बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

राजस्थान की वित्तीय व्यवस्था के आधार स्तम्भ श्री गोविंद देव व्यास

श्री गोविंद देव व्यास की गिनती राजस्थान के उन अधिकारियों में होती है, जिन्होंने राज्य की वित्तीय व्यवस्था को दिशा देने में अहम भूमिका अदा की है। यदि यह कहा जाए कि वे विकासमान राजस्थान के स्वप्नदृष्टाओं में से एक हैं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सेवानिवृत्ति के बाद भी भावी आरएएस अधिकारियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। अजमेर में जन्मे प्रतिभा संपन्न श्री गोविंद देव व्यास ने प्रारंभिक व उच्च शिक्षा राजकीय महाविद्यालय से हासिल की। उन्हें शुरू से साहित्य की रुचि रही। वे महाविद्यालय छात्र संघ के लायब्रेरी फोरम के महासचिव रहे। उन्होंने महाविद्यालय में प्रिंसीपल मेडल हासिल किया। उन्होंने महाविद्यालय की ओर से अनेक अंतरराज्यीय वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और विजेता रहे। वे राजस्थान राजस्व बार एसोसिएशन के निर्वाचित महासचिव रहे। सन् 1982 में राज्य सेवा के लिए चयनित हुए और सिविल सर्विस ऑफिसर के रूप में ट्रेजरी ऑफिसर, अकाउंट ऑफिसर, सीनियर अकाउंट ऑफिसर और चीफ अकाउंट ऑफिसर के पदों पर रहते हुए अनेक विभागों यथा डीआरडीए केनाल एरिया डॅवलपमेंट डिपार्टमेंट, गवर्नर हाउस, को-ऑपरेटिव डिपार्टमेंट आदि में सेवाएं दीं। वे एचसीएम राजस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में डिप्टी डायरेक्टर, जनरल मैनेजर फायनेंस राजस्थान, स्टेट कंज्यूमर फेडरेशन, केन्द्र सरकार के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन एंड अकांट्स, ज्वाइंट डायरेक्टर इस्पेक्शन, रूरल डॅवलपमेंट एंड पंचायतीराज में प्रोजेक्ट डायरेक्टर कम डिप्टी सेक्रेटरी रहे हैं। कई साल तक राज्य सरकार के फायनेंस डिपार्टमेंट में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के रूप में काम कर चुके हैं। सरकार उनके अनुभव का लाभ सेवानिवृत्ति के बाद भी ले रही है और वे भावी आरएएस को प्रशिक्षण दे रहे हैं।

सोमवार, 28 अक्तूबर 2024

अजमेर रत्न: डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली

झालावाड़ के खानपुर में 1 जून, 1935 को जन्मे डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली राजस्थान के प्रतिष्ठित साहित्यकार, प्रख्यात वेद विज्ञ, शिक्षाविद, पत्रकार, सामाजिक विचारक और हिंदी व संस्कृत के जाने-माने विद्वान हैं। उन्होंने हिंदी व संस्कृत में एम. ए. व पीएचडी की है। उनकी प्रथम नियुक्ति कोटा में अध्यापक के पद पर हुई। इसके बाद श्रीगंगानगर में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए। 1958 से अजमेर के राजकीय महाविद्यालय में नियुक्त हुए और हिंदी विभागाध्यक्ष रहे। वे सहकारिता के आधार पर संचालित अर्चना प्रकाशन के संस्थापक व सदस्य रहे हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है।

उन्हें गत 19 दिसंबर 2021 को शिमला में अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ की ओर से आयोजित भव्य समारोह में राष्ट्रीय शिक्षा भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वे हिंदी व संस्कृत भाषा और व्याकरण के इतने प्रकांड विद्वान हैं कि उन्हें शब्दों की व्युत्पत्ति तक का पूर्ण ज्ञान है। मेरी जानकारी के अनुसार वेद संस्थान के स्वर्गीय श्री अभयदेव शर्मा भी उनके समकक्ष माने जाते थे। श्री पंचोली को मैने ऐसे जाना कि मैं जब दैनिक न्याय में था, तब आपका संपादकीय नियमित रूप से प्रकाशन हेतु आता था। लेखन के क्षेत्र में उन्होंने लंबी यात्रा तय की है। उन्होंने तकरीबन चालीस साल तक न्याय में नियमित रूप से संपादकीय लिखा। शायद ही ऐसा कोई विषय हो, जिस पर आपकी कलम न चली हो। हम जानते हैं कि संपादकीय आम तौर पर घटनाओं की संतुलित समीक्षा के साथ समाज को दिशा देने का काम करते हैं। इस लिहाज से उन्होंने लंबे समय तक एक उपदेशक के रूप में भी समाज को अपनी सेवाएं दी हैं। वे इतना सधा हुआ इतना लिखा करते थे कि वह धारा प्रवाह तो होता ही था, उसमें व्यवस्था पर प्रहार करती धार भी पर्याप्त होती थी। आम तौर पर नैतिकता पर जोर हुआ करता था। जिस भी विषय पर संपादकीय लिखा, उस पर संक्षेप में संपूर्ण जानकारी मिल जाती थी। न तो उसमें कोई अवांछनीय शब्द होता था और न ही उसमें कुछ जोड़ा जा सकता था। लेखनी पर कितना नियंत्रण था, इसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यूं समझिये कि ए फोर साइज के कागज से कुछ छोटे कागज पर ऊपर कोने से लिखना शुरू करते और ठीक नीचे के कोने तक संपादकीय पूरा हो जाता। कांट-छांट कहीं भी नहीं। कागज की बचत के लिए हाशिया तक नहीं छोड़ते। है न समझ से परे कि क्या किसी की अपनी लेखनी पर इतनी कमांड हो सकती है कि उसे शब्दों की गिनती तक का पता हो कि कितने में अपनी बात पूरी करनी है। यह जानकर आपका मन उनको नमन करने को करता है कि नहीं। उनके सुपुत्र इंदुशेखर पंचोली जाने माने पत्रकार हैं, जिनकी गिनती उन पत्रकारों में होती है, जिन्होंने अजमेर से लंबी छलांग लगाई है।


रविवार, 27 अक्तूबर 2024

अजमेर उत्तर में कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार थे जस्टिस इंद्रसेन इसरानी

राजनीति की समझ रखने वालों में से कम लोगों को ही जानकारी होगी कि राजस्थान विशेष पिछडा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रहे जस्टिस स्वर्गीय श्री इंद्रसेन इसरानी अजमेर उत्तर में कांग्रेस टिकट के प्रबल दावेदार थे।

भूतपूर्व राजस्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के निधन के कारण हुए विधानसभा उप चुनाव में मैदान खाली देख कर उनका मन इस सीट के लिए ललचाया था। इसके लिए उन्होंने अपने करीबी दैनिक हिंदू के संपादक हरीश वरियानी के माध्यम से अजमेर की कुछ सिंधी कॉलोनियों में बैठकें कर जमीन तलाशी थी। उनका स्वागत भी हुआ। यहां तक कि उन्होंने तब स्वर्गीय नानकराम जगतराय से भी मुलाकात की थी। चूंकि तब तक नानकराम को यह कल्पना भी नहीं थी कि उन्हें टिकट मिलेगा, इस कारण उन्होंने अपना समर्थन देने का आश्वासन भी दिया था। 

उनसे एक गलती हो गई। अजमेर प्रवास के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके मुंह से कुछ ऐसा बयान निकल गया, जिसका अर्थ ये निकलता था कि सिंधी तो भाजपा के गुलाम हैं, उस पर बवाल हो गया। भाजपा से जुड़े सिंधी संगठनों ने उनके इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। इस पर माहौल बिगड़ता देख कर उन्होंने दावेदारी का मानस ही त्याग दिया। उस दिन के बाद कम से कम इस सिलसिले में तो वे अजमेर नहीं आए। ज्ञातव्य है कि उस उपचुनाव में नानकराम को टिकट मिला और वे जीते भी।

