रविवार, 19 अगस्त 2012

दो साल तो परिपक्व होने में ही लग गए कमल बाकोलिया को

अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया के कार्यकाल के दो साल पूरे हो गए। दो साल में उपलब्धि के नाम पर कुछ खास दर्ज नहीं करवा पाए। हां, एक उपलब्धि जरूर गिनी जा रही है। उनकी बॉडी लैंग्वेज और आत्मविश्वास के साथ की गई घोषणाओं को आधार मान कर मीडिया वाले अब यह मानने लगे हैं कि बाकोलिय नौसीखिए नहीं रहे। परिपक्व हो गए हैं।  यानि कि दो साल तो उन्हें केवल परिपक्व होने में ही लग गए। बाकी बचे तीन साल में क्या कर पाएंगे, पता नहीं। अलबत्ता तीसरे साल के प्रवेश में जो घोषणाएं की हैं, उससे यह जरूर लगता है कि अब उनकी समझदानी में आ गया है कि वे मेयर हैं और मेयर चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है। यानि कि अब यह माना जा सकता है कि उनका माइंडसेट बदल गया गया है। बदलना भी चाहिए। करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। एक और उपलब्धि भी रेखांकित की जा रही है। वो ये कि पार्षदों पर भले ही गाहे बगाहे भ्रष्टाचार  व पक्षपात के आरोप लगे हों, मगर खुद की कमीज अभी सफेद ही है। 
असल में हुआ ये कि जब बाकोलिया मेयर बने तो राजनीति में कोरे कागज थे। गैस एजेंसी चलाते-चलाते यकायक शहर को चलाने की जिम्मेदारी आ गई तो भला उनसे उम्मीद की भी कैसे जा सकती थी कि उनके पास कोई विजन भी होगा। न राजनीति की समझ, न नगर निगम के कामकाज की और न ही शहर के बारे में कोई समझदारी से भरी सोच। इन सब चीजों को सीखने में दो साल तो लगने ही थे। दुर्भाग्य से, जिसे कि उनके लिए सौभाग्य कहना ज्यादा उचित होगा कि उन्हें जहां बोर्ड में भाजपा का बहुमत मिला, वहीं सी आर मीणा जैसे परिपक्व सीईओ। उनसे भिड़ंत लेते-लेते न केवल राजनीतिक समझ बढ़ी है, अपितु अफसरों-कर्मचारियों से किए जाने वाले व्यवहार की जानकारी भी। करीब डेढ़ साल पहले अपुन ने दैनिक न्याय सबके लिए के द थर्ड आई कॉलम में इशारा कर दिया था कि बाकोलिया भाग्य से मिला मेयर बनने का मौका गंवा रहे हैं। किसी विद्वान का यह सूत्र भी सुझाया था कि जीवन ताश का खेल है, जिसमें एक बार ताश के पत्ते बंट जाने के बाद हमें उन्हीं पत्तों से ही खेलना होता है। उसके अलावा कोई चारा भी नहीं। मगर अमूमन होता ये है कि हम यह कह कर सियापा करते हैं कि काश हमें हमारी पसंद के पत्ते मिले होते तो हम ये कर लेते, वो कर लेते। और उसी में अपना वक्त जाया करते हैं। जबकि होना यह चाहिए हम किस्मत से मिले पत्तों से ही बेहतर से बेहतर खेलने की कोशिश करें। जो मिले ही नहीं, उनकी कल्पना करने का कोई मतलब ही नहीं। शायद यही सूत्र और अपनी नियती समझने में उन्हें इतना वक्त लग गया। माना कि वे ऐसे बोर्ड के मेयर हैं, जिसमें भाजपा पार्षदों का बहुमत है और कई कांग्रेसी भी ऐसे हैं, जो उनके नाथने में नहीं नाथे जा पा रहे। ऐसे में उन्हें मिले हुए पत्तों से ही खेलना होगा, जो कि उनकी किस्मत के कारण मिले हैं। उसी किस्मत का ही कमाल है कि उन्हें अपने स्वर्गीय पिता श्री हरिशचंद जटिया के कर्मों की बदौलत मेयर का टिकट मिला और जीत भी गए। मगर कमी सिर्फ ये थी कि मेयर जैसा माइंड सेट नहीं था। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि वे क्या से क्या हो गए हैं। हालांकि उन्होंने निगम की सियासी स्थिति को देखते हुए सीईओ के रूप में सी आर मीणा जैसे अधिकारी को लगवाया जो उनके लिए काफी मददगार हो सकता था, मगर उन्हीं के साथ ट्यूनिंग नहीं बैठा पाए। उनके इर्द-गिर्द जो चौकड़ी जुटी रही, वह भी उलटे-उलटे रास्ते सुझाती रही। उसी के कारण शहर के कई तो ऐसे हैं जो उनके चेंबर इसी कारण नहीं घुसते कि उनके आसपास कुछ छुटभैया मटरगस्ती कर रहे होंगे।
खैर, देर आयद, दुरुस्त आयद। कम से कम अब मीडिया वाले भी मानने को मजबूर हैं कि बाकोलिया पूरे आत्म विश्वास के साथ भरे हुए हैं। कुछ करना चाहते हैं। क्या कर पाते हैं ये तो वक्त ही बताएगा।
सब कुछ बदल देने के विजन के साथ फॉर्म में आए बाकोलिया को नगर निगम को हाई टैक करने की सीख किसने दी पता नहीं, मगर है तारीफ ए काबिल। केन्द्रीय सूचना प्रौद्यागिकी एवं दूरसंचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के शागिर्द होने के नाते कम से कम ये सोच तो आनी ही चाहिए थी।
दो नए दफ्तर रामगंज, माकड़वाली रोड या जयपुर रोड पर बनाने की योजना और अतिक्रमण से निपटने के लिए निगम का अपना पुलिस दस्ता बनाने की इच्छा सराहनीय है। संकड़ी गलियों वाले शहर में आपदा प्रबंधन के लिए हाईटेक उपकरणों से सुसज्जित करने का विचार भी उत्तम है।
बहरहाल, दो साल पूरे होने पर नगर के प्रथम नागरिक को नए जोश व जब्जे के लिए ढ़ेरों शुभकामनाएं।
-तेजवानी गिरधर

