सोमवार, 30 जुलाई 2012

सवाल तो वाजिब ही उठाया था अनिता भदेल ने


अजमेर। नगर सुधार न्यास के तत्वावधान में आयोजित हॉकी खेल मैदान व स्टेडियम लोकार्पण समारोह में जिन सवालों को लेकर अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल व राज्य के स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के बीच टकराव हुआ, वे थे तो वाजिब ही, ये दीगर बात है कि धारीवाल से जवाब देते नहीं बना और उन्होंने पलट कर अपने भाषण में मर्यादा को ताक पर रख कर प्रतिकूल टिप्पणी कर दी।
हुआ दरअसल ये कि कार्यक्रम के दौरान श्रीमती अनिता भदेल ने अपने भाषण में हॉकी एस्ट्रोटर्फ की हकीकत बयां की और यह पूछा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा वर्ष 2010-11 में हॉकी एस्ट्रोटर्फ के निर्माण हेतु 2 करोड़ रुपये की वित्तीय स्वीकृतियां व उस राशि से किये गये कार्यों को सार्वजनिक किया जाये। जाहिर सी बात है खुशनुमा माहौल में इस प्रकार का घोचा धारीवाल को सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपनी बड़बोलेपन की आदत के मुताबिक प्रतिकूल टिप्पणी कर हिसाब-किताब पूरा करने की कोशिश की। यानि की आग में और घी डालने का काम कर दिया। इस पर अनिता भदेल को भी तरारा आ  गया और धारीवाल द्वारा किये गये आचरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए चुनौती दे डाली है कि यदि शांति धारीवाल सही हैं तो साबित करके बतायें कि वर्ष 2010-11 से अब तक अजमेर हॉकी एस्ट्रोटर्फ निर्माण हेतु किन-किन तारीखों को प्रशासनिक व वितीय स्वीकृतियां जारी हुई तथा किन-किन मदों पर खर्च की गयी। एस्ट्रोट्रर्फ निर्माण की सम्पूर्ण जानकारी देते हुए विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने बताया कि केन्द्र की एनडीए सरकार में खेल मंत्री रहे विक्रम वर्मा द्वारा उपरोक्त कार्य हेतु राशि स्वीकृत की गई थी तथा राज्य सरकार की अनुदान राशि के रूप में 53 लाख रुपये तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा जी द्वारा सन 2008 में दिये गये थे, जिसकी प्रतिलिपियां प्रेस वार्ता के दौरान भी दी गई थीं। वस्तुस्थिति यह है कि चन्द्रवरदाई खेल स्टेडियम भारतीय जनता पार्टी शासनकाल में तत्कालीन न्यास अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत के मस्तिष्क की परिकल्पना थी। उसके पश्चात भा.ज.पा. को जब-जब शासन का अवसर प्राप्त हुआ विकास कार्य कराया। कांग्रेस सरकार ने सिर्फ वाहवाही लूटने का कार्य किया है। इतना ही नहीं कार्यक्रम के दौरान धारीवाल की टिप्पणी के बाद श्रीमती अनिता भदेल और भाजपा जिलाध्यक्ष रासासिंह रावत ने शेष कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया।
इसमें कोई दोराय नहीं कि अनिता भदेल की बातों में दम है। वे बाकायदा तथ्यात्मक आरोप लगा रही हैं। होना यह चाहिए था कि धारीवाल को ठीक ठीक ब्यौरा देना चाहिए था कि किस-किस के शासनकाल में क्या-क्या हुआ। यदि वे ऐसा करते तो उनकी यह सदाशयता एप्रीशिएट की जाती। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। मगर वे तो अनिता के सवाल पर उखड़ गए। ऐसे में भाजपा को उन पर हमला करने का मौका मिल गया।
वैसे एक बात है, हालात ठीक इसके विपरीत होते तो धारीवाल की जगह भाजपा के कोई मंत्री बौखलाते। ऐसा अमूमन होता है। काम किसी पार्टी की सरकार में शुरू होता है और पूरा किसी और पार्टी की सरकार के वक्त। होता ये है कि काम पूरा करने वाली पार्टी के नेता वाहवाही लूटते हैं, तो काम शुरू करने वाली पार्टी वालों को मिर्ची लगती है। ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई काम कांग्रेस के राज में शुरू हुआ हो और उसका उद्घाटन भाजपा के राज में। मगर हमारे राजनेता इतने उदार हृदय नहीं हैं कि इसे सहजता से लें। श्रेय लेने की होड़ लगी रहती है। और उसी का परिणाम है कि इस प्रकार टकराव हो जाता है। खासकर जब चुनाव में ज्यादा समय न बचा हो तो राजनीति को गरमाने के लिए ऐसे टकराव जानबूझ कर भी किए जाते हैं।
कुल मिला कर जैसे ही मौका लगा अनिता भदेल ने दाव चल दिया। वैसे इस प्रकार का काम अमूमन अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ज्यादा किया करते हैं। अब चूंकि देवनानी अजमेर से बाहर थे तो अनिता भदेल ने कमी पूरी कर दी।
-तेजवानी गिरधर

रविवार, 29 जुलाई 2012

गहलोतजी, विकास को तरसते अजमेर पर ध्यान दीजिए


अजमेर। महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह व तीर्थराज पुष्कर और किशनगढ़ की मार्बल मंडी के कारण यूं तो अजमेर जिला अन्तरराष्टï्रीय मानचित्र पर मौजूद है, मगर आज भी प्रदेश के अन्य बड़े जिलों की तुलना में इसका उतना विकास नहीं हो पाया है, जितना की वक्त की रफ्तार के साथ होना चाहिए था। अकेले पानी की कमी को छोड़ कर किसी भी नजरिये से अजमेर का गौरव कम नहीं रहा है। चाहे स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने का मुद्दा हो या यहां की सांस्कृतिक विरासत की पृष्ठभूमि, हर क्षेत्र में अजमेर का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। दुर्भाग्य से आजादी के बाद राजस्थान राज्य में विलय के बाद कमजोर राजनीतिक नेतृत्व के कारण यह लगातार पिछड़ता गया। दुर्भाग्य से अजमेर शहर की दोनों सीटों पर भाजपा के विधायक हैं, इस कारण अजमेर वासियों का सरकार में प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं है।
आइये, समझें कि कैसे छू सकता है अजमेर जिला विकास के आयाम:-
एक लम्बे समय से यहां हवाई अड्ïडे के निर्माण की मांग को देखते हुए मौजूदा प्रदेश कांग्रेस सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केन्द्र सरकार के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर तो करवा लिए, मगर मगर आज भी उस दिशा में प्रगति की रफ्तार कम ही है। केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट विशेष प्रयास कर तो रहे हैं, फिर भी जब तक राज्य सरकार पूरी रुचि नहीं लेगी, वर्षों पुराना सपना साकार नहीं हो पाएगा। अगर यहां हवाई अड्डा बना तो न केवल यहां पर्यटन का विकास होगा और दरगाह व पुष्कर आने वाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं को सुविधा होगी, अपितु किशनगढ़ की मार्बल मंडी में भी चार चांद लग जाएंगे।
ऐतिहासिक अजमेर शहर में जहां तक पर्यटन के विकास की बात है, यहां धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की भरपूर गुुंजाइश है। धार्मिक पर्यटकों का अजमेर में ठहराव दो-तीन तक हो सके, इसके लिए यहां के ऐतिहासिक स्थलों को आकर्षक बनाए जाने की कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए। इसके लिए अजमेर के इतिहास व स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय योगदान एवं भूमिका पर लाइट एण्ड साउंड शो तैयार किए जा सकते हैं। आनासागर की बारादरी, पृथ्वीराज स्मारक, और तीर्थराज पुष्कर में उनका प्रदर्शन हो सकता है। इसी प्रकार ढ़ाई दिन के झोंपड़े से तारागढ़ तथा ब्रह्मïा मंदिर से सावित्री मंदिर पहाड़ी जैसे पर्यटन स्थल पर 'रोप-वेÓ परियोजना भी बनाई जा सकती है। साथ ही पर्यटक बस, पर्यटक टैक्सियां आदि उपलब्ध कराने पर कार्य किया जाना चाहिए। पर्यटक यहां आ कर एक-दो दिन का ठहराव करें, इसके लिए जरूरी है कि सरकार होटल, लॉज, रेस्टोरेन्ट इत्यादि लगाने वाले उद्यमियों को विशेष सुविधाएं व कर राहत प्रदान कर उन्हें आकर्षित व प्रोत्साहित करने की दिशा में कार्ययोजना तैयार करे।
सब जानते हैं कि अजमेर के विकास में पानी की कमी बड़ी रुकावट शुरू से रही है। हालांकि बीसलपुर योजना से पेयजल की उपलब्धता हुई है, मगर औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए बीसलपुर पर्याप्त नहीं है। जयपुर को भी पीने का पानी दिए जाने के बाद यहां पिछली गर्मी में कितनी किल्लत हुई थी, उसकी कल्पना करते ही मन सिहर उठता है। एक बार पूर्व उप मंत्री ललित भाटी ने यह तथ्य उजागर किया था कि मध्यप्रदेश से राजस्थान के हिस्से का पानी हमें अभी प्राप्त नहीं हो रहा है और वो 'सरप्लस वाटरÓ बगैर उपयोग के व्यर्थ बह रहा है। उन्होंने सुझाया था कि उस 'सरप्लस वाटरÓ  को लेकर अजमेर व अन्य शहरों के लिए पेयजल, कृषि एवं औद्योगिक उपयोग के लिए भैंसरोडगढ़ या अन्य किसी उपयुक्त स्थल से पानी अजमेर तक पहुंचाया जाकर उपलब्ध कराया जा सकता है। चंबल के पानी से भी कृषि, औद्योगिक एवं पेयजल की जरूरतें पूरी हो सकती हैं। भाटी के प्रयासों से इस दिशा में एक कदम के रूप में सर्वे भी हुआ, मगर वह आज फाइलों में दफन है। यदि उसे अमल में लाया जाए तो यहां औद्योगिक विकास के रास्ते खुल सकते हैं।
बड़े शहरों के मुकाबले अजमेर को खड़ा करने के लिए एक सुझाव यह भी है कि औद्योगिक विकास को नए आयाम देने के लिए स्पेशल इकॉनोमिक जोन (सेज) बनाया जा सकता है। विशेष रूप से इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का स्पेशल इकोनोमिक जोन बनाने पर ध्यान दिया जाए तो  उसमें पानी की कमी भी बाधक नहीं होगी। जाहिर तौर पर शैक्षणिक स्तर ऊंचा होने से आई.टी. उद्योगों को प्रतिभावान युवा सहज उपलब्ध होंगे। वर्तमान में इन्फोसिस व विप्रो जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों में अजमेर के सैकड़ों युवा कार्यरत हैं। इसके अतिरिक्त आई.टी. क्षेत्र की बड़ी कम्पनियों को अजमेर की ओर आकर्षित करने की कार्य योजना बनाई जा सकती है। इसी प्रकार खनिज आधारित स्पेशल इकोनोमिक जोन भी बनाया जा सकता है। जिले में खनिज पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। वर्तमान में बीसलपुर बांध परियोजना में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। मोटे तौर पर देखा जाए तो यहां पर्यटन और खनिज आधारित औद्यागिक विकास की विपुल संभानाएं हैं, जरूरत है तो सिर्फ उस पर ध्यान देने की। सुव्यवस्थित मास्टर प्लान बना कर उस पर काम किया जाए तो न केवल उससे प्रदेश सरकार का राजस्व बढ़ेगा, अपितु रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
अजमेर शहर की सबसे बड़ी समस्या है यातायात की। अव्यवस्थित व अनियंत्रित यातायात को दुरुस्त करने के लिए यातायात मास्टर प्लान की जरूरत है। हालांकि संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा ने अजमेर वासी होने के कारण इस दिशा में रुचि ली है, लेकिन जब तक सरकार कोई स्पेशल पैकेज नहीं देगी, समस्या से निजात नहीं पाई जा सकती है। सरकार पहल करे तो आनासागर चौपाटी से विश्राम स्थली या ग्लिट्ज तक फ्लाई ओवर बनाया जा सकता है, इससे वैशालीनगर रोड, फायसागर रोड पर यातायात का दबाव घटेगा। झील का संपूर्ण सौन्दर्य दिखाई देगा। उर्स मेले व पुष्कर मेले के दौरान बसों के आवागमन में सुविधा होगी और बी.के. कौल नगर, हरिभाऊ उपाध्याय नगर, फायसागर क्षेत्र के निवासियों को शास्त्रीनगर, सिविल लाइन्स, कलेक्टे्रट के लिए सिटी बस, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुविधा मिल सकेगी।
उम्मीद है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अजमेर आगमन पर इन सुझावों पर ध्यान देंगे।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 28 जुलाई 2012

पार्षदों का केवल टांग अड़ाना तो ठीक नहीं

शहर में नए राशनकार्ड बनाने लिए फार्म वितरण एवं जमा करने के लिए लगाए जा रहे शिविर में जनता के नुमाइंदे कहाने वाले पार्षदों का  नदारद रहना बेहद अफसोसनाक है। विशेष रूप से जब इस बेहद कठिन और अहम कार्य में पार्षदों को अहमियत नहीं दिए जाने पर पार्षदों की ओर से जिला रसद अधिकारी हरिशंकर गोयल की खिंचाई की गई हो और उनके दबाव की वजह से ही जिला प्रशासन की ओर से उनकी भागीदारी को अहमियत दी गई हो तो शिविर में न मौजूद रहना यह संदेश देता है कि क्या वे केवल टांग अड़ाने की ही भूमिका अदा कर रहे हैं या फिर जनता के नुमाइंदे होने के नाते जनता से सीधे जुड़े शिविर में उनकी कोई रुचि नहीं है।
यहां उल्लेखनीय है कि पार्षदों की गैरमौजूदगी की वजह से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। फार्म सत्यापित कराने के लिए लोग उनका इंतजार करते रहते हैं और आखिरकार निराश होकर अपने घर लौट जाते हैं। लोगों का आरोप है कि पहले फार्म लेने के लिए चक्कर लगाने पड़े थे, अब फार्म का सत्यापन करवाने के लिए पार्षदों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। ज्ञातव्य है कि रसद विभाग की लापरवाही, प्रगणकों की कमी और प्रगणकों की कोताही के चलते ही पार्षदों के दबाव पर अब नगर निगम के सहयोग से सभी वार्डों में शिविर लगाए जा रहे हैं। ऐसा इसलिए भी किया गया है मौके पर ही पार्षद फार्म को सत्यापित कर दें, लेकिन जब वे वहां से नदारद रहते हैं तो लोगों को परेशानी होती है। इतना ही नहीं, फार्म में मांगी गई अत्यधिक जानकारियों की वजह से आम आदमी को बड़ी परेशानी हो रही है। ऐसे में यदि पार्षद थोड़ी सी भी सक्रियता दिखाएं तो यह बेहद दुरूह काम सरल हो सकता है।
गौरतलब है कि इस मसले पर पार्षदों की ओर से दी गई दलीलों में वाकई दम था कि उनकी भागीदारी न होने के कारण आम लोगों को परेशानी हो रही है और वे उन्हें परेशान कर रहे हैं। अब जब कि प्रशासन की पहल पर वार्ड वार शिविर लगाए जा रहे हैं, तो उन्हें अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर

अब बिजली कहां से आ गई जाट साहब?


