शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

कानूनी डंडा चलाने के साथ पार्किंग स्थल भी तो बनवाइये


अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर लोकेश सोनवाल ने हाईकोर्ट के एक आदेश के तहत गृह विभाग के निर्देशों का हवाला देते हुए फरमान जारी किया है कि वाहन मालिक अपने वाहनों की पार्किंग निर्धारित पार्किंग स्थल पर ही करें तथा निर्धारित मार्ग से ही व्यावसायिक वाहनों की आवाजाही हो। इसके दो ही मतलब निकलते हैं। एक तो जैसे ही उन्हें गृह विभाग के निर्देशों का पता लगा, उसे आगे सरका दिया, या फिर पुलिस पार्किंग दुरुस्त करने का अभियान चलाने का इशारा कर रही है।
बेशक हाईकोर्ट के आदेश की अनुपालना में गृह विभाग के निर्देशों की पालना सुनिश्चित होनी ही चाहिए। कोई नहीं करेगा तो बकौल सोनवाल  वाहन मालिकों के विरूद्घ नियमानुसार कानूनी कार्यवाही कर वाहन जब्त किया जायेगा।
लोकेश सोनवाल
यहां तक सब ठीक है, मगर इस प्रकार ऊपर के आदेशों को जारी कर देना ही पर्याप्त नहीं है। केवल कानून का डंडा दिखाना ही काफी नहीं है। सोनवाल सहित पूरे पुलिस प्रशासन को स्थानीय परिस्थितियों को भी ख्याल में रखना चाहिए। सब जानते हैं कि अजमेर यातायात की कितनी भीषण समस्या का कष्ठ भोग रहा है। यह भी सही है कि नई व्यवस्था यातायात को सुगम बनाने के मकसद से लागू की जा रही है, मगर धरातल का सच ये है कि अजमेर में पार्किंग एक बहुत बड़ी समस्या है। एक लंबे अरसे से नए और मल्टीस्टोरी पार्किंग प्लेस विकसित करने की मांग की जाती रही है। उस पर चर्चा भी खूब हुई है, आश्वासन व वादे भी खूब हुए हैं, मगर अमल आज तक नहीं हो पाया। उसी का परिणाम है कि वाहन मालिक आए दिन यातायात पुलिस वाहन उठाऊ दस्ते का शिकार होते रहते हैं। कई बार तो यह लगता है कि इस दस्ते को माह का कोई टारगेट दिया हुआ है, इस कारण व्हाइट लाइन से एक इंच भी बाहर निकले वाहन को उठा कर चल देता है। कई बार तो बेचारे वाहन मालिक का दोष नहीं होता। वह तो व्हाइट लाइन के अंदर की वाहन खड़ा करके खरीददारी करने चला जाता है, मगर बाद में वहां अपना वाहन रखने वाला अथवा हटाने वाला पहले वाले का वाहन को इधर ऊधर कर देता है। नतीजतन दोष न होने पर भी उसे जुर्माना भरना होता है। है न सरासर नाइंसाफी, मगर पुलिस इसे सुनने को तैयार ही नहीं होती। इसको लेकर कई बार झगड़े हुए हैं, मगर आज तक पुलिस और शहर प्रशासन ने इसका पुख्ता समाधान करने की ओर कदम नहीं उठाया है।
असल में शहर में अनेक स्थानों पर पार्किंग स्थल विकसित करने की जरूरत है। हालांकि यह बात सही है कि पिछले बीस साल में आबादी बढऩे के साथ ही अजमेर शहर का काफी विस्तार भी हुआ है और शहर में रहने वालों का रुझान भी बाहरी कालोनियों की ओर बढ़ा है। इसके बावजूद मुख्य शहर में आवाजाही लगातार बढ़ती ही जा रही है। रोजाना बढ़ते जा रहे वाहनों ने शहर के इतनी रेलमपेल कर दी है, कि मुख्य मार्गों से गुजरना दूभर हो गया है। जयपुर रोड, कचहरी रोड, पृथ्वीराज मार्ग, नला बाजार, नया बाजार, दरगाह बाजार, केसरगंज और स्टेशन रोड की हालत तो बेहद खराब हो चुकी है। कहीं पर भी वाहनों की पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। इसका परिणाम ये है कि रोड और संकड़े हो गए हैं और छोटी-मोटी दुर्घटनाओं में भी भारी इजाफा हुआ है।
ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि यातायात व्यवस्थित करने के लिए समग्र मास्टर प्लान बनाया जाए। उसके लिए छोटे-मोटे सुधारात्मक कदमों से आगे बढ़ कर बड़े कदम उठाने की दरकार है। मौजूदा हालात में स्टेशन रोड से जीसीए तक ओवर ब्रिज और मार्टिंडल ब्रिज से जयपुर रोड तक एलिवेटेड रोड नहीं बनाया गया तो आने वाले दिनों में स्टेशन रोड को एकतरफा मार्ग करने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। रेलवे स्टेशन के बाहर तो हालत बेहद खराब है। हालांकि फुट ओवर ब्रिज शुरू से कुछ राहत मिली है, लेकिन उसे जब रेलवे प्लेटफार्म वाले ब्रिज से जोड़ा जाएगा, तभी पूरा लाभ होगा। इसके अतिरिक्त इन स्थानों पर पार्किंग स्थल बनाए जा सकते हैं-
खाईलैण्ड मार्केट से लगी हुई नगर निगम की वह भूमि, जिस पर पूर्व में अग्नि शमन कार्यालय था। नया बाजार में स्थित पशु चिकित्सालय की भूमि, जहां अंडर ग्राउण्ड पार्किंग संभव है। मदार गेट स्थित गांधी भवन के पीछे स्कूल की भूमि। कचहरी रोड स्थित जीआरपी/सीआरपी ग्राउण्ंड। केसरगंज स्थित गोल चक्कर में अंडर ग्राउंड पार्किंग। मोइनिया इस्लामिया स्कूल के ग्राउण्ड में अंडर ग्राउण्ड पार्किंग संभव है।
हालांकि यह सही है कि पुलिस का काम केवल कानून की पालना करवाना है और पार्किंग स्थल उसे नहीं बनवाने, मगर कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि जिला प्रशासन को आगाह तो कर ही सकते हैं कि बिना पार्किंग स्थलों को विकसित किए वाहनों को नियंत्रित करना कठिन है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

