बुधवार, 27 जुलाई 2016

Pratibha Samman only me 24 7 16 2016

tejwani girdhar 17 7 2016

डॉ. बाहेती की अब भी सक्रियता के मायने?

लगातार दो बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद हालांकि पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को तीसरी बार भी अजमेर उत्तर से टिकट मिलने की संभावना न्यून है, बावजूद इसके उनकी लगातार सक्रियता जाहिर करती है कि उनमें कांग्रेस के प्रति काम करने का जज्बा अब भी मौजूद है। यूं चुनावी राजनीति में कोई फार्मूला अंतिम नहीं होता। रामबाबू शुभम को लगातार दो बार हारने के बाद भी तीसरी बार टिकट दिया गया, तो भला डॉ. बाहेती हताश क्यों हों? मगर अजमेर उत्तर का मसला अलग है। यदि इस सीट को लेकर सिंधी-गैर सिंधी का विवाद नहीं होता तो डॉ. बाहेती तीसरी बार भी उम्मीद कर सकते थे, क्योंकि कांग्रेस के पास उनसे बढिय़ा गैर सिंधी चेहरा नहीं है। लेकिन उनके लगातार दो बार हारने की वजह ही सिंधी-गैर सिंधीवाद रहा, इस कारण समझा यही जाता है कि इस बार कांग्रेस फिर किसी गैर सिंधी को टिकट देने की गलती नहीं करेगी। ऐसे में डॉ. बाहेती के लिए उम्मीद कम ही है। हां, वे फिर पुष्कर कर रुख कर सकते हैं, जहां से वे एक बार विधायक रहे हैं, मगर वहां उनके ही शागिर्द इंसाफ अली की पत्नी नसीम अख्तर इंसाफ एक बार विधायक और राज्य मंत्री बनने के बाद मैदान पर लगातार डटी हुई हैं। उनको टिकट सिर्फ उसी परिस्थिति में नहीं मिलेगा, अगर कांग्रेस ने मसूदा से किसी मुस्लिम को टिकट दे दिया।
बहरहाल, डॉ. बाहेती की सक्रियता की एक वजह ये भी हो सकती है कि उनके आका पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की लॉबी अब भी मैदान में खम ठोक कर खड़ी है, तो भला डॉ. बाहेती निराश क्यों हों? राजनीति में संभावनाओं की सीमा कहीं समाप्त नहीं होती। अगर अशोक गहलोत प्रभाव में रहे और सरकार कांग्रेस की बनी तो अपने कृपापात्र को भूलेंगे थोड़े ही।
ज्ञातव्य है कि शहर कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की पसंद से बने हैं। स्वाभाविक रूप से पायलट लॉबी का दबदबा है। फिर भी डॉ. बाहेती कांग्रेस के हर कार्यक्रम में मौजूद रहते हैं। चूंकि अजमेर में वे ही मिनी गहलोत हैं, इस कारण उनकी सक्रियता से गहलोत समर्थकों में भी जोश बरकरार है। यूं भले ही सभी कांग्रेसी एकजुट दिखाने का प्रयास करते हैं, मगर सोशल मीडिया पर उनके बीच की दीवारें साफ देखी जा सकती हैं। अशोक गहलोत के नाम से बने फेसबुक अकाउंट्स पर उनकी तारीफों के पुल बांधने वाले कई समर्थक हर वक्त डटे रहते हैं।
खैर, कुल मिला कर डॉ. बाहेती की सक्रियता खास मायने रखती है। वह कांग्रेस और भाजपा की कल्चर में अंतर की ओर भी इशारा करती है। ये कांग्रेस ही है, जहां व्यक्ति भी कुछ मायने रखता है, वरना भाजपा में देखिए, पांच बार सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत, पूर्व राज्य मंत्री श्रीकिशन सोनगरा, पूर्व विधायक नवलराय बच्चानी और हरीश झामनानी सरीखों की क्या कद्र है? एक ओर जहां रावत व सोनगरा के पुत्रों को संगठन में स्थान दे कर संतुष्ट किया गया है, वहीं झामनानी व बच्चानी सामाजिक कार्यों में सक्रिय रह कर अपना वजूद बचाए हुए हैं। हालांकि उनका उपयोग चुनाव के वक्त तो किया जाता है, लेकिन बाद में उनकी कोई खास पूछ नहीं होती। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि कांग्रेस अमूमन व्यक्तित्व पर दाव खेलती है, जबकि भाजपा व्यक्ति पर। इस कारण जैसे ही व्यक्ति पर से पार्टी का साया हटता है, वह फिर से व्यक्ति बन जाता है। शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी और महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल भाजपा द्वारा व्यक्तियों पर हाथ रखने का सटीक उदाहरण है, जिनकी चवन्नी अभी रुपए में चल रही है। आगे की भगवान जाने।
-तेजवानी गिरधर
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अपनी सरकार रहते मुंह खोलने के लिए धर्मेश जैन जैसा जिगर चाहिए

