हें स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है। खाने में देश के प्रत्येक राज्य का मीनू स्पेशल डिश के साथ शामिल किया गया था। अतिथियों की सहूलियत के लिए मीनू का बाकायदा नक्शा बनाया गया था, ताकि मेहमानों के खाने के व्यंजन ढूंढने में असुविधा न हो। सॉफ्ट ड्रिंक में ब्लू करंट, पीनी कोलाड़ा, रसभरी, कोकोनट, वाटर मेलन, ग्रीन मिंट, ट्रिपल स्क्वायर आदि को शुमार किया गया था। शेक में काजू, अंजीर, पिस्ता, इलाइची आदि थे तो, साथ ही जूस में मौसमी व पाइन एपल का इंतजाम था।

प्रसंगवश बता दें कि सुरेश के. लाल की आकांक्षा के अनुरूप इस पूरे इंतजाम को साकार रूप दिया सांई बाबा मंदिर के ट्रस्टी महेश तेजवानी और स्वामी समूह के सीएमडी कंवल प्रकाश किशनानी ने, जिसे देख कर अजमेर वासी तो दंग रहे ही, जापानी मेहमान भी अभिभूत हो गए।

यहां आपको बता दें कि सांई बाबा के अनन्य भक्त सुरेश के. लाल जाने-माने अप्रवासी भारतीय हैं, जिन्होंने अजमेर-ब्यावर मार्ग पर पृथ्वीराज स्मारक वाली सड़क पर एक किलोमीटर अंदर अजयनगर कॉलोनी में संगमरमर के पत्थर से साईं बाबा के मंदिर का निर्माण कराया है।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

दरगाह में मांसाहारी लंगर पकाया ही नहीं जाता

सोशल मीडिया पर एक खबर सफर कर रही है कि आगामी 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चोहत्तरवें जन्मदिन पर महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह शरीफ में स्थित बडी देग में चार हजार किलो का शाकाहारी लंगर बना कर तक्सीम किया जाएगा। इस खबर से ऐसा प्रतिबिंबित होता है कि दरगाह में मांसाहारी लंगर भी बनाया जाता है, लेकिन मोदी जी के जन्मदिन पर विशेष रूप से शाकाहारी लंगर बनाया जाएगा। इस आशय की प्रतिक्रियाएं वायरल हो रही हैं कि यह बहुत अच्छी बात है कि मोदी जी के सम्मान में शाकाहारी लंगर पकाया जाएगा। असल में दरगाह शरीफ की दो देगों में आरंभ से शाकाहारी लंगर ही पकाया जाता है। इसमें मीठे चावल के अतिरिक्त सूखे मेवे, देसी धी आदि शामिल किए जाते हैं। 

कदाचित ताजा खबर बनाने वाले को इस तथ्य की जानकारी न हो, वरना वह शाकाहारी लंगर शब्द का उपयोग न करता, इतना लिखना ही काफी था मोदी जी के जन्मदिन पर दरगाह में चार हजार किलो लंगर बनाया जाएगा। यह मामूली त्रुटि प्रतीत होती है, मगर उस चूक की वजह से कितनी बडी तथ्यात्मक भ्रांति उत्पन्न होती है।

इसी किस्म की त्रुटि एक बार पहले भी हो चुकी है, जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता गया। हुआ यूं कि जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत दौरे पर थे और उनका आगरा के बाद अजमेर आने का कार्यक्रम था तो एक खबर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। वो यह कि मुशर्रफ के आने पर उनके स्वागत में दरगाह स्थित जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। उन दिनों दोनों देशों के बीच संबंध भी कुछ गड़बड़ चल रहे थे, इस कारण इस खबर का अर्थ ये निकाला गया था कि मुशर्रफ के प्रति असम्मान के चलते ही जन्नती दरवाजा नहीं खोलने का निर्णय किया गया है। हालांकि तब उनका अजमेर दौरा रद्द हो गया था और वे आगरा से ही लौट गए थे। उनके अजमेर न आ पाने को इस अर्थ में लिया गया कि ख्वाजा साहब के यहां उनकी हाजिरी मंजूर नहीं थी। तभी तो कहते हैं कि वहीं अजमेर आते हैं, जिन्हें ख्वाजा बुलाते हैं।

असल में उनके प्रति असम्मान जैसा कुछ नहीं था। हुआ यूं कि मुशर्रफ के आगमन पर पत्रकार अंजुमन पदाधिकारियों से तैयारियों बाबत जानकारी हासिल कर रहे थे। एक पत्रकार ने, जिन्हें कि दरगाह की रसूमात के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी, उन्होंने यह सवाल दाग दिया कि क्या मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा खोला जाएगा। इस पर अंजुमन पदाधिकारियों ने कहा कि नहीं। नतीजा ये हुआ कि यह एक खबर बन गई और विशेष रूप से दिल्ली के अखबारों में प्रमुखता से छपी कि मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। दरअसल अंजुमन पदाधिकारियों ने सवाल का जवाब देते वक्त केवल नहीं शब्द का इस्तेमाल किया। वे अगर कहते कि किसी भी वीवीआईपी के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाता है तो यह वाकया नहीं होता। यहां ज्ञातव्य है कि यह साल में चार बार खोला जाता है, उर्स हजरत ख्वाजा गरीब नवाज पर यानि 29 जमादिस्सानी से छह रजब तक, हजरत गरीब नवाज के पीर-ओ-मुर्शद के उर्स की तारीख पर यानि छह शबाकुल मुकर्रम पर और ईद उल फितर यानि मीठी ईद व ईद उल जोहा यानी बकरा ईद के दिन।


