बुधवार, 28 अगस्त 2013

यानि कि नसीम सर्वसम्मत दावेदार नहीं

पुष्कर ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव ओमप्रकाश रावत ने जिस प्रकार जन अभाव अभियोग निराकरण समिति के अध्यक्ष मुमताज मसीह पर शिक्षा राज्यमंत्री व मौजूदा पुष्कर विधायक श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के दबाव में वरिष्ठ पदाधिकारियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है, उससे यह साफ हो गया है कि नसीम सर्वसम्मत दावेदार नहीं हैं। ज्ञातव्य है कि रावत ने कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र भेज कर आरोप लगाया है कि मुमताज मसीह फीड बैक लेने के नाम पर सिर्फ कुछ कार्यकर्ताओं से ही गुुप्त मंत्रणा कर लौट गए और नसीम अख्तर के दबाव में अन्य संभावित दावेदारों तथा पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से मुलाकात नहीं की।
समझा जा सकता है कि नसीम का टिकट लगभग पक्का होने के अनुमान की वजह से अधिसंख्य कांग्रेसी नेता अनावश्यक रूप से नसीम के खिलाफ रेखांकित नहीं होना चाहते। यही वजह रही कि उन्होंने नसीम के प्रति ही एकराय जाहिर कर दी। नसीम का टिकट इस वजह से पक्का माना जा रहा है कि एक तो वे मंत्री हैं, दूसरा उन पर कोई बड़ा आरोप नहीं है व उनका परफोरमेंस अच्छा ही रहा है, तीसरा वे जिले में अल्पसंख्यक व महिला कोटे को पूरा करती हैं। यदि कुछ नेता उनसे असंतुष्ट हैं तो उनमें दम नहीं है कि खुल कर सामने आएं। ऐसे में रावत की आवाज नक्कारखाने में तूती के समान ही दब जाने वाली है। हां, इतना जरूर है कि यदि पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती ने पूरा जोर लगा कर पुष्कर के टिकट पर हाथ मारा और नसीम को भी टिकट देना जरूरी ही समझा गया तो उन्हें मसूदा भेजा जा सकता है। मसूदा में वैसे भी मौजूदा प्रबल दावेदार संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत, अजमेर डेयर अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी व पूर्व विधायक हाजी कयूम खान के बीच जबरदस्त खींचतान है। ऐसे में इन तीनों में से जिस किसी एक को टिकट दिया गया, तो अन्य दो दावेदार उसे निपटा देंगे। कदाचित इस वजह से तीनों को दरकिनार कर नसीम को वहां से उतारा जा सकता है। बहरहाल, टिकट किसे मिलेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 26 अगस्त 2013

चंदा एकत्रित करने की जिम्मेदारी में भी राजनीति?

विधानसभा चुनाव में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों के लिए पार्टी की ओर से इस बार चुनाव खर्च जुटाने की नीति के तहत विधानसभा वार जिम्मेदारी दिए जाने में भी राजनीति होने की गंध आ रही है। आम तौर पर फार्मूला यही बताया जा रहा है कि यह जिम्मेदारी विधायक अथवा पिछले चुनाव में हारे पार्टी प्रत्याशी को दी जा रही है, मगर अजमेर जिले में इस फार्मूले में हेरफेर हुई है। कुछ अपेक्षित नेताओं की बजाय अन्य को जिम्मेदारी दिए जाने से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। अब स्थानीय भाजपा नेता और राजनीति के जानकार इस माथापच्ची में लगे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है।
जानकारी के अनुसार ब्यावर में विधायक शंकर सिंह रावत, अजमेर दक्षिण में विधायक श्रीमती अनिता भदेल, अजमेर उत्तर में विधायक वासुदेव देवनानी के अतिरिक्त नसीराबाद में पूर्व विधायक सांवरलाल जाट व मसूदा में नवीन शर्मा को जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन किशनगढ़ में पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी की बजाय सुरेश टाक, पुष्कर में भंवर सिंह पलाड़ा की बजाय भगवती प्रसाद सारस्वत, केकड़ी में रिंकू कंवर राठौड़ की बजाय किशनगोपाल कोगटा को जिम्मा दिया गया है। इससे यह असमंजस उत्पन्न हो गया है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया है? क्या इसको टिकट वितरण से जोड़ कर देखा जा सकता है? स्वाभाविक है कि जिन अपेक्षित नेताओं को जिम्मा नहीं दिया गया है, उनमें खलबली मची हुई है। कहीं उन्हें इसके माध्यम से कोई इशारा तो नहीं दिया गया है? अगर उनके मन में यह संदेह उत्पन्न होता है कि कहीं उनकी टिकट की दावेदारी में कोई बाधा तो नहीं है, उचित ही है। जिनको अनपेक्षित जिम्मेदारी दी गई है, उनके मन में टिकट मिलने की आस भी जागे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर

क्या दीपक हासनी भी लगे हैं टिकट की जुगत में?

राजनीतिक हलकों में इन दिनों एक चर्चा आम है कि माया मंदिर वाले के नाम से जाने-पहचाने वाले किशनगढ़ निवासी दीपक हासानी गुपचुप तरीके से अजमेर उत्तर का टिकट हासिल करने में लगे हुए हैं। हालांकि उन्होंने न तो औपचारिक रूप से ब्लॉक व जिला स्तर पर अपना आवेदन किया है, मगर बताया जाता है कि वे जयपुर में अपनी गोटी फिट करने के चक्कर में हैं।
ज्ञातव्य है कि हासानी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के करीबी माने जाते हैं। जाहिर तौर पर वे उन्हीं के दम पर टिकट की जुगत बैठा रहे हैं। असल में पूर्व न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत का नाम जिला स्तरीय पैनल में काट दिए जाने के बाद कांग्रेस के पास कोई सशक्त व दमदार चेहरा नहीं है। अगर किसी सिंधी को ही टिकट देने का निर्णय होता है तो कांग्रेस के लिए समस्या होगी कि पूर्व में हुए उपचुनाव की तरह नानकराम जगतराय जैसा कोई चेहरा तलाश कर लाए। अभी जितने भी चेहरे हैं, उनके साथ कोई न कोई माइनस पॉइंट है। अर्थात जिसका नाम भी उभरता है, अन्य उसकी कार सेवा में जुट जाते हैं। यह बात हासानी भी जानते हैं। सच तो ये है कि वे दूध के जले हुए हैं, इस कारण छाछ को भी फूंक फूंक कर पी रहे हैं। उन्होंने न्यास अध्यक्ष बनने की जुगत बैठाई थी और इसके लिए बाकायदा सिंधी समाज का एक प्रतिनिधिमंडल जयपुर भेजा भी, मगर यह बात लीक होते ही उनकी कार सेवा करने वाले सक्रिय हो गए। ऐसे में वे हाथ ही मलते रह गए। इस बार वे किसी प्रकार की लापरवाही नहीं करना चाहते। जानते हैं कि जैसे ही उनका नाम चर्चा में आएगा लोग पूर्व की भांति पर्चेबाजी कर सकते हैं। इस कारण पूरी तौर पर साइलेंट हो कर काम कर रहे हैं। उनके पक्ष में एक बात ये भी जाती है कि वे पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के करीबी हैं। इतने करीबी कि पिछले चुनाव में डॉ. बाहेती की जीत की उम्मीद में फैसले वाले गाडी भर कर पटाखे ले आए, मगर डॉ. बाहेती हार गए। हालांकि डॉ. बाहेती खुद भी दावेदार हैं, मगर यदि उन्हें लगा कि कांग्रेस हाईकमान किसी सिंधी को ही टिकट देना चाहता है तो वे हासानी पर हाथ रख देंगे।
-तेजवानी गिरधर

शनिवार, 24 अगस्त 2013

केवल रायशुमारी के आधार पर नहीं मिलेगा नसीम को टिकट

विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन को लेकर चल रहे दाव-पेंच के बीच राज्य के जनअभाव अभियोग निराकरण समिति के अध्यक्ष मुमताज मसीह के साथ बंद कमरे में हुई पुष्कर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की मंत्रणा से भले ही ये निष्कर्ष निकल कर आया है कि पुष्कर की मौजूदा विधायक व शिक्षा राज्यमंत्री नसीम अख्तर इंसाफ को ही पुष्कर विधानसभा क्षेत्र से दोबारा टिकट देने की पैरवी की गई है, लेकिन अकेला यही फैक्टर उनका टिकट पक्का नहीं करने वाला है।
जानकार सूत्रों के अनुसार नसीम के बारे में लगभग एकराय इस कारण है कि उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में कार्यकर्ताओं को पूरी तवज्जो दी, इस कारण वे उनसे आमतौर पर खुश हैं। इसके अतिरिक्त अधिसंख्य कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि जब नसीम को ही अल्पसंख्यक व महिला होने के नाते टिकट मिलना है तो वे काहे को किसी दूसरे का नाम ले कर बुरे बनें। इस लिहाज से यही प्रतीत होता है कि कांग्रेस आलाकमान नसीम को टिकट देगा, लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं।
दरअसल में उन्हें टिकट मिलने का सबसे बड़ा आधार यही है कि एक तो अल्पसंख्यक हैं और दूसरा उन्हें टिकट देने पर महिला कोटा भी पूरा होता है, मगर टिकट देने से पहले यह भी देखा जाएगा कि क्या इस बार जीत भी पाएंगी? उनकी जीत को लेकर संशय इस कारण है कि पिछली बार भी वे त्रिकोणीय मुकाबले में जीती थीं। अर्थात वे अच्छे नसीब के कारण विधायक बनीं। आपको पता होगा कि पिछली बार भाजपा के बागी श्रवण सिंह रावत की वजह से भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी भंवर सिंह पलाड़ा हार गए थे। और यही वजह नसीम की जीत का आधार बनीं। उन्होंने पलाड़ा को 6 हजार 534 मतों से हराया। नसीम को 42 हजार 881 व पलाड़ा को 36 हजार 347 वोट मिले, जबकि भाजपा के बागी श्रवणसिंह रावत ने 27 हजार 612 वोटों की सेंध मारी। अगर रावत खड़े नहीं होते तो नसीम का नसीब किसी भी सूरत में नहीं चमक सकता था। यह तथ्य हाईकमान की भी जानकारी में है। वह इस बार पहले ये देखेगा कि भाजपा किसको मैदान में उतारती है और उससे जातीय समीकरण क्या बैठता है। जीतने लायक स्थिति होने पर ही उन्हें टिकट दिया जाएगा।
उनके टिकट को लेकर तनिक संशय इस कारण भी उत्पन्न होता है क्योंकि इस बार पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती भी पुष्कर से टिकट मांग रहे हैं। हालांकि उनकी नजर अजमेर उत्तर पर भी है, मगर वहां किसी सिंधी को ही टिकट देना तय हुआ तो बाहेती पूरा जोर पुष्कर के लिए लगा देंगे। वे यहां से विधायक रह भी चुके हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का उन पर पूरा वरदहस्त है। पूरे पांच साल कोई ढंग का सरकारी पद नहीं देने के बाद समझा जाता है कि वे बाहेती को टिकट जरूर देंगे। अगर ऐसा हुआ तो नसीम को मसूदा जाने को कहा जा सकता है। हालांकि वहां तो जबरदस्त दंगल मचा हुआ है। वहां से निर्दलीय रूप से जीते ब्रह्मदेव कुमावत, पिछली बार कांग्रेस टिकट पर हारे अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी और पूर्व विधायक हाजी कयूम खान पूरा जोर लगाए हुए हैं। इनमें से जिस किसी को टिकट मिलेगा, बाकी के दोनों उसे निपटाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेंगे। ऐसे में कांग्रेस बड़ी पसोपेश में है। संभव है तीनों को दरकिनार कर नसीम को मौका दिया जाए।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 21 अगस्त 2013

