गुरुवार, 16 नवंबर 2017

कांग्रेस के फैसले के बाद पत्ते खोलेगी भाजपा?

-तेजवानी गिरधर-
गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ अजमेर लोकसभा उपचुनाव की तारीख घोषित न होने के बाद अनुमान है कि अब यहां जनवरी में ही चुनाव होंगे। यही वजह है कि जो चुनावी सरगरमी यकायक बढ़ गई थी, वह धीमी पड़ गई है। कांग्रेस व भाजपा, दोनों को मंथन करने का और वक्त मिल गया है। कांग्रेस जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अथवा किसी और पर विचार कर रही है, तो भाजपा की नजर कांग्रेस के फैसले पर टिकी है। कांग्रेस अगर सचिन के अलावा कोई और स्थानीय चेहरा सामने लाती है तो भाजपा पूर्व सांसद स्वर्गीय रामस्वरूप लांबा अथवा अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी या किसी और पर दाव खेल सकती है, लेकिन अगर सचिन चुनाव मैदान में आते हैं तो भाजपा को उन्हीं की टक्कर का उम्मीदवार लाना होगा। माना जा रहा है कि स्थानीय कोई भी दावेदार उनका मुकाबला नहीं कर पाएगा। ऐसे में पिछले दिनों सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र के पुत्र सन्नी देओल का नाम उछला। हालांकि यह पता नहीं लगा कि यह मीडिया की कयासी उपज है अथवा भाजपा का सेंपल टेस्ट, मगर उनका नाम इसी वजह से आया, क्योंकि उनकी अपनी चमक है और दूसरी सबसे बड़ी बात ये कि वे जाट समुदाय से हैं।असल में भाजपा की सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि वह किसी जाट को ही टिकट दे, क्योंकि प्रो. जाट के निधन से खाली हुई इस सीट पर जाट समुदाय अपना सहज दावा मानता है। न केवल मानता है, अपितु लांबा व चौधरी के बहाने पुरजोर दावा ठोक भी रहा है। दावा तो अन्य जातियों के नेताओं भी है, यथा पूर्व सासंद प्रो. रासासिंह रावत, पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिय़ा, पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष धर्मेश जैन इत्यादि, मगर वे सचिन के मुकाबले मजबूत नहीं हैं। जातीय लिहाज से भी जाटों संख्या अन्य सामान्य जातियों के मुकाबले ज्यादा है। इस कारण उन्हें नजरअंदाज करना भाजपा के लिए मुश्किल है।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, ऐसी आम धारणा है कि अगर सचिन मैदान में आते हैं तो उनकी जीत सुनिश्चित है। भाजपाई भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। उसकी खास वजह ये है कि सचिन ने अपने पिछले कार्यकाल में जो काम किए, उन्हें यहां की जनता अभी भूली नहीं है। यह बात दीगर है कि पिछली बार मोदी लहर में उन्हीं कामों को जनता ने भुला दिया था। वस्तुत: जनता यहां से पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत व एक बार सांसद रहे स्वर्गीय प्रो. जाट के कार्यकाल से तुलना कर रही है। उसमें स्वाभाविक रूप से सचिन भाारी पड़ रहे हैं। इन दिनों आ रही मीडिया रिपोर्टों में भी उसकी झलक दिखाई देती है।