अजमेर विद्युत वितरण निगम ने भाजपा के विरोध के चलते फिलहाल बिजली कटौती बंद कर दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि यह बिजली आई कहां से? यदि बिजली उपलब्ध थी तो काटी क्यों जा रही थी? हालांकि हकीकत ये ही लगती है कि बिजली की कमी तो है, मगर अब चूंकि खुद निगम ने ही चला कर पंगा लिया है, इस कारण उसे डाइल्यूट करने के लिए उसे जुगाड़ करना पड़ रहा है। जुगाड़ अर्थात कहीं और की काट कर यहां शहर वालों को राजी किया जा रहा है।
यह राजी करने की नौबत आई इसलिए कि भाजपा ने जैसे ही प्रदर्शन कर चेतावनी दी कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री सचिन पायलट को अजमेर आने पर काले झंडे दिखाए जाएंगे, तो इस फजीहत से बचने के लिए फिलहाल कटौती बंद करने का निर्णय कर किया गया। असल में हुआ ये कि निगम ने खुद ही आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरितार्थ कर ली। न जाने किसने अक्ल दी कि इन दिनों चल रहे रमजान माह के दौरान रोजों के मद्देनजर मुस्लिम बहुल इलाकों में कटौती बंद कर दी। जब इस प्रकार धर्म के आधार पर शहर को दो हिस्सों में बांटा तो हिंदूवादी संगठनों को गुस्सा आना ही था। शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत, विधायक वासुदेव देवनानी एवं अनिता भदेल के नेतृत्व में निगम मुख्यालय पर प्रदर्शन किया गया। एमडी पीएस जाट व तकनीकी निदेशक बी एल माहेश्वरी की गैर मौजूदगी में चीफ इंजीनियर अजमेर जोन सी के खमेसरा एवं सर्किल इंजीनियर मेटेरियल मैनेजमेंट एस एस शेखावत को गुस्से का शिकार होना पड़ा। देवनानी ने तो खमेसरा को लालटेन ही भेंट कर दी। पार्षद नीरज जैन ने भी अपनी आदत के मुताबिक जलवा दिखाया।  इसी प्रकार विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री शशि प्रकाश इंदौरिया ने मजहब के नाम पर बिजली कटौती में भेदभाव करने को गलत करार दिया। उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाकों में कटौती समाप्त किए जाने एवं हिन्दू एवं जैन समाज के त्यौहारों को नजरअंदाज किए जाने को गलत बताया। आरोप में दम भी था। इस आरोप की गंभीरता को देखते हुए ही निगम को मजबूरी में पूरे शहर में बिजली कटौती को बंद करना पड़ गया।
यदि निगम केवल मुस्लिम इलाकों की कटौती करने का निर्णय न करता तो यह नौबत नहीं आती। लोग इतने दिन से कटौती की मार सहन कर ही रहे थे, मगर वे धर्म के आधार पर भेदभाव को सहन नहीं कर पाए। जैसे ही हंगामा हुआ तो एमडी पी एस जाट को समझ में आ गया कि ये मामला भारी पड़ जाएगा। वजह ये कि आगामी दो दिन विभिन्न कार्यक्रमों के चलते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अनेक मंत्री अजमेर में उपस्थित रहने वाले हैं। उनके सामने विरोध प्रदर्शन हुआ तो वह भारी पड़ जाएगा।
हालांकि भाजपा को इतनी उम्मीद नहीं थी कि उसकी काले झंडे दिखाने की चेतावनी इतना काम कर जाएगी कि निगम घबरा कर तुरंत कटौती बंद कर देगा। जैसे ही कटौती बंद हुई तो उसे समझ में आ गया कि कहीं मंत्रियों के अजमेर में रहने के दौरान हंगामा न होने की खातिर तो कटौती बंद की जा रही है और उनके जाने के बाद फिर से कटौती चालू कर दी जाएगी। सो शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत ने बयान जारी कर कहा कि यदि केवल कानून व्यवस्था बनाने एवं मुख्यमंत्री के अजमेर दौरे के कारण ही बिजली बंद की है तो इस छलावे को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री के दौरे के बाद यदि वापस कटौती की गई, तो भाजपा फिर जन आंदोलन करेगी। अब देखना ये होगा कि तीन दिन बाद निगम का रुख अख्तियार करता है?
-तेजवानी गिरधर

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

दीवान साहब के बयान से फिल्म जगत तो सहमा ही


बीते दिनों महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान और ख्वाजा साहब के सज्जादानशीन सैयद जेनुअल आबेदीन व खुद्दाम हजरात के बीच हुए विवाद का कोई निष्कर्ष निकला हो या नहीं, जो कि निकलना भी नहीं है, मगर फिल्म जगत तो सहम ही गया। और साथ ही अधिकतर फिल्मी हस्तियों को जियारत कराने वाले सैयद कुतुबुद्दीन सकी के नजराने पर भी मार पडऩे का अंदेशा हो गया। इसकी वजह ये है कि अजमेर में खादिमों के ताकतवर होने के कारण फिल्मी हस्तियों को भले ही कोई खतरा नहीं है, मगर जिस तरह से इस विवाद ने तूल पकड़ा और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरीके से उछाला, उससे फिल्म जगत पर तो भारी असर पड़ा ही होगा।
असल में हुआ ये था कि दरगाह दीवान ने यह बयान जारी कर कहा कि फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों द्वारा फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए गरीब नवाज के दरबार में मन्नत मांगना शरीयत और सूफीवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ और नाकाबिले बर्दाश्त है। उन्होंने ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीयत के जानकारों की खामोशी को चिंताजनक बताया। अजमेर में खादिम भले ही उनके धुर विरोधी हों  अथवा आम मुसलमानों पर दीवान साहब की कोई खास पकड़ नहीं हो, मगर देश-दुनिया में तो उन्हें ख्वाजा साहब के वंशज के रूप में काफी गंभीरता से लिया जाता है। यही वजह रही कि उनके बयान को राष्ट्रीय मीडिया ने खासी तवज्जो दी। अनेक चैनलों पर तो ब्रेकिंग न्यूज के रूप में यह सवालिया टैग बारबार दिखाया जाता रहा कि दरगाह शरीफ में फिल्मी हस्तियों की जियारत पर रोक? ऐसा अमूमन होता है कि दिल्ली में बैठे पत्रकार धरातल की सच्चाई तो जानते नहीं और दूसरा जैसा ये कि उनकी किसी भी खबर को उछाल कर मारने की आदत है, सो इस खबर को भी उन्होंने इतना तूल दिया कि पूरा फिल्म जगत सहम ही गया होगा।
हालांकि अजमेर में ऐसा कुछ हुआ नहीं है और न ही होने की संभावना प्रतीत होती है, मगर फिल्मी हस्तियों में तो संशय उत्पन्न हो ही गया। जाहिर सी बात है कि ऐसे में वे अजमेर आने से पहले दस बार सोचेंगी कि कहीं वहां उन्हें जियारत करने से रोक तो नहीं दिया जाएगा अथवा उनके साथ बदतमीजी तो नहीं होगी। ऐसे में यदि अच्छा खासा नजराना देने वाली फिल्मी हस्तियों की आवक बंद होगी अथवा कम होगी तो स्वाभाविक रूप से यह खुद्दाम हजरात को नागवार गुजरेगा। खासकर फिल्म जगत के अघोषित रजिस्टर्ड खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चश्ती पर तो बड़ा भारी असर पड़ेगा।
हालांकि जिस मुद्दे को दीवान साहब ने उठाया था, उस पर तो खास चर्चा हुई नहीं, बल्कि उनके ख्वाजा साहब के वश्ंाज होने न होने पर आ कर अटक गई, मगर मुंबई में फिल्म जगत में तो यही संदेश गया ना कि अजमेर में उनको लेकर बड़ा भारी विवाद है। उन्हें क्या पता कि यहां दीवान साहब कितने ताकतवर हैं या उनके समर्थक उनके साथ क्या बर्ताव करेंगे?
यूं मूल मुद्दे पर नजर डाली जाए तो जहां दीवान साहब का बयान तार्किक रूप से ठीक प्रतीत होता है तो खुद्दाम हजरात की दलील भी परंपरागत रूप से सही प्रतीत होती है, मगर झगड़ा इस बात पर आ कर ठहर गया कि इस बयान के जरिए दीवान साहब कहीं अपने आप को दरगाह शरीफ का हैड न प्रचारित करवा लें। सो खादिमों ने तुरंत ऐतराज किया। खादिमों का पूरा जोर इस बात पर रहा कि दीवान को जियारत के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे कोई दरगाह के मुखिया नहीं है, महज दरगाह कमेटी के मुलाजिम हैं। दूसरा ये कि ख्वाजा साहब का दरबार सभी 36 कौमों के लिए है। मन्नत और दुआ पर आपत्ति सही नहीं है। ख्वाजा साहब के दरबार में कोई भेदभाव नहीं है। हर आने वाला अपनी मुराद लेकर आता है। मुराद और दुआ व्यक्ति के निजी मामले हैं।
ऐसा करके वे दीवान साहब के बयान की धार को भोंटी तो कर पाए हैं, मगर यदि फिल्म जगत तक सारी बात ठीक से न पहुंच पाई तो वह तो सहमा ही रहेगा। साथ ही जनाब कुतुबुद्दीन साहब का नजराना भी तो मारा जाएगा। कदाचित इसी वजह से खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चिश्ती ने कहा कि ये दीवान का मीडिया स्टंट मात्र है। खादिमों की रजिस्टर्ड संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने भी कहा कि दीवान का बयान सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा मात्र है।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

दरगाह में भारतीय मुद्रा को रौंदे जाने पर छिड़ी बहस


दैनिक भास्कर में प्रकाशित फोटो

दैनिक भास्कर के 25 जुलाई के अंक छपी एक फोटो, जिसमें दरगाह शरीफ में भारतीय मुद्रा को पैरों तले रोंदा जा रहा था, पर आम पाठकों की क्या प्रतिक्रिया रही यह तो पता नहीं, मगर फेसबुक पर इस मुद्दे को लेकर जम कर गरमा-गरम बहस हुई। कुछ लोग जरूर संयत बन कर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे, मगर कुछ ने मर्यादाओं को ताक पर रख कर अभिव्यक्ति की आजादी का मजा उठाया। फेसबुक पर कुछ भी कहने की छूट जो है। आपको याद होगा कि पिछले दिनों ख्वाजा साहब के उर्स के दौरान सेंट्रल गल्र्स स्कूल में पाकिस्तानी जायरीन द्वारा भारतीय मुद्रा को रोंदे जाने पर बड़ा बवाल हुआ था, मगर नतीजा कुछ नहीं निकला।
ताजा मसला है कुछ इस प्रकार है। ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बीते मंगलवार को हजरत खातून ए जन्नत बीबी फातिमा रजियल्लाहु अन्हा के यौम-ए-वफात के मौके पर अहाता ए नूर में महफिल के दौरान शाही कव्वाल पर नोट उसारने के दौरान भारतीय मुद्रा पैरों तले रौंदे जा रहे थे। इसकी फोटो भास्कर ने प्रकाशित की तो उसे N A Real Story ने फेसबुक पर शाया कर दिया। इस पर अनेक प्रतिक्रियाएं आईं। इस बहस से जहां खादिमों के प्रति कायम हो रही आम राय का संकेत मिला तो वहीं दूसरी ओर एक खादिम Kashif Chishty Kashifchishty ने दंभ से भरी टिप्पणी की। आइये देखते हैं, बहस में किस ने क्या कहा-
Lokesh Tailor- desh sabse bada hota hai.isme rahne vala har admi aam admi hota hai nki khadim
Jitu Rangwani- People they forget everything once they r in Mandir or masjid they think god or Allah doing all once they r entered in dt area.... Nonsense log
N A Real Story- Jitu Rangwani पैसों को जान बूझ कर उछालना फिर पैरों के निचे रोंदना, इन सब का धर्म से क्या लेना देना है, इस्लाम में इतने बड़े वाली की महफ़िल में पैसों को उछालना तो खुद बहुत बड़ी तौहीन है ये एक वाली का आस्ताना है, पब डिस्को या फिर तवायफ का कोठा नहीं जहाँ पैसों को उछाला जाए। मेने जो शब्द इस्तेमाल किये हैं उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ पर इसके बिना शायद में समझा नहीं पता.
Jasmine Singhaniya- ye to vha ka roj ka kaam h
Jitu Rangwani- n a Wht m trying to say ki yeh log jab b kaisi darmik place par pahuchtey hai toh pane app ki hi khufu ya Bhagwan samaj bethtey hai and jo kartey hai Inge San sahi Lagta hai nd dey think ki San god ki Marji se Jo raha hai... So m saying they r totally nonsense
Brajesh Samaria- VOTE SE BADA DESH NAHEE HOTA BECAUSE VOTE SE HEE LOKTANTRA CHALTA H...HHHAAAA....YE KAAM SABHEE DHARMO KE LOG SHADIYO ME KARTE HAIN BECAUSE INDIA IS NOT A RASTRA,,,ONLY A NATION
Vikas Ojha- bcoz.1 they are not hindu 2nd our govt.discriminates us from community abhi aajkal hi dekh lijiye ,,, jaha pure rajasthan me vidyut katuati lagu hain.. kal se .. ajmer ke muslim ilako ko katuati se mukt rakha gya hain... aur hamare sabse bade tyohar diwali ke time .. jan bujhkar light ki katauti ki jati hain ... agar light nai hain to sab ke liye nai honi chaiye na ,. phir discrimination kyu .. on basis of community or caste..
Mukul Mishra- Desh ki gandi rajnitik vayvastha ne kuchh suwaro ko aisa ahsaas kara diya hai k is desh or sanvidhan se bhi bade hai,jab ki satya ye hai k desh se bade na to ye hai or na hi inke rajnitik baap.Jarurat sirf itni hai k muze ya mere jaise kisi aadmi k haath me sanvadhanik shakti aa jaye,yakin maniye dargah pe kam or bajrangarh pe jute saaf karte jyada nazar aayenge,suabah alla k naam ki jagah vandematrum gate nazar aayenge.Shariyat k bajaye i p c k samne haath jode nazar aayenge.Jai hindu rashtra.
Tolaram Siyag- ya galat bat hai
Jassu Jasmin- kya kare ab. .congressi kutto ka jo raaz h..
Pandit Surendra Dhar Dwivedi- sahi kaha rahe ho desh se bada kon ho sakts hai
Kapil Sharma- jada hai na isliye bhai
Jagdish Jas- Sharma Des phle h
Shatrughan Meena- ajmer me ''khadim raaz'' abi cntrol kr lo to sai h..
Sher Mohammed Khan- Mukul g ap smajdar hokar kis jamane ki bat kar rhe muslimo ko thodi si rahat kya d di ap jal uthe kabi apne sarkar k neta afsro k kharche p dhyan dene ki kosis ki h kya
Kashif Chishty Kashifchishty- yuhi jal jal ke mar jana
Parvez Khan- maro salo ko bhjga do yaha s lutmar lagga rkhi h
Amit Ranka- chin lo raj path or bena do wapas sevadar
Ramesh Rawat- khuda ne shaayad inahe kuch jyaada hi de diya h.........kabhi hum pe bhi rehamat kar diya karo
Kashif Chishty Kashifchishty- Sevedar to hum log he hi khwaja ke tum log jab yaha aate ho na mannat mangne to hum hi log dua karte he samjhe or cheen ti duniya ki takat nahi sakti he
N A Real Story- ‎Kashif Chishty Kashifchishty dunya ki taqat chahe na cheen sakti ho, Par Khwaja Saehb Ki Taqat Aur Allah Ki Taqat Sab Kuch Cheen Sakti Hai......