हवाई अड्डे को लेकर राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही

अजमेर जिले के किशनगढ़ के पास प्रस्तावित बहुप्रतीक्षित हवाई अड्डे को लेकर राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही है। पिछले दिनों राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अजमेर आगमन पर अंजुमन ने इसका नाम ख्वाजा साहब के नाम पर रखने की मांग की तो हाथोंहाथ हिंदूवादी संगठन सक्रिय हो गए और उन्होंने इसका नाम पृथ्वीराज चौहान एयरपोर्ट अजमेर रखने का दबाव बना डाला। कुछ दिन की शांति के बाद एक बार फिर इसको लेकर विवाद शुरू हो गया है।
हाल ही शहर कांग्रेस की एक बैठक में ब्लॉक अध्यक्ष आरिफ हुसैन ने प्रस्ताव रखा कि हवाई अड्डे का नाम गरीब नवाज के नाम पर रखा जाए तो इस पर भी तुरंत प्रतिक्रिया हुई। अखिल भारतीय निम्बार्काचार्य पीठ के युवाचार्य श्याम शरणदेव महाराज ने मदनगंज-किशनगढ़ के समीप प्रस्तावित हवाई अड्डे के नाम पर हो रही राजनीति पर कड़ी आपत्ति जताई। युवाचार्य ने कहा कि इस विषय में समुदाय विशेष की प्रसन्नता के लिए हो रही तुष्टीकरण की नीति समाज में विभीषिका उत्पन्न करने वाला एवं भारतीय संस्कृति व सभ्यता के गौरव के प्रतिकूल है। कृष्णगढ़-अजयमेरू एवं पुष्कर क्षेत्र के गौरव को नजरअंदाज करते हुए यदि राजनीतिक लाभ को प्रधानता दी गई तो भविष्य में किसी भी सरकार को इसके दुष्परिणाम का सामना करना पड़ेगा। युवाचार्य ने पत्रकार वार्ता में बताया कि पुराण प्रसिद्ध तीर्थगुरु पुष्कर अरण्य क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले अजयमेरू एवं कृष्णगढ़ का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। ब्रह्मा मंदिर तथा सम्राट पृथ्वीराज चौहान एवं महाराजा सांवतसिंहजी (संत नागरीदास) के द्वारा किए गए ऐतिहासिक पहचान की विशिष्टता व स्थान के गौरव को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित हवाई अड्डे का नाम रखा जाए। हालांकि उन्होंने इस मसले पर राजनीति न करने पर जोर दिया, मगर उनका बयान भी कहीं न कहीं इसी राजनीति का हिस्सा बन गया। उनकी मांग से नामों की सूची में ब्रह्मा मंदिर तथा महाराजा सांवतसिंहजी (संत नागरीदास) भी जुड़ गए। 
उनका बयान आया तो कांग्रेसी फिर जागे। प्रदेश राजीव गांधी यूथ फेडरेशन के प्रदेश संयोजक कमल गंगवाल व महासचिव विकास अग्रवाल ने विज्ञप्ति जारी कर मांग की कि हवाई अड्डे का नाम राजीव गांधी के नाम पर रखा जाए।
ज्ञातव्य है कि इस मसले के ज्वलंत होते ही एक सज्जन विजय कांकाणी ने फेसबुक पर पृथ्वीराज चौहान एयरपोर्ट अजमेर के नाम से अकाउंट बना दिया। उसमें अपील की गई कि भारत के अंतिम हिंदू सम्राट और अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम पर अजमेर में क्या है? केवल एक भाजपा के राज में बना पृथ्वीराज स्मारक, उसकी भी सरकार ने हालात खराब कर दी है। हमने सरकार के सभी बड़े मंत्रियों को खत लिख कर मांग की है कि अजमेर में निर्माणाधीन एयरपोर्ट का नाम पृथ्वीराज चौहान रखा जाये, जिससे देशभर और विदेशों में उनकी पहचान बनी रहे। अब सरकार के मन में कया है, सरकार जाने, हमने साफ कर दिया है कि पृथ्वीराज का नाम नहीं तो एयरपोर्ट नहीं।
कुल मिला कर नाम को लेकर हो रही राजनीति के चलते आने वाले दिनों में तलवारें और खिंचती दिखाई दे रही हैं।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

जस्टिस इसरानी का विरोध भी हो गया शुरू

आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट के लिए कांग्रेस की ओर से जस्टिस इंद्रसेन इसरानी का नाम चर्चा में आते ही उनका विरोध भी शुरू हो गया है। ज्ञातव्य है कि अजमेर में ब्लॉक व शहर स्तर पर तैयार पैनलों में उनका नाम नहीं है, फिर भी जयपुर व दिल्ली में उनके नाम की चर्चा है। असल में राजस्थान में वरिष्ठतम सिंधी नेता माने जाते हैं और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी हैं। बताया तो यह तक जाता है कि सिंधी समाज के बारे में कोई भी निर्णय करने से पहले गहलोत उनसे चर्चा जरूर करते हैं। इसी कारण जैसे ही उनका नाम सामने आया, उसे गंभीरता से लिया गया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव व अजमेर प्रभारी सलीम भाटी की ओर से की गई रायशुमारी के दौरान तो बाकायदा उनका नाम लेकर कांग्रेस नेता राजेन्द्र नरचल ने विरोध दर्ज करवा दिया और कहा कि जब अजमेर में पर्याप्त नेता हैं तो फिर क्यों बाहरी पर गौर किया जा रहा है। वे यहीं तक नहीं रुके। आगे बोले कि वे इसरानी का पुरजोर विरोध करेंगे, चाहे उन्हें कांग्रेस से निकाल दिया जाए। उन्होंने ये तान किसके कहने पर छेड़ी, इसका पता नहीं लग पाया है। इसरानी के नाम पर अन्य दावेदारों को कितनी चिंता है, इसका अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है। हाल ही जब एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली गया और वहां भी जस्टिस इसरानी के नाम की चर्चा हुई तो उसने उनका विरोध कर दिया और साथ ही अजमेरनामा में चौपाल कॉलम के अंतर्गत गत दिवस छपे न्यूज आइटम का प्रिंट भी दिखा दिया, जिसमें बताया गया है कि इससे पहले भी वे अजमेर में जमीन तलाशने आ चुके हैं और विवादित बयान देने के कारण भाग छूटे थे।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि इसरानी का नाम खुद उनकी ओर चलाया हुआ नहीं दिखता। इसकी वजह ये है कि एक तो वे बेहद रिजर्व नेचर के हैं और दूसरा चुनावी राजनीति के दावपेच से पूर्णत: अनभिज्ञ। स्थानीय स्तर पर उनकी कुछ पकड़ भी नहीं है। उनका नाम गहलोत लॉबी में कहीं चर्चा में आया होगा ओर वहीं से पंख लगा कर चुनावी आसमान में घूम रहा है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बाकोलिया की दावेदारी दमदार तो उस पर सवाल भी कम वाजिब नहीं

आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर दक्षिण सीट के लिए अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया की दावेदारी यूं तो सशक्त और जायज है, मगर कांग्रेस नेता वैभव जैन ने जो सवाल उठाया है, वह भी दमदार तो है।  ज्ञातव्य है कि जैन ने हाल ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव व अजमेर प्रभारी सलीम भाटी की ओर से की गई रायशुमारी के दौरान कहा था कि बाकोलिया को उन्हें मेयर ही रहने दो। अभी उनके कार्यकाल के दो साल बाकी है। उन्हें विधायक का टिकट दिया तो कांग्रेस को वापस मेयर की कुर्सी नहीं मिल पाएगी।
अव्वल तो बाकोलिया को नैतिकता के आधार पर ही दावेदारी नहीं करनी चाहिए। उनके प्रति अजमेर की जनता ने मेयर के रूप में पूरे पांच साल के लिए विश्वास जाहिर किया है। उन्हें इस विश्वास को कायम रखते हुए मेयर के रूप में ही जिम्मेदारी निभानी चाहिए। वैसे भी यह अपने आप में ही बड़ा बचकाना और मौका परस्ती लगता है कि जिस मेयर का अभी दो साल का कार्यकाल बाकी हो, वह विधानसभा चुनाव देख कर टिकट के लिए लार टपकाए। यानि कि उसे जनता की सेवा से ज्यादा खुद के कैरियर की चिंता है।  यदि जनसेवा करनी है तो मेयर रह कर भी की जा सकती है। इस सिलसिले में मौजूदा भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल का उदाहरण दिया जा सकता है, मगर उन्हें भाजपा के पार्षदों ने चुना था। पार्टी ने उन्हें विधानसभा का टिकट दिया तो उससे पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि बहुमत के कारण उनके स्थान पर श्रीमती सरोज यादव को नगर परिषद का सभापति बना दिया गया। बाकोलिया अगर इस्तीफा देकर टिकट मांगते हैं तो स्पष्ट है कि मेयर का चुनाव दुबारा सीधे जनता के माध्यम से होगा। और चुनाव में दुबारा कांग्रेस जीते ही, ये जरूरी नहीं, क्योंकि अब माहौल और समीकरण पहले जैसा नहीं होगा । फिर जब खुद कांग्रेसी ही ये मानते हैं कि दुबारा चुनाव होने पर यह कुर्सी चली जाएगी, तो इस पर गौर करना ही चाहिए।
इसके अतिरिक्त जनहित की दृष्टि से भी मेयर का मध्यावधि चुनाव करवाना उचित नहीं, क्योंकि उस पर जो खर्च होगा, उसका भार अंतत: जनता पर ही पड़ेगा।
जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, अनुसूचित जाति के अन्य तबकों को ऐतराज हो सकता है कि अजमेर जिले की तीन महत्वपूर्ण कुर्सियां पहले से ही रेगर जाति के पास हैं। अजमेर नगर निगम की मेयर की कुर्सी पर बाकोलिया काबिज हैं ही, ब्यावर नगर परिषद की सभापति की कुर्सी पर मुकेश मौर्य और पुष्कर नगर पालिका अध्यक्ष की कुर्सी पर श्रीमती मंजू कुर्डिया बैठी हैं। तो क्या ऐसे में अजमेर दक्षिण की सीट भी रेगर समाज को ही दी जानी चाहिए? यदि अधिसंख्य महत्वपूर्ण सीटें रेगर समाज ही ले जाएगा तो कोली बहुल अजमेर दक्षिण इलाके के कोलियों का क्या होगा?
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि इस इलाके में सर्वाधिक वोट कोलियों के माने जाते हैं। उनके अतिरिक्त मेघवाल, भांभी, बलाई व बैरवा हैं। इस सभी जातियों का रुझान कांग्रेस की ओर ही रहता है, हालांकि श्रीमती भदेल के विधायक बनने के बाद कोलियों में विभाजन हुआ है। मुस्लिमों का झुकाव भी कांग्रेस की ओर ही माना जाता है। यहां भाजपा के वोट बैंक सिंधी, माली व वैश्य माने जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कारण कुछ माली जरूर कांगे्रस में हैं।
जहां तक बाकोलिया की दावेदारी का सवाल है, वह काफी दमदार नजर आती है। असल में उनकी नजर सिंधी वोटों पर भी है, जिनके दम पर वे मेयर का चुनाव जीत गए थे। ज्ञातव्य है कि उन्हें मेयर का टिकट देने का आधार ही ये था कि वे अजमेर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और पांच बार नगर पालिका अजमेर के पार्षद रहे स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र हैं, जिन्होंने आजादी के बाद बजमेर में सिंध प्रांत से आए विस्थपितों को पुन: बसाने व मुआवजा दिलाने में महती भूमिका निभाई। वे मूलत: सिंध के रहने वाले थे और उन्हें सिंधी ही माना जाता था। आज भी कई पुराने सिंधी बाकोलिया को स्वर्गीय जटिया की वजह से सिंधी ही मानते हैं। मेयर के चुनाव में उन्होंने इस धारणा को भुनाया भी। इस प्रकार वे ऐसे अकेले दावेदार हैं, जो अनुसूचित जाति से होते हुए भी सिंधी जनाधार रखते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 17 अगस्त 2013

क्या मायने हैं हेमंत भाटी की इस सक्रियता के?

हालांकि अजमेर के जाने-माने उद्योगपति व समाजसेवी हेमंत भाटी ने कभी सक्रिय व चुनावी राजनीति के प्रति अपनी महत्वाकांक्षा सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं की है, मगर पिछले दिनों उनकी सक्रियता ने लोगों को यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि कहीं वे इस बार चुनाव लडऩे का मानस तो नहीं बना रहे।
आपको याद होगा कि हाल ही जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथों कोली वीरांगना झलकारी बाई स्मारक का लोकार्पण करवाया गया तो भाजपा से निकटता के बावजूद उन्होंने समाज की ओर से अपनी सक्रियता दिखाई। न केवल अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दिए, अपितु समाज को कार्यक्रम में शिरकत करने की अपील भी की। उनकी पहल पर दिए गए विज्ञापनों में हालांकि स्मारक बनाने का श्रेय भाजपा को दिया गया, मगर एक विज्ञापन में साफ तौर पर इसके लिए उनकी ओर से किए प्रयासों को हाईलाइट किया गया।
इसके बाद हाल ही उनका जन्म दिन आया तो जैसे ही अखबारों में बधाई के नाते पूरे पेज के विज्ञापन सहित अन्य विज्ञापन देखे तो लोगों का ध्यान आकर्षित हुए बिना नहीं रह सका। जन्मदिन भी भव्य तरीके से मनाया गया।
कुल मिला कर उनकी इस सक्रियता ने लोगों को उनके अगले कदम बाबत सोचने को मजबूर कर दिया है। मुंड़े मुंडे मतिभिन्ना। जितने मुंह, उतनी बातें। कोई कहता है कि मौजूदा विधायक श्रीमती अनिता भदेल को दो बार जितवाने के बाद अब उनकी भी महत्वाकांक्षा जाग गई है। दूसरी ओर सूत्र बताते हैं कि उन्हें अजमेर के कांग्रेसी सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट ने अजमेर दक्षिण की टिकट देने का ऑफर दिया है। राजनीति की समझ रखने वाले मानते हैं कि अगर वाकई उनके मन में विधायक बनने की इच्छा दबी हुई है तो इससे अच्छा मौका हो नहीं सकता।  अगर भाजपा उन्हें टिकट देती है तो उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा सकती है, क्योंकि कांग्रेस बुरी तरह से फूट की शिकार है। और अगर कांग्रेस का टिकट हासिल करते हैं तो भी वे भारी पड़ेंगे। वजह ये कि जिस जातीय और गुट के दम पर मौजूदा विधायक श्रीमती अनिता भदेल जीतती हैं, वह उनके सामने हेमंत भाटी के आने से पूरी तरह से खिसक जाएगा। भाजपा के पास फिलहाल अनिता से बेहतर विकल्प है नहीं। अगर डॉ. प्रियशील हाड़ा को माना जाए तो वे मेयर का चुनाव हार जाने के बाद हारे हुए जुआरी की श्रेणी में गिने जाते हैं। वैसे हेमंत को जानने वाले कहते हैं कि जैसा उनका मिजाज है, वे एकाएक अनिता को धोखा नहीं देंगे, मगर दूसरी ओर राजनीति का मिजाज ये कहता है कि कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।
-तेजवानी गिरधर

वरना भगत होते एडीए के अध्यक्ष

सरकार ने मौजूदा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अपनी घोषणा पर अमल करते हुए अजमेर नगर सुधार न्यास को अजमेर विकास प्राधिकरण में तब्दील कर दिया। साथ ही तुरत-फुरत में इसका अध्यक्ष जिला कलेक्टर वैभव गालरिया को बना दिया। इस मौके पर न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत उस दिन को कोस रहे होंगे, जब एंटी करप्शन ब्यूरो ने उनके खिलाफ लैंड फॉर लैंड मामले में रिश्वत मांगने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था। यह मुकदमा दर्ज न होता तो उन्हें न्यास अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं देना पड़ता और न्यास के प्राधिकरण का रूप धारण करते ही उसके पहले अध्यक्ष भी वे ही बनते। हालांकि ब्यूरो के मुकदमे की नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली चाल से लगता नहीं कि भगत को कोई बहुत बड़ी सजा मिलेगी, मगर मुकदमे के चलते वे न केवल प्राधिकरण के प्रथम अध्यक्ष बनने के गौरव से वंचित हो गए, अपितु विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की कांग्रेस टिकट भी लटकी सी लगती है।
हालांकि समझा जाता था कि सरकार जातीय संतुलन बैठाने के मद्देनजर इस पद पर वेश्य अथवा सिंधी को अध्यक्ष पद पर बैठाएगी, ताकि विधानसभा चुनाव में दूसरे वर्ग को राजी किया जा सके। कहने की जरूरत नहीं है कि अजमेर उत्तर की सीट को लेकर पिछले चुनाव से सिंधी बनाम वेश्य का झगड़ा चल रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि इस सरकार के कार्यकाल को सीमित समय बच जाने के कारण इस पद पर नियुक्ति से परहेज रखा गया है, मगर दूसरी ओर कुछ का मानना है कि सरकार ने एक अच्छा मौका गंवा दिया है। अब कांग्रेस के पास टिकट वितरण के समय किसी एक समुदाय को लॉलीपोप देने के सिवाय कोई चारा नहीं रह गया है। हां, कांग्रेस सरकार फिर आएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। वैसे इतना तो स्पष्ट है कि  अगर कांग्रेस ने अजमेर उत्तर में सिंधी या गैर सिंधी में एक वर्ग के व्यक्ति को टिकट दिया तो सरकार बनने पर दूसरे वर्ग के वर्ग के नेता को मौका मिलेगा। यानि कि जातीय संतुलन के लिहाज से यह पद काफी महत्वपूर्ण है। ज्ञातव्य है कि सामान्य वर्ग के लोगों को यह तकलीफ लंबे समय से रही है कि अजमेर शहर की एक सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है तो दूसरी अघोषित रूप से सिंधियों के लिए, रही सही कसर निगम मेयर का पद भी रोटेशन में अनुसूचित जाति को मिल गया है, ऐसे में उनके लिए चुनावी राजनीति का कोई भी विकल्प नहीं है। जहां तक अनुसूचित जाति के नेताओं का सवाल है, उनकी मांग रही है कि कम से कम एक बार तो उनको न्यास, जो कि अब प्राधिकरण बन गया है, में मौका मिलना चाहिए, मगर यह संभव इस कारण नहीं है कि उनके पास पहले से ही एक विधानसभा सीट और मेयर की कुर्सी है।
बात अगर पहले अध्यक्ष वैभव गालरिया की करें, तो उन्हें यह मौका इस कारण मिला कि वर्तमान में संभागीय आयुक्त का पद रिक्त चल रहा है और उसका अतिरिक्त कार्यभार आईजी स्टांप रामजीलाल मीणा संभाल रहे हैं। गालरिया ने भले ही पदभार संभालते ही मैट्रो सिटी बनाने सहित बड़े बड़े सब्ज बाग दिखाए हैं, मगर सब जानते हैं कि इस सरकार के दौरान तक तो इसका ढ़ांचा बनाने और नियुक्तियों में ही बीत जाएगा। जो भी विकास कार्य होंगे, वे अगली सरकार के दौरान ही होंगे। मगर इतना पक्का है कि प्राधिकरण बनने के बाद वाकई अजमेर के विकास को पंख लग जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर

बुधवार, 14 अगस्त 2013

पहले मैदान छोड़ कर भाग चुके हैं जस्टिस इसरानी

हाल ही आगामी विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर सीट के कांग्रेस टिकट के लिए जस्टिस इंद्रसेन इसरानी का नाम उभर कर आया है। कहने की जरूरत नहीं है कि वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं और चूंकि पूर्व न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत का टिकट कटा हुआ माना जा रहा है, इस कारण अनेक सिंधी दावेदारों के बीच उनके नाम में तनिक गंभीरता नजर आती है। हालांकि अभी उन्होंने अपनी ओर से दावेदारी की इच्छा जताई है या नहीं, पता नहीं, मगर उनका नाम आने से अन्य सिंधी दावेदारों को सांप सूंघ गया है। उन्हें ये पता नहीं है कि वे इससे पहले एक बार अजमेर से चुनाव लडऩे का मानस बना चुके हैं, मगर अपनी छोटी सी भूल की वजह से उन्हें दावेदारी करने से पहले ही मैदान छोड़ कर भागना पड़ा था।
आपको बता दें कि तत्कालीन राजस्व मंत्री स्वर्गीय श्री किशन मोटवानी के निधन के कारण हो रहे 202 के उपचुनाव में मैदान खाली देख कर उनका मन इस सीट के लिए ललचाया था। इसके लिए उन्होंने अपने करीबी दैनिक हिंदू के संपादक हरीश वरियानी के माध्यम से अजमेर की कुछ सिंधी कॉलोनियों में बैठकें कर जमीन तलाशी थी। उनका स्वागत भी हुआ। यहां तक कि उन्होंने तब स्वर्गीय नानकराम जगतराय से भी मुलाकात की थी। चूंकि तब तक नानकराम को यह कल्पना भी नहीं थी कि उन्हें टिकट मिलेगा, इस कारण उन्होंने अपना समर्थन देने का आश्वासन भी दिया था। ज्ञातव्य है कि उस उपचुनाव में नानकराम को टिकट मिला और वे जीते भी।
बहरहाल, जानकारी के अनुसार अपने अजमेर प्रवास के दौरान उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की। उसमें असावधानी के चलते उनके मुंह से कुछ ऐसा बयान निकल गया, जिसका अर्थ ये निकलता था कि सिंधी तो भाजपा के गुलाम हैं, उस पर बवाल हो गया। भाजपा से जुड़े सिंधी संगठनों ने उनके इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। इस पर माहौल बिगड़ता देख कर उन्होंने दावेदारी का मानस ही त्याग दिया। उस दिन के बाद कम से कम इस सिलसिले में तो वे अजमेर नहीं आए। अब जब कि एक बार फिर मैदान खाली है तो उनका नाम फिर उछल रहा है। पता नहीं उन्होंने दावेदारी की इच्छा जताई है या नहीं, मगर उनका नाम उछलने से सहसा पुराना वाकया जिंदा हो गया है।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

शहर कांग्रेस में नियुक्त होगा कार्यवाहक अध्यक्ष

ऐसी चर्चा है कि अजमेर शहर जिला कांग्रेस में जल्द ही कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त करने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। बताया जाता है कि ऐसा दो वजह से किया जाना प्रस्तावित है। एक तो कई दावेदारों को ऐतराज है कि जब खुद शहर अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता ही दावेदार हैं तो दावेदारों के पैनल में निष्पक्षता की कैसे उम्मीद की जा सकती है। दूसरा ये कि रलावता को किशनगढ़ से चुनाव लड़ाया जा सकता है।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं के यह चर्चा आम है कि जल्द ही ललित भटनागर को वरिष्ठ उपाध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा। उनकी नियुक्ति की घोषणा लगभग तय थी, मगर अज्ञात कारणों से ऐन वक्त पर घोषणा को रोक दिया गया। अपनी नियुक्ति को लेकर ललित भटनागर तो इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने मीडिया में अपनी फोटो व अपना राजनैतिक विवरण भी भिजवा दिया। यदि रलावता को चुनाव लड़ाने का निर्णय हुआ तो भटनागर को कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया जाएगा। इसके लिए उनके भाई प्रियदर्शी भटनागर ने जबरदस्त लॉबिंग की है। ललित की नियुक्ति संबंधी पत्र प्रदेश प्रवक्ता अर्चना शर्मा की मौजूदगी में तैयार हो गया और प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान के पास हस्ताक्षर होने को भी गया, मगर न जाने क्यों जारी होने के लिए बाहर नहीं आया।
के्रडिट लेने के लिए पायलट का दफ्तर सक्रिय
शहर कांग्रेस कमेटी में हाल ही में शामिल नए पदाधिकारियों में से अधिसंख्य के अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट विरोधी खेमे के होने के कारण यह संदेश जा रहा था कि संतुलन के लिए कमेटी में पायलट विरोधियों को शामिल किया जा रहा है, जिसकी कि पायलट तक को जानकारी नहीं है। पायलट विरोधी लॉबी भी शहर में यही प्रचार कर रही थी कि नई नियुक्तियों से पायलट का कोई लेना-देना नहीं है। जैसे ही इसकी जानकारी पायलट के दफ्तर को हुई, वह सक्रिय  हो गया। नई नियुक्ति पाने वाले नेताओं को पायलट के दफ्तर से टेलीफोन पर यह कहा गया कि उन्हें पायलट की सिफारिश पर बनाया गया है। उधर रलावता को संदेश दिया गया कि नए पदाधिकारियों को बुलवा कर उनका स्वागत किया जाए, ताकि यह साफ संदेश जाए कि नए नियुक्त होने वाले बाकायदा पायलट की जानकारी में ला कर ही नियुक्त किए जा रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि अपुन ने तो इसी कॉलम में पहले ही लिख दिया था कि पायलट की जानकारी में ला कर नियुक्तियां की जा रही हैं, जो कि पायलट के साथ पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के बीच हुए पैक्ट का ही हिस्सा हैं।
-तेजवानी गिरधर

सचिन के साथ पैक्ट में जयपाल को क्या मिलेगा?

अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट और उनके धुर विरोधी पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल के बीच हुए पैक्ट के तहत शहर कांग्रेस में हो रही नई नियुक्तियों के साथ ही यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि इसके एवज में डॉ. जयपाल को क्या मिलेगा? क्या वे केवल अपने शागिर्दों के नाम जुड़वाने से ही संतुष्ट हो जाएंगे, या फिर उन्हें भी कुछ हासिल होगा?
कयास ये लगाया जा रहा है कि उन्हें नागौर जिले की मेड़ता विधानसभा सीट का टिकट दिया जा सकता है। इसकी वजह ये बताई जा रही है कि अजमेर दक्षिण से उन्हें टिकट दिए जाने की संभावना कम है, क्योंकि वे पिछली बार यहां से हार गए थे। हार का अंतर भी काफी था। भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल ने उनको 19 हजार 306 मतों से पराजित किया। हार की एक बड़ी वजह कांग्रेस के बागी व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी पूर्व उप मंत्री ललित भाटी का 15 हजार 610 वोट काटना रहा। अगर किसी सूरत में जयपाल को अजमेर दक्षिण का टिकट देना भी पड़ा तो साथ ही भाटी को भी कुछ न कुछ दे कर राजी किया जाएगा, जिन्हें कि पायलट अपने चुनाव में वापस पार्टी में लाए थे और उसका लाभ मिला भी। भाटी को शामिल करने का फायदा ये रहा कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में जो 19 हजार 306 मतों की बढ़त मिली थी, वह तो सिमटी ही, उलटा भाजपा 2 हजार 157 मतों से पिछड़ गई। भाटी तभी से पायलट खेमे में ही चल रहे हैं। इसका इनाम उन्हें मिलेगा ही।
संभव ये भी है कि जयपाल को सरकार बनने पर अजमेर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाए जाने का लालच दिया गया हो। और आखिरी विकल्प ये उन्हें शहर कांग्रेस का ही अध्यक्ष बना दिया जाए। ये सारे विकल्प खुले हुए हैं। कुल मिला कर तय है कि डॉ. जयपाल को उनकी ताकत के मुताबिक कुछ न कुछ जरूर दिया जाएगा, तभी ये पैक्ट कायम रह पाएगा।
-तेजवानी गिरधर

