शनिवार, 23 अप्रैल 2011

नेताओं ! अजमेर की हालत को मत सुधारने देना

यह अजमेर शहर का दुर्भाग्य ही है कि जब भी प्रशासन अजमेर शहर की बिगड़ती यातायात व्यवस्था को सुधारने के उपाय शुरू करता है, अतिक्रमण हटाता है, शहर वासियों के दम पर नेतागिरी करने वाले लोग राजनीति शुरू कर देते हैं। शहर के हित में प्रशासन को साथ देना तो दूर, उलटे उसमें रोड़े अटकाना शुरू कर देते हैं।
हाल ही संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा और जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल के प्रयासों से टे्रफिक मैनेजमेंट कमेटी की अनुशंसा पर यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए जवाहर रंगमंच के बाहर बनी गुमटियों को दस साल ही लीज समाप्त होने के बाद हटाया, शहर के नेता यकायक जाग गए। जहां कुछ कांग्रेसी पार्षदों ने वोटों की राजनीति की खातिर गरीबों का रोजगार छीनने का मुद्दा बनाते हुए जेसीबी मशीन के आगे तांडव नृत्य कर बाधा डालने की कोशिश की, वहीं भाजपा दूसरे दिन जागी और कांग्रेसी पार्षदों पर घडिय़ाली आंसू बहाने का आरोप लगाते हुए प्रशासन को निरंकुश करार दे दिया। एक-दूसरे पर बेसिर पैर के आरोप लगाते हुए कांग्रेसियों ने यह कहा कि प्रशासन भाजपा नेताओं की शह पर ऐसी कार्यवाही कर राज्य की गहलोत सरकार को बदनाम कर रहा है, तो भाजपा कहती है कि गुमटियां तोडऩे की भूमिका निगम ने ही अदा की है और कुछ कांग्रेसी पार्षद केवल घडिय़ाली आंसू बहा रहे हैं। कांग्रेस की हालत तो ये है कि उसके पार्षद न तो मेयर के नियंत्रण में और न ही कांग्रेस संगठन की उन पर लगाम है। वे जब चाहें, अपने स्तर पर अपने हिसाब से शहर के विकास में टांग अड़ाने को आगे आ जाते हैं।
गुमटियां तोडऩे पर इस प्रकार उद्वेलित हो कर नेताओं ने यह साबित करने की कोशिश की कि प्रशासन तो जन-विरोधी है, जबकि वे स्वयं गरीबों के सच्चे हितैषी। जबकि सच्चाई ये है कि ऐसा करके वे अजमेर के विकास में बाधा डाल रहे हैं। चंद गुमटी धारियों के हितों की खातिर पूरे अजमेर शहर के हितों पर कुठाराघात करना चाहते हैं। ये ही नेता यातायात बाधित होने पर प्रशासन को कोसते हंै कि वह कोई उपाय नहीं करता और जैसे ही प्रशासन हरकत में आता है तो उसका विरोध शुरू कर देते हैं। हकीकत तो ये बताई जा रही है कि जो गुमटियां तोड़ी गई हैं, उनमें धंधा करने वाले कोई और हैं, जबकि मूल आंवटी कोई और। जब ये गुमटियां आवंटित हुईं, तब कई लोगों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर आवंटन करवा लिया, जबकि कई ने आवंटन करवाने के बाद उन्हें किराये पर चला दिया। चर्चा तो ये भी है कि कुछेक गुमटियां विरोध करने वाले नेताओं के हितों की पूर्ति कर रही थीं। सच्चाई क्या है यह तो जांच करने से ही पता लगेगा, मगर प्रशासन के काम में जिस प्रकार बाधा डाली गई, वह वाकई शर्मनाक थी। विरोध करने वालों को इतनी भी शर्म नहीं कि अगर वे इस प्रकार करेंगे तो प्रशासनिक अधिकारी शहर के विकास में रुचि लेना बंद कर देंगे और केवल नौकरी करने पर उतर आएंगे। अफसोस तब और ज्यादा होता है, जब शहर के हितों की लंबी-चौड़ी बातें करने वाले सामाजिक संगठन और स्वयंसेवी संस्थाएं भी ऐसे वक्त में चुप रह जाती हैं और प्रशासन व नेताओं की बीच हो रही खींचतान को तमाशबीन की तरह से देखती रहती हैं। अफसोस कि अजमेर के नेताओं की राजनीति इसी प्रकार जारी रही और जनता सोयी रही तो अजमेर का यूं ही बंटाधार होता रहेगा।

