रविवार, 21 सितंबर 2014

केवल सरिता पर ठीकरा फोड़ कर बाकी सभी बरी हो गए

इसमें कोई दो राय नहीं कि नसीराबाद विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा हार की एक वजह पार्टी प्रत्याशी श्रीमती सरिता गैना की छवि भी मानी जाती है, मगर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की समीक्षा बैठक में सारा जोर इसी पर दिया गया, उससे तो यही लगा कि पार्टी हाईकमान सहित अजमेर के नेताओं ने सारा ठीकरा सरिता गैना पर फोड़ कर अपने आप को बड़ी सफाई से बचा लिया। जानकारी के अनुसार पार्टी प्रत्याशी, प्रभारी, सेक्टर प्रभारियों सहित अन्य नेताओं ने राजे को जो हार के कारण बताए, उसमें सारा जोर सरिता की छवि को ही दिया गया। उन पर जिला प्रमुख पद पर रहते हुए पैसे खाने के आरोप इस तरह लगाए, मानो भाजपा के अन्य नेता तो दूध के धुले हुए हैं।
एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी सामने आया कि जाट बाहुल्य इलाकों में भाजपा को भरपूर वोट नहीं मिल पाए। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या जाटों ने ही सरिता की छवि के आधार पर ही मतदान में उत्साह नहीं दिखाया। यह बात कुछ गले नहीं उतरी। साफ है कि जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट का सरिता गैना को अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाया, वरना क्या वजह रही कि जो जाट सांवरलाल के लिए बढ़-चढ़ कर वोट डालने निकले थे, वे सरिता के चुनाव में ठंडे पड़ गए। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सीट जाट ने यह सीट मुख्यमंत्री के कहने पर ही छोड़ कर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। ऐसे में स्वाभाविक रूप से इस पर दावा उनके पुत्र का बनता था, मगर चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परिवारवाद को बढ़ावा न देने की नीति का बहाना हो या फिर कोई ओर वजह, मगर इसमें गलती मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे का ही रहा कि वे जाट के बेटे के लिए ठीक से नहीं अड़ीं। दूसरा ये कि यदि आज यह बात उभर कर आ रही है कि सरिता की छवि ठीक नहीं थी तो जिले के नेता टिकट देने के पहले जोर देकर ये क्यों नहीं बोले की सरिता को टिकट देना ठीक नहीं होगा। यदि उन्हें टिकट मिलने के बाद चुनाव प्रचार के दौरान सरिता की छवि का पता लगा तो यह भी साफ हो जाता है कि उनकी पकड़ जिले पर है ही नहीं, इस कारण उचित फीडबैक नहीं दे पाए। यानि कि कहीं न कहीं देहात जिला भाजपा भी इसके लिए दोषी है। और सबसे बड़ी बात ये कि चलो यहां तो सरिता की छवि ने दिक्कत की, प्रदेश की दो और सीटों पर भाजपा की हार क्यों हुई? कोटा दक्षिण में मतातंर काफी कम कैसे हो गया? जाहिर तौर पर प्रमुख वजहों में ूमोदी लहर का नदारद होने के साथ ही प्रदेश की भाजपा सरकार की नीतियां भी रहीं, जिसकी वजह से जनता में भाजपा के प्रति मोह भंग हुआ।
बेशक सरिता की हार की एक वजह उनकी छवि रही होगी, मगर इतना तय है हार के लिए खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा, जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट व देहात जिला भाजपा अध्यक्ष प्रो. बी. पी. सारस्वत भी हैं। बावजूद इसके सभी ने मिल कर सारा ठीकरा सरिता पर फोड़ दिया। अफसोस कि इस मोर्चे पर सरिता भाजपा में अकेली पड़ गई।

