सोमवार, 17 अगस्त 2015

आखिर सारी मशक्कत मेयर पद को लेकर होगी

हालांकि सट्टा बाजार और माहौल में आम राय यही है कि अजमेर नगर निगम में बोर्ड तो भाजपा का ही बनेगा, मगर बाद में सारी मशक्कत मेयर पद को ले कर होनी है। इसकी एक मात्र वजह ये है कि भाजपा में दो धुर विरोधी खेमे के प्रबल दावेदार तो हैं ही, विकल्प के रूप में भी पांच दावेदार और मौजूद हैं।
राजनीतिक पंडित इसी बात पर माथापच्ची कर रहे हैं कि भाजपा को ज्यादा सीटें उत्तर में मिलेंगी या फिर दक्षिण में। कोई कहता है कि चूंकि दक्षिण में 32 व उत्तर में 28 वार्ड हैं, इस कारण दक्षिण में भाजपा ज्यादा सीटें जीतेगी। इस पक्ष में तर्क ये दिया जा रहा है कि उत्तर के 28 में से तीन वार्ड मुस्लिम बहुल हैं, जहां से भाजपा की जीत असंभव है। बाकी बचे 25 में भाजपा हद से हद 18 सीटें जीत सकती है। दक्षिण में 32 में से भाजपा 20 से ज्यादा सीटें हथिया सकती है। दूसरी ओर कुछ का कहना है कि दक्षिण में कांग्रेस नेता हेमंत भाटी के प्रभाव वाले इलाकों में भाजपा का जीतना मुष्किल है, इस कारण वहां भाजपा 18 तक सिमट सकती है। जो भी हो, भाजपा दोनों इलाकों में यदि 16-16 और उससे अधिक सीटें हासिल करती है तो बोर्ड तो भाजपा का बन ही जाएगा।
हालांकि भाजपा के मेयर पद के सभी दावेदार थोड़ी-थोड़ी परेशानी में हैं, मगर ऐसा लगता नहीं कि वे हार ही जाएंगे। अब तक की सूचनाओं के अनुसार शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी की पहली पसंद पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत होंगे, जबकि महिला व बाल विकास राज्य मंत्री पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत को आगे लाएंगी। इन दोनों में से जिसके पास भी विजयी पार्षदों की संख्या ज्यादा होगी, वही प्रथम दावेदार कहलाएगा।
भाजपा में आम धारणा यही है कि सारी जोड बाकी के बाद देवनानी गहलोत को ही मेयर बनवाएंगे, मगर मगर इस बार ओबीसी व सामान्य का मुद्दा गरमाने की आशंका है। सुनियोजित रूप से उसके लिए माहौल बनाया जा रहा है। हालांकि संघ के आदेश की मुखालफत करना स्थानीय भाजपा नेताओं के बूते की बात है नहीं, मगर फिर भी सामान्य पार्षद लामबंद हो सकते हैं। यदि गहलोत को लेकर ज्यादा दिक्कत हुई तो देवनानी के पास नीरज जैन, जे. के. शर्मा, भागीरथ जोषी जैसे विकल्प हैं। उधर श्रीमती भदेल के पास शेखावत के रूप में एक ही मजबूत पत्ता है। अगर वे उन्हें मेयर न बनवा पाईं तो संपत सांखला का डिप्टी मेयर पद पक्का ही समझो।
समझा जाता है कि इस बार निर्दलीय भी छह-सात जीत सकते हैं, यानि कि उनकी भी घेराबंदी होगी। कयास ये लगाए जा रहे हैं कि यदि खींचतान ज्यादा हुई तो देवनानी व श्रीमती भदेल कांग्रेस के पार्षदों का भी सहयोग लेने पर विचार कर सकते हैं। यानि कि कांग्रेस खेमे में सेंध मारी जा सकती है। हो सकता है कि कुछ स्वार्थी कांग्रेसी इस टूट-फूट में आसानी से शामिल हो जाएं। वजह ये है कि अगर कांग्रेस का बोर्ड बनने की कोई सूरत नहीं होती तो वे चाहेंगे कि अपनी पसंद के भाजपाई दावेदार को भीतर से समर्थन दें ताकि बाद में उसके मेयर बनने पर निजी अथवा अपने वार्ड के लिए लाभ हासिल किया जा सके। बताया जा रहा है कि भाजपा के प्रमुख दावेदारों ने इस लिहाज से कांग्रेसियों को चिन्हित करना भी शुरू कर दिया है। कुछ नेता ऐसे हैं जो गैर सिंधीवाद के नाम पर देवनानी को कमजोर करने के लिए शेखावत के लिए घेराबंदी करना चाहेंगे, तो कुछ नेता भावी रणनीति के तहत श्रीमती भदेल को कमजोर करने के लिए देवनानी के पसंद के उम्मीदवार का साथ देना चाहते हैं। कुल मिला कर होता क्या है, इसके लिए आगामी 20 व 21 तक का इंतजार करना होगा। वैसे आप को बता दें कि ब्यावर का सट्टा बाजार कांग्रेस की 32 सीटें मान रहा है। उसका गणित क्या है, पता नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000