बाद में 2013 के चुनाव में एक बार फिर उनका नाम चर्चा में आया था। अजमेर में ब्लॉक व शहर स्तर पर तैयार पैनलों में उनका नाम नहीं था, फिर भी जयपुर व दिल्ली में उनके नाम की चर्चा थी। असल में राजस्थान में वरिष्ठतम सिंधी नेता माने जाते थे और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी थे। सिंधी समाज के बारे में कोई भी राजनीतिक निर्णय करने से पहले गहलोत उनसे चर्चा जरूर करते थे। इसी कारण उनका नाम सामने आया। इसके अतिरिक्त चूंकि पूर्व न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत का टिकट कटा हुआ माना जा रहा था, इस कारण अनेक सिंधी दावेदारों के बीच उनके नाम को गंभीरता से लिया गया। जैसे ही उनके नाम की चर्चा हुई तो विरोध भी षुरू हो गया।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव व अजमेर प्रभारी सलीम भाटी की ओर से की गई रायशुमारी के दौरान तो बाकायदा उनका नाम लेकर कांग्रेस नेता राजेन्द्र नरचल ने विरोध दर्ज करवा दिया और कहा कि जब अजमेर में पर्याप्त नेता हैं तो फिर क्यों बाहरी पर गौर किया जा रहा है। वे यहीं तक नहीं रुके। आगे बोले कि वे इसरानी का पुरजोर विरोध करेंगे, चाहे उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया जाए। इसरानी के नाम पर अन्य दावेदारों को कितनी चिंता थी, इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है। जब एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली गया और वहां भी जस्टिस इसरानी के नाम की चर्चा हुई तो उसने उनका विरोध कर दिया।

खैर, आखिर में एक बात और। वे राजस्थान में सिंधी समाज के कांग्रेसियों के पितामह थे। उनके निधन से हुई क्षति की पूर्ति आज तक नहीं हो पाई है।

पान की दुकानों पर भी जुटते हैं किस्सागो

ठीयों की बात हो और पान की दुकानें ख्याल में न आएं, ऐसा कैसे हो सकता है। वस्तुतः ये भी शहर की पंचायती करने वालों से सजती रही हैं। एक समय क्लॉक टावर थाने के नुक्कड़ पर इंडिया पान हाउस हुआ करता था, जो बाद में अतिक्रमण हटाओ अभियान में नेस्तनाबूद हो गया और बाद में सामने ही स्थापित हुआ। वह देर रात तक रोशन रहा करता है। इसी प्रकार स्टेशन रोड पर मजदूर पान हाउस, जनता पान हाउस, गुप्ता पान हाउस व चाचा पान हाउस, बजरंगगढ़ चौराहे पर शास्त्रीनगर की ओर जाने वाले रास्ते के नुक्कड़ पर स्थित दो दुकानें, हाथीभाटा के नुक्कड़ पर हंसमुख पान वाला, केन्द्रीय रोडवेज बस स्टैंड के ठीक सामने निहाल पान हाउस, रामगंज स्थित मामा की होटल आदि भी छोटे-मोटे ठीये रहे हैं।  वैशाली नगर में सिटी बस स्टैंड पर गुप्ता पान हाउस पहले एक केबिन में था, जो बाद में एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में तब्दील हो गया। वहां पान की दुकान अब भी है।

ठीयों के किस्से आपसे साझा किए तो मेरे दो पत्रकार मित्रों ने भी कुछ और ठीयों के बारे में जानकारी भेजी है। पत्रकार तीर्थदास गोरानी ने कहा है कि आप तीन अड्डे और भूल गए तेजवानी जी! एक, स्टेशन के दाहिने गेट के बाहर चाय की थड़ी पर आप, कासलीवाल जी, राजू मोहन, राजेंद्र गुप्ता वगैरह बैठते थे। दो, बस स्टैंड के बाहर तांगा जहां ज्यादातर अनिल लोढ़ा जी और भास्कर के अन्य पत्रकार जुटते थे। तीसरा, बस स्टैंड के एग्जिट गेट के पास हिम्मत सिंह, राकेश सोनी, अखिल शर्मा और अन्य दो दो बजे तक बैठते थे।

पत्रकार अनुराग जैन ने बताया है कि शहर में दिन के संजीदा पत्रकारों का जमघट (आवागमन) स्व. श्री अभयकुमार जैन के फव्वारा चौराहे स्थित मंगल मुद्रणालय पर भी हुआ करता था। पत्रकारों की गतिविधियां यहीं से हुआ करती थीं।

स्वर्गीय बाबा विश्वदेव, कप्तान दुर्गा प्रसाद, घीसूलाल पांड्या, कैलाश वरणवाल, राजनारायण, मोहनराज भंडारी, श्याम जी , दिलीप जैन, विश्वविदेह विभूजी, राजकुमार दोसी, आर.के. चौधरी, लहर पत्रिका के संपादक प्रकाश जैन, सुरेश पारीक, वीरेंद्र आर्य, इन्दुशेखर पंचोली, एस. पी. मित्तल और तब के अन्य युवा पत्रकारों का भी आना जाना होता रहा। ऐसे कई और ठिये होंगे, जो मुझ अल्पज्ञानी की जानकारी में नहीं हैं। आपको पता हो तो इस सूची में इजाफा कर दीजिए।


शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

और भी रहे हैं ठीये-ठिकाने चौधर करने वालों के

पिछले किस्से में हमने नाले शाह की मजार का जिक्र किया था। दैनिक राज्यादेश व दैनिक मरु प्रहार के संपादक श्री गोपाल सिंह लबाना ने जानकारी दी है कि नाले शाह की मजार की तरह का ही एक और ठीया हुआ करता था। वे बताते हैं कि मदारगेट पर राधाकृष्ण गुरुदयाल मिष्ठान्न भंडार के पास बाटा की दुकान पर रात में चंद बुद्धिजीवी बतियाने को जमा हुआ करते थे। उनमें स्वयं लबाना के अतिरिक्त भभक पाक्षिक समाचार पत्र के भूतपूर्व संपादक व वरिष्ठ पत्रकार-ब्लॉगर श्री एस. पी. मित्तल के पिताश्री स्वर्गीय श्री कृष्णगोपाल गुप्ता, श्री केवल राम वासवानी, ईश्वर लालवानी आदि शामिल थे। तब रात बारह बजे दैनिक नवज्योति अखबार आ जाता था, जिसे पढ़-पढ़ा कर, टीका-टिप्पणियां करके ही सभा विसर्जित हुआ करती थी। वे बताते हैं कि तब क्लॉक टावर पुलिस थाने के कोने में इंडिया पान हाउस के सामने दुकान के शेड के नीचे दैनिक नवज्योति के वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री श्याम जी व स्वर्गीय श्री जवाहर सिंह चौधरी के साथ भी बातों की हुक्केबाजी होती थी।

ऐसा ही पत्रकारों का अड्डा रेलवे स्टेशन के सामने स्थित शहर के जाने-माने फोटोग्राफर इन्द्र नटराज की दुकान पर भी सजता था, जहां विज्ञप्तिबाज विभिन्न अखबारों के लिए विज्ञप्तियां दे जाते थे। बौद्धिक विलास के लिए पत्रकारों का जमावड़ा जाने-माने पत्रकार श्री अनिल लोढ़ा के कचहरी रोड पर नवभारत टाइम्स के ऑफिस में भी होता था। वह पत्रकारिता की अनौपचारिक पाठशाला भी थी।

अखबार वालों व उनकी मित्र मंडली का नया ठिकाना वैशाली नगर में अजयमेरु प्रेस क्लब के रूप में विकसित हुआ है। यहां केरम खेलने व गीत-संगीत के बहाने बुद्धजीवी रोज इकत्र होते हैं। इसके अधिष्ठाता दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल हैं। इससे पहले यह गांधी भवन में हुआ करता था।

यूं सबसे बड़ा व ऐतिहासिक ठिकाना शुरू से नया बाजार चौपड़ रहा है। न जाने कितने सालों से यह चौराहा शहर की रूह है। यहां से शहर की दशा-दिशा, बहुत कुछ तय होता रहा है।

इसी प्रकार सबको पता है कि अजमेर क्लब शहर के संभ्रात लोगों, व्यापारियों व रईसों का आधिकारिक ठिकाना है। वर्षों से इसके महंत पूर्व विधायक डा. राजकुमार जयपाल हैं। वे बिना शोरगुल किए अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि व मधुर व्यवहार के दम पर इसका संचालन कर रहे हैं।

इसी प्रकार पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के निवास स्थान की जाफरी वर्षों तक आबाद रही। यहां भी शहर की आबोहवा का थर्मामीटर हुआ करता था। अब वह शिफ्ट हो कर डॉक्टर साहब की क्लीनिक में आ गया है। इसी प्रकार धाकड़ कांग्रेस नेता श्री कैलाश झालीवाल का मदारगेट स्थित ऑफिस भी कई सालों से खबरनवीसों व कांग्रेस कार्यकर्ताओं का ठिकाना रहा है।

जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के सामने स्थित मुड्डा क्लब भी शहर के बातूनियों का ठिकाना रहा है। वहां भी राजनीति का तानाबाना नापा जाता था। इसी प्रकार पलटन बाजार के सामने झम्मू की होटल कॉफी के शौकीनों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही। मूंदड़ी मोहल्ले का चौराहा भी बतरसियों की चौपाल रही है। दरगाह इलाके में अंदरकोट स्थित हथाई भी किस्सागोइयों का जमघट लगाती है। इसी तरह शाम ढ़लते ही सुरा प्रेमियों का जमघट ब्यावर रोड पर दैनिक न्याय के पास फ्रॉमजी बार में लगता था।


क्या मीडिया की सतत कवायद बेमानी तो नहीं?