गुरुवार, 12 सितंबर 2024

शैलेन्द्र अग्रवाल पहले भी मेरिट पर थे

हाल ही शैलेन्द्र अग्रवाल का नाम अजमेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष के लिए उभरा। अन्य दावेदारों की तुलना में वे अधिक उपयुक्त माने जा रहे हैं। विभिन्न दृष्टिकोण से। चाहे वरिष्ठता के नाते, चाहे अनुभवी होने की वजह से। चाहे अन्य दावेदारों की तुलना में अधिक सर्वग्राह्यता व सर्वसहमति के लिहाज से। लेकिन कम लोगों को ही पता होगा कि पिछली बार जब विजय जैन को अध्यक्ष बनाया गया, तब भी वे बेहतर विकल्प के रूप में उभरे थे। तब वणिक वर्ग के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाना तय किया गया था। तब दो ही नाम सामने आए। अग्रवाल व जैन का। अध्यक्ष पद का निर्वहन करने के लिए अपेक्षित संसाधन संपन्नता के लिहाज से जैन बेहतर समझे गए। ऐसे में जैन के नाम पर मुहर लग गई। बहरहाल, एक बार फिर अग्रवाल का नाम उभरा है। विशेष रूप से पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनाव और उसके बाद में अब तक उनकी भूमिका के चलते। बस फर्क ये है कि अब लॉबी बदल गई है। इसका अर्थ यह भी नहीं कि दूसरे दावेदार कमतर हैं। मंथन चल रहा है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही नियुक्ति होगी। देखते हैं किसके नाम पर मुहर लगती है।

रलावता तीसरी बार चुनाव लडना चाहते हैं

अजमेर शहर जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भले ही लगातार दो बार हार चुके हैं, लेकिन वे तीसरी बार भी चुनाव लडने का मानस रखते हैं। तीसरी बार टिकट मिलना कठिन प्रतीत होता है, मगर इसके लिए उनके पास तर्क है कि श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ को भी तो तीसरी बार टिकट दिया गया था। इसी प्रकार रामबाबू शुभम भी तीसरी बार टिकट लाने में कामयाब हो गए थे। तीसरी बार टिकट पाने के लिए उनके पास एक मजबूत आधार है ये कि वे दूसरी बार मात्र साढे चार हजार वोटों से ही हारे। इस हार का मतांतर ज्यादा नहीं है। जानकारी के अनुसार हारने के बाद भी जयपुर रोड पर स्थित उनका दफ्तर रोज खुलता है। फरियादी अब भी आते हैं, इस कारण वे नियमित रूप से दफ्तर में बैठते हैं। उनकी अनुपस्थिति में उनके पुत्र शक्ति सिंह लोगों से मुखातिब होते हैं। एक अर्थ में यह शक्ति सिंह का प्रशिक्षण है। अगर जरूरत हुई तो ऐन वक्त पर उन्हें भी आगे किया जा सकता है।


मधु सिंह फिर तलाश रही हैं राजनीतिक जमीन

किसी जमाने में शहर जिला महिला कांग्रेस अध्यक्ष के नाते अजमेर में सक्रिय रहीं श्रीमती मधु सिंह राजनीतिक पटल के नैपथ्य में चली गई हैं। सक्रियता के दौर वे बहुत चर्चित रहीं। मगर अब फिर पर्दे से बाहर आने की इच्छुक हैं। एक बार फिर राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से वे राजनीतिक कार्यक्रमों से दूर रही हैं, मगर सामाजिक सक्रियता सतत बनाए हुई हैं। कदाचित पारीवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए राजनीतिक गतिविधियों से दूर रही हों, मगर अब सभी कामों से फारिग हो चुकी है। ऐसे में उन्हें पुराने दिन याद आ रहे हैं। वे शहर अध्यक्ष के बाद देहात जिला कांग्रेस में उपाध्यक्ष भी रही हैं। उन्हें लगता है कि राजनीति में फिर से सक्रिय हुआ जा सकता है। इस सिलसिले उन्होंने अपने करीबियों से चर्चा आरंभ कर दी है। ज्ञातव्य है कि पूर्व में वे अजमेर पश्चिम के अतिरिक्त पुष्कर से प्रबल दावेदार हुआ करती थीं। तब उनका भी जलजला हुआ करता था। उन्हें लगता है कि जिस प्रकार कांग्रेस हाईकमान महिलाओं को प्राथमिकता देना चाहता है, संभव है उनकी लॉटरी खुल जाए। रहा सवाल जयपुर दिल्ली तक संपर्क सूत्रों तो वे फिर से पुनर्जीवित किए जा सकते हैं।


