गुरुवार, 24 जुलाई 2014

हबीब को हटाना मात्र कोई उपाय नहीं

प्रश्रपत्र लीक होने, प्रश्र पत्रों में गड़बडिय़ां पाए जाने आदि जैसी गंभीर घटनाओं के चलते रद्द हुई परीक्षाओं की वजह से प्रदेश का युवा वर्ग तो परेशान ही है, सरकार भी भारी दबाव में है। हर ओर से आरपीएससी चेयरमैन हबीब खान गौरान को हटाए जाने की मांग उठ रही है। मामले ने राजनीतिक रूप भी ले लिया है। मगर सवाल ये है कि क्या केवल गौरान को हटाए जाने मात्र से समस्या का हल हो जाएगा? क्या केवल मुखिया को अपदस्त कर देने से ही आयोग की व्यवस्था सुधर जाएगी और प्रश्न पत्र लीक नहीं होंगे?
वस्तुत: जब भी इस प्रकार के संगीन मामले सामने आते हैं, वे राजनीति के शिकंजे में आ जाते हैं। मामले की जांच का मुद्दा तो उठता ही है, मगर सारा ध्यान संस्था के मुखिया को हटाने पर केन्द्रित हो जाता है। अगर यह मांग मान ली जाती है तो मामला ठंडा हो जाता है और उसके बाद जांचों का क्या होता है, उनका हश्र क्या होता है, सब जानते हैं। यानि कि गुस्सा संस्था प्रधान को हटाने तक ही सीमित रहता है और बाद में वही घोड़े और वही मैदान। आरपीएससी के मामले में ऐसा ही होता नजर आता है। जो विधायक व नेता पहले चुप बैठे थे, वे मुखर हो कर गोरान को हटाए जाने की मांग कर रहे हैं। आरपीएससी में हुई धांधली तो गरमायी हुई है ही, अब गौरान के और प्रकरणों को भी उभारा जा रहा है। विधायकों ने थानों से बंधी व हत्या जैसे मामलों में गौराण पर भी सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
 आपको याद होगा कि अजमेर के तत्कालीन एसपी राजेश मीणा के बंधी वसूली के प्रकरण के दौरान भी गोरान का नाम आया था। उनका जिक्र संबंधित एफआईआर में था। इस रूप में कि राजेश मीणा और एएसपी लोकेश मीणा के लिए थानों से बंधी जुटाने वाले रामदेव ठठेरा 2 जनवरी 2013 को कपड़े की थैली लेकर लोकेश मीणा के निवास से गौरान के बंगले में गया था। वह 40-50 मिनट तक बंगले में रहा और इसके बाद खाली हाथ लोकेश मीणा के निवास पर लौट आया। लेकिन आरोप पत्र में उनका नाम नहीं था। इस बारे में एसीबी ने उनको क्लीन चिट दे दी, मगर ये खुलासा नहीं किया कि ठठेरा उनके निवास पर क्यों गया था। उसने ये भी साफ नहीं किया कि अगर गौरान का बंधी मामले से कोई लेना देना नहीं था तो फिर उनका नाम एफआईआर में क्यों दर्ज किया गया। उस वक्त न तो सत्तारूढ़ कांग्रेस ने और न ही विपक्ष में बैठे भाजपा विधायकों ने इस मामले को उठाया। अब जबकि आरपीएससी अपने ही अंदरुनी मामले में फंस गई तो गौरान के उस प्रकरण को भी उठाया जा रहा है। खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल ने आरोप लगाया कि जनवरी 2013 में बंधी मामले में गौराण की भूमिका की जांच क्यों नहीं हुई, जबकि एफआईआर में उनका नाम है। विधायकों ने उनके कुछ और मामले भी विधानसभा में उठाए हैं। यानि कि अब मामला पूरी तरह से गौरान को हटाए जाने पर केन्द्रित हो गया है।
इसमें काई दो राय नहीं कि वर्तमान में आयोग के जो हालात हैं, उससे उसकी पूरी कार्यप्रणाली ही संदेह के घेरे में आ गई है। और उसमें आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत महसूस की जा रही है। मगर सवाल ये है कि आज जो नेता गौरान अथवा आयोग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहे हैं वे आयोग में अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राजनीतिक आधार पर किए जाने नहीं किए जाने का सवाल क्यों नहीं उठाते। सच तो ये है कि गौरान हो या पूर्ववर्ती अध्यक्ष, सभी की नियुक्ति राजनीतिक आधार पर ही की जाती रही है। राजनीतिक आधार पर ही नहीं, बल्कि जातीय तुष्टिकरण तक के लिए। नागौर के मौजूदा भाजपा सांसद सी आर चौधरी को भाजपा सरकार ने जाटों को खुश करने के लिए अध्यक्ष बनाया तो कांग्रेस ने मुस्लिमों की नाराजगी को कम करने के लिए गौरान की नियुक्ति करवा दी। चेयरमैन से लेकर सदस्य तक राजनीतिक दलों के वफादार हैं तो  जाहिर है कि यहां प्राथमिकता प्रतिभा नहीं बल्कि सियासी प्रतिबद्धता है। अगर हालत यह हैं तो आरपीएसी में गड़बडिय़ां और पेपर बिकना और लीक होना कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता। ऐसे में भला कैसे उम्मीद की जा सकती है कि आयोग के कामकाज में निष्पक्षता या पारदर्शिता और परीक्षा कार्य में गोपनीयता बनी रहेगी। यानि कि अगर हमें आयोग के कामकाज में सुधार लाना है तो आयोग में नियुक्ति की प्रक्रिया में परिवर्तन लाना होगा। यदि आरपीएससी के मूल ढांचे में अच्छी नीयत से मूलभूत बदलाव, पेशेवर लोगों की नियुक्ति और सबसे जरूरी यहां के राजनीतिक पर्यावरण का शुद्धिकरण नहीं होगा तो पेपर बिकना रुकेंगे नहीं। प्रतिभावान निराश होते रहेंगे और प्रतिभा दरकिनार होती रहेगी।
-तेजवानी गिरधर