गुरुवार, 16 मई 2013

आखिर शक की सुई घूम कर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पर आ कर टिकी


आखिर शक की सुई घूम कर राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ. सुभाष गर्ग पर आ कर टिक ही गई। अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र कुमार तंवर के आय से अधिक की संपत्ति के मामले में एसीबी के शिकंजे में फंसने के साथ ही पूर्व अध्यक्ष डॉ. गर्ग पर भी शक की सुई घूमती नजर आ रही है। अब तो गबन मामले में एसीबी की नई एफआईआर में गर्ग का ही नाम आ गया है। बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र तंवर ने खुलासा किया है कि वे गर्ग के कहने पर ही बोर्ड का पैसा इधर-उधर करते थे। हालांकि गर्ग कह रहे हैं कि तंवर झूठ बोल रहा है, मगर इतना कह देने मात्र से शक की सुई हट नहीं जाएगी।
अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि कयास ये लगाया जा रहा है कि तंवर के पास मिली करोड़ों की संपत्ति का कहीं न कहीं डॉ. गर्ग से भी कनैक्शन है। राजस्थान शिक्षक संघ (राधाकृष्णन) के प्रदेश अध्यक्ष विजय सोनी ने तो बाकायदा बयान जारी कर डॉ. गर्ग के कार्यकाल की जांच कराने की मांग की थी और आरोप लगाया था कि डॉ. गर्ग की मिलीभगत से ही भ्रष्टाचार किया गया है। उन्होंने कहा कि वित्तीय सलाहकार के कृपा पात्रों को करोड़ों रुपए के भुगतान उनके कार्यकाल में ही किए गए। इसी प्रकार भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी ने भी निर्माण कार्यों व ठेकों में गड़बड़ी सहित आरटेट परीक्षा 2011 के दौरान बोर्ड को मिली बेरोजगार युवकों की फीस का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए राज्य सरकार से डॉ. गर्ग के कार्यकाल की निष्पक्ष आयोग से जांच करवाने सहित उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी।
ज्ञातव्य है कि डॉ. गर्ग के कार्यकाल में ही तंवर का तबादला अन्यत्र हो गया था, लेकिन इस तबादले को रद्द करवा कर उन्हें यहीं पदस्थापित किया गया। गर्ग ने 31 मार्च 2011 को मुख्य सचिव सी के मैथ्यू को डीईओ लेटर लिखा था। इसमें तर्क दिया गया था कि तंवर के बिना बोर्ड का काम नहीं चलेगा। इसकी पुष्टि स्वयं गर्ग भी कर रहे हैं, बस फर्क इतना है कि वे अपने आपको पाक साफ बताते हुए कह रहे हैं कि तंवर की जगह लगाया गया व्यक्ति उपयुक्त नहीं था, इसलिए तंवर का तबादला कुछ समय रोकने के लिए मैंने मुख्य सचिव को पत्र लिखा था। भले ही गर्ग का तंवर की हेराफेरी से कोई संबंध न हो, मगर अकेला यही तथ्य उनके लिए दिक्कत पैदा कर रहा है। हो सकता है गर्ग जो कह रहे हैं, वही सच हो, मगर अब जब कि तंवर ने एसीबी की पूछताछ में खुलासा किया है कि गर्ग के जुबानी निर्देश पर उसने अजय जेडका की पिरामिड कंपनी और जेडका की बताई अन्य कंपनियों के नाम बोर्ड के खातों से चेक जारी किए थे, तो जांच की दिशा यह होगी कि क्या यह सही है। इसी से जुड़ा एक सवाल ये भी है कि तंवर बोर्ड के 54 करोड़ रु. की एफडीआर से संबंधित सभी खाते अपने घर से चलाता रहा और बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य अधिकारी अनजान कैसे बने रहे?  संभव है अब एसीबी इस सिलसिले में गर्ग से पूछताछ करे।
ज्ञातव्य है कि बोर्ड के इतिहास में पहली बार एक ही अध्यक्ष और एफए के कार्यकाल में रिकार्ड निर्माण कार्य हुए। बोर्ड में बीते तीन साल में 40 करोड़ रुपए से अधिक के निर्माण कार्य हुए हैं। इससे जुड़ा सवाल ये है कि जिस आरएसआरडीसी के काम को पूर्व वित्तीय सलाहकार ने घटिया करार दे दिया था, उसी से बोर्ड ने सभी निर्माण कार्य कराए।
ज्ञातव्य है कि तंवर के अजमेर के पंचशील स्थित बंगले से बोर्ड की 54 करोड़ 70 लाख रुपए की एफडीआर मिली है। बोर्ड के निकट स्थित आईसीआईसीआई बैंक के लॉकर से करीब 3.50 लाख रुपए के सोने के सिक्के और नकदी बरामद हुई। जांच में आरोपी की संपति का आंकड़ा करीब 11 करोड़ पहुंच चुका है।
-तेजवानी गिरधर