शख्सियत: स्वर्गीय श्री कमलेन्द्र कुमार झा

कला की सेवा और उसका संरक्षण करने के क्षेत्र में कवि एवं गीतकार स्वर्गीय श्री कमलेन्द्र कुमार झा अजमेर में एक स्थापित शख्सियत थे। हालांकि पेशे से वे इंजीनियर रहे और सार्वजनिक निर्माण विभाग में अतिरिक्त मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत्त हुए, लेकिन कला के प्रति उनकी विशेष रुचि रही। वे स्वयं कवि थे और कला के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बना चुकी संस्था कला-अंकुर की स्थापना की और उसके संरक्षक रहे। कला-अंकुर संस्था के माध्यम से उन्होंने अनेक स्तरीय सांस्कृति कार्यक्रमों आयोजन करवाया। संस्था के माध्यम से उन्होंने संगीत के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को तराशने का उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने कला-अंकुर अकादमी की स्थापना कर संगीत, गायन, वादन, नृत्य, नाटक व चित्रकला के क्षेत्र में नई पीढ़ी को दिशा देने का बीड़ा उठाया। 1 जनवरी 1943 को श्री पूरन चंद्र झा के घर जन्मे कमलेन्द्र कुमार झा अजमेर इंजीनियरिंग इस्टीट्यूट के सचिव और अध्यक्ष रहे। अजमेर सिटीजन कौंसिल की तकनीकी शाखा के अध्यक्ष थे। अजमेर में अधिशाषी अभियंता व अधीक्षण अभियंता के पदों पर रहते हुए उन्होंने जवाहर रंगमंच के निर्माण, नगर सौंदर्यीरकरण और दरगाह विकास में महत्वपूर्ण तकनीकी योगदान दिया है।


बुधवार, 11 सितंबर 2024

डॉ प्रभा ठाकुर का जागा अजमेर प्रेम

यह धारणा ठीक प्रतीत होती है कि अजमेर अब पूर्व सांसद डॉ प्रभा ठाकुर की कर्मस्थली नहीं रही, मगर उनका अजमेर प्रेम अब भी जिंदा है। हाल की जल त्रासदी ने उनके मन को भी द्रवित कर दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री व जिला कलेक्टर को पत्र लिख कर राहत के सभी उपाय करने का आग्रह किया है। यह सुखद है कि उन्हें अजमेर की चिंता है। वे चुनाव सहित कई महत्वपूर्ण मौकों उपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करवाती हैं। लंबे समय तक उनकी अनुपस्थिति में कांग्रेस नेता ललित जडवाल उनका प्रतिनिधित्व करते रहे। अभी यह भूमिका ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष शैलेन्द्र अग्रवाल ने निभाई है। वरना अजमेर का अनुभव है कि कई जनप्रतिनिधि जीतने-हारने के बाद पलट कर नहीं लौटे। ज्ञातव्य है कि अजेय से प्रतीत होने वाले पांच बार के लोकसभा सदस्य स्वर्गीय रासासिंह रावत को एक बार हराने का श्रेय उनके खाते में दर्ज है। वे महिला कांग्रेस की अखिल भारतीय अध्यक्ष रही हैं। जानी मानी कवयित्री हैं।


धर्मेश जैन हैं बहुत मानसिक पीडा में

अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन इन दिनों बहुत मानसिक पीडा में हैं। उन्हें दुख है कि जब आनासागर की दुर्दशा की इबारत लिखी जा रही थी, वे मुट्ठी तान कर लगातार आवाज बुलंद कर रहे थे, मगर न तो शासन-प्रशासन ने सुनवाई की और न ही पार्टी के नेताओं ने उनका साथ दिया। वे बार बार चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि अधिकारी मनमानी कर रहे हैं, वे तो चले जाएंगे, मगर उसका खामियाजा अजमेर की जनता को भोगना पडेगा। हुआ भी वही। अगर स्मार्ट सिटी की सीबीआई जांच की जाए तो यह साफ हो जाएगा कि अधिकारियों की मनमानी के चलते ही मौजूदा जल त्रासदी मुंह बाये खडी है। उनका दावा है कि जल त्रासदी से निपटने के लिए तत्काल उपाय के साथ दीर्घकालीन योजना का ब्लू प्रिंट उनके दिमाग में है। मगर उसको धरातल पर तभी उतारा जा सकेगा, जबकि उस पर गौर किया जाएगा। इस सिलसिले में वे जिला कलेक्टर से मुलाकात करेंगे। 


फिर वही घोडे और वही मैदान

अजमेर के पानी की जो तासीर है, उसे देखते हुए नगर की नब्ज पर हाथ रख कर धडकन पढने वालों को आप यह कहते सुन रहे होंगे कि थोडे दिन की बात है, बरसात जब थम जाएगी, सडकों से पानी हट जाएगा, फिर आएगा जगह जगह फैली गंदगी व मलबे को हटाने का दौर, उसके बाद आरंभ होगा पेचवर्क। हमारी स्मृति इतनी कमजोर है कि भयानक जल त्रासदी को भूल जाएंगे। फिर वही घोडे और वही मैदान। स्थाई समाधान की दिशा में कुछ होगा या पता नहीं, कुछ पता नहीं, मगर बाढ से बिलकुल करीब से गुजरने वाले क्षण ठीक वैसे ही भूल जाएंगे, जैसे 1975 की बाढ और बिपरजॉय का जलजला। एक अर्थ में यह ठीक है ठोकर खा कर जमीन पर गिर पडी जिंदगी फिर दौडने लगेगी। मगर ठोकर खा कर भी ठाकर नहीं बने तो ठोकर भी लानत देगी कि अजीब लोगों का बसेरा है इस अजमेर शहर में, सब कुछ सहन करते हैं, मगर चूं तक नहीं करते। इस बार शासन-प्रशासन के साथ अपनी लापरवाही की वजह से उत्पन्न हुई विकराल समस्या को लेकर जितना हो-हल्ला हो रहा है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दफा हम अपनी कुंडली पर ठोकर मार दिखाएंगे।


