शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

कश्मीर के मामले में बोलने का ठेका केवल हिंदूवादियों के पास?

जियारत को अजमेर आए पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी शुजात हुसैन

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री व मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चौधरी शुजात हुसैन दरगाह जियारत को आए और भारत की अखंडता व अस्मिता से जुड़े कश्मीर के मुद्दे पर विवादास्पद व आपत्तिजनक बयान दे गए। जाहिर सी बात है कि इस पर ऐतराज होना ही था। मगर अफसोस कि हर बार की तरह केवल हिंदूवादी संगठनों ने ही विरोध दर्ज करवाया। न तो धर्मनिरपेक्षता की पैरोकार कांग्रेस बोली और न ही अन्य कोई देशभक्त संगठन।
सवाल ये उठता है कि क्या कश्मीर के मामले में बोलने का केवल हिंदूवादी संगठनों को ही ठेका दिया हुआ है, कांग्रेस का इससे कोई लेना-देना नहीं है? क्या पाक इस्लामिक देश है, इस कारण केवल हिंदूवादियों के निशाने पर रहेगा, धर्मनिपेक्षता की आड़ में मुस्लिमों को राजी रखने की खातिर कांग्रेस चुप रहेगी? क्या कांग्रेस को डर लगता है कि कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का विरोध करने पर उसके मुस्लिम वोट खिसक जाएंगे? पाकिस्तान यदि हमसे दुश्मनी का भाव रखता है तो क्या केवल हिंदूवादियों को ही ऐतराज होना चाहिए, धर्मनिरपेक्ष ताकतों को नहीं? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर खोजने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है, सवाल खुद-ब-खुद जवाब दे रहे हैं।
असल में चौधरी ने यह कहा कि पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा नहीं करना चाहता, बल्कि वहां के लोगों को उनका अधिकार दिलाना चाहता है। सवाल ये उठता है कि पाक कश्मीर पर कब्जा करना चाहे या नहीं, उसे कब्जा करने दे कौन रहा है? दूसरा ये कि जो कश्मीर हमारा है, वहां के लोगों को अधिकार दिलाना या न दिलाना पाकिस्तान का विषय कैसे हो सकता है? जाहिर सी बात है कि पाकिस्तान के नेता कश्मीन के मुसलमानों को भड़का कर अपनी रोटियां सेकना चाहते हैं, जिसे किसी भी सूरत में भारत बर्दाश्त नहीं कर सकता।
विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री शशिप्रकाश इंदौरिया व बजरंग दल के संयोजक लेखराज ने ठीक ही कहा है कि धार्मिक यात्राओं के बहाने पाकिस्तानी नेता अजमेर आते हैं और यहां आकर अनर्गल टिप्पणियां कर रहे हैं। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारत सरकार ऐसे लोगों के आने पर प्रतिबंध लगाए।
इस सिलसिले में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के नेता इब्राहिम फखर का यह बयान तारीफ-ए-काबिल है कि शुजात हुसैन पहले पाकिस्तान में अपने लोगों को तो अधिकार दिला दें, उसके बाद भारत के बारे में बात करें। कश्मीर के लोगों को यह समझाने या बताने की जरूरत नहीं कि उनका हित किस में हैं। कश्मीरियों को वे सभी अधिकार मिले हुए हैं जो भारत के अन्य राज्यों के लोगों के पास हैं। शुजात हुसैन यहां एक मेहमान की हैसियत से आए हैं, लिहाजा इसी हैसियत में रह कर बात करें तो ठीक रहेगा। इब्राहिम ने वाकई हिम्मत दिखाई है। वे कांग्रेस व कांग्रेस से जुड़े अल्पसंख्यक नेताओं से लाख बेहतर हैं, भले ही उन्होंने हिंदूवादी भाजपा से जुड़ा होने के नाते बयान जारी किया हो। उनकी इस मांग में दम है कि भारत सरकार शुजात हुसैन के बयान पर आधिकारिक विरोध दर्ज कराए।
इस मामले में कांग्रेस नेताओं की चुप्पी वाकई शर्मनाक है। अदद बयान ही तो जारी करना था, कौन सा सीमा पर जा कर युद्ध लडऩा था, मगर इसकी भी हिम्मत नहीं जुटा पाए। खैर, कांग्रेस नेताओं की जो भी मजबूरी हो, मगर कम से कम राजनयिक तौर पर भारत सरकार को चौधरी के बयान पर कड़ा ऐतराज करना चाहिए और पाकिस्तान को चेताना चाहिए कि वह अपने नेताओं को भारत की जमीन पर आ कर इस प्रकार के अनर्गल बयान जारी करने के लिए पाबंद करे।
-तेजवानी गिरधर

पुष्कर में विदेशियों के नंगेपन को कौन रोकेगा?


