रविवार, 13 जुलाई 2014

लखावत के प्रयास रंग लाए, सवा सौ साल पुराना विवादित ब्रिज हटाया

राजस्थान धरोहर एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत के प्रयासों ने अपना रंग दिखाया और आखिरकार रेलवे के इंजीनियरों को सहमत करके बूढ़ा पुष्कर सरोवर के बीच रेलवे का करीब सवा सौ साल पुराना विवादास्पद ब्रिज को जेसीबी मशीन की सहायता से ध्वस्त कर दिया गया। अपने आप में यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। और यह भी तभी संभव हो पाया, जब केन्द्र व राज्य में एक ही पार्टी भाजपा की सरकार है, साथ ही लखावत ने प्राधिकरण अध्यक्ष के नाते पूरी ताकत लगा दी।
असल में बूढ़ा पुष्कर के कायाकल्प में अंग्रेजों के जमाने में बना यह ब्रिज आड़े आ रहा था। सरोवर के तट पर स्थित पंपिंग स्टेशन से सरोवर के बीच में ब्रिज बना हुआ था। रेलवे लंबे समय तक बूढ़ा पुष्कर से लाखों गैलन पानी लेता था। सरोवर का भूमिगत जलस्तर खत्म होने के बाद से रेलवे का ब्रिज अनुपयोगी हो गया था। मगर सब जानते हैं कि एक बार कब्जा होने के बाद उसे कोई नहीं छोडऩा नहीं चाहता, चाहे सरकारी महकमा हो। इस मामले में भी असल में कोई अफसर न तो पहल करना चाहता था और न ही पंगा मोल लेना चाहता था। उसकी बला से तो ब्रिज सौ दो सौ साल वहीं पड़ा रहे। अगर लखावत रुचि न लें तो ये ऐसा ही पड़ा रहता।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही फिर से बूढ़ा पुष्कर के विकास की कवायद तेज हो गई है। हालांकि इसका जीर्णोद्धार तो लखावत ने पिछली भाजपा सरकार के दौरान ही प्राधिकरण के अध्यक्ष रहते करवाया था, मगर सरकार पलटने के साथ ही यह रुक गया। असल में प्राधिकरण ही ठंडे बस्ते में चला गया था। अब लखावत ने फिर काबिज होने पर बूढ़ा पुष्कर के समग्र विकास के लिए विस्तृत मास्टर प्लान तैयार करवाने की ठानी है और इसी के अनुरूप ही समयबद्ध विकास कराया जाएगा।
लखावत ने इस सिलसिले में मौके पर ही बूढ़ा पुष्कर विकास एवं समारोह समिति की बैठक ली। सामाजिक कार्यकर्ताओं, संत-महात्माओं एवं विभिन्न विभागों के प्रतिनिधियों ने बूढ़ा पुष्कर के विकास के संबंध में आवश्यक सुझाव प्रस्ताव रखे। लखावत ने संबंधित विभागों सामाजिक संस्थाओं को अलग-अलग दायित्व सौंपा। वन विभाग समेत घाट निर्माता समाजों के प्रतिनिधियों को घाटों के किनारे पौधरोपण करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। नेशनल हाईवे के इंजीनियरों को हाईवे निर्माण के दौरान बूढ़ा पुष्कर सरोवर में बरसाती पानी की आवक के लिए पुलिया निर्माण करने तथा अवरोधक हटाने के निर्देश दिए। नगर पालिका के ईओ प्रहलाद स्वरूप भार्गव को तीर्थ यात्रियों की सुविधार्थ सुलभ कॉम्पलेक्स बनाने, स्थायी सफाई कर्मचारी नियुक्त करने के निर्देश दिए। बूढ़ा पुष्कर, गया कुंड, मध्य पुष्कर सरोवर का सीमाज्ञान कराने के निर्देश दिए। ज्ञातव्य है कि इन तीनों तीर्थ स्थलों को हाल ही में नगर पालिका बोर्ड ने पालिका सीमा में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया है। बैठक में घाटों की सुरक्षा के लिए दीवार भव्य प्रवेश द्वार बनाने की जिम्मेदारी एडीए को सौंपी गई। नंद किशोर पाराशर ने बूढ़ा पुष्कर में 108 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा, जिसे लखावत ने मंजूरी देते हुए माहेश्वरी सेवा सदन के अध्यक्ष श्याम सुंदर बिड़ला के संयोजन में एक कमेटी गठित की।