तत्कालीन नगर सुधार न्यास (यूआईटी) अजमेर के अध्यक्ष रहे धर्मेश जैन ने अपनी ही सरकार के मनोनीत एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा के फैसलों पर सवाल उठा कर सबको चौंका दिया है। उनके सवाल में जितना दम है, उससे कहीं अधिक दम है उनके अपनी ही सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाने में। जिस सवाल को उठाने की अपेक्षा कांग्रेस से थी, उसे अगर कोई प्रतिष्ठित और सूझबूझ वाला भाजपा नेता उठाएगा तो जाहिर है उसमें कुछ तो माद्दा होगा ही। यहां यह चुटकी लेने का मन हो रहा है कि कोई अजमेर का जाया होता तो शायद नहीं बोलता, मगर चूंकि जैन मेवाड़ और महाराणा प्रताप की धरती के जाये हैं, इस कारण इतनी हिम्मत दिखा रहे हैं। वरना इलायची बाई की गद्दी के विख्यात अजमेर वालों का मिजाज कैसा है, सब जानते हैं।
ज्ञातव्य है कि जैन ने एडीए की दीपक नगर योजना को डिनोटिफाइड करने के हेड़ा के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि अफसर हेड़ा को गुमराह कर रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने ये तक कहा कि डिनोटिफाइड होने में अधिकारी नियमन के नाम पर भ्रष्टाचार का उद्योग चलाते हैं। यदि किसी का नियमन करना है तो कर दो। उनके कार्यकाल में भी इस योजना के डिनोटिफाइड करने का अधिकारियों ने प्लान बनाया था। एक भूखंड के नियमन के लिए 10 आईएएस अधिकारियों के फोन आए लेकिन उन्होंने उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने दिए। जो अधिकारी इसे डिनोटिफाइड करवाना चाहते हैं, उनका खुद का स्वार्थ है। उनकी खुद की इस योजना में जमीनें तथा बंगले हैं। योजना के डिनोटिफाइड होने से अजमेर-जयपुर सड़क को सिक्सलेन करने में बाधा आएगी और इसके लिए जमीन कैसे अवाप्त होगी। जैन ने कहा कि वे एडीए अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा पर वे कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन योजना समाप्त होने के कारणों की जांच होनी चाहिए। उन अफसरों को भी चिह्नित किया जाना चाहिए, जिनकी इस क्षेत्र में जमीन हैं।
समझा जा सकता है कि जैन की दलील में कितना दम है। इतनी बारीकी से एडीए बाबत बात करने वाले संभवत: जैन इकलौते नेता हैं, जिन्होंने पद पर रहते हुए और न रहते हुए भी गहराई से अध्ययन किया है। अब ये सरकार को देखना है कि वह अपने ही नेता की ओर से उठाए गए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है।
जैन को इस बात का भी बहुत दु:ख है कि महाराणा प्रताप स्मारक पर हो रहे काम के बारे में उनसे राय ही नहीं ली गई। उल्लेखनीय है कि यह स्मारक बनाने का निर्णय और शिलान्यास जैन के कार्यकाल में हुआ था, मगर एक फर्जी सीडी सामने आने के चक्कर में उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में वह सीडी फर्जी भी साबित हो गई। उनका ऐतराज है कि स्मारक के शिलान्यास का पत्थर हटा दिया गया है। स्मारक के अंदर की सड़क बना दी है। दर्शक दीर्घा का पता नहीं है। पार्किंग की जगह ठीक नहीं है।
हालांकि जैन के मुंह खोलने के समय को लेकर मीडिया ने यह सवाल उठाया कि दोनों मामलों में उन्होंने तुरंत राय क्यों जाहिर नहीं की। मीडिया मानता है कि चूंकि उनके बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के दूसरे दिन अजमेर में पांच मंत्री आने वाले थे और वे चाहते थे कि यह गरमागरम मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच जाए। कदाचित ये सही भी हो, मगर जैन ने जो सवाल उठाया है, उसका जवाब इतना नहीं होता, जो कि हेड़ा ने दिया है:- दीपक नगर योजना 25 साल पुरानी है। इसकी 90 फीसदी जमीन हिंदुस्तान जिंक के पास है। दस प्रतिशत में योजना कैसे लागू होगी। अब तक अवार्ड का भुगतान ही किया गया है। सरकारी जमीन पर कार्यालय बन गए है। उपयोगिता नजर नहीं आ रही है। हमने तो प्रस्ताव भेजा है। सरकार उचित समझे तो निरस्त करें।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, 26 जुलाई 2016

हरीश हिंगोरानी अब करेंगे खुल कर दावेदारी

कर्मचारी नेता रहे हरीश हिंगोरानी इस बार अजमेर उत्तर सीट के लिए कांग्रेस की टिकट की खातिर खुल कर दावेदारी करेंगे। वे जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं। हालांकि इससे पहले भी दावेदारी कर चुके हैं, मगर तब सरकारी नौकरी उनके लिए तनिक बाधा बन जाती थी।
यहां आपको बता दें कि हिंगोरानी एक बार टिकट के बिलकुल करीब पहुंच गए थे, मगर तब नरेन शहाणी टिकट ले आए। बाद के दो चुनाव में भी उन्होंने पूरी कोशिश की मगर, दोनों बार पूर्व पुष्कर विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती बाजी मार गए। इस बार चूंकि किसी सिंधी को ही टिकट दिए जाने की संभावना है और साथ ही वे रिटायर भी हो रहे हैं, इस कारण पूरी ताकत लगा देने वाले हैं। हिंगोरानी की कर्मचारी वर्ग में अच्छी पकड़ है। इसके अतिरिक्त सिंधी समाज की गतिविधियों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। उनकी स्वयं की एक संस्था हर साल सिंधी वैवाहिक परिचय सम्मेलन आयोजित करती है।

संगठन में स्थापित हुए कमल बाकोलिया

अजमेर नगर निगम के पूर्व मेयर कमल बाकोलिया लंबे इंतजार के बाद संगठन में स्थापित हो गए हैं। उन्हें प्रदेश कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग का संभाग प्रभारी बनाया गया है। हालांकि बाकोलिया की इच्छा थी कि मेयर पद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें शहर जिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाए और इसके लिए उन्होंने अपनी कोशिशों में कोई कमी भी नहीं रखी, मगर जातीय समीकरण के तहत वैश्य वर्ग के विजय जैन को अध्यक्ष बनाया गया। प्रदेश कांग्रेस में पहले से ही अनुसूचित जाति के अन्य दिग्गज स्थापित थे, ऐसे में उन्हें अनुसूचित जाति विभाग में एडजस्ट किया गया है। हालांकि यह कांग्रेस का अग्रिम संगठन है, मगर वे चाहें तो इस जिम्मेदारी के बहाने अपने पांव पसार सकते हैं और चुनावी राजनीति में फिर संभावना तलाश सकते हैं।
ज्ञातव्य है कि मेयर का चुनाव जीतने से पहले उनकी संगठन में कोई भूमिका नहीं रही और उपयुक्त उम्मीदवार होने के नाते उन्हें मौका मिला। एक बार मेयर पद पर रहने के बाद उनके लिए यह जरूरी था कि विपक्ष में रहते संगठन की कोई जिम्मेदारी लें और आगे सक्रिय राजनीति के लिए अपने आपको सुरक्षित रखें। फिलहाल उन्हें यह जिम्मेदारी मिली है, देखते हैं वे कितनी सक्रियता दिखा पाते हैं।

सोमवार, 25 जुलाई 2016

क्या रामचंद्र चौधरी ने भाजपा ज्वाइन कर ली है?

हाल ही संगठन व सरकार के कार्यों की समीक्षा सहित जिलों की बूथ समितियों के सम्मेलन सम्पन्न करवा कर बूथ इकाइयों के सुदृढ़ीकरण के लिए अजमेर आये मंत्रियों व प्रदेश पदाधिकारियों के समूह की मौजूदगी में हुई एक बैठक में देहात जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी को देख कर भाजपाई चौंक गए। सभी की जुबान पर एक ही सवाल था कि क्या चौधरी ने भाजपा ज्वाइन कर ली है? और की है तो कब, क्योंकि अब तक तो इस आशय की जानकारी कभी सार्वजनिक रूप से सामने आई नहीं है।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से नाइत्तफाकी के चलते पिछले लोकसभा चुनाव में चौधरी ने कांग्रेस छोड़ कर पायलट की जम कर खिलाफत की। इतना ही नहीं उन्होंने भाजपा की एक सभा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मौजूदगी में मंच पर रह कर शिरकत भी की, हालांकि उन्होंने तब भी भाजपा ज्वाइन नहीं की थी। इस कारण सभी को यही जानकारी थी कि वे भाजपा में नहीं आए हैं। यदि गुपचुप भाजपा की सदस्यता का फार्म भर भी दिया हो तो किसी को इसकी जानकारी नहीं है। ऐसे में चौधरी का भाजपा की बैठक में मौजूद रहना चौंकाने वाला ही था। यहां बता दें कि इस बैठक में सिर्फ पहली पंक्ति के नेताओं को ही आने की इजाजत थी। निचले स्तर के भाजपा पदाधिकारी भी इसमें नहीं बैठ पाए थे। ऐसी बैठक में चौधरी की मौजूदगी ने उनके भाजपा में शामिल हो जाने संबंधी सवाल पैदा किया है।
-तेजवानी गिरधर
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शनिवार, 23 जुलाई 2016

गुबार निकालने का मौका दिया, ताकि ठंडे पड़ जाएं

कानाफूसी है कि सत्ता और संगठन में तालमेल की खातिर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जो फीड बैक लेने की कवायद की है, वह कार्यकर्ताओं का गुबार निकालने को ही की गई है, ताकि वे अपना गुस्सा निकाल कर शांत हो जाएं।
असल में भाजपा आलाकमान अपने कार्यकर्ता का मिजाज बखूबी जानता है। उसे पता है कि उसके कार्यकर्ता को विरोध की कितनी बढिय़ा ट्रेनिंग दे रखी है। अब जब कि केन्द्र व राज्य दोनों जगह भाजपा की ही सरकार है और कुल मिला कर परफोरमेंस आशा के अनुरूप नहीं है तो कार्यकर्ता उबल ही रहा होगा। उसके साथ परेशानी ये है कि वो सार्वजनिक रूप से विरोध प्रदर्शन भी नहीं कर सकता। कांग्रेस की सरकार होती तो अब तक आसमान सिर पर उठा लेता, मगर खुद की ही सरकार के खिलाफ बेचारा क्या बोले। और ये जो भीतर दम तोड़ती भड़ास है वह किसी दिन विस्फोट का रूप ले सकती है, लिहाजा उसे जानबूझ कर ऐसा मंच दिया गया ताकि वह अपनी भड़ास निकाल सके। भड़ास निकाल कर वह तनिक शांत हो जाएगा। उसे यही सुकून काफी राहत देगा कि उसने अमुक मंत्री-नेता के सामने खूब खरी खोटी सुनाई। उसके बाद कुछ हो या नहीं, मगर कम से कम भड़ास तो निकल गई। पार्टी के कर्ताधर्ता भी जानते हैं कि कार्यकर्ता रो धो कर बैठ जाएगा, लिहाजा बड़े ही संयम से उन्होंने कार्यकर्ता की बात सुनी और चिर परिचित अंदाज में आश्वासन भी दे दिया। इस कवायद का एक फायदा ये भी रहा कि कौन अनुशासित मूक बधिर और कौन ज्यादा उछल रहा है, ताकि उसी के अनुरूप आगे उसके साथ बर्ताव किया जाए। रहा सवाल मीडिया का तो उसे छापने का मसाला मिल गया। बाकी होना जाना क्या है, सब जानते हैं। होना वही ढ़ाक के तीन पात है।
-तेजवानी गिरधर
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गुरुवार, 21 जुलाई 2016

जाट किसी की कृपा से नहीं, अपने दमखम से नेता बने हैं

भाजपा के बूथ स्तरीय सम्मेलन में जिस प्रकार निवर्तमान केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के समर्थकों ने हंगामा किया, वो इस बात का पक्का सबूत है कि प्रो. जाट भाजपा में किसी की कृपा से नेता नहीं बने हैं, बल्कि अपने दमखम और जनाधार की वजह से मंत्री स्तर पर पहुंचे थे। प्रो. जाट के समर्थकों ने जैसा हंगामा किया, वह भाजपा और संघ की अनुशासन प्रिय रीति-नीति से कत्तई मेल नहीं खाता, फिर भी अगर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ को कहना पड़े कि जाट भाजपा के सम्मानित नेता हैं, उन जैसे नेताओं के कारण ही भाजपा सत्ता में है तो समझा जा सकता है कि कथित रूप से बीमारी के कारण से प्रो. जाट को मंत्रीमंडल से हटाए जाने के बाद राज्य की भाजपा इकाई और मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को कैसे सांप सूंघा हुआ है। कदाचित इसी वजह से ये खबरें आईं हैं कि प्रो. जाट के सम्मान को बरकरार रखने के लिए किसी आयोग में मंत्री के समकक्ष अध्यक्ष सौंपने पर विचार किया जा रहा है।
प्रो. जाट की जमीन पर कितनी पकड़ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके समर्थक अजमेर में होने वाले राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस समारोह के बहिष्कार की धमकी देने की जुर्रत कर रहे हैं। यह कोई छोटी मोटी बात नहीं। यह जातीय एकजुटता का प्रमाण है, जिसके आगे हर राजनीतिक दल को झुकना ही होता है। प्रो. जाट केवल भाजपा के दम पर नहीं हैं, बल्कि उनकी अपने समर्थकों की लंबी चौड़ी फौज है, जो कि प्रो. जाट के केन्द्र व राज्य में मंत्री रहते उपकृत हो चुकी है। हालांकि संघ ने उन्हें कभी पसंद नहीं किया, मगर वे इसी कारण भाजपा में अपना वजूद रखते हैं, क्योंकि वे अपने दम पर ही परंपरागत रूप से कांग्रेस विचारधारा के रहे जाट समुदाय को भाजपा में लेकर आए। मेरी नजर में अजमेर में वे एक मात्र ऐसे नेता हैं, जो इस प्रकार हाईकमान से आंख से आंख मिला कर बात कर सकते हैं, वरना बाकी के तो मात्र पार्टी टिकट की वजह से जीतते हैं और मंत्री भी मुख्यमंत्री की कृपा से ही बनते हैं। उनके साथ वसु मैडम किस अंदाज में बात करती हैं, ये या तो वसु मैडम ही जानती हैं, या फिर वे खुद अथवा वहां मौजूद चंद व्यक्ति।
वस्तुत: पिछले परिसीमन के बाद अजमेर लोकसभा क्षेत्र जाट बहुल हो गया है। चूंकि भाजपा के पास प्रो. जाट से ज्यादा ताकतवर जाट नेता नहीं था, इसी कारण पिछले लोकसभा चुनाव में उनको मैदान में उतारा और वह प्रयोग सफल रहा। हालांकि उनकी राज्य में जलदाय मंत्री पद छोड़ कर केन्द्र में जाने की कत्तई इच्छा नहीं थी, मगर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा हाईकमान के दबाव में पार्टी हित के कारण चुनाव लडऩा पड़ा। जीतने के बाद उन्हें केन्द्र में राज्य मंत्री के पद से नवाजा गया, मगर दो साल पूरे होते ही स्वास्थ्य कारणों के चलते हटाया गया है तो स्वाभाविक रूप से प्रो. जाट के समर्थक नाराज हैं। यही वजह है कि राज्य की भाजपा इकाई को चिंता सता रही है कि प्रो. जाट को कैसे राजी किया जाए। राज्य में एक विभाग का केबीनेट मंत्री पद भले चंगे संभाल रहे नेता को उसकी इच्छा के विपरीत केन्द्र में भेजा गया और दो साल में अदद सांसद की हैसियत में ला कर खड़ा कर दिया गया तो वसुंधरा पर भी अब ये दबाव है कि वे उन्हें कहीं ने कहीं एडजस्ट करें।
-तेजवानी गिरधर
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शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

हरफनमौला पत्रकार हैं राजेन्द्र याज्ञिक

तीर्थराज पुष्कर की सौंधी खुशबू में उपजे दैनिक नवज्योति के वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र याज्ञिक 27 साल की नौकरी के बाद सेवानिवृत्त हो गए। उल्लेखनीय बात ये कि उनकी पूरी पत्रकारिता बेदाग रही। कभी किसी विवाद में नहीं फंसे। मेरे साथ उन्होंने आधुनिक राजस्थान में काम किया। उसके बाद नवज्योति चले गए। उस जमाने में दैनिक नवज्योति में काम करना बहुत प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता था। हर पत्रकार का सपना होता था कि वह नवज्योति में प्रवेश करे। अजमेर से राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर के संस्करण प्रकाशित होने के बाद विकल्प बढ़ गए। खैर, जिस समय उन्होंने दैनिक नवज्योति में प्रवेश किया, उस वक्त बड़ी जांच परख कर रखा जाता था। यूं अजमेर में अच्छे पत्रकारों जननी के रूप में दैनिक न्याय प्रतिष्ठित है, मगर यहां की पत्रकारिता को दिशा देने में दैनिक नवज्योति का अहम स्थान है।
खुशमिजाज याज्ञिक ठंडे दिमाग के मालिक हैं, इस कारण उनका कभी किसी से विवाद नहीं रहा। गुस्से में तो मैने उन्हें कभी देखा ही नहीं। न तो वे कभी किसी प्रपंच में फंसे, न ही पत्रकारों की राजनीति में उलझे। उनमें कितनी ऊर्जा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे जब पुष्कर में रहते थे, तब सुबह अजमेर आ जाते और देर रात लौटते। असल में उन्होंने पत्रकारिता का बहुत डूब कर आनंद लिया है। यदि ये कहा जाए कि पत्रकारिता को उन्होंने महज नौकरी न मान कर जीवन समझ कर जिया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। विशेष बात ये है कि अन्य विभागों के साथ उन्होंने लंबे समय तक क्राइम रिपोर्टिंग भी जम कर की है। जबकि बहुधा ऐसा होता है कि क्राइम रिपोर्टर टाइप्ड हो जाता है। उनके पास जो भी विभाग बीट के रूप में था, उसकी उन्होंने पूरी मास्टरी की। क्या मजाल कि विभाग में पत्ता भी हिले और उन्हें पता न लगे। उन्होंने कई खबरें ऐसी भी लिखीं, जिसकी तह तक जाना किसी और पत्रकार के लिए संभव नहीं था। सीआईडी की खबरों पर भी उनकी सबसे ज्यादा पकड़ रही। सांस्कृतिक खबरें भी बहुत रोचक ढंग से लिखीं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वे अजमेर के पहले ऐसे पत्रकार हैं, जिनकी दरगाह से जुड़े मसलों पर जबरदस्त पकड़ रही है। हालांकि उनके बाद दैनिक भास्कर के चीफ रिपोर्टर सुरेश कासलीवाल ने भी अपनी पकड़ साबित की है।
याज्ञिक अजमेर जिले के संभवत: ऐसे पहले पत्रकार हैं, जिनको उत्कृष्ठ पत्रकारिता के लिए जिला प्रशासन ने सबसे पहले सम्मानित किया। उस सम्मान का महत्व इस वजह से माना जा सकता है, क्योंकि वह खालिस योग्यता के आधार पर दिया गया। आपसी प्रतिस्पद्र्धा के चलते अन्य समाचार पत्रों के पत्रकारों ने ऐतराज किया तो उसके बाद प्रशासन ने पत्रकारों की राजनीति से बचने के लिए किसी भी पत्रकार को स्वाधीनता दिवस व गणतंत्र दिवस पर सम्मानित करने पर अघोषित रोक ही लगा दी। उनके सम्मान के बाद तकरीबन 20 साल तक किसी भी पत्रकार को सम्मानित नहीं किया गया। बाद में यह परंपरा तब टूटी, जब मेरा नंबर आया, हालांकि उसमें पेच ये रहा कि मुझे पत्रकारिता के लिए नहीं, बल्कि अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक के लिए सम्मानित किया गया। तत्कालीन कलैक्टर मंजू राजपाल पहले तो केवल इसी कारण सम्मानित करने को तैयार नहीं थीं कि मैं पत्रकार हूं। जब उनको अधीनस्थ अधिकारियों ने समझाया कि मेरा प्रस्ताव अजमेर के इतिहास पर पुस्तक लिखने की उपलब्धि की वजह से है, तब जा क
र वे राजी हुईं। खैर, उसके बाद तो पत्रकारों को सम्मानित करने का सिलसिला शुरू हो गया है। अब तो हालत ये है कि तीनों बड़े समाचार पत्रों को संतुष्ट करने के लिए हर एक के किसी एक पत्रकार को सम्मानित किया जाने लगा है।
बहरहाल, जैसा कि दैनिक नवज्योति के स्थानीय संपादक ओम माथुर ने अपने आलेख में लिखा है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी पत्रकारिता में उनके जलवे हम देखते रहेंगे, अजमेर वासियों के लिए सुखद बात है। मैं उनकी लेखनी अनवरत जारी रहने और लंबी उम्र की कामना करता हूं।
-तेजवानी गिरधर
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नाम चाहे कितने ही पहुंचें, कार्यकारिणी तो पायलट ही फाइनल करेंगे

हालांकि पहले ये समझा जा रहा था कि शहर जिला कांग्रेस कमेटी की नई कार्यकारिणी सितंबर के बाद ही घोषित हो पाएगी, मगर प्रदेश के प्रभारी गुरुदास कामथ के निर्देश के बाद कमेटी के गठन की कवायद यकायक तेज हो गई है। जाहिर है कि कार्यकारिणी में अपना नाम जुड़वाने के इच्छुक दावेदारों में भी भारी हलचल है। हर कोई अपने आका के जरिए अपना नाम जुड़वाने की जुगाड़ कर रहा है।
समझा जाता है कि तकरीबन ढ़ाई सौ कार्यकर्ता हैं, जो कि कार्यकारिणी में आना चाहते हैं। कार्यकर्ताओं की इतनी संख्या इस कारण हो गई है क्योंकि पूर्व विधायकों से भी नाम सुझाने को कहा गया है।  हालांकि प्रदेश हाईकमान ने ऐसा सबको साथ लेकर चलने के मकसद से किया है, मगर निचले स्तर पर कई गुटों में बंटे कार्यकर्ताओं में सिर फुटव्वल की स्थिति पैदा हो गई है। ज्यादा खलबली उन कार्यकर्ताओं में है, जो कि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट से नाइत्तफाकी रखने वाले पूर्व विधायकों से दूर रह कर अपने आपको सीधे पायलट खेमे से जोड़ कर चल रहे थे। उन्हें लग रहा है कि यदि पायलट विरोधी पूर्व विधायकों के चहेतों के नाम भी जोड़े जाएंगे, तो फिर उनकी लंबी वफादारी का क्या होगा?
स्वाभाविक रूप से शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन सशंकित हैं कि कहीं उन कार्यकर्ताओं के नाम न मंजूर हो जाएं, जो गुटबाजी के चलते उनसे दूरी बना कर चल रहे थे। जब से वे अध्यक्ष बने हैं, यूं तो कई कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यक्रमों में शिरकत की है, मगर उनमें से कुछ उनके बेहद करीब आने में कामयाब हो गए। जाहिर सी बात है कि वे जैन के साथ कंघे से कंघा मिला कर इसीलिए चल रहे थे क्योंकि उन्हें कार्यकारिणी में लिए जाने की उम्मीद थी। जैसे ही पूर्व विधायकों से भी नाम मांगे गए और उन्होंने दे दिए तो जैन के करीबी कार्यकर्ताओं में शंका उत्पन्न हो गई। अब वे सीधे जयपुर जा कर जुगाड़ कर रहे हैं। वैसे जैन ये भलीभांति जानते थे कि वे भले ही अध्यक्ष बन गए हों, मगर कार्यकारिणी पर आखिरी मुहर प्रदेश अध्यक्ष ही लगाएंगे। कार्यकारिणी को आखिरी रूप देने के दौरान पूरी छानबीन की जाएगी। पूरी कार्यकारिणी जैन की पसंद की होगी, इसका गुमान उन्हें भी नहीं था। ऐसे में उनकी कोशिश इतनी रहेगी कि उन कार्यकर्ताओं के नाम जरूर जुड़वाएं, जो कि उनके साथ एक जुट हो कर चल रहे हैं और आगे भी चलेंगे।
वैसे उम्मीद यही की जा रही है कि कार्यकारिणी संतुलित होगी और उसमें सभी गुटों को स्थान मिलेगा। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के लिए ये जरूरी भी है। अब देखने वाली बात ये है कि पायलट से नाइत्तफाकी रखने वाले नेताओं के कितने चहेते कार्यकारिणी में स्थान हासिल कर पाते हैं। बाकी इतना तय है कि कार्यकारिणी का एक एक नाम पायलट की जानकारी से गुजरेगा। अपना चुनाव क्षेत्र होने के कारण वे इसमें तनिक भी लापरवाही नहीं करेंगे।

बुधवार, 13 जुलाई 2016

क्या सांवरलाल जाट को राजस्थान किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया जा रहा है?

हाल ही केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए गए प्रो. सांवरलाल जाट को राजस्थान किसान आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इस आशय का समाचार सोशल मीडिया पर चल रहा है। इस समाचार में कितना दम है, मगर इतना तय है कि कहीं न कहीं प्रो. जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल से हटाए जाने के बाद जाटों, विशेष रूप से अजमेर जिले के जाटों की नाराजगी से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व भाजपा हाईकमान चिंतित हैं। यही वजह है कि प्रो. जाट को फिर से किसी बड़े पद पर स्थापित किए जाने पर विचार किया जा सकता है। हालांकि प्रो. जाट के स्थान पर नागौर जिले के सांसद सी. आर. चौधरी का समायोजन कर जाटों को राजी करने की कोशिश जरूर की गई है, मगर उसका लाभ अजमेर जिले में होता नहीं दिखाई देता। अजमेर व नागौर के जाट में मौलिक फर्क है।
असल में आजादी के बाद लंबे समय तक जाट समुदाय का रुझान कांग्रेस की ओर रहा है, मगर प्रो. जाट संभवत: पहले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अजमेर जिले के जाटों को भाजपा के साथ जोड़ा। बेशक यहां के जाटों पर उनकी पकड़ जातिवाद के नाते ही है, मगर खुद उनकी भी निजी पैठ इस समाज में है। जब वे भाजपा में आए, उस वक्त तक भी नागौर जिले के जाट कांग्रेस के साथ थे। बाद में जा कर वहां भी भाजपा की बयार आई। कुल मिला कर चौधरी को मंत्री बनाए जाने से अजमेर के जाटों पर कोई असर नहीं पड़ा है। वे अपने नेता के मंत्री पद से हटाए जाने से बहुत आहत हैं। उन्हें अफसोस है कि वे अच्छे भले राजस्थान में जलदाय विभाग का केबीनेट मंत्री पद ले कर बैठे थे और उनकी राष्ट्रीय राजनीति में जाने की कोई इच्छा नहीं थी, फिर भी केवल और केवल कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट को हराने के लिए उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया। चलो, केन्द्र सरकार में राज्य मंत्री पद दे कर उनका कद बरकरार रखा गया, मगर दो साल बाद ही हटा दिया गया। अब वे अदद सांसद रह गए हैं, जो कि न तो प्रो. जाट को गवारा है और न ही उनके समर्थकों की फौज को। और ये फौज ऐसे ही नहीं बनी है। प्रो जाट ने सैकडों समर्थकों को निहाल किया है, जिनकी सात पीढी भी उनका अहसान नहीं चुका पाएगी। यदि ये कहा जाए कि जाट नागौर जिले के बाबा नाथूराम मिर्धा शैली के नेता हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। समझा जाता है कि अजमेर के जाटों की नाराजगी को देखते हुए ही प्रो. जाट को मंत्री जैसे किसी सुविधा युक्त पद पर बैठाने का रास्ता निकाला जा रहा है।
रहा सवाल वसुंधरा राजे के साथ प्रो. जाट की ट्यूनिंग का तो यह सर्वविदित है कि उन्हें वसुंधरा का संकट मोचक हनुमान माना जाता था। कई गंभीर मसलों में वे उनके साथ कंघे से कंघा मिला कर खड़े रहे। हालांकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कभी प्रो. जाट और उनकी जीवन शैली को पसंद नहीं करता, मगर फिर भी वसुंधरा ने उन्हें अपने दरबार में अहम जिम्मेदारी दे रखी थी। अपने पहले कार्यकाल में भी मंत्री बनाया और दूसरे में भी। अब जब वे लौट कर अजमेर आ गए हैं तो वसुंधरा पर ही जिम्मेदारी आ गई है कि कैसे उनका पुनर्वास किया जाए। यहां यह बिलकुल स्पष्ट है कि यदि प्रो. जाट अदद सांसद रह कर कमजोर होते हैं तो जाटों पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ जाएगी। ऐसे में जाट बहुल अजमेर लोकसभा क्षेत्र में एक बड़ा वोट बैंक खिसकने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा, जो कि रणनीतिक रूप से भाजपा के लिए कत्तई मुफीद नहीं रहेगा। सोशल मीडिया पर चल रही खबर कितनी सही है, पता नहीं, मगर तार्किक रूप से बात गले उतरती तो है। इसमें एक संभावना ये भी हो सकती है कि खराब स्वास्थ्य के चलते यदि प्रो. जाट स्वयं ही खुद की बजाय अपने पुत्र को आगे करते हैं तो उसको भी तवज्जो दी जाएगी।
-तेजवानी गिरधर
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मंगलवार, 5 जुलाई 2016

क्या अब प्रो. जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा को आगे लाया जाएगा?

प्रो. सांवरलाल जाट
अजमेर के सांसद व केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को कथित रूप से स्वास्थ्य कारणों से मंत्रीमंडल से हटाए जाने के साथ ही राजनीतिक हलकों में एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। वो यह कि अगर प्रो. जाट अस्वस्थता के चलते वे बहुत सक्रिय नहीं रह सकते तो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनके विकल्प के तौर पर किस जाट नेता को आगे बढ़ाया जाएगा।
वस्तुत: पिछले परीसीमन के बाद अजमेर लोकसभा क्षेत्र जाट बहुल हो गया है। इसी के मद्देनजर भाजपा ने पिछले चुनाव में जाट नेता प्रो. जाट को मैदान में उतारा और वह प्रयोग सफल रहा। चाहे उसमें मोदी लहर का भी योगदान रहा हो। सब जानते हैं परिसीमन से पहले यह रावत बहुल सीट थी, उसी की बदौलत प्रो. रासासिंह रावत लगातार यहां से जीतते रहे। परिसीमन के बाद रावत बहुल इलाका इस लोकसभा क्षेत्र से कट गया। उसी के चलते प्रो. रासासिंह रावत की जगह किरण माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतारा गया, मगर वे कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट के आगे टिक नहीं पाईं और वह प्रयोग विफल हो गया। गलती को सुधारते हुए उसके बाद के चुनाव में प्रो. जाट पर दाव खेला गया और वह पूरी तरह से सफल रहा। अब जब स्वास्थ्य कारणों के चलते प्रो. जाट को मंत्रीमंडल से हटाया गया है तो भाजपा के लिए विचारणीय सवाल ये हो गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए किस जाट नेता को उभारा जाए।
यूं तो भाजपा के पास कई जाट नेता हैं, मगर समझा जाता है कि प्रो. जाट अपने बेटे रामस्वरूप लांबा को आगे लाना चाहेंगे। अपने बेटे को राजनीतिक वारिस बनाने के मकसद से ही उसका नाम उन्होंने पिछले नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में आगे बढ़ाया था। ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। तब लांबा के लिए पूरी ताकत लगाई गई, मगर उन दिनों भाजपा में परिवारवाद के खिलाफ माहौल बना होने के कारण उनको मौका नहीं मिला। यदि भाजपा लांबा को आगे लाना चाहेगी तो स्वाभाविक रूप से उनको प्रो. जाट के निजी समर्थकों व जाट समाज का पूरा सहयोग मिलेगा। यूं भी मंत्री पद से हटाए जाने का उनके समर्थकों व समाज को मलाल है, ऐसे में लांबा को संवेदना का फायदा मिल सकता है। ज्ञातव्य है कि प्रो. जाट केवल भाजपा के दम पर नहीं हैं, बल्कि उनकी अपने समर्थकों की लंबी चौड़ी फौज है, जो कि प्रो. जाट के केन्द्र व राज्य में मंत्री रहते उपकृत हो चुकी है। मंत्री पद से हटाए जाने के कारण भाजपा हाईकमान पर भी समायोजन के तौर पर लांबा को तवज्जो देने का दबाव रहेगा।
भाजपा के पास दूसरे सबसे दमदार नेता अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी हैं, जो कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से जबरदस्त नाइत्तफाकी के चलते कांग्रेस छोड़ चुके हैं। हालांकि भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, मगर पिछले चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए खुल कर काम किया था। डेयरी अध्यक्ष के नाते चौधरी का अजमेर लोकसभा क्षेत्र के गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी तक नेटवर्क है। जिले का शायद की कोई ऐसा गांव हो, जहां तक उनकी पहुंच व पकड़ न हो। अगर भाजपा उनको आगे लाती है तो उनसे बेहतर कोई नेता हो नहीं सकता। वैसे यहां आपको बता दें कि कुछ लोग अब भी चौधरी की कांग्रेस में वापसी की कोशिशों में लगे हुए हैं। भाजपा के पास तीसरा नाम है श्रीमती सरिता गैना का, जो कि जिला प्रमुख रह चुकी हैं। जिला प्रमुख रहते उन्होंने पूरे जिले में अपनी कुछ पकड़ बनाई, मगर पिछले विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर से पराजित हो कर अपने नंबर कम करवा चुकी हैं। प्रो. जाट की सीट खाली होने के बाद सरिता गैना इस जीती हुई सीट को केन्द्र व राज्य में भाजपा सरकारें होते हुए भी कब्जे में नहीं रखवा पाईं। उनके स्वसुर सी. बी. गैना की भी दावेदारी गिनी जाती रही है। उनके अतिरिक्त किशनगढ़ विधायक भागीरथ चौधरी भी एक विकल्प हो सकते हैं। लब्बोलुआब यह तय है कि प्रो. जाट की अस्वस्था के चलते आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर किसी जाट नेता पर ही दाव खेलेगी।
 -तेजवानी गिरधर
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कुशल मैनेजर निकले सी. आर. चौधरी