जगतपिता ब्रह्मा की नगरी व तीर्थ गुरु पुष्कर में अव्यवस्थाओं को लेकर जागृति आई है। तीर्थ पुरोहित संघ के संयोजक श्रवण पाराशर समेत सामाजिक कार्यकर्ता व वकील अशोक सिंह रावत, राजेंद्र महावर और महेंद्र सिंह रावत ने वकील कमल सिंह राठौड़, विकास पाराशर, सुषमा गुर्जर, लक्ष्मीकांत और मुनेश तिवारी के जरिए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 22 बी के अन्तर्गत स्थाई लोक अदालत में जनहित याचिका दायर की है। ये अच्छी बात है।
याचिका में मूलभूत सुविधाओं के अभाव से लेकर चहुंओर पसरी अव्यवस्था, पौराणिक काल से मदिरा व मांसाहार पर प्रतिबंध के बावजूद सरकारी अमले की लापरवाही व मिलीभगत से हो रही खुले आम बिक्री जैसे अहम मुद्दों को उठाया गया है। जिक्र ड्रग्स का ट्रांजिट सेंटर बनने और विदेशी पर्यटकों द्वारा नशे में मदहोश हो कपड़े उतारकर मुख्य सड़कों पर नग्न प्रदर्शन का भी है। बेशक इसके लिए जिला प्रशासन, पुलिस व स्थानीय नगर पालिका प्रशासन सहित अन्य विभाग जिम्मेदार हैं। याचिका के बाद जाहिरा तौर पर कोर्ट के आदेश पर विभागों की डेबरी कसी जाने की उम्मीद है, मगर क्या इतने भर से पुष्कर की पवित्रता कायम रह पाएगी? मेले में तीर्थ यात्रियों के लिए व्यवस्थाएं होनी ही चाहिए, मगर उससे भी बड़ी है पुष्कर की पावन धरा की महत्ता को बरकरार रखना। ये केवल पुलिस व प्रशासन के भरोसे संभव नहीं है।
सब जानते हैं कि तीर्थराज की सड़कों पर विदेशी पर्यटकों का सरेआम अश्लील प्रदर्शन और हंगामा अब आम होता जा रहा है। कभी वे सरे राह नग्न हो कर पुष्कर की पौराणिक मर्यादा को भंग करते हैं तो कभी उठाईगिरों की तरह उत्पात मचाते हैं। इस प्रकार के अधिकतर मामलों में पाया गया है कि वे मादक पदार्थ का अत्यधिक सेवन के कारण मानसिक संतुलन खो देते हैं। उन्हें कब्जे में लेने में ही पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। रहा सवाल उनके खिलाफ कार्यवाही का तो संबंधित देश के दूतावास को सूचित कर उन्हें यहां से रवाना करने के सिवा पुलिस के पास और कोई चारा नहीं होता। इस फौरी कार्यवाही के कारण विदेशी बेखौफ हो कर खुले सांड की तरह पुष्कर में ऐसे विचरते हैं, मानो अतिथि देवा भव की परंपरा वाला यह देश उनकी चरागाह है। वे चाहे जो करें, कोई कुछ कहने वाला नहीं है।
यह हालत उस तीर्थ स्थल की है, जिसके बारे में वेद पुराणों में कहा गया है, पर्वतानां यथा मेरू, पक्षिणाम् गरुड़: यथा: तदवत समस्त तीर्थाणाम् आदि पुष्कर मिष्यते अर्थात जिस प्रकार पर्वतों में सुमेरू पर्वत और पक्षियों में गरुड़़ का शिरोमणि महत्व है, उसी प्रकार समस्त तीर्थ स्थलों में पुष्कर तीर्थ सर्वोपरि तीर्थ है। पुराणों में उल्लेख है कि पृथ्वी के तीन नेत्र हैं, इनमें प्रथम और प्रमुख नेत्र पुष्कर है। पुष्कर नगरी को पृथ्वी का प्रथम नेत्र कहलाने का सौभाग्य प्रजापति ब्रह्मा के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ है, जिन्होंने इसी नगरी से सम्पूर्ण बह्मांड की रचना की। ऐसे महान तीर्थराज की दुर्गति देख कर तो ऐसा लगता है कि यहां का कोई धणी-धोरी ही नहीं है।
यह सही है कि सरकार पुष्कर के विकास के प्रति सतत प्रयत्नशील है। पर्यटन महकमे की ओर किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के कारण यहां विदेशी पर्यटक खूब आकर्षित हुए हैं और सरकार की आमदनी भी बढ़ी है, मगर विदेशी पर्यटकों के ऊलजलूल तरीके से अंग प्रदर्शन करते हुए विचरण करने से यहां की मर्यादा और पवित्रता छिन्न-भिन्न हुई है। मगर अफसोस कि उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है। इस मामले में तीर्थ पुरोहितों से तो दरगाह के खादिम ही अच्छे हैं, जिन्होंने कैटरीना कैफ के उघाड़ी टांगों में जियारत करने पर हंगामा कर दिया और आखिर उसे माफी मांगनी पड़ी।