नालों की सफाई में फिसड्डी रहा नगर निगम


मेयर कमल बाकोलिया

एक बहुत पुराना मुहावरा है-बारिश आने से पहले पाल बांधना। इसका मतलब सबको पता ही है। पाल इसलिए बांधी जाती है ताकि अगर बारिश ज्यादा आ जाए तो उससे होने वाले नुकसान से बचा जा सके। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया व सीईओ सी आर मीणा को इस मुहावरे की जानकारी नहीं है। जानकारी तो छोडिय़े, लगता तो ये है कि जानकारी देने के बावजूद उन्होंने इसे लेना जरूरी नहीं समझा। नतीजा ये रहा कि अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी को उन्हें उलाहना देते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहना पड़ा कि मेयर साहब अब तो जागो। 
असल में मानसून आने से एक माह पहले से ही नालों की सफाई का रोना चालू हो गया था। नगर निगम प्रशासन न जाने किसी उधेड़बुन अथवा तकनीकी परेशानी में उलझा हुआ था कि उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अगर ध्यान दिया भी तो जुबानी जमा खर्च में। धरातल पर पर स्थिति बिलकुल विपरीत थी। जब आला अधिकारियों ने निर्देश दिए तो भी निगम प्रशासन ने हां हूं और बहानेबाजी करके यही कहा कि सफाई करवा रहे हैं। जल्द पूरी हो जाएगी। बारिश से पहले पूरी हो जाएगी। जब कुछ होता नहीं दिखा तो पार्षदों के मैदान में उतरना पड़ा। श्री गणेश भाजपा पार्षद जे के शर्मा ने किया और खुद ही अपनी टीम के साथ नाले में कूद गए। हालांकि यह प्रतीकात्मक ही था, मगर तब भी निगम प्रशासन इस बेहद जरूरी काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाया। परिणामस्वरूप दो और पार्षदों ने भी मोर्चा खोला। ऐसा लगने लगा मानो निगम में प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई। अगर ये मान भी लिया जाए कि पार्षदों ने सस्ती लोकप्रियता की खातिर किया, मगर निगम प्रशासन को जगाया तो सही। मगर वह नहीं जागा। इतना ही नहीं पूरा मीडिया भी बार बार यही चेताता रहा कि नालों की सुध लो, मगर निगम की रफ्तार नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली ही रही। यह अफसोसनाक बात है कि जो काम निगम प्रशासन का है, वह उसे जनता या जनप्रतिनिधि याद दिलवाएं। मेयर कमल बाकोलिया व सीईओ सी आर मीणा मानें न मानें, मगर वे नालों की सफाई में फिसड्डी साबित हो गए हैं। वरना क्या वजह रही कि मानसून की पहली ठीकठाक बारिश में ही सफाई व्यवस्था की पोल खुल गई। निचली बस्तियों  में पानी भर गया तथा नाले-नालियों की सफाई नहीं होने से उनमें से निकले कचरे व मलबे के जगह-जगह ढेर लग गये। कई जगह पानी जमा हो गया, जिससे यातायात अवरुद्ध हो गया। ऐसे में यदि देवनानी ये आरोप लगाते हैं कि मेयर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर चैन की नींद सो रहे हंै, तो गलत और राजनीति नहीं है। बाकोलिया तो चलो बहुत अनुभवी नहीं हैं, मगर मीणा जैसे संजीदा व अनुभवी अफसर भी विफल व नकारा साबित होते हैं, तो यह बेहद अफसोसनाक है। या फिर नगर निगम में आ कर पार्षदों की खींचतान में बेबस हो गए हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com