रविवार, 8 अप्रैल 2012

कमजोर जरदारी के चक्कर में बाकोलिया की कमजोरी उजागर

अजमेर शहर के प्रथम नागरिक मेयर कमल बाकोलिया की कमजोरी एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई है। किसी अखबार ने लिखा है कि उन्होंने प्रथम नागरिक के नाते पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का हैलीपेड पर स्वागत करने के लिए पास मांगा पर मिला नहीं तो किसी ने लिखा कि न तो प्रशासन ने उन्हें पास ऑफर किया और न ही उन्होंने इस ओर ध्यान दिया। अजमेर के एक जागरूक नागरिक ए ए खान ने तो फेसबुक पर लिख डाला कि प्रशासन के सरकारी अफसरों के सामने अजमेर के जनप्रतिनिधि कितने बेबस हैं इसकी ताजा मिसाल यह है की शहर के प्रथम नागरिक और शहर के मेयर कमल बाकोलिया को ही राष्ट्रपति जरदारी से मिलने का पास नहीं दे रहे। प्रशासनिक और पुलिस अफसर इसमें ही खुश हैं कि देखो हमने शहर के प्रथम नागरिक को भी नहीं अडऩे दिया। यह कोई आज की बात नहीं, जब भी कोई अतिविशिष्ट व्यक्ति अजमेर आता है, प्रशासन हमेशा जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसा ही रवैया रखता है और जनप्रतिनिधि भी ऐसे ही रवैये से खुश हैं। खुद बाकोलिया की मानें तो उनका कहना है कि वे अजमेर में हैं नहीं तो पास मांगने या न मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता।
वैसे एक बात तो है। नगर के प्रथम नागरिक होने के नाते प्रशासन को खुद की उन्हें स्वागत करने के लिए पास ओफर करना चाहिए था। अगर प्रशासन भूल गया तो बाकोलिया को मांगना चाहिए था। मगर अफसोस कि दोनों ओर से पहल नहीं हुई। इसी कारण बाकोलिया फोकट में ही चर्चा में आ गए। यह बात दीगर है कि वे बकौल उनके अजमेर से बाहर हैं और शाम को लौटेंगे, मगर शनिवार को जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने यही कहा था कि प्रशासन की ओर से कोई प्रस्ताव ही नहीं आया। इससे साफ जाहिर है कि उन्हें अपने पद के कद का भान ही नहीं है। चर्चा यही है कि इसी जगह उनके परम मित्र स्वर्गीय वीर कुमार या फिर धर्मेन्द्र गहलोत होते तो उनको मांगने की जरूरत ही नहीं होती। खुद प्रशासन ही आगे बढ़ कर उनसे हैलीपेड पर स्वागत करने का आग्रह करता। प्रशासन भलीभांति जानता था कि उन्हें नजरअंदाज करने का परिणाम क्या होता है? एक बार का वाकया बताया जाता है कि वीर कुमार किसी वीवीआईपी के स्वागत के लिए हैलीपेड पर थे और तत्कालीन जिला कलेक्टर उनसे आगे खड़े हो गए, इस पर उन्होंने जिला कलेक्टर को झिड़क दिया कि मिस्टर कलेक्टर प्रोटोकोल के तहत वे सबसे आगे खड़े होंगे। कलेक्टर को अपनी गलती का अहसास हुआ ओर वे तुरंत पीछे हो गए।
बहरहाल, बात बाकोलिया की चल रही है। लगता यही है कि उन्होंने प्रशासन के पहल न करने पर खुद ही मन मसोस लिया होगा। या फिर मांगने की बात निचले स्तर पर की होगी और लगा होगा कि कलेक्टर कोई न कोई बहाना बनाएंगी, लिहाजा चुपचाप बैठ गए। इससे तो अपने भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ही अच्छे। उन्हें तो पता था कि पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों के धर्मांतरण के मुद्दे पर जरदारी से मिलने की इजाजत नहीं मिलेगी, फिर भी मांग तो रख ही दी। कम से कम अखबारों में तो चर्चा हो गई कि उन्हें पाकिस्तान के हिंदुओं की चिंता है। देवनानी ही क्यों, पाक जेल में बंद सरबजीत की बहन व बेटी ने भी जरदारी से मिलने की इजाजत मांगी। वे भी जानती थीं कि शायद ही इजाजत मिले, मगर कम से दबाव तो बनेगा।
खैर, अब जब कि बाकोलिया चर्चा में आ गए हैं तो उनके पास एक ही जवाब बचा था कि यह कह दें कि वे अजमेर में हैं नहीं। अब अजमेर में ही नहीं हैं तो बात ही खतम हो गई। वैसे अगर वे थोड़ी सी भी मर्दानगी दिखाते तो उन्हें झक मार कर प्रशासन को पास देना पड़ता। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जरदारी की यात्रा निजी है या सरकारी। अब जबकि उन्होंने मर्दानगी नहीं दिखाई है तो उनकी कमजोरी चर्चा का विषय बन गई है। अपुन तो कहते हैं, इसमें कोई खास बात नहीं है। बाकोलिया जी, आप मन छोटा न कीजिए। आप तो मेयर ही हैं, जरदारी तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति होते हुए भी कमजोर माने जाते हैं, क्योंकि पाकिस्तान में या तो सेना की चलती है या फिर आतंकवादी संगठनों की। उनकी छोडिय़े, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर तो कमजोर होने का ठप्पा ही चस्पा कर दिया गया है।
-तेजवानी गिरधर
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