होना तो यह चाहिए कि विदेशी पर्यटकों को यहां आने से पहले अपने पहनावे पर ध्यान देने के निर्देश जारी किए जाने चाहिए। जैसे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में जाने से पहले सिर ढ़कने और जूते उतारने के नियम हैं, वैसे ही पुष्कर में भ्रमण के भी अपने कायदे होने चाहिए। यद्यपि इसके लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया सकता, मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि पर्यटकों को सख्त हिदायत हो कि वे अद्र्धनग्न अवस्था में पुष्कर की गलियों या घाटों पर नहीं घूम सकते। होटल के अंदर कमरे में वे भले ही चाहे जैसे रहें, मगर सार्वजनिक रूप से अंग प्रदर्शन नहीं करने देना चाहिए। इसके विपरीत हालत ये है कि अंग प्रदर्शन तो दूर विदेशी युगल सार्वजनिक स्थानों पर आलिंगन और चुंबन करने से नहीं चूकते, जो कि हमारी संस्कृति के सर्वथा विपरीत है। कई बार तो वे ऐसी मुद्रा में होते हैं कि देखने वाले को ही शर्म आ जाए। जब स्थानीय लोग उन्हें घूर-घूर कर देखते हंै, तो उन्हें बड़ा रस आता है। जाहिर तौर पर जब दर्शक को ऐसे अश्लील दृश्य आसानी से सुलभ हो तो वे भला क्यों मौका गंवाना चाहेंगे। स्थिति तब और विकट हो जाती है जब कोई तीर्थ यात्री अपने परिवार के साथ आता है। आंख मूंद लेने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं रह जाता।
यह भी एक कड़वा सत्य है कि विदेशी पर्यटकों की वजह से ही पुष्कर मादक पदार्थों की मंडी बन गया है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। इस इलाके एड्स के मामले भी इसी वजह से सामने आते रहे हैं। जहां तक प्रशासन व पुलिस तंत्र का सवाल है, उन्हें तो नौकरी और डंडा बजाने तक से वास्ता है। वह तो कानून और व्यवस्था का पालन ही ठीक से करवा ले, तो काफी है। असल में उसकी तो हालत ये है कि मुंबई ब्लास्ट का मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने के आरोप में अमेरिका में गिरफ्तार डेविड कॉलमेन हेडली के पुष्कर आ कर चले जाने तक की हवा भी नहीं लगती। ऐसे में पुष्कर की पवित्रता की जिम्मेदारी संस्कृति की वाहक आमजन की है। उसमें सर्वाधिक दायित्व है तीर्थ पुरोहितों व पुष्कर के नाम पर संस्थाएं चलाने वालों का। यह सही है कि तीर्थ पुरोहितों ने पुष्कर की पवित्रता को लेकर अनेक बार आंदोलन किए हैं, पर कहीं न कहीं वे भी स्थानीय राजनीति के कारण आंदोलनों को प्रभावी नहीं बना पाए हैं। तीर्थ पुरोहित पुष्कर में प्रभावी भूमिका में हैं। वे चाहें तो सरकार पर दबाव बना कर यहां का माहौल सुधार सकते हैं। यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुकूल होगा, अपितु तीर्थराज के प्रति लोगों की अगाध आस्था का संरक्षण करने के लिए भी जरूरी है। विश्व हिन्दू परिषद को ही लीजिए, उसने केंद्र व राज्य सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए यह तो कह दिया कि उर्स के लिए जहां सरकार तीन सौ करोड़ की घोषणा कर रही है, वहीं पुष्कर मेले के लिए महज सवा करोड़ की ही घोषणा की गई, मगर क्या कभी उसने विदेशियों के स्वच्छंद विचरण पर रोक के लिए अपने स्तर पर भी कुछ किया है? केवल सरकार व प्रशासन से उम्मीद करना बेमानी है। अगर वाकई उसे पुष्कर की महत्ता की चिंता है तो उसे अपने स्तर भी कुछ तो करना ही होगा।
-तेजवानी गिरधर