सोमवार, 12 अगस्त 2013

पैनल धरे रह जाएंगे, टिकट तो ऊपर ही फायनल होंगे

इन दिनों में विधानसभा चुनाव का टिकट हासिल करने के लिए कांग्रेस के दावेदार येन-केन-प्रकारेन अपने-अपने नाम ब्लॉक अध्यक्षों की ओर से बनाए जा रहे पांच-पांच दावेदारों के पैनल में जुड़वाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। वजह ये है कि यह पहले से प्रचारित किया गया है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर हाईकमान की बजाय ब्लॉक स्तर पर तैयार किए गए पैनल को ही तवज्जो दी जाएगी। वहीं जानकार लोगों का कहना है कि ये पैनल ऐसे के ऐसे धरे रह जाएंगे और टिकटों की कवायद गोपनीय रिपोर्टों के आधार पर ही की जा रही है। उसमें बेदाग छवि व सर्वमान्यता व जिताऊ पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित है।
बताया जाता है कि ब्लॉग स्तर पर की जा रही कवायद मूलत: निचले स्तर पर पार्टी को सक्रिय करने के मकसद से की जा रही है, जिसका टिकट वितरण से कोई लेना-देना नहीं है। हाईकमान जानता है कि पार्टी के निचले स्तर के नेताओं का कल्चर क्या है और वे पैनल बनाने में किन-किन बातों से प्रभावित हो सकते हैं। यही वजह है कि दावेदारों से सीधे प्रदेश कांग्रेस कमेटी तक भी दावा पेश करने की व्यवस्था की गई है, ताकि कहीं गंभीर दावेदार वंचित न रह जाएं।
जहां तक अजमेर का सवाल है, यहां के चारों ब्लॉकों के अध्यक्ष स्थानीय बड़े नेताओं के इतने दबाव में हैं कि उन्होंने गुण-दोष का परीक्षण किए बिना ही उनके नाम पैनल में डाल दिए हैं। वे किसी भी बड़े नेता को नाराज नहीं करना चाहते। मीडिया में आ रही खबरों का सही मानें तो अजमेर उत्तर में महेन्द्र सिंह रलावता, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व नरेन शहाणी के नाम पहले तीन स्थानों पर हैं। बाकी के दो स्थान ब्लॉक अध्यक्षों ने अपने-अपने हिसाब से तय किए हैं।  इकलौते सुकेश कांकरिया ऐसे हैं, जो दोनों ब्लॉकों के पैनल में नाम जुड़वाने में कामयाब हो गए हैं। उनके अतिरिक्त एक में सुनिल मोतियानी तो दूसरे में रश्मि हिंगोरानी नाम जुड़वाने में कामयाब हो गए हैं। बात अजमेर दक्षिण की करें तो दोनों ब्लॉकों में ललित भाटी, डॉ. राजकुमार जयपाल व कमल बाकोलिया के नाम कॉमन हैं। विजय नागौरा भी दोनों ब्लॉकों में नाम जुड़वाने में कामयाब रहे हैं। बाकी एक में छीतरमल टेपण ने तो दूसरे में प्रताप यादव ने स्थान पाया है। हालांकि ये पता नहीं है कि जो पैनल मीडिया में आ रहे हैं, वाकई वे ही बनाए गए हैं, क्योंकि ब्लॉक अध्यक्ष अधिकृत तौर पर कुछ कह ही नहीं रहे। शक तो ये भी होता है कि कहीं छोटे दावेदार मीडिया का तो मैनेज नहीं कर रहे। यह संदेह इस कारण होता है कि एक दिन अजमेर उत्तर के लिए विन्नी जयसिंघानी का नाम पैनल में बताया गया तो दूसरे दिन वह गायब हो गया।
जो कुछ भी हो, ये साफ है कि पैनल बनाने में कोई गंभीरता नहीं दिखाई देती। इसी कारण पैनलों में नाम जुड़वाने वाले दावेदारों ने जयपुर से दिल्ली तक तार जोडऩे की कवायद शुरू कर दी है। उन्हें ऊपर मिल रहे रेस्पांस से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि टिकट फायनल करने में नीचे बनाए गए पैनल साइड में कर दिए जाएंगे। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि यदि ब्लॉक व जिला स्तर पर तैयार पैनल पर ही विचार होना है, तो ऊपर अलग से कवायद काहे को हो रही है। इसका अर्थ ये है कि जिसे टिकट देना होगा, उसे दिया ही जाएगा, चाहे उसका नाम पैनल में हो या नहीं। और जिसे नहीं देना होगा, उसे यह कर टरका दिया जाएगा कि आपका नाम तो नीचे से आया ही नहीं है। इसी कारण समझदार दावेदार न केवल नीचे पूरा ध्यान दे रहे हैं, अपितु ऊपर भी मैनेज कर रहे हैं।
टिकट को लेकर कितनी मारामारी है, इसका अनुमान इसी बात से लगता है कि अजमेर के दो विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस से 129 दावेदार सामने आए हैं। जाहिर तौर पर इनमें ऐसे भी शामिल हैं, जिनका सक्रिय राजनीति से दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा है।
कुल मिला कर स्थानीय भाग-दौड़ के बाद दावेदारों का मेला जयपुर व उसके बाद दिल्ली में लगेगा। तब तक कई नाम ऊपर आएंगे और कई नीचे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

पार्षद का मिला नहीं, एमएलए का टिकट मांग लिया

चुनावी मौसम में टिकट मांगने की बीमारी इतना जोर पकड़ लेती है, जिसका कोई जवाब नहीं। अपने राज दरबार अगरबत्ती वाले राजकुमार लुधानी को ही लीजिए। उन्होंने पिछले नगर निगम चुनाव में पार्षद का टिकट मांगा था। एडी चोटी का जोर लगा दिया। मगर किसी ने नहीं गांठा। मन मसोस कर बैठ गए। जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आए हैं, उनकी टिकट मांगने की खुजली फिर शुरू हो गई है। उन्होंने अजमेर उत्तर के टिकट के लिए आवेदन किया है। जैसे ही उनका नाम आया तो उसी के साथ उनका एसीबी के लपेटे में आने का प्रकरण भी सामने आ गया। ऐसे में उन्हें कुछ नहीं सूझा तो अपनी बेटी हर्षा को आगे कर दिया। यानि कि टिकट चाहिए ही, किसी भी सूरत में। मानो डाक्टर ने सलाह दी हो। सोचने वाली बात ये है कि जब उन पर कोई आरोप नहीं था, साफ सुथरी छवि थी, तब पार्षद तक का टिकट नहीं मिला तो अब आरोप लगने के बाद क्या कद्दू मिलेगा। मगर भला उन्हें मांगने से कौन रोक सकता है? असल में यह स्थिति आई ही इस कारण है कि नगर सुधार न्यास के पूर्व सदर नरेन शहाणी भगत के लैंड फॉर लैंड मामले में रिश्वत मांगने के आरोप में मामला दर्ज होने के बाद हर पैसे और बिना पैसे वाले सिंधी को लगता है कि मैदान खाली है, हाथ मार लो।
ज्ञातव्य है कि अजमेर उत्तर की सिंधी बहुल सीट से टिकट मांगने वाले सिंधियों की लिस्ट लंबी है, जिसमें लुधानी व उनकी बेटी हर्षा सहित डॉ. लाल थदानी, नरेश राघानी, हरीश मोतियानी, सुनील मोतियानी, रश्मि हिंगोरानी, दिलीप सामनानी, अशोक मटाई, विनी जयसिंघानी, जोधा टेकचंदानी, चंद्र कुमार, पिंकी वासनानी, शिव कुमार भावनानी आदि के नाम शामिल हैं।

उपेक्षा का शिकार है मध्य पुष्कर

पुष्कर के वरिष्ठ पत्रकार श्री नाथू शर्मा की फेसबुक वाल पर अंकित यह चित्र तीर्थराज पुष्कर स्थित मध्य पुष्कर का है, जिसकी हालत देख की अनुमान लगाया जा सकता है कि यह उपेक्षा का शिकार है।
प्रसंगवश बता दें कि पद्मपुराण के सृष्टि खंड के अनुसार किसी समय वज्रनाभ नामक एक राक्षस इस स्थान में रह कर ब्रह्माजी के पुत्रों का वध किया करता था। ब्रह्माजी ने क्रोधित हो कर कमल का प्रहार कर इस राक्षस को मार डाला। उस समय कमल की जो तीन पंखुडिय़ां जमीन पर गिरीं, उन स्थानों पर जल धारा प्रवाहित होने लगी। कालांतर में ये ही तीनों स्थल ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर के नाम से विख्यात हुए। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्मा, मध्य के विष्णु व कनिष्ठ के देवता शिव हैं।
आम तौर पर हम जिसे तीर्थराज पुष्कर सरोवर के नाम से जानते हैं, असल में वह ज्येष्ठ पुष्कर है। इसके अतिरिक्त मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर भी हैं। कनिष्ठ पुष्कर वह है, जिसे कि बूढ़ा पुष्कर के नाम से जाना जाता है, जिसका जीर्णोद्धार वर्ष दो हजार आठ में राज्य की वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में राजस्थान पुरा धरोहर संरक्षण न्यास के अध्यक्ष श्री औंकारसिंह लखावत ने करवाया। कांग्रेस सरकार ने उसे जैसा है, वैसी ही हालत में छोड़ दिया और उसके विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया। यानि की वह अब सरकारी उपेक्षा का शिकार है। ठीक उसी प्रकार मध्य पुष्कर की देखरेख पर भी सरकार का कोई ध्यान नहीं है।

