बुधवार, 8 मई 2013

वर्मा साहब, यह दुर्भाग्य तो वर्षों से कायम है


खबर है कि राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के 12वीं कॉमर्स के परिणाम में सरकारी स्कूलों के प्रदर्शन को बोर्ड अध्यक्ष डॉ. पी.एस. वर्मा ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। ज्ञातव्य है कि कॉमर्स की मेरिट में सरकारी स्कूलों की दो ही छात्राएं स्थान पा सकी हैं। ऐसे में डॉ. वर्मा ने कहा है कि प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या भी अधिक है और इन स्कूलों में फैकल्टी भी अच्छी हैं, इसके बावजूद मेरिट में आए 25 विद्यार्थियों में से केवल 2 ही छात्राएं सरकारी स्कूलों से आई हैं।
डॉ. वर्मा की बात सौ फीसदी सही है, मगर यह पहला मौका नहीं है कि मेरिट में सरकारी स्कूल फिसड्डी साबित हुए हैं। पिछले कई सालों से बोर्ड के परीक्षा परिणामों का यही हाल है, जिससे साबित होता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई पर कितना ध्यान दिया जाता है। सच तो ये है कि जो अभिभावक अपने बच्चों को ठीक से पढ़ाना चाहते हैं, वे उन्हें बनती कोशिश उन्हें प्राइवेट स्कूलों में ही दाखिला दिलाते हैं। सरकारी स्कूल में बच्चे का पढ़ाने को आजकल बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है। वे जानते हैं कि सरकारी स्कूलों का हाल बुरा है। इसी का परिणाम है कि प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना आजकल स्टेटस सिंबल बना हुआ है। संपन्न लोग तो अपने बच्चों को किसी भी सूरत में सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते। वे इसके लिए बच्चों को दूसरे शहर तक में पढ़ाने को भेज देते हैं। वे जानते हैं कि इससे उनके बच्चों की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। आम अभिभावकों की छोडिय़े, सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापक तक इसी कोशिश में रहते हैं कि अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाएं। अर्थात खुद सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को पता है कि वे खुद और उनके साथी अध्यापक कैसा पढ़ाते हैं और सरकारी स्कूलों का हाल क्या है। गांवों में तो और भी बुरा हाल है। जो अध्यापक शहर में रहते हैं, वे कोशिश करके आसपास के किसी गांव में ही तबादला करवाते हैं और रोजाना अप-डाउन करके नौकरी पकाते हैं। गांवों में अध्यापकों के गोत मारने के अनेक किस्से तो आपने सुने ही होंगे। ऐसे में बच्चों का पढ़ाई का क्या हाल होता है, इसकी आप सहज ही कल्पना कर सकते हैं। सच तो ये है कि सरकारी अध्यापक अपने परिवार को गांव में न रख कर इसी कारण शहर में रहते हैं ताकि उनके बच्चों की ठीक से पढ़ाई हो जाए। यानि कि उन्हें केवल अपने बच्चों का ही ख्याल है, ओरों के बच्चे जाएं भाड़ में।
अब चूंकि डॉ. वर्मा पहली बार बोर्ड अध्यक्ष बने हैं, इस कारण उन्हें अचम्भा हो रहा है, वरना यह दुर्भाग्य तो वर्षों से कायम है, जिस पर न तो कभी सरकार ने ध्यान दिया है और न ही शिक्षाविदों या शिक्षकों ने कोई कोशिश की है कि सरकारी स्कूलों में ठीक से पढ़ाई हो। कई सशक्त शिक्षक संगठन हैं, मगर उन्होंने भी कभी इस ओर कोई सकारात्मक पहल नहीं की है। वे भी तबादलों की राजनीति में उलझे रहते हैं। हर कोई अफसोस मात्र जाहिर करता है, करता कोई कुछ नहीं। अब देखें डॉ. वर्मा को बढ़ा अफसोस हुआ है, वे इस दिशा में क्या प्रयास करते हैं?
-तेजवानी गिरधर

