शुक्रवार, 1 जून 2012

पार्षद सफाई कर्मियों के लिए इतने चिंतित क्यों?

मेयर कमल बाकोलिया
हाल ही अजमेर नगर निगम के सफाई ठेकेदार के खिलाफ कांग्रेस व भाजपा के पार्षदों के लामबंद होने पर दैनिक भास्कर ने एक अहम मुद्दा उठाया है। वो ये कि उन्हें सफाई कर्मचारियों की चिंता है या फिर खुद की जेब की। ज्ञातव्य है कि पार्षदों ने सफाई ठेकेदार कंपनी पर आरोप लगाया है कि वह निगम से तीस दिन का वेतन उठाती है, मगर कर्मचारियों को सिर्फ 26 दिन का वेतन ही देती है। जब पार्षद इस मसले पर लामबंद हुए तो संदेश यही गया कि उन्हें सफाई कर्मचारियों की चिंता है। यह वाकई अच्छी बात है कि अगर सफाई कर्मचारियों का शोषण हो रहा है तो उसके लिए हमारे पार्षद एकजुट हुए हैं। होना ही चाहिए। यह भी अच्छी बात है कि निगम मेयर कमल बाकोलिया ने भी मामले की जांच करवाने पर जोर दिया है।
खैर, बात चल रही थी अहम मुद्दे की। भास्कर का मानना है कि सफाई ठेकेदार फर्म के खिलाफ पार्षदों के लामबंद होने को लेकर लोगों में सुगबुगाहट है कि क्या पार्षद वास्तव में सफाई कर्मचारियों के हितों के लिए चिंतित हैं? इसकी पीछे की कहानी बताते हुए उजागर किया है कि ठेके वाले वार्डों में कर्मचारियों की निर्धारित संख्या नहीं है। नगर निगम से ठेकेदार को 42 वार्ड के लिए करीब 1050 कर्मचारियों के वेतन का भुगतान होता है, लेकिन वार्डों में कम संख्या में कर्मचारी काम करते हैं। यह अनियमितता पार्षदों की जानकारी में भी है। लेकिन इस बारे में कभी पार्षदों ने आवाज बुलंद नहीं की। इसका कारण माना जा रहा है कि पार्षद और ठेकेदार फर्म के बीच तालमेल से काम चल रहा है। बताया जाता है कि वर्तमान में ठेकेदार कर्मचारियों को वेतन राशि का भुगतान इंस्पेक्टर और जमादारों के माध्यम से कर रहे हैं, इसमें पार्षदों की दखलंदाजी नहीं है। अगर ये सच है तो इस मामले की भी जांच होनी चाहिए। अकेले ठेकेदार की जांच से क्या होने वाला है? जांच तो इस बात की भी होनी चाहिए कि अगर ठेकेदार भुगतान पूरा उठाता है और कर्मचारी कम लगाता है तो फिर इंस्पैक्टर व जमादार क्या करते हैं? क्या वे इसकी निगरानी नहीं करते, जो कि उनकी सीधी-सीधी जिम्मेदारी है। आखिर उन्हें तनख्वाह ही इसी बात की मिलती है। यदि वे भी लापरवाही बरतते हैं तो इसका मतलब ये है पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है। ऐसे में बाकोलिया व सीईओ सी आर मीणा को कम वेतन देने के साथ कम कर्मचारी लगाने के प्रकरण की जांच भी स्वप्रंज्ञान ले कर करनी चाहिए। उम्मीद है कि बाकोलिया इस ओर जरूर ध्यान देंगे, क्योंकि ठेकेदार व पार्षदों के बीच तालमेल का तथ्य तो बहुत ही गंभीर है, जिसके छींटे उन पर भी आ सकते हैं।
वैसे समझा जाता है कि हर बार की तरह दोनों प्रकार की जांचों में मामला आपसी समझदारी से निपटा लिया जाएगा।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

ये विद्युत अफसरों की बदमाशी नहीं तो क्या है?