पूरे राजस्थान में अजमेर के मीडिया की विषेश पहचान है। विषेश रूप से खोजपूर्ण पत्रकारिता में यह अग्रणी रहा है। अजमेर की ज्वलंत समस्याओं के लिए यहां का मीडिया षासन-प्रषासन को सतत जगाता रहता है, मगर चहुंओर समस्याओं का अंबार कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। स्थाई-अस्थाई अतिक्रमण पसरे हुए हैं। नालों को पाट दिया गया है। पहाडियों तक नहीं छोडा गया। अवैध बहुमंजिला इमारतें कुकुरमुत्तों की तरह पनप गई हैं। बेतरतीब यातायात लाइलाज प्रतीत होता है। पार्किंग की समस्या का समाधान होता ही नहीं दिखता। पानी की तो बात करना ही बेकार है। वह चिरस्थाई है। हम आदी हो चुके हैं। प्यास चाहे न बुझी हो, मगर जलभराव छप्पर फाड कर होने लगा है। दरगाह और पुश्कर के नाम पर भरपूर धन राषि आती है, मगर धरातल पर विकास कितना हुआ है, किसी से छुपा नहीं है। आनासागर की दुर्गति, जलकुंभी की विकरालता, सीवरेज योजना की नाकामी, स्मार्ट सिटी के नाम पर हुई मनमानी इस षहर का दुर्भाग्य नहीं है तो क्या है?

कभी कभी ऐसा लगता है कि क्या हमारे जागरूक मीडिया कर्मियों की हैमरिंग बेमानी तो नहीं?


शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

सर्वधर्म सद्भाव की लौ प्रज्ज्वलित करने के लिए साधुवाद

दरगाह ख्वाजा साहब और तीर्थराज पुष्कर को अपने आंचल में समेटे अजमेर की पावन धरा को सांप्रदायिक सौहार्द की नगरी कहा जाता है। अनेक झंझावातों में इसका पुर सुकून मंजर सदैव अकंपित रहा है। यदाकदा ऐसी चिन्गारियां भी छोडी जाती रही हैं, मगर उसकी यात्रा ज्यादा दूर तक नहीं चल पाती। वस्तुतः इस नगरी का मिजाज ही ऐसा है कि इसकी शांति में खलल नही डाला जा सकता है। ऐसे में यकायक एक ऐसी संस्था का ख्याल आ जाता है, जो दिखती तो छोटी है, मगर मिसाल सद्भाव का सतत पेश करती है। पिछले कई सालों में उसके आकार का विस्तार भले ही नजर नहीं आया हो, मगर उसकी निरंतरता सुखद अहसास कराती है। संस्था का नाम है सर्वधर्म मैत्री संघ, जो एक समूह है, सभी धर्मों के प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों का। वे हर साल सभी धर्मों के प्रमुख पर्वों पर भाईचारे का संदेश देना नहीं भूलते। उनके जज्बात को सलाम। सांप्रदायिक सद्भाव की लौ जागृत रखने के लिए बारम्बार साधुवाद।

हाल ही संस्था ने सेंट पॉल्स सीनियर सेकंडरी स्कूल में दीपावली स्नेह मिलन हर्षोल्लास के साथ मनाया। संघ के अध्यक्ष प्रकाश जैन ने बताया कि कार्यक्रम का प्रारंभ मुख्य अतिथि अतिरिक्त संभागीय आयुक्त श्रीमती दीप्ति शर्मा, फादर जॉन करवालो, फादर कॉस्मो शेखावत, मोहम्मद अली बोहरा, सरदार जगजीत सिंह सोखी के द्वारा किया गया। स्कूल के बच्चों के द्वारा सभी संप्रदायों के धर्म गुरुओं की वेशभूषा में आए हुए अतिथियों का माल्यार्पण कर अभिनंदन किया गया। विभिन्न धर्माे के प्रतिनिधियों व गुरुओं के द्वारा दीपावली पर्व की महत्वता के बारे में प्रकाश डाला गया। सिख समुदाय, जैन समुदाय, बौद्ध समुदाय में दीपावली पर्व का अलग महत्व है। सरदार सखी ने कहा की महाराज के आदेश के बाद 52 अन्य भक्तों को किस प्रकार जेल से बाहर निकाला गया, उसी उपलक्ष में दिवाली मनाई जाती है। जैन समुदाय में भगवान महावीर का निर्वाण अमावस्या के दिन हुआ था, इसलिए मोदक समर्पण कर दीपावली मनाई जाती है। सम्राट अशोक कुमार मौर्य ने 84000 कीर्ति स्तंभ बनाकर आज के दिन मौर्य राज्य की स्थापना की थी, इसलिए इसे धम्मदीप दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी पाठक महाराज ने सनातन धर्म के अनुसार भगवान राम के राज्याभिषेक पर चर्चा करते हुए दीपावली किस प्रकार से 5 दिन या 7 दिन तक मनाई जाती है, प्रत्येक दिन का अलग महत्व होता है। ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र के सुकांत भैया ने भगवान महावीर के द्वारा दिए गए जियो और जीने दो के संदेश पर प्रकाश डाला। जैन ने कहा कि इस वर्ष की दिवाली पर स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण के लिए पटाखों का कम से कम इस्तेमाल करें।

पूर्व आईएएस अधिकारी अश्फाक हुसैन झुंझुनूं विधानसभा सीट से बसपा के उम्मीदवार

पूर्व आईएएस अधिकारी जनाब अश्फाक हुसैन ने झुंझुनूं विधानसभा सीट से बसपा के टिकिट पर नामांकन दाखिल किया है। जानकारी के अनुसार झुंझुनूं में इस बार अल्पसंख्यकों को उम्मीद थी कि कांग्रेस उनको मौका देगी, मगर ऐसा न होने पर समाज व शुभचिंतकों ने अश्फाक हुसैन पर दबाव बनाया कि वे चुनाव मैदान में उतरे। इस सीट पर करीब नब्बे हजार अल्पसंख्यक मतदाता हैं। बसपा ने उनकी लोकप्रियता के मद्देनजर अपना चुनाव चिन्ह दिया है। उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया है। ज्ञातव्य है कि वे पिछले विधानसभा चुनाव में पुष्कर से दावेदार थे, मगर कांग्रेस ने श्रीमती नसीम अख्तर को लगातार तीसरी बार टिकट दे दिया था। वे अजमेर में अतिरिक्त जिला कलेक्टर रह चुके हैं। साथ ही दरगाह ख्वाजा साहब का प्रबंधन देखने वाली दरगाह कमेटी के नाजिम रह चुके हैं। बतौर नाजिम उन्होंने जायरीन की सुविधार्थ अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं। अपने सरल स्वभाव के चलते अल्पसंख्यकों के अतिरिक्त अन्य समाज में भी लोकप्रिय हैं। 

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024

अजमेर की चौधर करने वालों का ठीया था नाले शाह की मजार

शहर के चंद बुद्धिजीवियों को ही पता है कि अजमेर में एक स्थान नाले शाह की मजार के नाम से जाना जाता था। अब उसका कोई नामो-निशान नहीं है। दरअसल न तो नाले शाह नाम के कोई शख्स हुए और न ही वह किसी की मजार थी। वह एक ठीया था। क्लॉक टॉवर पुलिस थाने के मेन गेट से सटी बाहरी दीवार पर रोजाना रात सजने वाले मजमे को कुछ मसखरे नाले शाह की मजार कहा करते थे। दरअसल दीवार के सहारे पटे हुए एक नाले पर होने के कारण ये नाम पड़ा था। इस ठीये पर शहर की चौधर करने वाले जमा होते थे। बाखबर के साथ बेखबर चर्चाओं का मेला लगता था। अफवाहों की अबाबीलें घुसपैठ कर जातीं, तो कानाफूसियां भी अठखेलियां करती थीं। हंसी-ठिठोली, चुहलबाजी, तानाकशी व टीका-टिप्पणी के इस चाट भंडार पर शहर भर के चटोरे खिंचे चले आते थे। दुनियाभर की टेंशन और भौतिक युग की आपाधापी के बीच यह वह जगह थी, जहां आ कर जिंदगी रिलैक्स करती थी। इतना ही नहीं, वहां शहर की फिजां का तानाबाना सायास नहीं, अनायास बुना जाता था। यहां से निकली हवा शहर की आबोहवा में बिखर जाती थी।