रविवार, 11 अगस्त 2013

आखिर आ ही गए रलावता की छतरी के नीचे

हाल ही शहर जिला कांग्रेस कमेटी में जिस तरह से अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के धुर विरोधी गुट के नेताओं को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया है, ये सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या ऐसा सचिन से पूछे बिना ही किया जा रहा है? इतना तो तय है कि यह ताजा कवायद कमजोर शहर कांग्रेस कमेटी को मजबूत करने और नाराज नेताओं को राजी करने के लिए की जा रही है, मगर नियुक्ति पाने वाले इसकी क्रेडिट जिस तरह सचिन को देने को तैयार नहीं हैं, उससे प्रतीत होता है इन नियुक्तियों के बारे में सचिन को जानकारी तक नहीं दी जा रही। ज्ञातव्य है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान ने हाल ही कमेटी में सचिन के प्रति नाराजगी रखने वाले दिनेश शर्मा व विजय यादव को महामंत्री और कुलदीप कपूर व फकरे मोईन को उपाध्यक्ष बनाया है। इनमें यादव, कपूर व मोईन तो पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल खेमे के हैं। यहां रखांकित करने वाली बात ये है कि इससे पहले अजमेर के मामले में प्रदेश स्तर का कोई भी नेता सचिन की वजह से बोलने को तैयार नहीं होता था। इसी कारण कांग्रेसियों में अजमेर को केन्द्र शासित अर्थात सचिन शासित कहा जाता था।
ताजा बदलाव को लेकर सचिन विरोधियों को भले ही यह कहने का मौका मिल गया हो कि वे अपने दम पर नियुक्ति पत्र ले कर आए हैं और इस बहाने यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि सचिन अब कमजोर हो गए हैं, मगर जानकार लोगों का मानना है कि ऐसा सचिन की जानकारी में ला कर ही किया जा रहा है। अपुन ने तो कुछ दिन पहले ही इसी कॉलम में लिख दिया था कि बीते एक माह में स्थानीय कांग्रेस के बदले समीकरणों के चलते पायलट नए सिरे चौसर बिछाने जा रहे हैं। वजह साफ है। पिछले काफी समय से शहर कांग्रेस कमेटी के प्रति शहर के कांग्रेसियों के एक बड़े धड़े की नाराजगी चल रही है। और सचिन भी जान गए हैं कि चुनावी साल में डेमेज कंट्रोल करना जरूरी है। विशेष रूप से पिछले दिनों लैपटॉप वितरण के सिलसिले में गहलोत के अजमेर आने पर शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता के ऐन मौके पर भीड़ जुटाने में असमर्थता जताने और पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, पार्षदों व मंडल अध्यक्षों के अतिरिक्त शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अखतर इंसाफ के प्रयासों सभा को सफल बनाने के बाद यह साफ दिखने लगा था कि पायलट नए सिरे से चौसर बिछाएंगे। इसके चलते वे नाराज गुटों को भी सामंजस्य बैठा कर चलने की कोशिश में जुट गए हैं। ताजा नियुक्तियां इसी का नतीजा हैं। इन नियुक्तियों से जयपाल मजबूत हो कर उभरे हैं।
जहां तक नियुक्ति पाने वालों का सवाल है तो वे भले ही इसे अपनी जीत समझें मगर एक अर्थ में यह हार ही है। वो इसलिए कि पूरे चार साल तक तो वे निर्वासित जीवन बिता रहे थे और अब जा कर उनको तवज्जो मिली है, मगर वह भी रलावता की छतरी के नीचे। सवाल उठता है कि क्या शुरुआत में रलावता उन्हें इन्हीं पदों से नवाजते तो वे उसे स्वीकार कर लेते? बेशक, इसका जवाब ना में ही होगा। वजह ये है कि तब उन्हें जसराज जयपाल का हटना इतना नागवार गुजरा था कि वे रलावता को अध्यक्ष मानने को ही राजी नहीं थे। भले ही अब ये कहा जाए कि रलावता अब मनमानी नहीं कर पाएंगे, मगर यह क्या कम बात है कि वे रलावता को अध्यक्ष मानने को तो राजी हुए हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

सचिन ने दिए चौधरी के बारे में न बोलने के निर्देश

सचिन पायलट
खबर है कि अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट ने स्थानीय कांग्रेस पदाधिकारियों को साफ निर्देश दिए हैं कि वे अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी का न तो विरोध करें और न ही उनके खिलाफ कोई बयानबाजी करें। इसके पीछे वजह एक मात्र ये है कि उन पर कांग्रेस हाईकमान की ओर से अजमेर जिले की सभी सीटों पर में अधिकांश जीतने का दबाव है। इसके अतिरिक्त आगामी लोकसभा चुनाव में को देखते हुए भी उनका सारा ध्यान इस बात पर है कि किसी भी प्रकार विरोधी न उभरने पाएं। इसी कड़ी में पायलट ने अपने चेलों से कह दिया है कि वे चौधरी के मामले में चुप ही रहें, चूं-चपड़ न करें। ज्ञातव्य है कि चौधरी ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रदेश प्रभारी गुरुदास कामत की मौजूदगी में ही सचिन के साथ मुंहजोरी की थी। इससे पूर्व भी राहुल गांधी के सामने अपना विरोध दर्ज करवाया था। इस पर स्थानीय कांग्रेसियों ने एकजुट हो कर चौधरी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने की मांग कर डाली। हालांकि अधिसंख्य लोगों का मानना है कि चौधरी का यह विरोध सचिन के कहने से ही हुआ, लेकिन कुछ जानकार मानते हैं कि सचिन की चमचागिरी में नंबर लेने के चक्कर में स्थानीय कांग्रेसियों ने अपने स्तर पर ही निर्णय ले कर चौधरी के कपड़े फाडऩे शुरू किए थे। ताजा जानकारी है कि सचिन अब पूरी तरह से डेमेज कंट्रोल में जुटे हुए हैं और उसी के तहत वे चौधरी से गिले शिकवे दूर करने की एक्सरसाइज कर रहे हैं।
आपको बता दें कि चौधरी की सचिन से नाराजगी के कुछ ठोस कारण हैं। आपको याद होगा कि जब विधानसभा चुनाव में निर्दलीय ब्रह्मदेव कुमावत की वजह से चौधरी मसूदा में हारे थे, मगर चूंकि अशोक गहलोत को सरकार बनाने के लिए कुमावत की जरूरत हुई तो उन्होंने उन्हें संसदीय सचिव बना कर सेट किया। यह चौधरी को नागवार गुजरा। हालत ये हुई कि एक सार्वजनिक समारोह में सचिन की मौजूदगी में चौधरी व उनके समर्थकों ने कुमावत के खिलाफ हंगामा कर दिया। यह प्रकरण काफी दिन चला। बताया जाता है कि इस प्रकरण में सचिन ने कुमावत का साथ दिया, इस कारण चौधरी उनके खिलाफ हो गए। इसके अतिरिक्त चौधरी को इस बात की भी शिकायत थी कि सचिन उनके साथ अपेक्षित सम्मान के साथ बात नहीं करते थे, जबकि वे सचिन के पिता स्वर्गीय श्री राजेश पायलट के करीबी थे। चौधरी को इस बात की नाराजगी रही कि सचिन की वजह से ही संगठन में उनको कोई तवज्जो नहीं दी गई। मसूदा विधानसभा क्षेत्र में उनकी लॉबी का एक भी नेता पदाधिकारी नहीं बनाया गया।
बहरहाल, ताजा समीकरण ये बन रहे हैं कि सचिन उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने चौधरी से संवाद स्थापित करने की भी जुगत की है।
रामचंद्र चौधरी
उल्लेखनीय है कि अपुन ने इसी कॉलम में पहले ही लिख दिया था कि पायलट से खुला पंगा लेने वाले अजमेर देहात जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी को भले ही पायलट गुट के नेताओं ने चारों से ओर से घेर लिया है, मगर उन्हें निपटाना इतना आसान भी नहीं होगा। हांलाकि कांग्रेस एक समुद्र है और इसमें न जाने कितने रामचंद्र चौधरी आए और गए, साथ ही सचिन के सीधे राहुल गांधी से ताल्लुक भी हैं, मगर जहां तक स्थानीय राजनीति का सवाल है, चौधरी को नजरअंदाज करना हंसी खेल नहीं है। उसकी वजह ये है कि परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय क्षेत्र जाट बहुल हो गया है। माना जाता है कि अब यहां दो लाख से ज्यादा जाट मतदाता हैं। परिसीमन से पूर्व जब यहां सवा से डेढ़ लाख जाट वोट थे, तब भी जाट यहां दावेदारी करते थे। विशेष रूप से भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय श्री रामनिवास मिर्धा का नाम चर्चा में आता था। कांग्रेस ने एक बार जाट नेता जगदीप धनखड़ को भी चुनाव मैदान में उतारा था, मगर वे रावतों की बहुलता व उनका मतदान प्रतिशत अधिक होने के अतिरिक्त अपनी कुछ गलतियों की वजह से हार गए। अब जबकि परिसीमन के बाद जाटों की संख्या दो लाख को पार कर गई है, जाटों का दावा और मजबूत माना जाता है। इस सिलसिले में पिछले चुनाव में भी मांग उठी थी, मगर अपने प्रभाव के कारण करीब सवा लाख गुर्जर मतदाताओं के दम पर सचिन पायलट टिकट लेकर आ गए। इस बार लोकसभा चुनाव से एक साल पहले ही रामचंद्र चौधरी सचिन के खिलाफ झंडा बुलंद करने में लग गए हैं और स्थानीय की मांग पर अड़े हुए हैं। वैसे समझा जाता है कि उनकी रुचि लोकसभा चुनाव से अधिक विधानसभा चुनाव में है। कामत के सामने तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो वे लोकसभा चुनाव में सचिन के खिलाफ मैदान में उतर जाएंगे। खैर, देखते हैं कि विवाद समाप्त करने के लिए सचिन के प्रयास कामयाब हो पाते हैं या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