यदि सचिन के चेहरे को एकबारगी भुला भी दिया जाए, तब भी भाजपा तनिक चिंतित है। चिंता सिर्फ एक सीट हारने की नहीं है, अपितु ये है कि यह उपचुनाव आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री वसुंधरा के भविष्य व भाजपा के मनोबल को तय करेगा। अर्थात भाजपा के लिए यह चुनाव बेहद प्रतिष्ठापूर्ण हो गया है। भाजपा की चिंता इसी से साफ झलकती है कि वसुंधरा ने पिछले दिनों यहां के ताबड़तोड़ दौरे किए। जनता को रिझाने के लिए हरसंभव उपाय भी किए। अब ये पता नहीं कि उनकी यह कवायद कितनी कामयाब रही।
हालांकि यह भी आम धारणा है कि नोटबंदी व जीएसटी की वजह से त्रस्त व्यापारी तबका नाराज है, जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना होगा, मगर कांग्रेस इसका आकलन कर रही है कि क्या वाकई व्यापारियों का गुस्सा कांग्रेस के लिए वोटों में तब्दील हो पाएगा? उससे भी बड़ी बात ये है कि भाजपा केन्द्र व राज्य में सत्तारूढ है, इस कारण चुनाव में भाजपा को सरकारी मशीनरी का संबल होगा। जाहिर तौर पर विधानसभा वार मंत्रियों का जाल फैलने वाला है। उनका मुकाबला कैसे किया जाए, इस पर कांग्रेस में मंथन चल रहा है। कांग्रेस के लिए भी यह सीट प्रतिष्ठापूर्ण है, क्योंकि यह सचिन पायलट का गृहक्षेत्र है। चाहे वे स्वयं चुनाव लड़ें अथवा किसी और को लड़वाएं, मगर यहां का चुनाव परिणाम आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की रणभेरी का आगाज करेगा।
वैसे कांग्रेस अभी तक भाजपा को कन्फ्यूज किए हुए है। सचिन लड़ेंगे या कोई और? हाल ही जब केकड़ी के पूर्व विधायक व दिग्गज कांग्रेसी नेता रघु शर्मा ने देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह राठौड़ के साथ कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया तो ये कयास लगाए गए कि क्या उनके नाम पर गौर किया जा रहा है, मगर ये राजनीतिक चतुराई भी हो सकती है। राजनीति में इस प्रकार के डोज देना चुनावी रणनीति का एक हिस्सा होते हैं। तभी तो पिछले दिनों ज्योति मिर्धा, दिव्या मदेरणा, रघुवेन्द्र मिर्धा सरीखे नेताओं के नाम उछले थे। कुल जमा बात ये है कि कांग्रेस की शतरंजी चाल पर ही निर्भर करेगा कि भाजपा कौन सा मोहरा सामने लाएगी।