असल में दैनिक भास्कर, अजमेर संस्करण के पूर्व संपादक डॉ. रमेश अग्रवाल इस ठिये के सूत्रधार थे। तब वे नवज्योति में हुआ करते थे। उनके संपादन कार्य से निवृत्त के बाद यहां पहुंचने से पहले ही  एक-एक करके ठियेबाज जुटना शुरू हो जाते थे। सबके नाम लेना तो नामुमकिन है। चंद शख्सियतों का जिक्र किए देते हैं- स्वर्गीय श्री वीर कुमार, रणजीत मलिक, इंदुशेखर पंचोली, संतोष गुप्ता, नरेन्द्र भारद्वाज, ललित शर्मा, अतुल शर्मा, तिलोक, स्वर्गीय सीताराम चौरसिया, स्वर्गीय योगेन्द्र सेन आदि-आदि, जो कि रोजाना इस मजार पर दीया जलाने चले आते थे। डॉ. अग्रवाल के आने के बाद तो महफिल पूरी रंगत में आ जाती थी। इस मयखाने की मय का स्वाद चखने कई रिंद खिंचे चले आते थे। यहां दिनभर की सियासी हलचल के साथ अफसरशाही के किस्सों पर खुल कर चटकारे लिये जाते थे। समझा जा सकता है कि दूसरे दिन अखबारों में छपने वाली खबरों का तो जिक्र होता ही था, उन छुटपुट वारदातों पर भी कानाफूसी होती थी, जो ऑफ द रिकार्ड होने के कारण खबर की हिस्सा नहीं बन पाती थीं। अगर ये कहा जाए कि इस ठिये पर शहर का दिल धड़कता था तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। चूंकि यहां हर तबके के बुद्धिजीवी जमा होते थे, इस कारण खबरनवीसों को शहर की क्रिया-प्रतिक्रिया का भरपूर फीडबेक मिला करता था। जो बाद में अखबारों के जरिए शहर की दिशा-दशा तय करता था। जिन स्वर्गीय श्री सीताराम चौरसिया का नाम चर्चा में आया है, वे कांग्रेस सेवादल के जाने-माने कार्यकर्ता थे। सेवादल के ही स्वर्गीय योगेन्द्र सेन इस मजार के पक्के खादिम थे। बाद में यह ठीया वरिष्ठ पत्रकार इंदुशेखर की पहल पर पैरामाउंट होटल के एक कमरे में शिफ्ट हो गया था। एक घर बनाऊंगा की तर्ज पर एक सा छोटा ठिया सामने ही रेलवे स्टेशन के गेट के पास कोने में चाय की दुकान पर भी खुला, जो दैनिक न्याय के पत्रकारों ने जमाया था। लगे हाथ ये बताना वाजिब रहेगा कि नाले शाह की मजार से भी पहले क्लॉक टॉवर के सामने मौजूदा इंडिया पान हाउस के पास चबूतरे पर दैनिक नवज्योति के तत्कालीन क्राइम रिपोर्टर स्वर्गीय श्री जवाहर सिंह चौधरी देर रात के धूनी रमाया करते थे।


बुधवार, 23 अक्तूबर 2024

बहुआयामी व्यक्तित्व थे पत्रकार स्वर्गीय श्री अभय कुमार जैन

शहर के वयोवृद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रकारों में शुमार रहा है स्वर्गीय श्री अभय कुमार जैन का नाम। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। अनेक वर्ष तक अजमेर जिला पत्रकार संघ के कोषाध्यक्ष और अनेक सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक संस्थाओं में पदाधिकारी रहे। उत्तर प्रदेश के बिल्सी (बदायुं) में 7 जुलाई, 1938 को जन्मे श्री जैन ने शास्त्री, साहित्य रत्न, साहित्याचार्य (हिंदी-संस्कृत) की शिक्षा अर्जित की। उन्होंने सन् 1958 से 1961 तक मथुरा से प्रकाशित जैन संदेश का संपादन किया। आगरा से प्रकाशित दैनिक सैनिक के संवाददाता रहे। सन् 1962 से 1978 तक साप्ताहिक जैन गजट का संपादन किया। इसी प्रकार कांग्रेस समाचार का भी संपादन किया। वे कांग्रेस संगठन से भी जुड़े रहे। साथ ही मंगल मुद्रणालय का संचालन किया, जिसकी मुद्रण के क्षेत्र में खासी साख रही। उन्होंने पाक्षिक समाचार पत्र अजमेर टुडे की स्थापना की, जिसका कुशल संपादन उनके पुत्र श्री अनुराग जैन कर रहे हैं, जो समाचार एजेंसी यूनिवार्ता के अजमेर ब्यूरो चीफ हैं। स्वर्गीय श्री जैन अजमेर के पहले टीवी न्यूज चैनल अजमेर अब तक में भी सक्रिय रहे। उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कलम कलाधर उपाधि से सम्मानित किया गया। उनका निधन 16 जून, 2004 को हुआ। उनके सुपुत्र श्री अनुपम जैन भी पत्रकार हैं।

रविवार, 20 अक्तूबर 2024

नानकराम जगतराय की आंखें जब नम हो गईं

अजमेर उत्तर जो कि पूर्व में अजमेर पश्चिम सीट रही, के भूतपूर्व कांग्रेस विधायक स्वर्गीय श्री नानकराम जगतराय की छवि कितनी साफ सुथरी थी, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा कि उन्हें एक सौ एक नानकरामों की जरूरत है। बेशक उन्हें तेज तर्रार विधायक नहीं माना गया, मगर उनकी छवि आम आदमी की नजर में ईमानदार, सरल, सहज सुलभ विधायक की तो थी ही। 

उनकी सरलता व मितव्ययता की स्थिति ऐसी थी कि वे कई बार रोडवेज की बस से ही जयपुर आते जाते थे। बस स्टैंड से अपने घर तक टैक्सी या तांगे से आया करते थे। एक बार उनकी तांगे में घर आने की फोटो मीडिया में भी चर्चा का विषय बनी। उनकी सबसे बडी खासियत ये थी कि जो भी फरियादी उनके पास आता तो वे उसकी जायज मांग पूरी करने के लिए बिना किसी ना नुकर के तुरंत डिजायर लिख दिया करते थे। यह बात दीगर है कि इसका लाभ उनके कुछ एक नजदीकियों ने उठाया होगा, मगर उन पर किसी भी डिजायर की एवज में कुछ मांगने का आरोप नहीं लगा। ईमानदारी के कारण ही विधायक के नाते मिलने वाला भत्ता कम पड जाता था। इसके लेकर वे बहुत परेशान रहते थे। मेरे उनसे व्यक्तिगत संबंध थे। एक बार मैं उनके पास बैठा था तो अपनी परेशान बयां करते हुए उनकी आंखें नम हो गई थीं। वे बोले पहले जब वे अपनी कोठडी में बैठा करते थे, तो उनका टेलीफोन बिल और चाय पानी का खर्च सीमित था, जिसे वे आसानी से वहन कर लेते थे, लेकिन विधायक बनने के बाद हर एक कार्यकर्ता यह सोच कर कि यह सरकारी खाते का है, इस कारण उनके टेलीफोन का उपयोग बेधकडक करता है, किसी को रोका भी नहीं जा सकता, नतीजतन विधायक के नाते जो टेलीफोन भत्ता मिलता है, उससे तीन चार गुना बिल आने लगा है। उसे चुकाना बहुत मुश्किल हो रहा है। इतने पैसे कहां से लाउं? चाय पानी का खर्च भी इतना अधिक हो गया है कि उसे वहन करना बस की बात की नहीं रही। समझा जा सकता है कि जिसे वसूली का फंडा पता न हो, वह भला उपरी खर्चा कैसे झेल सकता है। दूसरा ये कि वसूली वही कर सकता है, जो तेज तर्रार हो, नानकराम जैसे सीधे सादे विधायक को भला कोई क्यों गांठने वाला था।