सी आर चौधरी ने बनाई भाजपा दावेदारों की गुप्त रिपोर्ट

एक जमाने में अजमेर के लोकप्रिय सिटी मजिस्ट्रेट रहे और बाद में राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए सी आर चौधरी इन दिनों भाजपा की सेवा में लगे हुए हैं। उन्होंने हाल ही अजमेर में भाजपा की स्थिति और दावेदारों की गोपनीय रिपोर्ट बनाई और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे को सौंप दी। ज्ञातव्य है कि वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे के विश्वासपात्रों में गिने जाते हैं। समझा जाता है कि भाजपा पर्यवेक्षकों की ओर से की गई रायशुमारी के साथ उनकी रिपोर्ट पर भी गंभीरता से विचार किया जाएगा।
जानकारी के अनुसार पिछले दिनों उन्होंने गुपचुप तरीके से अजमेर का दौरा किया और यहां अनेक नेताओं से मिल कर विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी की स्थिति और दावेदारों का सर्वे किया। बताया जाता है कि उन्होंने साफ कर दिया है कि यहां भाजपा में गुटबाजी है, इसके चलते चुनाव जीतने में दिक्कत आ सकती है। बताते हैं कि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि पार्टी में सिंधी-गैर सिंधीवाद भी जोर  पकड़ रहा है। इसके चलते पार्टी को नुकसान हो सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि वे अजमेर में सिटी मजिस्ट्रेट रहे हैं, इस कारण उन्हें अजमेर के बारे में पूरी जानकारी है और अच्छी तरह से पता है कि किस दावेदार में कितना दम है। आपको पता होगा कि आरएएस अधिकारियों में उनकी गिनती संजीदा व सूझबूझ वाले अधिकारियों में हुआ करती थी। अजमेर से सुपरिचित होने के कारण उन्हें सर्वे करने में कोई दिक्कत नहीं आई, क्योंकि अधिकांश नेताओं और उनकी धरातलीय हैसियत से वे पूर्णत: परिचित हैं। समझा जाता है कि उनके फीडबैक को गंभीरता से लिया जाएगा।
जानकारी ये भी है कि वे खुद भी विधानसभा चुनाव लडऩे का मानस बना रहे हैं। बताया जाता है कि वे नागौर जिले की परबतसर सीट से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। इसके अतिरिक्त उनकी अजमेर लोकसभा सीट पर भी है। ज्ञातव्य है कि अजमेर की सीट अब जाट बहुल है और यहां तकरीबन ढ़ाई लाख जाट वोटर हैं। एक ईमानदार अधिकारी के नाते उनकी समाज में अच्छी पहचान है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

सोमवार, 5 अगस्त 2013

नए सिरे से चौसर बिछाएंगे सचिन पायलट?

बीते एक माह में स्थानीय कांग्रेस के बदले समीकरणों के चलते संभव है अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट नए सिरे चौसर बिछाने जा रहे हैं, इस बात की प्रबल संभावना बताई जा रही है।
असल में यूं तो पिछले काफी समय से शहर कांग्रेस कमेटी के प्रति शहर के कांग्रेसियों के एक बड़े धड़े की नाराजगी चल रही है और इसकी जानकारी खुद पायलट को भी है। उनमें कुछ सीधे पायलट से नाइत्तफाकी के चलते शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता है तो कुछ रलावता से नाइत्तफाकी के चलते पायलट से। इसका परिणाम ये है कि अजमेर की कांग्रेस एकजुट नहीं है। इसका खामियाजा पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में आई कांग्रेस संदेश यात्रा के दौरान देखने को मिली। हालांकि आंधी-बारिश का बहाना बना कर गहलोत की सभा में कम लोग जुटने की बात कही गई, लेकिन अंदरखाने बड़े नेताओं को समझ में आ गया कि यह स्थिति कांग्रेस की फूट की वजह से बनी, जबकि पहली बार एक मंच पर पायलट व गहलोत के आने के कारण सारे गुट के नेता सभा में मौजूद थे। यह तो गनीमत रही कि आम कांग्रेसजन ने एक दिन पहले रैली निकाल कर जनता को जागृत किया, वरना भीड़ और भी कम होती।
इस सभा के बाद हाल ही जब लैपटॉप वितरण के सिलसिले में गहलोत अजमेर आए तो एक बार फिर यह समस्या आई कि यदि एकजुटता नहीं रही तो बड़ी सभा कैसे की जाएगी। जब शहर कांग्रेस अध्यक्ष रलावता ने ऐन मौके पर भीड़ जुटाने में असमर्थता जताई तो पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल, पार्षदों व मंडल अध्यक्षों के अतिरिक्त शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अखतर इंसाफ ने सभा का जिम्मा अपने ऊपर लिया। उन्होंने सभा को कामयाब करके भी दिखा दिया। इससे संदेश यह गया कि अजमेर में कांग्रेस का वर्चस्व तो है, बस केवल एकजुटता की कमी है। समझा जाता है कि पायलट को अब यह ठीक से समझ में आ गया है कि अगर यहां कांग्रेस को दुरुस्त करना है तो सभी गुटों को साथ लेकर चलना होगा, वरना आगामी विधानसभा चुनाव में दिक्कत आ सकती है।
ज्ञातव्य है कि अजमेर में रलावता के अतिरिक्त पूर्व न्यास अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत व निगम मेयर कमल बाकोलिया को पायलट खेमे का माना जाता है। ऐसी चर्चा है कि अब पायलट स्वयं यह कहने लगे हैं कि उनके अनुमान व चयन में कहीं न कहीं त्रुटि हुई है। जिनके पास जनाधार था, वे तो दूर हो गए, नतीजतन संगठन कमजोर हो गया। बताया जाता है कि अब पायलट नए सिरे से चौसर बिछाने का मूड बना रहे हैं। इसके चलते वे नाराज गुटों को भी सामंजस्य बैठा कर चलने की कोशिश में जुट गए हैं। बताया तो यहां तक जाता है कि पिछली कामयाब सभा का संबंध भी इसी कोशिश से जुड़ा हुआ है। जानकारी ये भी है कि संगठन को मजबूत करने के लिए पायलट की डॉ. जयपाल से बात भी हुई है। उसी के बाद से डॉ. जयपाल का रुख कुछ नरम पड़ा है। ताजा नए घटनाक्रम के बाद समझा जाता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की फिजां कुछ बदली बदली सी नजर आ सकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती है गहलोत साहब

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बड़ा मलाल है कि कांग्रेस लगातार दो बार अजमेर की दोनों सीटें कैसे हार गई। इसका इजहार उन्होंने बीते दिनों अपने अजमेर प्रवास के दौरान आजाद पार्क में आयोजित सभा में किया। उन्होंने बड़ी मासूमियत से जनता से सवाल किया कि हमें कैसे कामयाब करोगे? हम ऐसे क्या काम करें कि यहां से जीत सकें। आप लोग जो भी काम बताएंगे वो हम करेंगे। यानि के वे ये समझ रहे थे कि शायद अजमेर की कोई अपेक्षाएं रहीं होंगी, जो पूरी न होने के कारण जनता ने हरा दिया। हालांकि सहसा इस पर विश्वास होता नहीं कि वे जितनी मासूमियत से सवाल कर रहे थे, वे ठीक उतने ही अनजान थे कि उन्हें पता ही नहीं कि कांग्रेस दोनों बार हारी कैसे? फिर भी उन्हें अनजान मानते हुए ये खुला पत्र उनके नाम:-
माननीय मुख्यमंत्री जी
आपको पता हो न हो, मगर अजमेर की जनता शुरू से सहनशील रही है। मांगें उसकी बहुत हैं, मगर पूरी न होने पर वह उद्वलित नहीं होती। यह दे उसका भी भला और जो न दे उसका भी भला वाले सिद्धांत पर चलती है। आपकी सरकार भले ही इस आधार पर अजमेर के साथ पक्षपात करे कि यहां के दोनों विधायक भाजपा के हैं, मगर यह किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं है। यह इतनी स्वार्थी नहीं कि आप कुछ देंगे तो ही आपको जिताएगी। यह बहुत भोली है। अगर लेने-देने के आधार पर ही जिताती-हराती तो प्रो. रासासिंह रावत को बार-बार नहीं जिताती।
जहां तक आपकी अजमेर को कुछ देने की ऑफर है, देना तो दूर की बात है, अजमेर से तो अकसर छीनने की बातें हुआ करती हैं। कभी राजस्व मंडल का तो कभी राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के विखंडन के प्रयास। कहने की जरूरत नहीं है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। साथ ही 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया। मगर इन महत्वपूर्ण विभागों के साथ कई बार छेड़छाड़ हो चुकी है। ऐसे में पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल जैसे पुराने नेताओं को मजबूरन अजमेर को फिर से अलग राज्य की मांग करनी पड़ती है।
आप अजमेर को देने की बात करते हैं, पर क्या आपको पता है कि अंग्रेजों के जमाने में रेलवे का यहां जो साम्राज्य था, वह भी छिन्न-भिन्न किया जा चुका है। हालत ये है कि जब इसे जोनल मुख्यालय बनाने का मौका था तो यहां सभी जरूरी संसाधन होने के बाद भी उसे जयपुर स्थापित कर दिया गया।
कांग्रेस के हारने की असल वजह आपके कांग्रेसी ही हैं, जो एक-दूसरे के कपड़े फाड़ते रहते हैं। अगर केवल पिछले दो चुनावों की ही बात करें तो पिछली बार अजमेर दक्षिण से डॉ. राजकुमार जयपाल इसी वजह से हारे, क्योंकि पूर्व उप मंत्री ललित भाटी बागी बन कर खड़े हो गए थे। हालांकि आपने उन्हें बाहर निकाल दिया गया, मगर लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट की गरज के कारण उन्हें फिर से गले लगाना पड़ा। उनके लौटने पर सचिन को कितना फायदा हुआ, यह सब जानते हैं। अजमेर उत्तर में तो आपने खुद ही अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी। पूरा सिंधी समाज राज्य की दो सौ में से एक ही परपंरागत सीट के लिए अड़ा हुआ था, मगर आपने वैश्य समाज के दबाव में डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को उनकी पुरानी सीट पुष्कर की बजाय अजमेर उत्तर का टिकट दे दिया। नतीजा सामने आ गया। अजमेर उत्तर का असर दक्षिण पर भी पड़ा। भाजपा की अनिता भदेल की झोली वोटों से भर गई।
वर्ष 2003 की बात करें तो अजमेर दक्षिण, जो कि तब अजमेर पूर्व था, में ललित भाटी मजह इसी कारण हार गए कि डॉ. राजकुमार जयपाल की उनसे नाइत्तफाकी को आपने नजर अंदाज कर दिया। और अजमेर उत्तर, जो कि तब अजमेर पश्चिम था, में पूर्व विधायक नानकराम जगतराय ने नरेन शहाणी को लंगी मार दी। दरअसल आपने यह जुमला कह कर कि आपको एक सौ एक नानकरामों की जरूरत है, उनकी खोपड़ी को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया और वे अपने आपको इतना बड़ा जननेता मान बैठे कि कांग्रेस का टिकट न मिलने पर निर्दलीय ही कूद पड़े। परिणाम सामने आ गया।
अब तो आप समझ गए होंगे कि कांग्रेस की हार की वजह क्या है? असल में कांग्रेस भाजपा से नहीं हारती, वह कांग्रेसियों से ही हारती है। इस बार भी लगभग वैसे ही हालात हैं। यहां साफ तौर पर दो धड़े बने हुए हैं। एक सचिन का पिछलग्गू है तो दूसरा आपके आशीर्वाद से सचिन की छतरी के नीचे आने को तैयार नहीं। जब तक ये दोनों धड़े एक नहीं होंगे, कांग्रेस हार की कगार पर ही खड़ी रहेगी। चाहे आप अजमेर के लिए कुछ करें या नहीं।
समझता हूं कि आपको मेरी बात समझ में आ गई होगी।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