बैठक में विधायक त्रय सुरेश सिंह रावत, अनिता भदेल व भागीरथ चौधरी, नगर पालिकाध्यक्ष मंजू कुर्डिया, कपालेश्वर मंदिर के महंत सेवानंद गिरी, रामसखा आश्रम के महंत रामशरण दास महाराज, उपखंड अधिकारी राष्ट्रदीप यादव, तहसीलदार गजराज सिंह सोलंकी, भाजपा नेता कंवल प्रकाश किशनानी, पार्षद संपत सांखला, पूर्व पालिकाध्यक्ष सूरज नारायण शर्मा, नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत के अतिरिक्त एडीए, नेशनल हाईवे, सार्वजनिक निर्माण, वन, जलदाय, पर्यटन सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी इंजीनियर उपस्थित थे।
-तेजवानी गिरधर

पहले भी विवादित चर्चा में आ गए थे गौरान

अब जब कि आरएएस प्री 2013 परीक्षा में पेपर लीक और परीक्षा निरस्त करने संबंधी मामलों को लेकर खफा एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने आयोग अध्यक्ष हबीब खान गौरान से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने और उनके कार्यकाल की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है, तो यकायक वह प्रकरण भी चर्चा में आ गया है, जबकि उनके नाम को मंथली मामले में गिरफ्तार अजमेर के तत्कालीन एसपी राजेश मीणा ने उजागर किया था। बात ये सामने आई कि दलाल रामदेव ठठेरा उनके पास थैला लेकर गया था। यह सवाल तब उठा था कि मीणा की गिरफ्तारी को दस दिन बीत जाने के बाद भी एसीबी ने यह तथ्य क्यों उजागर नहीं किया कि ठठेरा थैला लेकर आखिर राजस्थान लोक सेवा आयोग के किस उच्चाधिकारी के घर पर कुछ वक्त रुका था? उसने वहां क्या किया? क्या वहां आयोग से जुड़े किसी मसले की दलाली की गई? या फिर वह यूं ही मिलने चला गया, क्योंकि वह उनका पूर्व परिचित था? जाहिर सी बात है कि हर किसी को यह जानने की जिज्ञासा थी कि आखिर वह उच्चाधिकारी कौन है और दलाल ने उसके घर पर जा कर क्या किया? इस बारे में मीडिया ने खबरों के फॉलो अप में उसका जिक्र तो कई बार किया है, मगर अपनी ओर से नाम उजागर करने से बचा, क्योंकि बिना सबूत के संवैधानिक पद पर बैठे उच्चाधिकारी का नाम घसीटना दिक्कत कर सकता था। यहां तक कि मीडिया ने इशारा तक नहीं किया, जबकि ऐसे मामलों में अमूमन वह इशारा तो कर ही देता है, भले ही नाम उजागर न करे।
अपुन ने तभी इस कॉलम में लिख दिया था कि इस मामले की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अच्छी तरह से पता है कि आखिर वह अधिकारी कौन है? ऐसा हो ही नहीं सकता कि रिपोर्टिंग और फॉलो अप के दौरान जिन्होंने पुलिस व एसीबी में अपने संपर्क सूत्रों के जरिए सूक्ष्म से सूक्ष्म पोस्टमार्टम किया हो, उन्हें ये पता न लगा हो कि वह अधिकारी कौन है? मगर मजबूरी ये रही कि अगर एसीबी ने अपनी कार्यवाही में उसका कहीं जिक्र नहीं किया अथवा कार्यवाही में उसे शामिल नहीं किया तो नाम उजागर करना कानूनी पेचीदगी में उलझा सकता है। वैसे भी यह पत्रकारिता के एथिक्स के खिलाफ है कि बिना किसी पुख्ता जानकारी के किसी जिम्मेदार अधिकारी का नाम किसी कांड में घसीटा जाए।
इशारा तो अपुन को भी था, मगर ऑन द रिकार्ड सूचना न होने के कारण नाम का खुलासा नहीं किया, अलबत्ता यह जरूर बता दिया था कि कांग्रेस सरकार एकाएक उस उच्चाधिकारी को फंसाने के मूड में नहीं है। चाहे उसके खिलाफ कुछ सबूत हों या नहीं। इसकी वजह ये है उसकी नियुक्ति ही विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बिगड़े जातीय समीकरण के तहत की थी। इसके अतिरिक्त यदि उस पर हाथ डाला जाता तो आयोग की कार्यप्रणाली को ले कर भी बवाल खड़ा हो जाता।