टंडन-सिंह में ट्यूनिंग नहीं, कैसे चलेगी बार की गाडी?


अध्यक्ष राजेश टंडन 

ऐसा प्रतीत होता है कि अजमेर बार एसोसिएशन के इंजन में लगे दो पहिये रूपी अध्यक्ष राजेश टंडन व सचिव चंद्रभान सिंह अलग-अलग दिशाओं में जाने को आतुर में हैं। ऐसे में बार की गाडी क्या होगा, खुदा ही जाने। एक माह में दो बार ऐसी नौबत आई कि बार पूरी तरह से दो फाड़ सी हो गई। पहले ई कियोस्क मसले पर टंडन के जिला कलेक्टर वैभव गालरिया से वार्ता कर आने पर सिंह खेमे ने उनकी इज्जत उतार कर हाथ में दे दी तो अब सिंह ने अपने स्तर पर अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया तो टंडन खेमा पसर गया। ये तो गनीमत है कि दोनों ही बार सुलह हो गई, और दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी तलवारें म्यानों में रख लीं।
यह एक सुविज्ञ तथ्य है कि कोई भी संगठन तभी कामयाब होता है, जबकि अध्यक्ष और सचिव की ट्यूनिंग ठीक होती है, वरना आए दिन मतभेद होते हैं। टंडन व सिंह के बीच भी ट्यूनिंग का अभाव प्रतीत होता है। इसी कारण दोनों एक-दूसरे की राय लिए बिना अपने स्तर पर ही काम निपटाने की कोशिश में लगे रहते हैं। पहले टंडन ने सिंह को विश्वास में लिए बिना ही कलेक्टर से समझौता वार्ता कर ली तो अब सिंह ने टंडन को जानकारी दिए बिना ही अन्ना को समर्थन देने का निर्णय कर लिया। सिंह ने अन्ना हजारे द्वारा दिल्ली में शुरू किए गए आंदोलन के समर्थन में बुधवार को कामकाज स्थगित रखने का पत्र अदालतों में भिजवा दिया। वकीलों को सचिव के स्तर पर की गई कार्रवाई की जानकारी दूसरे दिन सुबह अदालत पहुंचने पर मिली तो कांग्रेस विधि विभाग के अध्यक्ष वैभव जैन समेत अन्य वकीलों ने सचिव से इसका विरोध किया। उनका कहना था कि किसी के समर्थन में अदालतों का कामकाज स्थगित रखने का फैसला बार या साधारण सभा के द्वारा ही लिया जा सकता है। किसी को आंदोलन विशेष का समर्थन करना है तो वह व्यक्तिगत रूप से कर सकता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सिंह से यही गलती हो गई कि उन्होंने निजी तौर पर अन्नावाद के प्रभाव में आ कर अति उत्साह में पत्र जारी कर दिया। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें यह प्रतीत हुआ हो कि उनकी ही तरह अन्य वकील भी भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे आंदोलन का साथ दे देंगे। बाद में विरोध हुआ तो उस पर खेद जता दिया। नतीजतन अन्ना के समर्थन का आंदोलन फुस्स हो गया। यहां तक कि पुतला तक नहीं फूंका जा सका। इस पूरे प्रकरण का अफसोसनाक पहलु ये रहा कि अध्यक्ष टंडन पूरी तरह से अंधेरे में थे। उन्होंने आंदोलन के बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए कह दिया वे जयपुर गए हुए थे। है न अजीबोगरीब विडंबना। इससे यह साबित हो गया है कि सचिव सिंह बार अध्यक्ष टंडन को कितना गांठते हैं और टंडन  सिंह को। प्रतिष्ठा व अहम की इस लड़ाई से दोनों को तो आए दिन नुकसान होगा ही, बार के साधारण सदस्य भी असमंजस में रहेंगे।
 -तेजवानी गिरधर
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टीम अन्ना का साथ देकर फिर चौंकाया देवनानी ने


कीर्ति पाठक से गुफ्तगू करते प्रो. देवनानी

एक ओर जहां शहर जिला भाजपा टीम अन्ना के आंदोलन से अधिकृत रूप से अपने आप को अलग रखे हुए हैं, वहीं अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक व पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी आंदोलन का न केवल खुल कर समर्थन कर रहे हैं, अपितु सक्रिय रूप से भाग भी ले रहे हैं। राजनीतिक हलकों में उनके इस कदम को कौतुहल की नजर से देखा जा रहा है।
 यज्ञ में आहुति देते प्रो. देवनानी
प्रो. वासुदेव देवनानी ने जन लोकपाल बिल के समर्थन में कलेक्ट्रेट पर आईएसी के कीर्ति पाठक वाले गुट की ओर से किये जा रहे अनशन पर पहुंच कर केन्द्र सरकार को सद्बुद्धि प्रदान किये जाने हेतु आयोजित हवन में आहूति भी दी। जाहिर सी बात है कि एक ओर जहां पूरी भाजपा इस मामले पर चुप्पी साधे बैठी है, वहीं अकेले देवनानी सक्रिय हैं तो सभी का चौंकाना स्वाभाविक है। ऐसा नहीं है कि देवनानी वहां बिना बुलाए पहुंचे हैं। बाकायदा उन्हें आमंत्रित किया गया था। उन्हें ही नहीं, कीर्ति पाठक ने तो अन्य सभी भाजपा नेताओं, यहां तक कि कांग्रेसी नेताओं को भी आमंत्रित किया, मगर पहुंचे केवल देवनानी।
ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व भी देवनानी इंडिया अगेंस्ट करप्शन की ओर से अन्ना संदेश यात्रा के तहत जवाहर रंगमंच पर आयोजित कुमार विश्वास की सभा में प्रमुख श्रोताओं के रूप में विधायक वासुदेव देवनानी और साथ ही आरएसएस अजमेर महानगर संघ चालक सुनील दत्त मौजूद थे। तब भी सभी चौंके थे और विशेष रूप से भाजपा कार्यकर्ता असमंजस में पड़ गए थे कि उन्हें इस आंदोलन में शामिल होना चाहिए अथवा नहीं। तब तो चलो केवल एक भाषण कार्यक्रम था, इस कारण यह समझा गया कि देवनानी के पास यह तर्क होगा कि किसी का भाषण सुनने में क्या बुराई है, मगर अब जब अनशन स्थल पर जा कर यज्ञ में आहुतियां दीं तो मामला गंभीर नजर आया। राजनीतिक हलकों में उनके इस कदम पर कयास लगाए जा रहे हैं। सवाल ये उठाए जा रहे हैं कि ऐसा करके वे क्या जताना चाहते हैं? आखिर वे कौन सा गणित ले कर चल रहे हैं? क्या ऐसा वे किसी के इशारे पर कर रहे हैं? ऐसी क्या वजह है कि पूरी भाजपा एक ओर है और देवनानी एकला चालो रे की तर्ज पर दूसरी ओर?
बाबा रामदेव के समर्थन में निकाली रैली में देवनानी
प्रसंगवश बता दें कि देवनानी का अन्ना आंदोलन में शिरकत करना इसलिए भी चौंकाने वाला है कि पिछले दिनों कुमार विश्वास ने अजमेर प्रवास के दौरान सभा व प्रेस कांफ्रेंस में सरकार पर तो हमले किए ही, भाजपा को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा था कि भाजपा ने प्रतिपक्ष के रूप में कमजोर भूमिका निभाई है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा नेता एक राय नहीं हैं। संसद के बाहर भाजपा नेता सीबीआई को जन लोकपाल के दायरे में लाने की बात करते हैं तो सदन में इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं। टीम अन्ना के भाजपा पर भी हमले के बावजूद उसका साथ देना वाकई चौंकाने वाला है।प्रो. देवनानी ने एक ही दिन में एक और चौंकाने वाली घटना को अंजाम दिया। वे स्वामी रामदेव द्वारा 9 अगस्त 2012 को दिल्ली के रामलीला मैदान में किए जा रहे आन्दोलन के समर्थन में पतंजलि योग समिति, भारत स्वाभिमान, युवा भारत, महिला पतंजलि एवं किसान पंचायत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित रैली में भी पहुंच गए। यहां भी वही स्थिति रही। भाजपा के जाने-पहचाने चेहरे नदारद रहे, जबकि अकेले प्रो. देवनानी भाजपा का प्रतिनिधित्व करते नजर आए। भाजपाइयों ने प्रो. देवनानी की इन गतिविधियों पर सिर तो खूब धुना, मगर उन्हें समझ में नहीं आया कि आखिर देवनानी कौन सी चाल चल रहे हैं?
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 23 जुलाई 2012

