शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

कांग्रेस में बढ़ते जा रहे हैं दावेदार, वीरभान अजवानी का नाम भी चर्चा में

लैंड फोर लैंड मामले में फंसने के कारण नगर सुधार न्यास के सदर पद से इस्तीफा देने के बाद नरेन शहाणी का विधानसभा टिकट कटा हुआ मानने के साथ कोई सशक्त सिंधी दावेदार न होने के मद्देनजर एक के बाद एक नए दावेदार सामने आ रहे हैं। हालांकि इस प्रकार की कानाफूसियों को तवज्जो देना मुनासिब तो नहीं लगता, मगर चर्चाओं पर चुप्पी भी पत्रकारिता के सिद्धांत के विपरीत मानते हुए उनकी जानकारी देना जरूरी लगता है, ताकि सनद रहे। कानाफूसी है कि सिंधी दावेदारों की लंबी होती फेहरिश्त में अब जीआरपी में तैनात आईएएस अधिकारी वीरभान अजवानी का नाम भी शामिल हो गया है। बताया जाता है कि अजमेर के सासंद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट किसी उपयुक्त सिंधी दावेदार की तलाश में लगे हुए हैं, जो कि पढ़ा-लिखा होने के साथ नया चेहरा व साफ-सुथरी छवि का हो। हालांकि इसकी पुष्टि करना कठिन है, फिर भी चर्चा है कि पिछले दिनों पायलट ने उनका बायोडाटा मंगवाया था। मजे की बात ये है कि अजवानी के दावेदार होने की कानाफूसी कांग्रेस से ज्यादा भाजपा में है, क्योंकि भाजपा की दिलचस्पी इसमें ज्यादा है कि कांग्रेस की ओर से कौन मैदान में आता है। इस कानाफूसी में कितना दम है, यह तो आने वाले वक्त में ही पता लगेगा।

सिंधी वोटों के दम पर दावेदारी कर रहे हैं बाकोलिया

अजमेर दक्षिण विधानसभा सीट हालांकि अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है और अजमेर निगम के मेयर कमल बाकोलिया भी उसी नाते टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, मगर समझा जाता है कि उनकी नजर सिंधी वोटों पर भी है, जिनके दम पर वे मेयर का चुनाव जीत गए थे।
बताया जा रहा है कि बाकोलिया जहां विभिन्न समाजों के संगठनों से अपने पक्ष में सिफारिशी पत्र जुटा रहे हैं, वहीं सिंधी समाज की संस्थाओं से भी डिजायर मांग रहे हैं। ऐसा करके वे जताना चाहते हैं कि वे अपनी जाति के वोट तो हासिल करेंगे ही, सिंधियों के वोट भी हासिल करेंगे।
इस सिलसिले में आपको बता दें कि उन्हें मेयर का टिकट देने का आधार ही ये था कि वे अजमेर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और पांच बार नगर पालिका अजमेर के पार्षद रहे स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र हैं, जिन्होंने आजादी के बाद बजमेर में सिंध प्रांत से आए विस्थपितों को पुन: बसाने व मुआवजा दिलाने में महती भूमिका निभाई। वे मूलत: सिंध के रहने वाले थे और उन्हें सिंधी ही माना जाता था, अर्थात सिंधियों में घुले-मिले थे। कालांतर में उनके परिवार को अनुसूचित जाति में शामिल माना जाने लगा। आज भी कई पुराने सिंधी बाकोलिया को स्वर्गीय जटिया की वजह से सिंधी ही मानते हैं। मेयर के चुनाव में उन्होंने इस धारणा को भुनाया भी। उस चुनाव में बाकायदा इस मुद्दे पर परचे बाजी भी हुई थी। समझा जाता है कि वे मूलत: सिंध का होने के नाते विधानसभा चुनाव में टिकट हासिल कर वोट लेना चाहते हैं। एक अर्थ में देखा जाए तो वे ऐसे अकेले दावेदार हैं, जो अनुसूचित जाति से होते हुए भी सिंधी जनाधार रखते हैं। ज्ञातव्य है कि अजमेर दक्षिण में सिंधियों के तकरीबन तीस हजार वोट माने जाते हैं, जिनका लाभ पिछले चुनाव में सिंधी-गैर सिंधीवाद के चलते सिंधियों के कांग्रेस के खिलाफ चले जाने के कारण भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल को मिला था।
-तेजवानी गिरधर
7742067000