अजमेर। ऐतिहासिक आनासागर अजमेर का गौरव है। अगर आज तक इसे ठीक से डवलप किया जाता तो यह अकेला पर्यटकों को आकर्षित में सक्षम होता, मगर अफसोस कि आज तक किसी जनप्रतिनिधि या प्रशासन ने इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं किया। हां, बातें बहुत होती रहीं और उसी के अनुरूप छिपपुट प्रयोग भी हुए, मगर आनसागर की हालत जस की तस रही।
सच तो ये है कि लंबे समय तक यह गंदगी और बदबू की समस्या से ग्रसित रहा, इस कारण सारा ध्यान केवल इसी पर था कि कैसे इससे निजात पाई जाए। इस पर बड़ी मुश्किल से काबू पाया जा पाया है। इसके अतिरिक्त डूब क्षेत्र में सैकड़ों मकान व अन्य व्यावसायिक भवन बन जाने के बाद लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद भी अब तक ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इसका स्वरूप क्या होगा? राजनीतिक कारणों की वजह से लगता नहीं कि डूब क्षेत्र में बने निर्माणों को हटाया जा सकेगा, हालांकि जनहित याचिकाओं के आधार पर हाईकोर्ट सख्त निर्देश जारी कर चुका है। इसे कितना भरा होना चाहिए, इसको लेकर भी खूब माथापच्ची हुई, क्योंकि बारिश के मौसम में अचानक ज्यादा वर्षा होने पर चैनल गेट खोलने पर निचली बस्तियों में पानी भरने की खतरा बना रहता है। हर बारिश में प्रशासन की इसी पर नजर रहती है।
हालांकि अब मौजूदा जिला कलेक्टर गौरव गोयल के प्रयासों से आनासागर का उद्धार करने का काम हो रहा है, मगर वह फाइनल भी होगा या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा इसलिए कि उनके पहले प्रशासन ने लगातार हो रही आत्महत्याओं के चलते सुरक्षा के मद्देनजर रामप्रसाद घाट और पुरानी चौपाटी पर लोहे की जाली लगवाई गई, वह अब आनासागर का खूबसूरत नजारा पाने के लिए पाथ वे बनाने के लिए तोड़ी जा रही है। अफसोस होता है कि दो साल पहले इस जाली पर लाखों रुपए खर्च किए गए, अब तोडऩे व फिर नए सिरे निर्माण पर लाखों रुपए लगाए जा रहे हैं। यानि कि ठेकेदारों के वारे-न्यारे हैं। इस बात की क्या गारंटी है कि आने वाले समय में प्रशासन में बैठे अफसर इसे कायम रखेंगे? ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इसके लिए कोई मास्टर प्लान क्यों नहीं बना दिया जाता?
सच तो ये है कि लंबे समय तक यह गंदगी और बदबू की समस्या से ग्रसित रहा, इस कारण सारा ध्यान केवल इसी पर था कि कैसे इससे निजात पाई जाए। इस पर बड़ी मुश्किल से काबू पाया जा पाया है। इसके अतिरिक्त डूब क्षेत्र में सैकड़ों मकान व अन्य व्यावसायिक भवन बन जाने के बाद लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद भी अब तक ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इसका स्वरूप क्या होगा? राजनीतिक कारणों की वजह से लगता नहीं कि डूब क्षेत्र में बने निर्माणों को हटाया जा सकेगा, हालांकि जनहित याचिकाओं के आधार पर हाईकोर्ट सख्त निर्देश जारी कर चुका है। इसे कितना भरा होना चाहिए, इसको लेकर भी खूब माथापच्ची हुई, क्योंकि बारिश के मौसम में अचानक ज्यादा वर्षा होने पर चैनल गेट खोलने पर निचली बस्तियों में पानी भरने की खतरा बना रहता है। हर बारिश में प्रशासन की इसी पर नजर रहती है।
हालांकि अब मौजूदा जिला कलेक्टर गौरव गोयल के प्रयासों से आनासागर का उद्धार करने का काम हो रहा है, मगर वह फाइनल भी होगा या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा इसलिए कि उनके पहले प्रशासन ने लगातार हो रही आत्महत्याओं के चलते सुरक्षा के मद्देनजर रामप्रसाद घाट और पुरानी चौपाटी पर लोहे की जाली लगवाई गई, वह अब आनासागर का खूबसूरत नजारा पाने के लिए पाथ वे बनाने के लिए तोड़ी जा रही है। अफसोस होता है कि दो साल पहले इस जाली पर लाखों रुपए खर्च किए गए, अब तोडऩे व फिर नए सिरे निर्माण पर लाखों रुपए लगाए जा रहे हैं। यानि कि ठेकेदारों के वारे-न्यारे हैं। इस बात की क्या गारंटी है कि आने वाले समय में प्रशासन में बैठे अफसर इसे कायम रखेंगे? ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इसके लिए कोई मास्टर प्लान क्यों नहीं बना दिया जाता?
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