अंतहीन है दरगाह दीवान और खादिमों का विवाद


महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान और ख्वाजा साहब के सज्जादानशीन सैयद जेनुअल आबेदीन और खादिमों के बीच वर्षों से चल रहा विवाद अंतहीन है। किसी न किसी बहाने ये विवाद आए दिन उभरता है। हाल ही दीवान की ओर से जारी एक बयान पर बवाल हुआ है।
जैसे ही दरगाह दीवान ने यह बयान जारी कर कहा कि फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों द्वारा फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए गरीब नवाज के दरबार में मन्नत मांगना शरीयत और सूफीवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ और नाकाबिले बर्दाश्त है तो खादिमों ने उस पर कड़ी प्रतिक्रिया की।
दीवान ने कहा कि दरगाह शरीफ का इस्तेमाल आस्था और अकीदत के बजाय व्यावसायिकता, प्रचार-प्रसार और ख्याति प्राप्त करने के लिए किया जाना नाजायज है। इसलिए फिल्मी हस्तियों, निर्माता और निर्देशकों को धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले ऐसे किसी भी कार्य से परहेज करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीयत के जानकारों की खामोशी चिंताजनक है।
ख्वाजा साहब आध्यात्मिक संत थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन कुरान और इस्लामी शरीयत को आत्मसात करके लोगों को कानूने शरीअत के मुताबिक जिंदगी बसर करने का संदेश दिया। इस्लाम में नाच गाने, चित्र, चलचित्र, अश्लीलता को हराम करार दिया गया है। गरीब नवाज ने लोगों को इन सामाजिक बुराइयों से दूर रहकर शरीयत के मुताबिक इबादत इलाही में व्यस्त रहने की हिदायत दी। आज गरीब नवाज के मिशन को दरकिनार करके उनके दरबार में इन गैर शरई कार्यों के लिए मन्नतें मांगी जा रही हैं । फिल्में रिलीज करने से पहले मजार पर पेश की जाकर फिल्म की कामयाबी के लिए दुआएं की जा रही हैं।
हालांकि दीवान ने सीधे तौर पर खुद्दाम हजरात पर कोई टिप्पणी नहीं की, मगर तुरंत उनकी ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आ गई। खादिमों की रजिस्टर्ड संस्था अंजुमन सैयद जादगान के पूर्व सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि दीवान का बयान सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा मात्र है। दीवान अपने दरगाह का मुखिया प्रदर्शित करना चाहते हैं, जबकि दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के मुताबिक खादिम, दरगाह दीवान और दरगाह कमेटी के अपने कार्यक्षेत्र हैं। एक्ट के मुताबिक दरगाह दीवान कमेटी के मुलाजिम हैं और 200 रुपए महीना वेतन हैं।
इसी प्रकार अंजुमन शेख जादगान के सह सचिव एस नसीम अहमद चिश्ती का कहना है कि ख्वाजा साहब का दरबार सभी 36 कौमों के लिए है। मन्नत और दुआ पर आपत्ति सही नहीं है। अमूमन फिल्मी हस्तियों को जियारत करवाने वाले खादिम सैयद कुतुबुद्दीन चिश्ती ने कहा कि ये दीवान का मीडिया स्टंट मात्र है। ख्वाजा साहब के दरबार में कोई भेदभाव नहीं है। हर आने वाला अपनी मुराद लेकर आता है। अंजुमन सैयद जादगान के मौजूदा सचिव सैयद वाहिद हुसैन अंगाराशाह  ने प्रतिक्रिया दी कि मुराद और दुआ व्यक्ति के निजी मामले हैं। कौन क्या मांग रहा है, यह कैसे तय किया जा सकता है। उर्स में दरगाह दीवान साहब के मकान के आसपास खासी तादाद में किन्नर ठहरते हैं, दीवान साहब उनकी हरकतों को ही रुकवा दें।
कुल मिला कर खादिमों का पूरा जोर इस बात पर है कि दीवान को जियारत के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे कोई दरगाह के मुखिया नहीं है, महज दरगाह कमेटी के मुलाजिम हैं। हालांकि यूं तो खादिमों की ओर से कई बार यह बात आती रही है कि दीवान ख्वाजा साहब के वंशज नहीं है, जैसा कि वे अपने आपको बताते हैं, मगर इस बार कदाचित इस बात से बचते हुए यही कह रहे हैं कि वे कमेटी के मुलाजिम मात्र हैं।
असल में यह विवाद काफी पुराना है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने  निर्णय में दरगाह दीवान को ख्वाजा साहब का निकटतम उत्तराधिकारी माना है, मगर इसे कम से खादिम समुदाय मानने को तैयार नहीं है। वो इसलिए कि दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट के तहत साथ ही उसकी नियुक्ति प्रक्रिया में दरगाह कमेटी का भी दखल है। बस यही है विवाद की जड़। और इसी वजह है कि आए दिन टकराव होता रहता है। इस बारे में कुछ जानकारों की राय है कि चूंकि एक्ट 1955 में बना है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 1987 का है। इस कारण वह फैसला एक्ट से ज्यादा प्रभावकारी है। मगर मामले में पेच तो है ही। इसी को लेकर एक बार इस बात पर विवाद हो चुका है कि दीवान साहब के बेटे नसीरुद्दीन उनके कार्यवाहक अथवा उत्तराधिकारी नहीं माने जा सकते क्योंकि दीवान की नियुक्ति दरगाह कमेटी करती है।
हुआ यूं था कि दीवान की अस्वस्थता के कारण उर्स के दौरान जब उनके बेटे गुसल की रस्म में आए तो खादिमों को ऐतराज था। उनका कहना था कि मौजूदा दरगाह दीवान की गैर मौजूदगी अथवा पद खाली होने पर अंतरित व्यवस्था दरगाह कमेटी को करनी चाहिए, वंश परंपरा के अनुसार उनके बेटे को गुसल के समय मौजूद नहीं रह सकते। आखिरकार दीवान को मजबूरी में अस्पताल से व्हील चेयर पर आना पड़ा, वरना उनकी गैर मौजदगी में गुसल हो जाता और यह भी एक नजीर बन जाती कि दीवान की गैर मौजूदगी में भी गुसल हो सकता है। बस इसी से बचने के लिए दीवान आए।
इस पूरे प्रकरण पर एक अहम सवाल ये भी उठा था कि यदि खादिम मौजूदा दीवान के भाई या बेटे को उनका प्रतिनिधि नहीं मानते तो उन्होंने अब तक कई बार उर्स के दौरान उनको महफिल की सदारत क्यों करने दी? क्या महफिल और गुसल में मौजूद रहना अलग-अलग मुद्दे हैं? जब महफिल में उनका बेटा सदारत कर सकता है तो वह गुसल के दौरान क्यों नहीं बैठ सकता? इस बारे में कुछ खादिमों को अफसोस है कि यदि पहले अंजुमन इस मामले पर कड़ा कदम उठाती तो आज यह नौबत नहीं आती। अंजुमन को चाहिए था कि वह जैसे ही दीवान की ओर से उनके बेटा या भाई महफिल की सदारत करने के लिए पहली बार आया तो आज की ही तरह ऐतराज कर देती। उस वक्त की लापरवाही ही आज परेशानी का सबब बन गई है।
वैसे एक बात तो साफ है कि भले ही एक्ट के मुताबिक दीवान की नियुक्ति की कोई औपचारिकता होती होगी, मगर इतना भी तय है कि दीवान का पद है तो वंशानुगत ही। यदि खादिम वंशानुगत तरीके से आठ सौ से भी ज्यादा सालों से खिदमत कर रहे हैं, अकबर के जमाने से मौरुसी अमला वंशानुगत रूप से अपनी जिम्मेदारियों निभा रहा है तो क्या अकेला दीवान का ही पद है, जिसके वंशानुगत होने पर ऐतराज किया जा सकता है।
कुल मिला कर यह विवाद अंतहीन है और समय-समय पर उबलता रहेगा। समाधान कुछ होना नहीं है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

कुछ इस तरह घेरा रघु शर्मा को कीर्ति पाठक ने


सब जानते हैं कि फेसबुक इन दिनों अभिव्यक्ति का और अतिरेक अवस्था में भड़ास निकालने का सबसे अच्छा जरिया है। जो बात आप किसी के मुंह पर अथवा कहीं और नहीं कह सकते, वह आपको फेसबुक पर कहने की पूरी छूट है। फिर वह चाहे कितनी ही बड़ी तोप क्यों न हो। और अगर गलती से उस तोप ने भी उसमें हिस्सा ले लिया तो पलट कर ऐसा वार होता है कि उसका जवाब देते नहीं बनता। गर बनता भी है तो उसे आगे बढ़ा कर कौन अपनी फजीहत करवाए। कुछ ऐसा ही हुआ राजस्थान के तेजतर्रार व बयानबाजी में दूसरों के छक्के छुड़ाने वाले सरकारी मुख्य सचेतक डा. रघु शर्मा के साथ। गलती से जानबूझ कर डा. शर्मा ने अपने बारे में इंडिया अगेंस्ट करप्शन की अजमेर प्रभारी की ओर से की गई एक टिप्पणी का जवाब दे दिया तो पटल कर ऐसा जवाब आया कि उसका आज तक वे प्रत्युत्तर नहीं दे पाए हैं।
हुआ यूं कि खबर केकड़ी के फेसबुक अकाउंट पर यह खबर छपी कि रघु शर्मा ने अगले पांच साल में केकड़ी को जिला बनाने का ऐलान किया है। इस पर कीर्ति शर्मा पाठक को तरारा आ गया और बोल दिया रघु शर्मा पर ताबड़तोड़ हमला, मानो पहले की कोई खुन्नस हो। उनके कमेंट की भाषा से ही आप अनुमान लगा लेंगे कि अभिव्यक्ति की आजादी का कितना सदुपयोग किया गया है। देखिए-
अगले पांच सालों में क्यों ???इन पांच सालों में इस का ख्याल क्यों नहीं आया ???अब जब चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो झुनझुने बांटने का शौक हो गया है जनप्रतिनिधियों को ....ये राजनीतिज्ञों की चुनावों को ले कर जो चालें चली जाती है उन्हें जनता अब जान चुकी है .....अब बहकावे में नहीं आएगी .....रघु शर्मा जी को इस बात का खुलासा करना ही होगा कि इन पांच सालों में केकड़ी को जिला बनाने का उन्होंने क्या प्रयास किया ???? अगर वे शुरू से ही प्रयासरत रहे हैं तो सही वर्ना अभी नए मुद्दे न उठायें वरन उन कोशिशों का खुलासा करें जिन्हें वे चुनाव जीतने के बाद से करते आये हैं .....जनता अब उन का ही हिसाब मांग रही है ...घोषणाएं और वादे तो चुनाव घोषणा पत्र में आते रहेंगे ...भरमाने का दौर शुरू न करें ...लेखा जोखा दें ...जनता आप से काम का हिसाब मांग रही है जो आप ने चुनाव जीतने से अब तक किया है.......जनता ने आप को काम करने को चुना था...स्थानीय जनता ने आप पर विश्वास कर के आप को विधानसभा तक पहुंचाया था कि आप उन के प्रतिनिधि बन कर स्थानीय हित और राज्य हित व देश हित में कार्य करेंगे...अब सभाएं कर के फिर चुनाव कि तैयारी में सार्थक प्रकार से जुड़े...अपने किये हुए कार्य गिनाएं....अपने किये वादे जो-जो आप ने पूरे किये हैं, उन्हें जनता के सामने लाइए न कि और वादे करने चालू करें...हम जनता को पुराना हिसाब देखना है...जानना है कि आप हमारी कसौटी पर कितना खरा उतरे हैं......आपने इन सालों में क्या काम किया है.......
इस पर रघु शर्मा ने अंग्रेजी में यह जवाब दिया-
Raghu Sharma - What I have done in my constituency people know better than any body else who speaks from far far away look mam in democracy it is peoples endorsement which matters time will reply weather dovelopment has taken place or not so don't be bothered about my work let it be between me and people of kekri
जाहिर सी बात है कि रघु शर्मा के लिए इससे बेहतर जवाब हो भी नहीं सकता था, मगर इस पर कीर्ती शर्मा पाठक ने उन्हें अंग्रेजी में ही कैसा लपेटा, देखिए-
Kirti Sharma Pathak - My views stand.....Please do not take it personal Mr.Raghu Sharma,I personally do not/cannot have any grudge against you but this is not the time for going on about the policies you WILL undertake in your supposedly ne&t term.....We are the people of Ajmer district and are working in Kekri too.....so the allegation of talking from far away does not stand.....I personally never ever stoop to personal statements and think of India as one but your statement of me talking from far far away and everything between you and the people of Kekri seems that you are against your leadership too where Mrs Sonia Gandhi speaks about the developmental or any other work going on in various parts of India..... She speaks from far far away.....So what do have to say about this.....???The people are being educated and awakened by IAC,we are against corruption and corruption alone....there is no politics if we question any one or speak against any statement issued....I am sorry if this hurts but nothing personal.....and ofcourse the endorsement as you say will follow...if there is.....an endorsement I mean.....regards....
क्या हम गलत हैं ????
आया न मजा। भला इस पर रघु शर्मा क्या जवाब देते? कदाचित इस कारण नहीं दिया होगा कि कौन अपनी और फजीहत करवाए। सीधी सी बात है, वे बैठे हैं एक प्रतिष्ठित पद पर और पलट कर हमलावर रुख अपना नहीं सकते और हमला करने वाले को फ्रीस्टाइल का पूरा अधिकार है, वो भी अगर टीम अन्ना का सदस्य हो। वैसे आजकल फेसबुक का अमूमन इस्तेमाल आजकल या तो फूहड़ और सैक्सी फोटो दिखाने के लिए होता है या फिर इस प्रकार की अंतहीन बहस के लिए।
क्या हम गलत हैं?
-तेजवानी गिरधर 

बुधवार, 18 जुलाई 2012

सेंट्रलाइज्ड किचन : उद्घाटन के लिए कब तक इंतजार करेंगे?


हमारे यहां सरकारी कामकाज की कछुआ चाल वाकई बेहद अफसोसनाक है। इसी वजह से एक तो प्रस्तावित योजना की लागत बढ़ जाती है, दूसरा उसे जिस मकसद से लागू किया जा रहा होता है, वह समय पर पूरा नहीं होता अर्थात समय पर उसका लाभ नहीं मिल पाता। तोपदडा स्थित शिक्षा विभाग परिसर में नवनिर्मित सेंट्रलाइज्ड किचन के मामले में यह बात पूरी तरह फिट बैठती है। उसे तैयार हुए अरसा बीत गया है, मगर वह महज इसी कारण शुरू नहीं की जा रही है, क्योंकि उसका शुभारंभ समारोह आयोजित नहीं हो पाया है। किसी नेता के हाथों उसका फीता नहीं काटा जा सका है।
यहां उल्लेखनीय है कि नांदी फाउंडेशन, हैदराबाद ने पिछले भाजपा शासनकाल में विधायक और सांसद कोटे से पैंतीस लाख रुपये की लागत से इसका निर्माण करवाया गया। भाजपा का राज चला गया और कांग्रेस के राज को भी तीन साल से ऊपर हो गया, मगर यह किचन अब भी शुभारंभ को तरस रही है। पिछले दिनों यह तथ्य सामने आया कि पानी-बिजली के कनैक्शन न हो पाने के कारण इसे शुरू नहीं किया जा सकता। काफी जद्दोजहद के बाद अब तो वह काम भी हो चुका है, मगर फिर भी यह शुभारंभ नहीं किया जा रहा। ऐसी उम्मीद जताई गई कि नया शिक्षण सत्र शुरू होने के साथ यह भी शुरू हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि पोषाहार योजना में आए दिन होने वाली परेशानी से निजात पाने के लिए सेंट्रलाइज्ड किचन की योजना बनाई गई थी। इसमें डिस्टानिंग मशीन लगायी गयी है, जिसमें गेहूं और चावल ओटोमेटिक साफ होकर मशीन में लगी तीन चक्कियों से पिस कर बाहर आयेगा। किचन में बायलर, चपाती मशीन, वैजल्स, राइस और सब्जी बनाने की मशीनें भी लगायी गई हैं। जाहिर है यह किचन वाकई काम की है, मगर कारगर तभी होगी, जबकि इसका उपयोग होगा। देखते हैं सरकार की नींद कब खुलती है।
-तेजवानी गिरधर

वकीलों की हड़ताल खत्म, मगर समस्या?