बुधवार, 17 सितंबर 2014

सुशील कंवर पलाड़ा की बराबरी नहीं कर पाईं सरिता

केन्द्र व राज्य में प्रचंड बहुमत से बनी भाजपा सरकारें और राज्य की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की पूरी फौज के नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में लगने के कारण यही लग रहा था कि पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना जीत कर पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के बराबर आ जाएंगी, मगर बदकिस्मती से ऐसा हो नहीं पाया। उन्होंने एक बारगी यह तथ्य फिर साबित कर दिया कि जो भी एक बार जिला प्रमुख बन जाता है, उसका राजनीतिक कैरियर खत्म सा हो जाता है।
ज्ञातव्य है कि इससे पहले जिला प्रमुख हनुवंत सिंह रावत, सत्यकिशोर सक्सैना, पुखराज पहाडिय़ा, रामस्वरूप चौधरी की किस्मत पर बाद में लगभग फुल स्टॉप ही लग चुका है। रावत का तो निधन हो गया, जबकि सक्सैना अब केवल वकालत करते हैं। कांग्रेस तक में सक्रिय नहीं हैं। पहाडिय़ा की बात करें तो वे हालांकि अब भी संगठन के कामों में सक्रिय हैं, मगर एक बार भी विधानसभा का टिकट हासिल नहीं कर पाए हैं। पहले वे पुष्कर से टिकट मांगते रहे, बाद परिसीमन होने पर नसीराबाद में जोर लगाया, मगर हर बार कोई न कोई रोड़ा आ गया। चौधरी भी फिलहाल ठंडे बस्ते में हैं। इस लिहाज से सुशील कंवर पलाड़ा किस्मत की धनी नहीं। जिला प्रमुख रहने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में मसूदा से ऐन वक्त पर टिकट ले कर आईं और बहुकोणीय मुकाबले में जीत कर दिखाया। इसमें कोई दोराय नहीं कि इस जीत में उनकी किस्मत ने तो साथ दिया ही, उनकी जिला प्रमुख रहने के दौरान की गई सेवाओं का भी खासा प्रभाव था।

यानि कि रामचंद्र चौधरी भी हथेली नहीं लगा पाए

अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से जाति दुश्मनी के चलते नसीराबाद उपचुनाव में भाजपा का भरपूर साथ दिया, मगर वे भी हथेली नहीं लगा पाए, जबकि उनके पास तो इलाके की सारी दूध डेयरियां थीं और दूधियों पर उनका जबरदस्त प्रभाव माना जाता है। बताते हैं कि उन्होंने पूरी ईमानदारी से मेहनत कर धुंआधार प्रचार किया, चाहे निजी संतुष्टि के लिए ही सही, मगर सरिता को नहीं जितवा पाए। मीडिया में इस तरह की खबरें आ रही हैं कि उनका दावा सरिता के 15 हजार वोटों से जीत का था। अगर वे मेहनत नहीं करते तो सरिता की हार का आंकड़ा हजारों में होता। अगर यह बात सही मान ली जाए तो इससे यह अर्थ निकलता है कि जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट ने तो कुछ किया ही नहीं। जाट के लिए यह विडंबना ही है कि सरिता की हार का आंकड़ा सैंकड़ों में रहने का श्रेय चौधरी का दिया जा रहा है, जबकि यह वह सीट है, जिसे उन्होंने हजारों से वोटों से जीतने के बाद छोड़ा था। जो कुछ भी हो, चौधरी का श्रेय मिलना उनका मीडिया फ्रेंडली होना है। कम से कम इससे वसुंधरा के पास ये मैसेज जाएगा कि चौधरी ने तो खूब मेहनत की थी, जाट ने ही ठीक से काम नहीं किया। वैसे ये बात पक्की है कि इस हार की सीधी जिम्मेदारी जाट पर ही आयद होती है क्योंकि यह सीट उनकी थी, भले ही इसके लिए बाहर से आए मंत्रियों व विधायकों ने भी कमान संभाली हो।

