बुधवार, 31 जुलाई 2019

क्या एलिवेटेड रोड पूरा होने तक जारी रहेगा विवाद?

जब से एलिवेटेड रोड बनाने की कवायद आरंभ हुई है, तब से यह विवाद में रहा है। एक बार तो स्थिति ये आ गई कि इसे बनाने के निर्णय को  ही सिरे से नकार दिया गया था। जैसे तैसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इसका काम शुरू हुआ तो इसके तकमीने को लेकर विवाद हो गया है।
आपको याद होगा कि पिछली कांग्रेस सरकार के समय नगर सुधार न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत के कार्यकाल में इसका सर्वे हुआ था। वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और नई सरकार आ गई तो प्रस्ताव व सर्वे ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। उसके बाद तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने सरकार पर दबाव बना कर इसके निर्माण की फाइल को आगे बढ़ाया, मगर तत्कालीन एडीए चेयरमैन शिवशंकर हेड़ा ने तकनीकी पहलु उठाते हुए इसे अव्यावहारिक बताया और फंड को लेकर भी हाथ खड़े कर दिए। खींचतान होती रही। आखिर देवनानी की चली और इसे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के पैसे से बनाने का निर्णय हुआ। पिछली भाजपा सरकार में चुनाव से पहले आनन-फानन में इसका सिंबोलिक शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से करवा लिया गया। काफी दिन तक काम शुरू नहीं हुआ। आखिर जब स्मार्ट सिटी के फंड से पैसा आया तो निर्माण आरंभ हो पाया है। छोटी-मोदी अड़चनें आती रहीं, इस कारण काम की गति बहुत धीमी रही। जब काम ने रफ्तार पकड़ी तो जाने-माने एडवोकेट राजेश टंडन ने यह रहस्योद्धान किया कि गुपचुप तरीके से आगरा गेट से लेकर महावीर सर्किल की भुजा रद्द की जा रही है। उनका साथ कांग्रेस ने भी दिया। आखिरकार जिला कलेक्टर को हस्तक्षेप करना पड़ा और यह साफ हो गया कि टेंडर के अनुसार ही इसका सिरा महावीर सर्किल से आरंभ होगा। इस पर काम शुरू होने ही जा रहा है कि नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन ने रुकावट डालने की कोशिश कर दी है। उन्होंने बाकायदा सरकार को पत्र लिख कर प्रेस नोट जारी कर दिया है कि एलिवेटेड रोड की भुजा महावीर सर्किल के बजाय आगरागेट से चढ़ाई जाए।
जैन का कहना है कि एलिवेटेड रोड की इस भुजा का हाल जयपुर की खासा कोठी वाली सड़क की तरह होने की आश्ंाका है। अगर आगरा गेट चैराहे से तरफ भुजा चढ़ती है तो उसका सभी को लाभ मिलेगा। नला बाजार, नया बाजार, धानमंडी, अग्रसेन सर्किल, हाथी भाटा, आदि शहर के भीतरी क्षेत्र से किसी को रामगंज, ब्यावर रोड, मार्टिण्डल ब्रिज की तरफ जाना हो तो उन्हें अनावश्यक महावीर सर्किल घूम कर जाना नहीं पड़ेगा। उनके लिए आगरा गेट से ही अपने गंतव्य के लिए सहज मार्ग उपलब्ध हो सकेगा।
धर्मेश जैन ने सर्वे को ही गलत करार दे दिया है। उनका कहना है कि महावीर सर्किल पर ऐतिहासिक नसियांजी के अतिरिक्त जैन समाज, अग्रवाल समाज के छोटे-बड़े धड़ों की नसियां, जनकपुरी समारोह स्थल आदि स्थित हैं, जहां बारह मास सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त महावीर सर्किल पर एक रास्ता दरगाह और तीर्थराज पुष्कर की ओर भी जाता है, वहीं पर आनासागर झील व सुभाष उद्यान में जाने के प्रवेश द्वार भी हंै। सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की महाना छठी, उर्स, मोहर्रम आदि को लेकर जहां वर्ष पर्यन्त पैदल जायरीन एवं यात्रियों की भीड़ उमड़ी रहती है। यहां भारी यातायात दवाब बना रहता है। ऐसे में एलिवेटेड रोड की वहां भुजा चढ़ाए जाने से यातायात दवाब और बढ़ जाएगा जो कि आगे चल कर शहरवासियों के लिए एक और नई मुसीबत खड़ी करेगा।
जैन के तर्क में वाकई दम है, मगर सवाल ये उठता है कि आज जब महावीर सर्किल से काम शुरू होने ही जा रहा है, तब जा कर वे आपत्ति क्यों दर्ज करवा रहे हैं? उनका कहना है कि काम अभी शुरू नहीं हुआ है और पुनर्विचार करने की गुंजाइश है। अगर आज उनके प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगे चल कर शहर वासियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। बेहतर ये है कि अब भी उनके प्रस्ताव पर गौर किया जाए। अब देखते हैं कि ये नया विवाद क्या रूप लेता है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