ईद पर अतिरिक्त सावधानी की जरूरत

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और इलाहाबाद में शुक्रवार को हुई हिंसा के मद्देनजर केंद्र सरकार ने एक बार फिर राजस्थान सहित सभी राज्यों से कहा है कि वे ईद के मौके पर हर स्तर पर सतर्कता बरतें।
गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक खुफिया सूत्रों से जानकारी मिली है कि कुछ शरारती तत्व असम की घटनाओं को देश के अन्य इलाकों में दोहराना चाहते हैं। मुंबई की हिंसा के बाद कर्नाटक में अफवाहों के चलते पूर्वोत्तर के लोगों का पलायन इसी मुहिम का नतीजा है। सूत्रों के मुताबिक ऐसी सूचनाएं हैं कि ईद के मौके पर कुछ शरारती तत्व खुरापात कर सकते हैं, ऐसे में राजस्थान सहित महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और कर्नाटक को खासतौर पर सतर्क रहने को कहा गया है।
यूं तो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह व तीर्थराज पुष्कर को अपने आंचल में समेटे अजमेर की आध्यात्मिक धरा पूरी दुनिया में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल मानी जाती है, लेकिन साथ ही एक बार दरगाह में बम विस्फोट हो चुकने और मुंबई सीरियल ब्लास्ट के मास्टर माइंड हेडली की गुप्त पुष्कर यात्रा सहित अन्या कई घटनाओं के बाद यह शहर भी अति संवेदनशील शहरों में शुमार किया जाता है। विशेष रूप से पिछले स्वतंत्रता दिवस पर दरगाह के निजाम गेट पर पाक समर्थित पोस्टर लगाने की कोशिश चिंता का विषय है। हांलाकि पोस्टर लगाने वाले बिहार स्थित पुरनिया के 26 बांसवाड़ी आयल बाइसी निवासी मोहम्मद इस्माइल (42) पुत्र मोहम्मद ताहिर को देशद्रोह के आरोप में रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया गया, मगर आज तक पता नहीं लग पाया है कि इसके पीछे किसका हाथ था। खुद पुलिस को भी उसके किसी दहशतगर्द गिरोह से संबद्ध होने की आशंका है। इसके अतिरिक्त शक ये भी है कि इस्माइल के अतिरिक्त पकड़े गए अन्य आरोपी कहीं स्लीपर सेल के लिए काम तो नहीं कर रहे थे।
कुल मिला कर गृह मंत्रालय की चेतावनी की रोशनी और अजमेर के हालात के मद्देनजर खुफिया एजेंसियों व पुलिस को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी, ताकि कोई सिरफिरा इस शांत नगरी में नफरत की हवा न फैला सके।
-तेजवानी गिरधर