बुधवार, 12 अगस्त 2015

रुचि श्रीवास्तव बनीं भाजपा की सलोनी के लिए मुसीबत

अजमेर नगर निगम के वार्ड 12 में बड़ा रोचक मुकाबला है। एक ओर भाजपा प्रत्याशी सलोनी जैन के लिए भाजपा पार्षद भारती श्रीवास्तव की पुत्री रुचि श्रीवास्तव मुसीबत बनी हुई हैं। दूसरी ओर कांग्रेस की अधिकृत प्रत्याशी रितु गोयल के लिए भी पेरशानी है, क्योंकि जिन निर्मला खंडेलवाल का टिकट ऐन वक्त पर काट कर रितु को देने का मसला गरमाया हुआ है, वे अभी पूरी तरह से राजी हुई हैं या नहीं कुछ पता नहीं।
आपको याद होगा कि भारती श्रीवास्तव का टिकट ऐन वक्त पर कटा  ही, उनका बागी हो कर निर्दलीय के रूप में भरा गया नामांकन पत्र भी तकनीकी खामी की वजह ये रद्द हो गया। ये उनकी चतुराई ही समझी जाएगी कि उन्होंने अपनी बेटी रुचि का भी निर्दलीय का नामांकन पत्र भरवा दिया और आज वे मैदान में है। दोनों मां-बेटी वार्ड में अत्यधिक सक्रिय हैं। असल में भाभी जी के नाम से प्रसिद्ध भारती ने अपने सुनहरे भविष्य के लिए, या कहें कि मेयर बनने के ख्वाब में खूब काम करवाया। इस कारण उनकी जमीन पर अच्छी पकड़ है, क्योंकि वे लोगों के सुख-दु:ख में बढ़-चढ़ कर भाग लेती रहीं। दुर्भाग्य से टिकट कटा, मगर काफी लोग आज भी उनके साथ हैं। साधनों की भी कोई कमी नहीं है। जाहिर तौर पर वे भाजपा प्रत्याशी सलोनी जैन के वोटों में सेंध मारेंगी। जहां प्रत्याशी के रूप में सलोनी का सवाल है, उनको पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के कहने पर टिकट दिया गया और पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक है, मगर जमीन पर पकड़ कुछ कमजोर है। अलबत्ता समाज के वोट जरूर मददगार हैं।
उधर टिकट कटने से नाराज निर्मला खंडेलवाल ने पहले तो शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता व प्रदेश सचिव कुलदीप सिंह राजावत के खिलाफ झंडा बुलंद करते हुए प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के पुतले जलवाए। बाद में पायलट की पहल पर सुलह के लिए भेजे गए पूर्व विधायक रमेश खंडेलवाल की मध्यस्थता से ठंडी तो पड़ीं, मगर अब भी उनका रुख टेढ़ा ही है। वे पार्टी के लिए कितना काम करेंगी, कुछ पता नहीं। ऐसे में रितु गोयल के लिए कुछ परेशानी हो सकती है। वैसे प्रत्याशी के रूप में रितु गोयल मजबूत हैं। खुद उनके परिवार व समाज के ही काफी वोट हैं। यहां तक कि भाजपा के एक जाने-पहचाने चेहरे के रिश्तेदार तक उनका साथ दे रहे हैं।
अब देखने वाली बात ये है कि इस वार्ड के रोचक मुकाबले में कौन बाजी मार ले जाता है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

अपनों ने ही घेरा लाला बन्ना को

जिसकी आशंका थी, वही हुआ। अजमेर नगर निगम में मेयर पद के प्रबल दावेदार पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत उर्फ लाला बन्ना भाजपा की स्थानीय गुटबाजी के शिकार होते दिखाई दे रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि पहले ही आशंका थी कि भाजपा में मेयर पद को लेकर जबरदस्त खींचतान होगी। कोशिश ये रहेगी कि मेयर पद के शीर्ष दावेदारों को उनके ही वार्ड में घेरा जाए। हुआ भी वही। वार्ड 43 से मेयर पद के दावेदार सुरेंद्र सिंह शेखावत बागियों में उलझ कर रह गए। रणजीत सिंह चौहान उनके सामने अंगद के पांव की तरह आ डटे हैं। हालांकि शेखावत ने भाजपा के परंपरागत माने जाने वाले माली समाज के निर्दलीय उम्मीदवारों को बैठाने की भरपूर कोशिश की, मगर उनको सफलता नहीं मिली। मिलती भी कैसे, सोची समझी राजनीति के तहत उन्हें खड़ा किया गया था। नाम वापसी के अंतिम दिन दो माली उम्मीदवारों बृजमोहन चौहान व मुकेश चौहान ने नाम वापस तो लिए, मगर रणजीत सिंह के समर्थन में। जाहिर सी बात है कि ऐसा माली समाज के मतों को एकजुट कर शेखावत  को घेरने के लिए किया गया। यूं यह वार्ड भाजपा के लिए बेहद मुफीद है, उस लिहाज से लाला बन्ना ने इसे ठीक ही चुना, मगर अब जो दिक्कत पेश आई है, उससे निपटना मुश्किल हो रहा है। जो पेच आ कर फंसा है, उसे देखते हुए यदि ये कहा जाए कि कहीं न कहीं रणनीतिक भूल हुई है। कुछ कहते हैं कि जब लाला बन्ना को पता था कि वे दूसरे गुट के निशाने पर हैं तो उन्हें चुनाव लडऩा ही नहीं चाहिए था। बताया जाता है कि निर्दलीय रणजीत सिंह को रिटायर करवाने के लिए उच्च स्तरीय प्रयास हो रहे हैं। जितने मुंह उतनी बातें। कोई कह रहा है, रिटायर होने के लिए बीस लाख रुपए की ऑफर है तो कोई हांक रहा है कि मुंह मांगी कीमत लगाई गई है। सच क्या है, कुछ पता नहीं, मगर इतना जरूर है कि भाजपा मानसिकता के माली वोट कट गए तो लाला बन्ना को परेशानी होगी। हालांकि वे काफी लोकप्रिय हैं और उनकी भी अपनी जबरदस्त फेन फॉलोइंग है, सो पूरी ताकत के साथ लड़ रहे हैं, आसानी से हाथ खड़े करने वाले नहीं, मगर कहते हैं न कि जो जितना बड़ा खिलाड़ी, उसे उतनी ही बड़ी चुनौती का सामना करना होता है। उनके साथ अजमेर दक्षिण की विधायक व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल की प्रतिष्ठा भी कसौटी पर है। कहने की जरूरत नहीं कि लाला बन्ना उन्हीं के खेमे से हैं। देखने वाली बात ये है कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कितना कर पाती हैं।
मोटे तौर माना जा रहा है कि लाला बन्ना व कांग्रेस प्रत्याशी व नगर परिषद के प्रतिपक्ष नेता रहे अमोलक छाबड़ा के बीच कांटे की टक्कर है। मगर कयास लगाने वाले तो यहां तक सोच रहे हैं कि यदि वाकई माली वोटों का पूरा धु्रवीकरण हो गया तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबले में रणजीत सिंह ही न बाजी मार जाएं।
ऐसा नहीं है कि भाजपा में ऐसा पहली बार हो रहा है। इसी प्रकार नगर परिषद के भूतपूर्व सभापति स्वर्गीय वीर कुमार को एक बार पार्टी के ही दूसरे धड़े ने केवल इसी कारण निपटाया था, क्योंकि वे दमदार तरीके से उभर कर आ रहे थे और सभापति पद के प्रबल दावेदार थे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000