सोमवार, 13 दिसंबर 2010

दो राजपूत ही चला रहे हैं नगर निगम

राजपूत राजा अजयराज द्वारा स्थापित और अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अजयमेरु नगरी के नगर निगम को वर्तमान में दो राजपूत नेता चला रहे हैं। डिप्टी मेयर तो राजपूत नेता अजीत सिंह राठौड़ हैं ही, मेयर पद की चाबी भी राजपूत नेता के ही पास है। मेयर पद पर बैठे भले ही कमल बाकोलिया हों, मगर उन्हें गुरुज्ञान देने वाले तो राजपूत नेता रलावता महेन्द्र सिंह ही हैं। ये वही मेहन्द्र सिंह रलावता हैं, जिन्होंने हाजी कयूम खान और बाबूलाल सिंगारियां के पहली बार विधायक चुने जाने पर उन्हें अंगूली पकड़ कर विधानसभा परिसर के रास्तों से अवगत कराया था और आज बाकोलिया को राजनीति के गुर सिखा रहे हैं। खान व सिंगारियां तो फिर भी राजनीतिक यात्रा करके विधायक बने थे, इस कारण उन्हें राजनीति की समझ थी, मगर बाकोलिया तो कोरे कागज ही हैं। अजमेर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और पांच बार नगर पालिका के पार्षद रहे स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया की पारिवारिक पृष्ठभूमि और परिवर्तन की लहर पर सवार हो कर वे मेयर तो बन गए हैं, मगर राजनीतिक चतुराइयां समझने में उन्हें अभी वक्त लगेगा। ऐसे में भला रलावता से अच्छा गुरू कौन होगा। वैसे भी रलावता खुद तो कुछ बन नहीं पाते, या फिर उनके किस्मत में बनना नहीं लिखा है, मगर किसी को बनवाने में तो माहिर हैं ही। कभी-कभी ऐसा होता है। कोई आदमी किंग मेकर तो होता है, मगर खुद किंग नहीं बन पाता। बहरहाल, बात चल रही थी बाकोलिया की। वे बंद कमरे में तो रलावता से ज्ञान लेते ही हैं, सार्वजनिक रूप से भी उन्हें साथ ही रखते हैं। हाल ही जब जादूगर आनंद ने उन्हें शो की शोभा बढ़ाने का आग्रह किया तो साथ में उनके गुरू रलावता को भी निमंत्रण देना पड़ा। गुरू-चेले ने साथ ही जादू का आनंद लिया। खैर, रलावता तो दिखाने के दांत हैं, बाकोलिया के खाने के दांत भी हैं। वे केवल खाने के ही काम आते हैं, दिखाने के नहीं क्योंकि वे भाजपा से जुड़े हुए हैं। बाकोलिया की जीत में उनका बड़ा सहयोग रहा है। अब भी उनकी मंत्रणा काम आती है। संयोग से वे भी राजपूत हंै। यानि कि निगम को दो नहीं, तीन राजपूत चला रहे हैं। राजपूत राजाओं की इस नगरी को राजपूत चलाएं, इससे सुखद बात क्या हो सकती है, बशर्ते वे इसे फिर पुराने गौरव तक ले जाएं।

पुलिस यकायक हो गई मुस्तैद

एक ओर जहां पूरा शहर कड़ाके की ठंड झेल रहा है, वहीं अब तक ठंडी से पड़ी पुलिस यकायक गर्म हो गई है। शहरभर के अतिरिक्त शहर से बाहर जा रहे मार्गों पर पुलिस की चौकसी बढ़ गई है। थानों के आगे बेरिकेड लगा कर वाहनों की जांच को सख्त कर दिया गया है। शहरभर ही होटलों को तो खंगाला ही जा रहा है, यातायात पुलिस भी अलर्ट हो गई है और उसने वाहनों की धरपकड़ तेज कर दी है। पायरेटेड फिल्मों का जखीरा बरामद होना भी उसी पुलिस सक्रियता का नतीजा है, वरना पिछले लंबे समय यह धंधा धड़ल्ले से चला रहा है और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी थी।
हालांकि बताया यही जा रहा है कि हाल ही बनारस में गंगा आरती के दौरान पुलिस को विशेष रूप से सक्रिय किया गया है, मगर असल बात ये है कि नए-नए आए पुलिस कप्तान बिपिन कुमार पांडे ने पूर्व कप्तान हरि प्रसाद शर्मा की बिछाई पूरी जाजम को झाडऩे के मूड में हैं। सब को पता है कि पांडे बिहार केडर के हैं और जिस राज्य में बाहुबलियों को बोलबाला हो, उस मिट्टी का पुलिस अफसर कितना कडक़ होगा, अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। जैसे ही पांडे आए हैं उन्होंने सारे अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों की खिंचाई करना शुरू कर दी है। एक वजह है फस्र्ट इम्प्रेशन इस दी लास्ट इम्पेशन। वे जानते हैं कि जब पूरे देश में आतंकवाद का साया है, मोहर्रम के दौरान थोड़ी भी गड़बड़ी हुई तो शुरुआत ही खराब हो जाएगी। दूसरा ये कि शर्मा जी उनको पुराना बकाया काफी टास्क दे गए हैं। यंू तो फेहरिश्त काफी लंबी है, मगर सबसे ज्यादा चैलेंज का काम हत्याकांडों का पर्दाफाश करना। इन सब को पार पाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि उन्हें पुराने ढर्रे को तोडऩा ही होगा। उसी ढर्रे की वजह से ही तो जंग लगी हुई थी। सब को पता है कि जब भी कोई नया पुलिस अधीक्षक आता है, पुरानी सारी सैटिंगें खत्म हो जाती हैं। कांस्टेबल से लेकर पुलिस कप्तान से जुड़ी पुरानी सारी कडिय़ों टूट जाती है। टूटती क्या हैं, जानबूझ कर तोड़ दी जाती हैं। पुराने मुखबिरों व पुराने बिचौलियों की नए जगह पाते हैं। थानेदार भले ही वे ही रहें, मगर विश्वस्थों की जगह बदल जाती है। इसके अतिरिक्त नए कप्तान के सामने नंबर बढ़ाने का दबाव भी रहता है, इस कारण सारे एसआई व एएसआई अलर्ट हो गए हैं। जो पुराने एसपी के सामने जगह नहीं बना पाए थे, वे पांडेजी को अपनी परफोरमेंस दिखाना चाहते हैं। सबसे ज्यादा हैडएक है क्लॉक टावर पुलिस थाने को, क्यों कि सबसे बड़ा टारगेट उसे ही पूरा करना होता है। सावधानी भी पूरी बरतनी पड़ती है, क्यों कि यह थाना हार्ट ऑफ दि सिटी है। न केवल सारे प्रशासन की नजर इस पर रहती है, अपितु नेताओं का दखल भी ज्यादा होता है। एक तरह से यहां काम करना तलवार की धार पर चलने के समान होता है। आपको याद होगा कि किसी जमाने में यहां के थानाधिकारी हरसहाय मीणा का कितना खौफ था। गुंडो की हालत तो पतली थी ही, व्यापारी तक घबराते थे। जोश में होश न रखने के कारण एक छात्र नेता की थाने में मौत की कालिख पुतवा गए थे। उसके बाद आए थानेदार जरा संभल कर ही चलते हैं।
कुल मिला कर इन दिनों पूरा महकमा जोश से जबरेज है और पेशवर अपराधी चौकन्ने हो गए हैं। उम्मीद है कि बिहारी बाबू, सॉरी बिहारी अफसर आम जनता को कुछ तो राहत प्रदान करेंगे।