खैर, बातचीत के आखिर में वे यहां तक बोल गए कि वे विधायक होने से पहले ज्यादा सुखी थे। यह सही है कि अब रौब बढ गया है, लोगों के काम भी हो रहे हैं, मगर सुख चैन छिन गया है, क्योंकि लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं और उन सब को पूरा करना संभव नहीं। ऐसे में लोग नाराज हो जाते हैं। जिसके नौ काम करो, मगर दसवां काम न कर पाओ तो पुराने सभी नौ कामों पर पानी फिर जाता है।


अतुल अग्रवाल कांग्रेस छोड भाजपा में शामिल

अजमेर में कांग्रेस के कार्यक्रमों में अतिरिक्त सक्रिय रहने वाले नेता अतुल अग्रवाल भाजपा में शामिल हो गए हैं। वे भूतपूर्व कांग्रेस नेता स्वर्गीय श्री सुरेश अग्रवाल के पुत्र हैं, जो अजमेर नगर जिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनते बनते रह गए थे। वे भूतपूर्व राजस्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के करीबी थे। अतुल अग्रवाल खुद भी नगर जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी कर चुके हैं।अतुल अग्रवाल सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि 100 साल पुराने कांग्रेस परिवार के सदस्यों ने छोड़ी कांग्रेस। कांग्रेस के हतकर्मी रवैये को देख कर और नैतिकता के आधार पर किसी भी बड़े नेता ने अजमेर संभाग को सुधारने की कोशिश नहीं करी। इससे आहत होकर कांग्रेस के स्वार्थी नेताओं को मद्देनजर रखते हुए मजबूरन कांग्रेस छोड़ने पर हुए मजबूर। थामा भाजपा का हाथ। यहां उल्लेखनीय है कि वे अजमेर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड चुके श्री रिजू झुंझुनवाला की संस्था जवाहर फाउंडेशन में सक्रिय हैं।


शनिवार, 19 अक्तूबर 2024

क्या यह भ्रांत सांप्रदायिक सद्भाव नहीं?

हाल ही अखबारों में इस शीर्षक की खबर पढने को मिली कि हर साल की तरह इस साल भी मुस्लिम परिवार ने तैयार किया रावण का पुतला। बहुत सुखद लगा। सांप्रदायिक सद्भाव का नायाब उदाहरण पेश किया। वस्तुतः हम सांप्रदायिक सद्भाव को बहुत महत्व देते हैं। सांप्रदायिक सद्भाव जरूरी है भी। मगर कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि हम छद्म व भ्रांत सांप्रदायिक सद्भाव को जीते हैं। 

असल बात यह है कि रावण का पुतला बनाना पूर्णतः आजीविका का जरिया है। रावण का पुतला बनाने वाला यह जान कर थोडे ही रावण का पुतला बनाता है कि वह मुस्लिम है और उसको सांप्रदायिक सद्भाव प्रस्तुत करने के लिए रावण का पुतला बनाना है। वह पेट पालने के लिए कर रहा है, मगर यह हमारी सोच है कि एक मुस्लिम रावण का पुतला कैसे बना रहा है। सच ये है यह उसका काम है, उसे पुतला बनाने में महारत हासिल है। इतना ही नहीं, वह दुर्गा व गणपति की प्रतिमा भी बनाता है। उसे इससे कोई प्रयोजन ही नहीं कि लोग उसकी तारीफ करेंगे। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि आजीविका के साथ बोनस में सस्ती लोकप्रियता मिल रही हो तो उसे कौन छोडेगा। हां, अगर कोई मुस्लिम बिना पैसे लिए पुतला बनाए तो समझा जा सकता है कि वह सांप्रदायिक सद्भाव की सच्ची मिसाल प्रस्तुत करना चाहता है। जो भी हो, इसका सकारात्मक पहलु ये है कि मौजूदा माहौल में यह कृत्य वाकई साहस का काम है, भले ही मकसद आजीविका हो। इसकी तो दाद देनी ही चाहिए वह अन्य धर्म का काम करने से परहेज नहीं कर रहा। रहा सवाल, मीडिया का तो वह भी साधुवाद का पात्र है कि भ्रांत सांप्रदायिक सद्भाव ही सही, उसके जरिए भी वह सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश तो दे रहा है।

 

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024

अजमेर रत्न स्वर्गीय श्री केसरी चंद चौधरी

किशनगढ़ के भूतपूर्व विधायक स्वर्गीय श्री केसरीचंद चौधरी अपने समकालीन कांग्रेसी नेताओं में अलग ही पहचान रखते थे। आम कार्यकर्ताओं से उनका गहरा लगाव था। उनका जन्म 5 जून 1926 को स्वर्गीय श्री मदनचंद चौधरी के घर हुआ। सन् 1942 तक स्नातक तक विद्या अध्ययन के बाद महात्मा गांधी के आह्वान पर राज्य प्रजामंडल के सचिव बने और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गए। सन् 1964 में वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य और 1968 में अजमेर जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव बने। वे तकरीबन 26 साल तक टैक्सटाइल श्रमिक संगठन इंटक के अध्यक्ष भी रहे। वे माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ सहित कोई चालीस श्रमिक संस्थाओं के अध्यक्ष रहे। वे नगर सुधार न्यास के भी अध्यक्ष रहे। राजस्थान आवासीय ऋणदात्री सहकारी समिति के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने तीन करोड़ रुपए के ऋण वितरित किए। सन् 1974-75 में पोस्ट एंड टेलीग्राफ की राज्य स्तरीय कमेटी के सदस्य रहे। सन् 1975 में उन्होंने अजमेर में विशाल रैली का आयोजन किया, जिसमें तत्कालीन इस्पात मंत्री श्री चंद्रजीत यादव व मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी ने शिरकत की। इसी साल आई भीषण बाढ़ के दौरान बाढ़ सुरक्षा समिति के अध्यक्ष रहे। सन् 1976 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीया श्रीमती इंदिरा गांधी के अजमेर आगमन पर स्वागत समिति के अध्यक्ष रहे। सन् 1976 से 1980 तक प्रगतिशील युवक संघ के संरक्षक रहे। यह संगठन अब भी सक्रिय है और उनके शिष्य डॉ. सुरेश गर्ग इसका संचालन कर रहे हैं। सन् 1980 में वे किशनगढ़ से विधानसभा चुनाव जीते। सन् 1985 में उन्हें फिर से टिकट दिया गया, लेकिन 5 मार्च को होने वाले चुनाव से तीन दिन पहले 2 मार्च को उनका निधन हो गया। उनके अनेक अनुयायी अपने आप को उनका शिष्य कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं। उनके पुत्र डॉ किस्तूर चंद चौधरी ब्यावर से विधायक रहे। उनकी राज्य के प्रमुख कांग्रेस नेताओं में होती थी। अजमेर में विधायक स्वर्गीय श्री नानकराम जगतराय की जीत में उनकी अहम भूमिका रही।

रविवार, 13 अक्तूबर 2024

डॉ आकाश माथुर की वेबसाइट की अनूठी लॉन्चिंग

यह सर्वमान्य तथ्य है कि कोई भी डाक्टर यही चाहेगा कि उसके पास अधिक से अधिक मरीज आएं। आखिरकार यह उसका पेशा है। इसी के लिए उसने बहुत श्रम और अर्थ व्यय करके डिग्रियां हासिल की हैं, मगर क्या कोई ऐसा डॉक्टर भी हो सकता है, जिसकी दिलचस्पी इलाज करने से अधिक इसमें हो कि आदमी बीमार ही न पडे। जी हां, बिलकुल इसी मंषा को दिल में संजोये डॉ आकाश माथुर ने अपनी वेबसाइट का लोकार्पण किया। अजमेर में कदाचित यह पहला मौका था, जब किसी डॉक्टर की वेबसाइट की लॉन्चिंग समारोहपूर्वक हुई। स्थान था स्वामी कॉम्पलैक्स का बेंक्वेट हॉल। जाने माने डाक्टर्स व अभिजात्य वर्ग की गरिमामय मौजूदगी। ऐसे भव्य समारोह में हुआ क्षेत्रपाल हॉस्पिटल के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ आकाश माथुर की वेबसाइट का लोकार्पण। बेशक डॉ माथुर का पहला लक्ष्य मरीज का इलाज करना है, मगर उनकी मंशा है कि वेबसाइट में दी गई जानकारियों का लाभ लेकर आदमी बीमारी से ही बच जाए। डॉ माथुर ने कहा कि आज के इस सूचना के युग में रोगी को अपने रोग के बारे में पूर्ण जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही आम जनता को स्वस्थ रहने तथा रोगों से बचाव के प्रति जागरूक किए जाने की भी आवश्यकता है। हमारी वेबसाइट का उद्देश्य पाचन तंत्र, लीवर संबंधी बीमारियों और वेलनेस के प्रति जागरूकता का प्रसार है। वेबसाइट पर 125 से अधिक ब्लॉग और लेख उपलब्ध हैं, जो अंग्रेजी के अलावा आम आदमी की भाषा हिंदी में रोगियों और उनके परिवारों के लिए महत्वपूर्ण प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। यह वेबसाइट केवल शहरी लोगों के लिए नहीं, ग्रामीण नागरिकों के लिए भी डॉक्टर के साथ ज्ञान के पुल के रूप में कार्य करेगी।