भाजपा क्यों नहीं उठा रही पाक जायरीन का मुद्दा


पाकिस्तान में भारतीय नागरिक सरबजीत की हुई हत्या के विरोध और पाक जायरीन को जियारत की अनुमति न देने की मांग के सिलसिले में राष्ट्र रक्षा संकल्प समिति की ओर से चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान में भाजपा के जिम्मेदार नेता तो खुल कर भाग ले रहे हैं, मगर इस मुद्दे पर खुद भाजपा संगठन अग्रणी भूमिका नहीं निभा रहा, इसको लेकर लोगों के बीच खूब कानाफूसी हो रही है।
आपको याद होगा कि पाकिस्तानी जायरीन को अनुमति न देने का मुद्दा सबसे पहले कुछ संगठनों व भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने अपने स्तर पर उठाया था, मगर उसका कोई असर नहीं हुआ। इस पर बाद में इसे अभियान की शक्ल दी राष्ट्र रक्षा संकल्प समिति ने। मजे की बात ये है कि इसमें भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरण माहेश्वरी, प्रदेश मंत्री एवं विधायक अनिता भदेल और भाजयुमो नेता व पार्षद नीरज जैन आदि ने भी भाग लिया। अभियान को कितना जनसमर्थन मिल रहा है, इसका अंदाजा इसी बात ये लगाया जा सकता है कि मा.शि.बोर्ड कर्मचारी संघ के अध्यक्ष मोहन सिंह रावत व महामंत्री रणजीत सिंह समेत अन्य कर्मचारियों, राजस्थान सर्व ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष बलराम शर्मा, माहेश्वरी प्रगति संगठन के अध्यक्ष अजय ईनाणी और यहां तक कि स्कलों के छात्र-छात्राओं ने भी हिस्सा लिया और तकरीबन पचास हजार से भी ज्यादा लोगों के हस्ताक्षर हो चुके हैं। इससे भी बड़ी बात ये है कि कई मुस्लिमों व खादिमों ने भी इसे समर्थन दिया है। मगर आज तक भाजपा ने संगठन के तौर पर इस मुद्दे पर कोई सक्रिय भूमिका अदा नहीं की है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की संगठन के स्तर पर यह चुप्पी सवाल तो खड़े करती ही है। ऐसा प्रतीत होता है कि शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत चुक से गए हैं या फिर वे फिलहाल केवल सुराज संकल्प यात्रा में ही अपनी एनर्जी खर्च करना चाहते हैं, क्योंकि उसी में किया गया काम विधानसभा चुनाव में काम आएगा। सच जो कुछ भी हो, मगर उनकी निष्क्रियता पर कानाफूसियां तो होनी ही हैं।

अन्ना और केजरीवाल एक ही हैं?


