सोमवार, 7 अप्रैल 2014

शाहणी के पास कांग्रेस छोडऩे के अलावा कोई चारा भी न था

नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत ने जिन हालात में कांग्रेस पार्टी छोड़ी है, उनमें उनके पास इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था। लैंड फॉर लैंड मामले में रिश्वत मांगने के आरोप संबंधी प्रकरण में भाजपा सरकार आने के बाद उन पर शिकंजा कसता जा रहा था। चुनावी माहौल में भाजपा सरकार की उन पर कड़ी नजर थी। अगर वे कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट के लिए काम करते तो गिरफ्तारी तक की नौबत आने वाली थी। बेशक रिश्वत प्रकरण में फंसने के बाद उन्हें न केवल न्यास सदर का पद छोडऩा पड़ा, विधानसभा चुनाव में टिकट से भी वंचित होना पड़ा और संगठन में कोई पद न होने के कारण वे कांग्रेस में उपेक्षित जीवन जी रहे थे, मगर उनके इस्तीफे की असल वजह भाजपा सरकार की पैनी नजर ही थी, जिससे बचना उनकी पहली प्राथमिकता रही। वे पूरी तरह से बच जाएंगे या नहीं, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर संभव है अब सरकार कुछ नरम पड़ जाए।
बात अगर दूरदृष्टि की करें तो यह ठीक है कि कांग्रेस में उनके लिए अब कुछ शेष रह भी नहीं गया था। रिश्वत प्रकरण में फंसने सहित सचिन पायलट से कतिपय कारणों के चलते हुई नाइत्तफाकी ने उनका विधानसभा टिकट लटका दिया था। यही वजह रही कि सचिन किसी ओर सिंधी को टिकट दिलवाना चाहते थे। यह बात अलग है कि वह तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जिद के चलते पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती टिकट हासिल करने में कामयाब हो गए। ऐसा नहीं है कि सचिन की ओर से उन्हें इस चुनाव में पूछा नहीं गया, मगर खुद उनके साथ दिक्कत ये थी कि अगर वे सचिन के लिए काम करते तो भाजपा सरकार के कोप का भाजन बनना पड़ता। हां, इतना जरूर है कि कांग्रेस में जितने नंबर उनके कम हो चुके थे, उन्हें कम से कम रिश्वत प्रकरण से बरी होने तक फिर हासिल करना संभव नहीं था। ऐसे में बेहतर रास्ता यही बचा कि कांग्रेस से किनारा कर लें, ताकि भाजपा सरकार में फिलहाल कुछ राहत मिल जाए।
भाजपा सरकार ही क्यों, कांग्रेस सरकार के रहते भी उन पर भारी दबाव था। टिकट न मिलने के कारण नाराज थे, मगर गहलोत के दबाव में उन्हें सिंधियों के विपरीत जा कर डॉ. बाहेती के लिए काम करना पड़ा। सच तो ये है कि सिंधी समाज में उनके मुकाबले का एक भी कांग्रेस नेता नहीं था और टिकट की पक्की दावेदारी ही उनके लिए दिक्कत का सबब बन गई। डॉ. बाहेती को टिकट देने के लिए गहलोत ने उन्हें आखिर तक लटकाए रखा।
अब सवाल ये कि वे आगे क्या कर सकते हैं? या तो भाजपा में शामिल हुए बिना डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी की तरह भाजपा प्रत्याशी को समर्थन का ऐलान करें या फिर भाजपा में शामिल हो जाएं। भाजपा में शामिल होने पर भी एक पेच है। अगर एक धड़ा उन्हें भाजपा में शामिल करवाता है तो दूसरा यह कर विरोध कर सकता है कि रिश्वत के आरोपी को चुनाव के वक्त कैसे शामिल किया जा सकता है। भाजपा की मतभिन्नता तो फिर भी दूर हो सकती है, मगर कांग्रेस को जरूर भाजपा पर हमला करने का मौका मिल जाएगा। वह यह कह सकती है कि जिस नेता को आरोपी होने के कारण टिकट से वंचित कर दिया गया, उसे ही अपने फायदे के लिए भाजपा शामिल कर रही है।
राजनीतिक लिहाज से भगत से एक बड़ी गलती ये हो गई कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पर हमला बोलते हुए इस्तीफा दिया है। वे हृदय परिवर्तन, कांग्रेस से मन भरने अथवा कोई और कारण बता कर भी पार्टी छोड़ सकते थे, मगर उन्होंने तो सीधे सचिन पर ही आरोपों की झड़ी लगा दी। ऐसे में उन्होंने आगे के लिए कांग्रेस में अपने रास्ते बंद कर लिए हैं। इतना ही नहीं सचिन से खुली दुश्मनी भी मोल ले ली है। वह क्या रूप लेगी, यह तो पता नहीं, मगर कांग्रेस प्रवक्ता भूपेन्द्र सिंह राठौड़ के बयान से यह साफ है कि पार्टी का उनके प्रति रवैया क्या रहने वाला है। राठौड़ ने कहा है कि कांग्रेस ने उन्हें नाम व पहचान दी है। विधानसभा का टिकट दिया, नगर सुधार न्यास का अध्यक्ष बनाया, मगर न्यास में पहुंचने के बाद वे भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गए। भ्रष्टाचार में डूबे लोगों का कांग्रेस पार्टी कभी पक्ष नहीं लेती।
जहां तक भगत के सचिन पर आरोपों का सवाल है, सवाल ये भी उठने लगे हैं कि क्या उन्हें अब जा कर पता लगा है कि सचिन ने जनता की सुनवाई के लिए स्थाई कार्यालय व निवास नहीं बनाया? क्या अब जा कर समझ आई है कि सचिन के कम्पनी मामलात राज्य मंत्री होने के बावजूद अजमेर को एक भी नया उद्योग नहीं मिला है और न ही अजमेर रेलवे स्टेशन का स्तर घोषणा के मुताबिक वल्र्ड क्लास हो पाया है?
अब बात ये कि भगत के इस्तीफे का राजनीति पर असर क्या होगा? बेशक चुनावी माहौल में एक कांग्रेस नेता का प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर हमला माहौल को कुछ गरम जरूर करेगा, मगर चूंकि सिंधी समाज का एक बड़ा वर्ग पहले ही भाजपा से जुड़ा हुआ है, इस कारण भाजपा को बहुत बड़ा लाभ मिलेगा, इसकी संभावना कम नजर आती है। हां, इतना जरूर है कि उनके पीछे हाथ धो कर पड़े युवा नेता नरेश राघानी, डॉ. लाल थदानी व एडवोकेट अशोक मटाई सरीखों की बाछें जरूर खिल गई होंगी कि उनके रास्ते का एक बड़ा कांटा साफ हो गया।
-तेजवानी गिरधर