शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

दिव्या को कद के अनुरूप पद न मिला तो छोड़ दी आरपीएससी


हालांकि राजस्थान लोक सेवा आयोग की सदस्य रहीं श्रीमती दिव्या सिंह के पति विश्वेन्द्र सिंह खंडन कर रहे हैं, मगर राजनीति के जानकारों का मानना है कि दिव्या सिंह ने मौका पडऩे पर आयोग का अध्यक्ष नहीं बनाए जाने से नाराज हो कर ही इस्तीफा दे दिया। ज्ञातव्य है कि उन्होंने गत 30 अक्टूबर को अपना इस्तीफा राज्यपाल व आयोग अध्यक्ष को भिजवा दिया था और 2 नवंबर को राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने उसे स्वीकार कर कार्मिक विभाग को भिजवा दिया।
उल्लेखनीय है कि इस्तीफा देते वक्त दिव्या सिंह ने इसकी वजह निजी कारण बताई थी, मगर माना जाता है कि वे आयोग का अध्यक्ष न बनाए जाने से खफा थीं। खफा होने की वजह ये मानी जा रही है कि वे अपने आपको उनके साथ ही आयोग के सदस्य बने मौजूदा अध्यक्ष हबीब खां गौरान से कहीं अधिक योग्य व प्रभावशाली मानती हैं। राजनीतिक लिहाज से हैं भी। दोनों की नियुक्ति नवंबर, 2011 को की गई थी। तब उन्हें उम्मीद थी कि जैसे ही प्रो. बी. एल.शर्मा सेवानिवृत्त होंगे, उनको अध्यक्ष बनाया जाएगा। इसके पीछे आधार भी था। वो यह कि उन्हें वसुंधरा राजे के कार्यकाल में जाते-जाते आयोग के दो टुकड़े करते हुए जिस राजस्थान अधीनस्थ कर्मचारी सेवा बोर्ड का गठन किया था, उसका उन्हें अध्यक्ष बनाया गया था। अर्थात वे एक बार आयोग अध्यक्ष के समतुल्य पद बैठ चुकी थीं। बाद में अशोक गहलोत सरकार ने उस बोर्ड को भंग कर दिया, मगर उन्हें आयोग में सदस्य के रूप में नियुक्ति दी गई। उन्हें ख्याल था कि अगस्त, 2012 में प्रो. बी. एल. शर्मा सेवानिवृत्त होंगे, तब वे आयोग अध्यक्ष पद के लिए कोशिश करेंगी। उन्होंने कोशिश की भी बताई, मगर गहलोत सरकार ने जातीय समीकरण के तहत गोरान को प्राथमिकता दे दी, जो कि दिव्या सिंह को नागवार गुजरी। स्वाभाविक सी बात है कि जो शख्स एक बार आयोग के अध्यक्ष के बराबर का टैग हासिल कर चुका हो, भला वह उससे वंचित होने को कैसे स्वीकार कर सकता है। वह भी अपने साथ नियुक्त हुए सदस्य गोरान को प्राथमिकता देते हुए। बताया जाता है कि नाराजगी की वजह से इस्तीफा देने वाली वे दूसरी सदस्य हैं। इससे पहले आयोग सदस्य नाथूलाल जैन की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए जब उनके जूनियर याकूब खान को अध्यक्ष बनाया गया तो जैन ने तत्काल ही आयोग की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
असल में उनकी रुचि शुरू से आयोग का अध्यक्ष बनने में थी। इस कारण सदस्य रहते हुए वे आयोग में कम ही आईं। जानकारी के मुताबिक वे एक साल के कार्यकाल में मात्र तीन बार ही आयोग आईं। पहली बार वे 30 नवंबर 2011 को सदस्य का कार्यग्रहण करने के लिए आयोग पहुंचीं। इसके बाद 31 जनवरी 2012 को आयोग सदस्य एच एल मीणा की सेवानिवृत्ति पर विदाई समारोह में शामिल हुईं और एक बार आयोग में साक्षात्कार बोर्ड की बैठक के लिए आयोग पहुंचीं।
बहरहाल, उनका इस्तीफा मंजूर किया जा चुका है और उनके पति विश्वेन्द्र सिंह कह रहे हैं कि उन्होंने अध्यक्ष न बनाए जाने की वजह से सदस्य पद नहीं छोड़ा है, मगर राजनीति के जानकार यही मान रहे हैं कि यह उनका कोई नया राजनीतिक समीकरण है। आगामी चुनाव के मद्देनजर वे भरतपुर सहित पूर्वी राजस्थान में नई रणनीति बना रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर