शनिवार, 23 मार्च 2013

दो राहे पर खड़े हैं नरेन शहाणी भगत

राजस्थान सरकार के वर्ष 2013-14 के बजट में अजमेर नगर सुधार न्यास में पुष्कर और किशनगढ़ औद्योगिक क्षेत्र समाहित कर अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन करने की घोषणा पर जैसे ही अमल की कवायद शुरू हुई है, न्यास सदर नरेन शहाणी भगत दो राहे पर आ गए हैं, जहां उन्हें अपनी आगे की राह तय करनी होगी।
बताया जाता है कि अजमेर विकास प्राधिकरण का गठन जोधपुर विकास प्राधिकरण की तर्ज पर किया जाएगा। अर्थात अजमेर में भी उसका अध्यक्ष जनप्रतिनिधि ही होगा। ऐसे में स्वाभाविक रूप से मौजूदा न्यास सदर भगत को ही अपग्रे्रड कर उसका अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में उनके लिए धर्म संकट ये होगा कि वे अजमेर उत्तर विधानसभा सीट के लिए टिकट मांगें या नहीं। अगर टिकट मांगते हैं तो उन्हें इस बड़े पद से इस्तीफा देना होगा। टिकट मिल गया तो जीत-हार दोनों की संभावना होगी। और अगर इसी पद पर बने रहते हैं तो वर्षों से विधायक बनने की आस अधूरी ही रह जाएगी। हां, अगर सरकार फिर कांग्रेस की बनी तब जरूर वे एक ऐसे ओहदे का सत्ता सुख भोगेंगे, जिसकी शायद उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। उसमें भी एक रिस्क है। वो यह कि अगर इसी पद पर बने रहे और सरकार भाजपा की आ गई तो उनकी तो छुट्टी हो जाएगी, यानि कि ये भी एक जुआ होगा। तभी तो कहते हैं कि राजनीति एक जुआ ही है, जिसमें कुछ भी हो सकता है और उसके लिए तैयार रहना ही होता है। एक बात और भी हो सकती है। वो यह कि प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिए जाने के बाद संभव है कांग्रेस हाईकमान उन्हें टिकट देने से इंकार कर सकती है। यह कह कर कि पार्टी की सेवा के बदले में उन्हें प्राधिकरण का अध्यक्ष बना दिया गया है। इनाम बार-बार थोड़े ही दिया जाएगा। देखते हैं होता है क्या?
-तेजवानी गिरधर