शनिवार, 19 अक्तूबर 2024

क्या यह भ्रांत सांप्रदायिक सद्भाव नहीं?

हाल ही अखबारों में इस शीर्षक की खबर पढने को मिली कि हर साल की तरह इस साल भी मुस्लिम परिवार ने तैयार किया रावण का पुतला। बहुत सुखद लगा। सांप्रदायिक सद्भाव का नायाब उदाहरण पेश किया। वस्तुतः हम सांप्रदायिक सद्भाव को बहुत महत्व देते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव जरूरी है भी। मगर कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि हम छद्म व भ्रांत सांप्रदायिक सद्भाव को जीते हैं। 

असल बात यह है कि रावण का पुतला बनाना पूर्णतः आजीविका का जरिया है। रावण का पुतला बनाने वाला यह जान कर थोडे ही रावण का पुतला बनाता है कि वह मुस्लिम है और उसको सांप्रदायिक सद्भाव प्रस्तुत करने के लिए रावण का पुतला बनाना है। वह पेट पालने के लिए कर रहा है, मगर यह हमारी सोच है कि एक मुस्लिम रावण का पुतला कैसे बना रहा है। सच ये है यह उसका काम है, उसे पुतला बनाने में महारत हासिल है। इतना ही नहीं, वह दुर्गा व गणपति की प्रतिमा भी बनाता है। उसे इससे कोई प्रयोजन ही नहीं कि लोग उसकी तारीफ करेंगे। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि आजीविका के साथ बोनस में सस्ती लोकप्रियता मिल रही हो तो उसे कौन छोडेगा। हां, अगर कोई मुस्लिम बिना पैसे लिए पुतला बनाए तो समझा जा सकता है कि वह सांप्रदायिक सद्भाव की सच्ची मिसाल प्रस्तुत करना चाहता है। जो भी हो, इसका सकारात्मक पहलु ये है कि मौजूदा माहौल में यह कृत्य वाकई साहस का काम है, भले ही मकसद आजीविका हो। इसकी तो दाद देनी ही चाहिए वह अन्य धर्म का काम करने से परहेज नहीं कर रहा। रहा सवाल, मीडिया का तो वह भी साधुवाद का पात्र है कि भ्रांत सांप्रदायिक सद्भाव ही सही, उसके जरिए भी वह सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश तो दे रहा है।

 

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