सन्नी देओल होंगे अजमेर से भाजपा प्रत्याशी?

हालांकि अजमेर लोकसभा उपचुनाव की तारीख अभी घोषित नहीं हुई है और स्वाभाविक रूप से राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों की घोषणा में भी अभी वक्त लगेगा, मगर एक न्यूज चैनल ने तो उजागर कर दिया है कि भाजपा की ओर से फिल्म अभिनेता सन्नी देओल को चुनाव मैदान में उतारा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि देओल सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र के पुत्र हैं और जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी उनकी सौतेली मां हैं। न्यूज चैनल ने जिस तरीके से खबर जारी की है, उससे तो यही प्रतीत होता है कि खबर ठोक-बजा कर प्रसारित की गई है, महज पार्टी स्तर पर घोषणा होना ही बाकी है। इसकी प्रस्तुति में भी ऐसा ही कहा गया है। ऐसा नहींं है कि न्यूज चैनल ने पहली बार उनका नाम अनावृत किया है। कुछ दिन पहले भी उनका नाम सोशल मीडिया में उछल चुका है, मगर चैनल तो नाम फाइनल होने की ही बात कर रहा है। उसके अनुसार इसमें हेमा मालिनी ने अहम भूमिका अदा की है। इस बाबत पिछले दिनों सन्नी, हेमा व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की बैठक हो चुकी है।
जहां तक सन्नी के राजनीतिक बैक ग्राउंड का सवाल है, यह सर्वविदित है कि उनके पिता धर्मेन्द्र एक बार बीकानेर से भाजपा सांसद रह चुके हैं और सौतेली मां हेमा मालिनी राज्यसभा सदस्य हैं, मगर निजी तौर पर उनका राजनीतिक अनुभव शून्य है। भाजपा सिर्फ उनके जाट होने के आधार पर प्रत्याशी बनाने पर विचार कर रही होगी। इसके अतिरिक्त उनके ग्लैमर का लाभ भी लेना चाहती होगी। उल्लेखनीय है कि भाजपा पर यह दबाव है कि वह किसी जाट को ही टिकट दे, क्योंकि एक तो यह सीट पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के निधन से खाली हुई है और दूसरा इस क्षेत्र में दो लाख से अधिक जाट मतदाता हैं। स्थानीय स्तर पर भाजपा के पास मुख्य रूप से प्रो. जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा और अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ही दावेदार हैं। समझा जाता है कि लांबा को भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर मान रही है और चौधरी को लेकर संघ की रजामंदी नहीं बन पा रही। यही वजह है कि उसे किसी विकल्प की तलाश है। संभवत: भाजपा यह मान कर चल रही है कि कांग्रेस की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट चुनाव मैदान में उतर सकते हैं और उनका मुकाबला ये दोनों ही नेता नहीं कर पाएंगे। शायद इसी वजह से उसे किसी सेलिब्रिटी के नाम पर विचार करने की नौबत आई है।
उधर अभी तक कांग्रेस की ओर से किसी का नाम सामने नहीं आया है, मगर मोटे तौर पर यही माना जा रहा है कि सचिन पायलट ही प्रत्याशी होंगे, क्योंकि वे यहां से सांसद रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त यह भी आम धारणा है कि केवल वे ही चुनाव शर्तिया जीतने की स्थिति में हैं। बहरहाल, कांग्रेस की ओर से जो भी आए, मगर सन्नी के चुनाव लडऩे की स्थिति में अजमेर का चुनावी रण काफी रोचक हो जाएगा। स्वाभाविक रूप से चुनाव प्रचार में धर्मेन्द्र, हेमा, बॉबी देओल, हेमा की दोनो पुत्रियों के अतिरिक्त फिल्मी जगत के कई नामचीन कलाकार आ कर माहौल को रंगीन बनाएंगे।  लगे हाथ बता दें कि जैसे ही सन्नी का नाम चैनल ने उजागर किया तो आम जनता में पहली प्रतिक्रिया यही नजर आई कि अगर वे जीत भी गए तो पलट कर अजमेर नहीं आएंगे, जैसा कि पूर्व में उनके पिता धर्मेन्द्र ने बीकानेर के साथ किया था। भाजपा कार्यकर्ता भी जानते हैं कि अगर वे जीते तो उनसे संपर्क करना ही बेहद कठिन होगा, कोई काम करवाना तो बहुत दूर की बात है। देखने वाली बात ये भी होगी कि अगर जातिवाद के नाम पर सन्नी को उतारा गया तो क्या अजमेर संसदीय क्षेत्र का जाट समुदाय उन्हें सहज ही स्वीकार कर लेगा?

न्यूज चैनल में जारी खबर का लिंक ये है -
<a href="https://youtu.be/QnmkC-Ifm7k" rel="noopener" target="_blank">https://youtu.be/QnmkC-Ifm7k</a>
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-तेजवानी गिरधर
7742067000