केन्द्रीय मंत्रीमंडल में राज्यमंत्री के रूप में शुमार नागौर के सांसद सी. आर. चौधरी ने यह साबित कर दिया है कि वे एक कुशल मैनेजर हैं। उन्होंने मौका लगते ही केन्द्र सरकार में स्थान बना लिया।
असल में चौधरी मौलिक रूप से राजनीतिज्ञ नहीं हैं। वे प्रशासनिक सेवा के अफसर रहे हैं। और प्रशासनिक अफसरों को पता होता है कि सत्ता तो बदलती रहती है, इस कारण सभी राजनीतिक दलों में घुसपैठ बनाए रखते हैं। जब जिसकी सरकार, तब उस दल के आका से ट्यूनिंग। और बेहतर यही होता है कि अगर ढंग के पद पर रहना है तो जिसका राज, उसके पूत बन कर रहो।
हालांकि चौधरी जब तक सरकारी सेवा में रहे, तब उनकी अपनी कार्यशैली की वजह से पहचान रही। एक कुशल प्रशासक के उनमें सभी गुण हैं। अजमेर में सिटी मजिस्ट्रेट पद पर रहते उनके संपर्क में आए लोग जानते हैं कि वे कितने ठंडे दिमाग से उग्र से उग्र आंदोलनकारियों को कैसे मीठी गोली देते थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि चौधरी की कार्यकुशलता की वजह से उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान लोक सेवा आयोग का सदस्य बनाया था, मगर इस सच को भी नहीं नकारा जा सकता कि इसके पीछे जाट समुदाय को खुश करने की भी नीति रही। यही वजह रही कि उनका झुकाव कांग्रेस की ओर माना जाने लगा। इसे वे भलीभांति जानते थे, इस कारण जैसे ही भाजपा की सरकार आई तो मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की नजदीकी हासिल करने की कोशिश की। भाजपा भी चाहती थी कि जाट बहुल नागौर जिले के किसी शख्सियत को आगे बढ़ाया जाए, ताकि उसके माध्यम से कांग्रेस विचारधारा के रहे जाटों में पैठ बनाई जा सके। इसी के तहत उन्हें वसुंधरा राजे ने उन्हें राजस्थान लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया। यानि के चौधरी ने बड़ी चतुराई से अपने जाट होने का फायदा उठाया। यह कम चतुराई नहीं कहलाएगी कि सरकारी पद से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने राजनीति का रुख कर लिया और मिर्धा परिवार के दबदबे वाले नागौर जिले से भाजपा का टिकट हासिल कर लिया। आकर्षक व्यक्तित्व, जातीय लामबंदी और मोदी लहर के दम पर वे जीत भी गए। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहला मंत्रीमंडल बनाया तो आयोग अध्यक्ष जैसे पद रहे योग्य प्रशासक के नाते उसमें प्रवेश की कोशिश की, मगर धरातल पर प्रो. सांवरलाल जाट की पकड़ मजबूत होने के कारण उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हुई। चूंकि प्रो. जाट को राज्य का केबीनेट मंत्री रहते लोकसभा चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज सचिन पायलट को हराया तो जाट समुदाय से पहला हक उनका ही था। खैर, अब जब कि स्वास्थ्य कारणों से प्रो. जाट को हटाया गया तो चौधरी ने तुरंत उनकी जगह हासिल करने का जुगाड़ कर लिया। वे सुलझे विचारों के नेता हैं, ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि वे अपनी कार्यशैली से मोदी का दिल जीत लेंगे। हालांकि उनका रुझान अपने गृह जिले नागौर की ओर ज्यादा रहेगा, मगर उम्मीद की जाती है कि नागौर के अजमेर संभाग में होने के कारण अजमेर का भी ख्याल रखेंगे। यूं भी काफी समय अजमेर में बिताने के कारण अजमेर के प्रति उनका विशेष रहा है।
-तेजवानी गिरधर
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प्रो. जाट का मंत्री पद से हटना अजमेर को बड़ा झटका

स्मार्ट सिटी की ओर कदम बढ़ा रहे अजमेर के लिए केन्द्रीय जलदाय राज्य मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट का मंत्रीमंडल से हटना एक बहुत बड़ा झटका है। हालांकि अजमेर कोटे से राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र यादव भी केन्द्र में एक प्रभावी नेता हैं, मगर प्रो. जाट जमीन से जुड़े नेता रहे हैं, जिनके हटने के बाद स्थानीय राजनीति में नए समीकरण बनने का धरातल तैयार हो गया है।
असल में एक लंबे अरसे से यह चर्चा थी कि प्रो. जाट को मंत्रीमंडल से हटाया जाएगा। कोई कहता कि बीमारी की वजह से वे अब अक्षम हैं, इस कारण तो कोई कहता उनकी कोई खास परफोरमेंस नहीं, इस कारण वे मोदी को पसंद नहीं हैं, मगर इतना तय है कि वे मंत्रीमंडल में रहे ही अपने व्यक्तिगत दम पर और जातीय समीकरण के तहत। यह उनका दुर्भाग्य ही रहा कि वे राज्य में केबीनेट स्तर के मंत्री रहे, मगर पार्टी हित की खातिर लोकसभा का चुनाव लडऩा पड़ा। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को हराने के लिए उन्हें लड़ाया गया। वे खरे भी उतरे। हालांकि लोकदल से भाजपा में आए प्रो. जाट राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पसंद की कभी नहीं रहे, मगर राज्य की राजनीति में अहम स्थान रखने के कारण कभी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हनुमान रहे प्रो. जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान मिला। आपको याद होगा कि सचिन पायलट अजमेर के पहले सांसद थे, जिन्हें केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान मिला था। अजमेर विकास की राह पर चला ही था कि अगले चुनाव में मोदी लहर में टिक नहीं पाए। उनके हारने के बाद जो स्थान रिक्त हुआ, उसकी पूर्ति प्रो. जाट ने की। मगर इसे अजमेर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि केन्द्र में मंत्री बनने के बाद उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता ही गया। कुछ ऐसा ही राज्य में भूतपूर्व केबीनेट मंत्री स्वर्गीय किशन मोटवानी के साथ हुआ। जब वे अजमेर को कुछ देने की हैसियत में आए तो उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और अंतत: निधन हो गया।
श्रीमती वसुंधरा राजे की पूर्ववर्ती सरकार में जल संसाधन मंत्री रहे प्रो. सांवरलाल जाट प्रदेश के प्रमुख भाजपा नेताओं में शुमार हैं। उन्होंने श्रीमती वसुंधरा राजे के लिए कई बार संकट मोचक के रूप में भूमिका निभाई। स्वर्गीय श्री बालूराम के घर गोपालपुरा गांव में 1 जनवरी 1955 को जन्मे प्रो. जाट ने एम.कॉम. व पीएच.डी. की डिग्रियां हासिल की हैं। पेशे से वे प्रोफेसर हैं, मगर बाद में राजनीति में भी उन्होंने सफलता हासिल की। वे 13 दिसंबर 1993 से 30 नवंबर 1998 तक सहायता एवं पुनर्वास विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 8 दिसंबर 2003 से 8 दिसंबर 2008 तक जल संसाधन, इंदिरा गांधी नहर परियोजना, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, भू-जल एवं सिंचित क्षेत्र विकास विभाग के मंत्री रहे। तेरहवीं विधानसभा के चुनाव में उनका विधानसभा क्षेत्र भिनाय परिसीमन की चपेट में आ गया और उन्होंने नसीराबाद से चुनाव लड़ा, लेकिन कुछ वोटों के अंतर से ही महेन्द्र सिंह गुर्जर से पराजित हो गए। पिछले विधानसभा चुनाव में वे नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र से जीते और राज्य में केबीनेट मंत्री बने। इसके बाद उन्हें सचिन पायलट को टक्कर देने के लिए लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया और वे विजयी हुए। उनके सांसद बनने के बाद जब नसीराबाद में उपचुनाव हुआ तो भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती सरिता गैना रामनारायण गुर्जर से हार गईं।
बहरहाल, प्रो. जाट का हटना अजमेर के लिए एक बड़ा झटका तो है ही, खुद उनके लिए भी यह राजनीतिक अवसान कहलाएगा। तीन साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में क्या स्थितियां बनेंगी, कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर भाजपा को उनके समकक्ष दावेदार को तो तलाशना ही होगा।

-तेजवानी गिरधर
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सोमवार, 4 जुलाई 2016