शनिवार, 3 अगस्त 2013

वसुंधरा को ऐतराज, मगर भाजपा पार्षद कर रहे हैं लूट के माल की पैरवी

एक ओर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर चुनावी मौसम में विभिन्न योजनाएं चलाने का यूं कह कर विरोध कर रही है कि सरकार वोटों की खातिर खजाना लुटा रही है तो दूसरी अजमेर के भाजपा पार्षद उसी लूट के माल की पैरवी कर रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि इन दिनों मुख्यमंत्री बिजली बचत लैंप योजना के तहत उन बीपीएल परिवारों को दो-दो फ्री सीएफएल दी जा रही है, जिनके नाम बीपीएल बिजली कनेक्शन में शामिल हैं। जाहिर तौर पर ऐसे बीपीएल परिवार, जो किराए के मकान में रहते हैं और उनके नाम बिजली कनेक्शन नहीं हैं, उन्हें सीएफएल नहीं मिल रही। इस पर भाजपा के पार्षदों को कड़ा ऐतराज है। वे उन्हें भी सीएफएल देने की मांग कर रहे हैं। इस सिलसिले में उन्होंने अजमेर विद्युत वितरण निगम के एमडी से मुलाकात भी की। उप मेयर राठौड़ ने तो यहां तक कहा कि बीपीएल ही नहीं, आम लोगों को भी सीएफएल मिलनी चाहिए। भागीरथ जोशी ने कहा कि किराए के मकान में रहने वाले बीपीएल के नाम बिजली कनेक्शन नहीं होता, उन्हें भी सीएफएल दें। जे के शर्मा ने कहा कि यदि सात दिनों में इस मसले पर फैसला नहीं हुआ तो आंदोलन किया जाएगा।
सवाल ये उठता है कि जब प्रदेश भाजपा की खेवनहार वसुंधरा इस प्रकार सरकारी खजाने को लुटाने पर ऐतराज कर रही हैं तो दूसरी ओर भाजपाई इसी लूट के माल के लिए पैरवी कैसे कर रहे हैं। यानि कि एक ओर तो लूट की योजनाओं पर सरकार को घेरा जा रहा है, दूसरी ओर सरकारी योजनाओं का लाभ भी लिया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि भाजपा पार्षदों ने सरकार की साड़ी वितरण व पेंशन योजना का भी भरपूर फायदा अपने-अपने वार्ड के लोगों को दिलवाया। यदि वाकई वसुंधरा राजे को ऐतराज है तो उसे जनता से अपील करनी चाहिए कि जनता लूट के माल को न ले।  साफ है कि एक ओर तो नीतिगत विरोध तो दूसरी ओर फायदे को छोडऩा भी नहीं चाहते। रहा सवाल सीएफएल वितरण का तो जाहिर है भाजपा यह जानती है कि जिन लोगों को सीएफएल मिल रही है, वे तो कांग्रेस के गुणगान गाएंगे, कम से कम उन लोगों की पैरवी कर उनका तो दिल जीता जाए, जो सीएफएल से वंचित हैं।
दूसरी ओर जब भाजपा की यह चाल पूर्व उप मंत्री ललित भाटी को समझ में आई तो उन्होंने तुरंत बयान जारी किया कि जो मांग आज भाजपा पार्षद कर रहे हैं, वह तो वे तो पहले से चुके हैं और उस पर सरकार सकारात्मक रुख अपना रही है। यानि कि वे उन लोगोंं को कांग्रेस के हाथ से नहीं जाने देना चाहते, जिनकी भाजपाई पैरवी कर रहे हैं।
अलबत्ता पार्षद नीरज जैन ने जरूर महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया कि कि जिस व्यक्ति का बिल 2 हजार आता है, उसे 6-7 हजार का बिल दिया जा रहा है, ऐसे में अल्प आय के लोग बिल भरे या परिवार को पालें। उनकी इस बात में भी दम है कि दरगाह बाजार क्षेत्र में ज्यादा बिजली चोरी होती है, वहां कार्रवाई की जानी चाहिए। सब जानते हैं कि उस इलाके में घुसने में तो अधिकारियों की रुह कांपती है।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

कांग्रेस में बढ़ते जा रहे हैं दावेदार, वीरभान अजवानी का नाम भी चर्चा में

लैंड फोर लैंड मामले में फंसने के कारण नगर सुधार न्यास के सदर पद से इस्तीफा देने के बाद नरेन शहाणी का विधानसभा टिकट कटा हुआ मानने के साथ कोई सशक्त सिंधी दावेदार न होने के मद्देनजर एक के बाद एक नए दावेदार सामने आ रहे हैं। हालांकि इस प्रकार की कानाफूसियों को तवज्जो देना मुनासिब तो नहीं लगता, मगर चर्चाओं पर चुप्पी भी पत्रकारिता के सिद्धांत के विपरीत मानते हुए उनकी जानकारी देना जरूरी लगता है, ताकि सनद रहे। कानाफूसी है कि सिंधी दावेदारों की लंबी होती फेहरिश्त में अब जीआरपी में तैनात आईएएस अधिकारी वीरभान अजवानी का नाम भी शामिल हो गया है। बताया जाता है कि अजमेर के सासंद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट किसी उपयुक्त सिंधी दावेदार की तलाश में लगे हुए हैं, जो कि पढ़ा-लिखा होने के साथ नया चेहरा व साफ-सुथरी छवि का हो। हालांकि इसकी पुष्टि करना कठिन है, फिर भी चर्चा है कि पिछले दिनों पायलट ने उनका बायोडाटा मंगवाया था। मजे की बात ये है कि अजवानी के दावेदार होने की कानाफूसी कांग्रेस से ज्यादा भाजपा में है, क्योंकि भाजपा की दिलचस्पी इसमें ज्यादा है कि कांग्रेस की ओर से कौन मैदान में आता है। इस कानाफूसी में कितना दम है, यह तो आने वाले वक्त में ही पता लगेगा।

सिंधी वोटों के दम पर दावेदारी कर रहे हैं बाकोलिया

अजमेर दक्षिण विधानसभा सीट हालांकि अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है और अजमेर निगम के मेयर कमल बाकोलिया भी उसी नाते टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, मगर समझा जाता है कि उनकी नजर सिंधी वोटों पर भी है, जिनके दम पर वे मेयर का चुनाव जीत गए थे।
बताया जा रहा है कि बाकोलिया जहां विभिन्न समाजों के संगठनों से अपने पक्ष में सिफारिशी पत्र जुटा रहे हैं, वहीं सिंधी समाज की संस्थाओं से भी डिजायर मांग रहे हैं। ऐसा करके वे जताना चाहते हैं कि वे अपनी जाति के वोट तो हासिल करेंगे ही, सिंधियों के वोट भी हासिल करेंगे।
इस सिलसिले में आपको बता दें कि उन्हें मेयर का टिकट देने का आधार ही ये था कि वे अजमेर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और पांच बार नगर पालिका अजमेर के पार्षद रहे स्वर्गीय श्री हरिशचंद जटिया के पुत्र हैं, जिन्होंने आजादी के बाद बजमेर में सिंध प्रांत से आए विस्थपितों को पुन: बसाने व मुआवजा दिलाने में महती भूमिका निभाई। वे मूलत: सिंध के रहने वाले थे और उन्हें सिंधी ही माना जाता था, अर्थात सिंधियों में घुले-मिले थे। कालांतर में उनके परिवार को अनुसूचित जाति में शामिल माना जाने लगा। आज भी कई पुराने सिंधी बाकोलिया को स्वर्गीय जटिया की वजह से सिंधी ही मानते हैं। मेयर के चुनाव में उन्होंने इस धारणा को भुनाया भी। उस चुनाव में बाकायदा इस मुद्दे पर परचे बाजी भी हुई थी। समझा जाता है कि वे मूलत: सिंध का होने के नाते विधानसभा चुनाव में टिकट हासिल कर वोट लेना चाहते हैं। एक अर्थ में देखा जाए तो वे ऐसे अकेले दावेदार हैं, जो अनुसूचित जाति से होते हुए भी सिंधी जनाधार रखते हैं। ज्ञातव्य है कि अजमेर दक्षिण में सिंधियों के तकरीबन तीस हजार वोट माने जाते हैं, जिनका लाभ पिछले चुनाव में सिंधी-गैर सिंधीवाद के चलते सिंधियों के कांग्रेस के खिलाफ चले जाने के कारण भाजपा की श्रीमती अनिता भदेल को मिला था।
-तेजवानी गिरधर
7742067000