आनासागर में नौका विहार के ठेके को लेकर है चिन्मयी गोपाल पर भारी दबाव

कानाफूसी है कि आनासागर में नौका विहार के लिए हाल ही में मंजूर टेंडर को लेकर जो विवाद उठा, उसको लेकर नगर निगम आयुक्त चिन्मयी गोपाल पर भारी राजनीतिक दबाव है। हालांकि वे टेंडर मंजूर करने के अपने निर्णय पर अडिग हैं और उसे जस्टीफाई भी कर चुकी हैं, मगर फिर भी उन पर दबाव है कि उसे किसी भी प्रकार से रद्द कर दें।
ज्ञातव्य है कि जैसे ही चिन्मयी गोपाल ने उदयपुर की फर्म को टेंडर जारी किया, निगम की राजनीति यकायक गरमा गई। एक वर्ग ऐसा था, जो कि पुरानी व्यवस्था समाप्त करने को लेकर चिन्मयी को घेर रहा था, तो ऐसे भी थे, जो कि उनके निर्णय की सराहना कर रहे थे। अब सवाल ये उठता है कि उनके निर्णय के बाद जब उन पर दबाव बनाया जा रहा है, तो क्या वे नए टेंडर को कानूनन व तकनीकी रूप से रद्द कर सकती हैं। दबाव तो उन पर यही है कि किसी भी से टेंडर को रद्द किया जाए। अगर वे ऐसा नहीं कर पातीं तो संभव ये भी है कि राजनीतिक दबाव में आ कर उदयपुर की फर्म ही बैक फुट पर आ जाए। ऐसे में अपने आप टेंडर रद्द हो जाएगा और राजनीतिक मकसद पूरा हो जाएगा।

क्या केकड़ी रघु शर्मा का अहसान मानेगा?

चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केकड़ी के सरकारी अस्पताल को जिला स्तरीय चिकित्सालय का दर्जा दिलवा दिया। स्वाभाविक रूप से यह केकड़ी वासियों के लिए खुशी का मौका है। यह खुशी दिखाई भी दे रही है, मगर सवाल उठता है कि क्या केकड़ी रघु शर्मा का अहसान मानेगा?
असल में यह सवाल इसलिए जायज है क्यों कि इससे पहले भी जब वे यहां से विधायक व मुख्य सचेतक थे, तब उन्होंने केकड़ी को स्थाई रूप से अपनी कर्मस्थली बनाने के लिए जम कर विकास कार्य करवाए थे। केकड़ी को जिला बनाने की भी उन्होंने भरपूर कोशिश की। जनता भी मानती थी कि उन्होंने वाकई केकड़ी के लिए विशेष रुचि ली है। लेकिन जब चुनाव आए तो मीडिया भाजपा प्रत्याशी शत्रुघ्न गौतम की गोद में जा कर बैठ गया था। स्वाभाविक रूप से उसका असर जनता पर भी पड़ा और रघु शर्मा हार गए। अफसोस तो उनको खूब हुआ होगा, मगर उन्होंने जमीन नहीं छोड़ी। वक्त बदला और उन्होंने न केवल लोकसभा का उपचुनाव जीता, जिसमें केकड़ी का भी योगदान था, अपितु केकड़ी विधानसभा का चुनाव भी जीत कर दिखाया। अब मीडिया भी उनके गुणगान कर रहा है। मगर फिर भी यह आशंका तो है ही कि क्या रघु के इस अहसान को साढ़े चार साल बाद जनता याद रख पाएगी?
अहसान फरामोशी का एक और उदाहरण हमारी नजर में है। मौजूदा उप मुख्यमंत्री व तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट ने अजमेर में जम कर काम करवाए, ताकि यहां उनका राजनीतिक केरियर स्थाई हो जाए, मगर जब चुनाव आए तो जनता ने मोदी के नशे में सारे काम भुला कर उन्हें हरवा दिया। हराने के बाद जरूर जनचर्चा थी कि अजमेर ने एक अच्छा व प्रभावशाली जनप्रतिनिधि खो दिया, मगर अब पछतावत होत क्या, जब चिडिय़ा चुग गई खेत। भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शिवचरण माथुर ने भी भीलवाड़ा को चमन कर दिया, मगर अगले चुनाव में एनसीपी से मैदान में आए तो बुरी तरह से हरवा दिया। जोधपुर का मामला देखिए। विकास के जो नए आयाम वहां स्थापित हुए हैं, उसमें अशोक गहलोत की बड़ी भूमिका है, मगर जब उनके बेटे वैभव गहलोत ने चुनाव लड़ा तो मोदी की सुनामी में वहीं जनता सब कुछ भुला बैठी। ऐसी घटनाओं से यह सवाल उठता है कि आखिर जनता चाहती क्या है? अगर विकास पैमाना नहीं है तो जनप्रतिनिधि काहे को उस पर ध्यान दे? अगर जनता की हवा के साथ बहने की ही आदत है तो जनप्रतिनिधि विकास करवाने में क्यों रुचि लेगा?
यह सही है कि रघु शर्मा ने चिकित्सा मंत्री होने के नाते अपने क्षेत्र को जो लाभ पहुंचाया है, उससे अन्य क्षेत्र के लोगों को तकलीफ हो सकती है।  यह तर्क दिया जा सकता है कि वे पक्षपात कर रहे हैं, लेकिन यह भी सोचना चाहिए कि कोई बड़ा जनप्रतिनिधि अगर अपने क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं कर पाता तो उसे उलाहना सुनना ही पड़ता है कि आपने हमारे लिए किया क्या?