प्रिंट से आगे निकल गया सोशल मीडिया

सोशल मीडिया जितना तेज रफ्तार है, प्रिंट को पिछडना ही था। आप देखिए, भाजपा नेता के पुत्र की कारसतानी भी सोशल मीडिया ने उजागर की, जिसके सहारे प्रिंट में खबर छपी और सोशल मीडिया ने ही घटना के पीछे की कहानी उजागर की। प्रिंट ने खबर बनाते हुए तह तक जाने की जहमत नहीं उठाई। यह पता नहीं लगाया कि मौके पर आखिर हुआ क्या था? राजकाज में बाधा के पीछे का सच जानने की कोशिश क्यों नहीं की? सच का दूसरे दिन सामने आना तनिक संशय उत्पन्न करता है। अगर यह सही है कि पुलिस कर्मी ने असंवेदनशीलता दिखाई तो उसके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए।


मंगलवार, 10 सितंबर 2024

परदेसियों न अंखियां मिलाना, परदेसियों को है इक दिन जाना

रोजनामचा कॉलम में प्रकाशित टिप्पणी- क्या कुछ दिन ठहर नहीं सकती थीं जिला कलेक्टर डॉ भारती दीक्षित? पर एक नेता ने बहुत रोचक मगर अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया की है। उन्होंने परदेसियों से न अंखियां मिलाना, परदेसियों को है इक दिन जाना गीत की पंक्तियां गुनगुनाते हुए कहा कि आपने उनके जाने को दिल पर क्यों ले लिया? यह अपेक्षा ही क्यों कर रहे कि वे कुछ दिन यहां और ठहरतीं? बेशक तबादला आदेश आने के तुरंत बाद रिलीव होना चौंकाता है। नए जिला कलेक्टर के आने तक का इंतजार नहीं किया और अतिरिक्त जिला कलेक्टर गजेन्द्र सिंह को चार्ज सौंप गईं। इतनी जल्दबाजी क्यों हुई, पता नहीं, मगर सच तो यह है कि तबादला होने के बाद यहां ठहरने का तो सवाल ही नहीं उठता था। नागौर जिले के तत्कालीन जिला कलेक्टर डॉ समित शर्मा बहुत लोकप्रिय थे। उनका तबादला हुआ तो वहां की जनता आंदोलित हो गई। तबादला रद्द करवाने के लिए एक दिन नागौर बंद भी हुआ था। मगर वे ठहरे थोडे ही। कोई विरला ही अधिकारी होता है, जो ड्यूटी के अतिरिक्त इतना डट कर काम करता है, मानो अपने शहर के लिए कर रहा हो। जैसे अजमेर की तत्कालीन जिला कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता। मगर अब तक का अनुभव तो यही बताता है कि असल में अधिकारी मात्र ड्यूटी निभाते हैं। केवल साल दो साल के लिए आते हैं। उनका कभी किसी शहर से कोई नेह नहीं होता। ड्यूटी पूरी होते ही चले जाते हैं। फिर पलट कर नहीं देखते। जब वे कर्तव्य निर्वहन के साथ थोडा सोशल होते हैं, सामाजिक कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं तो हमें लगता है कि उनका हमसे स्नेह है, जब कि वह उनका मनोविनोद होता है। यकायक मुझे ख्याल आया कि अफसर ही क्या, यहां नेता भी ऐसे आए हैं, जो एक बार जीतने या हारने के बाद पलट कर नहीं लौटे। इस सिलसिले में आचार्य भगवान देव, विष्णु मोदी, जगदीप धनखड, हाजी हबीबुर रहमान के नाम लिए जा सकते हैं।


सोमवार, 9 सितंबर 2024

अजमेर के ब्लॉगर्स दे रहे हैं शासन-प्रशासन को दिशा

अजमेर का मीडिया आरंभ से तेज तर्रार रहा है। पूरा प्रदेश अजमेर के पत्रकारों की जागरूकता का लोहा मानता है। खोज खबर से लेकर सामाजिक सरोकार के साथ शासन-प्रशासन को दिशा देने का धर्म सतत निभाता रहता है। अब पत्रकारों की एक पीढी सेवानिवृत्त हो गई है। नई पीढी ने प्रिंट मीडिया की जिम्मेदारी ले ली है। यह सुखद है कि अनुभवी सेवानिवृत्त पत्रकारों की कलम की स्याही अब भी नम है। रिटायरमेंट के बार घर जा कर नहीं बैठे हैं। सभी ने सोशल मीडिया के जगत में प्रवेश कर लिया है, ब्लॉग लेखन आरंभ कर दिया है और अपने धर्म की पालना कर रहे हैं। पहले से बेहतर। अखबारों में तो एक मर्यादा में रह कर ही लिखा करते थे, मगर अब स्वछंद हैं। उनकी लेखनी में और अधिक निखार आ गया है। भाषा शैली और अधिक प्रभावी हो गई है। इसका सबसे बडा फायदा यह हो रहा है कि अब वह भी उजागर हो रहा है, जो अखबारों में रहते हुए अनछुआ, अप्रकाशित रह जाता था। तुलनात्मक रूप से देखेंगे तो पाएंगे कि शासन-प्रशासन का प्रिंट की तुलना में बेहतर मार्गदर्शन कर पा रहे हैं। स्थिति ये है कि पाठक रोज नए ब्लॉग्स का इंतजार करते हैं। इनके जरिए घटनाओं की त्वरित जानकारी तो मिलती ही है, खबरों के पीछे की खबरें भी संज्ञान में आती हैं। नए दौर में यूट्यूबर्स भी सूचना तंत्र का त्वरित इस्तेमाल कर रहे हैं। जो खबर अखबारों में दूसरे दिन पढने को मिलती थी, वह अब वीडियो की शक्ल में आज ही अभी देखने को मिल रही है। इस नए युग को प्रणाम।