ई मित्र कियोस्क में वकील से मारपीट व उसकी बाद कियोस्क में हुई तोडफ़ोड़ को लेकर दस दिन बाद वकीलों की हड़ताल समाप्त हो गई। जाहिर है इससे जहां जिला प्रशासन ने राहत की सांस ली है, वहीं आंदोलनरत कर्मचारी भी शांत हो गए हैं। और इससे भी बेहतर ये कि पिछले दिस दिन न्यायिक कार्य बंद होने से तकलीफ पा रहे मुवक्किलों और कलेक्ट्रेट में काम के लिए आ रहे आम आदमी को अब धक्के नहीं खाने पड़ेंगे। मगर अहम सवाल अब भी कायम है। वो यह कि दस दिन जिस मूल मुद्दे को लेकर इतनी जद्दोजहद हुई, वह हल होगा या नहीं।
ज्ञातव्य है कि 5 जुलाई को शाम वकील इंदर सिंह तंवर ने सिविल लाइन थाना में कर्मचारी लखन व विकास चौधरी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था कि वे शाम चार बजे अपने मित्र सुदर्शन शर्मा का मूल निवास प्रमाण पत्र लेने के लिए कलेक्ट्रेट स्थित ई-मित्र काउंटर पर गए थे। मूल निवास प्रमाण पत्र में निवास स्थान अंकित करने में कुछ त्रुटि थी, इसे सुधारने को लेकर इंदर सिंह ने कर्मचारियों से बातचीत की। इंदर सिंह का आरोप है कि कर्मचारी लखन ने कहा कि रात को 8 बजे दो हजार रुपए लेकर आ जाना, उस समय लखन ने शराब पी रखी थी। इंदर सिंह के अनुसार उन्होंने दो हजार रुपए देने से मना करते हुए विरोध किया तो लखन और विकास चौधरी ने मारपीट शुरू कर दी। उनके गले से सोने की चेन तोड़ ली और कपड़े फाड़ दिए। इसके बाद गालियां बकते हुए वैन में जबरन डालकर ले जाने लगे। इसी समय मौके पर दो तीन अन्य वकील आए और उन्हे छुड़वाया। इसके दूसरे दिन वकीलों का दल कलेक्टर को ज्ञापन देने कलेक्ट्रेट पहुंचा। यहीं वकीलों के एक गुट ने ई मित्र काउंटर को तहस नहस कर दिया। इसके बाद वकीलों और कर्मचारियों में जंग छिड़ गई। इस जंग के दौरान जो कुछ हुआ, सब को पता है, मगर सवाल ये है कि ई मित्र कियोस्क पर जिस मुद्दे को लेकर झगड़ा हुआ, वह हल होगा या नहीं। इस मामले में चूंकि वकील से विवाद हुआ, इस कारण मामले ने इतना तूल पकड़ा, मगर आम आदमी के साथ क्या होता रहा होगा, उसकी कल्पना की जा सकती है। अब जब कि प्रशासन की जानकारी में आ गया है कि ई मित्र कियोस्क में क्या चल रहा था, वह व्यवस्था को सुधारेगा या नहीं? आम आदमी को राहत मिलेगी या नहीं?
हालांकि प्रशासन से वकीलों की बातचीत में यह तय हुआ है कि ई मित्र कियोस्क में प्रमाण पत्र तैयार कर देने का काम पहले की तरह ही किया जाएगा, लेकिन अगर आवेदक चाहेगा तो सीधे तहसील कार्यालय से ई सुगम के जरिए प्राप्त कर सकता है। प्रशासन ने भी माना कि मोनोपोली और कार्य की अधिकता की वजह से अव्यवस्था हो रही थी। अब ई मित्र से डिजिटल हस्ताक्षर युक्त व कार्यालय से मैन्युअल तरीके से प्रमाण पत्र दिए जाएंगे, इससे आमजन को सुविधा होगी। प्रमाण पत्रों का प्रारूप भी सरल किया जा रहा है ताकि आमजन को परेशानी नहीं हो। सिस्टम में भी परिवर्तन किया जाएगा। यह सब तय हुआ है। मगर इसका वास्तविक लाभ तभी होगा, जबकि आम आदमी को वाकई राहत मिलेगी। कहीं ऐसा न हो कि कुछ दिन तक तो मामला गर्म होने के कारण मुस्तैदी दिखाई जाएगी और बाद में फिर वही ढर्ऱा अपना लिया जाएगा। हमारे यहां अमूमन ऐसा ही होता है। आम आदमी भी अपना काम समय पर करवाने के लिए पहले कर्मचारियों के खून मुंह लगाता है और बाद में वही तकलीफ पाता है।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 14 जुलाई 2012

यानि कि संघ साथ है अन्ना आंदोलन के


सुनील दत्त 

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जब आरोप लगाते हैं कि अन्ना आंदोलन के पीछे संघ और भाजपा का हाथ है तो टीम अन्ना तो असहज हो उठती ही है और संघ व भाजपा को भी बुरा लगता है। इसकी वजह ये है कि भाजपा व संघ का इस मामले में कभी क्लीयर स्टैंड नहीं रहा। कभी कहते हैं कि हमारा कोई लेना देना नहीं है तो कभी कहते हैं भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के तो साथ हैं ही। इस अस्पष्ट भूमिका की वजह ये ही है कि टीम अन्ना अपने आंदोलन को गैर राजनीतिक बताने के लिए कभी-कभी भाजपा पर भी दिखाने को वार करती है। वैसे धरातल सच यही है कि भले ही टीम अन्ना संघ और भाजपा का मुखौटा न हो, मगर उसे सींचने की तो पूरी भूमिका अदा करते हैं, क्योंकि आंदोलन को गैर राजनीतिक बताने के बावजूद वह कभी घोषित तो कभी अघोषित रूप से कांग्रेस को उखाड़ फैंकने के लिए सतत प्रयासरत है। यानि कि संघ और भाजपा को टीम अन्ना से भले ही कोई सीधा वास्ता न हो, मगर दुश्मन का दुश्मन दोस्त तो है ही। इसकी झलक हाल ही अजमेर में भी नजर आई।
इंडिया अगेंस्ट करप्शन की ओर से अन्ना संदेश यात्रा के तहत जवाहर रंगमंच पर आयोजित कुमार विश्वास की सभा में प्रमुख श्रोताओं के रूप में  विधायक वासुदेव देवनानी व आरएसएस अजमेर महानगर संघ चालक सुनील दत्त भी मौजूद थे। भाजपा पार्षद खेमचंद नारवानी सहित कुछ अपरिचित भाजपाई चेहरे भी उपस्थित थे। ये सभी संघ पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं। हो सकता है कि इनके पास जवाब हो कि वे तो भ्रष्टाचार के खिलाफ कुमार विश्वास का भाषण सुनने मात्र गए थे, मगर चूंकि जैन व देवनानी अजमेर में संघ व भाजपा के अग्रणी चेहरे हैं, इस कारण यही माना जाएगा कि अन्ना के आंदोलन को अघोषित रूप से प्राण वायु वे ही दे रहे हैं। महानगर संघ चालक का पद कोई छोटा-मोटा नहीं होता। उस पर बैठे व्यक्ति के लिए संघ और भाजपा की गतिविधियों की गहरी नजर और पकड़ होती है। इस कारण जैन की मौजूदगी को यूं ही नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार देवनानी मौजूदा भाजपा विधायक व पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री हैं। वे अजमेर भाजपा के चुनिंदा अग्रणी भाजपा नेताआं में शुमार हैं। हालांकि भाजपा के शहर अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत सहित अन्य पदाधिकारी सभा में नजर नहीं आए, इससे यह संदेश गया कि भाजपा ने इस सभा से परहेज ही रखा, मगर दूसरी ओर जैन व देवनानी की पहली पंक्ति में मौजूदगी यह सवाल छोड़ गई है कि आखिर वे किस रणनीति के तहत वहां गए। जाहिर तौर पर इससे आम भाजपा कार्यकर्ता तो असमंजस में पड़ा ही होगा।
-तेजवानी गिरधर
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क्या देवनानी कुमार विश्वास पर पलटवार करेंगे?


प्रो. वासुदेव देवनानी

टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य कुमार विश्वास ने अजमेर प्रवास के दौरान सभा व प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अपने सुपरिचित ढंग से सरकार पर तो हमले किए ही, भाजपा को भी नहीं छोड़ा।
जवाहर रंगमंच पर आयोजित सभा में वे बोले कि देश में शासन करते हुए अंग्रेज हमारे देश से नौ सौ करोड़ रुपए लूट कर ले गए थे, लेकिन इनके चले जाने के बाद नेता आए, नेता हर दिन करोड़ों रुपए लूट रहे हैं। उन्होंने ये तो नहीं कहा कि कांग्रेसी नेता लूट रहे हैं, वे सभी को शामिल हुए कह रहे हैं और इसका मतलब ये होता है कि भाजपा सहित अन्य सभी दलों के नेता भी इसमें शामिल हैं। अगर ये इंटरपिटेशन हजम नहीं हो रहा हो तो लीजिए अगले बयान में सभी दलों पर चुटकी लेते हुए कहा कि कोई भी राजनीतिक दल यह नहीं चाहता कि जन लोकपाल बिल पास हो।
सभा से पहले प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए विश्वास ने प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भाजपा ने प्रतिपक्ष के रूप में कमजोर भूमिका निभाई है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा नेता एक राय नहीं हैं। संसद के बाहर भाजपा नेता सीबीआई को जन लोकपाल के दायरे में लाने की बात करते हैं तो सदन में इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं।
अब बात करते हैं पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी की। अमूमन वे बयान जारी करने का कोई भी मौका नहीं चूकते। शहर का मुद्दा हो, अथवा राज्य व देश स्तर का, वे अपनी राय जरूर उजागर करते हैं। जिस कुमार विश्वास को सुनने वे बड़े शौक से गए, उन्हीं ने अजमेर शहर में भाजपा के खिलाफ भी बयान दे दिया, जो कि अखबारों में छपा भी है। अब देखते हैं इसका जवाब देने से देवनानी कतराते हैं क्योंकि वे कुमार विश्वास के श्रोता थे, या फिर अपनी आदत के मुताबिक पार्टी का पक्ष रखते हुए खुल कर बोलते हैं।
-तेजवानी गिरधर
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 हरि शंकर गोयल

पूरे शहर के नागरिकों के राशन कार्ड नए सिरे से बनाने की महती योजना पर बिना तालमेल के काम करने का परिणाम ये निकला कि मात्र दो हफ्ते में ही प्रशासन हांफ गया और पूरी व्यवस्था बेकाबू हो गई। नतीजतन अब निर्धारित फार्म जमा करवाने की तारीख 31 जुलाई कर दी गई है। इसके बाद भी यह बहुत बड़ा काम अधूरा ही रह जाने की आशंका है।
हालांकि इस कार्य को शुरू करने के साथ ही जिला रसद अधिकरी हरि शंकर गोयल की नगर निगम प्रशासन व पार्षदों के साथ बैठक करवाई गई, मगर वहां कैसा तालमेल हुआ, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बैठक में पार्षदों ने गोयल को खुले आम भ्रष्ट कहा और राशन वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार सहित कई अहम मुद्दों पर गोयल को आड़े हाथों ले लिया। एक पार्षद ने कहा कि विभाग द्वारा प्रत्येक राशन की दुकान से चार सौ रुपए प्रति माह की रिश्वत ली जाती है। पार्षद मोहनलाल शर्मा ने यह कहते हुए सनसनी फैला दी कि गोयल तो खुद भ्रष्ट हैं, यह राशि इनके पास भी तो जाती है। इस पर गोयल महज इतना कह पाए कि यह आरोप झूठा है। किसी की सोच पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है। स्पष्ट है कि यह बैठक महज औपचारिक ही रही और उसका नतीजा सामने है ही।
हालत ये है कि कई वार्डों में अभी तक तो आवेदन पत्रों का वितरण ही शुरू नहीं हुआ है। जिन में वितरण हुआ है, वहां कुछ ही घरों में आवेदन पत्र ही पहुंचे हैं। रसद विभाग ने आवेदन पत्र बांटने के लिए जो प्रगणक लगाए थे, उसमें कई ने ड्यूटी निरस्त करवा ली। अधिकांश प्रगणक काम पर ही नहीं लौटे तो कई विभागों ने अपने कर्मचारियों को ही रिलीव नहीं किया। कई प्रगणकों ने किसी दुकान पर बैठ कर आवेदन पत्र बांटे। लोगों को जब फार्म नहीं मिले तो उन्होंने पार्षदों को तंग करना शुरू कर दिया। इस पर पार्षदों में नाराजगी होना स्वाभाविक है। उन्होंने अपना गुस्सा गोयल पर निकालना शुरू कर दिया है। वार्ड 42 के पार्षद दिनेश चौहान ने कहा कि कई वार्डों में फार्म की फोटोकापी करने की शिकायत गोयल से की तो वे झल्ला कर बोले कि जहां फार्म की फोटोकापी की जा रही है, उसकी फोटो खींच कर ले आएं।
बहरहाल, जब हालात बेकाबू हो गए तो रसद विभाग हाथ खड़े करने की स्थिति में आ गया और पार्षदों को अपने स्तर पर आवेदन पत्र और राशन कार्ड के लिए सेवानिवृत्त कर्मचारियों को लगाने की सलाह दे रहा है। इस पर गुस्साए पार्षदों ने नगर निगम में बैठक कर गोयल की कार्यशैली पर रोष जाहिर किया। पार्षदों ने अपनी शिकायत निगम के सीईओ सी आर मीणा के समक्ष दर्ज करवाई है। पार्षदों ने बताया कि गोयल ने निगम में पार्षदों की बैठक के दौरान बड़े-बड़े दावे किए, मगर हालत ये है कि पार्षदों को उनके वार्ड में लगाए प्रगणकों के बारे में जानकारी ही नहीं है। पार्षदों ने आंदोलन तक की चेतावनी दे दी है। अब पार्षद मामले की शिकायत जिला कलेक्टर वैभव गालरिया से करेंगे। देखते हैं, जिला कलेक्टर क्या समाधान निकालते हैं। वैसे यदि जिला प्रशासन समय रहते जिला रसद अधिकारी गोयल व पार्षदा के बीच हुई खींचतान को देखते हुए ठीक से तालमेल बैठा लेता ताके कदाचित ये नौबत नहीं आती।
-तेजवानी गिरधर
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शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

कानूनी डंडा चलाने के साथ पार्किंग स्थल भी तो बनवाइये


अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर लोकेश सोनवाल ने हाईकोर्ट के एक आदेश के तहत गृह विभाग के निर्देशों का हवाला देते हुए फरमान जारी किया है कि वाहन मालिक अपने वाहनों की पार्किंग निर्धारित पार्किंग स्थल पर ही करें तथा निर्धारित मार्ग से ही व्यावसायिक वाहनों की आवाजाही हो। इसके दो ही मतलब निकलते हैं। एक तो जैसे ही उन्हें गृह विभाग के निर्देशों का पता लगा, उसे आगे सरका दिया, या फिर पुलिस पार्किंग दुरुस्त करने का अभियान चलाने का इशारा कर रही है।
बेशक हाईकोर्ट के आदेश की अनुपालना में गृह विभाग के निर्देशों की पालना सुनिश्चित होनी ही चाहिए। कोई नहीं करेगा तो बकौल सोनवाल  वाहन मालिकों के विरूद्घ नियमानुसार कानूनी कार्यवाही कर वाहन जब्त किया जायेगा।
लोकेश सोनवाल
यहां तक सब ठीक है, मगर इस प्रकार ऊपर के आदेशों को जारी कर देना ही पर्याप्त नहीं है। केवल कानून का डंडा दिखाना ही काफी नहीं है। सोनवाल सहित पूरे पुलिस प्रशासन को स्थानीय परिस्थितियों को भी ख्याल में रखना चाहिए। सब जानते हैं कि अजमेर यातायात की कितनी भीषण समस्या का कष्ठ भोग रहा है। यह भी सही है कि नई व्यवस्था यातायात को सुगम बनाने के मकसद से लागू की जा रही है, मगर धरातल का सच ये है कि अजमेर में पार्किंग एक बहुत बड़ी समस्या है। एक लंबे अरसे से नए और मल्टीस्टोरी पार्किंग प्लेस विकसित करने की मांग की जाती रही है। उस पर चर्चा भी खूब हुई है, आश्वासन व वादे भी खूब हुए हैं, मगर अमल आज तक नहीं हो पाया। उसी का परिणाम है कि वाहन मालिक आए दिन यातायात पुलिस वाहन उठाऊ दस्ते का शिकार होते रहते हैं। कई बार तो यह लगता है कि इस दस्ते को माह का कोई टारगेट दिया हुआ है, इस कारण व्हाइट लाइन से एक इंच भी बाहर निकले वाहन को उठा कर चल देता है। कई बार तो बेचारे वाहन मालिक का दोष नहीं होता। वह तो व्हाइट लाइन के अंदर की वाहन खड़ा करके खरीददारी करने चला जाता है, मगर बाद में वहां अपना वाहन रखने वाला अथवा हटाने वाला पहले वाले का वाहन को इधर ऊधर कर देता है। नतीजतन दोष न होने पर भी उसे जुर्माना भरना होता है। है न सरासर नाइंसाफी, मगर पुलिस इसे सुनने को तैयार ही नहीं होती। इसको लेकर कई बार झगड़े हुए हैं, मगर आज तक पुलिस और शहर प्रशासन ने इसका पुख्ता समाधान करने की ओर कदम नहीं उठाया है।
असल में शहर में अनेक स्थानों पर पार्किंग स्थल विकसित करने की जरूरत है। हालांकि यह बात सही है कि पिछले बीस साल में आबादी बढऩे के साथ ही अजमेर शहर का काफी विस्तार भी हुआ है और शहर में रहने वालों का रुझान भी बाहरी कालोनियों की ओर बढ़ा है। इसके बावजूद मुख्य शहर में आवाजाही लगातार बढ़ती ही जा रही है। रोजाना बढ़ते जा रहे वाहनों ने शहर के इतनी रेलमपेल कर दी है, कि मुख्य मार्गों से गुजरना दूभर हो गया है। जयपुर रोड, कचहरी रोड, पृथ्वीराज मार्ग, नला बाजार, नया बाजार, दरगाह बाजार, केसरगंज और स्टेशन रोड की हालत तो बेहद खराब हो चुकी है। कहीं पर भी वाहनों की पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। इसका परिणाम ये है कि रोड और संकड़े हो गए हैं और छोटी-मोटी दुर्घटनाओं में भी भारी इजाफा हुआ है।
ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि यातायात व्यवस्थित करने के लिए समग्र मास्टर प्लान बनाया जाए। उसके लिए छोटे-मोटे सुधारात्मक कदमों से आगे बढ़ कर बड़े कदम उठाने की दरकार है। मौजूदा हालात में स्टेशन रोड से जीसीए तक ओवर ब्रिज और मार्टिंडल ब्रिज से जयपुर रोड तक एलिवेटेड रोड नहीं बनाया गया तो आने वाले दिनों में स्टेशन रोड को एकतरफा मार्ग करने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। रेलवे स्टेशन के बाहर तो हालत बेहद खराब है। हालांकि फुट ओवर ब्रिज शुरू से कुछ राहत मिली है, लेकिन उसे जब रेलवे प्लेटफार्म वाले ब्रिज से जोड़ा जाएगा, तभी पूरा लाभ होगा। इसके अतिरिक्त इन स्थानों पर पार्किंग स्थल बनाए जा सकते हैं-
खाईलैण्ड मार्केट से लगी हुई नगर निगम की वह भूमि, जिस पर पूर्व में अग्नि शमन कार्यालय था। नया बाजार में स्थित पशु चिकित्सालय की भूमि, जहां अंडर ग्राउण्ड पार्किंग संभव है। मदार गेट स्थित गांधी भवन के पीछे स्कूल की भूमि। कचहरी रोड स्थित जीआरपी/सीआरपी ग्राउण्ंड। केसरगंज स्थित गोल चक्कर में अंडर ग्राउंड पार्किंग। मोइनिया इस्लामिया स्कूल के ग्राउण्ड में अंडर ग्राउण्ड पार्किंग संभव है।
हालांकि यह सही है कि पुलिस का काम केवल कानून की पालना करवाना है और पार्किंग स्थल उसे नहीं बनवाने, मगर कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि जिला प्रशासन को आगाह तो कर ही सकते हैं कि बिना पार्किंग स्थलों को विकसित किए वाहनों को नियंत्रित करना कठिन है।
-तेजवानी गिरधर
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नालों की सफाई में फिसड्डी रहा नगर निगम


मेयर कमल बाकोलिया

एक बहुत पुराना मुहावरा है-बारिश आने से पहले पाल बांधना। इसका मतलब सबको पता ही है। पाल इसलिए बांधी जाती है ताकि अगर बारिश ज्यादा आ जाए तो उससे होने वाले नुकसान से बचा जा सके। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया व सीईओ सी आर मीणा को इस मुहावरे की जानकारी नहीं है। जानकारी तो छोडिय़े, लगता तो ये है कि जानकारी देने के बावजूद उन्होंने इसे लेना जरूरी नहीं समझा। नतीजा ये रहा कि अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी को उन्हें उलाहना देते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहना पड़ा कि मेयर साहब अब तो जागो। 
असल में मानसून आने से एक माह पहले से ही नालों की सफाई का रोना चालू हो गया था। नगर निगम प्रशासन न जाने किसी उधेड़बुन अथवा तकनीकी परेशानी में उलझा हुआ था कि उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अगर ध्यान दिया भी तो जुबानी जमा खर्च में। धरातल पर पर स्थिति बिलकुल विपरीत थी। जब आला अधिकारियों ने निर्देश दिए तो भी निगम प्रशासन ने हां हूं और बहानेबाजी करके यही कहा कि सफाई करवा रहे हैं। जल्द पूरी हो जाएगी। बारिश से पहले पूरी हो जाएगी। जब कुछ होता नहीं दिखा तो पार्षदों के मैदान में उतरना पड़ा। श्री गणेश भाजपा पार्षद जे के शर्मा ने किया और खुद ही अपनी टीम के साथ नाले में कूद गए। हालांकि यह प्रतीकात्मक ही था, मगर तब भी निगम प्रशासन इस बेहद जरूरी काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पाया। परिणामस्वरूप दो और पार्षदों ने भी मोर्चा खोला। ऐसा लगने लगा मानो निगम में प्रशासन नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई। अगर ये मान भी लिया जाए कि पार्षदों ने सस्ती लोकप्रियता की खातिर किया, मगर निगम प्रशासन को जगाया तो सही। मगर वह नहीं जागा। इतना ही नहीं पूरा मीडिया भी बार बार यही चेताता रहा कि नालों की सुध लो, मगर निगम की रफ्तार नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली ही रही। यह अफसोसनाक बात है कि जो काम निगम प्रशासन का है, वह उसे जनता या जनप्रतिनिधि याद दिलवाएं। मेयर कमल बाकोलिया व सीईओ सी आर मीणा मानें न मानें, मगर वे नालों की सफाई में फिसड्डी साबित हो गए हैं। वरना क्या वजह रही कि मानसून की पहली ठीकठाक बारिश में ही सफाई व्यवस्था की पोल खुल गई। निचली बस्तियों  में पानी भर गया तथा नाले-नालियों की सफाई नहीं होने से उनमें से निकले कचरे व मलबे के जगह-जगह ढेर लग गये। कई जगह पानी जमा हो गया, जिससे यातायात अवरुद्ध हो गया। ऐसे में यदि देवनानी ये आरोप लगाते हैं कि मेयर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर चैन की नींद सो रहे हंै, तो गलत और राजनीति नहीं है। बाकोलिया तो चलो बहुत अनुभवी नहीं हैं, मगर मीणा जैसे संजीदा व अनुभवी अफसर भी विफल व नकारा साबित होते हैं, तो यह बेहद अफसोसनाक है। या फिर नगर निगम में आ कर पार्षदों की खींचतान में बेबस हो गए हैं।
-तेजवानी गिरधर
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सोमवार, 9 जुलाई 2012

आईपीएस अजय सिंह के बच जाने की संभावना


अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अफसर अजय सिंह के बच निकलने की पूरी संभावना नजर आने लगी है।
अव्वल तो वे रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ नहीं पकड़े गए थे। रिश्वत तो प्रेम सिंह ने ली थी। अजय सिंह पर तो आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता भवानी सिंह से रिश्वत की रकम प्रेम सिंह के हाथों मंगवाई थी। इसे साबित करना आसान काम नहीं था। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब शिकायतकर्ता भवानी सिंह ने मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के तहत जो कलम बंद बयान दिए, उसमें उसने अजय सिंह का जिक्र तक नहीं किया। जब कि शुरू में वह खुल कर बयान दे चुका था कि अजयसिंह के लिए ही रिश्वत ली गई थी। जाहिर तौर पर पूर्व के बयानों की अहमियत इस कारण नहीं थी कि वे बाद में बदले भी जा सकते थे। इसे देखते हुए ही एसीबी ने उसके कलमबंद बयान करवाए, मगर हुआ उलटा। भवानी सिंह ने तो उनका नाम लिया ही नहीं। चूंकि वे कलमबंद बयान हैं, इस कारण उनकी ज्यादा अहमियत है। ये परिवर्तन कैसे हुआ, कुछ पता नहीं। हालांकि एक कयास ये भी लगाया जा रहा है कि एसीबी ने 164 के जो बयान दर्ज करवाए, उसमें कुछ ज्यादा ही फुर्ती दिखाई, इस कारण संदेह उत्पन्न होता है। वैसे बताते हैं कि जब शिकायतकर्ता ने एसीबी से संपर्क किया तो उन्हें भी मामला गंभीर नजर आया। उनकी सोच थी कि जो आईपीएस निकट भविष्य में ही कहीं न कहीं एसपी लगने वाले हैं और उनकी अभी उम्र ही क्या है, पूरी जिंदगी कमाने के लिए पड़ी है। जिनका अभी से ये हाल है, वे आगे जा कर क्या करेंगे। यही सोच रख कर कार्यवाही का मन बनाया गया। कार्यवाही में ईमानदार और अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई, ताकि वे कोई ढि़लाई न बरतें। उसी के अनुरूप कार्यवाही हुई भी। यह बात दीगर है कि कार्यवाही के दौरान वे रंगे हाथ नहीं पकड़े जा सके। यहां तक कि वे घटनास्थल पर भी मौजूद नहीं थे।
वैसे चर्चा ये भी है कि अजयसिंह की ओर से किसी ने भवानी सिंह के परिजन से समाज बंधु होने के नाते संपर्क किया था तो उन्होंने उन्हें बचाने से साफ इंकार कर दिया था। यह कह कर कि तब उन्हें समाज बंधु क्यों नहीं नजर आया, जब पैसे के लिए परेशान कर रहे थे। लेकिन बाद में जो कुछ हुआ, उसका परिणाम सामने है।
अजयसिंह के बचने की संभावना इस कारण भी है कि प्रदेश की आईपीएस लाबी इस दाग को मिटाने में रुचि ले रही बताई। रिश्वत के मामले में वे संभवत: पहले आईपीएस हैं, इस कारण आईपीएस लाबी की इच्छा हो सकती है कि नौकरी में जो रिमार्क लगना था, वह लग गया, अब सजा जितनी कम से कम हो या सजा मिले ही नहीं तो बेहतर रहेगा, अन्यथा इस जवान आईपीएस की जिंदगी तबाह हो जाएगी। कदाचित इसी वजह से जो जांच पहले डीआईजी स्तर के अधिकारी कर रहे थे, वह आरपीएस स्तर के अधिकारी को सौंप दी गई है। जाहिर सी बात है कि कनिष्ट अधिकारी अपने से वरिष्ठ के साथ सख्ती से पेश नहीं आ सकता। वो भी खास कर पुलिस महकमे में, जहां अनुशासन के नाते कनिष्ठता-वरिष्ठता का पूरा ख्याल रखा जाता है।
कुल मिला कर संकेत ये ही मिल रहे हैं कि अजय सिंह इस प्रकरण में बच कर निकल सकते हैं। और अफसोस वे तो बचे हुए ही हैं, जिनकी देखरेख में अजयसिंह के ऊपर इस प्रकार का कारनामा करने का आरोप है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी नया आईपीएस अकेले अपने दम पर इस प्रकार की लूट नहीं मचा सकता।
चलते-चलते इस चर्चा के बारे में भी आपको जानकारी देते चलें कि जिस मार्स बिल्ड होम एंड डवलपर्स की मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी के मामले में यह रिश्वत खाई गई, उसके गेनर्स को नोंचने में कुछ पत्रकारों ने भी कसर बाकी नहीं रखी थी। वो इस बिना पर कि उनके नाम का जिक्र खबरों में बार-बार न आए।
-तेजवानी गिरधर
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शनिवार, 7 जुलाई 2012

लकीर के फकीर प्रशासन ने बंद करवाया संस्कृति द स्कूल

लकीर का फकीर की कहावत तो आपने सुनी ही होगी। यह गर्मियों में एक हफ्ता और स्कूल बंद रखने के प्रशासनिक फरमान के मामले में संस्कृति द स्कूल को बंद करवाने पर पूरी तरह से लागू होता है।
हुआ दरअसल ये कि सरकार के निर्देश पर जयपुर की तर्ज पर अजमेर के जिला कलेक्टर वैभव गालरिया ने भी गर्मी को देखते हुए कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों की छुट्टी घोषित कर दी थी। मगर स्कूल के प्रिंसिपल अमरेंद्र मिश्रा ने इस आदेश को यह कहते हुए कि दरकिनार कर दिया कि न केवल स्कूल पूरी तरह से एसी है, बल्कि बच्चों को स्कूल लाने वाली बसें भी एसी हैं। स्कूल प्रशासन ने कलेक्टर को भी स्कूल खुली रखने देने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी। ऐसे में डीईओ आफिस से आरटीई अधिकारी राजेश तिवारी व प्रवीण शुभम निरीक्षण के लिए संस्कृति स्कूल पहुंच गए और कलेक्टर के आदेशों का हवाला देते हुए कक्षा 1 से लेकर 8 वीं तक के बच्चों की छुट्टी रखने के निर्देश दिए। मजबूरी में स्कूल प्रशासन को स्कूल बंद करनी पड़ी और सभी अभिभावकों को बाकायदा यह लिख कर भी भिजवाना पड़ा कि स्कूल अब 9 जुलाई को ही खुलेगी।
यूं तो यह सामान्य सी बात है कि प्रशासनिक आदेश सभी पर एक समान लागू होता है, मगर यदि किसी के ठोस तर्क हो तो उसे स्वीकार करते हुए चाहें तो छूट भी दी जा सकती है। जब छुट्टी की ही गर्मी के कारण थी और यदि किसी स्कूल की बसें व पूरा स्कूल भवन एसी है तो उसे छूट देने में कोई बहुत बड़ा पहाड़ नहीं टूटने वाला था, मगर जिला व शिक्षा प्रशासन ने वैसा ही व्यवहार किया, जैसा लकीर का फकीर करता है।
दरअसल सरकार ने यह जिला कलेक्टरों पर छोड़ा था कि वे चाहें तो एक सप्ताह तक स्कूल बंद करने के आदेश जारी कर सकते हैं। अर्थात सरकार का ऐसा स्टेंडिंग आदेश नहीं था, जिसके लिए सरकार से मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती। जिला कलेक्टर चाहते तो अपने स्तर पर छूट दे सकते थे। मगर हमारे यहां प्रशासनिक व्यवस्था है ही ऐसी कि कोई भी अधिकारी फालतू का पंगा मोल नहीं लेना चाहता। वो इस कारण भी कि या तो कुछ जिद्दी अभिभावक हल्ला करते या फिर शहर के हर मसले में दखल देने वाले संगठन विरोध कर देते। अजमेर शहर महिला कांग्रेस अध्यक्ष सबा खान ने तो जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर विरोध दर्ज भी करवा दिया। असल में किसी भी राजनीतिक दल के अग्रिम संगठन संबंधित वर्ग के हितों का ध्यान रखने व उनको संगठन से जोडऩे की खातिर बने होते हैं। सीधी सी बात है कि एनएसयूआई या अभाविप होते तो बात समझ में भी आती, मगर महिला कांग्रेस का तो स्कूल व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी हमारे यहां चलन ऐसा हो गया है कि अग्रिम संगठन उन मसलों पर भी सक्रिय हो जाते हैं, जिनका उनसे कोई लेना देना नहीं है। यहां तक कि कई बार अपने मूल संगठन की इजाजत भी नहीं लेते। यानि कि उन्हें शहर के हर मसले पर बोलने का लाइसेंस मिला हुआ है।
बहरहाल, संस्कृति द स्कूल के मामले में तो यह भी महसूस होता है कि इसमें बड़े लोगों को उनकी हैसियत दिखाने की मंशा भी रही होगी। जाहिर सी बात है, कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, जिला कलेक्टर से तो बड़ा नहीं हो सकता। आखिर वे जिले के मालिक हैं। वैसे, एक बात बता दें, इस मालिक वाले भाव को समाप्त करने की खातिर ही सरकार ने इस पद का नाम जिलाधीश से जिला कलेक्टर किया था, क्योंकि जिलाधीश नाम से अधिनायकवाद व सामंतशाही का आभास होता था। खैर, नाम भले ही बदल दिया गया हो, मगर अधिकार तो सारे वो ही हैं। ओर हैं तो उनका उपयोग भी होगा ही।

-तेजवानी गिरधर
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यानि खादिमों के लिए केवल इंद्रेश कुमार ही अछूत हैं

इन दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य और भाजपा से मुसलमानों को जोडऩे की मुहिम के सेनापति इंद्रेश कुमार खादिमों के निशाने पर हैं। विवाद ये है कि उनकी जमात के एक युवक सैयद इफशान चिश्ती ने संघ के पूर्व सर संघ चालक के पी सुदर्शन और इंद्रेश कुमार के साथ फोटो कैसे खिंचवा ली, जबकि इंद्रेश कुमार पर दरगाह में बम विस्फोट की साजिश में शामिल होने का आरोप है। यानि की इंद्रेश कुमार खादिमों के दुश्मन नंबर वन हैं। और इसी वजह से खादिमों की रजिस्र्टड संस्था अंजुमन सैयद जादगान को भी शिकायत के आधार पर इफशान से जवाब तलब करना पड़ा।
दरअसल अंजुमन कई बार ऐसे धर्म संकट में इसलिए पड़ जाती है क्योंकि यह एक सामाजिक संस्था है और राजनीति से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है। इस कारण संस्था यह तय नहीं कर सकती कि उसके सदस्य किस पार्टी से संबंध रखें और किस के साथ नहीं। और यही वजह है कि कुछेक खादिम हिंदूवादी पार्टी भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं, मगर उस पर कभी ऐतराज नहीं होता। वे पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारी भी हैं। अमूमन वे ही भाजपा नेताओं को जियारत भी करवाते हैं। जायरीन व दुआगो का यह रिश्ता इसलिए कायम है क्योंकि दरगाह का दर हर मजहब को मानने वाले के लिए खुला है। इस मामले में कोई परहेज नहीं किया जाता। खादिमों के लिए हर जायरीन बराबर है। हकीकत तो यह भी मानी जाती है कि ख्वाजा साहब के दर पर सालभर में मुसलमान की तुलना में हिंदू कहीं अधिक आता है।
खैर, बात ताजा विवाद की। चूंकि विवाद में आए खादिम युवक सैयद इफशान चिश्ती भाजपा नेता के पुत्र हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि उनके भाजपा के नेताओं से संबंध हैं। हाल ही जब तीर्थराज पुष्कर में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का तीन दिवसीय शिविर हुआ तो भाजपा नेता और वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सलावत खां के फोन पर बुलावे की वजह से वे पुष्कर पहुंचे। बकौल इफशान उन्हें नहीं मालूम था कि पुष्कर में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सम्मेलन में कौन लोग आए थे। वहां कौन लोग मुख्य अतिथि अथवा विशिष्ट अतिथि थे, इसके बारे में भी उसे नहींं मालूम था। हालांकि बात हजम नहीं होती, मगर जब वे लिखित में कह रहे हैं तो उस पर यकीन करना ही होगा कि उन्होंने गफलत में सुदर्शन व इंद्रेश कुमार के साथ फोटो खिंचवा लिया। इस बयान के साथ ही विवाद खुद ब खुद समाप्त हो जाता है। वो इसलिए भी कि इस बयान के साथ ही यह बयान खुद ब खुद बयां हो गया है कि अगर उन्हें यह मालूम होता कि वहां दरगाह बम ब्लास्ट की साजिश के कथित आरोपी इंद्रेश कुमार भी आए हैं तो वे वहां नहीं जाते। कम से कम उनके साथ फोटो तो कत्तई नहीं खिंचवाते, जिसकी वजह से जमात में गलत संदेश चला गया। एक अर्थ में उन्होंने आम खादिम की इस भावना का सम्मान किया है कि इंद्रेश कुमार जैसों से जमात के लोगों को परहेज करना चाहिए। अलबत्ता उसी हिंदू मानसिकता वाली भाजपा से भले ही जुड़े रहें। यानि कि गुड़ भले ही खा लें, मगर गुलगुले से परहेज रखें। वजह साफ है। अंजुमन किसी भी खादिम को यह निर्देश नहीं दे सकती कि अमुक पार्टी से नाता रखें और अमुक से परहेज। उसके लिए सभी समान हैं। मगर चूंकि इंद्रेश कुमार का नाम सीधे तौर पर बम ब्लास्ट से जुड़ा हुआ माना जा रहा है तो आम खादिम की यही सोच है कि कम से कम उनसे तो परहेज रखें ही। इसी सोच को धार देने वाले पूर्व अंजुमन सचिव सैयद सरवर चिश्ती के दबाव में अंजुमन को इशफान की सुनवाई करनी पड़ी।
बात सही भी है। बम विस्फोट की साजिश के कथित आरोपी के साथ कोई खादिम फोटो खिंचवाएगा तो क्या संदेश जाएगा? अलबत्ता इंद्रेश कुमार के लिए यह बात उल्लेखनीय है कि सरकार व जांए एजेंसियां उन्हें जबरन फंसाने की कोशिश कर रही हैं, जबकि दरगाह के खादिमों के साथ तो उनके बेहतर रिश्ते हैं। 

-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, 4 जुलाई 2012

रलावता की जुबान क्या फिसली, टंडन ने पकड़ ली

कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के नवनियुक्त शहर जिला अध्यक्ष मुबारक अली के सम्मान में कांग्रेस दफ्तर में आयोजित सम्मेलन के दौरान कांग्रेस शहर अध्यक्ष महेन्द्रसिंह रलावता की जुबान क्या फिसली, जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश टंडन ने पकड़ ली। आइये, जरा देखते हैं कि रलावता ने ऐसा क्या कह दिया, जिससे टंडन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
रलावता ने कहा था कि कांग्रेसी विचारधारा के वकील विधि सलाहकार आदि पदों पर काबिज होने के लिए पार्टी का उपयोग करते हैं और जरूरत पडऩे पर कांग्रेस के वकील के नाते पैरवी नहीं करते। उन्होंने बाकायदा इसका उदाहरण भी दिया कि जिस तरह से दरगाह बम कांड के आरोपियों की वकालत भाजपा और आरएसएस विचारधारा के वकील कर रहे हैं, उस तरह से कांग्रेसी वकीलों को भी उनके खिलाफ पैरवी करनी चाहिए। आप समझ गए ना। टंडन को रलावता की सीख पसंद नहीं आई। वकीलों को किस की पैरवी करनी चाहिए अथवा किसकी नहीं, यह भला यदि शहर कांग्रेस अध्यक्ष तय करेगा तो कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। और चूंकि टंडन बार के अध्यक्ष हैं, इस कारण उन्हें तुरंत प्रतिक्रिया देनी पड़ी। उनके लिये यह जरूरी इस कारण भी हो गया कि वे स्वयं कांग्रेस के एक जिम्मेदारी नेता भी हैं। अगर चुप रहते तो उन पर पक्षपात का आरोप लगता। वैसे भी वकालत ऐसा पेशा है, जिसमें पार्टीबाजी नहीं होती। ऐसे अनेक मामले मिल जाएंगे, जिसमें एक पार्टी से जुड़े वकील ने दूसरी पार्टी के मुवक्किल की पैरवी की होगी। ऐसे मामले भी हैं, जिनमें किसी पार्टी से जुड़े किसी प्रकरण में पीडि़त ने दूसरी पार्टी से जुड़े वकील से इसलिए संपर्क साधा होगा कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का लाभ मिलेगा, मगर वकील ने पैरवी करने से इंकार कर दिया होगा। सीधी सी बात है, यह वकील की मर्जी है कि वह किस की पैरवी करे और किसी की नहीं। इस सिलसिले में एक पुराना किस्सा याद आता है। बताया जाता है कि कांग्रेस के पूर्व विधायक डा. राजकुमार जयपाल पर जब स्वामी लोढ़ा बलात्कार कांड की पैरवी के लिए चंद पत्रकारों ने स्वाती को भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत के पास भेजा तो उन्होंने पैरवी करने से इंकार कर दिया। वे चाहते तो मौके का फायदा उठा सकते थे, मगर उन्हें यह शायद ठीक नहीं लगा। यह किस्सा तब बहुत चर्चित हुआ था। किस्सा अक्षरश: सही है या नहीं, मगर इसकी चर्चा उन दिनों खूब थी।
यानि कि पार्टी अलग है और वकालत का पेशा अलग। अगर रलावता की मान ली जाए तो कई वकीलों को मुवक्किलों से हाथ धोना पड़ेगा। माना कि विचारधारा से जुड़े वकील विधि सलाहकार जैसे पदों पर काबिज होने के लिए पार्टी का ही सहारा लेते हैं क्योंकि अमूमन ऐसी नियुक्तियां पार्टी के आधार पर ही होती देखी गई हैं। मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि उसके एवज में वह पार्टी से जुड़े मामलों की फोकट में पैरवी करें। घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या? रहा उल्लेखित बम कांड का तो ये भाजपा व संघ से जुड़े नेताओं की मर्जी है कि वे क्या करते हैं, वह फार्मूला कांग्रेस पर थोड़े ही लागू हो जाता है। ऐसा तो है नहीं कि बम कांड में पार्टी स्तर पर कोई प्रस्ताव पारित हुआ अथवा भाजपा की ऐसी कोई नीति है। वह तो पैरवी करने वालों की मर्जी है। हो सकता है वे इस मामले की पैरवी फ्री में इसलिए कर रहे हों ताकि बाद में उसका कोई राजनीतिक लाभ मिल जाए।
बहरहाल, ऐसा लगता है कि रलावता की जुबान फिसल गई। पार्टी प्रेम के अतिरेक में ऐसा कह गए। ये उनके निजी विचार ही थे, पार्टी संविधान में तो ऐसा कहीं नहीं लिखा है। मगर चूंकि वे शहर अध्यक्ष के जिम्मेदार पद पर हैं, इस कारण उनकी निजी राय भी फरमान जैसी लगी। जाहिर सी बात है कि वकील समुदाय को रलावता की राय नागवार गुजरी होगी।
ताजा स्थिति ये कि टंडन ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर रलावता पर सात दिन में कार्यवाही करने और ऐसा नहीं होने पर कांग्रेस कार्यालय पर एक दिन का उपवास रखकर रलावता को सदबुद्धि देने की प्रार्थना करने की बात कह रखी है।
मामले से जरा हट कर देखें तो राजनीतिक रूप में टंडन के इस कदम को पार्टी के विपरीत माना जा सकता है, मगर टंडन किसी की परवाह करते हैं। इससे पहले भी वे उर्स के दौरान इंतजामात के लिए प्रशासन से टकराव ले चुके हैं, जिसे कि पार्टी व सरकार के विपरीत माना जा गया था।
अपुन को तो यही समझ में आता है कि टंडन साहब को चर्चाओं में रहने में महारत हासिल है। कदाचित उनकी नजर आगामी विधानसभा चुनाव पर हो। वे पहले भी दावेदार के रूप में गिने जाते रहे हैं। वो तो उनका जातीय जनाधार नहीं है, वरना उनमें एक एमएलए बनने के लिए जरूरी एक भी गुण गैर मौजूद नहीं है।
चलते-चलते एक पुछल्ला झेलिए। हाल की गुरु पूर्णिमा के मौके पर टंडन ने अपने कुछ पे्रमियों को जो शुभकामना के जो एसएमएस भेजे, उनमें आखिर में लिखा था कि आप मेरे गुरू हो, मेरा चरण स्पर्श स्वीकार करें। पाने वाले तो चकित रह गए। अपुन को जब पता लगा तो यही समझ में आया कि शायद टंडन साहब को लोकप्रिय सांसद रहे प्रो. रासासिंह रावत का गुर दिमाग में बैठ गया है, जिसे कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने पर आजमा सकते हैं। यह कहने की जरूरत नहीं है कि रावत साहब जब प्रचार पर निकलते हैं तो दरवाजा खटखटाते ही सबसे पहले दरवाजा खोलने वाले को धोक देते हैं, फिर वह चाहे उनका शिष्य ही क्यों न रहा हो।