कायम रखनी होगी तीर्थराज की पवित्रता

विश्व प्रसिद्ध तीर्थराज पुष्कर के रखरखाव और विकास पर यद्यपि सरकार अपनी ओर से पूरा ध्यान दे रही है, इसके बावजूद यहां अनेकानेक समस्याएं हैं, जिसके कारण यहां दूर-दराज से आने वाले तीर्थ यात्रियों को तो दिक्कत होती ही है, इसकी छवि भी खराब होती है। विशेष रूप से इसकी पवित्रता का खंडित होना सर्वाधिक चिंता का विषय है।
यह सही है कि पर्यटन महकमे की ओर किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के कारण यहां विदेशी पर्यटक भी खूब आकर्षित हुए हैं और सरकार की आमदनी बढ़ी है, मगर विदेशी पर्यटकों की वजह से यहां की पवित्रता पर भी संकट आया है। असल में पुष्कर की पवित्रता उसके देहाती स्वरूप में है, मगर यहां आ कर विदेशी पर्यटकों ने हमारी संस्कृति पर आक्रमण किया है। होना तो यह चाहिए कि विदेशी पर्यटकों को यहां आने से पहले अपने पहनावे पर ध्यान देने के निर्देश जारी किए जाने चाहिए। जैसे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में जाने से पहले सिर ढ़कने और जूते उतारने के नियम हैं, वैसे ही पुष्कर में भ्रमण के भी अपने कायदे होने चाहिए। यद्यपि इसके लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया सकता, मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि पर्यटकों को सख्त हिदायत हो कि वे अद्र्ध नग्न अवस्था में पुष्कर की गलियों या घाटों पर नहीं घूम सकते। होटल के अंदर कमरे में वे भले ही चाहे जैसे रहें, मगर सार्वजनिक रूप से अंग प्रदर्शन नहीं करने देना चाहिए। इसके विपरीत हालत ये है कि अंग प्रदर्शन तो दूर विदेशी युगल सार्वजनिक स्थानों पर आलिंगन और चुंबन करने से नहीं चूकते, जो कि हमारी संस्कृति के सर्वथा विपरीत है। कई बार तो वे ऐसी मुद्रा में होते हैं कि देखने वाले को ही शर्म आ जाए। यह ठीक है कि उनके देश में वे जैसे भी रहते हों, उसमें हमें कोई एतराज नहीं, मगर जब वे हमारे देश में आते हंै तो कम से कम यहां मर्यादाओं का तो ख्याल रखें। विशेष रूप तीर्थ स्थल पर तो गरिमा में रह ही सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के बेहूदा कपड़ों में घूमने से यहां आने वाले देशी तीर्थ यात्रियों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ता है। वे जिस मकसद से तीर्थ यात्रा को आए हैं और जो आध्यात्मिक भावना उनके मन में है, वह खंडित होती है। जिस स्थान पर आ कर मनुष्य को अपनी काम-वासना का परित्याग करना चाहिए, यदि उसी स्थान पर विदेशी पर्यटकों की हरकतें देख कर तीर्थ यात्रा का मन विचलित होता है तो यह बेहद आपत्तिजनक और शर्मनाक है। विदेशी पर्यटकों की हालत तो ये है कि वे जानबूझ कर अद्र्ध नग्न अवस्था में निकलते हैं, ताकि स्थानीय लोग उनकी ओर आकर्षित हों। जब स्थानीय लोग उन्हें घूर-घूर कर देखते हंै, तो उन्हें बड़ा रस आता है। जाहिर तौर पर जब दर्शक को ऐसे अश्लील दृश्य आसानी से सुलभ हो तो वे भला क्यों मौका गंवाना चाहेंगे। स्थिति तब और विकट हो जाती है जब कोई तीर्थ यात्री अपने परिवार के साथ आता है। आंख मूंद लेने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं रह जाता।
यह भी एक कड़वा सत्य है कि विदेशी पर्यटकों की वजह से ही पुष्कर मादक पदार्थों की मंडी बन गया है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। इस इलाके एड्स के मामले भी इसी वजह से सामने आते रहे हैं।
यह सही है कि तीर्थ पुरोहितों ने पुष्कर की पवित्रता को लेकर अनेक बार आंदोलन किए हैं, कहीं न कहीं वे भी अपनी आमदनी के कारण आंदोलनों को प्रभावी नहीं बना पाए हैं। तीर्थ पुरोहित पुष्कर में प्रभावी भूमिका में हैं। वे चाहें तो सरकार पर दबाव बना कर यहां का माहौल सुधार सकते हैं। यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुकूल होगा, अपितु तीर्थराज के प्रति लोगों की अगाध आस्था का संरक्षण करने के लिए भी जरूरी है।