सडक के बीचोंबीच गायों के झुंड क्यों?

इन दिनों पूरे नगर में हर चौराहे व मुख्य मार्गों पर बीचोंबीच गायों के झुंड दिखाई दे रहे हैं। जाहिर है वे यातायात में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। छोटी मोटी दुर्धटनाएं रोज हो रही हैं। लोग परेशान हैं। मगर नगर निगम बेबस सा प्रतीत होता है। मुझे कौतुहल हुआ कि गायें आखिर चौराहों पर व मार्गों के बीचोंबीच ही क्यों खडी होती हैं। मैेने ग्रामीण परिवेश से जुडे सुपरिचित एडवोकेट राकेश धाबाई से इसका सबब पूछा। उन्होंने बताया कि इस मौसम में गायें मक्खियों से बहुत परेशान हैं। मक्खियों को पूंछ से उडाते उडाते तंग हो जाती हैं। इस कारण कुछ आक्रामक भी हो गई हैं। बीच सडक पर इस कारण खडी होती हैं, क्यों कि वहां से वाहनों की आवाजाही से हवा के साथ मक्खियां उड जाती हैं। इससे गायों को राहत मिलती है। ऐसी राहत सडक के किनारे खडे होने पर नहीं मिल सकती।

रविवार, 8 सितंबर 2024

क्या कुछ दिन ठहर नहीं सकती थीं जिला कलेक्टर डॉ भारती दीक्षित?

इधर अजमेर जिला कलेक्टर डॉ भारती दीक्षित बारिश के जलजले से जूझ रही थीं, लगातार मॉनिटरिंग कर रही थीं। उधर उनके तबादले के आदेश आ गए। वे चंद घंटे में ही रिलीव हो गईं। पता नहीं खुद की मर्जी से, या उच्चाधिकारियों के दबाव में। जो कुछ भी हो, ऐन संकट के वक्त इस प्रकार रिलीव होना अनुचित व कष्टप्रद है। बेशक नए कलेक्टर लोकबंधु ने ज्वाइनिंग के साथ मौकों का निरीक्षण किया, अधिकारियों की बैठक ली, मगर समझा जा सकता है कि उन्हें हालात को ठीक से समझने व उनसे निपटने में वक्त लगेगा। जब हमारे पास अनुभवी और रोज मॉनिटरिंग करने वाले अधिकारी थे, तो क्यों कर उन्हें इतनी जल्दबाजी में रिलीव कर दिया गया? कैसी विडंबना है? अगर वे हालात सामान्य होने तक कुछ दिन यहीं रह जातीं तो क्या पहाड टूटने वाला था? मगर किसी भी स्तर पर इसका ख्याल नहीं रखा गया। अफसोसनाक।


प्रिंट व सोशल मीडिया साधुवाद का पात्र

भारी बरसात के बाद फायसागर के छलकने पर जब अजमेर में जलजला आ गया तो जान की परवाह किए बिना प्रिंट व सोशल मीडिया कर्मी चहुंओर पसर गए। चप्पे चप्पे के हालात का लाइव कवरेज लोगों को दिखाया। पूरा शहर पल पल अपडेट हो रहा था। प्रशासन के पास खुद का ऐसा कोई नेटवर्क नहीं था कि गली-गली मोहल्ले-माहल्ले की स्थिति का आकलन किया जा सके, मगर सोशल मीडिया ने ग्राउंड रिपोर्ट कर हालात से साक्षात्कार कराया। प्रशासन के लिए राहत कार्य करना आसान हो गया। यूट्यूबर्स ही नहीं, कई बुद्धिजीवी भी इस काम में जुट गए। इतना ही नहीं, रिपोर्टिंग की ड्यूटी करते हुए दैनिक भास्कर के पत्रकार मनीष सिंह चौहान व अतुल सिंह और फोटो जर्नलिस्ट मुकेश परिहार व रमेश डाबी ने स्कूली बच्चों की सहायता में जुट गए। वाकई ये सभी साधुवाद के पात्र हैं।