प्रत्यक्षत: भले ही देश के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अलग-अलग हों, मगर स्थानीय स्तर पर दोनों के कार्यकर्ता एक ही हैं। आगामी 10 मई को अन्ना हजारे के अजमेर आगमन पर उनके स्वागत और आमसभा की व्यवस्था आम आदमी पार्टी की अजमेर प्रभारी श्रीमती कीर्ति पाठक के नेतृत्व में ही की जा रही है।
ज्ञातव्य है कि जनलोकपाल के एकजुट हो कर आंदोलन करने के बाद केजरीवाल और उनकी टीम ने अन्ना से अलग हो कर आम आदमी पार्टी का गठन किया और सक्रिय राजनीति में आ गए। अब तो आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारियां तक चल रही हैं। अन्ना हजारे ने केजरीवाल के अलग होने पर नए सिरे से टीम अन्ना का गठन किया, जिसमें पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह को प्रमुख रूप से शामिल किया गया। पूर्व आईपीएस किरण बेदी सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ता तो उनके साथ हैं ही। टीम अन्ना में हुई इस दोफाड़ से आंदोलन कमजोर पडऩे की आशंका में कई कार्यकर्ताओं को निराशा भी हुई। कुछ कार्यकर्ता तो सीधे ही आम आदमी पार्टी में शमिल हो गए, जबकि कुछ ने अन्ना हजारे के साथ रहना ही पसंद किया और फिलहाल  वे घर बैठ गए। जहां तक श्रीमती कीर्ति पाठक का सवाल है, यह सबको पता है कि अजमेर में अन्ना आंदोलन को चलाने का श्रेय उनको व उनकी टीम को ही जाता है, मगर आम आदमी पार्टी का गठन हुआ तो वे उसमें शामिल हो गईं। आज वे अजमेर की प्रभारी हैं, मगर उन्होंने अपने आपको अन्ना हजारे के आंदोलन से अलग नहीं किया। ऐसे में जाहिर है कि जब अन्ना हजारे का अजमेर का कार्यक्रम बना तो सीधे उनसे ही संपर्क किया गया और उन्होंने सहर्ष सारी व्यवस्था करने का जिम्मेदारी ले ली। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में उनके प्रमुख सहयोगी दीपक गुप्ता, सुशील पाल, नील शर्मा, दिनेश गोयल आदि हाथ बंटा रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि आम आदमी पार्टी के ये सभी कार्यकर्ता अन्ना हजारे के कार्यक्रम को अंजाम देने के लिए  जनतंत्र मोर्चा के बैनर तले जुटे हुए हैं। यह जनतंत्र मोर्चा कब गठित हुआ, इसकी जानकारी तो नहीं है, मगर ताजा गतिविधि से यह स्पष्ट है कि कम से कम अजमेर में तो आम आदमी पार्टी और जनतंत्र मोर्चा एक ही हैं, उसके कार्यकर्ता भी समान हैं, बस बैनर अलग-अलग नजर आते हैं। लगता ये है कि आम आदमी पार्टी में गई श्रीमती पाठक अपने साथ पूरी टीम को एकजुट किए हुए हैं, इस कारण अन्ना हजारे को जनतंत्र मोर्चा के लिए अलग से कोई नेतृत्व करने वाला मिला ही नहीं। ऐसे में इस बात की सहज ही कल्पना की जा सकती है कि आम आदमी पार्टी की ओर से उन्हें अन्ना के कार्यक्रम को सफल बनाने की हरी झंडी दी गई होगी। बहरहाल, राष्ट्रीय स्तर पर भले ही अन्ना व केजरीवाल अलग-अलग हों, मगर अजमेर में एक ही नजर आते हैं। कदाचित और स्थानों पर भी कुछ ऐसा ही हो। इससे तनिक संदेह भी होता है कि कहीं वे किसी एजेंडे विशेष के लिए अलग-अलग होने का नाटक तो नहीं कर रहे। इस बारे में जब अन्ना कह ही चुके हैं कि वे भले ही अलग-अलग रास्ते पर हैं, मगर उनका उद्देश्य तो एक ही है। ऐसे में अगर दोनों के कार्यक्रमों को एक ही कार्यकर्ता अंजाम देते हैं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
खैर, अन्ना हजारे की सभा के लिए श्रीमती पाठक दिन-रात एक किए हुए हैं। ऐसे आयोजन में खर्च भी होता है, सो गैर राजनीतिक और उदारमना देशप्रेमियों से चंदा भी एकत्रित किया जा रहा है। आप समझ सकते हैं इस जमाने में बिना किसी लाभ के कौन चंदा देता है, हर कोई उसके एवज में कुछ न कुछ चाहता ही है, ऐसे में चंदा एकत्रित करना कितना कठिन काम होगा, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है, चूंकि फिलवक्त दोनों संगठनों के पास देने को कुछ नहीं है। वैसे, कार्यकर्ताओं में जैसा उत्साह है, उम्मीद की जा रही है कि अन्ना हजारे का आकर्षण और उनकी मेहनत से सभा सफल होगी।
ज्ञातव्य है कि अन्ना हजारे 10 मई को यहां आजाद पार्क में सभा को संबोधित करेंगे। उनके साथ पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह, वल्र्ड सूफी काउंसिल के चेयरमैन सूफी जिलानी और चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय भी होंगे। हजारे दोपहर 12 बजे अजमेर आएंगे। परबतपुरा बाइपास पर उनका स्वागत किया जाएगा। उसके बाद वाहन रैली के रूप में शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए ऋषि उद्यान पहुंचेंगे। इसके बाद हजारे पुष्कर जाएंगे। उसके बाद दरगाह जाकर जियारत करेंगे। इसके बाद शाम 6.30 बजे आजाद पार्क में सभा को संबोधित करेंगे।
-तेजवानी गिरधर