आपको यह बता दे कि ये वही महेश व्यास हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में प्रदेशभर के कर्मचारियों ने 64 दिन की हड़ताल करवाई थी। हड़ताल 16 दिसंबर 1999 से प्रारंभ होकर 16 फरवरी 2000 तक चली थी। यह पहला मौका रहा था जब प्रदेश में कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ तीखे और बगावती तेवर दिखाए थे। हड़ताल में सीएम गहलोत कर्मचारियों को नहीं मना पाए। नतीजा चुनावों में सामने आया। कांग्रेस के हाथों से सरकार छिनकर भाजपा की झोली में चली गई। कांग्रेस सरकार के हार के उस वक्त भले ही कई कारण रहे हो, मगर कर्मचारियों ने एक बड़े तबके ने कांग्रेस की इस हार में अपनी भूमिका निभाई थी। हालांकि इस बार व्यास को यह जंग अपनी छवि और पकड़ के मुताबिक लडऩी होगी, क्योंकि विधानसभा चुनावों में भाजपा से टिकट मांगे जाने पर उनसे भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा मांग लिया गया था। इसके बाद से उन्होंने अखिल राजस्थान कर्मचारी एवं मजदूर महासंघ की स्थापना कर दी। हालांकि यह संघ पूरे प्रदेश में सक्रिय है, मगर भारतीय मजदूर संघ की ओर से इन्हें साथ नहीं मिलने के कारण कर्मचारियों की शक्ति विभाजित रहेगी।
व्यास की ओर से मीडिया के सामने बताए गए विरोध कार्यक्रमों के मुताबिक 6 मार्च को विधानसभा पर आंगनबाडी महिलाएं घेराव करेंगी। 15 को प्रदेशभर के जलदाय कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करेंगे। 21 अप्रैल को राजस्थान संयुक्त कर्मचारी एवं मजदूर महासंघ की ओर से पड़ाव डाला जाएगा। सरकार कर्मचारियों की प्रमुख छठा वेतनमान लागू करने समेत अन्य मांगों पर विचार नहीं करेंगी तो संघ की ओर से प्रदेश स्तर की हड़ताल की तिथि तय कर दी जाएगी। यदि सरकार और कर्मचारियों में यूं ही गतिरोध जारी रहा, तो अप्रैल माह में कर्मचारियों की प्रदेश स्तर की हड़ताल से भी इंकार नहीं किया जा सकता, जो कि कांग्रेस सरकार की कड़ी परीक्षा ले लेगी।
-तेजवानी गिरधर
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