शनिवार, 7 सितंबर 2024

स्मार्ट सिटी के कार्यों की सीबीआई से जांच की जाए-धर्मेश जैन

अजमेर में बाढ़ के जो हालात उत्पन्न हुए हैं, उस पर गहरा रोष व्यक्त करते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता और नगर सुधार न्यास के पूर्व धर्मेश जैन ने मांग की है कि स्मार्ट सिटी के कार्यों की सीबीआई जांच कराई जाए। उन्होंने अफसोस जाहिर किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना पर पूरी तरह से पानी फिर गया है। उन्होंने कहा कि आनासागर में अवैध निर्माण होते रहे, मगर जिम्मेदार राजनेताओं व अधिकारियों की लापरवाही के कारण आज यह स्थिति उत्पन्न हुई है। इसके अतिरिक्त भूमाफियाओं को लाभ पहुंचाने के लिए पाथ वे बनाने का निर्णय किया गया और उसके लिए लाखों टन मिट्टी से आनासागर के किनारों को पाट दिया गया। परिणामस्वरूप आनासागर की भराव क्षमता कम हो गई। जैसे ही तेज बारिश आई, आनासागर छलक गया। और आज करीब पचास कॉलोनियों में पानी भर गया है। जनजीवन ठप हो गया है। यह सब राजनेताओं व अधिकारियों के गठजोड के चलते हुआ है। अजमेर स्मार्ट सिटी की बजाय नर्क सिटी बन गया है।

जैन ने कहा कि आनासागर के भराव क्षेत्र में जो सेवन वंडर बनाया गया है, उसे तोड़ने के लिए एनजीटी ने आदेश दे रखा है, लेकिन नगर निगम और जिला प्रशासन इन आदेशों की पालना नहीं कर रहा है। ज्ञातव्य है कि जैन आनासागर की दुर्गति को लेकर लगातार आवाज बुलंद करते रहे हैं, लेकिन प्रशासन ने उस पर कभी गौर नहीं किया। उलटे प्रशासन ने उन्हें परेशान करने तक की कोशिश की, ताकि उनका मुंह बंद किया जा सके। बावजूद इसके जैन जनहित के मुद्दे उठाते रहे, लेकिन पार्टी नेताओं का अपेक्षित सहयोग न मिलने व प्रशासन की हठधर्मिता के चलते आज अजमेर नर्क भोगने को मजबूर है।

घटना से पहले छप गई खबर

क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे कि किसी घटना से पहले खबर छप सकती है। यानि घटना बाद में हो और खबर पहले ही छप जाए। ऐसा असंभव है। लेकिन एक बार ऐसा हुआ। हुआ यूं कि भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री मोहन लाल सुखाडिया की भीलवाडा में सभा होनी थी। कार्यक्रम रात का था। उसका कवरेज उसी रात को करना कठिन था। तब संचार माध्यम आज जितने तेज नहीं थे। समाचार पत्र प्रबंधन ने राजस्थान के जाने माने वरिश्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री सी एल माथुर को जिम्मेदारी सौंपी। प्रबंधन के दबाव में उन्होंने कह दिया कि कोई दिक्कत नहीं है। मुझे पता है कि वे सभा में क्या बोलेंगे। उन्होंने खबर बना दी। छप गई। उधर हुआ यूं कि मुख्यमंत्री का दौरा अचानक स्थगित हो गया। बडी भद पिटी। दिलचस्प बात ये रही कि अगले दिन जब मुख्यमंत्री की सभा हुई तो उन्होंने वही सब कुछ बोला, जो कि अखबार में पहले से छप चुका था। असल में स्वर्गीय श्री माथुर स्वर्गीय श्री सुखाडिय़ा के प्रेस अटैची और राज्य मंत्रीमंडल के संपर्क अधिकारी रहे थे। इस कारण उन्हें अंदाजा था कि वे सभा में क्या बोल सकते हैं। है न दिलचस्प वाकया। 


शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

इधर उधर की

 क्यों सिंधी सिंधी करते हैं?

हाल ही महावीर सर्किल पर अतिक्रमण हटाए गए। इस पर एक प्रतिक्रिया खूब वायरल है। वो यह कि ब्राह्मण समाज ब्राह्मण के साथ, लेकिन जूस वाले सिंधी के साथ सिंधी समाज अभी तक सामने नहीं आये, फिर क्यों सिंधी सिंधी करते हैं आप, बंद करो ये सिंधी होने का नाटक, दुख में सिंधी का साथ नहीं देते और सिन्धुत्व की बात करते हैं सब।


क्योंकि हम शिक्षक हैं

बरसात व बाढ की आषंका को देखते हुए स्कूलों में दो दिन छुट्टी घोशित की गई, मगर अध्यापकों व स्टाफ को स्कूल जाना होगा। उनकी छुट्टी नहीं है। इस पर अध्यापिका व अजयमेरू प्रेस क्लब की पूर्व महासचिव सुश्री सुमन शर्मा ने अध्यापकों के दर्द को बयां करते हुए एक बहुत मार्मिक पोस्ट साझा की है। आप भी देखिएः- 


क्योंकि हम शिक्षक हैं

हम हर जोखिम उठा सकते हैं, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

अधिकारों की बात हम नहीं कर सकते, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

कर्तव्य सभी पूरे करने होंगे, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

हम समाज के प्रति कृतसंकल्प हैं, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

हमारा वजूद रहे ना रहे, हमें औरों को बचाना होगा, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

आपदा की हकीकत को समझना होगा, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

