बुधवार, 29 दिसंबर 2010

ठगे से देखते रह गए कांग्रेसी आंदोलनकारी

कर्नल किरोड़ सिंह बैंसला के निर्देशन पर अजमेर में गुर्जर आंदोलन का संचालन कर रहे ओमप्रकाश भढ़ाणा ने सोमवार को ऐसा खेल खेला कि समाज के नाते बमुश्किल साथ आए कांग्रेसी नेता ठगे से देखते रह गए और आंदोलन उनके हाथ से निकल गया। आंदोलन में साथ देने के कारण संगठन में भी बुरे बने और आंदोलन हाथ से निकलने के कारण समाज के सामने भी ठिठोली का पात्र बन गए।
हालांकि शुरू से ओम प्रकाश भढ़ाणा ने पूरी ताकत झोंक रखी थी, लेकिन आंदोलन जोर नहीं पकड़ पा रहा था। तभी राजनीतिक जानकार यह समझने लगे थे कि एक ओर जहां पूरा प्रदेश गुर्जर आंदोलन से गरमाया हुआ है, वहीं अजमेर में यह उतना जोर नहीं पकड़ पा रहा, जितना कि यहां गुर्जरों की बहुलता के मद्देनजर होना चाहिए था। इसकी एक मात्र वजह ये भी कि किसी भी राजनीतिक दल से प्रतिबद्धता न रखने वाले गुर्जर नेताओं के लिए तो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन अधिसंख्य कांग्रेसी गुर्जर नेताओं के लिए इधर कुआं उधर खाई वाली स्थिति बनी हुई थी। कांग्रेसियों को डर था कि अगर आंदोलन में साथ दिया तो एक तो सीधे अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट से बुरे बनेंगे और कांग्रेस संगठन में भी हेय नजर से देखे जाएंगे। मगर साथ ही दूसरी ओर खतरा ये था कि आज यदि समाज का साथ नहीं देते तो जनाधार ही खिसक जाएगा। आगे राजनीति क्या खाक करेंगे। इसी उधेड़बुन में आखिरकार उन्होंने समाज को तरजीह देते हुए आंदोलन में खुल कर साथ देने का निश्चय किया। दिलचस्प बात ये रही कि इसके लिए गठित कोर कमेटी के सदर सचिन के ही खास व श्रीनगर प्रधान रामनारायण गुर्जर बनाए गए और कमेटी के अधिसंख्य नेता भी कांग्रेस ही थे। कांग्रेस के लिए जैसे ही यह अनहोनी हुई, मीडिया वालों ने शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल को पकड़ लिया। उनके पास कहने को क्या था, सच सबको दिखाई दे रहा था कि कांग्रेसी ही सरकार के खिलाफ चल रहे आंदोलन में साथ दे रहे हैं, मगर फिर भी उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए यही कहा कि आंदोलन में शरीक होने वाले कांग्रेसियों ने आश्वासन दिया है कि वे गांधीवादी तरीके से आंदोलन में शामिल हो रहे हैं।
मजेदार बात ये रही कि अजमेर बंद के लिए भी भढ़ाणा ने बड़ी चतुराई से इन्हीं कांग्रेसियों का सहारा लिया। व्यापारिक महासंघ के अध्यक्ष कांग्रेसी पार्षद मोहनलाल शर्मा और अन्य व्यापारियों को मनाने के लिए इन्हीं को आगे किया। कांग्रेसियों की लाज रखने के लिए शर्मा ने ही हामी भर दी कि एक दिन के शांतिपूर्ण बंद से क्या फर्क पड़ जाएगा। कुल मिला कर यही लग रहा था कि आंदोलन पर कांग्रेसियों की पकड़ बनी रहेगी और सब कुछ शांति से हो जाएगा, मगर हुआ उलटा ही। वैसा ही जैसा इससे पहले एक बार हो चुका है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन अचानक उग्र हो गया और गुर्जर कार्यकर्ताओं ने रोडवेज बस स्टैंड के सामने इतना हंगामा मचाया कि कांग्रेस नेता एडवोकेट हरिसिंह गुर्जर समझाते ही रह गए थे। सोमवार को भी जैसे ही भीड़ जमा हुई, वह कांग्रेसी नेताओं के कब्जे से बाहर हो गई। ऐसे में कांग्रेसी समझ गए कि मामला कुछ और हो गया है और अपने आपको इससे अलग रखना ही ठीक है। वे तो इधर-उधर हो गए और उग्र कार्यकर्ताओं ने कमान अपने हाथ में ले ली। जम कर हंगामा हुआ। नया बाजार में तो एक कार का शीशा तोड़़ दिए जाने पर हालात बेकाबू हो गए और टकराव होते-होते बचा। इस सब के बीच बार अध्यक्ष किशन गुर्जर ने भढ़ाणा से भी एक कदम आगे बढ़ते हुए ऐसा खेल खेला कि सब देखते ही रह गए। वे उग्र कार्यकर्ताओं को लेकर मांगलियावास पहुंच गए और अजमेर-अहमदाबाद मार्ग जाम कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने फोन पर कर्नल बैंसला से बात भी की और आगे के निर्देश मांगते हुए जता दिया कि कांग्रेसियों को आंदोलन से दूर छिटक दिया गया है। इस पूरे प्रकरण में मजेदार बात ये रही कि भढ़ाणा और किशन गुर्जर ने कांग्रेसी नेताओं को हवा तक न लगने दी कि वे अब कौन सा कदम उठाने जा रहे हैं। जाहिर है कि अब कांग्रेसी नेताओं के पास अपने संगठन के सामने केवल यही कहने को रह गया है कि उन्होंने तो बहुत कोशिश की, मगर उग्र कार्यकर्ता बस में ही नहीं रहे। ठीक वैसे ही जैसे बाबरी मस्जिद को घेरने पर उग्र कार्यकर्ताओं ने उसे शहीद कर दिया और भाजपा नेताओं को यही दलील देना पड़ी कि सब कुछ अचानक हो गया। कांग्रेसी नेताओं को अभी तो सचिन को भी जवाब देना होगा कि आखिर यह सब कैसे हो गया।
अजमेर में आंदोलन ने जो रुख अख्तियार किया, वह सचिन के लिए भी चिंताजनक तो है ही। वे प्रदेशभर के आंदोलन से निपटने की मंत्रणाओं में शामिल हैं और दूसरी ओर उनके गृह जिले में ही हालत उनके कब्जे में नहीं है।