मेयर कमल बाकोलिया |
खैर, बात चल रही थी अहम मुद्दे की। भास्कर का मानना है कि सफाई ठेकेदार फर्म के खिलाफ पार्षदों के लामबंद होने को लेकर लोगों में सुगबुगाहट है कि क्या पार्षद वास्तव में सफाई कर्मचारियों के हितों के लिए चिंतित हैं? इसकी पीछे की कहानी बताते हुए उजागर किया है कि ठेके वाले वार्डों में कर्मचारियों की निर्धारित संख्या नहीं है। नगर निगम से ठेकेदार को 42 वार्ड के लिए करीब 1050 कर्मचारियों के वेतन का भुगतान होता है, लेकिन वार्डों में कम संख्या में कर्मचारी काम करते हैं। यह अनियमितता पार्षदों की जानकारी में भी है। लेकिन इस बारे में कभी पार्षदों ने आवाज बुलंद नहीं की। इसका कारण माना जा रहा है कि पार्षद और ठेकेदार फर्म के बीच तालमेल से काम चल रहा है। बताया जाता है कि वर्तमान में ठेकेदार कर्मचारियों को वेतन राशि का भुगतान इंस्पेक्टर और जमादारों के माध्यम से कर रहे हैं, इसमें पार्षदों की दखलंदाजी नहीं है। अगर ये सच है तो इस मामले की भी जांच होनी चाहिए। अकेले ठेकेदार की जांच से क्या होने वाला है? जांच तो इस बात की भी होनी चाहिए कि अगर ठेकेदार भुगतान पूरा उठाता है और कर्मचारी कम लगाता है तो फिर इंस्पैक्टर व जमादार क्या करते हैं? क्या वे इसकी निगरानी नहीं करते, जो कि उनकी सीधी-सीधी जिम्मेदारी है। आखिर उन्हें तनख्वाह ही इसी बात की मिलती है। यदि वे भी लापरवाही बरतते हैं तो इसका मतलब ये है पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है। ऐसे में बाकोलिया व सीईओ सी आर मीणा को कम वेतन देने के साथ कम कर्मचारी लगाने के प्रकरण की जांच भी स्वप्रंज्ञान ले कर करनी चाहिए। उम्मीद है कि बाकोलिया इस ओर जरूर ध्यान देंगे, क्योंकि ठेकेदार व पार्षदों के बीच तालमेल का तथ्य तो बहुत ही गंभीर है, जिसके छींटे उन पर भी आ सकते हैं।
वैसे समझा जाता है कि हर बार की तरह दोनों प्रकार की जांचों में मामला आपसी समझदारी से निपटा लिया जाएगा।
-तेजवानी गिरधर
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