शुक्रवार, 5 मई 2017

हवाई अड्डे के नाम पर छिड़ी बहस ने कर दी गंदगी

जैसी कि आशंका थी वही हुआ। किशनगढ़ में स्थापित हवाई अड्डे के नाम को लेकर बहस ने गंदगी कर दी। राजस्थान पत्रिका ने तो स्वस्थ बहस के मकसद से नाम सुझाने का सर्वे आरंभ किया, मगर हुआ इसका उलटा। सोशल मीडिया पर यह बहस बाकायदा सांप्रदायिक रूप लेती दिखाई दे रही है। कितनी अफसोसनाक बात है कि तीर्थराज पुष्कर व ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को अपने आचंल में समेटे जो अजमेर नगरी दुनिया में सांपद्रायिक सौहाद्र्र की मिसाल के रूप में जानी जाती है, जो जिला पूरे उत्तर भारत में प्रथम संपूर्ण साक्षर जिला होने का गौरव हासिल कर चुका है, वहीं पर एक स्थान का अदद नाम रखने को लेकर खुली सांप्रदायिक प्रतिस्पद्र्धा हो रही है। इंटरनेट पर चल रही पोलिंग में कोई ख्वाजा गरीब नवाज के नाम पर तो कोई सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम पर वोट करने को कह रहा है। कोई तीर्थराज पुष्कर का नाम सुझा रहा है तो कोई सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के नाम पर नामकरण करने को कह रहा है। एक पोल में तो तेजाजी का नाम ही सबसे पहले रखा गया है। कहीं पृथ्वीराज चौहान नाम की पैरवी करने वाले मोहम्मद गौरी को याद कर रहे हैं तो कहीं महान सूफी संत ख्वाजा साहब को ही इस्लाम का प्रचारक बता कर विरोध हो रहा है। समझा जा सकता है कि पूरी बहस ने जातिवादी व सांप्रदायिक रूप ले लिया है। हालांकि जितने भी नाम सुझाए जा रहे हैं, वे किसी न किसी दृष्टि से अच्छे ही हैं, बुरा कोई नहीं, मगर नामकरण को लेकर जिस प्रकार की गंदी बहस हो रही है, वह अजमेर में अमन-चैन के लिए शुभ संकेत नहीं है।
हालांकि पोल किसी कानूनी मान्यता के दायरे में नहीं आते और उनका निष्कर्ष किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं करता। पोल की वेबसाइट पर ही लिखा है कि इसमें त्रुटियां संभव हैं और यह सिर्फ मनोरंजन के लिए है, मगर इससे अगर सामाजिक विद्वेष पैदा होता है तो वह चिंताजनक है और उस पर प्रशासन को नजर रखनी ही चाहिए।
पत्रिका की ओर से किया जा रहा सर्वे एक अर्थ में अच्छा था, मगर स्वस्थ मानसिकता वालों के लिए, मगर उस सर्वे की पहल के कारण सोशल मीडिया पर जो गंदी बहस छिड़ी, उस लिहाज अच्छा नहीं रहा। मगर उससे एक फायदा ये हुआ कि इसी बहाने समाज के भीतर लोग किस प्रकार बंटे हुए हैं, वह सामने आ गया। इस बहस ने हमें अपना आइना दिखा दिया है कि हमारे पर चेहरे पर कितने दाग हैं। यदि बिना बहस के सरकार के स्तर पर किसी महापुरुष के नाम पर नामकरण कर दिया जाता तो उसे कदाचित सभी स्वीकार कर भी लेते, मगर अब गंदी बहस होने के बाद सरकार के लिए भी दुविधा हो गई होगी। यह एक स्वाभाविक सी बात है कि हर जगह राजनीति होती है। सत्ता बदलने पर पहले से किए गए नामकरण तक बदल दिए जाते हैं। इसको लेकर कई बार विवाद भी होता है। ऐसे विवादों से बचने का एक ही रास्ता है कि केवल उन्हीं नामों पर विचार हो, जो कि सर्वमान्य हो सकते हों। अगर स्थान के नाम को लेकर भी विवाद होता है तो स्थान के ऐसे नाम  पर सहमति बननी चाहिए, जिस पर किसी को काई ऐतराज होने की गुंजाइश न रहे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000