अब मान रहे हैं कि सरिता गैना गलत कैंडिडेट थीं

नसीराबाद विधानसभा उप चुनाव में मतदान के दिन तक श्रीमती सरिता गैना की हजारों वोटों से जीत के दावे करने वाले भाजपाई ही अब हार के बाद दबे सुर में कहने लगे हैं कि वे गलत कैंडिडेट थीं। अगर इसी जगह जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट के बेटे को टिकट दिया जाता तो वे किसी भी सूरत में जीत कर आते।
असल में नसीराबाद के ग्रामीण इलाकों में चुनाव प्रचार करने गए शहरी नेताओं को तभी पता लग गया कि कि सरिता गैना की छवि उतनी ठीक नहीं है, जितनी नजर आ रही है। उनके प्रति जिला प्रमुख के कार्यकाल के दौरान की कुछ नाराजगियां लोगों में है। मगर अब क्या हो सकता था। उन्हें तो प्रचार करना था, तो करते रहे। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे हालांकि भरपूर ताकत लगा रखी थी, इस कारण उन्हें उम्मीद थी कि सरिता जीत जाएंगी, मगर मन ही मन धुकधुकी थी। अब जब कि वे हार गई हैं तो हर कोई एक दूसरे के कान में फुसफुसा रहा है कि वे गलत कैंडिडेट थीं। अगर  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के परिवारवाद को बढ़ावा न देने की नीति नहीं होती व प्रो. जाट के बेटे को टिकट दे दिया जाता तो वे येन-केन-प्रकारेण उसे जितवा कर ही आते। सरिता के लिए उन्होंने भले ही मेहनत की हो, मगर खुद का बेटा होता तो जाहिर तौर पर एडी चोटी का जोर लगा देते। हालांकि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि जाट ने मेहनत नहीं की, मगर परिणाम यही बता रहे हैं कि जरूर कहीं न कहीं लापरवाही या अनदेखी हुई है। हार के लिए जाट को जिम्मेदार मानने वाले तर्क देते हैं कि वे काहे को सरिता के लिए जी जान लगाते। यदि सरिता जीत जातीं तो यह सीट उनके बेटे के लिए भविष्य में खाली नहीं रहती। वैसे भी उनके साथ जितनी बड़ी चोट हुई है, वो तो उनका मन ही जानता होगा। वसुंधरा की जिद के कारण सांसद का चुनाव लड़ा, मगर केन्द्र में मंत्री नहीं बन पाए। चाहते थे कि कम से कम अपने बेटे को राजनीति में स्थापित कर दें, मगर वह भी नहीं हो पाया।
जहां तक खुद सरिता का सवाल है, हालांकि उन्होंने खुद कैंडिडेट होने के नाते पूरे दौरे किए, मगर उन्हें ज्यादा भरोसा इस बात का था कि चूंकि सरकार की पूरी ताकत लगी हुई है, इस कारण आसानी से जीत जाएंगी। बाकी उनके चेहरे से कहीं से नहीं लग रहा था कि वे एक योद्धा की तरह से मैदान में हैं। 

