शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

भारत माता पूजन व काव्य गोश्ठी संपन्न


संस्कार भारती अजयमेरू पंचषील नगर सैक्टर विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में गणतन्त्र दिवस के अवसर पर भारत माता पूजन तथा काव्य गोश्ठी का आयोजन सैक्टर स्थित चाणकय विहार सामुदायिक भवन में सम्पन्न हुआ। प्रातःकाल समिति के वयोवृद्ध निवासी विलसन डेविड द्वारा ध्वाजारोहरण किया गया तथा राश्ट्रगान का गायन पंचषील नगर के निवासीयों द्वारा सामूहिक रूप से किया गया तत्पष्चात् भारत माता का पूजन विकास समिति के अध्यक्ष श्री ज्ञानचन्द पंवार संस्कार भारती के कार्यकारी अध्यक्ष श्री अरूणकान्त षर्मा के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ प्रारम्भ हुआ। उपस्थित कालोनीवासीयों के द्वारा भारत माता के चित्र के समक्ष पुश्प अर्पित कर भारत माता की अर्चना की गई। इसके बाद डा.नवलकिषोर भाभड़ा की अध्यक्षता में काव्य गोश्ठी आरंभ हुई। काव्य गोश्ठी में श्री गजेन्द्रकुमार सरगरा ने मेर प्यारे वतन, मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान गीत प्रस्तुत कर वातावरण को देषभक्ति से ओतप्रोत किया तो संतोश टेवाणी ने अपनी रचना वह देष -देष क्या है, जिसमें लेते हो जन्म षहीद नहीं प्रस्तुत कर देषभक्ति के वातावरण को उंचाईयां प्रदान की. उमेष चौरसिया ने महंगाई पर व्यंग्य करते हुए आदमी बोना है और भाव बढ़ते जा रहे हैं तथा भ्रश्टाचार पर व्यंग्य करते हुए भ्रश्ट अफसर मदतस्त राजनेता धर्मान्ध पण्डितों के कांधों पर लदा यह भारत कितनी प्रगति करेगा प्रस्तुत कर उपस्थित श्रोताओं को भारत के विकास और भ्रश्टाचार को मिटाने पर सोचने के लिए विवष किया। काव्य गोश्ठी को अरूण कुमार सक्सैना के मां को मां का दर्जा देना ही होगा प्रस्तुत कर भावों विभोर कर दिया तो डा. सत्यनारायण षर्मा की रचना मां करते सब गुणगान, मां करते सब सम्मान के द्वारा श्रोताओं को गाय, मां और भारत मां की वन्दना करने के लिए सोचने हेतु विवष किया। सिंधी हिन्दी की वरिश्ठ रचनाकार डा. कमला गोकलाणी ने सिंधी में झुके जंहि धरतीअ ते आकास चूमे थे चरण संदसि सागर मुकदस मंदिर घर रचना प्रस्तुत कर तालियां बटोरी तो पुणे के वरिश्ठ कवि डा. गोवर्धन षर्मा घायल ने हर हिन्दवासी कोे इकरार बस यही करना है, इस देष की खातिर जीना और इस देष की खातिर मरना है, प्रस्तुति पर उपस्थित श्रोता झूम उठे। हरीष गोयल ने लाल चौक पर झण्डा फहराने के विशय को षब्द देते हुए हम देख रहे हैं बेबस वे फहराते हैं देषद्राही झंडा लाल चौक पर पढकर आज के समय पर करारा व्यंगय किया. गोश्ठी के अन्त में कालेज षिक्षा के सेवानिवष्त्त आयुक्त डा. नवल किषोर भाभड़ा ने गजल गलत किया जो किया एतबार मौसम का के साथ साथ मां भारती के वंदना करते हुए हमको अपने सपनों से भी प्यारा है, रंगबिरंगा हिन्दुस्तान हमारा है, कार्यक्रम को पूर्णता के षिखर तक पहुंचाया कार्यक्रम का संचालन संस्कार भारती चितौड़ प्रान्त महामंत्री सुरेष बबलाणी ने किया। विकास समिति पदाधिकारीयों एस.पी.माथुर,एम.एस.चौहान, दिनेष गुप्ता, विश्णुसिंह राठौड़, सुरेष गोयल, विष्वजीत माथुर ने आगंतुक अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किए।