टिकट का दावा तो ठोकेंगे ही भूतड़ा

भले ही तीन साल पहले पार्टी से छह साल के लिए बाहर किए गए पूर्व विधायक व पूर्व अजमेर देहात जिला भाजपा अध्यक्ष देवीशंकर भूतड़ा को अब जा कर फिर भाजपा में शामिल कर लिया गया हो, जिससे ऐसा प्रतीत होता हो कि ऐसा भाजपा हाईकमान की दया पर हुआ है, मगर इसका मतलब ये नहीं कि वे ब्यावर विधानसभा सीट की टिकट के लिए दावा नहीं करेंगे।
वस्तुस्थिति ये है कि भाजपा हाईकमान ने आगामी लोकसभा उपचुनाव में पार्टी को मजबूती प्रदान करने की खातिर ही भूतड़ा व पूर्व देहात जिला अध्यक्ष नवीन शर्मा को गले लगाया है। स्वाभाविक है कि दोनों नेताओं के भाजपा में आने से पार्टी को लाभ मिलेगा। खुद मौजूदा देहात जिला अध्यक्ष डॉ. बी. पी. सारस्वत भी स्वीकार करते हैं कि भूतड़ा को पार्टी से बाहर किए जाने के बावजूद उन्होंने कभी पार्टी की खिलाफत नहीं की बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपने से जोड़ा रखा और खुद की देखरेख में पार्टी के कार्यक्रम भी आयोजित करते रहे। इसका भी उन्हें फायदा मिला और पार्टी में वापसी के लिए यह प्रयास उनके लिए मददगार बने।
बात अब मुद्दे की। भूतड़ा मात्र मुख्य धारा में शामिल होने मात्र के लिए नहीं लौटे हैं। उनकी पिछली गतिविधियों पर जरा नजर डालें तो यह साफ हो जाएगा कि उनकी महत्वाकांक्षा अब भी उछाल मार रही है। वे सोशल मीडिया पर लगातार इस प्रकार की पोस्ट डाल रहे थे, जिससे ये इशारा होता था कि मौजूदा विधायक शंकर सिंह रावत की तुलना में उनके विधायक कार्यकाल में ज्यादा विकास कार्य हुए हैं। इसका सीधा सा अर्थ था कि एक तो वे जनता में अपनी लोकप्रियता कायम रखना चाहते थे, साथ ही पार्टी के खिलाफ इसलिए नहीं बोले ताकि वापसी संभव हो सके। वे पार्टी के आदर्श पुरुष पंडित दीनदयाल का नाम जपते हुए वैतरणी पार करने की कोशिश करते रहे। भले ही मौजूदा विधायक शंकर सिंह रावत ने उनके भाजपा में लौटने का स्वागत किया हो, मगर वह औपचारिक सा है। वे जानते हैं कि भूतड़ा इस बार फिर दावेदारी करेंगे। सच तो ये है कि भूतड़ा की वापसी होना उनके लिए नागवार गुजरा होगा, क्योंकि शहर व देहात की राजनीति के चलते दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है। भला खुद के खिलाफ बगावत करने वाले नेता को कोई कैसे बर्दाश्त कर सकता है। दोनों के बीच कैसे संबंध हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि भूतड़ा कर निर्वासन समाप्त होने पर एक ओर जहां आम शहरी भाजपा कार्यकर्ता में खुशी की लहर देखी गई, वहीं रावत लॉबी के छुटभैये औपचारिक स्वागत करने भी आगे नहीं आए।
वैसे आम राजनीतिक धारणा है कि इस बार संभवतया रावत टिकट हासिल करने में कामयाब न हो पाएं, ऐसे में भूतड़ा का भाग्य खुल सकता है। रावत के टिकट में संशय इस कारण बना है क्यों कि उनके सीनियर होने के बावजूद पहली बार पुष्कर से जीते सुरेश रावत को संसदीय सचिव बना दिया गया। अर्थात मुख्यमंत्री वसुंधरा के साथ उनकी ट्यूनिंग नहीं रही। यूं जनता के हित में उन्होंने ब्यावर को जिला बनाने की मांग को लेकर खूब मशक्कत की, मगर वसुंधरा की फटकार पर उन्हें अपना आंदोलन समाप्त करना पड़ा।
तथ्यात्मक जानकारी के लिए आपको बता दें कि 18 नवंबर 2013 को भाजपा प्रत्याशियों के सामने बागी के रूप में चुनाव मैदान में उतरने पर पार्टी ने शर्मा व भूतड़ा को 6 साल के लिए निष्कासित करने की घोषणा की गई थी।
-तेजवानी गिरधर
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