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

रामनारायण को मिला स्थानीयता व सहज सुलभता का फायदा

बेशक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की कड़ी मेहनत और लगातार मॉनिटरिंग की बदौलत कांग्रेस को नसीराबाद उप चुनाव में जीत हासिल हुई है, मगर यदि स्थानीय समीकरणों की बात करें तो कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर को उनके स्थानीय होने व सहज सुलभ व स्वच्छ छवि का होने का लाभ मिला है। दूसरी ओर पूरे चुनाव में कहीं पर भी ये नहीं लगा कि भाजपा की श्रीमती सरिता गैना चुनाव लड़ रही हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज में भी वह शिद्दत नहीं थी। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आदेश पर भाजपा की यह चुनाव लड़ रही थी। सरिता गैना के बारे एक आम राय यह नजर आई कि अगर वे जीत गईं तो उन्हें अजमेर कहां ढूंढऩे जाएंगे।
अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि रामनारायण गुर्जर को स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के उत्तराधिकार के साथ सहज-सरल स्वभाव का लाभ मिलेगा। उन्हें बाबा के साथ लंबे समय तक राजनीतिक यात्रा करने का अनुभव है। उन्हें नसीराबाद का बच्चा-बच्चा जानता है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के छह बार के विधायक काल के दौरान उन्होंने न जाने कितने लोगों के निजी काम किए। जाहिर तौर पर उनका नसीराबाद के स्थानीय लोगों से सीधा अटैचमेंट रहा है। इसका फायदा उन्हें मिलना ही था।
जहां तक अन्य स्थानीय समीकरणों का सवाल है, निर्दलीय प्रत्याशी कालूराम चौधरी के नाम वापस लेने पर सरिता गैना ने राहत की सांस ली। हालांकि भारतीय आम जन पार्टी के विजय सिंह रावत मैदान में डटे रहे, और उनके कुछ नुकसान पहुंचाने की आशंका थी, मगर  वे मात्र 792 मत ही हासिल कर पाए। जागो पार्टी के प्रत्याशी इदरीस मोहम्मद पठान के दुर्घटना में निधन होने के बाद कांग्रेस ने राहत महसूस की, मगर फिर भी उन्हें 1469 मत मिल गए। प्रमुख जातीय समीकरण की बात करें तो गुर्जर को अपनी जाति के अतिरिक्त मुस्लिम व अनूसूचित जाति का भरोसा था तो भाजपा प्रत्याशी सरिता गेना को जाटों के अतिरिक्त परंपरागत रूप से भाजपा के साथ रहे रावतों पर आसरा था। बताया यही जा रहा है कि गुर्जरों ने जितना लामबंद हो कर वोट डाला, उतना जोश जाटों व रावतों में नहीं देखा गया।
इस चुनाव में सचिन की मेहनत तो रंग लाई ही, कांग्रेसियों का उत्साह भी काम कर गया। वे उत्साहित इस वजह से थे कि लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस का मतांतर आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया था। हालांकि पूरे संसदीय क्षेत्र में जाट को 1 लाख 71 हजार 983 की लीड मिली, लेकिन नसीराबाद में लीड घट कर 10 हजार 999 मतों पर सिमट गई। प्रचंड मोदी लहर के बाद भी लीड कम होने को मुकाबला करने का आधार माना गया।  वे उत्साहित इस वजह से भी थे कि केन्द्र व राज्य की भाजपा सरकार का चंद माह का परफोरमेंस कुछ खास नहीं रहा, विशेष रूप से महंगाई पर काबू न कर पाने की वजह से आम आदमी की अच्छे दिन आने की उम्मीद पर पानी फिरा। इसके अतिरिक्त गुर्जरों में बाबा की इस सीट को फिर हथियाने का जोश रहा। इसी वजह से अपुन ने लिखा था कि उपचुनाव में लहर की तीव्रता बरकरार न रही तो कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला होगा। वही हुआ। हार और जीत का अंतर मात्र 386 रह गया।
कुल मिला कर बाबा की परंपरागत सीट पर उनके ही उत्तराधिकारी ने फिर से कब्जा कर लिया है।
एक नजर जरा, इतिहास पर भी डाल लें
अजमेर जिले की नसीराबाद विधानसभा सीट पर पूर्व में गुर्जर व रावतों का वर्चस्व रहा है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1980 से 2003 तक लगातार छह बार जीते। बाबा के सामने लगातार तीन बार रावत समाज के मदन सिंह रावत खड़े किए गए, मगर जीत उनकी किस्मत में थी ही नहीं, हालांकि मुकाबला हर बार कड़ा ही होता था। परिसीमन के तहत पुष्कर व भिनाय विधानसभा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को शामिल किए जाने के कारण यहां का जातीय समीकरण बदल गया। तकरीबन 25 हजार जाट मतदाताओं के मद्देनजर 2008 में पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट को उतारा गया, मगर वे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के राजनीतिक उत्तराधिकारी श्रीनगर पंचायत समिति के पूर्व प्रधान महेन्द्र सिंह गुर्जर से महज 71 वोटों से हार गए। इसके बाद दिसम्बर 13 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रो. जाट पर फिर दाव खेला, जो कि कामयाब हो गया। उन्होंने पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह गुर्जर को  28 हजार 900 मतों से पराजित किया। सांवर लाल को 84 हजार 953 मत मिले, जबकि महेन्द्र सिंह गुर्जर को 56 हजार 53 मत। हालांकि उसमें कांग्रेस विरोधी लहर की ही अहम भूमिका थी।
-तेजवानी गिरधर

