बुधवार, 10 अगस्त 2016

सपना साकार होने जा रहा है धर्मेश जैन का

धर्मेश जैन
अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन का सपना साकार होने जा रहा है। आगामी 15 अगस्त को उनके कार्यकाल में शिलान्यासित महाराणा प्रताप स्मारक का राज्य की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे लोकार्पण करेंगी। जाहिर है वे बेहद खुश होंगे। मगर साथ ही इस बात का मलाल भी कि यही काम उनके कार्यकाल में नहीं हो पाया। एक फर्जी सीडी के चक्कर में बिना मामले की पूरी तहकीकात किए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने खुद को साफ सुथरा जताने के लिए उनका इस्तीफा ले लिया और जैन का कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया। बाद में कांग्रेस सरकार के दौरान उनका क्लीन चिट भी मिल गई, इस कारण उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा सरकार उन्हें फिर मौका देगी, मगर इस बार समीकरण कुछ और थे और शिवशंकर हेडा अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बन गए।
यहां कहने की आवश्कता नहीं है कि कांग्रेस के राज में इस प्रस्तावित स्मारक की किसी ने सुध नहीं ली। तत्कालीन न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत भाजपा राज में शिलान्यासित स्मारक को बनवाने के पचड़े में पडऩा नहीं चाहते थे और राज्य सरकार को भला क्या पड़ी कि वह इसमें रुचि लेती। जब भाजपा सरकार दुबारा आई तो उम्मीद जगी कि अब स्मारक जरूर बनेगा, मगर जिला कलेक्टर व पदेन अध्यक्षों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। एक बार तो लगा कि शायद ये स्मारक बन ही नहीं पाएगा, मगर जैसे ही प्राधिकरण के अध्यक्ष पद पर राजनीतिक नियुक्ति हुई तो हेडा पर दबाव रहा कि वे इस स्मारक का काम पूरा करवाएं। वैसे भी यह स्मारक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की अकबर महान की तुलना में महाराणा प्रताप को राष्ट्रीय प्रतीक व प्रेरणा स्रोत बनाने की मंशा को पूरा करता है। इसके अतिरिक्त हेडा पर ये भी दबाव रहा कि वे पूर्व भाजपा सरकार के दौरान बनी योजना को पूरा करवाएं, ताकि किरकिरी न हो। जैन ने भी पीछा नहीं छोड़ा। वे भी महाराणा प्रताप जयंती मनाने के बहाने स्मारक को जिंदा किए रहे।
बहरहाल, जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किए, ठीक उसी प्रकार उनकी प्रतिमा को भी यहां स्थापित होने के लिए ग्वालियर से अजमेर आने तक नौ साल का सफर पूरा करना पड़ा। एक दिलचस्प बात देखिए कि जैन के कार्यकाल में सिंधुपति महाराजा दाहरसेन और वीरांगना झलकारी की प्रतिमा तो स्थापित हो गई, मगर जिस महाराणा प्रताप की प्रतिमा में उनकी अधिक रुचि थी, उसकी स्थापना से पहले ही उनका कार्यकाल अधूरा छूट गया। यह वही प्रतिमा है, जो जैन के कार्यकाल में बनी थी। इसके लिए उन्होंने न्यास की एक टीम ग्वालियर भेजी थी। प्रतिमा का घोड़ा महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की तरह हष्ट पुष्ट हो, इसके लिए उन्होंने उसे दुरुस्त भी करवाया था। प्रतिमा जब यहां लाई गई तो महाराणा प्रताप की प्रतिमा की टांग टूट जाने का विवाद उठा, मगर बाद में यह स्पष्ट हुआ कि वह तो जूता था, जो कि यहीं पर असेंबल होना था।
बहरहाल, अब जब कि जैन का सपना साकार होने जा रहा है मन ही मन मुग्ध होंगे ही। हों भी क्यों न। वे भी तो मेवाड़ के पुत्र हैं। मगर साथ ही ऐतराज भी कि जैसा स्वरूप उन्होंने सोचा था, उसमें काफी तब्दीली कर दी गई है, वरना इसकी खूबसूरती कुछ और ही होती। मगर क्या हो सकता है। वे सुझाव मात्र दे सकते हैं। होगा वही, जो हेडा चाहेंगे। बावजूद इसके इस स्मारक पर जैन की ही छाप रहेगी, भले ही हेडा इसे पूरा करवा रहे हों। समझा जाता है कि जिस प्रकार न्यास के पूर्व अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत अपने कार्यकाल में बने पृथ्वीराज स्मारक और महाराजा दाहरसेन स्मारक को पुजवाते हैं, वे भी कोई न कोई समारोह-वमारोह करवाते रहेंगे, ताकि जब तक यह स्मारक रहे, उनका नाम भी अमर रहे।
-तेजवानी गिरधर
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