असल में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यादव पिछले दो माह से राज्य में सक्रिय हैं। उनकी मुख्यमंत्री पद की दावेदार वसुंधरा राजे से भी कई बार मंत्रणा हो चुकी है। वे चुनाव में टिकट तय करने सहित विभिन्न मुद्दों पर अगले कुछ दिनों में राज्य के नेताओं के साथ बैठक करेंगे।
ज्ञातव्य है कि जब उन्हें राजस्थान में लॉंच किया गया तभी इस बात के आसार बन गए थे कि सोची समझी रणनीति के तहत यहां से राज्यसभा सदस्य बनाए जा रहे हैं। वसुंधरा के प्रभुत्व के चलते ही उनके बाहरी होने की आवाज को दबा दिया गया था। राजस्थान में बाहरी होने का ठप्पा न लगे, इसलिए दिल्ली से भाजपा की सदस्यता होने के बाद भी उन्होंने अजमेर आ कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण। राजस्थान में भी उन्होंने अजमेर को उन्होंने इसलिए तरजीह दी है, क्योंकि अजमेर में उन्होंने अपना अध्ययन काल बिताया है। आपको याद होगा कि जीतने के बाद भी वे सबसे पहले अजमेर ही आए और उसके बाद भी आए दिन अजमेर आते रहते हैं। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद वे काफी सक्रिय हैं और आए दिन राष्ट्रीय मसलों पर न्यूज चैनलों पर भाजपा की पैरवी करते नजर आते हैं। वे शुरू से पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के काफी नजदीक रहे हैं, शायद इसी कारण उन्हें गडकरी के सहयोग के लिए तैनात किया जा रहा है। अब ये पक्का सा समझिये कि टिकट वितरण को लेकर जयपुर व दिल्ली होने वाली मशक्कत में वे अहम भूमिका निभाएंगे। अजमेर की बात करें तो यहां के कुछ चतुर दावेदारों ने तो उनकी भावी भूमिका को अच्छी तरह से समझते हुए काफी पहले से लाइजनिंग रखना शुरू कर दिया था। यहां बताना प्रांसगिक ही होगा कि यहां उनके लंगोटिया यार भी मौजूद हैं, जिनमें से कुछ टिकट के दावेदार भी हैं।
-तेजवानी गिरधर
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