शनिवार, 1 जनवरी 2011

हिसाब बराबर कर लिया कांग्रेसियों ने

घोषणा के बावजूद संयुक्त गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की ओर से रेलवे ट्रेक को जाम करने का निर्णय टाल कर कांग्रेसियों ने कर्नल बैंसला के इशारे पर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले ओमप्रकाश भडाणा से हिसाब बराबर कर दिया है। बुधवार को संयुक्त गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष व श्रीनगर के कांग्रेसी प्रधान रामनारायण के साथ अन्य कांग्रेसी सदस्यों एडवोकेट हरिसिंह, नौरत गुर्जर, सौरभ बजाड़ आदि ने आंदोलन में अब तक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे भडाणा को नजरअंदाज कर जिला प्रशासन के साथ वार्ता की और ट्रेक जाम करने का निर्णय स्थगति कर दिया। कांग्रेसियों ने इतनी चालाकी की कि भडाणा को वार्ता के बारे में जानकारी ही नहीं दी।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस विचारधारा से जुड़े गुर्जर नेता शुरू से आंदोलन के साथ खुल कर सामने नहीं आ रहे थे। वस्तुस्थिति तो ये है कि सक्रिय ही नहीं थे। अजमेर में चूंकि कांग्रेस विचारधारा के गुर्जरों का प्रभाव अधिक है और वे लगातार स्थानीय सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के संपर्क में हैं, आंदोलन जोर ही नहीं पकड़ रहा था। जब समाज का दबाव पड़ा तो आखिरकार कांग्रेसियों को भी सामने आना पड़ा, मगर वे सचिन के दबाव और पार्टी के अनुशासन के तहत शांतिपूर्वक और प्रतीकात्मक आंदोलन करने को राजी हो गए। इस लिहाज से इसे भडाणा की कामयाबी ही मानी गई, भले ही उन्हें नेतृत्व श्रीनगर के कांग्रेसी प्रधान रामनारायण गुर्जर को सौंपना पड़ा। भडाणा की दूसरी कामयाबी ये रही कि उन्होंने कांग्रेसियों को आगे कर व्यापारिक महासंघ के अध्यक्ष व कांग्रेसी पार्षद मोहन लाल शर्मा को बाजार बंद में समर्थन देने को मना लिया। लेकिन बंद वाले दिन भडाणा ने शांतिपूर्ण आंदोलन को रुख पलट कर कांग्रेसियों को झटका दे दिया। नयाबाजार में तो गुर्जर व व्यापारी आमने-सामने आ गए। ऐसे में कांग्रेसियों को नीचा देखना पड़ा। शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल को गांधीवादी तरीके से बंद करवाने का वादा भी झूठा पड़ गया। कांग्रेसी होने के नाते उन्हें सहयोग करने वाले मोहन लाल शर्मा भी भडक़े। वे तो भडक़े ही उनके अति उत्साही शागिर्द रमेश लालवानी उनसे भी एक कदम आगे निकल गए और देहली गेट इलाके की छोटी सी संस्था पूज्य सिंधी पंचायत के बैनर का इस्तेमाल कर व्यापारियों व आंदोलनकारियों के टकराव को गुर्जर-सिंधी टकराव की ओर मोडऩे की कोशिश की, जबकि सिंधियों को इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
बहरहाल, पूरे प्रकरण से यह साफ-साफ संदेश गया कि आंदोलन कांग्रेसियों के हाथ से निकल गया है। जाहिर तौर पर यह उन्हें नागवार गुजरा और उन्होंने अपनी ताकत फिर खींचना शुरू कर दिया। नतीजतन मांगलियवास में ब्यावर रोड जाम तो हटा ही, दूसरे दिन रेलवे ट्रेक जाम के लिए भी अपेक्षित भीड़ नहीं जुटाई जा सकी, इस कारण उसे स्थगित करने का निर्णय लेना पड़ा। इतना ही उन्होंने भडाणा से बदला चुकाने के लिए जिला प्रशासन के बुलावे पर वार्ता की और उसमें भडाणा को बुलाया ही नहीं। साथ ही 4 जनवरी तक आंदोलन को टाल और दिया। इसके लिए उन्होंने बैंसला की सरकार से होने जा रही वार्ता की आड़ ली।
कुल मिला कर कांग्रेसियों ने तेजी से आगे बढ़ रहे भडाणा को झटका दे दिया है, जो शुरू से बैंसला का ही राग अलाप रहे हैं। भडाणा भले ही यह कहें कि वे संयुक्त संघर्ष समिति के अस्तित्व को नकार रहे हैं, मगर सच यह है कि कांगे्रेसियों ने उनका अस्तित्व नकार दिया है। इस पूरे मामले में अजमेर बार के अध्यक्ष किशन गुर्जर की भूमिका दिलचस्प रही। पहले तो उन्होंने कांग्रेसियों को पीछे छोड़ते हुए मांगलियावास में जाम लगवा दिया और फिर दूसरे दिन प्रशासन से वार्ता के दौरान उनके साथ हो लिए।