बुधवार, 14 नवंबर 2012

श्राद्ध में शुरू हुई डीडी पुरम योजना का हो गया श्राद्ध


नगर सुधार न्यास, अजमेर की वर्षों पुरानी और महत्वाकांक्षी आवासीय योजना डीडी पुरम उतनी सफल नहीं होती दिख रही, जितनी कि उम्मीद की जा रही थी। हालांकि इसके अनेक कारण हैं, मगर धार्मिक विचार वालों का मानना है कि चूं कि यह श्राद्ध के दौरान शुरू की गई, इस कारण इसको ग्रहण लग गया है। बताया तो यहां तक जाता है कि योजना के फार्म बेचने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही न्यास के कुछ समझदार लोगों ने आशंका जाहिर की थी कि श्राद्ध पक्ष को टाल कर योजना की शुरुआत की जाए, क्योंकि कोई भी शुभ काम श्राद्ध में शुरू नहीं किया जाता, मगर तत्कालीन न्यास सचिव श्रीमती पुष्पा सत्यानी की जिद के चलते हुए उनकी राय को दरकिनार कर दिया गया।
हुआ ये कि फार्म छप कर आ गए थे। उस पर उनकी बिक्री सहित लॉटरी निकाले जाने का कार्यक्रम छपा हुआ था, जिसके तहत 2 अक्टूबर को उनकी बिक्री आरंभ होने की सूचना छपी थी। फार्म में सचिव के नाते श्रीमती सत्यानी का फोटो भी छपा था, मगर इस बीच उनके तबादला आदेश आ गए। ज्ञातव्य है कि 2 अक्टूबर को आश्विन शुक्ल द्वितीया तिथि थी और तृतीया का श्राद्ध था। किसी ने सुझाव दिया कि योजना की शुरुआत श्राद्ध के बाद हो। इसके लिए सिर्फ कवर पेज को बदलने की जरूरत होती। मगर इसके लिए श्रीमती सत्यानी राजी नहीं हुईं क्योंकि अंदर के पेज पर उनका फोटो छपा हुआ था। उन्होंने बहाना बनाया कि कवर पेज बदलने पर व्यर्थ का खर्चा आएगा। इस पर तर्क दिया गया कि मात्र 50 रुपए की लागत वाला फार्म वैसे ही 500 रुपए में बेचा जाना है, सो कवर पेज बदलने पर कोई ज्यादा लागत नहीं आएगी। मगर श्रीमती सत्यानी नहीं मानीं। आखिर योजना को श्राद्ध पक्ष में शुरू कर दिया गया। अब जब कि योजना के फार्म बड़ी तादात में बिकने के बाद भी जमा होने वाले फार्मों की संख्या काफी कम है, आशंका जताने वाले उलाहना दे रहे हैं कि उन्होंने तो पहले ही कहा था कि श्राद्ध पक्ष में योजना शुरू न की जाए।
वैसे योजना को अपेक्षित सफलता न मिलने की एक वजह ये भी है कि यह ब्यावर बाईपास पर जिस स्थान पर स्थित है, वहां की बाजार दरों व न्यास की दरों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है। अर्थात किसी की लॉटरी निकलती भी है तो उसे कुछ खास लाभ नहीं होगा। सबको पता है कि उसी इलाके में हाउसिंग बोर्ड की आवासीय योजना की भी दुर्गति हो चुकी है। ऐसे में इस योजना के विकसित होने की संभावना भी कम ही है। फिर भी शौक में लोगों ने जल्दबाजी में फार्म खरीद लिए, मगर जैसे ही उन्हें यह अंदेशा हुआ कि इस योजना में पैसे फंसाना बेकार है तो लोगों ने फार्म जमा नहीं करवाए। हालत ये हो गई कि कई लोग तो आवेदन पत्र ढ़ाई सौ रुपए में बेचने को तैयार थे, मगर कोई खरीददार नहीं था। वैसे कुछ जानकारों का मानना है कि योजना का अपेक्षित सफलता इस कारण भी नहीं मिली क्योंकि न्यास की प्रतिष्ठा में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है। उसकी वजह ये है कि न्यास ने पृथ्वीराज नगर जैसी महत्वाकांक्षी योजना को विकसित करने पर ही पूरा ध्यान नहीं दिया है। इसी प्रकार ज्वाला प्रसाद नगर योजना में 10-15 वर्ष बीत जाने के बाद भी नल, बिजली, पानी, व सड़क जैसी मूल-भूत सुविधाओं का अभाव है। ऐसे में भला लोग यह यकीन कैसे कर लें कि वह डीडी पुरम का ठीक से विकास करवाएगी।
कुल मिला कर न्यास को डीडी पुरम की लोकप्रियता की जितनी उम्मीद थी, वह खरी नहीं उतरी है। मगर उससे क्या, न्यास ने तो फार्मों की बिक्री से ही अच्छी खासी रकम इक_ा कर ली है।
-तेजवानी गिरधर