नसीराबाद से रामनारायण नहीं, सचिन पायलट जीते

नसीराबाद विधानसभा उप चुनाव में यूं तो कांग्रेस के रामनारायण गुर्जर ने विजय दर्ज की है, मगर असल में यह जीत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की जीत है, क्योंकि न केवल उन्होंने इसे रामनारायण-सरिता गैना की बजाय घोषित रूप से सचिन-वसुंधरा की प्रतिष्ठा का चुनाव करार दिया था, अपितु अपनी पूरी ताकत भी झोंक दी थी। बेशक राज्य की चार सीटों पर हुए उप चुनाव में कांग्रेस को तीन सीट मिलना उनके लिए एक उपलब्धि है, मगर अपने ही संसदीय क्षेत्र की हारी हुई सीट को फिर हथियाने से उनकी प्रतिष्ठा स्थापित हो गई है।
असल में सचिन को अपने संसदीय क्षेत्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हुई हार का बदला लेने की जिद थी। वे चाहते थे कि अपने संसदीय क्षेत्र की गुर्जर बहुल इस सीट पर किसी भी स्थिति में जीत हासिल की जाए, ताकि उनका राजनीतिक कद स्थापित हो। इस परिणाम से लगभग हताशा में जी रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्राण वायु मिली है, क्योंकि सचिन अपने संसदीय क्षेत्र की सीट को भाजपा से छीनने में कामयाब हो गए, जिनके प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जमने में संशय व्यक्त किया जा रहा था। अब वे उत्साह के साथ कांगे्रेस को फिर जिंदा करने का साहस जुटा पाएंगे। कांग्रेस हाईकमान के सामने भी अब वे तन कर खड़े हो सकते हैं कि विपरीत हालात में भी उन्होंने कांग्रेस में प्राण फूंके हैं। इससे उन नेताओं के प्रयासों को भी झटका लगेगा, जो कि किसी भी तरह सचिन के पांव जमने नहीं देना चाहते थे। जो लोग ये मान रहे थे कि सचिन राजस्थान में नहीं चल पाएंगे और उन्हें निष्प्राण अध्यक्ष सा मान रहे थे, उस लिहाज से इस उप चुनाव ने सचिन की प्राण प्रतिष्ठा कर दी है।
हालांकि भाजपाई यह कह कर अपने आपको संतुष्ठ करने की कोशिश कर सकते हैं कि उनकी हार के मायने उनका जनाधार खिसकना नहीं है, क्योंकि हार-जीत का अंतर मामूली है, मगर सच ये है कि कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रो. सांवरलाल जाट की  लीड और पिछले लोकसभा चुनाव में प्रो. जाट को नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में मिली   लीड को कांग्रेस ने कवर किया है। वो भी तब, जबकि केन्द्र व राज्य में भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है और वसुंधरा ने एडी चोटी का जोर लगा दिया था। ऐसे में कांग्रेस की यह जीत काफी अहम मानी जाएगी।
हालांकि भाजपा को पूरा भरोसा था कि जीत उसकी ही होगी। उसकी वजह ये भी रही कि सचिन ने अपनी चुनावी सभाओं में जैसे ही यह कहना शुरू किया कि ये चुनाव रामनारायण गुर्जर व सरिता गैना के बीच नहीं, बल्कि स्वयं उनके और मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच है, वसुंधरा राजे के आदेश पर भाजपाइयों ने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना कर ताकत झोंक दी। जाहिर तौर पर इसके पीछे सत्ता से इनाम पाने की अभिलाषा भी रही। भाजपा के विधायक व नेता घर-घर ऐसे जा रहे थे, मानो पार्षद का चुनाव लड़ रहे हों। भाजपा को उम्मीद थी कि वह चूंकि पहले से ही अच्छी खासी बढ़त में है और केन्द्र व राज्य में उनकी सरकार है, इसका पूरा फायदा मिलेगा। मगर मोदी लहर समाप्त होने के साथ ही केन्द्र व राज्य सरकारों की लगभग एक साल ही परफोरमेंस कुछ खास न होने के कारण उनका मुगालता दूर हो गया है।
कुल जमा देखा जाए तो राजस्थान की चार में से तीन पर कांग्रेस की जीत यह साबित करने में कामयाब हो गई है कि मोदी लहर पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। अब लोगों को कांग्रेस का यह कहना आसानी से गले उतरेगा कि जनता सुराज और अच्छे दिनों के झूठे वादों को समय पर पहचान चुकी है और इस उपचुनावों के परिणामों ने उनकी कथित खुमारी को उतार फैंका है।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 15 सितंबर 2014