खैर, एसीबी व सरकार ने जरूर गोरान का नाम अपनी ओर से उजागर नहीं किया, मगर मीणा ने अपनी जमानत अर्जी में इसका हवाला दे कर उस रहस्य से पर्दा उठा दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि एसीबी की प्राथमिकी में जिक्र है कि उन्हें ट्रेप करने वाले दिन ठठेरा गोरान के बंगले पर भी थैला लेकर गया था। मीणा ने इस पर ऐतराज जताया है कि गोरान को नामजद क्यों नहीं किया गया। हालांकि सवाल ये भी रहा कि क्या मीणा को इस तरह किसी और के खिलाफ कार्यवाही न करने पर सवाल उठाने का अधिकार है या नहीं, या कोर्ट उस पर प्रसंज्ञान लेगा या नहीं। वैसे भी एसीबी जब अपनी कार्यवाही को एसपी के खिलाफ अंजाम दे रही थी तो इसी बीच किसी काम से ठठेरा के गोरान के बंगले पर जाने से ही तो यह आरोप नहीं बन जाता कि वे उन्हें भी रिश्वत की राशि देने गया था। हां, इतना जरूर है कि चूंकि गोरान भी आपीएस रहे हैं, इस कारण उसके ठठेरा के संबंध होना स्वाभाविक लगता है।
खैर, जहां तक कानूनी पृष्ठभूमि का सवाल है ये तो एसीबी ही अच्छी तरह से बता सकती है कि गोरान के खिलाफ मामला बनता था या नहीं, मगर ठठेरा के गोरान के घर पर भी जाने से वे भी संदेह के घेरे में तो आ ही गए थे।
आपको याद होगा कि तब एसीबी के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह ने गोरान को यह कह कर क्लीन चिट दे दी कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है। बात बिलकुल ठीक थी। जब साक्ष्य मिला ही नहीं तो कार्यवाही होती भी क्या, मगर ठठेरा का गोरान के घर जाने का खुलासा ही अपने आप में कई सवाल खड़े कर गया था।
अव्वल तो जब गोरान के घर पर ठठेरा के जाने को यदि सामान्य मुलाकात ही माना गया है, तो एसीबी को जरूरत ही क्या पड़ी कि उसने प्राथमिकी में इसका जिक्र किया। जब गोरान व ठठेरा के बीच कुछ गलत हुआ ही नहीं तो उसका जिक्र करना ही नहीं चाहिए था। चलो, एससीबी की इस बात को मान लेते हैं कि उनको गोरान के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है, मगर क्या इतना कहने भर से बात समाप्त हो जाती है। बेहतर ये होता कि वे इस बारे में ठठेरा ने क्या स्पष्टीकरण दिया, इसका खुलासा करते, ताकि उनकी बात पर यकीन होता। फरार आरपीएस लोकेश सोनवाल के घर निकलते समय वह बैग लेकर गोरान के घर गया और बाहर निकला तो बैग उसके हाथ में नहीं था, तो सवाल ये उठता है कि उस बैग में क्या था? क्या उसने आगरा गेट सब्जीमंडी से सब्जी खरीद कर गोरान के घर पहुंचाई थी? इसके अतिरिक्त अजीत सिंह ने यह भी नहीं बताया कि क्या उन्होंने इस बारे में गोरान से भी कोई पूछताछ की थी? यदि पूछताछ की थी तो उन्होंने ठठेरा के आने की क्या वजह बताई? अजीत सिंह की यह बात यकीन करने लायक थी कि मंथली प्रकरण में गोरान की कोई लिप्तता नहीं पाई गई है, मगर एसपी मीणा को मंथली देने जाते समय बीच में उसका गोरान के घर थैला लेकर जाने ने संदेह तो पैदा किया ही था।
खैर, अब जब कि फिर गोरान निशाने पर लिए जा रहे हैं तो उनका पुराना प्रकरण चर्चा में आता है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर