बुधवार, 12 अप्रैल 2017

अपने ही सिंधी वोट बैंक के प्रति भाजपा लापरवाह

तीन साल बाद भी नहीं बना राजस्थान सिंधी अकादमी का बोर्ड

अपने जिस वोट बैंक के दम पर भाजपा प्रदेश की अनेक सीटों पर काबिज है, उसकी उसे कितनी खैर खबर है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि मौजूदा सरकार के गठन को तीन साल से भी ज्यादा हो जाने के बाद भी उसकी अकादमी का बोर्ड अब तक गठित नहीं कर पाई है। हालत ये है कि सरकार की इस लापरवाही को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबद्ध संस्था को सरकार से मांग करनी पड़ रही है।
ज्ञातव्य है कि अधिसंख्य सिंधियों का रुझान भाजपा की ओर ही रहा है। यही वजह है कि भाजपा उन्हें अपना वोट बैंक मानती है। उसी के अनुरूप विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण बैठाती है। उसे गुमान है कि कुछ भी हो जाए मगर सिंधी वोट कभी इधर से उधर नहीं होंगे। इसकी बड़ी वजह ये है कि संघ ने भी पूरी तरह से सिंधी समुदाय को लामबंद कर रखा है। ऐसे में वह इस वोट बैंक के प्रति लापरवाह हो गई है। मौजूदा सरकार को गठित हुए तीन साल से भी अधिक का समय हो गया है, मगर अब तक राजस्थान सिंधी अकादमी के बोर्ड का गठन नहीं किया है। हालांकि अकादमी का सामान्य सरकारी कामकाज तो जारी है, मगर इसके माध्यम से सिंधी भाषा, संस्कृति आदि के संरक्षण के लिए किए जाने वाले काम ठप पड़े हैं। इस सिलसिले में सिंधी समाज के प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से आग्रह कर चुके हैं, मगर उन पर कोई गौर नहीं किया गया है। विधानसभा में भाजपा के बैनर पर जीते स्वायत्त शासन मंत्री श्रीचंद कृपलानी, शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व विधायक ज्ञानदेव आहूजा भी सरकार पर दबाव बनाने में नाकामयाब रहे हैं। ऐसे में संघ की ही एक शाखा भारतीय सिंधु सभा की प्रदेश कार्यसमिति ने अपनी एक बैठक में पांच प्रस्ताव पारित कर सरकार के सम्मुख रखे हैं, जिनमें सिंधी अकादमी के गठन का मुद्दा प्रथम है। दूसरा मुद्दा अकादमी का बजट दो करोड़ रुपये वार्षिक तक करने का है। सिंधी समुदाय के प्रति यह संस्था कितनी सतत प्रयत्नशील है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संस्था की ओर से तैयार सिन्धी भाषा मान्यता के स्वर्ण जयंती वर्ष 2017-18 के पोस्टर व वार्षिक कार्यक्रमों के कैलेण्डर का विमोचन राज्यपाल कल्याण सिंह से करवाया गया। 10 अप्रैल 1967 को सिन्धी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करते हुए मान्यता मिलने के 50 वर्ष पूरे होने पर 10 अप्रेेल 2017 से 10 अप्रेल 2018 तक सिन्धी भाषा की मान्यता का स्वर्ण जयंती वर्ष मनाया जा रहा है। इस दौरान संगोष्ठियां, 150 बाल संस्कार शिविर, सिन्धु ज्ञान परीक्षाएं, सिन्धी भाषा की सात संभागीय रथयात्राओं सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। संस्था अपने स्तर पर इन कार्यक्रमों को आयोजित करवाएगी, मगर उसे मलाल है कि सिंधी अकादमी के माध्यम से होने वाले काम बोर्ड का गठन न पाने व कम बजट के कारण रुके हुए हैं। अब देखना ये है कि जिस भाजपा की वर्तमान में सरकार है, वह अपनी मातृ संस्था संघ की शाखा की मांग पूरी करती है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

हिंदी पत्रकारिता के युग पुरुष का देहावसान

देश में हिंदी पत्रकारिता के युग पुरुष श्री रमेशचंद्र अग्रवाल का बुधवार को देहावसान हो गया। असल में यह सिर्फ उनकी देह का अवसान है, जबकि वे आज भी देशभर में सबसे बड़े नेटवर्क के साथ गांव-गांव ढ़ाणी-ढ़ाणी में आम पाठक के बीच जिंदा हैं।
उन्हें हिंदी पत्रकारिता का युग पुरुष कहना इस कारण सटीक है क्योंकि उनकी दूरदृष्टि व पक्का इरादे की वजह से ही आज हिंदी पत्रकारिता में युगांतरकारी परिवर्तन आया है। न केवल समाचार पत्र में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने की शुरुआत करने का श्रेय उनके खाते में है, अपितु पत्रकारिता को केरियर की शक्ल प्रदान करना भी उनकी ही देन है। पत्रकारिता को मिशन से निकाल कर दुनिया के साथ कदमताल करते हुए प्रोफेशनल टच देना भी उनकी सोच का परिणाम है। मगर साथ ही सामाजिक सरोकारों को मिशन की भांति अपना कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि अखबार सिर्फ सूचना के आदान-प्रदान का जरिया नहीं, अपितु समाजोत्थान का भी माध्यम है। अपनी सोच को जिस प्रकार वृहद स्तर पर उन्होंने विस्तार दिया, उसी का परिणाम है कि आज दैनिक भास्कर दुनिया के श्रेष्ठ समाचार पत्रों में किए जा रहे प्रयोगों को अपनाता है और तकरीबन हर दो साल में उसके कलेवर में परिवर्तन देखा जा सकता है। पत्रकारिता में परंपरागत शैली का परित्याग कर इसे नए आयाम दिए हैं, उसका तो कोई सानी ही नहीं है।
दैनिक भास्कर के राजस्थान में पदार्पण के वक्त किसी ने भी नहीं सोचा कि यह समाचार पत्र जल्द ही न केवल पूरे राज्य पर छा जाएगा, अपितु एक के बाद एक अन्य गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी पांव पसार लेगा। जयपुर के बाद जब अजमेर संस्करण का आरंभ करने श्री रमेश चंद अग्रवाल यहां आए तो मुझे भी इससे जुडऩे का अवसर मिला। तब हिंदी व अंग्रेजी के सिद्धहस्त पत्रकार प्रदीप पंडित को इस संस्करण को दिशा देने का दायित्व दिया गया। उनके साथ भोपाल से जो टीम आई, उसे देख कर तो मैं चकित रह गया। मात्र बीस-पच्चीस साल के युवा पत्रकारिता की हर विधा में पारंगत थे। तब पहली बार महसूस हुआ कि राजस्थान में पत्रकारिता की स्कूलिंग कितनी कमजोर है। बहरहाल, चंद माह बाद ही दैनिक नवज्योति से डॉ. रमेश अग्रवाल को बुलवा कर संपादन का दायित्व सौंपा गया। उन्हीं के नेतृत्व में मैंने सिटी डेस्क इंचार्ज व चीफ रिपोर्टर का दायित्व निर्वहन किया। वे तकरीबन पांच साल यहां रहे। इसके बाद उनका जयपुर तबादला हो गया। उनके बाद राजस्थान पत्रिका के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार श्री जगदीश शर्मा व अजमेर के सपूत मूर्धन्य पत्रकार श्री अनिल लोढ़ा के साथ काम करने सौभाग्य हासिल हुआ। आठ साल तक अजमेर संस्करण में सेवाएं देने के बाद जब मेरा तबादला जयपुर कर दिया गया तो होम सिकनेस की वजह से मैने इस्तीफा दे दिया। हालांकि यह सही है कि मेरी मजबूत स्कूलिंग वरिष्ठ पत्रकार श्री सतीश शर्मा की देखरेख में हुई और पत्रकारिता में खुल कर बल्ला चलाने का मौका दैनिक न्याय में श्री राजहंस शर्मा के आशीर्वाद से मिला, मगर पत्रकारिता के नए आयामों को छूने का सारा श्रेय दैनिक भास्कर को है। यही वह मंच रहा, जिसने मुझे पहचान प्रदान की। दैनिक भास्कर में काम करने का वह काल मेरे जीवन का स्वर्णिम काल रहा।
आज जबकि दैनिक भास्कर नामक वट वृक्ष के शीर्ष पुरुष श्री रमेशचंद्र अग्रवाल हमारे बीच नहीं हैं, लगता है कि उनकी क्षतिपूर्ति कभी नहीं हो पाएगी। उनके नेतृत्व में चल रहे पत्रकारिता के इस जंगी जहाज का कभी मैं भी एक कलपुर्जा था, यह कहते हुए मुझे गर्व है। मैं दैनिक भास्कर के प्रबंधन व साथी पत्रकारों से मिले स्नेह को कभी नहीं भुला पाउंगा।
अंत में दैनिक भास्कर के पुरोधा को मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
-तेजवानी गिरधर
7742067000