फिर सुर्खियों में आ गई किरण शेखावत

ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी की कार्यकर्ता श्रीमती किरण शेखावत को सुर्खियों में रहने की आदत हो गई है। वे अखबारों व टीवी चैनलों में छाने के लिए कोई न कोई ने बहाना तलाश ही लेती हैं। हालांकि जहां तक उनके नजरिये का सवाल है, वे अपनी ओर से तो किसी भी रूप अन्याय के खिलाफ संघर्ष करती दिखाई देना चाहती हैं। मगर चूंकि उनका तरीका आक्रामक ही होता है, इस कारण खबर का हिस्सा बन ही जाती हैं। 
आम आदमी पार्टी के मिशन विस्तार कार्यक्रम के तहत इंडोर स्टेडियम में आयोजित सम्मेलन में भी उन्होंने जम कर हंगामा किया कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है। आयोजकों ने चूंकि उनकी उपेक्षा की थी, इस कारण आशंकित भी थे कि कहीं सम्मेलन स्थल पर आ कर हंगामा न कर दें, इस कारण पहले से ही पुलिस सुरक्षा मांग ली थी। आप के सदस्य राजेश कुमार राजोरिया ने तो किरण का नाम लिए बिना कह दिया कि पिछले दिनों पार्टी हेल्पलाइन नंबर पर एक महिला ने फोन करके अभद्रता की थी। इस घटना के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को आशंका थी कि कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान कुछ असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ सकते हैं। इसी आशंका के चलते प्रदेश कार्यकारिणी के दिशा-निर्देश पर एसपी से शिकायत की गई थी। एसपी के आदेशों पर कार्यकर्ता सम्मेलन में कोतवाली थाना पुलिस का जाप्ता तैनात किया गया। किरण को ये भी ऐतराज था कि उनका नाम पुलिस के पास क्यों था, इस कारण पुलिस से भी भिड़ गईं। 
बताया जाता है कि पार्टी ने उन्हें इस करतूत पर स्थानीय स्तर पर अनुशासन हीनता के आरोप में पार्टी से बाहर कर दिया है, मगर बताते हैं कि इसके लिए उच्च स्तर पर अनुमति नहीं ली गई है।
आपको याद होगा कि लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी अजय सोमानी के ऐन वक्त पर नाम वापस ले लेने पर उन्होंने उत्तेजित हो कर उनका मुंह काला कर दिया था। इसी प्रकार उन्होंने पुष्कर के एक दवाई विक्रेता द्वारा प्रतिबंधित दवा बेचने का स्टिंग ऑपरेशन कर सुर्खियां पाई थीं। कुल मिला कर किरण की छवि एक हंगामाई नेता की बनती जा रही है।