-तेजवानी गिरधर
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tejwanig@gmail.com

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

बारूद के मुहाने पर बैठा है हमारा अजमेर?

भले ही अपने आंचल में दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज और तीर्थराज पुष्कर को समेटे अजमेर को सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता हो, मगर हकीकत ये है कि यह आज बारूद के ढ़ेर पर बैठा है। दरगाह इलाके और पुष्कर में अंडरवल्र्ड की बढ़ती गतिविधियों के चलते यहां किसी भी वक्त बड़ा आतंकी वारदात हो सकती है। इसी प्रकार किशनगढ़ की मार्बल मंडी में देशभर के लोगों की आवाजाही पर खुफिया नजर न रही तो भी किसी दिन कोई आतंकी घुसपैठ कर दहशत को अंजाम दे सकता है। संभव है सुकून से जी रहे अजमेर जिले के लोगों को ये पंक्तियां अतिश्योक्तिपूर्ण लगें, मगर सच्चाई यही है कि दरगाह में हुई बम विस्फोट की घटना के बाद हाल ही में मिले 14 जिंदा हैंड ग्रेनेड इशारा करते हैं कि अजमेर बारूद के मुहाने पर बैठा है। आनासागर झील की चौपाटी के नजदीक एस्केप चैनल की सफाई के दौरान बरामद हुए बम, एक खुखरी और चाकू ने शांत नजर आने वाला अजमेर को यकायक किसी बड़ी आशंका की आगोश में ले लिया है। आयुध विशेषज्ञों का मानना है कि ये हथगोले 300 मीटर तक मार कर सकते थे और 150 मीटर के दायरे में भारी तबाही मचा सकते थे। चौंकाने वाला तथ्य ये है इन बमों को एक सप्ताह के भीतर ही रखा गया था। नगर निगम प्रशासन ने करीब एक सप्ताह पूर्व ही एस्केप चैनल की जब सफाई करवाई थी तो उस समय कुछ नहीं मिला था। यानि की इन बमों के पीछे कोई ताजा साजिश जुड़ी हुई है।
हालांकि त्वरित कार्यवाही करते हुए इन्हें शहर से दूर सुनसान इलाके में नष्ट कर दिया गया, मगर इस सनसनीखेज घटना के साथ अनके सवाल मुंह बाये खड़े हैं। मसलन ये हथगोले कहीं शहर में आतंक मचाने के इरादे से तो नहीं लाए गए थे। बम यहां कैसे पहुंचे? इसके पीछे किसका हाथ है? कहीं यह किसी आतंकी संगठन की ओर से या इशारे पर की गई हरकत तो नहीं है? यहां उल्लेखनीय है कि शहर में जिंदा हथगोला मिलने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व वर्ष 2009 में सितंबर के अंतिम सप्ताह में हाथीखेड़ा गांव के पहाड़ी क्षेत्र में भी 4 जिंदा हैंड ग्रेनेड मिले थे। लोहाखान क्षेत्र में एक खंडहर से मशीनगन की बुलेट भी बरामद हो चुकी हैं।
यूं तो मादक पदार्थों का ट्रांजिट सेंटर बने दरगाह इलाके व पुष्कर में अंडरवल्र्ड के लोगों की आवाजाही की वजह से इस सरजमीं के नीचे सुलग रही आग का इशारा समय-समय पर मिलता रहा है, मगर दरगाह में बम फटने के बाद तो यह साबित ही हो गया कि आतंकवाद के राक्षस ने यहां भी दस्तक दे दी है। अफसोसनाक बात ये है कि लंबा समय गुजर जाने के बाद भी साजिश पर से पर्दा नहीं उठ पाया है। इसी प्रकार मादक पदार्थों व हथियारों की तस्करी के मामले तो अनेक बार पकड़े गए, लेकिन आज तक प्रशासन व सरकार ने कोई ऐसी ठोस कार्ययोजना नहीं बनाई है, ताकि यहां अंडरवल्र्ड की गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।
जहां तक अंडरवल्र्ड की गतिविधियों का सवाल है, अनेक बार यह प्रमाणित हो चुका है कि अजमेर मादक पदार्थों की तस्करी कर ट्रांजिट सेंटर बन चुका है। जोधपुर के सरदारपुरा इलाके में एक साइबर कैफे से पकड़ा गया आईएसआई एजेंट ऋषि महेन्द्र बिना पासपोर्ट व वीजा के बांग्लादेश सीमा से भारत में घुसा और अजमेर के दरगाह इलाके में रहने लगा। बाद में पता लगा कि उसे आईएसआई ने भारतीय सेना के पूना से लेकर पश्चिमी सीमा पर स्थित ठिकानों का पता लगाने के लिए भेजा था। वह यहां लंगरखाना गली में होटलों में नौकरी करता रहा। वह कुछ वक्त जयपुर के रामगंज इलाके में रह चुका था।
इसी प्रकार निकटवर्ती किशनगढ़ की मार्बलमंडी में हिजबुल मुजाहिद्दीन का खुंखार आतंकवादी शब्बीर हथियारों सहित पकड़ा गया तो पुलिस और खुफिया तंत्र सकते में आ गया था। तब जा कर इस बात का खुलासा हुआ कि दरगाह इलाके की ही तरह किशनगढ़ की मार्बलमंडी में भी देशभर से लोगों की आवाजाही के कारण संदिग्ध लोग आसानी से घुसपैठ कर जाते हैं। इसी प्रकार दरगाह इलाके में पाक जासूस मुनीर अहमद और सलीम काफी दिन तक रह कर अपनी गतिविधियां संचालित कीं, लेकिन खुफिया तंत्र तो भनक तक नहीं लगी। शब्बीर की निशानदेही पर हैदराबाद में पकड़े गए मुजीब अहमद के तार आईएसआई से जुड़े होने के पुख्ता प्रमाण मिले।
खुफिया पुलिस बीच-बीच में आसानी से आ-जा रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ कर भले ही अपनी पीठ थपथपाती रही है, मगर वह इसके लायक नहीं, यह तब साबित हो गया, जब मुंबई बम ब्लास्ट का मास्टर माइंड हेडली पुष्कर हो कर चला गया। बाद में जब खुद हेडली ने खुलासा किया कि वह पुष्कर भी गया था, तब जा कर खुफिया पुलिस ने छानबीन शुरू की। शर्मनाक बात तो ये रही कि विदेशियों से भराया जाने वाला फार्म तक गायब हो गया। यह वही हेडली है कि जिसके बारे में खुलासा हुआ है कि वह पुणे में हुए हमले से पहले वहां की रेकी कर चुका है। उसी ने पुष्कर में यहूदियों के धर्म स्थल बेद खबाद की रेकी थी। जैसे ही पुणे में उसके रेकी करने की जानकारी मिली, स्थानीय पुलिस तंत्र के तो होश ही उड़ गए। आपदा प्रबंधन दल ने बेद खबाद का दौरा कर यह साबित कर दिया है कि यहां भी किसी भी वक्त आतंकी राक्षस दरवाजा खटखटा सकता है। कुल मिला कर अजमेर आज बारूद के ढ़ेर पर बैठा है और हमारा प्रशासन नीरो की तरह चैन की बंसी बजा रहा है।


-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

न्यास सचिव पुष्पा सत्यानी ने अब जा कर दिखाई सख्ती

पुष्पा सत्यानी
अव्वल तो अजमेर यूआईटी में लग कैसे गई नैंसी जैन?
अजमेर नगर सुधार न्यास में सहायक नगर नियोजक भीम सिंह के साथ अनुबंध के आधार पर उनकी सहायक के रूप में अनुबंध पर लगी नैंसी जैन विवादों में आ गई हैं। भीम सिंह को तो उनके वर्तमान पद से हटाया ही गया है और नैंसी जैन को भी यहां से रुखसत करने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि यह सब न्यास के अंदर चल रही गुटबाजी का ही परिणाम है, मगर इस बहाने न्यास सचिव पुष्पा सत्यानी ने पहली बार अपनी सख्ती दिखाई है।
ज्ञातव्य है कि नगरीय विकास विभाग ने करीब 8 माह पहले न्यास में नैंसी जैन को अनुबंध पर रखा था, लेकिन मीडिया में अब जा कर चर्चा हो रही है कि सहायक नगर नियोजक भीम सिंह केवल प्रभावशाली लोगों की फाइलों को ही निबटाने में व्यस्त रहते हैं और उनकी सहायक नैंसी जैन अनुबंध पर होने के बावजूद फाइलों पर हस्ताक्षर कर रही हैं। इसके अलावा सभी मुख्य फाइलें भी उसके पास से होकर जाती हैं। न्यास के बाबुओं द्वारा जांच करने के बाद नैंसी ही फाइलों को चैक करती रही हैं।
इतना ही नहीं अब जा कर न्यास अधिकारियों को होश आया है कि नैंसी के एक रिश्तेदार न्यास के आर्किटेक्ट हैं, जो कि शहर के जाने-माने व प्रतिष्ठित आर्किटेक्ट हैं। नैंसी जैन लोगों से उनके माध्यम से नक्शा आदि कार्य बनाने की वकालत करती थीं। यहां तक कि अब जा कर सामने आ रहा है कि नैंसी के एक रिश्तेदार के न्यास भवन से सटे एक मकान का करीब डेढ़ साल पहले आवासीय नक्शा स्वीकृत हुआ था। नैंसी के न्यास कार्यालय में लगने के बाद संशोधित नक्शा लगाया गया था। हालांकि कुछ कारणों से वह स्वीकृत नहीं हो पाया। यूं भी क्षेत्राधिकार से बाहर होने की वजह से न्यास को नक्शा स्वीकृत करने का अधिकार ही नहीं था। जानकारी के अनुसार वर्तमान में वहां पर व्यावसायिक निर्माण चल रहा है।
कुल मिला कर समझा जा सकता है नैंसी जैन न्यास में अनुबंध पर होने के बावजूद कैसी भूमिका अदा करती रही हैं। इस प्रकरण में बड़ा सवाल ये है कि न्यास के ही जाने-माने आर्किटेक्ट की निकट संबंधी होने के बाद भी वे अजमेर न्यास में कैसे लग गई? जाहिर है यह सब नगरीय विकास विभाग में सैटिंग कर योजनाबद्ध रूप से हुआ होगा। ऐसा नहीं है कि जब नैंसी यहां लगीं तब किसी को पता ही नहीं था कि वे कौन हैं? आम जनता को पता न भी हो, मगर कम से कम अधिकारी व कर्मचारी तो अच्छी तरह से जानते थे। मगर कोई कुछ नहीं बोला क्योंकि वह ऊपर की पहुंच से यहां लगी थीं। अब जब शिकायतों की तादात काफी अधिक हो गई तब जा कर न्यास सचिव पुष्पा सत्यानी ने कार्यवाही की है। इसके तहत अनियमितता बरतने को लेकर सहायक नगर नियोजक भीम सिंह को तुरंत उनके पद से हटा दिया है। साथ ही सहायक नगर नियोजक के सहायक के रूप में अनुबंध पर लगी नैंसी जैन को भी न्यास से रवाना करने का विचार है। श्रीमती सत्यानी अब कह रही हैं कि वे भीम सिंह से भी जवाब तलब करेंगी कि अनुबंध पर लगी नैंसी जैन को सभी फाइलों की जांच करने और हस्ताक्षर करने तक की छूट कैसे दी गई।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com