डिस्काम एमडी पीएस जाट
ये तो गनीमत है कि प्रदेशभर में की जा रही बिजली कटौती में अजमेर के साथ भेदभाव को लेकर बार अध्यक्ष राजेश टंडन व विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने कड़ा रुख अपनाया, वरना डिस्काम तो रोजाना तीन घंटे बिजली कटौती करने जा रहा था। ज्ञातव्य है कि प्रदेश के अन्य संभागीय मुख्यालयों पर दो घंटे और अकेले अजमेर मुख्यालय पर तीन घंटे कटौती का निर्णय किया गया था। अव्वल तो सोचने विषय ये है कि जिस स्तर पर भी यह निर्णय हुआ, वहां भेदभाव की बदमाशी की किसने? क्या निर्णय करने वाले ये सोच बैठे थे कि ये मुर्दा शहर उनकी मनमानी को चुपचाप बर्दाश्त कर लेगा? या फिर यह सोच कर बैठे थे कि अगर विरोध हुआ तो कटौती में समानता ले आएंगे और नहीं तो उनकी मनमानी चल ही जाएगी? ऐसा लगता है कि महकमे के अफसर उर्स मेले के दौरान दी गई बिजली कटौती से मुक्ति को समायोजित करने के लिए ऐसी हरकत कर रहे थे, मगर उन्हें अनुमान नहीं था कि जैसे ही निर्णय होगा, उसका विरोध हो जाएगा। विरोध तो होना ही था। भीषण गर्मी में बिजली कटौती बेहद कष्टदायक होती है। उसमें भी यदि भेदभाव किया जाएगा तो उसे कौन बर्दाश्त करेगा।
इस सिलसिले में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश टंडन की संभागीय आयुक्त से वार्ता के दौरान दी गई दी आंदोलन की चेतावनी और भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी की डिस्काम एमडी पीएस जाट से वार्ता काम कर गई। इस मसले में रोचक बात ये है कि देवनानी को जाट ने मामले को दिखवाने और अजमेर व उदयपुर की तुलना कर समान कटौती किए जाने की बात कही, यानि कि उन्हें तो पता ही नहीं कि उदयपुर में दो घंटे की कटौती की जा रही है। कैसी विडंबना है कि डिस्काम के मुखिया तक को ये पता नहीं कि कहां कितनी कटौती की जा रही है, उसकी जानकारी भी उन्हें जनप्रतिनिधि दें।
सरकारी कामकाज का नमूना देखिए कि जब संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा ने अजमेर डिस्काम के अफसरों को तलब किया और इस मामले में पर जवाब मांगा, तब जा कर वे हरकत में आए। उदयपुर के चीफ इंजीनियर के पी वर्मा एवं सर्किल इंजीनियर बाछेत राणावत से बात करने पर पता लगा कि संभागीय मुख्यालय होने के नाते वहां पर रोजाना 2 घंटे ही बिजली काटी जा रही है। है न दुर्भाग्यपूर्ण कि अखबारों के जरिए एक-एक नागरिक को पता था कि अकेले अजमेर संभागीय मुख्यालय पर ही तीन घंटे कटौती हो रही है, मगर अफसरों को एक दूसरे से बात करने पर पता लग पाया।
उससे भी अफसोसनाक बात ये है कि बिजली महकमे के अफसर आसानी से नहीं माने। जब आंदोलन की चेतावनी दी तब जा कर नरम पड़े। चीफ इंजीनियर सी के खमेसरा से तो टंडन को तीखी बहस करनी पड़ गई।
बहरहाल, इस प्रकरण से यह स्पष्ट हो गया है कि अधिकारी करना तो मनमानी चाहते थे, मगर जब दबाव पड़ा तब लाइन पर आए। इस सिलसिले में टंडन व देवनानी बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने तुरंत मसले का उठाया और जनता को राहत दिलवाई। इन दोनों सहित अन्य जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे इसी प्रकार जागरूक रह कर अजमेर पर लगा वह ठप्पा मिटाने की कोशिश करेंगे कि अजमेर वासी प्रशासन की मनमानी बर्दाश्त करने में अव्वल हैं।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com