समारोह में डॉ माथुर ने बताया कि हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की कितनी भी आलोचना की जाए लेकिन आजादी के बाद से लेकर आज तक की औसत आयु और औसत मृत्यु दर के आंकड़े बताते हैं कि हमने इस क्षेत्र में काफी सकारात्मक कार्य किया है। वर्ष 1947 में हमारे देश में औसत आयु 32 से 35 वर्ष थी, जो वर्ष 2023 में बढ़ कर 70-72 वर्ष हो गई है। इसके साथ ही, मृत्यु दर में भी गिरावट दर्ज की गई है, जो 1947 में 22-25 प्रति 1,000 थी और अब घट कर 7 प्रति 1,000 व्यक्ति हो गई है। 

समारोह में पैनल चर्चा का विषय था, ‘‘क्या चिकित्सा सेवाएं व्यावसायिक हैं?’’। इस चर्चा में जाने माने एडवोकेट उमरदान सिंह लखावत, समाजसेवी दिलीप पारीक और डॉ आकाश माथुर ने भाग लिया। इस चर्चा के दौरान लखावत ने मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में अत्यंत तीखे सवाल किए। इस चर्चा के दौरान सभी का मत था कि डॉक्टर और मरीज के रिश्ते में पहले जो विश्वास हुआ करता था, उसमें निरंतर कमी आ रही है और इस विश्वास की वापसी के लिए दोनों पक्षों को प्रयास करने होंगे। डॉ. माथुर ने चर्चा के दौरान सुझाव दिया कि सरकार को जांच और चिकित्सा से जुड़ी सामग्री को टैक्स फ्री कर देना चाहिए ताकि सभी को उचित स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। जीवन का अधिकार सबसे बड़ा अधिकार है, और इसके लिए आवश्यक जांच और उपचार पर किसी भी प्रकार का टैक्स व्यक्ति के जीने के अधिकार पर कुठाराघात है।

इस अवसर के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ और जेएलएन मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. राजेंद्र गोखरू ने रोगियों को जानकारी देने वाली वेबसाइट की पहल का स्वागत किया तथा दिल और लिवर के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि दिल, लिवर और समग्र स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि हम जीवन शैली में बदलाव करें, संतुलित आहार लें नियमित रूप से व्यायाम, सैर और योग करें।

कार्यक्रम में शहर के जाने माने शल्य चिकित्सा डॉक्टर बृजेश माथुर सहित अन्य कई वरिष्ठ चिकित्सकों और प्रतिश्ठित नागरिकों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन दिलीप पारीक ने किया। अंत में डॉक्टर नैंसी माथुर ने आभार व्यक्त किया।

ज्ञातव्य है कि डॉ माथुर पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व महाप्रबंधक श्री वेद माथुर के सुपुत्र हैं। वे सुपरिचित पत्रकार व लेखक भी हैं। स्वाभाविक रूप से कार्यक्रम की रूपरेखा और प्रस्तुति पर उनके बुद्धि चातुर्य की छाप नजर आई। उनके व डॉ गोखरू के बीच संक्षिप्त साक्षात्कार बनाम संवाद न केवल रोचक रहा, अपितु बहुत जानकारीवर्धक था।


शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

शख्सियत: श्री सूर्य प्रकाश गांधी

अजमेर में जागरूक लोगों की अग्रिम पंक्ति पर मौजूद जाने-माने वकील श्री सूर्य प्रकाश गांधी मधुर व्यवहार के कारण लोकप्रिय हैं। लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे नगर के सजग व सक्रिय बुद्धिजीवियों के समूह बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं। मंद मुस्कान उनके चेहरे पर सदैव चमकती रहती है। सहज व सरल व्यक्तित्व के धनी श्री गांधी का दिल नगर की धडकन के साथ धडकता है। नगर हित के हर कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति रहती है। 

विशेष रूप से उपभोक्ता मामलों के जानकार श्री गांधी का जन्म श्री नगराज गांधी के घर 15 जुलाई 1957 को हुआ। उन्होंने एमए, एलएलबी, डीएलएल व बीजेएमसी की डिग्री हासिल की है। उपभोक्ता संरक्षण के अनेक मामलों में उन्होंने विजयश्री हासिल की है। एक लंबे अरसे से सक्रिय पत्रकारिता से जुडे हुए हैं। अजयमेरू प्रेस क्लब की गतिविधियों में बढ चढ कर हिस्सा लेते हैं। फाल्गुन महोत्सव में भी उनकी अहम भूमिका रहती है।

अजमेर के गौरव: श्री सत्यकिशोर सक्सैना

अजमेर के प्रतिष्ठित वरिष्ठ वकील एवं पूर्व जिला प्रमुख श्री सत्यकिशोर सक्सैना को भारतीय ज्येष्ठ अधिवक्ता संगम प्रन्यास एवं राजस्थान विश्वविद्यालय के विधि संकाय की ओर से जयपुर में आयोजित एक भव्य समारोह में राष्ट्रीय न्याय नायक सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह में केन्द्रीय विधि मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, चीफ जस्टिस मनिन्दर मोहन श्रीवास्तव, जस्टिस एस चन्द्रशेखर, जस्टिस अवनीश झींगन के साथ-साथ राजस्थान के विधि मंत्री जोगाराम पटेल आदि भी उपस्थित रहे। समारोह के दौरान केन्द्रीय मंत्री और चीफ जस्टिस ने एडवोकेट सक्सेना से न्यायिक सुधारों पर भी चर्चा की।

एडवोकेट सक्सेना को 82 वर्ष के हैं और मौजूदा समय में भी जयपुर और जोधपुर हाइकोर्ट में प्रेक्टिस करते हैं। वे विशेष रूप से पंचायतराज मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। वे जिला कांग्रेस के गिने-चुने ऐसे नेताओं में शुमार हैं, जो कुशल वक्ता हैं और धाराप्रवाह भाषण कला में माहिर हैं। कम ही लोगों को यह जानकारी होगी कि अजमेर की महत्वाकांक्षी बीसलपुर परियोजना में उनकी भी अहम भूमिका रही है। संजीदा व्यक्तित्व के धनी श्री सक्सैना भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शिवचरण माथुर के करीबियों में रहे। मधुर व्यवहार के कारण उनकी खासी लोकप्रियता है।


बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

कहानी सैल्फी पॉइंट आई लव अजमेर की

रीजनल कॉलेज के सामने आनासागर चौपाटी पर बने आई लव अजमेर नामक सैल्फी पॉइंट का लोग बहुत उपयोग कर रहे हैं। जाहिर तौर पर यह कौतुहल होता है कि इसका निर्माण किसने करवाया है। यह अजमेर के सुपरिचित व्यवसायी व सिंधी सोशल ग्रुप अजमेराइट्स के अध्यक्ष नरेश बागानी के सपने की परिणति है, जिसे साकार होने के लिए प्रसव पीडा से गुजरना पडा।

कोई सात साल पहले एक बार नरेश बागानी ने मुझे बताया था कि वे अजमेर को कोई अनूठी सौगात देना चाहते हैं। वे इस दिशा में लगे रहे। अजमेर विकास प्राधिकरण व अजमेर नगर निगम के चक्कर लगाते थे, मगर कभी कानूनी पेचीदगियों और कभी आचार संहिता के कारण मामला लंबित बना रहा। जून, 2019 में वे मिले तो जानकारी दी कि अभी तक स्वीकृति नहीं मिली है। कुछ कीजिए। इस पर मैं और पत्रकार व महिला समाजसेवी डॉ राशिका महर्षि उन्हें अजयमेरू प्रेस क्लब के अध्यक्ष सुरेश कासलीवाल के पास ले गये और स्मार्ट सिटी होने जा रहे अजमेर में इस सैल्फी पॉइंट की जरूरत पर चर्चा की। कासलीवाल को प्रस्ताव पसंद आया और उन्होंने जिला कलेक्टर विश्वमोहन शर्मा से बात की। शर्मा को भी बात जंची और उन्होंने प्रस्ताव बना कर भेजने को कहा। बागानी ने अपनी संस्था सिंधी सोशल ग्रुप अजमेराइट्स के बैनर पर आवेदन किया, जिसे शर्मा ने जरूरी औपचाकिताओं के बाद मंजूरी दी, जिसमें प्राधिकरण के आयुक्त जैन का भी सहयोग रहा। औपचारिकताओं को पूरा करवाने में थोडी मषक्कत हुई। मैने भी कासलीवाल, बागानी व राशिका के साथ दो-तीन बार प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ मौके का दौरा किया। सभी के सुझावों का समाहित करते हुए सैल्फी पॉइंट की तैयारियां अंतिम चरण में थी कि बागानी की मुलाकात समाजसेवी हरीश गिदवानी से हुई और उन्होंने अपनी ओर से भी आर्थिक सहयोग का प्रस्ताव रखा। बागानी तुरंत राजी हो गए। दोनों ने दिन रात एक कर यह सौगात तैयार करवाई, जो अब आनासागर चौपाटी पर शोभा बढ़ा रही है।

बागानी ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने इस प्रकार का सैल्फी पॉइंट अमेरिका में देखा था। वहीं से उन्हें प्रेरणा मिली। उसके बाद दुबई, मुंबई व मद्रास में भी ऐसे सेल्फी पॉइंट देखे। अब अपना सपना पूरा होने पर वे बेहद खुश हैं। बेशक यह निर्जीव पत्थर से बना है, मगर लोकार्पण के दौरान उमड़ी भीड़ ने इसे सजीव बना दिया। अब यह चौपाटी पर आने वाले दर्शनार्थियों के आकर्षण का केन्द्र है।

बहरहाल, यह सीखने को मिला कि कोई काम कितना भी अच्छा क्यों न हो, कानूनी पेच व अफसरशाही के भंवर से उसे गुजरना ही होता है। और अगर ठीक अप्रोच न हो तो उसका पूरा होना कठिन होता है।

दिलचस्प है कोसिनोक जैन का नामकरण

कोसिनोक जैन अपरिचित नाम नहीं है। वे राशि एंटरटेन्मेंट कंपनी का संचालन करते हैं। ईवेंट मैनेजमेंट के क्षेत्र में खास पहचान रखते हैं। दैनिक नवज्योति से जुडे हुए हैं। बेहतरीन प्रेस फोटोग्राफी करते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में खास उपलब्धियों के लिए सम्मानित हो चुके हैं। सुपरिचित व हरफनमौला शख्सियत स्वर्गीय श्री पी कुमार जैन के सुपुत्र हैं, जो गार्डन सुपरवाइजर थे। उनके प्रयासों से सुभाष बाग में आरंभ फ्लावर शो पूरे राजस्थान में मशहूर था। उन्होंने प्रेस फोटोग्राफर के रूप में भी कार्य किया। यह भी कहा जा सकता है कि स्वर्गीय जैन ने ही अजमेर में प्रेस फोटोग्राफी की शुरुआत की। उन्होंने अपने विवाह की पचासवीं सालगिरह पर बाकायदा नए सिरे से विवाह किया, फेरे लिए, बारात निकाली। यह परिवार आरंभ से एडवांस रहा है। यह परिवार जन्मपत्री, वास्तु, टोना टोटका, गंडा ताबीज पर विश्वास नहीं करता। संस्कार को ही सबसे ज्यादा महत्व देता है। कोसिनोक जैन सबसे ज्यादा अगर किसी को मानते हैं, तो वह है आदिनाथ भगवान महावीर स्वामी और उसके बाद अपने माता पिता को। उन्होंने जो कुछ भी तरक्की की है, उसका श्रेय माता-पिता के आशीर्वाद को देते हैं। पिताश्री के प्रति श्रद्धा इसी बात से परिलक्षित होता है कि उन्होंने जब 2022 में बी के कौल में नया घर बनाया, उसका नाम कुमार कुटीर रखा। जब पंडित जी नांगल के लिए नाम लेकर आए तो बोले कि आपकी नाम राशि को देखते हुए अमुक नाम रखा जाएगा, इस पर कोसिनोक ने कहा कि जब पैसा मेरा, मेहनत मेरी, घर मेरा, सब कुछ मेरा तो मेरे घर का नाम आप कैसे रख सकते हैं। मेरे पिताजी ने जो नाम रखा था, कुमार कुटीर, उससे बडा पवित्र, उससे बडा नाम और कौन सा हो सकता है। घर के मेन गेट पर नाम लिखे हैं, श्रीमती सुशीला देवी, कोसिनोक जैन, फिर तृप्ती, रौनक व शिवांगी। उनका मानना है कि बेटी का भी तो हक है। ज्ञातव्य है कि गंज में कांजी हाउस के पास पुराने मकान का नाम श्री पी कुमार जैन ने अपने नाम पर कुमार कुटीर रखा था। 

कोसिनोक जैन के नाम को लेकर कौतुहल होता है कि इसका अर्थ क्या है? नाम अटपटा है। वस्तुतः उनके नाम की रचना उनकी सहोदर कामिनी, संगीता, नीलिमा व केनेडी के पहले अक्षर को मिला कर की गई है।

उन्होंने 2005 में एयर कार्टून नाम से कंपनी आरंभ की। कार्टून नब्बे हजार के थे, उसमें चार हजार कम पड रहे थे। इसके लिए अपनी पत्नी से चार हजार उधार लिए, जो अब तक नहीं लौटाए हैं।

नामकरण की अनोखी विधि उनकी कंपनी राशि एंटरटन्मेंट में भी अपनाई गई है। पूर्व में कंपनी का आरंभ उनके बडे भाई दिल्ली निवासी राजीव जैन ने की थी। राजीव और शिखा के नाम से कंपनी बनाई थी। फिर अजमेर में इसका आरंभ हुआ। बेटे रौनक व बेटी शिवांगी नामों के पहले अक्षरों को मिला कर कंपनी का नाम रखा राशि एंटरटेन्मेंट।

वे अपने पिताश्री के कदमों का अनुसरण करते हुए समाजसेवा के कार्य में भी जुटे हुए हैं। उनकी ही तरह हरफनमौला हैं व अपनी गतिविधियों से चर्चा में रहते हैं। फागुन महोत्सव हो या शहर की कोई प्रमुख गतिविधि, अगली पंक्ति में नजर आते हैं। यदि यह कहा जाए कि वे अजमेर में गिनती के जिंदादिल व जागरूक लोगों में शुमार हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।


सोमवार, 7 अक्तूबर 2024

धर्मेन्द्र राठौड व सुरेश टाक की मुलाकात के मायने?