कांग्रेस-भाजपा के जीत के अपने-अपने दावे

नसीराबाद विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस व भाजपा के जीत के अपने-अपने दावे हैं। भाजपा को जहां अपने पूरे तंत्र के चप्पे-चप्पे पर छा जाने का भरोसा है तो वहीं कांग्रेस कुछ अहम समीकरणों के चलते हुए जीत का आशा पाले हुए है।
असल में इस चुनाव को चूंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने यह कह कर कि ये चुनाव रामनारायण गुर्जर व सरिता गेना के बीच नहीं, बल्कि स्वयं उनके और मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच है, प्रतिष्ठा का प्रश्र बना लिया और इस पर वसुंधरा राजे ने भी पूरी ताकत झोंक दी, इस कारण एक-एक वोट के लिए जबरदस्त रस्साकशी हुई। भाजपा के विधायकों ने डेरा डाल कर घर-घर जनसंपर्क किया। वसुंधरा ने जोर दे कर कह दिया था कि इस चुनाव में किसी तरह की कोर कसर बाकी नहीं रहनी चाहिए। इस कारण भाजपा नेताओं ने इनाम की लालच में पूरी ताकत झोंक दी।  भाजपा को मिलने वाले वोटों की इतनी बारीक छंटनी की गई कि उस तक कांग्रेस सोच भी नहीं सकती थी। वैसे भी भाजपा को उम्मीद है कि वह चूंकि पहले से ही अच्छी खासी बढ़त में है और केन्द्र व राज्य में उनकी सरकार है, इसका पूरा फायदा मिलेगा। हालांकि खुद भाजपा प्रत्याशी श्रीमती सरिता गेना की हालत तो ये रही कि उन्हें कुद पता ही नहीं रहा कि आखिर चुनाव लड़ा कैसे जा रहा है, मगर पार्टी की एकजुटता अच्छे परिणाम की उम्मीद पैदा कर रही है।
दूसरी ओर सचिन ने भी पूरी ताकत झोंक रखी थी। वे चाहते हैं कि अपने संसदीय क्षेत्र की गुर्जर बहुल इस सीट पर किसी भी स्थिति में जीत हासिल की जाए, ताकि उनका राजनीतिक कद स्थापित हो। कांग्रेसी मानते हैं कि उनके प्रत्याशी रामनारायण गुर्जर को स्थानीय होने का पूरा लाभ मिलेगा। उन्हें नसीराबाद का बच्चा-बच्चा जानता है। स्वर्गीय बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के छह बार के विधायक काल के दौरान उन्होंने न जाने कितने लोगों के निजी काम किए हैं, इस कारण वे मानते हैं कि वे इतने तो अहसान फरामोश तो नहीं होंगे। यूं भी आम लोगों में यह धारणा देखी गई कि गुर्जर तो उन्हें सहज सुलभ हैं, जबकि सरिता गेना को तलाशने अजमेर जाना होगा।  कांग्रेस को यह भी उम्मीद है कि मतदान प्रतिशत का गिरना और मोदी लहर का असर कम होने का उन्हें लाभ मिलेगा। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, आंकड़े यही बताते हैं कि जाटों की तुलना में गुर्जरों ने ज्यादा लामबंद हो कर मतदान किया।
कुल मिला कर दोनों पार्टियों के अपने-अपने दावे हैं। अब किसकी बाजुओं में कितना दम रहा, ये तो 16 सितंबर की सुबह उगने वाला सूरज ही बता पाएगा।