स्वतंत्रता सेनानियों से ऐसी तो उम्मीद नहीं थी

गणतंत्र दिवस पर पटेल मैदान में आयोजित जिला स्तरीय समारोह में स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान किए जाने के दौरान कतिपय स्वतंत्रता सेनानियों ने पर्यटन मंत्री श्रीमती बीना काक के सामने जिस प्रकार शॉल की क्वालिटी और उससे सर्दी नहीं रुकने को लेकर शिकायत की, उससे समारोह की गरिमा पर तो आंच आई ही, खुद स्वतंत्रता सेनानियों की महान मर्यादा भी भंग हुई। हालांकि स्वतंत्रता सेनानी आजाद भारत में खुली सांस ले रहे हम सब लोगों के लिए परम आदरणीय हैं। उनका अगर दिल दुखा है तो उसमें हम भी शरीक हैं, मगर एक अदद भौतिक वस्तु शॉल को लेकर ऐतराज करने से उनकी अपेक्षाकृत कुछ निम्न स्तरीय सोच ही उजागर हुई है, जो जिला प्रशासन को जलील करने की कोशिश मात्र ही कही जा सकती है।
कैसी विडंबना है कि आजादी के आंदोलन में देश की खातिर जिन महान लोगों ने घर-परिवार की खुशी का बलिदान कर दिया, वे सम्मान के लिए प्रतीकात्मक रूप में दी गई शॉल की क्वालिटी और उसकी कीमत पर आ कर अटक गए। सम्मान सम्मान ही होता है, उसकी कोई कीमत नहीं होती। या उसे किसी कीमती वस्तु से नहीं आंका जाता। महत्व भावना का है। रहा सवाल हमारी भावना का तो यह स्पष्ट है कि वे हमारे लिए अति सम्माननीय हैं और इसी खातिर जिला प्रशासन ने उनका सम्मान करवाने के लिए पर्यटन मंत्री के हाथों शॉल भेंट करवाई। उस भावना को उन्हें समझना चाहिए था। इतना तो तय है कि कम से कम दुर्भावनावश घटिया शॉल भेंट करने की तो जिला प्रशासन की सोच नहीं थी। फिर यदि शिकायत थी भी तो उसे बाद में कभी दर्ज करवा सकते थे। और कुछ नहीं तो कम से कम मौका तो देखना चाहिए था। गणतंत्र दिवस जैसे मर्यादित समारोह के हर्षोल्लासपूर्ण रंग में भंग डालने से पहले कम से कम एक बार मन ही मन पुनर्विचार तो करना ही चाहिए था।
असल में स्वाधीनता सेनानियों के बलिदान की तो कोई कीमत ही नहीं है। वे जब आंदोलन में शरीक हो रहे थे, तब उन्हें पता थोड़े था कि देश आजाद हो ही जाएगा और आजाद देश में उन्हें सम्मान के साथ देखा जाएगा। इसे इस रूप में भी कहा जा सकता है कि वे सम्मान पाने की खातिर थोड़े ही आंदोलन में शामिल हुए थे। जान हथेली पर रख कर आंदोलन में शरीक होने वालों को तो यह तक पता नहीं था कि वे जिंदा भी रहेंगे या शहीद हो जाएंगे। इसी से साबित होता है कि उनकी भावना और समर्पण कितना उच्च कोटि का था। वहां मौजूद एक स्वतंत्रता सेनानी शोभाराम गहरवार का यह कहना नि:संदेह उचित है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों पर खेल कर देश को आजादी दिलवाई। उनका यह कर्ज सरकार सोने से तोल कर भी नहीं चुका सकती। ऐसी उच्च कोटि की भावना से लबरेज महानुभावों को अदद शॉल की क्वालिटी पर ऐतराज दर्ज करवाना शोभनीय तो नहीं रहा।