हमारा घर परिवार बच्चे कहां, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

हम फौलाद के बने हैं, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

हमें सर्दी नहीं लगती क्योंकि हम शिक्षक हैं।

हमारे घरों में पानी नहीं भरता क्योंकि हम शिक्षक हैं।

सैलाब भी हमें क्या डुबोएगा, हम तो शिक्षक हैं।

हमें चुप रहना है, क्योंकि हम शिक्षक हैं।

हमारी इतनी ही अहमियत है कि हम मात्र शिक्षक हैं।

जिला-प्रशासन भी वाकिफ है कि हम मात्र शिक्षक हैं।

हमारी सुरक्षा जरूरी नहीं, क्योंकि हम मात्र शिक्षक हैं।


आपदा को अवसर बना कर बेवजह कटाक्ष

बरसात की आपदा को लेकर एक ओर जहां कुछ लोग विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर तंज कस रहे हैं, वहीं चर्चित भाजपा कार्यकर्ता पुश्पेन्द्र सिंह ने देवनानी की तरफदारी करते हुए एक पोस्ट साझा की है। प्रस्तुत है उसका संक्षिप्त रूपः-

आपदा को अवसर बनाकर राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष व अजमेर उत्तर के विधायक वासुदेव देवनानी पर बेवजह कटाक्ष की राजनीति सिर्फ ईष्या, द्वेष व अहंकार का अभिमान मात्र है। जनता को भाजपा के प्रति गुमराह करने की एक स्क्रिप्ट बनाई गई है। और यह सब कब हो रहा है, जब अजमेर में विकास को गति मिलने वाली है। मौके को भुनाने की कोशिश जलकुंभी को लेकर भी की गई थी। मौके को भुनाने के लिए राजनीति करने के लिए कुछ लोग निकल चले भाजपा शासन-प्रशासन पर कलंक लगाने के लिए। पर सारे मंसूबों पर पानी फेरते हुए देवनानी ने शासन और प्रशासन के साथ मिल कर  आनासागर पर आई विपदा पर बड़ी सूझबूझ और निष्ठा के साथ विजय हासिल कर आनासागर के प्राण बचाए।

एक बात पूछना चाहता हूं आपने चिंता की आड़ लेकर रोष प्रदर्शन तो कर दिया पर क्या समस्या का समाधान हो जाने पर एक धन्यवाद तक नहीं दिया।

अध्यापकों को छुट्टी न देना उचित या अनुचित?

अत्यधिक बरसात व बाढ की आशंका के मद्देनजर 7 व 8 सितंबर को सभी सरकारी व गैर सरकारी स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है। यह स्कूलों के अध्यापकों व कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा। इसको लेकर अध्यापकों में नाराजगी है कि सरकार को बच्चों की सुरक्षा की तो चिंता है, मगर अध्यापकों की नहीं। उनकी बात तर्कपूर्ण लगती है, मगर दूसरी ओर अधिकारी वर्ग से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि स्कूलों में छुट्टी बच्चों की सुरक्षा के लिए ज्यादा जरूरी है। अध्यापकों का छुट्टी की अपेक्षा करना उचित नहीं है, क्योंकि अन्य विभागों के कर्मचारियों को भी छुट्टी नहीं दी गई है। आपदा के समय में सभी कर्मचारियों को मुस्तैद रखना जरूरी है। किसी संकट के वक्त उन्हें आपदा प्रबंधन में लगाया जा सकता है। इस आदेश में शनिवार 7 सितंबर की छुट्टी करना तो ठीक है, मगर जब रविवार 8 सितंबर की छुट्टी है ही, तो उस दिन छुट्टी का आदेश अटपटा प्रतीत होता है। आदेश में एक दिलचस्प तथ्य नजर आता है। वो यह कि अगर कोई संस्था प्रधान छुट्टी के दिन संस्था का संचालन करता पाया गया तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। इससे ऐसा परिलक्षित होता है कि इस प्रकार की व्यवस्था की अवहेलना होती रही है, इसी कारण खास तौर पर चेतावनी जारी की गई है। यह सही भी है। अब तक ऐसा अनुभव रहा है कि अनेक स्कूलें इस प्रकार की व्यवस्था का उल्लंधन करती रही हैं।



गुरुवार, 5 सितंबर 2024

अजमेर आदी है बदइंतजामियों का

अजमेर उत्तर पानी को तरस रहा है तो अजमेर दक्षिण के लिए पानी त्रास बना हुआ है। सभी सडकों पर खड्डों के जख्म हैं। चौराहों और बीच मार्गों पर गायों का साम्राज्य है। अतिक्रमणों की भरमार है। वाहन को पार्क करने के लिए भटकना पडता है। बदइंतजामियों की लंबी फेहरिष्त है। क्या क्या गिनाएं? मगर, मगर इसे सहनषीलता की पाराकाश्ठा ही कहा जाएगा कि आम आदमी आपस में सियापा कर षांत हो जाता है। इस पर किसी ने कहा है कि अजीब लोगों का बसेरा है, इस अजमेर षहर में, सब कुछ सहन करते हैं, चूं तक नहीं करते। इसी मिजाज की एक उक्ति फेसबुक पर नजर आई। वरिश्ठ पत्रकार श्री ओम माथुर की पोस्ट पर एक सज्जन श्री मदन वैश्णव षकुंत का दर्द प्रतिक्रियास्वरूप इन षब्दों में उभर कर आयाः- रुसवा न होंगे हरगिज हम हर तरह की बदइंतजामी से, सदियों बदइंतजामियों का आदी रहा है हर शख्स यहां।