मेडिकल मार्केट : घर के भेदी ने ही लंका ढ़हाई

संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय के सामने स्थित मेडिकल मार्केट में दुकानों में शामिल किए गए बरामदे हटना और वह भी जिला प्रशासन के साथ सहमति के बाद, बेशक एक बड़ी उपलब्धि है। सर्वविदित है कि जिला कलैक्टर गौरव गोयल की सूझबूझ से ही इस मसले का हल हुआ है। एक सफलता ये कि वर्षों पुराने कब्जे, जिसकी किसी को भी याद नहीं थी, की जानकारी निकालना और दूसरी ये कि बड़ी चतुराई से दुकानदारों को स्वयं ही कब्जे हटाने के लिए राजी करना। यह कितनी बड़ी उपलब्धि है, इसका अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि  तकरीबन दो-दो करोड़ रुपए मूल्य की जमीन मुक्त कराई गई है। ज्ञातव्य है कि इस इलाके में जमीनों के दाम दो लाख रुपए वर्ग गज है।
जैसे ही दुकानदारों ने कब्जे हटाना शुरू किया है, हर जगह एक ही चर्चा है कि ये तो कमाल ही हो गया। जिन कब्जों का किसी को पता तक नहीं था, या चंद अधिकारियों का पता था तो भी वे चुप्पी साधे बैठे थे, वे बड़ी आसानी से हट रहे हैं, तो कमाल ही कहलाएगा। स्वाभाविक रूप से दुकानदारों के लिए यह बेहद कष्टप्रद है, मगर आम आदमी खुश है कि वह मार्ग अब बहुत सुगम हो जाएगा। जहां तक इन कब्जों का वर्षों तक बने रहने का सवाल है, यह सब मिलीभगत का ही परिणाम है। अगर कभी किसी ने शिकायत भी की होगी तो किसी कलैक्टर ने उस पर गौर नहीं किया। किसी भी कलैक्टर ने पंगा मोल लेना उचित नहीं समझा। वर्तमान कलैक्टर गोयल ने चाहे मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आगामी 15 अगस्त को राज्य स्तरीय स्वाधीनता समारोह में आने के मद्देनजर, चाहे स्मार्ट सिटी की कवायद के चलते, इस बड़े मसले में हाथ डाला और बखूबी उसे अंजाम तक भी पहुंचाने जा रहे हैं। ऐसे में हर किसी को आश्चर्य हो रहा है कि आखिर कलैक्टर का पता लगा कैसे?
मेडिकल स्टोर वालों के बीच कानाफूसी है कि घर के भेदी ने ही यह लंका ढ़हाई है। उनके ही बीच के एक खुरापाती दुकानदार ने निहित स्वार्थ पूरा न होने पर इन कब्जों की जमीनी हकीकत जिला कलैक्टर तक पहुंचाई है। बताते हैं कि वह खुरापाती कागजों का कीड़ा है। वह सारा काम चुपचाप कागजों यानि सबूतों के आधार पर ही करने का आदी रहा है। इस मामले में भी उसने वही फार्मूला अपनाया, जिसका कोई तोड़ था ही नहीं। उधर जिला कलैक्टर गोयल भी कुछ कर गुजरने को आए दिखते हैं। उन्हें जैसे ही पता लगा कि ये कब्जे तो सरासर गलत हैं, उन्होंने ठोस कदम उठा डाला। चूंकि दुकानों की मालिक संस्था रेड क्रॉस सोसायटी के पदेन अध्यक्ष गोयल ही हैं, इस कारण उन्होंने भी धौंस देने में देर नहीं कि अगर दुकानदार कोर्ट गए तो वे भी खुद उनके सामने खड़े हो जाएंगे। आखिरकार दुकानदारों ने समझौता करना ही बहेतर समझा। अब वे सारे दुकानदार मन ही मन उस भेदी को गालियां बक रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर
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रविवार, 3 जुलाई 2016

स्मार्ट सिटी के लिए अजमेर को नहीं मिली अब तक टैग लाइन

अमरीका दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमरीकी राष्ट्रपति  बराक ओबामा की मुलाकात के समय अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान हुए एक अरसा हो गया, मगर आज तक वह सब्जबाग जमीन पर नहीं उतर पाया है। अजमेर स्मार्ट सिटी तो जब बनेगा, तब बनेगा, मगर आज तक उसके लिए टैग लाइन तक तय नहीं हो पाई है।
आप देखिए कि केवल टैग लाइन अथवा स्लोगन की कवायद कब से चल रही है। सबसे पहले अजमेर विकास प्राधिकरण की ओर से 8 जनवरी 2015 को दाहरसेन स्मारक पर अजमेर स्मार्ट सिटी विषय पर स्लोगन व लोगो प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में विभिन्न विद्यालयों के कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों ने भाग लिया। इसके बाद 23 जनवरी  को फिर स्कूली विद्यार्थियों की स्लोगन व नारा लेखन प्रतियोगिता पटेल मैदान में हुई। यह पूर्व कलैक्टर आरुषि मलिक के कार्यकाल की बात है। कदाचित प्रशासन को अजमेर : सिटी ऑफ होप्स की टैग लाइन पसंद आई और उसने उसका फेसबुक पेज बना दिया। उसके बाद मौजूदा कलेक्टर गौरव गोयल ने कार्यभार संभाला। उन्हें लगा कि इस दिशा में ठीक से काम नहीं हुआ है। उन्होंने स्वयं पत्रकारों से अजयमेरू प्रेस क्लब में बात करते हुए कहा कि इस टैग लाइन में दम नहीं है। सिटी ऑफ होप्स तो हर शहर पर लागू होता है। हर शहर उम्मीदों का शहर है, लिहाजा अजमेर के लिए विशेष टैग लाइन होनी चाहिए। अजमेर को ऐसी टैग लाइन मिलनी चाहिए जो कि इस शहर की ऐतिहासिकता और आध्यात्मिक प्रतिष्ठा के अनुरूप हो। इस कारण नए सिरे ऑन लाइन प्रतियोगिता आयोजित की गई। नगर निगम की ओर से भी कई कैंप आयोजित किए गए और लोगों को अजमेर स्मार्ट सिटी के बारे में जानकारी दी गई। जाहिर तौर पर प्रतियोगिता में अनेक लोगों ने भाग लिया, मगर आज तक पता नहीं लगा कि उसका आखिर हुआ क्या? प्रतियोगिता में भाग लेने वालों को इंतजार है कि कब परिणाम आएगा। वे रोजाना संबंधित साइट खोल रहे हैं, मगर जल्द ही परिणाम जारी होने की सूचना मात्र मिल रही है। या तो इस ओर प्रशासन का ध्यान नहीं है, या फिर जिला कलेक्टर को अब तक सुझाए गए स्लोगन या टैग लाइन पसंद नहीं आई है। जो भी हो यह स्पष्ट होना चाहिए कि आखिर उस प्रतियोगिता का हुआ क्या?
-तेजवानी गिरधर
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