गत दिवस किशनगढ़ स्थित होटल स्काई व्यू में आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड की पूर्व विधायक सुरेश टांक व वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रदीप अग्रवाल से अनौचारिक मुलाकात हुई। बकौल राठौड इसमें राजनीतिक चर्चा हुई। उन्होंने इसकी फोटो फेसबुक पर साझा की है। अब लोग लगे हैं कयास लगाने में। आखिर क्या चर्चा हुई होगी? राठौड व टाक में एक साम्य है। राठौड पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खासमखास हैं और टाक ने अपने कार्यकाल में गहलोत को समर्थन देकर किशनगढ की भरपूर विकास करवाया। ज्ञातव्य है कि विधानसभा चुनाव 2023 में किशनगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी रहे सांसद भागीरथ चौधरी की हार का सबसे बड़ा कारण रहे पूर्व विधायक सुरेश टाक को लोकसभा चुनाव से पहले फिर से भाजपा में शामिल कर लिया गया, मगर चौधरी से उनकी नाइत्तफाकी के चर्चे हैं। हालांकि टाक मूलतः भाजपा विचारधारा के हैं, मगर अब भाजपा में उनकी स्थिति बहुत सुविधाजनक नहीं है। ऐसे में उनकी राठौड से मुलाकात के अर्थ निकाले जाने लगे हैं।

 

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

भूल ही गए महात्मा गांधी स्मृति वन उद्यान को

हम महान लोगों के स्मारक इसलिए बनाते हैं कि उनसे प्रेरणा ले सकें। भावी पीढी को भी ख्याल रहे कि अमुक महान हस्ती का समाज को क्या योगदान था। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत हरिभाउ उपाध्याय नगर विस्तार में महाराजा दाहरसेन स्मारक के पास महात्मा गांधी स्मृति वन उद्यान बनाया गया है। उसका लोकार्पण हो चुका है। उम्मीद थी कि इस बार महात्मा गांधी जयंती पर वहां बडा जलसा होगा, बडी श्रद्धांजलि सभा होगी। मगर अफसोस न राजनीतिक दलों को, न समाजसेवी व स्वयंसेवी संगठनों ने इसकी सुध नहीं ली। इस सरकारी स्थल का ख्याल प्रशासन को भी नहीं रहा। स्मारक में स्थापित महात्मा गांधी की 15 फीट की विशाल प्रतिमा एक फूलमाला तक को तरस गई। अगर हम स्मारकों की खैर खबर नहीं लेते तो बेकार है, उनकी स्थापना करना। 

ज्ञातव्य है कि बापू के जीवन, संघर्ष और मोहन से महात्मा तक के सफर को जीवंत करने के लिए 23 हजार स्कवायर फीट क्षेत्र में 7.7 करोड़ की लागत से इसका निर्माण किया गया है। उद्यान को उंचाई से देखने पर गांधी के आकार में नजर आता है। यहां स्थित प्राकृतिक संरचनाओं को नहीं छेड़ा गया है। स्मृति उद्यान में सेल्फी प्वाइंट विकसित किए गए हैं।

मार्केटिंग के बेताज बादशाह थे वासुदेव वाधवानी

सोनिया और करिश्मा प्रदर्शनी की बदोलत लोकप्रिय मार्केटिंग गुरू पैंतालीस साल के स्वर्गीय श्री वासुदेव वाधवानी ने मात्र पच्चीस साल ही उम्र में ही दिखा दिया था कि उनमें मार्केटिंग का बेजोड़ गुर है। उस जमाने में न तो लोग मार्केटिंग के बारे में समझते थे और न ही मीडिया मार्केटिंग के संबंध में। शहर का सबसे बड़ा अखबार दैनिक नवज्योति हुआ करता था। दूसरे स्थान पर दैनिक न्याय व राजस्थान पत्रिका की गिनती होती थी। विज्ञापन के लिहाज से इन अखबारों में मात्र एक-एक व्यक्ति रखा हुआ होता था। वही शहरभर के चुनिंदा तीन-चार सौ विज्ञापनदाताओं से विशेष अवसरों पर विज्ञापन लिया करते थे। विज्ञापन की दुनिया क्या होती है और विज्ञापन के क्या लाभ होते हैं, इसके बारे में व्यवसाइयों को कोई खास जानकारी नहीं होती थी। जहां तक प्रॉडक्ट्स की मार्केटिंग का सवाल है, गिनती की कंपनियों के एसआर जरूर हुआ करते थे, मगर योजनाबद्ध तरीके से मार्केटिंग कैसे की जाती है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं थी। स्वर्गीय श्री वाधवानी पहले शख्स थे, जिन्होंने इंडियन मार्केटिंग की स्थापना की और शहर के व्यपारियों को पहली बार दिखाया कि अपने प्रोडक्ट का मार्केटिंग सर्वे कैसे किया जाता है और उसके क्या लाभ हैं? उन्होंने न केवल सर्वे की परंपरा को आरंभ किया अपितु हॉर्डिंग्स, फ्लैक्स व बैनर के जरिए विज्ञापन करने से भी साक्षात्कार कराया। कदाचित कुछ इक्का दुक्का और युवक भी इस क्षेत्र में आए होंगे, मगर स्वर्गीय वाधवानी उन सबमें अव्वल थे और जल्द ही उन्होंने अपने कारोबार का विस्तार कर लिया। साथ ही मीडिया मार्केटिंग से भी शहर वासियों को रूबरू करवाया। दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका तो बहुत बाद में आए, उससे पहले ही उन्होंने मीडिया मार्केटिंग की शुरुआत कर दी। मुझे अच्छी तरह ख्याल है कि दैनिक भास्कर ने अजमेर आने पर सबसे पहले उनसे ही विज्ञापनों की मार्केटिंग करवाई। बाद में तो भास्कर व पत्रिका ने बाकायदा मार्केटिंग हैड व उनके नीचे स्टाफ रखना आरंभ किया और शहर में तरीके से मार्केटिंग होने लगी। मगर निजी क्षेत्र में मीडिया मार्केटिंग के वे सदैव बेताज बादशाह रहे।

सरे राह ग्रुप के विज्ञापन प्रभारी व अजमेर मल्टी मीडिया के प्रोपराइटर स्वर्गीय वाधवानी दैनिक भास्कर अजमेर से अधिकृत विज्ञापन एजेंसी संचालक के रूप में भी जुड़े हुए थे। उन्होंने अनेक युवक-युवतियों को मार्केटिंग सिखाई और रोजगार भी उपलब्ध करवाया।

आमजन में उनकी पहचान सोनिया व करिश्मा प्रदर्शनी से हुई, जिसकी परंपरा शुरू करने का श्रेय भी उनके ही खाते में जाता है। एक ही छत के नीचे जरूरत का हर सामान, वह भी सस्ते में कैसे मिलता है, इससे साक्षात्कार करवाने की उपलब्धि उनके ही खाते में जाती है। एक अर्थ में उन्होंने शहर के व्यवसाइयों को यह सिखाया कि प्रदर्शनी के जरिए अपना माल कैसे बेहतर ढंग से बेचा जा सकता है।


बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

डॉ बाहेती व स्वर्गीय श्री दशोरा में थी गहरी दोस्ती

आज जब एक ही पार्टी के नेता एक दूसरे को निपटाने में लगे हुए हैं, यकायक वह दौर ख्याल में आ जाता है, जब भिन्न पार्टी के नेता भी आपस में सदाशयता रखते थे। दलगत राजनीति बेशक अलग हो, मगर व्यक्तिगत दुश्मनी का भाव नहीं रखा करते थे, उलटे दोस्ताना व्यवहार हुआ करता था। आज कम लोगों को ही यह जानकारी होगी कि गांधीवादी माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्थानीय प्रतिबिंब पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती जब शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे और तत्कालीन शहर जिला भाजपा अध्यक्ष स्वर्गीय श्री पूर्णाशंकर दशोरा के बीच गहरी दोस्ती थी। आपस में खूब पटती थी। यह कोई गोपनीय तथ्य नहीं, तब बाकायदा जनचर्चा का विषय था। दोनों अपनी-अपनी पार्टी की विचारधारा व कार्यक्रमों के प्रति एक निष्ठ रहे, फिर भी दोस्ती कायम रही। न तो कोई निजी विवाद हुआ और न ही सार्वजनिक। वस्तुतः तब राजनीति का मिजाज कुछ और हुआ करता था। चूंकि बाहेती व दशोरा सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहे, इस कारण उनमें राजनीति से जुड़ी आवश्यक बुराइयां गिनाई जा सकती हैं, मगर निजी जिंदगी दोनों की कितनी सरल, सहज, सौम्य रही, यह सब जानते हैं। खबर के मामले में भी दशोरा जी व डॉ. बाहेती में एक साम्य रहा। आमतौर पर राजनीतिज्ञ, पत्रकारों से इस मोह में रिश्ता रखते हैं कि उन्हें प्रचार का ज्यादा अवसर मिलेगा, लेकिन दशोरा जी ने कभी संबंधों का इसके लिए दुरुपयोग नहीं किया। ठीक ऐसा ही है डॉ. बाहेती में, वे भी खबर या नाम के लिए बहुत ज्यादा फांसी नहीं खाते। बहुत जरूरी हो तो ही खबर जारी करते हैं।

कुछ इसी प्रकार की मित्रता तत्कालीन नगर सुधार न्यास अध्यक्ष स्वर्गीय श्री माणकचंद सोगानी व वरिष्ठ भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत के बीच थी। सोगानी ने लखावत के आग्रह पर चारण साहित्य शोध संस्थान के लिए न्यूनतम दर पर भूमि का आबंटन किया था।