शख्सियत श्रीकिशन सोनगरा

जिले के प्रमुख कस्बे किशनगढ़ से राजनीति की शुुरुआत करने वाले अनुसूचित जाति के प्रमुख नेता श्रीकिशन सोनगरा का जन्म 5 सितंबर 1942 को श्री जीवनराम सोनगरा के घर हुआ। उन्होंने हायर सेकंडरी तक शिक्षा ग्रहण की और उसके बाद समाजसेवा में जुट गए। सन् 1989 में पहली बार अजमेर पूर्व के विधायक बने और दूसरी बार 1993 में चुने जाने पर राज्य सरकार में राज्य मंत्री रहे। वे सन् 1988 व 89 में दो बार प्रदेश भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं। संगठन में भी उनकी अहम भूमिका रही है और सन् 1999 व 2000 में प्रदेश भाजपा मंत्री, 2000 व 2001 में प्रदेश भाजपा चुनाव प्रभारी, 2001-02, 2005-06 व 2006 से 2009 तक प्रदेश भाजपा महामंत्री रहे हैं। वे अनुसूचित जाति व गरीबों की कच्ची बस्तियों के उत्थान में रुचि रखते हैं। मधुर व्यवहार व सहज सुलभता के कारण लोकप्रिय हैं। नगर निगम चुनाव में जब मेयर पद के लिए सीधे चुनाव हुए व यह पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुआ तो उनको प्रबल दावेदार माना गया, मगर ऐन वक्त पर डॉ. प्रियशील हाड़ा को प्रत्याशी बनाया गया। उनके पुत्र श्री विकास सोनगरा भी राजनीति में सक्रिय हैं और अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के दावेदार माने जाते हैं।


मंगलवार, 3 सितंबर 2024

आदेश जारी हुए नहीं, खबर छप गई

अखबारी जगत में कई बार रोचक घटनाएं होती हैं। एक बार वरिष्ठ पत्रकार रसद विभाग की एक खबर लाए। खबर सूचनात्मक थी, छप गई। मगर विभाग की ओर से खबर का खंडन कर दिया गया। तहकीकात की तो, पता लगा कि जिला रसद विभाग में एक आदेश जारी होना था। टाइप हो गया और बाबू ने जिला रसद अधिकारी रेणु जयपाल की अनुपस्थिति में उनके चैंबर में रख दिया, हस्ताक्षर करने को। वरिष्ठ पत्रकार चैंबर में अधिकारी का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने वह आदेश देख लिया और खबर बना दी। उधर संयोग से रेणु जयपाल फील्ड से नहीं लौटीं। आदेश पर हस्ताक्षर नहीं हो पाए। दूसरे दिन जैसे ही उन्होंने खबर देखी, उन्होंने ऐतराज किया। हालांकि एक ओर वरिष्ठ पत्रकार ने मुस्तैदी दिखाते हुए प्रतिस्पर्द्धा में खबर बनाई। जब आदेश टाइप हो गए तो जारी भी होने ही थे। इस विश्वास पर उन्होंने उत्साह में कर्तव्य निर्वहन किया। मगर चूक हो गई। खबर का एक कायदा है कि उसमें जरा भी गुंजाइश नहीं छोडी जाती। तनिक भी संदेह हो तो खबर जारी नहीं की जाती।

शख्सियत: सैयद अब्दुल गनी गुरदेजी

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के प्रसिद्ध खादिम सैयद अब्दुल गनी गुरदेजी भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी सहित अनेक बड़ी राजनीतिक हस्तियों के पारिवारिक खादिम हैं। लंबे समय तक शहर कांग्रेस के पदाधिकारी रहे हैं। उनका जन्म 9 अगस्त 1947 को जनाब सैयद अब्दुल समद के घर हुआ। उन्होंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की और उसके बाद ख्वाजा साहब की खिदमत में ही लग गए। उनकी गिनती प्रतिष्ठित खादिमों में होती है। सर्वधर्म समभाव को समर्पित जनाब गुरदेजी हर साल चेटीचंड के मौके पर मौलाई कमेटी के जरिए दरगाह षरीफ के दरवाजे पर जुलूस का भव्य स्वागत करते हैं और सिंधी समाज प्रमुखों की दस्तारबंदी करते हैं। हिंदुओं के त्यौहार रक्षाबंधन को अपने हिंदू मित्रों के साथ बहुत खुषी से मनाते हैं।


शख्सियत श्री दिलीप पारीक

व्यंग्य चित्रकार श्री दिलीप पारीक एक लंबे अरसे से अनेक समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे बेहतरीन मंच संचालन भी करते हैं। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1964 को डॉ. शिवदयाल पारीक के घर हुआ। उन्होंने एम.ए. व बी.जे.एम.सी. की डिग्रियां हासिल की हैं और पेशे से फार्मास्यूटिकल एक्जीक्यूटिव हैं। वे भारत विकास परिषद की अजमेर इकाई के अध्यक्ष, लायंस क्लब अजमेर यूनिक और लियो क्लब अजमेर के अध्यक्ष रहे। सुर सिंगार संस्था, अजमेर में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। पिछले तीस साल से विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में उनके व्यंग्य चित्र (कार्टून) प्रकाशित हो रहे हैं। वे अजमेर के गिनती के जागरूक व जिंदादिल इंसानों में षुमार हैं। सतत विनोदपूर्ण मिजाज ही उनकी पहचान है।